Sunday, September 29, 2024
Home Blog Page 5278

प्राइम टाइम एनालिसिस: रवीश कुमार कल को सड़क पर आपको दाँत काट लें, तो आश्चर्य मत कीजिएगा

रवीश कुमार पत्रकारिता के स्वघोषित मानदंड, स्तम्भ और एकमात्र सर्टिफाइंग अथॉरिटी हैं, ऐसा तो हम सब जानते ही हैं। वो अपने प्राइम टाइम के ज़रिए कभी-कभी सही मुद्दों पर बात करने के अलावा माइम आर्टिस्टों से लेकर आपातकाल तक बुला चुके हैं। उनके प्राइम टाइम पर उनको बहुत गर्व है, जो कि कालांतर में अवसादजनित घमंड में बदल चुका है। उन्हें ऐसा महसूस होता है, जिसे वो अभिव्यक्त करने में पीछे नहीं रहते, कि वो जिस चीज को मुद्दा मानेंगे वही मुद्दा है, वो जिस बात को सही सवाल मानेंगे वही सही सवाल होगा, वो जिस इंटरव्यू को सही ठहराएँगे वही सही साक्षात्कार कहा जाएगा।

जैसा कि रवीश के अलावा सबको पता है कि आज कल प्रधानमंत्री मोदी कई चैनलों को इंटरव्यू दे रहे हैं, ये बात और है कि इसमें रवीश के चैनल का नंबर नहीं आया है। ये प्रधानमंत्री कम और प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी का इंटरव्यू ज़्यादा है, ये सर्वविदित है। ये मोदी की चुनावी कैम्पेनिंग का एक हिस्सा है, जिसके ज़रिए वो तय सवालों के जवाब देते हुए अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर बात करते दिखते हैं। रवीश को वो सब नहीं दिखता। इस पर चर्चा आगे करेंगे।

हाल ही में मोदी जी ने अक्षय कुमार को एक ग़ैरराजनीतिक इंटरव्यू दिया जिसमें उनके निजी जीवन से जुड़ी बातों पर सवालात थे जैसे कि वो क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कहाँ जाते हैं, क्या पसंद है, किससे कैसी बातचीत है आदि। इंटरव्यू की शैली बहुत लाइट थी, और ये सभी को पता था। इसे ग़ैरराजनीतिक कहने का उद्देश्य यह भी था कि पीएम की रैलियों से लेकर हाल के सारे इंटरव्यूज़ में, सारी बातें राजनीति को लेकर ही हो रही थीं।

इस इंटरव्यू के बाद रवीश कुमार इसकी एनालिसिस लेकर आए और पहले फ़्रेम से उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि जब आपका पूरा जीवन पत्रकारिता को समर्पित रहा हो, और आपको आपके भक्त सबसे बड़ा पत्रकार मानते हों, आपके सामने पैदा हुए चैनलों और उनके एंकरों को पीएम इंटरव्यू दे दे, लेकिन आपको प्रधानमंत्री के नाम खुली चिट्ठियाँ ही लिखने को मिले तो आदमी को फ़ील होता है। आदमी को फ़ील ही नहीं होता, बहुत डीपली फ़ील होता है। रवीश का चेहरा बता रहा था कि वो किस मानसिक हालत से गुजर रहे हैं। मेरी निजी सहानुभूति उनके साथ हमेशा रहेगी।

धीमी आवाज के साथ रवीश ने बोलना शुरू किया और अक्षय कुमार बनने के चक्कर में खुद ही रवीश कुमार की बेकार पैरोडी बन कर रह गए। रवीश ने ग़ैरराजनीतिक इंटरव्यू का मजाक बनाने की कोशिश की और मजाक कौन बना, वो उनके इंटरव्यू के इस शुरुआती क्लिप को देखकर पता लग जाता है।

साभार: NDTV

इस बात का उपहास करने की कोशिश में रवीश ने यह कहा कि चुनावों के बीच में कोई अपोलिटिकल इंटरव्यू कैसे कर रहा है। रवीश कुमार की समस्या छोटी-सी ही है, और बस उसी के कारण रवीश अपनी फ़ज़ीहत तो कराते ही हैं, बल्कि जो भी सेंसिबल आदमी पहले देखा करता था, अब उनसे दूर भागने लगा है। वह समस्या है रवीश द्वारा खुद को ही पूरी दुनिया समझ लेना, या महाभारत सीरियल वाला ‘मैं समय हूँ’ मान लेना।

रवीश जी, आप समय नहीं हैं। समय से आपका रिश्ता यही है कि आपके मालिक के साथ-साथ आपका भी समय खराब चल रहा है। आपने अगर टाइम्स नाउ, रिपब्लिक, न्यूज 18, एबीपी आदि को देखा होता तो आपको पता होता कि आज कल हर सप्ताह मोदी का एक इंटरव्यू आ रहा है। इन सारे साक्षात्कारों में मोदी से वो तमाम सवाल पूछे गए जो रवीश हर रोज पूछते हैं: नोटबंदी, जीएसटी, बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था, विकास आदि। सब पर मोदी ने लगातार, हर इंटरव्यू में उत्तर दिए हैं।

लेकिन बात तो वही है कि रवीश को इंटरव्यू नहीं दिया, तो वो इंटरव्यू माना ही नहीं जाएगा। रवीश कुमार जो देखते हैं, जिस इंटरव्यू को देखते हैं, वही दिखना चाहिए वरना रवीश कुमार काला कोट पहन कर, काले बैकग्राउंड में मुरझाया हुआ चेहरा लेकर बेकार-से उतार-चढ़ाव के साथ, एक्टिंग करने की फूहड़ कोशिश में नौटंकी करेंगे और आपको देखना पड़ेगा। देखना ही नहीं पड़ेगा, अगर आप रवीश भक्त हैं तो इस छिछलेपन को भी डिफ़ेंड करना पड़ेगा कि ‘अरे देखा रवीश ने एकदम, छील कर रख दिया अक्षय कुमार को!’

रवीश कुमार ने जस्टिफिकेशन दिया कि उनके इस प्राइम टाइम का कारण यह है कि आज कल हर इंटरव्यू का पोस्टमॉर्टम होता है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा होता है। हर इंटरव्यू का तो नहीं ही होता है, वरना रवीश के गुरु रहे राजदीप सरदेसाई ने सोनिया गाँधी के तलवे कैसे चाटे थे, उसकी एनालिसिस रवीश ने शायद काला पर्दा टाँग कर नहीं की।

रवीश अवसाद में तो हैं ही और उसका सबसे बड़ा कारण भी मोदी ही हैं। लेकिन उनकी निजी खुन्नस तो भाजपा के कई नेताओं से है। जैसे कि दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय उन्होंने अरविंद केजरीवाल का भी इंटरव्यू लिया था, जो एक बार मुख्यमंत्री रह चुके थे, और किरण बेदी का भी, जिसमें उनकी निजी नापसंदगी छलक कर बाहर आ गई थी। बेचारे किरण बेदी को आज भी किसी तरह घुमा कर ले आए, साबित कुछ नहीं कर पाए सिवाय इसके कि किरण बेदी के नाम पर भी कॉमिक्स है।

रवीश जी, किरण बेदी जैसी शख्सियत को किताबों में बच्चों को पढ़ाने की ज़रूरत है। आप चाहे जितना मुलेठी वाले छिछोरेपन वाले सवाल ले आइए, किरण बेदी ने अपने क्षेत्र में जो उपलब्धि पाई है, उसके सामने आपकी पूरी पत्रकारिता पानी भरती रह जाएगी। मोदी के इंटरव्यू में किरण बेदी के मज़े लेना बताता है कि कुछ भीतर में कसक रह गई है कहीं।

रवीश बताते हैं कि लोग मिस कर जाते हैं कई बार कुछ सवाल। लेकिन रवीश मिस नहीं करते। रवीश सवालों को तो मिस नहीं करते पर मोदी जी को बहुत मिस करते हैं। रवीश मुहल्ले की गली का वो लौंडा है जो किसी लड़की के नाम से हाथ काट लेता है, और लड़की को पता भी नहीं होता कि उसका नाम क्या है। रवीश के ऐसे प्रोग्रामों को देख कर मैं बस इसी इंतज़ार में हूँ कि वो किस दिन कलाई का नस काट कर कहेंगे कि उन्हें कुछ होगा तो ज़िम्मेदार मोदी ही होगा।

चूँकि रवीश सिर्फ अपने चैनल पर, बस अपना ही शो देखते हैं इसलिए वो ये कह सकते हैं कि दूसरे चैनलों के एंकर मोदी से यही सब पूछते हैं कि कितना सोते हैं वो। इसी को कहते हैं धूर्तता। मोदी ने जिस-जिस को 2019 में इंटरव्यू दिया है, सबको एक घंटे से ज़्यादा का समय दिया है। सबने तमाम पोलिटिकल प्रश्न किए, लगभग हर मुद्दा कवर किया गया, और उन्हीं एक-एक घंटों में इंटरव्यू के मूड को लाइट करते हुए किसी एंकर ने यह भी पूछा कि वो सोते कितना हैं, थकते क्यों नहीं आदि।

ऐसा पूछना न तो गुनाह है, न ही पत्रकारिता के हिसाब से अनैतिक। साठ मिनट में अगर एक मिनट एक इस तरह का प्रश्न भी आए, तो इसमें से रवीश के लिए पूरे इंटरव्यू को परिभाषित करने वाला हिस्सा वही एक प्रश्न हो जाता है। यही कारण है कि रवीश कुमार अपने बेकार से प्राइम टाइम में, जिसे मुझे मजबूरी में देखना पड़ा, यह भी कह देते हैं कि इंटरव्यू बस उन्हीं के आ रहे हैं।

ये किस आधार पर बोला रवीश कुमार ने मुझे नहीं मालूम। उनको इस बात से भी समस्या है कि प्रधानमंत्री का इंटरव्यू कितने बड़े पन्ने में छपता है जैसे कि वो दसवीं में अव्वल आने वाले बच्चे का इंटरव्यू हो। अरे मेरे राजा! वो पीएम है, आपके शेखर कूप्ता जी भी तो पूरे पन्ने में वाक द टॉक कराते थे, वो भी प्रधानमंत्री से कम रुतबे वालों का।

अगर राहुल गाँधी इंटरव्यू दे ही नहीं रहे, जो कि एकदम गलत बात है क्योंकि उनके इंटरव्यू से भाजपा को हमेशा फायदा हुआ है, तो वो दिखेगा कहाँ! राहुल गाँधी रैली में तो राफेल के दाम दस बार, जी हाँ दस बार, अलग-अलग बता चुके हैं, फिर इंटरव्यू में क्या करेंगे सबको पता है। गुजरात की महिलाओं को मजा देने से लेकर अर्णब के साथ वाले इंटरव्यू में क्या हुआ था, वो सबको याद है। इसलिए, न तो वो दे रहे हैं, न उनका कोई इंटरव्यू ले रहा है।

रवीश की निष्पक्षता तब और खुलकर बाहर आ गई जब रवीश ने प्रियंका गाँधी की वो क्लिप दिखाई जिसमें वो कह रही हैं कि मोदी हमेशा विदेश में रहता है, बनारस के गाँव में कभी गया ही नहीं। ये बात प्रियंका गाँधी बोल रही हैं जिसका भाई अमेठी को अपने हाल पर छोड़ने के बाद वायनाड भाग चुका है। मतलब, रवीश कुमार को इस स्तर तक गिरना पड़ रहा है मोदी को घेरने के लिए? क्या रवीश कुमार नहीं जानते कि पीएम विदेश यात्रा पर फोटो खिंचाने नहीं जाता, उसके और औचित्य होते हैं?

बाकी एंकरों का मुझे पता नहीं पर रवीश कुमार की स्थिति बहुत खराब होती जा रही है। उनकी शक्ल और शब्दों के चुनाव से यह स्पष्ट हो चुका है कि रवीश जब ज़बरदस्ती का लिखते हैं तो बहुत ही वाहियात लिखते हैं। ये प्रोग्राम क्या था? क्या रवीश दोबारा अपने इस बेकार बीस मिनट को देख सकते हैं? मुझे तो नहीं लगता।

एक छोटा-सा भ्रम, एक छोटी-सी मानसिक समस्या आपको यह मानने पर मजबूर कर देती है कि जो आप कर रहे हैं, वही आदर्श है, वही होना चाहिए। जो आपके साथ नहीं है, जो आपके मतलब की बातें नहीं कहता, जो आपके द्वारा उठाए फर्जी सवाल नहीं पूछता वो अपने प्रोफ़ेशन के साथ गलत कर रहा है।

रवीश जी, अब बीमार हो चुके हैं। एक दर्शक होने के नाते, एक बिहारी होने के नाते, एक पत्रकार होने के नाते मुझे अब चिंता होने लगी है। चिंता तो हो रही है लेकिन मैं सिवाय लिखने के कुछ कर भी तो नहीं सकता, जैसे कि रवीश जी दूसरों को इंटरव्यू का उपहास करने के अलावा कुछ सकारात्मक नहीं कर पा रहे। कल को रवीश जी सड़क पर आपसे मिलें, तथा आप से पूछ लें कि क्या आप मोदी के कामों से संतुष्ट हैं, और आपका जवाब ‘हाँ’ में हो तो वो आपकी बाँह पर दाँत भी काट लेंगे तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा। अब यही करना बाकी रह गया है।

मिलिए मोदी-अक्षय से तारीफ़ पाने वाले फोटोशॉप आर्टिस्ट कृष्णा से जिनकी कलाकारी आपका मन मोह लेगी

आज सुबह @atheist_krishna हैंडल से ट्वीट करने वाले कलाकार ने यह नहीं सोचा होगा कि उनका एक छोटा-सा मीम उन्हें इतना मशहूर कर देगा। प्रधानमंत्री मोदी को अक्षय कुमार द्वारा आज दिखाए गए उनके एक मीम ने उन्हें सोशल मीडिया पर आकर्षण का एक केंद्र बना दिया है।

अभिनेता अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी का गैर-राजनीतिक साक्षात्कार लेते हुए उनसे पूछा था कि क्या वह सोशल मीडिया पर आम लोगों की भाँति ही मीम वगैरह देखते हैं। साथ ही अक्षय ने उन्हें उनपर ही बने हुए कुछ मीम भी दिखाए। उन्हीं में से एक फोटोशॉप की मदद से बना मीम कृष्णा का भी था।

बधाईयों का लगा ताँता

मोदी उन सभी मीम्स पर हँसे भी, और बनाने वालों की रचनात्मकता को सराहा भी। कृष्णा का जनवरी का यह मीम उस समय भी बहुत वाइरल हुआ था, और अभी भी उसे पसंद करने वालों ने मोदी-अक्षय का साक्षात्कार देखने के बाद कृष्णा को ट्विटर पर बधाईयाँ देनी शुरू कर दीं।

कृष्णा ने भी अपनी रचनात्मकता प्रधानमंत्री तक पहुँचाने के लिए अक्षय कुमार को धन्यवाद दिया।

जल्दी ही अक्षय कुमार ने कृष्णा को व्यक्तिगत तौर पर सम्बोधित करते हुए एक वीडियो सन्देश ट्वीट किया, और उन्हें प्रोत्साहित किया। अक्षय ने बताया कि उनके (अक्षय के) कुछ मित्र कृष्णा की फोटोशॉप सिद्धहस्तता को जानते हैं और उन दोस्तों ने ही अक्षय को कृष्णा के काम के बारे में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि उनके दोस्तों ने उन्हें कृष्णा के लोगों को फोटोशॉप के जरिए हँसाने के प्रयासों के बारे में भी बताया है।

लोग करते रहते हैं कृष्णा से अपनी फोटो फोटोशॉप करने की फरमाइश

कृष्णा से ट्विटर पर अक्सर लोग अपनी फोटो में फोटोशॉप के जरिए कुछ-कुछ बदलाव करने की गुज़ारिश करते रहे हैं, और कृष्णा भी उनकी फरमाइशें पूरी करने की कोशिश करते हैं।

इस आखिरी ट्वीट से हमें कृष्णा की परिपक्वता और विवेक की भी झलक मिलती है।

नेताओं की अक्सर फोटोशॉप बनाते रहते हैं कृष्णा

कृष्णा फोटोशॉप पर लोगों से हमेशा मसखरी करते हैं- खासकर नेताओं को तो वह बिलकुल नहीं बख्शते। यहाँ तक कि मोदी-शाह भी उनके फोटोशॉप के हमले से ‘महफूज’ नहीं रह पाए।

बाकी नेताओं के भी कृष्णा अक्सर मजे लेते रहते हैं।

ऑपइंडिया से की बात

ऑपइंडिया ने कृष्णा से जब बात की तो उन्होंने बताया कि कृष्णा उनका सचमुच का नाम है। हालाँकि वह एक हिन्दू परिवार से आते हैं पर वह व्यक्तिगत तौर पर अनीश्वरवादी हैं। पर वह किसी भी मज़हब या आस्था का मजाक नहीं बनाते। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें अपना मीम प्रधानमंत्री को दिखाए जाने की जानकारी ट्विटर से ही मिली। उन्होंने ऑपइंडिया सीईओ राहुल रोशन का ट्वीट पढ़ा, जिसमें उन्होंने लिखा था:

कृष्णा बताते हैं कि किसी सेलेब्रिटी से यह उनकी पहली ‘मुलाकात’ थी और न ही मोदी और न अक्षय उन्हें ट्विटर पर फॉलो करते हैं। “बल्कि मेरे दोस्त तो अक्सर मेरी तफ़री लेते हुए कहते हैं कि मैं चाहे जो कर लूँ। मोदी जी मुझे फॉलो नहीं करने वाले!”


जब ऑपइंडिया ने कृष्णा से निवेदन किया कि वे हमारे इस लेख के लिए कुछ विशिष्ट करें तो उन्होंने यह किया

अपनी फोटोशॉप यात्रा के बारे में विशाखापत्तनम और हैदराबाद में रहने वाले कृष्णा बताते हैं कि उनका फोटोशॉप से पहला सामना 2012 में तब हुआ जब उनके पिता ने उन्हें नया लैपटॉप दिया जिसमें फोटोशॉप पहले से मौजूद था। कृष्णा ने पहले शुरू में लोगों के चेहरे बदलने जैसे छोटे-मोटे प्रयास किए पर असफल रहे। “फिर मैंने यूट्यूब पर एक फोटोशॉप सिखाने वाला के ट्यूटोरियल वीडियो देखा और उसमें बताई गई चीजें करने की कोशिश की। उनमें सफल रहने से मेरी यात्रा शुरू हुई।” वह आगे बताते हैं कि कैसे उन्होंने एक बार ट्विटर पर James Fridman @fjamie013 का मज़ाकिया फोटोशॉप कार्य देखा, और उनके मन में इसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में करने का ख्याल आया।

वह यह भी बताते हैं कि उन्हें बहुत सारे लोगों के फोटोशॉप करने के निवेदन आते रहते हैं पर वह सबकी इच्छाएँ या निवेदन पूरे नहीं कर पाते क्योंकि वह प्रोफेशनल स्तर के कलाकार नहीं हैं। उन्हें कॉर्पोरेट से भी उनके लोगो बनाने के प्रस्ताव आते हैं पर वह उन सभी को मना कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वह इन कार्यों से न्याय नहीं कर पाएँगे।

इतने लोगों का स्नेह पाने के साथ-साथ कृष्णा को ट्विटर पर कुछ लोगों की घृणा का भी शिकार होना पड़ा है। अपने ऑफिस के लेटरहेड से निजी पत्र भेजने के आरोप में खुद निलंबित चल रहे अधिकारी आशीष जोशी ने हाल ही में उनके एक ऐसे मीम पर बतंगड़ बनाना शुरू कर दिया जो साफ़ तौर पर व्यंग्य था। कृष्णा ने बालाकोट की एयर स्ट्राइक के बाद विपक्ष में लगी सबूत माँगने की होड़ पर तंज कसता हुआ एक मीम बनाया था:

अपने होशोहवास में बैठे किसी भी इन्सान को पहली नजर में ही समझ में आ जाएगा कि यह एक व्यंगात्मक फोटोशोप मीम है, कोई भ्रामक फेक न्यूज़ नहीं। पर आशीष जोशी ने पता नहीं किस मानसिक हालत में कृष्णा को पुलिस की धमकी देनी शुरू कर दी।

अक्षय कुमार द्वारा कृष्णा को बधाई देने पर भी आशीष जोशी ने अपना अलग ही प्रलाप करते हुए कृष्णा को आतंकवादी कहना शुरू कर दिया।

इन विवादों के बारे में कृष्णा कहते हैं कि दक्षिणपंथी ही नहीं, कई वामपंथी भी उनके ह्यूमर का लुत्फ़ उठाते रहते हैं और जानते हैं कि वो यह सब मजे-मजे में करते हैं, दुर्भावना से नहीं। किसी को उनका काम नहीं भी पसंद आता तो अमूमन उन्हें बुरा-भला कहकर आगे बढ़ जाता है। इससे पहले कभी पुलिस की धमकी किसी ने नहीं दी।

ऑपइंडिया आशीष जोशी को जरा ठन्डे दिमाग से काम लेने की सलाह देता है। उन्हें अपने निलंबन का समय किसी उपयोगी कार्य में व्यतीत करना चाहिए।

रही बात कृष्णा की तो हम उन्हें मिल रहे सेलेब्रिटी स्टेटस को भरपूर एन्जॉय करने के लिए और उज्जवल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करते हैं।

कॉन्ग्रेस नेता अजय सिंह ने BJP सांसद रीति पाठक को कहा ‘माल’

राजनेताओं द्वारा महिलाओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणी इस चुनावी मौसम में एक आदर्श बन गई है। समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान द्वारा भाजपा नेता जया प्रदा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के बाद, अब एक कॉन्ग्रेस नेता अजय सिंह ने भाजपा नेता रीति पाठक के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है।

अजय सिंह का एक वीडियो मध्य प्रदेश में सीधी लोकसभा क्षेत्र में लोगों को संबोधित कर रहे थे। इसी चुनावी सभा में उन्होंने कहा है कि रीति पाठक पिछली बार चुनाव जीतीं थी क्योंकि लोग मोदी के 15 लाख रुपये के वादे के लिए वोट दिए थे। अजय सिंह के शब्दों में कहें तो “पाठक जी पिछले चुनाव में आई रहीं। उनका भारतीय जनता पार्टी से टिकट मीला। हवा बहुत रही मोदी मोदी, सभी 15 लाख के चक्कर में पड़ गए। बन गईं सांसद।”

सिंह ने कहा कि संसद सदस्य बनने के बाद पाठक न तो अपने निर्वाचन क्षेत्र में लौटीं और न ही उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए कोई योगदान दिया। पाठक पर निशाना साधते हुए अजय सिंह ने आगे कहा कि लोगों ने उसकी परीक्षा ली है कि वह एक अच्छी ‘माल’ नहीं है। “भइया उनका तो आजमाए चुके, वो ठीक ‘माल’ नहीं बा” यह हैं कॉन्ग्रेसी सांसद अजय सिंह के शब्द।

ऐसे राजनेताओं के लिए महिलाएँ आज भी ‘माल’ हैं। ऐसी गिरी मानसिकता पर जनता ने तो अपना आक्रोश व्यक्त किया ही। अब देखना है आगे चुनाव आयोग इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेता है। वैसे लोगों ने चुनाव आयोग से इस बात का संज्ञान लेने की अपील की है।

कॉन्ग्रेस की स्टार प्रचारक ने की BJP के गुजरात मॉडल की तारीफ़

कॉन्ग्रेस की स्टार प्रचारक अमीषा पटेल का एक ऐसा चुनावी वीडियो सोशल मीडिया पर घूम रहा है जिसे देख कॉन्ग्रेस शायद बिलकुल भी खुश न हो। इस वीडियो में अमीषा आईं तो कॉन्ग्रेस प्रत्याशी के प्रचार के लिए थीं पर तारीफ़ गुजरात मॉडल की कर बैठीं। गुजरात मॉडल को भाजपा अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताती है। और सबसे मजे की बात यह है कि अमीषा की यह पहली गलती भी नहीं है। 5 साल पहले, कॉन्ग्रेस के समर्थन में प्रचार करते हुए वह यह गलती कर चुकीं हैं!

वडोदरा में प्रशांत पटेल के पक्ष में आईं थीं अमीषा

अमीषा गत रविवार (21 अप्रैल) को गुजरात कॉन्ग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी प्रशांत पटेल के पक्ष में प्रचार करने पहुँचीं थीं। इसी दौरान मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “गुजरात इंडिया का एक बहुत ही जरूरी राज्य है। जिस तरह की प्रगति और उन्नति गुजरात में हुई है, वह पूरे देश के लिए एक उदाहरण है। ऐसे में अगर हर राज्य ऐसा हो तो भारत जानें कहाँ पहुँच जाए।” उनका यह बयान ट्विटर पर शेयर होने के साथ-साथ एबीपी समूह के चैनल एबीपी अस्मिता पर भी प्रसारित हुआ है।  

बता दें कि गुजरात मॉडल भाजपा की अपनी उपलब्धि है और पिछले 23 सालों से ज्यादा समय से वहाँ भाजपा की राज्य सरकार है। प्रधानमंत्री मोदी भी पहले गुजरात के ही मुख्यमंत्री थे और माना जाता है कि गुजरात के विकास मॉडल को देश में दोहराने के वादे पर ही वह लोकसभा का पिछला चुनाव जीते थे। वहीं दूसरी ओर कॉन्ग्रेस यह दावा करती रही है कि गुजरात में भाजपा शासन में कोई विकास नहीं हुआ है। ऐसे में अमीषा पटेल का यह बयान कॉन्ग्रेस को असहज स्थिति में पहुँचाने वाला है।

5 साल पहले भी यही गड़बड़  

अमीषा ठीक यही चीज़ 5 साल पहले भी कर चुकीं हैं। 5 साल पहले भी वह कॉन्ग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में रोड शो करते हुए गुजरात में विकास की तारीफ़ करने लगीं थीं। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि कॉन्ग्रेस के अनुसार तो मोदी-राज में गुजरात का विकास हुआ ही नहीं है तो उन्होंने बात सँभालते हुए कहा कि अगर कॉन्ग्रेस आती है तो ‘और भी विकास’ होगा। उस समय इंडिया टीवी ने यह खबर प्रसारित की थी।

जब जाकिर वोट कर सकता है तो आप क्यों नहीं?

लोकसभा चुनाव प्रगति पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार जनता में मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए खूब प्रयास किए हैं। शायद इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि जाकिर जैसे उदाहरण हमें देखने को मिले हैं। लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हर बार कुछ ऐसे लोग सामने आते हैं, जो ना सिर्फ हमें प्रेरणा देते हैं बल्कि उन पर हमें गर्व भी होता है।

इस बार के चुनाव में भी ऐसे कुछ लोगों ने मतदान में हिस्सा लेकर हमें लोकतंत्र में वोट के महत्व को बखूबी समझाया है। ऐसे ही एक वोटर तेलंगाना के आदिलाबाद निर्वाचन क्षेत्र में दिखे। दोनों हाथ ना होने के बावजूद 25 वर्ष के जाकिर पाशा पैर से मतदान करते हुए नजर आए।

तेलंगाना में, जहाँ कि चुनावों में वोटरों की उदासीनता अक्सर देखने को मिलती है, 25 साल के जाकिर की एक तस्वीर सामने रखी है। मतदान स्थल पर पहुँचे जाकिर पाशा को जिसने भी पैर से मतदान करते देखा, उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता। इस फोटो के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर जाकिर लोगों के हीरो बन गए। सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके जोश को सलाम करते हुए उनकी जमकर तारीफ की है।

पाशा जब मतदान स्थल पर पहुँचे तो वहाँ मतदानकर्मी भी उन्हें देखकर हैरान रह गए। पाशा ने बिना किसी की मदद लिए दाहिने पैर से पेन पकड़कर सभी औपचारिकताएँ (हस्ताक्षर आदि) पूरी की। इसके बाद बाएँ पैर के अंगूठे पर चुनाव निशान लगवाकर उसी के सहारे EVM से वोट भी डाला।

चुनाव नहीं जिताने वाले मंत्रियों की होगी कैबिनेट से छुट्टी: अमिरंदर सिंह ने दी चेतावनी

लोकसभा चुनाव में सभी दल अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमिरंदर सिंह ने अपनी सरकार के मंत्रियों से कहा है कि वह अपने-अपने इलाके में पार्टी के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करें। कैप्टन ने इस बाबत सभी मंत्रियों को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जिन मंत्रियों के क्षेत्र में पार्टी को जीत हासिल नहीं होगी, उन मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी कर दी जाएगी। अमरिंदर सिंह के इस बयान से पंजाब में सियासी हचलच तेज हो गई है।

कैप्टन की इस घोषणा में उनके हार का डर साफ-साफ झलक रहा है। उन्हें लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के जीत पर संदेह है और शायद वो चुनाव के परिणाम को लेकर भी थोड़े से डरे हुए लग रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, तो पार्टी के भीतर उनका कद और रुतबा घटने वाली बात हो जाएगी। वैसे बीते लोकसभा चुनावों के दौरान भी राज्य में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। शायद इसीलिए उन्होंने मंत्रियों के लिए इस तरह की चेतावनी जारी की है।

कैप्टन का कहना है कि ये निर्देश उन्हें पार्टी हाईकमान की तरफ से ही मिले हैं। कैप्टन सिंह ने अपने लिखित बयान में अपने मंत्रियों, नेताओं और विधायकों से कहा है कि वह पार्टी को अपने-अपने इलाके में जितवाएँ और अगर ऐसा नहीं होता है, तो उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है। इसके साथ ही विधायकों से यह भी कहा गया है कि जिस विधायक के क्षेत्र में वोट कम होंगे, उनको अगले विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा।

इतना ही नहीं, पंजाब सरकार में चैयरमैन पद भी लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर मिलेगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि पार्टी ने साफ किया है कि पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों को जीतने के मिशन के प्रति किसी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बता दें कि पंजाब में लोकसभा चुनाव के लिए आखिरी यानी सातवें चरण में 19 मई को मतदान होने वाला है।

इंटरनेट ट्रोल ध्रुव राठी ने साध्वी प्रज्ञा के बहाने पर्रिकर का उड़ाया मजाक, वामपंथी लम्पटों ने दिया साथ

कहते हैं घृणा इंसान के विवेक का नाश कर देती है। आज राजनीति इस मोड़ पर आ चुकी है कि अब देश के विकास पर बात न होकर तमाम फर्जी मुद्दों से वोटर का ध्यान भटकाने की, उसे झूठे आरोपों और झूठी खबरों से बरगलाने की कोशिश की जा रही है। इसमें कोई एक नहीं तमाम तथाकथित लिबरल कॉन्ग्रेसी, वामपंथी से लेकर तमाम प्रोपेगेंडा मठाधीश शामिल हैं।

आज एक तरफ अनर्गल राजनीतिक बयानबाजी ने जोर पकड़ा है तो वहीं दूसरी तरफ मोदी की राजनीतिक सफलता से कुढ़न महसूस करते-करते, नफ़रत और घृणा की आग में जलते ये वामपंथी प्रोपेगेंडा पक्षकार संवैधानिक सस्थाओं का मजाक बनाते-बनाते, हदें पार करते हुए अपने कुत्सित प्रयासों में दिवंगत मनोहर पर्रीकर को भी घसीट लाए।

प्रधान मंत्री मोदी के लिए उनकी नफ़रत में, ध्रुव राठी ने गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री, जो कैंसर से पीड़ित थे और एक लंबी बीमारी के बाद जिनका पिछले महीने निधन हो गया, पर कटाक्ष करते हुए, ध्रुव राठी ने कहा कि ‘चौकीदारों’ को अब एक बहाना ढूँढना होगा कि क्यों ‘पर्रिकरजी कैंसर के इलाज के लिए गोबर वाला नुस्खा नहीं आज़मा सके।’

दरअसल राठी भाजपा और उसके समर्थकों को साध्वी प्रज्ञा को चुनने के लिए भड़काने की कोशिश कर रहा था जबकि एनआईए के क्लीन चिट देने के बाद, 8 साल की हिरासत के बाद जमानत दी गई है। राठी ने फिर से हिंदुओं का मज़ाक उड़ाते हुए अपनी हिंदू घृणा को प्रदर्शित किया कि ‘चौकीदारों’ को जस्टिफाई करना है कि ‘गोबर’ (गाय का गोबर) कैंसर का इलाज कर सकता है। साध्वी प्रज्ञा ने गायों और गोमूत्र के लाभों का उल्लेख किया था कि कैसे गोमूत्र में ऐसे रसायन होते हैं जो कैंसर का इलाज कर सकते हैं। जबकि गोमूत्र कैंसर का इलाज कर सकता है या नहीं? यह बहस का विषय हो सकता है, हालाँकि डॉक्टरों ने सहमति व्यक्त की है कि इसका औषधीय महत्व है।

हिंदुओं का मज़ाक उड़ाने के लिए राठी ने साध्वी प्रज्ञा के स्टेटमेंट को ट्विस्ट कर लिखा कि साध्वी प्रज्ञा ने अपने कैंसर को ठीक करने के लिए गाय के गोबर का सेवन किया। इतना ही नहीं इसके बाद उसने गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का मजाक उड़ाया और कहा कि उन्होंने अपने कैंसर को ठीक करने के लिए ‘गोबर’ का इस्तेमाल क्यों नहीं किया।

प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाला यह पूरा तंत्र कितना मजबूत है इसे जानने के लिए यह जानना आवश्यक है उसके ट्वीट को लगभग 5,500 बार रीट्वीट किया गया और लगभग 19,000 लोगों ने ‘लाइक’ किया। यह ऐसे लोगों का जमावड़ा भी दिखाता है कि मोदी से नफरत में वे अपनी बुनियादी मानवीय शालीनता को भी खत्म करने के लिए तैयार हैं और कैंसर से मरने वाले व्यक्ति का जान बूझकर मजाक उड़ाते हुए ट्विटर पर कई लोगों ने भद्दे और अप्रिय कमेंट किया।

ट्विटर उपयोगकर्ताओं, विशेषकर जिन्होंने घातक बीमारी में अपने निकट और प्रियजनों को खो दिया है, ने इस अप्रिय ट्वीट के लिए अपनी नाराजगी भी व्यक्त की।

राठी की भाषा शैली में, पुलवामा आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादी अहमद डार द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा जैसी है। डार ने गोमूत्र पीने वालों को मारने की कसम खाई थी।

राठी ऐसी बद्तमीजी करने वाला एकमात्र व्यक्ति नहीं है कि कैसे पर्रिकर को उनके कैंसर का इलाज करने के लिए गोमूत्र दिया जा सकता है।

जयराज पी, भाजपा-विरोधी ट्रेंडिंग हैशटैग को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख नाम, जिसे विभिन्न कॉन्ग्रेस नेताओं के साथ-साथ आधिकारिक कॉन्ग्रेस के ट्विटर अकाउंट द्वारा भी फॉलो किया जाता है।

इससे पहले, कॉन्ग्रेस-समर्थक ट्रोल संजुक्ता ने भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की किडनी बीमारी का मज़ाक उड़ाया था और सुझाव दिया था कि उन्होंने गोमूत्र के बजाय आधुनिक चिकित्सा की मदद क्यों ली।

एक अजीबोगरीब हरकत में उसने एक बार अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए पीएम मोदी समर्थकों से गोमूत्र पीने की अपील की थी।

यह पहली बार नहीं है जब राठी जैसे तथाकथित लिबरल्स और वामपंथियों ने हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिए ‘गोमूत्र’ या ‘गोबर’ का उपयोग किया है।

‘पक्षकार’ सागरिका घोष ने हिंदुत्व के लिए रचनात्मक व्यंजना के रूप में गौशाला का फिर से इस्तेमाल किया है।

गाली-गलौज तक पर उतारू ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी भी नियमित रूप से हिंदुओं को अपमानित करने के लिए गौमूत्र शब्द का दुरुपयोग करती है।

हमने अक्सर देखा है कि कैसे ‘ब्राह्मणवाद’ का उपयोग हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिए किया जाता रहा है। हमने यह भी देखा है कि जब भी ‘धर्मनिरपेक्ष’ वामपंथी पक्षकार नेटवर्क हिंदुओं और उनके धार्मिक प्रतीकों को अपमानित करने के लिए मुस्लिमों को ढाल बनाने की कोशिश करता है। इसके लिए हिंदुओं को “गौ मूत्र पीने वालों” के रूप में संदर्भित करना इन लिबरलों के लिए असामान्य नहीं है।

खैर, यह न पहली बार है और न आखिरी, मोदी से नफ़रत में कॉन्ग्रेस की गोद में शरण खोजते ये सभी वामपंथी लिबरल पक्षकार शायद ही कभी अपनी हरकतों से बाज आएँ, यह जब-तब हिन्दू धार्मिक प्रतीकों, उनकी आस्थाओं, कर्मकांडों का मजाक बनाने में ही चरम सुख ढूँढते रहेंगे। लेकिन अब जनता इनके हर प्रोपेगेंडा का उतनी ही तत्परता से जवाब देती है। इनका हर झूठ इनकी मक्कारी का गवाही देता है। पकड़े जाने पर अक्सर अपना पोस्ट या ट्वीट डिलीट कर ये बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन अपने गलतियों की माफ़ी ये पूरा गिरोह कभी नहीं माँगता।

शायद इन्हें भी पता है कि किसी एक व्यक्ति से घृणा और कॉन्ग्रेस या केजरी की आप में शरण ढूँढते इन प्रोपेगेंडा ट्रोलों, पक्षकारों को माफ़ी नहीं मिलने वाली और जब तक मोदी सरकार है तब तक इनका देश-विरोधी एजेंडा भी धरा ही रहेगा। तो अपने डूबते अस्तित्व को बचाने के लिए ये सभी वामपंथी, लिबरल गिरोह डूबती हुई नाव कॉन्ग्रेस को कन्धा देने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। चाहे इसके लिए सामान्य मानवीय संवेदनाओं की ही हत्या क्यों न करनी पड़े।

माया समर्थक SP-BSP गठबंधन से नाराज भी, अनजान भी, दे रहे हैं BJP को वोट

महागठबंधन की कवायद में शुरू से ही यह सवाल उठ रहे थे कि हालाँकि एक-दूसरे से दुश्मनी की ही जिन्दगी भर लड़ाई लड़ने वाले साथ तो आ रहे हैं, पर क्या उनके मतदाता इसे स्वीकार करेंगे। यह सवाल सबसे ज्यादा मायावती और मुलायम को लेकर पूछा गया था, पर उस समय इस आशंका को निर्मूल बता दिया गया था। कल बरेली के चुनावों ने खुलकर उस आशंका का मूल दिखा दिया था।

बसपा के कई मतदाताओं ने जहाँ भ्रम की स्थिति और हाथी नहीं दिखने के चलते कमल दबाकर भाजपा को वोट दे दिया, वहीं कई अन्य ने सब जानते हुए भी महागठबंधन को अपनी निष्ठा के साथ छल मानते हुए ऐसा किया।

‘बहन जी नहीं हैं तो फिर मोदी जी ही ठीक’

बरेली सीट से भाजपा ने संतोष गंगवार को उतारा है। वह भाजपा के केन्द्रीय मंत्री भी हैं। उनके मुकाबले में सपा-बसपा के महागठबंधन ने सपा के भगवत सरन गंगवार को उतार कर जातीय आधार पर वोट बाँटने की कोशिश की है। पर जैसा कि अमर उजाला के बरेली देहात संस्करण की आज ही छपी खबर से साफ हो रहा है, बसपा समर्थकों को न ही समाजवादी पार्टी से गठबंधन रास आया है, और न ही उसका ‘देश में सेक्युलरिज्म बचाना है’ का स्पष्टीकरण। बसपा के मतदाता वर्ग ने इसे अपने साथ छलावा माना है। बसपा के कई ‘कमिटेड’ मतदाताओं ने अमर उजाला से बातचीत में यह भी कहा कि बहन जी यानि मायावती (और उनकी पार्टी) अगर मुकाबले में होते तो वह जरूर वोट देते, पर जब बसपा मुकाबले में नहीं है तो भाजपा उनकी पसंद है।

क्या उल्टा पड़ रहा है महागठबंधन का दाँव?

इसके अलावा जमीन पर बहुत से मतदाताओं तक महागठबंधन की खबर पहुँचा पाने में भी बसपा कार्यकर्ताओं की विफलता सामने आ रही है। इस कारण से एक बड़ा मतदाता वर्ग हाथी न ढूँढ़ पाने के चलते भी भ्रम में कमल दबा आ रहे हैं।

गेस्टहाउस कांड हो सकता है कारण  

बसपा का वोट सपा को ट्रांसफर न होने का एक बड़ा कारण गेस्टहाउस कांड को माना जा सकता है। 2 जून 1995 को जब बसपा ने सपा-बसपा गठबंधन की उत्तर प्रदेश सरकार से समर्थन वापिस लेकर उसे गिरा दिया था तो नाराज सपा कार्यकताओं ने लखनऊ के एक गेस्टहाउस में मायावती पर हमला बोल दिया था। उन्होंने अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया तो भी सपा वाले उस कमरे का घेराव किए रहे। अंत में भाजपा के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी के नेतृत्व में पहुँचे लोगों ने उन्हें वहाँ से खदेड़ कर मायावती की जान बचाई थी।

पिछले 23 सालों में मायावती कई राजनीतिक मुसीबतों के मौकों पर अपने समर्थकों को गेस्टहाउस की याद दिला कर वोट माँग चुकीं हैं। कमोबेश उनके वोट बैंक ने उस प्रकरण को एक व्यक्ति नहीं, दलित अस्मिता की प्रतीक पर हमला मानकर उनका साथ भी दिया है। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हाहाकारी जीत के बावजूद बसपा मत प्रतिशत के मामले में दूसरी और सीटों के मामले में तीसरी पार्टी रही थी। ऐसे में जनता से इस मुद्दे के दम पर दो दशकों से ज्यादा की अपील करने के बाद अब इस मुद्दे पर समझौता करने की बसपा को कीमत चुकानी पड़ रही है।

लोकतंत्र का इतिहास, जूलियस सीज़र और केजरीवाल की कम्बल कुटाई

अभी दुनिया में सिर्फ सऊदी अरब, ओमान, यूएई, ब्रूनेई और वैटिकन ऐसे देश हैं जो खुल्लमखुल्ला कहते हैं कि वो लोकतान्त्रिक नहीं है। बाकी सारे देश खुद को लोकतान्त्रिक ही बताते हैं। कोई थोड़ा कम है, और कोई थोड़ा ज्यादा, मगर लोकतान्त्रिक, यानि डेमोक्रेटिक सभी है। वैसे तो लोकतंत्र का विकास भारत में भी हुआ था, मगर अंग्रेजी में जो लोकतंत्र के लिए शब्द होता है, उस ‘डेमोक्रेसी’ का भी अपना इतिहास है। ग्रीक राजनैतिक और दार्शनिक विचारों का शब्द ‘डेमोक्रेसी’ दो शब्दों से बना है, जिसमें ‘डेमोस’ का मतलब ‘आम आदमी’ और ‘क्रेटोस’ का मतलब शक्ति है।

अक्सर राजाओं के दौर में लोग अराजकता से तंग आकर लोकतान्त्रिक तरीके से अपना शासक चुनते थे। जैसे बिहार राजाओं के काल वाले भारत में एक राजा थे गोपाल। ये पाल वंश के संस्थापक थे, 750 के आस पास इन्होंने शासन संभाला और 20 वर्ष के लगभग शासन किया था। ये बौद्ध थे, मगर उतने अहिंसक नहीं थे। किम्वादंतियों के मुताबिक इनसे पहले के राजाओं को एक नाग रानी (या नागिन), चुने जाने के दिन ही मार डालती थी। मत्स्य न्याय से परेशान लोगों ने अंततः गोपाल को राजा चुना और उन्होंने नागिन (या नाग रानी) को मार डाला था।

जैसे अराजकता जैसी स्थिति ने गोपाल प्रथम को चुनकर राजा बनाया, करीब करीब वैसी ही स्थितियों में रोम में भी एक प्रसिद्ध राजा हुए थे। ईसा से करीब सौ साल पूर्व वहाँ जुलिअस सीजर थे। उन्हें भी गैल्लिक युद्धों में लगातार सफलता के बाद काफी प्रसिद्धि मिली थी। युद्ध से परेशान रोमन लोग जहाँ सीजर को विजयी के रूप में पसंद कर रहे थे, वहं सिनेट की योजना कुछ और थी। उन्होंने सीजर से सेना प्रमुख का पद छोड़ने को कहा। सीजर उल्टा अपनी सेना के साथ गृह युद्ध जैसी स्थिति तैयार कर बैठे! इस लड़ाई में जीतने के बाद वो राजा हुए और उन्होंने कई प्रशासनिक सुधार करवाये।

जुलियन कैलेन्डर जो हम आज इस्तेमाल करते हैं वो उन्हीं की देन है। जो लोग पुराने जमाने के तरीके से अप्रैल में नया साल मनाते उन बेचारे यहूदियों का मजाक उड़ाने की ‘अप्रैल फूल’ की परंपरा भी उसी दौर में शुरू हुई। जमीन के मालिकाना हक़ के नियमों में सुधारों को लेकर उनसे कई जमींदार नाराज हो गए और उन्होंने सीजर की हत्या कर देने की योजना बनाई। ऐसा माना जाता है कि इस हत्याकांड में करीब 60 लोग शामिल हुए थे और सीजर को 23 बार छुरा लगा था। इसी पर शेक्सपियर ने अपना प्रसिद्ध नाटक लिखा था, जिसकी वजह से ब्रूटस के लिए सीजर का डायलॉग ‘एट टू ब्रूटस’ (तुम भी ब्रूटस?) प्रसिद्ध हुआ।

विदेशों की कुछ अवधारणाओं में मानते हैं कि ‘शैतान’ कोई ईश्वर की सत्ता से बाहर की चीज है। हिन्दुओं में ऐसा नहीं मानते, वो मानते हैं कि हिन्दुओं की प्रवृत्तियाँ ही उसे मनुष्य या राक्षस बनाती हैं। संभवतः यही वजह होगी कि वो ये भी कहते हैं कि शैतान से लड़ते-लड़ते, मनुष्य के खुद शैतान हो जाने की संभावना रहती है। अक्सर लोकतान्त्रिक ढंग से जो शासक, अराजकता से निपटने के लिए चुने जाते हैं, वो खुद ही अराजक या तानाशाह हो जाते हैं। कुछ वैसे ही जैसे हाल ही में चीन के शासक ने खुद को आजीवन चुनाव लड़ने के झंझट से अलग कर लिया है।

भारत की राजधानी में हाल में जब लोगों ने मुख्यमंत्री चुना था तो लोकतंत्र और उससे जुड़ी अराजकता वाली स्थितियों की भी याद आई ही थी। सुधारों के नाम पर तुगलकी फरमानों से भी सीजर की याद आई। चाहे योगेन्द्र ‘सलीम’ यादव हों, प्रशांत भूषण या दूसरे साथी, जरा सी असहमति दिखाते ही उनकी जिस हिंसक तरीके से विदाई हुई, उससे भी लोकतान्त्रिक ढंग से चुने लोगों का तानाशाह बनना ही याद आया था। चूँकि सीजर की हत्या में 60 लोग शामिल थे, और आआपा के करीब इतने ही विधायक चुनकर आये थे, इसलिए भी बातें मिलती जुलती सी लगने लगी थी।

अब दबी जबान में चर्चा हो रही है कि बंद कमरे में कुछ लोगों ने मफ़लर वाले के साथ वो कर दिया है जो कम्बल ओढ़ा कर किया जाता है। कविराज विष-वास सोशल मीडिया पर इसपर कटाक्ष भी करते दिखे। यकीन नहीं होता, इतिहास खुद को दोहराता है, ऐसा सुना था, मगर इतनी समानताएँ?

250 km लंबी दुर्गम लेह-काराकोरम रोड तैयार, 2012 में बनी कॉन्ग्रेस वाली सड़क नदी में बह गई थी

लद्दाख क्षेत्र में उत्तर-पूर्वी इलाके को जोड़ने के लिए सामरिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण मार्ग लेह-काराकोरम रोड बनकर तैयार हो चुकी है। इसे वर्तमान मोदी सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जा रहा है। इस रोड के बन जाने से साल में बारहों महीने ये इलाका बाकी क्षेत्र के संपर्क में रहेगा। अक्टूबर 2017 को रक्षामंत्री सीतारमण ने अपनी सियाचिन यात्रा के दौरान सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और लेह को कराकोरम से जोड़ने वाले इस पुल के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया था। यह पुल सामरिक रूप से महत्वपूर्ण दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी परिक्षेत्र में सैन्य परिवहन के लिए कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगा।

255 km लंबे दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी [Darbuk-Shayok-Daulat Beg Oldie (DS-DBO)] सेक्शन में 37 ब्रिज बनाए गए हैं। 20 अप्रैल को इस रोड पर पहली बार एक एक्पीडिशन मोटरसाइकिल काफिले ने लेह से सफर शुरू कर काराकोरम दर्रा पहुँचकर फिर लेह वापसी करते हुए अपना सफर पूरा किया। दारबुक से ऊपर काराकोरम पहाड़ी श्रंखला के बीच ये रोड 14,000 फीट की ऊँचाई का सफर तय करती है।

आजादी से पहले चीन और भारत के बीच महत्वपूर्ण ट्रेड रूट था ये मार्ग

इन दिनों ये मार्ग व्यावसायिक मामलों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लेकिन आजादी से दो दशक पहले तक इस रोड को लद्दाख और चीन के काशगर प्रांत के बीच ट्रेड के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसे ज्यादातर पंजाबी मर्चेंट्स इस्तेमाल करते थे।

कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान असफल हुआ था इस रोड-निर्माण का प्रयास

वर्ष 2000 से 2012 में कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान यहाँ पर ₹320 करोड़ की लागत से DS-DBO section पर रोड तैयार की गई थी। उस समय यह खराब डिज़ाइनिंग के चलते श्योक नदी के बहाव में बह गया था। लेकिन इस बार 160 km लंबा हिस्सा दोबारा बेहतर डिजाइन के साथ तैयार किया गया और सफलतापूर्वक तैयार कर लिया जा चुका है।

अब मिलिट्री रसद पहुँचाने में नहीं होगी मुश्किल

पास के आखिरी 235 km के हिस्से में श्योक से काराकोरम पास के बीच कोई आबादी नहीं बसती है। सिर्फ श्योक में करीब 25 परिवार रहते हैं। इससे आगे सिविलियन आबादी को रहने की इजाजत नहीं है। इस रोड के बनने से चीन अधिकृत जम्मू कश्मीर और भारत के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत का नियंत्रण और बेहतर हो पाएगा। इसी क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 2013 और 2014 में एलएसी के हद को लेकर आपस में तनाव हो चुका है। रोड बनने से पहले इस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के लिए भारी रसद पहुँचाना संभव नहीं हो पाता था, लेकिन अब ये इलाका वर्षभर सम्पर्क में बना रहेगा। ऐसे में जाहिर है, ये भारत की सामरिक शक्ति के लिए बड़ी उपबल्धि है।