लोकसभा चुनाव में सभी दल अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमिरंदर सिंह ने अपनी सरकार के मंत्रियों से कहा है कि वह अपने-अपने इलाके में पार्टी के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करें। कैप्टन ने इस बाबत सभी मंत्रियों को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जिन मंत्रियों के क्षेत्र में पार्टी को जीत हासिल नहीं होगी, उन मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी कर दी जाएगी। अमरिंदर सिंह के इस बयान से पंजाब में सियासी हचलच तेज हो गई है।
Punjab CM & Congress leader Captain Amarinder Singh: As per the high command’s decision, incumbent ministers in Punjab who do not succeed in ensuring a victory for the Congress, specially from the constituencies they represent, will be dropped from the cabinet. (file pic) pic.twitter.com/ildVZej0xO
कैप्टन की इस घोषणा में उनके हार का डर साफ-साफ झलक रहा है। उन्हें लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के जीत पर संदेह है और शायद वो चुनाव के परिणाम को लेकर भी थोड़े से डरे हुए लग रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, तो पार्टी के भीतर उनका कद और रुतबा घटने वाली बात हो जाएगी। वैसे बीते लोकसभा चुनावों के दौरान भी राज्य में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। शायद इसीलिए उन्होंने मंत्रियों के लिए इस तरह की चेतावनी जारी की है।
कैप्टन का कहना है कि ये निर्देश उन्हें पार्टी हाईकमान की तरफ से ही मिले हैं। कैप्टन सिंह ने अपने लिखित बयान में अपने मंत्रियों, नेताओं और विधायकों से कहा है कि वह पार्टी को अपने-अपने इलाके में जितवाएँ और अगर ऐसा नहीं होता है, तो उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है। इसके साथ ही विधायकों से यह भी कहा गया है कि जिस विधायक के क्षेत्र में वोट कम होंगे, उनको अगले विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा।
इतना ही नहीं, पंजाब सरकार में चैयरमैन पद भी लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर मिलेगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि पार्टी ने साफ किया है कि पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों को जीतने के मिशन के प्रति किसी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बता दें कि पंजाब में लोकसभा चुनाव के लिए आखिरी यानी सातवें चरण में 19 मई को मतदान होने वाला है।
कहते हैं घृणा इंसान के विवेक का नाश कर देती है। आज राजनीति इस मोड़ पर आ चुकी है कि अब देश के विकास पर बात न होकर तमाम फर्जी मुद्दों से वोटर का ध्यान भटकाने की, उसे झूठे आरोपों और झूठी खबरों से बरगलाने की कोशिश की जा रही है। इसमें कोई एक नहीं तमाम तथाकथित लिबरल कॉन्ग्रेसी, वामपंथी से लेकर तमाम प्रोपेगेंडा मठाधीश शामिल हैं।
आज एक तरफ अनर्गल राजनीतिक बयानबाजी ने जोर पकड़ा है तो वहीं दूसरी तरफ मोदी की राजनीतिक सफलता से कुढ़न महसूस करते-करते, नफ़रत और घृणा की आग में जलते ये वामपंथी प्रोपेगेंडा पक्षकार संवैधानिक सस्थाओं का मजाक बनाते-बनाते, हदें पार करते हुए अपने कुत्सित प्रयासों में दिवंगत मनोहर पर्रीकर को भी घसीट लाए।
प्रधान मंत्री मोदी के लिए उनकी नफ़रत में, ध्रुव राठी ने गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री, जो कैंसर से पीड़ित थे और एक लंबी बीमारी के बाद जिनका पिछले महीने निधन हो गया, पर कटाक्ष करते हुए, ध्रुव राठी ने कहा कि ‘चौकीदारों’ को अब एक बहाना ढूँढना होगा कि क्यों ‘पर्रिकरजी कैंसर के इलाज के लिए गोबर वाला नुस्खा नहीं आज़मा सके।’
I feel bad for Chowkidars of Modi
– First they had to defend the fact that Bomb Blast accused is BJP candidate
– Now they have to justify that eating Gobar does cure Cancer
– Then they’ll have to find an excuse why Parrikarji could not try this Gobar recipe to cure his cancer
दरअसल राठी भाजपा और उसके समर्थकों को साध्वी प्रज्ञा को चुनने के लिए भड़काने की कोशिश कर रहा था जबकि एनआईए के क्लीन चिट देने के बाद, 8 साल की हिरासत के बाद जमानत दी गई है। राठी ने फिर से हिंदुओं का मज़ाक उड़ाते हुए अपनी हिंदू घृणा को प्रदर्शित किया कि ‘चौकीदारों’ को जस्टिफाई करना है कि ‘गोबर’ (गाय का गोबर) कैंसर का इलाज कर सकता है। साध्वी प्रज्ञा ने गायों और गोमूत्र के लाभों का उल्लेख किया था कि कैसे गोमूत्र में ऐसे रसायन होते हैं जो कैंसर का इलाज कर सकते हैं। जबकि गोमूत्र कैंसर का इलाज कर सकता है या नहीं? यह बहस का विषय हो सकता है, हालाँकि डॉक्टरों ने सहमति व्यक्त की है कि इसका औषधीय महत्व है।
हिंदुओं का मज़ाक उड़ाने के लिए राठी ने साध्वी प्रज्ञा के स्टेटमेंट को ट्विस्ट कर लिखा कि साध्वी प्रज्ञा ने अपने कैंसर को ठीक करने के लिए गाय के गोबर का सेवन किया। इतना ही नहीं इसके बाद उसने गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का मजाक उड़ाया और कहा कि उन्होंने अपने कैंसर को ठीक करने के लिए ‘गोबर’ का इस्तेमाल क्यों नहीं किया।
प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाला यह पूरा तंत्र कितना मजबूत है इसे जानने के लिए यह जानना आवश्यक है उसके ट्वीट को लगभग 5,500 बार रीट्वीट किया गया और लगभग 19,000 लोगों ने ‘लाइक’ किया। यह ऐसे लोगों का जमावड़ा भी दिखाता है कि मोदी से नफरत में वे अपनी बुनियादी मानवीय शालीनता को भी खत्म करने के लिए तैयार हैं और कैंसर से मरने वाले व्यक्ति का जान बूझकर मजाक उड़ाते हुए ट्विटर पर कई लोगों ने भद्दे और अप्रिय कमेंट किया।
What an utterly vile human being. Say a lot about the gutter he was reared in. https://t.co/cHij4bwKu7
राठी की भाषा शैली में, पुलवामा आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादी अहमद डार द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा जैसी है। डार ने गोमूत्र पीने वालों को मारने की कसम खाई थी।
राठी ऐसी बद्तमीजी करने वाला एकमात्र व्यक्ति नहीं है कि कैसे पर्रिकर को उनके कैंसर का इलाज करने के लिए गोमूत्र दिया जा सकता है।
Cow urine cured my breast cancer: Sadhvi Pragya.https://t.co/7gbDBQviFL Pity it was not given to Parrikar…
जयराज पी, भाजपा-विरोधी ट्रेंडिंग हैशटैग को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख नाम, जिसे विभिन्न कॉन्ग्रेस नेताओं के साथ-साथ आधिकारिक कॉन्ग्रेस के ट्विटर अकाउंट द्वारा भी फॉलो किया जाता है।
Bhakts are annoyed with me for some reason, because Gau Mutra didn’t cure #ManoharParrikar. He did run to the Christian West for help, of course, because Hindutva doesn’t help when you’re dying. ???
Everytime I feel like I have seen the most idiotic bhakt I can ever see in my life, I come across an even more idiotic bhakt with super idiotic brain that makes the old bhakt seem like sensible bhakt. https://t.co/60CERY8k8y
इससे पहले, कॉन्ग्रेस-समर्थक ट्रोल संजुक्ता ने भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की किडनी बीमारी का मज़ाक उड़ाया था और सुझाव दिया था कि उन्होंने गोमूत्र के बजाय आधुनिक चिकित्सा की मदद क्यों ली।
I want to know, if Gau mutra, gobar so good, why Sushmaji went to Western allopathy for kidney failure? Why not Ayurveda hospital in Guj? https://t.co/9avoo0JsHu
We are finally getting Cow tourism! It will be organized by Gujarat State govt and will offer 2 day trips to Cow shelters to learn about Cow Urine and Cow shit.
Without Nehru: rampaging hindutva fundamentalism throughout India, gau shalas, manuwadi pathshalas, no widespread modern education, superstition and rituals above values, no striving for excellence, India in darkness
हमने अक्सर देखा है कि कैसे ‘ब्राह्मणवाद’ का उपयोग हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिए किया जाता रहा है। हमने यह भी देखा है कि जब भी ‘धर्मनिरपेक्ष’ वामपंथी पक्षकार नेटवर्क हिंदुओं और उनके धार्मिक प्रतीकों को अपमानित करने के लिए मुस्लिमों को ढाल बनाने की कोशिश करता है। इसके लिए हिंदुओं को “गौ मूत्र पीने वालों” के रूप में संदर्भित करना इन लिबरलों के लिए असामान्य नहीं है।
खैर, यह न पहली बार है और न आखिरी, मोदी से नफ़रत में कॉन्ग्रेस की गोद में शरण खोजते ये सभी वामपंथी लिबरल पक्षकार शायद ही कभी अपनी हरकतों से बाज आएँ, यह जब-तब हिन्दू धार्मिक प्रतीकों, उनकी आस्थाओं, कर्मकांडों का मजाक बनाने में ही चरम सुख ढूँढते रहेंगे। लेकिन अब जनता इनके हर प्रोपेगेंडा का उतनी ही तत्परता से जवाब देती है। इनका हर झूठ इनकी मक्कारी का गवाही देता है। पकड़े जाने पर अक्सर अपना पोस्ट या ट्वीट डिलीट कर ये बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन अपने गलतियों की माफ़ी ये पूरा गिरोह कभी नहीं माँगता।
शायद इन्हें भी पता है कि किसी एक व्यक्ति से घृणा और कॉन्ग्रेस या केजरी की आप में शरण ढूँढते इन प्रोपेगेंडा ट्रोलों, पक्षकारों को माफ़ी नहीं मिलने वाली और जब तक मोदी सरकार है तब तक इनका देश-विरोधी एजेंडा भी धरा ही रहेगा। तो अपने डूबते अस्तित्व को बचाने के लिए ये सभी वामपंथी, लिबरल गिरोह डूबती हुई नाव कॉन्ग्रेस को कन्धा देने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। चाहे इसके लिए सामान्य मानवीय संवेदनाओं की ही हत्या क्यों न करनी पड़े।
महागठबंधन की कवायद में शुरू से ही यह सवाल उठ रहे थे कि हालाँकि एक-दूसरे से दुश्मनी की ही जिन्दगी भर लड़ाई लड़ने वाले साथ तो आ रहे हैं, पर क्या उनके मतदाता इसे स्वीकार करेंगे। यह सवाल सबसे ज्यादा मायावती और मुलायम को लेकर पूछा गया था, पर उस समय इस आशंका को निर्मूल बता दिया गया था। कल बरेली के चुनावों ने खुलकर उस आशंका का मूल दिखा दिया था।
बसपा के कई मतदाताओं ने जहाँ भ्रम की स्थिति और हाथी नहीं दिखने के चलते कमल दबाकर भाजपा को वोट दे दिया, वहीं कई अन्य ने सब जानते हुए भी महागठबंधन को अपनी निष्ठा के साथ छल मानते हुए ऐसा किया।
‘बहन जी नहीं हैं तो फिर मोदी जी ही ठीक’
बरेली सीट से भाजपा ने संतोष गंगवार को उतारा है। वह भाजपा के केन्द्रीय मंत्री भी हैं। उनके मुकाबले में सपा-बसपा के महागठबंधन ने सपा के भगवत सरन गंगवार को उतार कर जातीय आधार पर वोट बाँटने की कोशिश की है। पर जैसा कि अमर उजाला के बरेली देहात संस्करण की आज ही छपी खबर से साफ हो रहा है, बसपा समर्थकों को न ही समाजवादी पार्टी से गठबंधन रास आया है, और न ही उसका ‘देश में सेक्युलरिज्म बचाना है’ का स्पष्टीकरण। बसपा के मतदाता वर्ग ने इसे अपने साथ छलावा माना है। बसपा के कई ‘कमिटेड’ मतदाताओं ने अमर उजाला से बातचीत में यह भी कहा कि बहन जी यानि मायावती (और उनकी पार्टी) अगर मुकाबले में होते तो वह जरूर वोट देते, पर जब बसपा मुकाबले में नहीं है तो भाजपा उनकी पसंद है।
इसके अलावा जमीन पर बहुत से मतदाताओं तक महागठबंधन की खबर पहुँचा पाने में भी बसपा कार्यकर्ताओं की विफलता सामने आ रही है। इस कारण से एक बड़ा मतदाता वर्ग हाथी न ढूँढ़ पाने के चलते भी भ्रम में कमल दबा आ रहे हैं।
गेस्टहाउस कांड हो सकता है कारण
बसपा का वोट सपा को ट्रांसफर न होने का एक बड़ा कारण गेस्टहाउस कांड को माना जा सकता है। 2 जून 1995 को जब बसपा ने सपा-बसपा गठबंधन की उत्तर प्रदेश सरकार से समर्थन वापिस लेकर उसे गिरा दिया था तो नाराज सपा कार्यकताओं ने लखनऊ के एक गेस्टहाउस में मायावती पर हमला बोल दिया था। उन्होंने अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया तो भी सपा वाले उस कमरे का घेराव किए रहे। अंत में भाजपा के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी के नेतृत्व में पहुँचे लोगों ने उन्हें वहाँ से खदेड़ कर मायावती की जान बचाई थी।
पिछले 23 सालों में मायावती कई राजनीतिक मुसीबतों के मौकों पर अपने समर्थकों को गेस्टहाउस की याद दिला कर वोट माँग चुकीं हैं। कमोबेश उनके वोट बैंक ने उस प्रकरण को एक व्यक्ति नहीं, दलित अस्मिता की प्रतीक पर हमला मानकर उनका साथ भी दिया है। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हाहाकारी जीत के बावजूद बसपा मत प्रतिशत के मामले में दूसरी और सीटों के मामले में तीसरी पार्टी रही थी। ऐसे में जनता से इस मुद्दे के दम पर दो दशकों से ज्यादा की अपील करने के बाद अब इस मुद्दे पर समझौता करने की बसपा को कीमत चुकानी पड़ रही है।
अभी दुनिया में सिर्फ सऊदी अरब, ओमान, यूएई, ब्रूनेई और वैटिकन ऐसे देश हैं जो खुल्लमखुल्ला कहते हैं कि वो लोकतान्त्रिक नहीं है। बाकी सारे देश खुद को लोकतान्त्रिक ही बताते हैं। कोई थोड़ा कम है, और कोई थोड़ा ज्यादा, मगर लोकतान्त्रिक, यानि डेमोक्रेटिक सभी है। वैसे तो लोकतंत्र का विकास भारत में भी हुआ था, मगर अंग्रेजी में जो लोकतंत्र के लिए शब्द होता है, उस ‘डेमोक्रेसी’ का भी अपना इतिहास है। ग्रीक राजनैतिक और दार्शनिक विचारों का शब्द ‘डेमोक्रेसी’ दो शब्दों से बना है, जिसमें ‘डेमोस’ का मतलब ‘आम आदमी’ और ‘क्रेटोस’ का मतलब शक्ति है।
अक्सर राजाओं के दौर में लोग अराजकता से तंग आकर लोकतान्त्रिक तरीके से अपना शासक चुनते थे। जैसे बिहार राजाओं के काल वाले भारत में एक राजा थे गोपाल। ये पाल वंश के संस्थापक थे, 750 के आस पास इन्होंने शासन संभाला और 20 वर्ष के लगभग शासन किया था। ये बौद्ध थे, मगर उतने अहिंसक नहीं थे। किम्वादंतियों के मुताबिक इनसे पहले के राजाओं को एक नाग रानी (या नागिन), चुने जाने के दिन ही मार डालती थी। मत्स्य न्याय से परेशान लोगों ने अंततः गोपाल को राजा चुना और उन्होंने नागिन (या नाग रानी) को मार डाला था।
जैसे अराजकता जैसी स्थिति ने गोपाल प्रथम को चुनकर राजा बनाया, करीब करीब वैसी ही स्थितियों में रोम में भी एक प्रसिद्ध राजा हुए थे। ईसा से करीब सौ साल पूर्व वहाँ जुलिअस सीजर थे। उन्हें भी गैल्लिक युद्धों में लगातार सफलता के बाद काफी प्रसिद्धि मिली थी। युद्ध से परेशान रोमन लोग जहाँ सीजर को विजयी के रूप में पसंद कर रहे थे, वहं सिनेट की योजना कुछ और थी। उन्होंने सीजर से सेना प्रमुख का पद छोड़ने को कहा। सीजर उल्टा अपनी सेना के साथ गृह युद्ध जैसी स्थिति तैयार कर बैठे! इस लड़ाई में जीतने के बाद वो राजा हुए और उन्होंने कई प्रशासनिक सुधार करवाये।
जुलियन कैलेन्डर जो हम आज इस्तेमाल करते हैं वो उन्हीं की देन है। जो लोग पुराने जमाने के तरीके से अप्रैल में नया साल मनाते उन बेचारे यहूदियों का मजाक उड़ाने की ‘अप्रैल फूल’ की परंपरा भी उसी दौर में शुरू हुई। जमीन के मालिकाना हक़ के नियमों में सुधारों को लेकर उनसे कई जमींदार नाराज हो गए और उन्होंने सीजर की हत्या कर देने की योजना बनाई। ऐसा माना जाता है कि इस हत्याकांड में करीब 60 लोग शामिल हुए थे और सीजर को 23 बार छुरा लगा था। इसी पर शेक्सपियर ने अपना प्रसिद्ध नाटक लिखा था, जिसकी वजह से ब्रूटस के लिए सीजर का डायलॉग ‘एट टू ब्रूटस’ (तुम भी ब्रूटस?) प्रसिद्ध हुआ।
विदेशों की कुछ अवधारणाओं में मानते हैं कि ‘शैतान’ कोई ईश्वर की सत्ता से बाहर की चीज है। हिन्दुओं में ऐसा नहीं मानते, वो मानते हैं कि हिन्दुओं की प्रवृत्तियाँ ही उसे मनुष्य या राक्षस बनाती हैं। संभवतः यही वजह होगी कि वो ये भी कहते हैं कि शैतान से लड़ते-लड़ते, मनुष्य के खुद शैतान हो जाने की संभावना रहती है। अक्सर लोकतान्त्रिक ढंग से जो शासक, अराजकता से निपटने के लिए चुने जाते हैं, वो खुद ही अराजक या तानाशाह हो जाते हैं। कुछ वैसे ही जैसे हाल ही में चीन के शासक ने खुद को आजीवन चुनाव लड़ने के झंझट से अलग कर लिया है।
भारत की राजधानी में हाल में जब लोगों ने मुख्यमंत्री चुना था तो लोकतंत्र और उससे जुड़ी अराजकता वाली स्थितियों की भी याद आई ही थी। सुधारों के नाम पर तुगलकी फरमानों से भी सीजर की याद आई। चाहे योगेन्द्र ‘सलीम’ यादव हों, प्रशांत भूषण या दूसरे साथी, जरा सी असहमति दिखाते ही उनकी जिस हिंसक तरीके से विदाई हुई, उससे भी लोकतान्त्रिक ढंग से चुने लोगों का तानाशाह बनना ही याद आया था। चूँकि सीजर की हत्या में 60 लोग शामिल थे, और आआपा के करीब इतने ही विधायक चुनकर आये थे, इसलिए भी बातें मिलती जुलती सी लगने लगी थी।
अब दबी जबान में चर्चा हो रही है कि बंद कमरे में कुछ लोगों ने मफ़लर वाले के साथ वो कर दिया है जो कम्बल ओढ़ा कर किया जाता है। कविराज विष-वास सोशल मीडिया पर इसपर कटाक्ष भी करते दिखे। यकीन नहीं होता, इतिहास खुद को दोहराता है, ऐसा सुना था, मगर इतनी समानताएँ?
लद्दाख क्षेत्र में उत्तर-पूर्वी इलाके को जोड़ने के लिए सामरिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण मार्ग लेह-काराकोरम रोड बनकर तैयार हो चुकी है। इसे वर्तमान मोदी सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जा रहा है। इस रोड के बन जाने से साल में बारहों महीने ये इलाका बाकी क्षेत्र के संपर्क में रहेगा। अक्टूबर 2017 को रक्षामंत्री सीतारमण ने अपनी सियाचिन यात्रा के दौरान सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और लेह को कराकोरम से जोड़ने वाले इस पुल के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया था। यह पुल सामरिक रूप से महत्वपूर्ण दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी परिक्षेत्र में सैन्य परिवहन के लिए कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगा।
255 km लंबे दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी [Darbuk-Shayok-Daulat Beg Oldie (DS-DBO)] सेक्शन में 37 ब्रिज बनाए गए हैं। 20 अप्रैल को इस रोड पर पहली बार एक एक्पीडिशन मोटरसाइकिल काफिले ने लेह से सफर शुरू कर काराकोरम दर्रा पहुँचकर फिर लेह वापसी करते हुए अपना सफर पूरा किया। दारबुक से ऊपर काराकोरम पहाड़ी श्रंखला के बीच ये रोड 14,000 फीट की ऊँचाई का सफर तय करती है।
आजादी से पहले चीन और भारत के बीच महत्वपूर्ण ट्रेड रूट था ये मार्ग
इन दिनों ये मार्ग व्यावसायिक मामलों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लेकिन आजादी से दो दशक पहले तक इस रोड को लद्दाख और चीन के काशगर प्रांत के बीच ट्रेड के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसे ज्यादातर पंजाबी मर्चेंट्स इस्तेमाल करते थे।
कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान असफल हुआ था इस रोड-निर्माण का प्रयास
वर्ष 2000 से 2012 में कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान यहाँ पर ₹320 करोड़ की लागत से DS-DBO section पर रोड तैयार की गई थी। उस समय यह खराब डिज़ाइनिंग के चलते श्योक नदी के बहाव में बह गया था। लेकिन इस बार 160 km लंबा हिस्सा दोबारा बेहतर डिजाइन के साथ तैयार किया गया और सफलतापूर्वक तैयार कर लिया जा चुका है।
अब मिलिट्री रसद पहुँचाने में नहीं होगी मुश्किल
पास के आखिरी 235 km के हिस्से में श्योक से काराकोरम पास के बीच कोई आबादी नहीं बसती है। सिर्फ श्योक में करीब 25 परिवार रहते हैं। इससे आगे सिविलियन आबादी को रहने की इजाजत नहीं है। इस रोड के बनने से चीन अधिकृत जम्मू कश्मीर और भारत के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत का नियंत्रण और बेहतर हो पाएगा। इसी क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 2013 और 2014 में एलएसी के हद को लेकर आपस में तनाव हो चुका है। रोड बनने से पहले इस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के लिए भारी रसद पहुँचाना संभव नहीं हो पाता था, लेकिन अब ये इलाका वर्षभर सम्पर्क में बना रहेगा। ऐसे में जाहिर है, ये भारत की सामरिक शक्ति के लिए बड़ी उपबल्धि है।
यूपी के गाजियाबाद के इंदिरापुरम में अपने तीन बच्चों और पत्नी की हत्या करने वाला आरोपित सुमित गिरफ्तार कर लिया गया है। इंदिरापुरम पुलिस ने उसे कर्नाटक से गिरफ्तार किया है। दरअसल, पूरा मामला शनिवार (अप्रैल 20, 2019) का है। सुमित नाम के इस आरोपित ने शनिवार की रात को गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में ज्ञान खंड 4 में अपने परिवार की हत्या कर दी थी।
सुमित की गिरफ्तारी के बाद जो बात सामने आई है, वो हैरान कर देने वाली है। पुलिस की मानें तो सुमित अपनी बेरोजगारी से काफी मानसिक तनाव में था। उसे नौकरी नहीं मिल रही थी, आर्थिक तंगी ने घेर लिया था। ऐसे में उसने चोरी करने की योजना बनाई। चोरी के बारे में उसने अपनी पत्नी से बात की। लेकिन पत्नी अंशुबाला ने ऐसी किसी हरकत में उसका साथ देने से इनकार कर दिया था। बेरोजगारी और पत्नी की मनाही शायद परिवार और बच्चों के लिए काल बन गई।
शनिवार की रात को सुमित ने कोल्ड ड्रिंक में नींद की गोलियाँ देकर पत्नी व तीनों बच्चों को सुला दिया था और फिर सभी के सो जाने के बाद सुमित ने पत्नी और तीनों बच्चों की चाकू से हत्या कर दी। हालाँकि सुमित की पत्नी अंशुबाला ने बच्चों और खुद को बचाने की काफी कोशिश की लेकिन सुमित काफी नशे में था और उसके ऊपर खून सवार था। इस दौरान सुमित ने अंशुबाला पर चाकू से 15 वार किए। बता दें कि सुमित के बड़े बेटे की उम्र 7 साल थी। जबकि बाकी दो जुड़वा बच्चों की उम्र 4 साल। हत्या करने के बाद आरोपित सुमित फरार हो गया था।
Ghaziabad techie Sumit Kumar, who killed wife, kids arrested in Karnataka – The New Indian Express https://t.co/4YjdS9S8Mj
हत्या के कई घंटों बाद उसने अपने पत्नी अंशुबाला के भाई पंकज से वीडियो शेयर किया था, जिसमें कहा था कि उसने परिवार की हत्या कर दी है, जाओ शव उठा लो। पुलिस का कहना था कि उसने यह वीडियो ट्रेन के शौचालय में बनाया था। साथ ही उसने वीडियो में ये भी कहा था कि पोटैशियम सायनाइड खाकर वह भी आत्महत्या करने जा रहा है। सुमित सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और बंगलुरू में आईटी कंपनी में नौकरी करता था। तीन माह पहले ही उसकी नौकरी छूटी थी इसलिए घर में आर्थिक तंगी जैसे हालात थे।
जानकारी के मुताबिक, सुमित काफी पहले से ही इस साजिश की योजना बना रहा था। पुलिस को मंगलवार (अप्रैल 23,2019) को पता चला कि सुमित ने एक ऑनलाइन शॉपिंग साइट से 5 चाकुओं का सेट खरीदा था, जिसे बेंगलुरु के एक दोस्त की लॉग-इन आईडी से ऑर्डर किया था और फिर इसी चाकू से इस वारदात को अंजाम दिया।
शत्रुघ्न सिन्हा का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में उनकी रईसी साफ़-साफ़ झलक रही है। इस वीडियो में देखा जा सकता है कि शत्रुघ्न सिन्हा किसी मंदिर में जा रहे हैं। मंदिर में जाने से पहले जूता उतारने के लिए भी वो ख़ुद मेहनत नहीं करते। उनका सहयोगी जूता उतारता है और फिर वह मंदिर में घुसते हैं। इस पर लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर एक राजनेता ख़ुद अपना जूता नहीं उतार सकता तो जनता की सेवा क्या करेगा? शत्रुघ्न सिन्हा पटना से सांसद हैं और इस बार उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी भाजपा छोड़ कॉन्ग्रेस का दामन थामा है। पटना में उनका मुक़ाबला केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से होने वाला है। दोनों ही कायस्थ समुदाय से आते हैं और स्थानीय हैं। ऐसे में, यहाँ दिलचस्प मुक़ाबला होने की उम्मीद है।
Shatrughan Sinha can’t even remove his footwear Himself?
ऊपर के वीडियो में देख सकते हैं कैसे शत्रुघ्न सिन्हा का जूता कोई और व्यक्ति उतार रहा है ताकि वो मंदिर में जाकर पूजा कर सकें। पटना साहिब क्षेत्र से पिछली बार रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीते शत्रुघ्न सिन्हा बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता रहे हैं। विलेन के तौर पर अपना करियर शुरू करने के बाद उन्होंने सैंकड़ों फ़िल्मों में अभिनय किया। शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा लखनऊ से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं और हाल ही में सिन्हा उनके चनाव प्रचार के लिए भी वहाँ पहुँचे थे। हालाँकि यूपी में सपा के साथ कॉन्ग्रेस गठबंधन में नहीं है तब भी सिन्हा ने अपनी पत्नी के लिए अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ़ चुनाव प्रचार किया।
पटना साहिब क्षेत्र के लोगों का कहना है कि शत्रुघ्न सिन्हा जीतने के बाद सीधा मुंबई चले जाते हैं और अपने क्षेत्र का दौरा भी नहीं करते। चुनाव आते ही उन्हें फिर क्षेत्र की याद सताती है। शत्रुघ्न सिन्हा के उपर्युक्त वीडियो को देखने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा कि जो व्यक्ति अपना जूता खोलने तक के लिए नहीं झुक सकता, वो समाज और देश की सेवा करने की बात न ही करे तो बेहतर है।
ईस्टर के दौरान हुए आतंकी हमलों से बुरी तरह दहले श्री लंका ने बुर्के पर प्रतिबंध की योजना पर अमल करना शुरू कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार जल्द ही इस बारे में आदेश जारी कर सकती है। दरअसल, जाँच के दौरान प्राप्त सबूतों से हमले में बड़ी संख्या में संदिग्ध बुर्का पहनी महिलाओं के शामिल होने के संकेत मिले हैं। जिसकी वजह से बुर्के पर बैन लगाने पर विचार किया जा रहा है। रविवार (अप्रैल 21, 2019) को हुए इन हमलों में अब तक लगभग 359 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि तकरीबन 500 लोग घायल हुए हैं। आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने मंगलवार (अप्रैल 23, 2019) को इन हमलों की जिम्मेदारी ली थी। अब तक 58 संदिग्धों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
Sri Lanka is contemplating a Burkha ban amidst reports of a suicide bomber being a burkha clad womanhttps://t.co/k2hNaRTBd1
जानकारी के मुताबिक, सरकार मस्जिद अधिकारियों से विचार-विमर्श करके इस कदम को लागू करने की योजना बना रही है और सोमवार (अप्रैल 22, 2019) को कई मंत्रियों ने इस मामले पर राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना से बात की। यूएनपी सांसद आशु मारासिंघे ने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए श्रीलंका में बुर्के पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक निजी सदस्य विधेयक लाने की योजना बना रहे हैं।” गौरतलब है कि 1990 की शुरुआत में खाड़ी युद्ध तक श्रीलंका में मुस्लिम महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा में बुर्का और नकाब कभी शामिल नहीं था, मगर खाड़ी युद्ध के समय चरमपंथी तत्वों ने मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा शुरू किया। रक्षा सूत्रों ने बताया कि डेमाटागोडा में घटनाओं में शामिल रही कई महिलाएँ भी बुर्का पहनकर भागी थी।
यूएनपी के सांसद मुजीबुर रहमान ने कहा है कि वह बुर्का बैन करने के प्रस्ताव का समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी बुर्का नहीं पहनती है और वो अपने बच्चों को भी बुर्का नहीं पहनने देंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में मुस्लिम धार्मिक समूह इस पर अपना वक्तव्य देंगे।
अब अगर श्रीलंका ने बुर्के पर प्रतिबंध लगा दिया तो वह एशिया, अफ्रीका और यूरोप में उन देशों के समूह में शामिल हो जाएगा, जहाँ पहले से ही बुर्के पर बैन है। इन देशों ने आतंकवादियों को पुलिस से बचने या विस्फोटकों को छिपाने के लिए बुर्का का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए अपने यहाँ बुर्के पर बैन लगाया है। आपको बता दें कि चाड, कैमरून, गाबोन, मोरक्को, ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, डेनमार्क, फ्रांस, बेल्जियम और उत्तर पश्चिम चीन के मुस्लिम बहुल प्रांत शिनजियांग में बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
नई वाली राजनीति फेम दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल का न चाहते हुए भी चर्चा में आ जाना कोई नई बात नहीं है। मीडिया द्वारा तैयार किए गए राजनीति के इस ‘खड़गसिंह’ ने जितने कीर्तिमान अब तक हासिल कर लिए हैं, इतने शायद ही आजादी के इतने वर्षों बाद किसी अन्य समकालीन नेता के पास हों। अरविन्द केजरीवाल का हाल ही में एक प्रकरण सामने आया है। हालाँकि, यह प्रकरण निंदनीय और दुखद है, लेकिन इसके बाद केजरीवाल एक बार फिर चर्चा का विषय बन गए हैं।
आम आदमी पार्टी (AAP) के बगावती विधायक कपिल मिश्रा ने दावा किया है कि कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का AAP के ही कुछ विधायकों ने मार-मार के मोर बना दिया।
इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर एक खबर वायरल हुई। इसमें बताया जा रहा है कि घूँसे, कंटाप, रैपट और मुक्कों से पड़े नीले निशानों के इलाज के लिए जब अरविन्द केजरीवाल अपनी मसाज-मालिश करवाने मोहल्ला क्लिनिक गए, तो वहाँ पर पहले से मौजूद जुगाली कर रहे गाय-बछड़ों ने उनका इलाज करने से मना कर दिया।
केजरीवाल विदेश से लेना चाहते थे स्वास्थ्य लाभ, ‘AAP अध्यक्ष’ ने की अर्जी रिजेक्ट
सूत्रों के अनुसार, आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने पहले किसी विदेशी अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ लेने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन, अरविन्द केजरीवाल की लीडरशिप में बने मोहल्ला क्लीनिक की क्षमता को नजरअंदाज होता देख गुस्से में पार्टी अध्यक्ष (स्वयं केजरीवाल जी) ने ही अपनी इस अर्जी को गुस्से में फाड़ कर फेंक दिया। अरविन्द केजरीवाल की अर्जी को फाड़ते समय पार्टी अध्यक्ष केजरीवाल ने तिलमिलाते हुए कहा कि बच्चों की कसम और गिड़गिड़ाने के अलावा मोहल्ला क्लिनिक ही तो उनकी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसी दलील पर उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी मोहल्ला क्लिनिक्स की क्षमता को अंडरएस्टिमेट ना करने की सलाह दी। इसके आगे उन्होंने कहा कि अगर पार्टी उनकी इस बात पर विचार नहीं करेगी, तो धरने पर बैठने का विकल्प उनके पास हमेशा उपलब्ध रहेगा।
मोहल्ला क्लिनिक में गाय कर रही थी परिवार के साथ जुगाली
कंटाप, घूँसे और मुक्के पड़ने के बाद जब अरविन्द केजरीवाल मोहल्ला क्लिनिक पहुँचे तो उनकी स्थिति और बिगड़ गई। मोहल्ला क्लिनिक के अंदर प्रवेश करते ही जब अपने बछड़ों के साथ जुगाली करती गाय पर केजरीवाल की नजर पड़ी तो उनके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। केजरीवाल का कहना है कि पहले उन्हें लगा कि मोहल्ला क्लिनिक की जिस तरह से मार्केटिंग की गई हैं, हो सकता है कि गाय भी वहाँ अपना इलाज करवाने गई हों। लेकिन, यह जान कर केजरीवाल को सांत्वना मिली की वहाँ पर रहने वाली गाय अब खुद डाक्टरी सीख कर इंसानों का मुफ्त चेकअप करने लगी हैं।
अरविन्द केजरीवाल को इस खबर पर पहले विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उनके द्वारा किराए पर उपलब्ध फैक्ट चेकर्स के समूह फॉल्ट न्यूज़ ने उन्हें यकीन दिलाने में मदद करते हुए बताया कि मोहल्ला क्लिनिक को उन्होंने ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से सफलतापूर्वक उच्चस्तरीय सुविधा से लेस घोषित कर दिया है और अब UNESCO ने भी उसे सर्वश्रेष्ठ मोहल्ला क्लिनिक घोषित किया है।
केजरीवाल से पहले विधायकों ने कुमार विश्वास को दिया था घूँसा खाने का ऑफर
घूँसा खाने के बाद केजरीवाल जी की लोकप्रियता और TRP में रातों-रात उछाल आने के बाद एक दूसरी बड़ी खबर सामने आई है। हिंदी के मशहूर कवि और अरविन्द केजरीवाल को आत्ममुग्ध बौना बताने वाले कुमार विश्वास ने दावा किया है कि विधायकों ने घूँसा खाने का ऑफर पहले उन्हें दिया था। मीडिया के अनुसार, आम आदमी पार्टी विधायकों ने कुमार विश्वास से छीनकर यह अवसर केजरीवाल को ये कहकर सौंपा गया कि पार्टी की सदस्यता वाले दस्तावेजों में हर सनसनी पर पहला अधिकार केजरीवाल का बताया गया है। हालाँकि, कुमार विश्वास के इस दावे की सत्यता की पुष्टि अभी फॉल्ट न्यूज़ द्वारा होनी बाकी है।
अपनी आँखों से मोहल्ला क्लिनिक में गाय को अपने परिवार के साथ जुगाली करता साक्षात् देखकर अरविन्द केजरीवाल ने मीडिया को बताया कि मोहल्ला क्लिनिक की यह वास्तविक तस्वीर मीडिया द्वारा दिखाई गई तस्वीरों से कहीं अधिक सुंदर है।
रिपोर्ट्स लिखे जाने तक केजरीवाल जी के घावों पर नमक पानी की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी थी। उन्होंने बताया कि गायों द्वारा उनके उपचार की सिफारिश नकारने से वो नाराज नहीं हैं। उन्होंने इस बात की तसल्ली जताई है कि गायों ने आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री गोभक्त कमलनाथ से ज्यादा तरक्की हासिल कर डाली है।
उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर की मौत से पर्दा उठ गया है। पुलिस और क्राइम ब्रांच ने मिलकर इस मामले को सुलझा लिया है। ताज़ा सूचना के अनुसार, गिरफ़्तारी के बाद हुई पूछताछ में उनकी पत्नी अपूर्वा शुक्ला ने सारे राज़ खोल दिए। बार-बार बयान बदलने के कारण पुलिस की शक की सूई पहले से ही अपूर्वा पर घूम रही थी। पुलिस द्वारा सख्ती से की गई पूछताछ में अपूर्वा ने सब कुछ उगल दिया। झगड़े का कारण यह था कि रोहित ने एक महिला के साथ शराब पी थी और अपूर्वा को यह बात नागवार गुज़री। इस बात को लेकर दोनों के बीच हाथापाई हुई और इसमें रोहित का गला दबा दिया गया। घर का सीसीटीवी भी ख़राब था। इससे पुलिस को पता चल गया कि इसमें घर के ही किसी व्यक्ति का हाथ है। एक और चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि अपूर्वा ने हत्या के बाद अपने मोबाइल फोन को फॉर्मेट किया था।
वारदात के दौरान घर में 6 लोग थे। न कोई अंदर आया और न कोई बाहर गया। इसका सीधा अर्थ यही था कि घर के ही किसी व्यक्ति ने हत्या की है। एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि वही सीसीटीवी कैमरे ख़राब मिले जिनसे मौत का राज़ खुल सकता था। इन दोनों कैमरे में रोहित का बेडरूम और दरवाजा देखा जा सकता था लेकिन यही दोनों बंद मिले। मौत के बाद रोहित के मोबाइल से कॉल करने की कोशिश की गई थी। अपूर्वा अंतिम व्यक्ति थी, जो रोहित के कमरे में गई थी। पुलिस इस बात की खोज करने में लगी है कि घर के नौकरों व अन्य काम करने वाले लोगों की इस क़त्ल में कोई भूमिका है या नहीं। जाँच में यह बात भी सामने आई है कि यह हत्या योजना बनाकर नहीं की गई, अचानक किसी बात को लेकर की गई।
जाँच अभी 2 दिन और चलेगी। वैज्ञानिक व फॉरेंसिक कड़ियों को जोड़कर सारी बातें सामने लाई जाएगी। जहाँ अपूर्वा को शक है कि अन्य महिला के साथ रोहित के सम्बन्ध थे, रोहित की माँ ने अपूर्वा के विवाह पूर्व किसी अन्य व्यक्ति से सम्बन्ध होने की बात कही थी। रोहित की माँ तिलक लेन स्थित अपने सरकारी आवास में रहती हैं। रोहित ने जिस महिला के साथ शराब पी, उसका नाम कुमकुम है। कहा जा रहा है कि अपूर्वा ने एक हाथ से रोहित का गला दबाया और एक हाथ से उसका मुँह दबाया, जिससे उसकी मौत हो गई। यानी रोहित की हत्या सोते वक़्त नहीं बल्कि जागते वक़्त की गई। हत्या के बाद रोहित के फोन से कुमकुम को ही कॉल किया गया था। अपूर्वा के नाख़ून और बालों के सैम्पल को जाँच के लिए भेजा गया है।
इससे पहले हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि किसी नौकर ने देखा कि रोहित की नाक से ख़ून निकल रहा था। इसकी जानकारी उनकी माँ और मैक्स अस्पताल को दी गई। पुलिस का सीधा सवाल है कि एक व्यक्ति 16 घंटे तक सोया रहता है और घर में कोई उसकी सुध भी नहीं लेता, क्यों? एक अन्य ख़बर में हमने जिक्र किया था कि कैसे सीसीटीवी फुटेज के अनुसार, रात 1:30 बजे अपूर्वा नीचे से पहली मंजिल पर स्थित रोहित के कमरे में जाते हुए दिखाई देती हैं। इसके ठीक एक घंटे बाद रात 2.30 बजे वह पहली मंजिल से भूतल पर आते दिख रही हैं। अपूर्वा बार-बार अपना बयान बदल रही थी और रोहित की माँ उज्ज्वला ने अपनी बहू पर कई आरोप लगाए थे, ये भी हमने एक अलग ख़बर में बताया था।