चुनाव के मौसम में फर्जी खबर परोसने का धंधा ज़ोरों पर है। इसी क्रम में मीडिया विजिल वेबसाइट पर एक पत्र प्रकाशित किया गया जिसके बारे में यह कहा जा रहा है कि इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने लिखा है। यह पत्र सोशल मीडिया में भी वायरल हो रहा है। वायरल हो रहे पत्र में दावा किया गया है कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाए जाने के कारण संघ भाजपा से नाराज़ है। पत्र में 20 अप्रैल की तारीख पड़ी हुई है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम बड़े अक्षरों में लिखा है जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इसे आरएसएस के आधिकारिक लेटर हेड पर लिखा गया है।
वायरल हो रहे इस पत्र में लिखा है, “भोपाल की महिला प्रत्याशी के शहादत के खिलाफ अनावश्यक बयानबाजी से पुलवामा हमले से जो राजनीतिक लाभ निर्मित की गई थी वो अब समाप्त हो चुकी है इसलिए समय रहते ही प्रत्याशी बदलना उपयुक्त होगा।”
आजकल संघ विरोधी भ्रम फैलाने के लिए संघ अधिकारियों के नाम से फेक पत्र सोशल मीडिया में वायरल कर रहे हैं।ऐसा ही एक पत्र सह सरकार्यवाह सुरेश सोनीजी के नाम से वायरल हो रहा है।फेक का प्रमाण यह है कि लैटरहैड में स्वयंसेवक (स्वयं सेवक) अलग लिखा है। झूठ चलाने के लिए भी अक्ल चाहिए।@RSSorgpic.twitter.com/MljbjCsf8R
इसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि सुरेश सोनी भाजपा से कह रहे हैं कि भोपाल से भाजपा की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को बदल कर कोई दूसरा प्रत्याशी चुनाव में उतारा जाए। पत्र और उसमें लिखी सामग्री प्रामाणिक है या नहीं इसकी जाँच करने के लिए हमने संघ की आधिकारिक वेबसाइट खंगाली तो वहाँ सुरेश सोनी द्वारा लिखित ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। इसके अलावा संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र कुमार ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी कि वायरल हो रहा पत्र फर्जी है।
मीडिया विजिल वेबसाइट ने उस पत्र को लेकर जो स्टोरी लिखी है उसमें नीचे लिख दिया है कि ‘मीडियाविजिल सूत्र से प्राप्त हुए इस पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं करता है’ लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब उस पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की जा सकती तो मीडिया विजिल ने बिना पत्र की सच्चाई जाने एक भड़कीली और भ्रामक हेडलाइन के साथ स्टोरी किस आधार पर बना दी?
जब संघ के एक अधिकारी ने स्वयं ट्वीट कर जानकारी दी है कि वायरल हो रहा पत्र फेक है तब भी मीडिया विजिल ने उस पत्र के ज़रिए एक भ्रामक खबर फैलाने का काम किया।
ममता सरकार का विवादों से गहरा नाता है, जिसे निभाने में वो कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती। ऐसा ही एक और विवाद वीडियो के रूप में सामने आया है।
इस वीडियो में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC (तृणमूल कॉन्ग्रेस) के आधिकारिक फेसबुक पेज पर सूचना और विज्ञापनों पर जब क्लिक किया जाता है, तो आप उन देशों को देख सकते हैं जहाँ TMC लोकसभा चुनाव में वोट देने की अपील कर रही है। ड्रॉप-डाउन वाले विकल्प पर क्लिक करने पर जब एक देश के रूप में ‘बांग्लादेश’ का चयन किया जाता है तो वहाँ TMC अपने पक्ष में वोट माँगने की अपील करती नज़र आ रही है। इससे साफ़ पता चलता है कि TMC अपने देश के अलावा दूसरे देश में भी प्रचार कर रही है। भारत में प्रचार करना तो समझ में आता है, लेकिन पड़ोसी देश बांग्लादेश में प्रचार करने का भला क्या मतलब हो सकता है?
जानकारी के मुताबिक, ममता की TMC फेसबुक पर ऐसे 13 विज्ञापन चला रही है, जिसमें एक विज्ञापन ऐसा भी शामिल है जिसमें ममता, कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्र में लोगों से अपील कर रहीं हैं कि वे चुनावों में TMC को वोट दें। ममता फेसबुक के ज़रिए बांग्लादेश में वोट की अपील क्यों कर रही हैं, इसके पीछे क्या कारण है यह कोई नहीं जानता। यह सर्वविदित है कि भारतीय चुनावों में केवल भारतीय नागरिक ही वोट कर सकते हैं।
बांग्लादेश में वोट की अपील करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने आईना दिखाने का काम किया।
बांग्लादेश में वोट की अपील करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने आईना दिखाने का काम किया। इस बात की पुष्टि करने के लिए ऑपइंडिया ने जब उनसे सम्पर्क साधा, तो जवाब मिला कि तृणमूल बांग्लादेश में ऐसा कोई विज्ञापन नहीं कर रही है।
यह पहली बार नहीं है कि ममता ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में वोट की अपील की हो। इस महीने की शुरुआत में, दो बांग्लादेशी अभिनेताओं को पश्चिम बंगाल में ममता की TMC के लिए प्रचार करते हुए पाया गया था। बांग्लादेशी अभिनेता फिरदौस अहमद और गाज़ी अदबुन नूर बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में TMC के लिए प्रचार कर रहे थे। जबकि फिरदौस के वीज़ा को विदेश मंत्रालय द्वारा ब्लैकलिस्ट किया गया था। बाद में पता चला था कि अदबुन नूर के वीज़ा की अवधि भी समाप्त हो चुकी थी।
पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश के साथ एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय सीमा शेयर करता है जिसके ज़रिए बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ होती है, जो भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। ममता बनर्जी के पास क्या अपने देश में वोट की अपील करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है, जो बांग्लादेश में वोट की अपील कर वह अपनी राजनीति के गिरते स्तर की नुमाइश कर रहीं हैं?
जैसा कि हमने एक लेख में बताया था, कुछ वामपंथी और लिबरल किस्म के लोग श्री लंका हमलों के बाद सिर्फ़ इसीलिए सक्रिय हो गए क्योंकि उन्हें इन हमलों के पीछे किसी तरह बौद्धों का हाथ साबित करना था। अगर घटना भारत की होती तो ये लोग ऐसे हमलों के पीछे हिन्दुओं का हाथ ढूँढ़ते लेकिन श्री लंका की घटना होने के कारण इन्होंने ज़बरन इसमें बौद्धों का हाथ होने की बात कही। इतना ही नहीं, अब इन प्रोपेगेंडाबाज़ों ने अपनी इस कोशिश को सफल बनाने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लिया है।
सोशल मीडिया पर लगातार फेक न्यूज़ चलाए जा रहे हैं कि इसमें बौद्धों का हाथ है। अब जबकि श्री लंका की सरकार इस मामले के पीछे नेशनल तौहीद जमात का हाथ देख रही है और खूँखार इस्लामिक आतंकी संगठन ISIS द्वारा इस हमले की ज़िम्मेदारी लेने की ख़बर आई गई है, तब धर्मनिरपेक्षता के इन ठेकेदारों को साँप सूंघ गया।
अब इन्होंने ‘मुस्लिम महिलाओं के भेष में बौद्ध’ वाला नैरेटिव गढ़ा और इसे साबित करने के लिए झूठा वीडियो वायरल कर दिया। इस वीडियो को कॉन्ग्रेस समर्थकों, भाजपा के ख़िलाफ़ आग उगलने वालों और कन्हैया कुमार का गुणगान करने वालों ने ख़ूब शेयर किया। क़रीब 30 सेकेंड के इस वायरल वीडियो में बुर्क़ा पहने एक शख़्स दिखाई देता है, जिसे पुलिस ने गिरफ़्तार कर रखा है और उससे पूछताछ की जा रही है। वीडियो में बताया जा रहा है कि मुस्लिम महिला के लिबास में यह कोई बौद्ध है, जिसे श्री लंका हमलों में संलिप्तता के लिए गिरफ़्तार किया गया है।
फेसबुक और ट्विटर पर इस वीडियो को हज़ारों लोगों द्वारा शेयर किया गया। ज्ञात हो कि 21 अप्रैल को श्री लंका में हुए सीरियल बम धमाकों में अब तक क़रीब 360 लोगों के मरने की ख़बर आई है और 550 से भी अधिक लोग अभी भी घायल हैं। सरकार स्थानीय जिहादी गुट नेशनल तौहीद जमात व अन्य संदिग्ध संगठनों के सरगनाओं पर कार्रवाई कर रही है और घटना के बाद अब तक 38 लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। बीबीसी ने अपनी पड़ताल में इस वीडियो को फेक पाया लेकिन यह बताने से चूक गए कि आखिर इसे फैला कौन रहा है। इस पड़ताल में पाया गया कि इस वीडियो का श्री लंका ब्लास्ट्स या उसके बाद हुईं गिरफ्तारियों से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
दरअसल, ये वीडियो अगस्त 2018 का है। श्री लंका के नेथ न्यूज़ ने ये वीडियो तब पोस्ट किया था, जब उक्त शख़्स को किसी कारण से पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। नेथ न्यूज़ ने भी इस वीडियो के वायरल होने के बाद स्पष्टीकरण देते हुए साफ़ कर दिया है कि इस वीडियो का ताज़ा ब्लास्ट्स से कोई सरोकार नहीं है। ये पुरानी वीडियो है।
ऊपर दिए गए तीन सिर्फ उदाहरण मात्र हैं। फेसबुक पर ‘a buddhist dressed as a muslim woman was caught by’ इससे सर्च कीजिए। आपको अंदाजा लग जाएगा कि किस तरह से इस झूठ को फैलाया जा रहा है। कुछ पेज ऐसे भी हैं, जिसके लगभग 10 लाख फॉलोअर हैं और वहाँ से यह फेक न्यूज हजारों लोगों ने 24 घंटे के अंदर देख लिया, इसे सत्य भी मान लिया। न जाने कितने लोग फिर इसे वॉट्सऐप-वॉट्सऐप खेल रहे होंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक जल्द ही ₹500 और ₹200 के नए नोट जारी करने वाला है। इसकी जानकारी खुद आरबीआई ने ट्वीट के जरिए दी है। ये नए नोट महात्मा गाँधी की नई श्रृंखला में जारी किए जाएँगे। फिलहाल, ₹200 और ₹500 के जो नोट प्रचलन में हैं, उन पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के हस्ताक्षर हैं, लेकिन नए नोटों पर ऐसा नहीं होगा।
Issue of ₹ 200 Denomination Banknotes in Mahatma Gandhi (New) Series bearing the signature of Shri Shaktikanta…https://t.co/QxOPLPFL3R
बता दें कि दिसंबर 2018 में उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफा देने के बाद शक्तिकांत दास ने रिजर्व बैंक के गवर्नर का पदभार संभाला था। जिसके बाद मौजूदा नोटों में हस्ताक्षर बदलने की जरूरत पड़ी।
आरबीआई द्वारा इससे पहले ₹100 के नोट में भी बदलाव किया जा चुका हैं। ₹100 के नए नोटों पर नए गवर्नर के हस्ताक्षर हैं। हालाँकि पुराने नोट भी सभी बैंक में वैध हैं। इसके अलावा आरबीआई ने ₹50 के नए नोट जारी करने की भी बात कही थी, क्योंकि उन नोटों पर भी पुराने गवर्नर यानी उर्जित पटेल के हस्ताक्षर हैं। 50 के नए नोट भी महात्मा गाँधी की नई सीरीज़ में जारी होंगे।
अटल आयुष्मान योजना के तहत अस्पतालों द्वारा टालमटोल अब उन्हें भारी पड़ सकता है। अटल आयुष्मान योजना के तहत जब उत्तराखंड के एक अस्पताल ने उपचार नहीं किया तो उस पर ₹11.82 लाख का जुर्माना लगाया गया है। यह रकम इलाज के लिए मरीज को बताई गई अनुमानित राशि का पाँच गुना है। महंत इंदिरेश अस्पताल अस्पताल को ये राशि एक सप्ताह के भीतर राज्य स्वास्थ्य अभिकरण में जमा करानी पड़ेगी। ये अस्पताल देहरादून के केदारपुर रोड, पटेल नगर में स्थित है। इस प्रकरण में उचित इलाज न मिलने के कारण मरीज की हालत लगातार बिगड़ती गई और अंततः उसकी मृत्यु हो गई।
मामला ये है कि 18 जनवरी को कोटद्वार निवासी पिंकी प्रसाद को चंद्रमोहन सिंह नेगी राजकीय बेस चिकित्सालय, कोटद्वार में दाखिल कराया गया था। हृदय रोग के कारण उन्हें दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया गया। इसके परिजनों ने उन्हें महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल में उन्हें आईसीयू में रखा गया। मेडिकल परीक्षणों के बाद वहाँ उनका उपचार शुरू किया गया। अस्पताल के सीटीवीएस (कार्डियो थोरेक्स एंड वैस्कुलर सर्जरी) विभाग ने कहा कि मरीज को ओपन हार्ट सर्जरी करानी पड़ेगी। इसके बाद अस्पताल ने उचित इलाज करने की बजाए उन्हें डिस्चार्ज कर दिया।
सर्जरी का कुल एस्टीमेट उन्हें ₹3.36 लाख रुपया बताया गया। मरीज को डिस्चार्ज किए जाने के बाद उसकी पत्नी ने कोटद्वार तहसील के सामने धरना दिया और मुख्यमंत्री से पत्र लिखकर इलाज के लिए गुहार लगाई। राज्य स्वास्थ्य अभिकरण ने मामले का संज्ञान लिया और इसे अस्पताल द्वारा अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन माना। अस्पताल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चूँकि मरीज की सर्जरी लायक अवस्था नहीं थी, स्टेबल होने के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। ख़र्च का ब्यौरा दिए जाने का भी कोई उल्लेख अस्पताल ने नहीं किया। लेकिन, इसके प्रमाणित साक्ष्य मौजूद थे। राज्य स्वास्थ्य कार्यकारिणी की बैठक में अस्पताल पर अर्थदंड लगाने का निर्णय लिया गया।
Indiresh hospital fined Rs 11.82 lakh for violating norms of Ayushman Yojana https://t.co/YUZILPfVNh
इसके अलावा दो अन्य मरीज, शोएब और अमृता देवी के साथ भी पूर्व में ऐसा हो चुका है। राज्य स्वास्थ्य अभिकरण द्वारा जवाब तलब करने पर अस्पताल ने ग़लती स्वीकार की। दो अन्य अस्पताल जीवन ज्योति हॉस्पिटल टिक्कमपुर-सुल्तानपुर हरिद्वार व सहोता मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल, काशीपुर के खिलाफ प्रथम दृष्टि में योजना के संचालन में अनियमितताएं, अनुबंध का उल्लंघन व धोखाधड़ी की पुष्टि हुई है। दोनों ही अस्पतालों की सूचीबद्धता को रोककर तत्काल प्रभाव से इनके सारे भुगतान रोक दिए गए हैं।
बसपा नेता और सहारनपुर के खनन माफिया मोहम्मद इकबाल के ख़िलाफ़ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए ) के तहत केस दर्ज किया है। इस केस में इकबाल पर 111 से ज्यादा फर्जी कंपनियों के जरिए करोड़ों रुपए के ब्लैक मनी को व्हाइट मनी में बदलने का आरोप है।
गौरतलब है इससे पहले भी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी मोहम्मद इकबाल के ख़िलाफ़ जाँच कर रही थी। लेकिन ये नया मामला सीरियस फ्रॉड इंवेस्टीगेशन यूनिट द्वारा मोहम्मद इकबाल की शेल कंपनियों की जाँच के बाद अदालत में दाखिल की गई चार्जशीट के आधार पर किया गया है। इस मामले में ईडी जल्द ही फर्जी कंपनियों की जाँच शुरू करेगी।
मीडिया खबरों के मुताबिक मोहम्मद इकबाल द्वारा इन फर्जी कंपनियों के जरिए अवैध खनन और कई अन्य जरियों से कमाए गए लगभग 10,000 करोड़ रुपए के काले धन को सफ़ेद करने की कोशिश की गई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इकबाल की पूर्व मंत्री और एनआरएचएम घोटाले के आरोपित बाबू सिंह कुशवाहा के साथ साठगाँठ थी।
सहारनपुर में बसपा के एक नेता हैं मोहम्मद इकबाल..10 साल पहले फलों का ठेला लगाते थे लेकिन आज 11 चीनी मिलों के मालिक हैं..ये है विकास..
— आओ देश के प्रति दूसरों को जगाएं (@skjawla80) April 25, 2019
इकबाल की इन फर्जी कंपनियों के निदेशक और अधिकारी उसके नौकर, रसोइया और ड्राइवर हैं। अभी तक की जाँच में 111 में से 84 कंपनियों के पते भी फर्जी पाए गए हैं। बता दें कि ईडी ने इकबाल के अपनी ही यूनिवर्सिटी को दिए गए संदिग्ध डोनेशन और 11 शुगर मिल खरीदने की जाँच भी शुरू की तो बाकी एजेंसियों ने भी अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया। सहारनपुर जिला प्रशासन भी अवैध खनन के कई मामलों में इकबाल और उनके परिजनों के ख़िलाफ़ कई बार एक्शन ले चुका है।
इकबाल के ख़िलाफ यह मामला 2015-16 से चल रहा है। करीब दस साल पहले फलों की दुकान लगाने वाले मोहम्मद इकबाल अब अरबों की संपत्ति के मालिक हैं। इकबाल के ख़िलाफ़ सहारनपुर के ही एक कारोबारी रणवीर सिंह ने सबसे पहले शिकायत दर्ज करवाई थी, जिसमें जिक्र था कि आखिर फल की दुकान चलाने वाला इकबाल रातोंरात इतनी संपत्ति का और सहारनपुर की सैंकड़ों एकड़ में फैली ग्लोकल यूनिवर्सिटी का मालिक कैसे बना?
प्रियंका गाँधी वाड्रा के रोड शो के दौरान उनकी गाड़ी से कुचल कर एक महिला के घायल होने की ख़बर आई है। घटना उत्तर प्रदेश स्थित महोबा जिला मुख्यालय की है। रोड शो के दौरान प्रियंका की गाड़ी से घायल महिला को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए पुलिस अधिकारी जटाशंकर राव ने बताया, “कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा के रोड शो में शामिल गाड़ियों का काफिला जैसे ही परमानंद चौक के पास पहुँचा, उनकी गाड़ी के साथ चल रही स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआईयू) में कार्यरत महिला सिपाही ख़ुशनुमा बानो (38)के पैर पर प्रियंका गाँधी की गाड़ी का अगला पहिया चढ़ गया, और उनका पैर कुचल गया।“
घायल 38 वर्षीय महिला पुलिसकर्मी को इलाज के लिए उनके अन्य साथी पुलिसकर्मियों ने जिला अस्पताल में दाखिल कराया जहाँ उनकी हालत स्थित बनी हुई है। उधर घटना की सूचना मिलने के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गाँधी ने भी ‘बड़ा दिल’ दिखाते हुए कॉन्ग्रेस की महिला इकाई अध्यक्ष को घायल महिला पुलिसकर्मी की देखरेख की ज़िम्मेदारी सौंपी है। स्थानीय कॉन्ग्रेस पदाधिकारियों ने कहा कि प्रियंका उसके स्वास्थ्य को लेकर ‘पल-पल’ की अपडेट भी ले रही हैं। महिला पुलिसकर्मी के पाँव में चोट आई है। उन्हें अस्पताल के ICU वार्ड में रखा गया है।
बता दें कि प्रियंका गाँधी ने बुंदेलखंड में अपनी पार्टी को मज़बूत करने के प्रयासों के क्रम में महोबा में रैली की। दो किलोमीटर तक चले इस रोड शो के दौरान उन्होंने रोडवेज बस स्टैंड के पास स्थित गुरुद्वारा में मत्था भी टेका। इस दौरान उन्होंने अक्षय कुमार द्वारा लिए गए प्रधानमंत्री मोदी के ‘गैर राजनीतिक इंटरव्यू’ पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री किसानों के बदले अभिनेताओं से बातें कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पिछले पाँच वर्षों में अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के किसी एक गाँव में भी नहीं गए हैं।
यूपी में अभी भी शेष 4 चरणों में 56 सीटों पर मतदान बाकि है और कॉन्ग्रेस की कोशिश है कि इन सीटों पर पूरा ज़ोर लगाया जाए। प्रियंका ने महोबा में हमीरपुर से कॉन्ग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में वोट माँगा। बीते दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी महोबा में भाजपा प्रत्याशी के लिए जनसभा की थी। कॉन्ग्रेस ने बदले में प्रियंका को यहाँ भेजा।
अगर अजीब सी फ़िल्म देखनी हो तो ‘लॉस्ट इन ट्रांसलेशन’ देखी जा सकती है। इसकी कहानी एक अमेरिकी फिल्म स्टार बॉब की है जो किसी प्रचार की शूटिंग के लिए जापान आता है। उसकी शादीशुदा जिन्दगी बहुत अच्छी नहीं चल रही होती। जिस होटल में वो ठहरा हुआ होता है, वहीं शेर्लोट नाम की एक कम उम्र की लड़की भी ठहरी होती है। उसकी हाल ही में शादी हुई थी, लेकिन उसका पति जो कि एक नामी फोटोग्राफर था, उसे होटल में छोड़कर, काम पर गया था। वो भी अपने शादीशुदा भविष्य को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं होती।
बॉब और शेर्लोट रोज सुबह होटल में मिलते थे, एक दिन जब रात को दोनों को नींद नहीं आ रही होती तो दोनों एक दूसरे से बार में टकरा जाते हैं। शेर्लोट अपने दोस्तों से मिलने के लिए बॉब को आमंत्रित करती है। टोक्यो में घूमते फिरते दोनों में प्यार जैसा कुछ हो जाता है। दोनों एक दूसरे से अपने-अपने निजी जीवन की परेशानियाँ भी साझा करने लगते हैं। जिस दिन बॉब को वापस लौटना होता है, उससे पहले की रात वो होटल की ही एक गायिका के साथ गुजार रहा होता है।
शेर्लोट को इसका पता चलता है और वो नाराज हो जाती है। दोनों में झगड़ा भी होता है। फिर बाद में होटल में आग लगने जैसी घटना के जरिए दोनों में सुलह भी हो जाती है। जब बॉब वापस लौट रहा होता है तो दोनों एक दूसरे को अलविदा कहकर निकलते हैं। थोड़ी ही देर बाद एअरपोर्ट के रास्ते में बॉब को एक भीड़ भरी सड़क पर शेर्लोट दिखती है, वो रुकता है, उसके पास जाता है। कान में फुसफुसाकर कुछ कहता है, दोनों गले मिलते हैं, किस करते हैं, और एक दूसरे से विदा होते हैं।
ये फिल्म इसलिए अजीब है क्योंकि इसमें सब कुछ होता है और कुछ नहीं होता। या फिर इसे इसलिए अजीब कह सकते हैं क्योंकि इसमें कुछ होता तो है, मगर क्या हुआ ये समझना-समझाना मुश्किल है। दूसरे देशों से आए हुए लोग एक जापानी शहर में कैसे खोए हुए से हैं, ये नजर आता है। उनके सांस्कृतिक तरीकों या चलन से माहौल अलग है, इसलिए वो खोए रहते हैं। जापानी के लम्बे वाक्यों को अनुवादक अंग्रेजी में एक वाक्य में कहता है, जिसमें पूरी बात कहीं खो गई, ये भी लोगों को समझ में आता रहता है। फिल्म के दोनों मुख्य कलाकारों ने शादी तो की है, लेकिन अपने पारिवारिक संबंधों में भी वो दोनों खोए हुए से हैं।
वामी मजहब के नए पोस्टर-बॉय के समर्थन में उतरे हुजूम के साथ ही लॉस्ट इन ट्रांसलेशन याद आता है। इसमें फ़िल्मी माहौल के जावेद अख्तर ने आकर अपने भाषणों में कॉन्ग्रेस के सिद्धू पर निशाना क्यों लगाया पता नहीं। बेगुसराय के लोगों को उसमें कुछ समझ नहीं आ रहा था, ये उनके चेहरे देखने से ही पता चलता था। योगेन्द्र ‘सलीम’ यादव की भाषा ही उन्हें क्षेत्रीय जनता से अलग काट देती है। ऐसी बातचीत आम लोग नहीं करते, हाँ टीवी डिबेट में जरूर परिष्कृत लगेगी। उनके समर्थन में कोई स्वरा भास्कर भी अभियान चला रही हैं। जिस पर महिला छात्रावास के सामने अभद्रता करने का जुर्माना लग चुका हो, उसके समर्थन में ‘नारीवाद’ कहना अपने आप में ही अजीब है।
कुल मिलाकर ये अभियान भी लॉस्ट इन ट्रांसलेशन ही है। वो इंडिया के लोग भारत में आकर, किसी और माहौल, किसी और भाषा में, किसी और विषय की बात कर रहे हैं। बाकी जनता अपना मत देने के लिए बटन दबाती है। दुआ है कि इस ‘दबाने’ में भी कहीं उन्हें अपने प्रत्याशी के विरोध के स्वर को दबाया जाना न समझ आ जाए!
रवीश कुमार पत्रकारिता के स्वघोषित मानदंड, स्तम्भ और एकमात्र सर्टिफाइंग अथॉरिटी हैं, ऐसा तो हम सब जानते ही हैं। वो अपने प्राइम टाइम के ज़रिए कभी-कभी सही मुद्दों पर बात करने के अलावा माइम आर्टिस्टों से लेकर आपातकाल तक बुला चुके हैं। उनके प्राइम टाइम पर उनको बहुत गर्व है, जो कि कालांतर में अवसादजनित घमंड में बदल चुका है। उन्हें ऐसा महसूस होता है, जिसे वो अभिव्यक्त करने में पीछे नहीं रहते, कि वो जिस चीज को मुद्दा मानेंगे वही मुद्दा है, वो जिस बात को सही सवाल मानेंगे वही सही सवाल होगा, वो जिस इंटरव्यू को सही ठहराएँगे वही सही साक्षात्कार कहा जाएगा।
जैसा कि रवीश के अलावा सबको पता है कि आज कल प्रधानमंत्री मोदी कई चैनलों को इंटरव्यू दे रहे हैं, ये बात और है कि इसमें रवीश के चैनल का नंबर नहीं आया है। ये प्रधानमंत्री कम और प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी का इंटरव्यू ज़्यादा है, ये सर्वविदित है। ये मोदी की चुनावी कैम्पेनिंग का एक हिस्सा है, जिसके ज़रिए वो तय सवालों के जवाब देते हुए अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर बात करते दिखते हैं। रवीश को वो सब नहीं दिखता। इस पर चर्चा आगे करेंगे।
हाल ही में मोदी जी ने अक्षय कुमार को एक ग़ैरराजनीतिक इंटरव्यू दिया जिसमें उनके निजी जीवन से जुड़ी बातों पर सवालात थे जैसे कि वो क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कहाँ जाते हैं, क्या पसंद है, किससे कैसी बातचीत है आदि। इंटरव्यू की शैली बहुत लाइट थी, और ये सभी को पता था। इसे ग़ैरराजनीतिक कहने का उद्देश्य यह भी था कि पीएम की रैलियों से लेकर हाल के सारे इंटरव्यूज़ में, सारी बातें राजनीति को लेकर ही हो रही थीं।
इस इंटरव्यू के बाद रवीश कुमार इसकी एनालिसिस लेकर आए और पहले फ़्रेम से उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि जब आपका पूरा जीवन पत्रकारिता को समर्पित रहा हो, और आपको आपके भक्त सबसे बड़ा पत्रकार मानते हों, आपके सामने पैदा हुए चैनलों और उनके एंकरों को पीएम इंटरव्यू दे दे, लेकिन आपको प्रधानमंत्री के नाम खुली चिट्ठियाँ ही लिखने को मिले तो आदमी को फ़ील होता है। आदमी को फ़ील ही नहीं होता, बहुत डीपली फ़ील होता है। रवीश का चेहरा बता रहा था कि वो किस मानसिक हालत से गुजर रहे हैं। मेरी निजी सहानुभूति उनके साथ हमेशा रहेगी।
धीमी आवाज के साथ रवीश ने बोलना शुरू किया और अक्षय कुमार बनने के चक्कर में खुद ही रवीश कुमार की बेकार पैरोडी बन कर रह गए। रवीश ने ग़ैरराजनीतिक इंटरव्यू का मजाक बनाने की कोशिश की और मजाक कौन बना, वो उनके इंटरव्यू के इस शुरुआती क्लिप को देखकर पता लग जाता है।
इस बात का उपहास करने की कोशिश में रवीश ने यह कहा कि चुनावों के बीच में कोई अपोलिटिकल इंटरव्यू कैसे कर रहा है। रवीश कुमार की समस्या छोटी-सी ही है, और बस उसी के कारण रवीश अपनी फ़ज़ीहत तो कराते ही हैं, बल्कि जो भी सेंसिबल आदमी पहले देखा करता था, अब उनसे दूर भागने लगा है। वह समस्या है रवीश द्वारा खुद को ही पूरी दुनिया समझ लेना, या महाभारत सीरियल वाला ‘मैं समय हूँ’ मान लेना।
रवीश जी, आप समय नहीं हैं। समय से आपका रिश्ता यही है कि आपके मालिक के साथ-साथ आपका भी समय खराब चल रहा है। आपने अगर टाइम्स नाउ, रिपब्लिक, न्यूज 18, एबीपी आदि को देखा होता तो आपको पता होता कि आज कल हर सप्ताह मोदी का एक इंटरव्यू आ रहा है। इन सारे साक्षात्कारों में मोदी से वो तमाम सवाल पूछे गए जो रवीश हर रोज पूछते हैं: नोटबंदी, जीएसटी, बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था, विकास आदि। सब पर मोदी ने लगातार, हर इंटरव्यू में उत्तर दिए हैं।
लेकिन बात तो वही है कि रवीश को इंटरव्यू नहीं दिया, तो वो इंटरव्यू माना ही नहीं जाएगा। रवीश कुमार जो देखते हैं, जिस इंटरव्यू को देखते हैं, वही दिखना चाहिए वरना रवीश कुमार काला कोट पहन कर, काले बैकग्राउंड में मुरझाया हुआ चेहरा लेकर बेकार-से उतार-चढ़ाव के साथ, एक्टिंग करने की फूहड़ कोशिश में नौटंकी करेंगे और आपको देखना पड़ेगा। देखना ही नहीं पड़ेगा, अगर आप रवीश भक्त हैं तो इस छिछलेपन को भी डिफ़ेंड करना पड़ेगा कि ‘अरे देखा रवीश ने एकदम, छील कर रख दिया अक्षय कुमार को!’
रवीश कुमार ने जस्टिफिकेशन दिया कि उनके इस प्राइम टाइम का कारण यह है कि आज कल हर इंटरव्यू का पोस्टमॉर्टम होता है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा होता है। हर इंटरव्यू का तो नहीं ही होता है, वरना रवीश के गुरु रहे राजदीप सरदेसाई ने सोनिया गाँधी के तलवे कैसे चाटे थे, उसकी एनालिसिस रवीश ने शायद काला पर्दा टाँग कर नहीं की।
रवीश अवसाद में तो हैं ही और उसका सबसे बड़ा कारण भी मोदी ही हैं। लेकिन उनकी निजी खुन्नस तो भाजपा के कई नेताओं से है। जैसे कि दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय उन्होंने अरविंद केजरीवाल का भी इंटरव्यू लिया था, जो एक बार मुख्यमंत्री रह चुके थे, और किरण बेदी का भी, जिसमें उनकी निजी नापसंदगी छलक कर बाहर आ गई थी। बेचारे किरण बेदी को आज भी किसी तरह घुमा कर ले आए, साबित कुछ नहीं कर पाए सिवाय इसके कि किरण बेदी के नाम पर भी कॉमिक्स है।
रवीश जी, किरण बेदी जैसी शख्सियत को किताबों में बच्चों को पढ़ाने की ज़रूरत है। आप चाहे जितना मुलेठी वाले छिछोरेपन वाले सवाल ले आइए, किरण बेदी ने अपने क्षेत्र में जो उपलब्धि पाई है, उसके सामने आपकी पूरी पत्रकारिता पानी भरती रह जाएगी। मोदी के इंटरव्यू में किरण बेदी के मज़े लेना बताता है कि कुछ भीतर में कसक रह गई है कहीं।
रवीश बताते हैं कि लोग मिस कर जाते हैं कई बार कुछ सवाल। लेकिन रवीश मिस नहीं करते। रवीश सवालों को तो मिस नहीं करते पर मोदी जी को बहुत मिस करते हैं। रवीश मुहल्ले की गली का वो लौंडा है जो किसी लड़की के नाम से हाथ काट लेता है, और लड़की को पता भी नहीं होता कि उसका नाम क्या है। रवीश के ऐसे प्रोग्रामों को देख कर मैं बस इसी इंतज़ार में हूँ कि वो किस दिन कलाई का नस काट कर कहेंगे कि उन्हें कुछ होगा तो ज़िम्मेदार मोदी ही होगा।
चूँकि रवीश सिर्फ अपने चैनल पर, बस अपना ही शो देखते हैं इसलिए वो ये कह सकते हैं कि दूसरे चैनलों के एंकर मोदी से यही सब पूछते हैं कि कितना सोते हैं वो। इसी को कहते हैं धूर्तता। मोदी ने जिस-जिस को 2019 में इंटरव्यू दिया है, सबको एक घंटे से ज़्यादा का समय दिया है। सबने तमाम पोलिटिकल प्रश्न किए, लगभग हर मुद्दा कवर किया गया, और उन्हीं एक-एक घंटों में इंटरव्यू के मूड को लाइट करते हुए किसी एंकर ने यह भी पूछा कि वो सोते कितना हैं, थकते क्यों नहीं आदि।
ऐसा पूछना न तो गुनाह है, न ही पत्रकारिता के हिसाब से अनैतिक। साठ मिनट में अगर एक मिनट एक इस तरह का प्रश्न भी आए, तो इसमें से रवीश के लिए पूरे इंटरव्यू को परिभाषित करने वाला हिस्सा वही एक प्रश्न हो जाता है। यही कारण है कि रवीश कुमार अपने बेकार से प्राइम टाइम में, जिसे मुझे मजबूरी में देखना पड़ा, यह भी कह देते हैं कि इंटरव्यू बस उन्हीं के आ रहे हैं।
ये किस आधार पर बोला रवीश कुमार ने मुझे नहीं मालूम। उनको इस बात से भी समस्या है कि प्रधानमंत्री का इंटरव्यू कितने बड़े पन्ने में छपता है जैसे कि वो दसवीं में अव्वल आने वाले बच्चे का इंटरव्यू हो। अरे मेरे राजा! वो पीएम है, आपके शेखर कूप्ता जी भी तो पूरे पन्ने में वाक द टॉक कराते थे, वो भी प्रधानमंत्री से कम रुतबे वालों का।
अगर राहुल गाँधी इंटरव्यू दे ही नहीं रहे, जो कि एकदम गलत बात है क्योंकि उनके इंटरव्यू से भाजपा को हमेशा फायदा हुआ है, तो वो दिखेगा कहाँ! राहुल गाँधी रैली में तो राफेल के दाम दस बार, जी हाँ दस बार, अलग-अलग बता चुके हैं, फिर इंटरव्यू में क्या करेंगे सबको पता है। गुजरात की महिलाओं को मजा देने से लेकर अर्णब के साथ वाले इंटरव्यू में क्या हुआ था, वो सबको याद है। इसलिए, न तो वो दे रहे हैं, न उनका कोई इंटरव्यू ले रहा है।
रवीश की निष्पक्षता तब और खुलकर बाहर आ गई जब रवीश ने प्रियंका गाँधी की वो क्लिप दिखाई जिसमें वो कह रही हैं कि मोदी हमेशा विदेश में रहता है, बनारस के गाँव में कभी गया ही नहीं। ये बात प्रियंका गाँधी बोल रही हैं जिसका भाई अमेठी को अपने हाल पर छोड़ने के बाद वायनाड भाग चुका है। मतलब, रवीश कुमार को इस स्तर तक गिरना पड़ रहा है मोदी को घेरने के लिए? क्या रवीश कुमार नहीं जानते कि पीएम विदेश यात्रा पर फोटो खिंचाने नहीं जाता, उसके और औचित्य होते हैं?
बाकी एंकरों का मुझे पता नहीं पर रवीश कुमार की स्थिति बहुत खराब होती जा रही है। उनकी शक्ल और शब्दों के चुनाव से यह स्पष्ट हो चुका है कि रवीश जब ज़बरदस्ती का लिखते हैं तो बहुत ही वाहियात लिखते हैं। ये प्रोग्राम क्या था? क्या रवीश दोबारा अपने इस बेकार बीस मिनट को देख सकते हैं? मुझे तो नहीं लगता।
एक छोटा-सा भ्रम, एक छोटी-सी मानसिक समस्या आपको यह मानने पर मजबूर कर देती है कि जो आप कर रहे हैं, वही आदर्श है, वही होना चाहिए। जो आपके साथ नहीं है, जो आपके मतलब की बातें नहीं कहता, जो आपके द्वारा उठाए फर्जी सवाल नहीं पूछता वो अपने प्रोफ़ेशन के साथ गलत कर रहा है।
रवीश जी, अब बीमार हो चुके हैं। एक दर्शक होने के नाते, एक बिहारी होने के नाते, एक पत्रकार होने के नाते मुझे अब चिंता होने लगी है। चिंता तो हो रही है लेकिन मैं सिवाय लिखने के कुछ कर भी तो नहीं सकता, जैसे कि रवीश जी दूसरों को इंटरव्यू का उपहास करने के अलावा कुछ सकारात्मक नहीं कर पा रहे। कल को रवीश जी सड़क पर आपसे मिलें, तथा आप से पूछ लें कि क्या आप मोदी के कामों से संतुष्ट हैं, और आपका जवाब ‘हाँ’ में हो तो वो आपकी बाँह पर दाँत भी काट लेंगे तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा। अब यही करना बाकी रह गया है।
आज सुबह @atheist_krishna हैंडल से ट्वीट करने वाले कलाकार ने यह नहीं सोचा होगा कि उनका एक छोटा-सा मीम उन्हें इतना मशहूर कर देगा। प्रधानमंत्री मोदी को अक्षय कुमार द्वारा आज दिखाए गए उनके एक मीम ने उन्हें सोशल मीडिया पर आकर्षण का एक केंद्र बना दिया है।
अभिनेता अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी का गैर-राजनीतिक साक्षात्कार लेते हुए उनसे पूछा था कि क्या वह सोशल मीडिया पर आम लोगों की भाँति ही मीम वगैरह देखते हैं। साथ ही अक्षय ने उन्हें उनपर ही बने हुए कुछ मीम भी दिखाए। उन्हीं में से एक फोटोशॉप की मदद से बना मीम कृष्णा का भी था।
मोदी उन सभी मीम्स पर हँसे भी, और बनाने वालों की रचनात्मकता को सराहा भी। कृष्णा का जनवरी का यह मीम उस समय भी बहुत वाइरल हुआ था, और अभी भी उसे पसंद करने वालों ने मोदी-अक्षय का साक्षात्कार देखने के बाद कृष्णा को ट्विटर पर बधाईयाँ देनी शुरू कर दीं।
जल्दी ही अक्षय कुमार ने कृष्णा को व्यक्तिगत तौर पर सम्बोधित करते हुए एक वीडियो सन्देश ट्वीट किया, और उन्हें प्रोत्साहित किया। अक्षय ने बताया कि उनके (अक्षय के) कुछ मित्र कृष्णा की फोटोशॉप सिद्धहस्तता को जानते हैं और उन दोस्तों ने ही अक्षय को कृष्णा के काम के बारे में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि उनके दोस्तों ने उन्हें कृष्णा के लोगों को फोटोशॉप के जरिए हँसाने के प्रयासों के बारे में भी बताया है।
लोग करते रहते हैं कृष्णा से अपनी फोटो फोटोशॉप करने की फरमाइश
कृष्णा से ट्विटर पर अक्सर लोग अपनी फोटो में फोटोशॉप के जरिए कुछ-कुछ बदलाव करने की गुज़ारिश करते रहे हैं, और कृष्णा भी उनकी फरमाइशें पूरी करने की कोशिश करते हैं।
Hi @arhatmehta , wish I could remove the mark in real like I can do it easily using Photoshop. Don’t let the kid feel as if having a mark is bad. Make him so successful that people will talk about him not his mark, like people talk about Hrithik’s dance not his extra finger. pic.twitter.com/kiAETGQgVS
इस आखिरी ट्वीट से हमें कृष्णा की परिपक्वता और विवेक की भी झलक मिलती है।
नेताओं की अक्सर फोटोशॉप बनाते रहते हैं कृष्णा
कृष्णा फोटोशॉप पर लोगों से हमेशा मसखरी करते हैं- खासकर नेताओं को तो वह बिलकुल नहीं बख्शते। यहाँ तक कि मोदी-शाह भी उनके फोटोशॉप के हमले से ‘महफूज’ नहीं रह पाए।
ऑपइंडिया ने कृष्णा से जब बात की तो उन्होंने बताया कि कृष्णा उनका सचमुच का नाम है। हालाँकि वह एक हिन्दू परिवार से आते हैं पर वह व्यक्तिगत तौर पर अनीश्वरवादी हैं। पर वह किसी भी मज़हब या आस्था का मजाक नहीं बनाते। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें अपना मीम प्रधानमंत्री को दिखाए जाने की जानकारी ट्विटर से ही मिली। उन्होंने ऑपइंडिया सीईओ राहुल रोशन का ट्वीट पढ़ा, जिसमें उन्होंने लिखा था:
Did Akshay Kumar just show Photoshop by @Atheist_Krishna to PM Modi?
कृष्णा बताते हैं कि किसी सेलेब्रिटी से यह उनकी पहली ‘मुलाकात’ थी और न ही मोदी और न अक्षय उन्हें ट्विटर पर फॉलो करते हैं। “बल्कि मेरे दोस्त तो अक्सर मेरी तफ़री लेते हुए कहते हैं कि मैं चाहे जो कर लूँ। मोदी जी मुझे फॉलो नहीं करने वाले!”
अपनी फोटोशॉप यात्रा के बारे में विशाखापत्तनम और हैदराबाद में रहने वाले कृष्णा बताते हैं कि उनका फोटोशॉप से पहला सामना 2012 में तब हुआ जब उनके पिता ने उन्हें नया लैपटॉप दिया जिसमें फोटोशॉप पहले से मौजूद था। कृष्णा ने पहले शुरू में लोगों के चेहरे बदलने जैसे छोटे-मोटे प्रयास किए पर असफल रहे। “फिर मैंने यूट्यूब पर एक फोटोशॉप सिखाने वाला के ट्यूटोरियल वीडियो देखा और उसमें बताई गई चीजें करने की कोशिश की। उनमें सफल रहने से मेरी यात्रा शुरू हुई।” वह आगे बताते हैं कि कैसे उन्होंने एक बार ट्विटर पर James Fridman @fjamie013 का मज़ाकिया फोटोशॉप कार्य देखा, और उनके मन में इसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में करने का ख्याल आया।
वह यह भी बताते हैं कि उन्हें बहुत सारे लोगों के फोटोशॉप करने के निवेदन आते रहते हैं पर वह सबकी इच्छाएँ या निवेदन पूरे नहीं कर पाते क्योंकि वह प्रोफेशनल स्तर के कलाकार नहीं हैं। उन्हें कॉर्पोरेट से भी उनके लोगो बनाने के प्रस्ताव आते हैं पर वह उन सभी को मना कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वह इन कार्यों से न्याय नहीं कर पाएँगे।
इतने लोगों का स्नेह पाने के साथ-साथ कृष्णा को ट्विटर पर कुछ लोगों की घृणा का भी शिकार होना पड़ा है। अपने ऑफिस के लेटरहेड से निजी पत्र भेजने के आरोप में खुद निलंबित चल रहे अधिकारी आशीष जोशी ने हाल ही में उनके एक ऐसे मीम पर बतंगड़ बनाना शुरू कर दिया जो साफ़ तौर पर व्यंग्य था। कृष्णा ने बालाकोट की एयर स्ट्राइक के बाद विपक्ष में लगी सबूत माँगने की होड़ पर तंज कसता हुआ एक मीम बनाया था:
अपने होशोहवास में बैठे किसी भी इन्सान को पहली नजर में ही समझ में आ जाएगा कि यह एक व्यंगात्मक फोटोशोप मीम है, कोई भ्रामक फेक न्यूज़ नहीं। पर आशीष जोशी ने पता नहीं किस मानसिक हालत में कृष्णा को पुलिस की धमकी देनी शुरू कर दी।
Dear Shikha @AddlCPCrimesHyd , I am reporting handle whose owner is located in Hyderabad
The handle @Atheist_Krishna has 2.52 lakh followers,hence the impact it can create on rumourmongering /false news.
इन विवादों के बारे में कृष्णा कहते हैं कि दक्षिणपंथी ही नहीं, कई वामपंथी भी उनके ह्यूमर का लुत्फ़ उठाते रहते हैं और जानते हैं कि वो यह सब मजे-मजे में करते हैं, दुर्भावना से नहीं। किसी को उनका काम नहीं भी पसंद आता तो अमूमन उन्हें बुरा-भला कहकर आगे बढ़ जाता है। इससे पहले कभी पुलिस की धमकी किसी ने नहीं दी।
ऑपइंडिया आशीष जोशी को जरा ठन्डे दिमाग से काम लेने की सलाह देता है। उन्हें अपने निलंबन का समय किसी उपयोगी कार्य में व्यतीत करना चाहिए।
रही बात कृष्णा की तो हम उन्हें मिल रहे सेलेब्रिटी स्टेटस को भरपूर एन्जॉय करने के लिए और उज्जवल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करते हैं।