Saturday, November 23, 2024
115 कुल लेख

Anand Kumar

Tread cautiously, here sentiments may get hurt!

जिस युद्धकला पर अंग्रेज़ों ने डाली कुदृष्टि, उसे हिन्दुओं ने नृत्य शैली के रूप में बचाया

कल (22 जुलाई 2019) जब जगन्नाथ पुरी के एक पुजारी की तस्वीरें इन्टरनेट पर नजर आने लगीं तो कुछ तथाकथित हिन्दुओं की मासूम, अहिंसक, गाँधीवादी, सेक्युलर भावना बड़ी बुरी तरह आहत हो गईं।

मिथिला पेंटिंग – परंपरा Vs आधुनिकता: जो पसंद नहीं आएगा वो समय के साथ ख़त्म हो जाएगा

दलित हरिजन महिलाओं के लिए मिथिला का समाज बहुत रुढ़िवादी रहा है। लेकिन कागज पर पेंटिंग बना कर बेचने का मौका जब इन्हें मिलने लगा, तो एक नया द्वार खुल गया। लेकिन फिर शुद्धतावादियों और आधुनिकतावादियों में चर्चा शुरू हो गई। कुछ लोग लोक कला से पौराणिक कथाओं का जाना परंपरा का नष्ट होना बताते हैं, वहीं कुछ लोग...

सभी मर्द एक जैसे… जबरन ब्रम्हचर्य ले डूबता है? – कंगना के बहाने कहानी चर्च और हॉलीवुड की

जबरन ब्रम्हचर्य को किसी सामाजिक संस्था पर थोप देना, जिसका मुख्य उद्देश्य कुछ और है, वैसे ही हानिकारक परिणाम देगा, जैसे गलत तरीके से किए गए योग के आसनों से होगा। इसे जबरन लोगों पर थोपने के नतीजे बिलकुल वैसे ही होंगे जैसे चर्च के लिए हुए हैं।

जनता के लिए अलग और MLA के लिए अलग कानून! क्या सरकार भेजेगी अपने विधायक को जेल?

कानून के शासन और नैतिकता, मूल्यों, आदर्शों की बातें करने वाली योगी सरकार क्या जनता के लिए अलग और अपने विधायक के लिए अलग मापदंड अपनाएगी? नेताजी के लिए “भीड़” का समर्थन आएगा, इस डर से नेताजी को छोड़ा भी जा सकता है! या फिर नेताजी भी वैसे ही जेल जाएँगे जैसे इस मामले में कोई साधारण व्यक्ति गया होता?

परिवार न होना, सत्ता का लालच न होने की गारंटी नहीं, यकीन न हो तो पढ़े मलिक काफूर की कहानी

खम्भात पर हुए 1299 के आक्रमण में अलाउद्दीन खिलजी के एक सिपहसालार ने काफूर को पकड़ा था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उसे 1000 दीनार की कीमत पर खरीदा गया था, इसीलिए काफूर का एक नाम 'हजार दिनारी' भी था।

भीड़ की हर कार्रवाई को ‘भगवा आतंक’ से जोड़ती मीडिया: जब पुलिस का ही न्याय से उठ गया था भरोसा!

अगर मारे गए किसी "समुदाय विशेष" के परिवार को मिले सरकारी मुआवजे को देखें और उसकी तुलना भीड़ द्वारा मार दिए गए डॉ नारंग, रिक्शाचालक रविन्द्र जैसी दिल्ली में हुई घटनाओं से करें तो ये अंतर खुलकर सामने आ जाता है।

जय भीम जय मीम की कहानी 72 साल पुरानी… धोखा, विश्वासघात और पश्चाताप के सिवा कुछ भी नहीं

संसद में ‘जय भीम जय मीम’ का नारा लगा कर ओवैसी ने कोई इतिहास नहीं रचा है। जिस जोगेंद्र नाथ मंडल ने इस तर्ज पर इतिहास रचा था, खुद उनका और उनके प्रयास का हश्र क्या हुआ यह जानना-समझना जरूरी है। जो दलित वोट-बैंक तब पाकिस्तान के हो गए थे, वो आज क्या और कैसे हैं, इस राजनीति को समझने की जरूरत है।

मीडिया के बेकार मुद्दों पर चर्चा से बेहतर है कि नई शिक्षा नीति पर अपनी बात सरकार तक पहुँचाइये

आमतौर पर समितियों की सिफारिश (अभी वाली नेशनल एजुकेशन पालिसी ड्राफ्ट भी) करीब पाँच सौ पन्ने का मोटा सा बंडल होता है जिसे कौन पढ़ता है, या नहीं पढ़ता, हमें मालूम नहीं। ऐसी सभी सिफारिशों से मेरी एक और आपत्ति ये भी होती है कि ये किस आधार पर बनी है ये पता नहीं होता।