Sunday, September 29, 2024
Home Blog Page 5317

600 वामपंथी कलाकारों के विरोध पर भारी रजनीकांत का BJP संकल्प-पत्र को समर्थन, किया वाजपेयी को याद

सुपरस्टार रजनीकांत ने भाजपा के घोषणापत्र की प्रशंसा की है। बता दें कि भाजपा द्वारा ज़ारी किए गए ‘संकल्प पत्र’ में कहा गया है कि जल प्रबंधन के लिए एक नया मंत्रालय बनाया जाएगा। सामाजिक मुद्दों पर हमेशा से मुखर रजनीकांत ने भाजपा द्वारा नदियों को जोड़ने की घोषणा का स्वागत किया है। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में लिखा है कि नया जल प्रबंधन मंत्रालय देश के अलग-अलग हिस्सों में देश की बड़ी नदियों को जोड़ने का अटल जी का सोचा हुए महत्वकांक्षी कार्यक्रम को द्रुत गति से आगे बढ़ाएगा, जिससे कि पीने योग्य पानी और सिंचाई समस्या का समाधान हो। साथ ही भाजपा ने ‘जल जीवन मिशन’ के तहत ‘नल से जल’ कार्यक्रम के माध्यम से 2024 तक हर घर को नल का पानी उपलब्ध कराने की बात कही है।

भाजपा के ‘संकल्प पत्र’ में जल शक्ति

जल के क्षेत्र में इस तरह के कार्यों की घोषणा से ख़ुश 69 वर्षीय सुपरस्टार ने कहा कि वो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल से ही नदियों को जोड़ने (Interlinking of the Rivers) वाली परियोजना के लिए वकालत करते आए हैं। उन्होंने कहा कि अटल जी ने उनकी इस सलाह को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा “भाजपा ने इस योजना को चालू करने की बात कही है। अगर ऐसा होता है तो जनता ख़ुश होगी।” रजनीकांत ने कहा कि इससे किसानों को तो फ़ायदा होगा ही, साथ ही ग़रीबी मिटाने में भी ये सहायक सिद्ध होगा।

पिछले 6 महीनों में अपनी दो फ़िल्मों (2.0, पेट्टा) से भारतीय सिनेमा को एक हज़ार करोड़ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन दे चुके रजनीकांत के इस बयान को उन 600 कलाकारों के बयान पर भारी माना जा रहा है, जिन्होंने भाजपा के ख़िलाफ़ वोट देने की अपील की है। हालाँकि, रजनीकांत ने आगामी चुनाव में किसी भी पार्टी का समर्थन न करने की भी बात कही है लेकिन उन्होंने राज्य की जनता से उसी पार्टी को वोट देने को कहा जो जल संकट का स्थायी हल निकाल सके।

बता दें कि अमोल पालेकर और नसीरुद्दीन शाह सहित 600 कलाकारों, लेखकों और थिएटर से जुड़े लोगों ने पत्र लिखकर भाजपा को सत्ता से बाहर करने की अपील की है। संयुक्त बयान में इन कलाकारों ने कहा:

“आज भारत का विचार ख़तरे में है। आज गीत, नृत्य और हँसी ख़तरे में है। आज हमारा प्रिय संविधान ख़तरे में है। सरकार ने उन संस्थानों का दम घोंट दिया है जहाँ तर्क, बहस और असंतोष पर बात हो सकती थी। लोकतंत्र का सबसे कमज़ोर व्यक्ति हाशिए पर है। उसे सशक्त बनाना होगा। किसी भी लोकतंत्र में सवाल, बहस होनी चाहिए। लोकतंत्र जीवंत विपक्ष के बिना काम नहीं कर सकता। लेकिन मौजूदा सरकार इस सब को नष्ट कर रही है।”

अगर प्रोफेसनल फ्रंट पर बात करें तो रजनीकांत अभी अपनी फ़िल्म ‘दरबार’ की तैयारी में व्यस्त हैं। अक्षय कुमार की ‘हॉलिडे’ और आमिर खान की ‘गजनी’ का निर्देशन कर चुके प्रसिद्ध निर्देशक एआर मुर्गदास इस फ़िल्म के डायरेक्टर हैं। दक्षिण भारत की लोकप्रिय अभिनेत्री नयनतारा इस फ़िल्म में उनके साथ काम करेंगी। नयनतारा उनके साथ ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘चंद्रमुखी (2006)’ में भी काम कर चुकी हैं। कल इस फ़िल्म का फर्स्ट लुक जारी किया गया, जो दिन भर सोशल मीडिया में टॉप पर ट्रेंड होता रहा। इस फ़िल्म में रजनी 25 वर्षों बाद एक पुलिस अधिकारी के किरदार में दिखेंगे।

YouTube पर नंबर #1 हैं इंडियन: इस्तेमाल में अमेरिका को पछाड़ा, सस्ते टैरिफ़ और किफ़ायती मोबाइल का कमाल

भारत में काफ़ी सस्ते मोबाइल डेटा और क़िफ़ायती स्मार्टफोन से YouTube को ज़बरदस्त लाभ मिला है। अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत अब YouTube का सबसे बड़ा और तेज़ी से बढ़ रहा बाज़ार बन गया है। सीखने के साथ-साथ शिक्षा, संगीत, स्वास्थ्य, खाना पकाने जैसे विविध विषयों पर स्थानीय भाषाओं में जानकारियों के उपयोग से YouTube का इस्तेमाल पहले की तुलना में दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

YouTube अमेरिका की दिग्गज टेक कंपनी Google का हिस्सा है। कंपनी के एक अधिकारी ने TOI को बताया कि फ़िलहाल भारत में उसके 26.5 करोड़ सब्सक्राइबर हैं। उन्होंने बताया कि YouTube पर 95 फ़ीसदी वीडियो की खपत टियर 2 और टियर 3 शहरों में स्थानीय भाषाओं में हो रही है।

सितंबर 2016 में मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो द्वारा मोबाइल सेवाओं की शुरुआत के बाद से भारत में डेटा टैरिफ दुनिया में सबसे कम क़ीमत में उपलब्ध है। वहीं अगर मात्र 2-3 साल पहले की बात की जाए तो 1 जीबी डेटा के लिए ₹100 का भुगतान करना पड़ता था, लेकिन अब 1 जीबी डेटा की क़ीमत ₹10 से भी कम है।

भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। औसतन बात करें तो जहाँ 2016 तक कुछ सौ एमबी डेटा की ही खपत प्रति मोबाइल होती थी, वहीं अब अनुमानित तौर पर एक मोबाइल यूज़र हर महीने 10 जीबी डेटा का इस्तेमाल करता है।

YouTube के अधिकारियों ने कहा कि YouTube पर भारतीय सामग्री की विविधता से संबंधित जानकारी जुटाने वालों की संख्या पहले कभी भी इतनी अच्छी नहीं रही। कम लागत वाले डेटा के साथ, संगीत, तकनीक, सौंदर्य, स्वास्थ्य, फिटनेस, नृत्य और कुकिंग जैसे विविध विषयों की जानकारियों जुटाने वाले यूज़र्स की संख्या में अब लगातार बढ़त देखी गई है।

2018 में, लर्निंग और शिक्षा सामग्री भारत में YouTube पर सबसे तेज़ी से विकसित होने वाली श्रेणियों में से एक बन गई, जिसके तहत विश्व स्तर पर YouTube पर प्रतिदिन एक बिलियन से अधिक यूज़र्स अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

YouTube की सीईओ सुजैन वोजसिकी ने बताया कि भारतीय अब इस वीडियो प्लेटफॉर्म पर दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते दर्शकों में से एक हैं। YouTube आज यूज़र्स की पहली पसंद बन गया है, फिर चाहे वो मनोरंजन हो या किसी विषय पर जानकारी जुटाना।

नेहरू और भारत एक भैंस: श्वेत-धवल बगुलों के सरगना का सिलसिला बदस्तूर जारी

चीन ने 1957 से ही भारत की सीमा में अतिक्रमण करना शुरू कर दिया था। नेहरू को पीएमी क्योंकि खैरात में मिल गई थी इसलिए वे उसे भरपूर एन्जॉय कर रहे थे।

उस दौर में एक फ़िल्म आई थी ‘आवारा’ जिसमें एक ड्रीम सॉन्ग था, जिसे भारतीय फिल्मों का पहला ड्रीम सॉन्ग भी कहा जाता है – “घर आया मेरा परदेसी”, राजकपूर और नरगिस पर फिल्माया गया था।

दीन-दुनिया से दूर स्वप्न लोक का यह गीत, लोगों को बहुत पसंद आया था, और उन लोगों में जवाहर लाल नम्बर वन थे, इसलिए वे भी पड़े-पड़े ऐसे ही ख्वाब देखते थे। कभी कभी तो ख़्वाबों के भीतर भी ख़्वाब की एक ऐसी दुनिया गढ़ते थे, जिसमें न अमेरिका का दखल हो न रूस का, बस मैं (मतलब नेहरू), नासिर (इजिप्ट वाले) और यूगोस्लाविया वाले टीटो हों और इस दुनिया का नाम ‘गुटनिरपेक्ष’ हो।

जब नहर वाले पंडित जी यह एडवेंचर कर रहे थे, तब पाकिस्तान; अमेरिका के पाले में घुसकर खुद को सामरिक और आर्थिक तौर पर मजबूत कर रहा था। इसकी परिणति 1964 में नेहरू के गुजरने के साल भर बाद हुए भारत-पाक युद्ध के रूप में हुई। जब हम पाक के सामने बैकफुट पर थे, किन्तु वह युद्ध हम शास्त्री की सेना को खुली छूट और भारतीय सेना की जीवटता से ही जीत सके थे।

बहरहाल, जब चीन सीमा से उस दौर में अतिक्रमण, घुसपैठ की खबरें आतीं तो उसकी रिपोर्ट नेहरू के सामने पेश की जाती। नेहरू उसको देखते और उस पर ‘फ़ाइल’ लिखकर वापस भेज देते, जिसका मतलब था कि इसे चीन वाली फ़ाइल में लगा दो। बाद में यह ऐसा रूटीन बन गया कि अधिकारी बिना नेहरू को दिखाए इस तरह की खबरें चीन वाली फ़ाइल में लगा देते थे। उस वक्त राजनीतिक गलियारों में यह मजाक भी चल पड़ा था कि जिस समस्या का समाधान नहीं करना हो उसे नेहरू के दफ्तर में मौजूद चीन फ़ाइल में नत्थी कर दो।

दरअसल नेहरूवाद की चर्चा करने वाले लोग नेहरू की अंग्रेजियत, नफासत, स्वैग, ठाठ, अमीरी और उनके ख़ानदानी रूवाब पर न्यौछावर हो जाते हैं। वे नेहरूवाद का जिक्र करते समय नेहरू की गवर्नेंस की बात नहीं करते हैं।

नेहरू की गवर्नेंस क्या थी, हम संक्षिप्त में समझ लेते हैं। कश्मीर में घुसपैठ हो गई, हमारी सेना निर्णायक मोड़ पर दुश्मन को खदेड़ रही है, हम जीतने वाले हैं; तभी इस सीन में नेहरू का प्रवेश डायलॉग के साथ होता है; “हम इस समस्या को खुद नहीं हल करेंगे, लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में, हम गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिरमौर देश हैं, इसलिए हम इस समस्या को UNO ले जाएँगे, और अपनी जीती हुई बाजी को हारने के लिए खेलेंगे।” वह साल और आज का दिन हम दुनिया और पाकिस्तान के सामने UN के उसी रेज़ोल्यूशन के आगे कच्चे पड़ जाते हैं, जहाँ हमें बतौर कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए कहा गया है।

नेहरू का गवर्नेंस मॉडल भारत के शासकों के लिए ऐसी नजीर बना कि नेहरू से लेकर वाजपेयी तक कोई भी इसके इंद्रजाल से अछूता नहीं रह सका। और जब वाजपेयी ने कश्मीर समस्या के सन्दर्भ में इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का वाहियात राग अलापा था, तब वस्तुत: वे अपने राजनीतिक गुरु नेहरू को एक सच्ची श्रद्धांजलि ही दे रहे थे।

इसी प्रकार शासन का नेहरू मॉडल कश्मीर में भारत से अलग होने की माँग करने वाले लोगों से निपटने का क्या समाधान बताता है, देखिए जरा! नेहरू पुराण के अनुसार समस्या के समाधान से भी जरूरी है, उस समस्या को खाद-पानी देना, इसलिए सबसे पहले उस समस्या को एक संस्था बनाओ, और उसी तर्ज पर कश्मीर में भारत को गाली देने वाले और पाकिस्तान से जा मिलने के लिए बेकरार लोगों को ‘अलगाववादी’ नाम दे दिया गया। और मजेदार बात यह है कि भारत की सरकारें इन्हें किसी सेपरेट देश के प्रतिनिधियों की तरह ट्रीट भी करती हैं। क्यों! क्योंकि नहर वाले पंडित जी का मान जो रखना है।

इसी प्रकार भारत के नक्सलबाड़ी जिले में कुछ लोग सिस्टम और राज्य के खिलाफ़ विद्रोह कर देते हैं! अब इनका क्या किया जाए! करना क्या है, सारा काम नेहरू ही थोड़े करेगा और 2014 में मोदी भी तो पीएम बनेगा इसलिए नेहरू जी क्या करेंगे! वे इस समस्या का नामकरण ‘नक्सलवादी समस्या’ करके दुनिया से निकल लेंगे, बाद में… बाद में जो पीएम बनेगा अपने आप भुगतता रहेगा।

पंजाब में कुछ लोग देश के खिलाफ उग्र हो रहे हैं, नेहरू जी का नाम लो और इनको ‘उग्रवादी’ नाम दे दो।

देश में गरीब हैं, गरीबी है। कैसे निपटा जाए इनसे… इसका भी लोड मत लो ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाओ और मस्त रहो। और आज जबकि 1969 में शुरू की गई इस योजना के 50 साल पूरे हो रहे हैं तब आपको मानना ही पड़ेगा कि नेहरू; राजकपूर से भी बड़े शो मैन और छलिया थे।

कभी-कभी लिखते-लिखते या तो मैं थक जाता हूँ, या फिर भटक जाता हूँ, इसलिए नेहरू गाथा को यहीं विराम देना चाहूँगा, आज कर्नाटक के चित्रदुर्ग में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का जिक्र करके।

पीएम मोदी अमूमन जब दक्षिण में होते हैं, तो उनकी सभाओं में एक अनुवादक होता है, जो तमिल, तेलुगू, कन्नड़ या मलयालम में सम्बन्धित राज्य के अनुसार भाषण का अनुवाद जनता तक पहुँचाता है।

पर आज मोदी जब चित्रदुर्ग में भाषण दे रहे थे, तब उनके हिन्दी में दिए जा रहे भाषण का कोई अनुवादक नहीं था। वे जो भी बोल रहे थे, उस पर लोगों का रिएक्शन वैसे ही था, जैसे हिन्दी भाषी राज्यों में होता है, और जब उन्होंने बालाकोट का जिक्र किया तो जनता के बीच से उठने वाला शोर यह बता रहा था कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जिसमें इस देश को जोड़ने की क्षमता है लेकिन नेहरू ने यह भी नहीं होने दिया।

संविधान लागू होने के दस साल बाद जब हिन्दी को देश की सम्पर्क भाषा बनाने का समय आया तो देश के गैर हिन्दी क्षेत्रों में इसका विरोध हुआ, नेहरू इस विरोध को हैंडल नहीं कर पाए, उन्होंने हिन्दी को इस दौरान खासकर दक्षिण भारत में विलेन बनने दिया और हिन्दी देश की भाषा बनने से हमेशा-हमेशा के लिए चूक गई।

और इसलिए मैं जब भी कॉन्ग्रेसियों की तुलना भैंस के ऊपर बैठे बगुले के रूप में करता हूँ तो नीचे से लेकर ऊपर तक श्वेत-धवल नेहरू को इन सभी बगुलों के सरगना के तौर पर देखता हूँ। जिसके लिए भारत एक ऐसी भैंस थी, जिसका उपयोग उन्होंने पहले ख़ुद के लिए और बाद में अपने खानदान के लॉन्च होने के लिए किया और यह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है।

गौतम गंभीर के छक्कों से तिलमिलाई महबूबा ने उन्हें Twitter पर किया ब्लॉक

सोशल मीडिया पर पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज़ गौतम गंभीर और जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती के बीच तीखी नोंकझोंक हुई। दरअसल, ये सब शुरू हुआ फ़ारूक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती के ख़िलाफ़ दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाख़िल करने के बाद। दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फ़ारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ़्ती को लोकसभा चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने की माँग की गई। वकील संजीव कुमार द्वारा दायर इस याचिका में इन तीनों नेताओं के हालिया देश-विरोधी बयानों के मद्देनज़र इन्हें चुनाव लड़ने से रोकने की माँग की गई। याचिका में कहा गया है कि इन तीनों नेताओं की निष्ठा देश के संविधान के प्रति न होकर किसी और के लिए है।

इस जनहित याचिका से बौखलाई महबूबा मुफ़्ती ने ट्विटर पर अनाप-शनाप बकना शुरू कर दिया। महबूबा ने लिखा कि अदालत में समय बर्बाद करने से क्या फ़ायदा? उन्होंने दावा किया कि भाजपा द्वारा धारा 370 हटाने के साथ ही जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान लागू नहीं होगा। ऐसे में वो लोग स्वतः ही चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएँगे। इसके बाद उन्होंने पूरे भारत को धमकी देते हुए लिखा, “ना समझोगे तो मिट जाओगे हिन्दुस्तान वालों, तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में।

इसके बाद गौतम गंभीर कहाँ चुप रहने वाले थे। हाल ही में भाजपा में शामिल हुए पूर्व भारतीय ओपनिंग बैट्समैन ने महबूबा की गेंद को ऐसे ही छक्के के लिए उठाया, जैसे उन्होंने 2007 टी-20 वर्ल्ड कप फाइनल में बेसबॉल स्टाइल में पाकिस्तानी गेंदबाज़ उमर गुल की गेंद को लेग साइड के ऊपर से छक्के के लिए भेजा था। दिल्ली रणजी टीम, भारतीय टीम और कोलकाता नाइट राइडर्स की कप्तानी कर चुके गौतम ने महबूबा मुफ़्ती को याद दिलाया था कि ये भारत देश है, उनकी तरह कोई धब्बा नहीं जो मिट जाए।

फिर क्या था, महबूबा मुफ़्ती ने अपने ख़राब क्रिकेट ज्ञान का परिचय देते हुए गंभीर को नसीहत दे डाली कि कहीं उनका राजनीतिक करियर भी उनके क्रिकेट करियर की तरह बहुत बुरा न हो। लगातार पाँच मैचों में टेस्ट शतक जड़ने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके गंभीर भी कहाँ चुप रहने वाले थे। उन्होंने महबूबा को तड़ाक से जवाब दिया कि क्या उन्हें 10 घंटे सिर्फ़ यही जवाब देने में लग गए? वर्ल्ड कप 2011 के फाइनल में दो विकेट गिरने के बाद जब टीम मुश्किल में थी, तब तीन घंटे से भी अधिक समय तक टिककर श्रीलंकाई गेंदबाज़ों की ख़बर लेने वाले गौती ने महबूबा की व्यक्तित्व में गहराई की कमी बताते हुए उनसे कहा कि यही कारण है कि वे लोग (कश्मीरी नेता) आज तक इस समस्या का हल नहीं निकाल पाए।

इसके बाद तिलमिलाई महबूबा मुफ़्ती ने गंभीर की मानसिक हालत पर कमेंट करना शुरू कर दिया। उन्होंने गंभीर पर उनका पीछा करने और ट्रोल करने का आरोप मढ़ा। उन्होंने कहा कि गंभीर कश्मीर के बारे में कुछ नहीं जानते। उन्होंने गंभीर के ट्वीट की क़ीमत दो रुपए लगाते हुए ब्लॉक कर दिया। महबूबा द्वारा ब्लॉक किए जाने पर गंभीर ख़ुश ही नज़र आए और उन्होंने कहा कि ऐसे बेदिल इंसान द्वारा उन्हें ब्लॉक करना अच्छी बात है। हालाँकि, उन्होंने महबूबा से पुछा कि वो 135 करोड़ भारतीयों को कैसे ब्लॉक करेंगी?

बता दें कि महबूबा समय-समय पर ऐसी धमकी देती आई हैं और आजकल कश्मीर के सारे नेता देश-विरोधी बयान दे रहे हैं। महबूबा ने हाल ही में कहा था कि अगर धारा 370 से छेड़छाड़ की गई तो पूरा देश जल कर खाक हो जाएगा। उस से पहले उन्होंने कहा था कि अगर 370 हटाया गया तो कश्मीर के लोग न जाने कौन सा झंडा उठाने को मज़बूर हो जाएँगे।

आचार संहिता लागू है, हम क्या करें: इनकम टैक्स की रेड पर बोले गृहमंत्री राजनाथ सिंह

इनकम टैक्स विभाग और ED ऑफिस द्वारा पिछले एक सप्ताह के अंदर मध्य प्रदेश के अलावा कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी विभिन्न राजनेताओं और उनके करीबी सहयोगियों के खिलाफ अवैध रूप से जमा की गई संपत्ति और पैसे की तलाशी के लिये छापेमारी की गई है। हमेशा की तरह ही विपक्ष द्वारा इसे जबरदस्ती की गई कार्रवाई बताया जा रहा है। हालाँकि, करोड़ों में बरामद की जा रही बड़ी रकमों के बाद भी इसे कॉन्ग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने सत्तारूढ़ भाजपा के उकसावे पर की गई कार्रवाई बताया है।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष के लगाए आरोपों पर जवाब देते हुए कहा, “ये छापेमारी एजेंसी अपने इनपुट के आधार पर कर रही है। इसमें केंद्र सरकार का किसी तरह का हाथ नहीं है। सरकार को दोष देना गलत बात है। ऐसा कई वर्षों से हो रहा है, आज अचानक तो शुरू नहीं हुआ है। इसके पीछे की तरह की राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया गया है। देश में आचार संहिता लागू है। हम क्या करें?”

राजनाथ सिंह ने अपने इंटरव्यू में कहा, “आज जो एजेंसी रेड कर रही है, वो पहले भी करती रही हैं। उनके ऊपर आचार संहिता लागू नहीं होता है। जहाँ से उन्हें जो इनपुट मिलता है, उस आधार पर वे कार्रवाई करते हैं। हम उनको कैसे रोके। यदि किसी ने गलत पैसा इकट्ठा कर रखा है, गलत तरीके से उसका उपयोग करना चाहता है, तो ऐसे में ये स्वतंत्र संगठन अपनी-अपनी जिम्मेदारी संभालते हुए कार्रवाई कर रहे हैं। इस छापेमारी को लेकर केंद्र सरकार को दोष देना उचित नहीं होगा और सरकार के साथ न्याय भी नहीं होगा। यह एक सतत प्रक्रिया है। यदि कोई मानता है कि किसी के कहने पर हो रहा है, यह कहना न्यायसंगत नहीं होगा। गृहमंत्रालय सिर्फ उपलब्धता के आधार पर केंद्रीय सुरक्षाकर्मियों को सहायता के लिए भेजता है।”

चुनाव आयोग ने आयकर विभाग की पिछले 2 दिनों से जारी छापेमारी को कॉन्ग्रेस द्वारा सत्तारूढ़ भाजपा के उकसावे पर की गयी कार्रवाई बताए जाने संबंधी आरोपों पर संज्ञान लेते हुय राजस्व सचिव और केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अध्यक्ष से विस्तृत जानकारी माँगी है। रविवार (अप्रैल 07, 2019) को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी सहयोगियों के ठिकानों पर छापेमारी की कार्रवाई, जिसमें ₹281 करोड़ की बेहिसाब नकदी के बाद भी आयोग ने वित्त मंत्रालय को इस बारे में सख्त परामर्श जारी किया था। इसमें आयोग ने मंत्रालय से उसकी जाँच एजेंसियों की चुनाव के दौरान कोई भी कार्रवाई निष्पक्ष और भेदभाव रहित होने निर्देश दिया था। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए इस तरह की कार्रवाई से पहले आयोग से भी संपर्क करने को कहा था।

काँचा इलैया जी, धूर्तता से सने शब्दों में आपका ब्राह्मण-विरोधी रेसिज़्म निखर कर सामने आता है

ओबीसी समुदाय में पैदा होने के बाद भी दलित पहचान जबरिया हड़पने वाले काँचा इलैया शेफर्ड ने ‘द वायर’ में लिखा, ‘मोदी की तरह चौकीदार बनने से इंकार कर सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी जातिवादी-ब्राह्मणवादी मानसिकता जताई!’

और ब्राह्मणवाद को (और इसके बहाने ब्राह्मणों को) गरियाना इतना जरूरी हो गया कि जो वायर मोदी को संघ के ‘गुंडा हिन्दूवाद’ का वाहन बताता था, वही आज मोदी को ‘ब्राह्मणवादी’ भाजपा के अन्दर ‘बेचारा’ दिखाने को तैयार हो गया। मतलब ब्राह्मणों के प्रति नफरत फैलानी इतनी जरूरी है कि मोदी से सहानुभूति भी चलेगी?

हार्वर्ड, कैम्ब्रिज, और हार्ड वर्क- तीनों से ज्यादा बड़ा होता है परिप्रेक्ष्य

काँचा इलैया शुरू में ही हमें याद दिलाते हैं कि कैसे मोदी ने एक बार ‘हार्ड वर्क’ (परिश्रम) को हार्वर्ड (विश्वविद्यालय) से बड़ा बताया था, और बताते हैं कि आज हार्वर्ड से पढ़े सुब्रमण्यम स्वामी मोदी का अपमान कर रहे हैं। तो काँचा इलैया जी, परिप्रेक्ष्य देखिए, परिप्रेक्ष्य। मोदी ने ‘हार्वर्ड’ नाम के पीछे केवल अमर्त्य सेन या पी चिदंबरम को नहीं घेरा था बल्कि अपने आलोचकों की उस पूरी लॉबी को निशाने पर लिया था जिनका मोदी का विरोध करने के लिए एक ही तर्क था, ‘हम हार्वर्ड (या ऐसे ही ‘एलीट’ विश्विद्यालय) से पढ़े हैं/में पढ़ाते हैं, इसलिए हमारी बात ‘अनपढ़’ मोदी से बेहतर है…’

वहीं यहाँ इस मसले में सुब्रमण्यम स्वामी ने कहीं भी अपने ‘हार्वर्डत्व’ का हवाला नहीं दिया। ऐसे में आपको एक ‘कैची हेडलाइन’ देने के अलावा इस “हार्वर्ड-हार्ड वर्क” की हाय-हत्या का यहाँ कोई काम नहीं था।

रही बात जो आप मणिशंकर अय्यर के ‘कैम्ब्रिज वाला ब्राह्मण’ होकर मोदी के चायवाले होने के अपमान की बात करते हैं, तो यह भी मणिशंकर अय्यर का दोष था- न कैंब्रिज का, न उनके ब्राह्मण घर में पैदा होने का।

आइए मूल मुद्दे पर- ब्राह्मणों से racist नफरत

काँचा इलैया जी, आपके अनुसार सुब्रमण्यम स्वामी का कथन समूची भाजपा और वृहद् संघ परिवार में मौजूद ‘जातिवादी’ मानसिकता का सबूत है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि डॉ स्वामी कुछ मामलों में पुराने ख्यालात के हैं- वह समलैंगिकता के सार्वजनिक प्रदर्शन पर भी आपत्ति खुल कर जता चुके हैं, पर इसे पूरे एक राजनीतिक दल से आपने किस आधार पर जोड़ दिया?

क्या भाजपा में और किसी ने अपने ट्विटर हैंडल को बदलने से इस आधार पर इंकार किया कि उसके जन्मना-वर्ण में चौकीदारी नहीं हो सकती?

आप संघ को भी लपेटे में ले लेते हैं। क्या संघ चुनाव लड़ रहा है?

‘मैं भी चौकीदार’ राहुल गाँधी के भाजपा पर एक राजनीतिक आरोप के जवाब में शुरू किया गया था। क्या राहुल गाँधी ने संघ पर ‘चोरी’ का आरोप लगाया था?

संघ खुद को एक सांस्कृतिक संगठन कहता है- वह भाजपा ही नहीं, करीब दर्जन भर अनुषांगिक संगठनों के चलने के लिए मार्ग की सलाह भर देता है। क्यों बदले ट्विटर हैंडल वह, या उसके स्वयंसेवक?

इसके अलावा, अगर आप कथनों के आधार पर ही चलना चाहते हैं तो आपको यह पता है या नहीं कि मोदी प्रशासन में लाख मीन-मेख निकालने के बाद भी सुब्रमण्यम स्वामी मोदी को ही एस देश की इकलौती उम्मीद बताते हैं आगामी चुनावों में। कौन जातिवादी ऐसा करता है?

और अगर एक मिनट के लिए सुब्रमण्यम स्वामी को ‘दुष्ट जातिवादी-ब्राह्मणवादी’ मान भी लिया जाए, तो सुब्रमण्यम स्वामी के ऐसे होने से भाजपा-संघ के और इस देश के सभी ब्राह्मण सुब्रमण्यम स्वामी जैसे ही हो गए? ऐसे तो आप पत्रकारिता के जिस समुदाय विशेष में घूम रहे हैं, उसके काले कारनामों की फेहरिस्त के चलते सभी पत्रकारों को बौद्धिक रूप से दिवालिया और नैतिक रूप से पतित मान लिया जाए?

और ब्राह्मणों को आप इतना गरिया ही रहे हैं तो एक बात यह भी बताइए – अगर पुरानी जाति व्यवस्था ब्राह्मणों ने ही अपने स्वार्थ और एकाधिकार के लिए बना रखी थी तो केवल ब्राह्मणों से ही फटेहाल-कंगाल होने की उम्मीद क्यों होती थी पुरातन काल में? क्यों उनके भिक्षावृत्ति के अलावा हर अन्य प्रकार से धनोपार्जन पर रोक थी? क्यों हर अपराध में उन्हीं के लिए सबसे ज्यादा समय तक के कारावास का निर्धारण था? क्यों ‘स्वादिष्ट’ माँस-मछली-मदिरा केवल उन्हीं के लिए अभक्ष्य था? आज भी बिहार निकल जाइए तो ऐसे गाँवों की फ़ेहरिस्त है जहाँ का ब्राह्मण बाकी जगह दलित (यानि दबाया हुआ) कहलाने वाले समुदाय से ज्यादा बदहाल है।

इसके अलावा और सबूत चाहिए तो अपने (छद्म)-उदारवादी गैंग के आधे-दुलारे शशि थरूर की किताब ‘Era of Darkness’ का चौथा चैप्टर ‘Divide et Impera’ पढ़ लीजिए, कि कैसे वह अंग्रेज थे जिन्होंने जाति को एक गतिमान, परिवर्तनशील सामाजिक व्यवस्था से एक रूढ़ियों में जकड़ी उत्पीड़न व्यवस्था में बदल दिया।

सच्चाई यह है कि पुरानी वर्ण-व्यवस्था में जकड़न से बनी जाति-व्यवस्था में सभी जातियों के लिए किसी न किसी प्रकार की समस्या निहित थी। इसीलिए आज उसे पीछे छोड़ समाज आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। यह सच है कि एक समय (पाँच हजार साल पहले से नहीं, केवल अंग्रेजों की मौजूदगी वाली कुछ सदियों में) कुछ जातियों ने अन्य जातियों का सामाजिक उत्पीड़न किया, यह भी सच है कि कुछ स्थानों पर यह आज भी जारी है। पर आज का समाज इन्हें प्रश्रय या बढ़ावा नहीं दे रहा, इनका प्रतिकार और उन्मूलन कर रहा है।

पर आपके जैसे लोग हैं असली जातिवादी, जो अपनी NGO-वादी, victimology पर आधारित मुफ़्त की रोटी बचाने के लिए जाति का मसला ख़त्म नहीं होने देना चाहते। आपके जैसे लोग एक-दो साल के लिए अपने सुर या तो बदल दें या शांत हो जाएँ जातिवाद प्राकृतिक मौत मर जाएगा।

फैक्ट चेक: क्या कामरेड कन्हैया के लिए बेगूसराय में वोट माँग रही हैं कॉन्ग्रेस MLA अदिति सिंह?

नई वाली राजनीति के नाम पर नए-नए काण्ड रचकर चर्चा में बने रहने वाले JNU के विद्यार्थी कन्हैया कुमार पहले व्यक्ति नहीं हैं। इससे पहले आम आदमी पार्टी अध्यक्ष और दिल्ली के CM अरविन्द केजरीवाल जी भी नई वाली राजनीति के नाम पर जनता को अच्छे चुटकुले सुना चुके हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 में इस बार बिहार का बेगूसराय खासा चर्चाओं में है। लोगों के मेहनत की कमाई से कटने वाले टैक्स के रुपयों द्वारा मिलने वाली सब्सिडी पर JNU में देशविरोधी नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की बेगूसराय सीट से लोकसभा चुनाव के उम्मीवार हैं। इस सीट से भाजपा नेता गिरिराज सिंह और महागठबंधन के तनवीर हसन भी चुनावी मैदान में हैं।

जबकि आम चुनाव की तारीख एकदम करीब है, ऐसे में मीडिया के विभिन्न स्रोतों में कन्हैया कुमार को लेकर विशेष प्रचार-प्रसार के हथकंडे देखने को मिल रहे हैं। माँ की कसम खाकर वोट माँगने वाले JNU नेता कॉमरेड कन्हैया कुमार और उनके समर्थक सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी पर भी लोकप्रियता बटोरने के लिए अजीबोगरीब हथकंडे इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं, शायद इसी तरह के ‘क्रिएटिव चुनाव प्रचार’ के तरीकों के कारण ही उन पर कुछ दिन पहले बेगूसराय की जनता ने हाथ छोड़कर चुनाव के शुरूआती रुझान की झलक दे डाली थी।

कन्हैया कुमार और उनके समर्थकों ने अपने प्रचार के लिए एक नया क्रिएटिव तरीका ईजाद किया है। सोशल मीडिया पर कन्हैया कुमार के लिए कुछ तस्वीरें बड़े स्तर पर शेयर की जा रही हैं। इन तस्वीरों में ये सन्देश देते हुए शेयर किया जा रहा है कि कॉन्ग्रेस MLA अदिति सिंह बेगूसराय में लोगों से CPI नेता कन्हैया कुमार को वोट देने की अपील कर रही हैं।

वास्तव में कॉन्ग्रेस विधायक अदिति सिंह कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की मम्मी सोनिया गाँधी जी के लिए रायबरेली में चुनाव प्रचार कर रही हैं। लेकिन कन्हैया कुमार के समर्थक सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी पर बड़े स्तर पर यह फेक न्यूज़ फैला रहे हैं कि अदिति CPI नेता कन्हैया कुमार के पक्ष में बेगूसराय की चिलचिलाती धूप में पसीने बहा रही हैं। ख़ास बात यह है कि क्रान्ति ही जीने, क्रान्ति ही खाने-ओढ़ने और पहनने वाले कॉमरेड कन्हैया की चुनावी तैयारी की इन फ़र्ज़ी तस्वीरों को सबसे ज्यादा कॉमरेड चंद्रशेखर के नाम पर बने पुस्तकालय के पेज द्वारा चलाई जा रही है।

वह पुस्तकालय जिसके द्वारा कॉन्ग्रेस के MLA को कन्हैया कुमार के प्रचार के लिए CPI में तदील किया जा रहा है (व्यंग्य)
https://www.facebook.com/story.php?story_fbid=413651115858407&id=100016405666545

इसी तरह की खबरें मीडिया गिरोहों द्वारा आजकल कन्हैया कुमार के पक्ष में हवा बनाने के लिए पढ़ने को मिली हैं, जिनमें बताया जा रहा था कि 10 दिन में कन्हैया कुमार ने 10 लाख रुपए जुटा लिए हैं। व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से आने वाली सूचनाओं के आँकड़ों की प्रमाणिकता हमेशा संदेह का विषय रहती हैं।

समर्थकों का उन्माद अपने नेताओं के प्रति अक्सर देखने को मिलता है, लेकिन कन्हैया कुमार को लेकर कुछ मीडिया गिरोह जज्बाती होकर यह तक भूल गए हैं कि कॉन्ग्रेस MLA CPI नेता के लिए वोट माँगने की अपील करने रायबरेली से बेगूसराय आखिर क्यों जाएगी? जागरूक बनिए और अपने विवेक का परिचय देते हुए ही इस तरह की वायरल तस्वीरों के जाल में यकीन करने से बचिए।

जो राहुल गाँधी खुद घोटालों और झूठ के भार तले दबे हैं, वो मोदी को ‘चोर’ और ‘डरपोक’ कह रहे हैं

केंद्र सरकार पर विपक्ष का हमला लगातार बढ़ता जा रहा है। ममता से लेकर मायावती तक इस समय मोदी सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में प्रयासरत है। इसी कड़ी में राहुल गाँधी जैसी ‘शख्सियत’ ने भी मोदी के लिए डरपोक और चोर जैसे शब्दों का एक बार फिर इस्तेमाल किया है।

प्रधानमंत्री पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए मंगलवार (अप्रैल 9, 2019) को राहुल गाँधी ने अपनी असम रैली में कहा, “नरेंद्र मोदी और उनकी योजनाएँ सिर्फ़ उनके अमीर उद्योगपतियों (मेहुल चॉकसी, नीरव मोदी, अनिल अंबानी) दोस्तों के लिए हैं।”

जानकार हैरानी होगी लेकिन इन दिनों घोटालों और जमीनों की खरीद-फरोख्त के मामलों में बुरी तरह से फँस चुके गाँधी परिवार के ‘चिराग’ ने अपने भाषण में कहा, “चौकीदार सिर्फ़ चोर ही नहीं हैं, बल्कि डरपोक भी हैं। क्योंकि वो हमेशा भ्रष्टाचार पर बात करते हैं इसलिए मैनें चौकीदार से मुझसे डिबेट करने को कहा, लकिन वो भाग गए।”

बात सिर्फ़ यही पर खत्म नहीं होती है, राहुल गाँधी ने इस रैली के दौरान मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने 2 करोड़ जॉब, किसानों के लिए वादे और 15 लाख देने के बारे में झूठ बोला था। इस रैली में राहुल गाँधी ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के जरिए चौकीदार सारा पैसा ले गया। बैंकों की चाभी भी अनिल अंबानी जैसे चोरों के हाथ में दे दी गई। यहाँ उन्होंने बराक वैली के लोगों को आश्वासन भी दिया कि अगर कॉन्ग्रेस सरकार सत्ता में आती है तो वह उस चाभी को अनिल अंबानी से छीनकर बराक वैली के नौजवानों को दे देंगे।

यहाँ राहुल गाँधी ने मोदी के बारे में कहा कि पिछले 5 सालों में मोदी सरकार ने 15 लोगों को फायदा पहुँचाया है और देश के सभी अमीरों को बेतहाशा रुपया दिया है। उन्होंने कहा, जब कॉन्ग्रेस 2019 में सत्ता में आएगी तो हेडलाइन आएगी कि “गरीबों को पैसा दिया गया।”

अब राहुल की रैली में कही एक-एक बिंदु पर विचार करिए कि यह पूरी बातचीत कितनी ज्यादा हास्यास्पद और निराधार है। जिस कॉन्ग्रेस के पास खुद के दस सालों में किए घोटालों का जवाब नहीं है, उसके अध्यक्ष चाहते हैं कि मोदी उनसे भ्रष्टाचार पर बात करें। इसके अलावा देश के सबसे काबिल वक्ता को उस व्यक्ति द्वारा डिबेट के लिए ललकारा जा रहा है, जिसे भारतीय विद्यापीठ के छात्रों ने कुछ दिन पहले बच्चों ने ही ‘बच्चों जैसी बात करने वाला‘ करार दे दिया था। साथ ही राहुल की हर बात को स्क्रिप्ट की तरह पहले से तय बताया था।

अब रही बात मोदी सरकार द्वारा अमीरों को 5 सालों में पैसे देने की तो नीरव को जमानत न मिलना और माल्या की लंदन कोर्ट में प्रत्यर्पण की याचिका खारिज होना दर्शाता है कि इन भगौड़ों के खिलाफ़ मोदी सरकार चुुप नही बैठी है। लेकिन राहुल को समझने की जरूरत है कि अगस्ता वेस्टलैंड के मिशेल बिचौलिए की हकीकत, भोपाल गैस त्रासदी के जिम्मेदारों को देश से भगाने और बचाने का सच, यूपीए कार्यकाल में राहुल की संपत्ति में हुई 1600 गुनावृद्धि का सच अब किसी से भी छिपा नहीं है।

इसलिए बेहतर हैं कि वो ऐसी बातें उस शख्स के बारे में तो बिलकुल भी न करें जिसके साथ मुकाबले में उनकी जीत शून्य से गिरके नेगटिव पैरामीटर्स तक पहुँच जाए। अब मतदान शुरू होने में सिर्फ़ दो दिन बचे हैं। 11 तारीख़ को मतादन का पहला चरण है और आखिरी 19 मई है। 23 मई को नतीजे भी आ जाएँगे। जरूरी है कि अब विपक्ष अपनी ओछी और राहुल अपनी बचकानी राजनीति करने से बाज आ जाएँ और 2024 की तैयारी करें।

दंतेवाड़ा में BJP के चुनावी काफिले पर हमला, MLA की मौके पर मौत, 5 जवान वीरगति को प्राप्त

छत्तीसगढ़ के अतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा में मंगलवार (अप्रैल 9, 2019) की शाम नक्सलियों ने एक बड़े हमले को अंजाम दिया। नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी की चपेट में आने से भाजपा विधायक भीमा मंडावी की मौत हो गई। उनके साथ ही घटना में सुरक्षा में तैनात 5 जवान भी वीरगति को प्राप्त हो गए।

मिली जानकारी के मुताबिक, भीमा मंडावी कुआकोण्डा ब्लॉक के श्यामगिरी गाँव में चुनावी सभा को संबोधित करने के बाद वापस नकुलनार लौट रहे थे, तभी सड़क पर नक्सलियों द्वारा लगाए गए लैंडमाइन्‍स (आईईडी) के ऊपर से उनका वाहन गुजरा और विस्‍फोट हो गया। विस्‍फोट में वाहन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। इस हमले में विधायक भीमा मंडावी की मौके पर ही मौत हो गई, जो कि विपक्ष के उपनेता थे। ब्लास्ट के बाद नक्सलियों ने काफिले की गाड़ियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।

वाहन में विधायक की सुरक्षा में तैनात 5 जवान भी सवार थे, जो इस घटना में वीरगति को प्राप्त हो गए। बता दें कि श्यामगिरी में आज वार्षिक मड़ई मेले का भी आयोजन किया गया था। इसी मेले के दौरान आयोजित जनसभा को संबोधित करने वे जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित इस गाँव में गए थे। इस हमले के बाद काफिले में शामिल अन्य लोगों के बीच अफरा-तफरी मच गई। इसके बाद सीआरपीएफ और राज्य पुलिस की टीमों को तत्काल मौके पर भेजा गया। जिसके बाद घटनास्थल के आसपास के इलाके को सीज कर दिया गया है। इसके अलावा हमलावरों की तलाश में यहाँ पर सर्च ऑपरेशन भी चलाया गया है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में इससे पहले भी कई बार नक्सली हमलावरों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को निशाना बनाया है। जुलाई 2018 में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में बीएसएफ के जवानों पर हमला किया था। इस हमले में बीएसएफ के 2 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। इससे पहले 13 मार्च 2018 को राज्य के सुकमा जिले में सीआरपीएफ की 212वीं बटालियन के जवानों पर हमला हुआ था। आईईडी लगाकर किए गए इस नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 9 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे।

12-24-36 घंटे का निर्जला व्रत है छठ: नहाय-खाय के साथ आज शुरू हुआ धार्मिक आस्था का महापर्व

सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ मंगलवार (अप्रैल 9, 2019) से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। हिंदी पंचांग के अनुसार यह पर्व चैत्र माह और कार्तिक माह में मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने की वजह से इस छठ को चैती छठ कहते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को कार्तिक छठ कहा जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वांचल आदि क्षेत्रों में विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसे बिहार, झारखंड के मुख्य पर्व के रूप में भी जाना जाता है।

छठ पूजा और व्रत पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए किया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इसे कर सकते हैं। बता दें कि छठ पूजा का उत्सव चार दिनों तक चलता है। पहले दिन की शुरुआत नहाय-खाय के साथ चतुर्थी के दिन से होती है। नहाय-खाय के दिन छठ व्रती कच्चा चावल यानी अरवा चावल को पकाकर कद्दू (लौकी या घिया) की सब्जी और दाल के साथ खाते हैं। यह खाना नहाने के बाद खाया जाता है। व्रती इसी प्रसाद रूपी खाने को फिर लगभग 12 घंटे बाद रात में खाते हैं।

इस दिन इस खाने का विशेष महत्‍व होता है। परिवार के सभी सदस्य व्रत धारण करने वाले व्यक्ति के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही भोजन को प्रसाद के रूप में खाते हैं। नहाय-खाय के दिन से ही सूर्य देव के लिए प्रसाद बनाने के लिए गेहूँ, चावल आदि को धोकर धूप में सुखाया जाता है और फिर इसे हाथ से पीसकर प्रसाद बनाया जाता है।

दूसरे दिन पंचमी को खरना होता है। जिसे पूजा का दूसरा और कठिन चरण माना जाता है। इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखते हैं। मतलब पिछले दिन की रात से लेकर खरना के रात तक व्रती को लगभग 24 घंटे निर्जला रहना होता है। पूरे दिन बिना जलग्रहण किए उपवास रखने के बाद सूर्यास्त होने पर व्रती पूजा करते हैं और उसके बाद एक ही बार दूध और गुड़ से बनी खीर खाते हैं। यह खीर मिट्टी के चूल्हे पर आम के पेड़ की लकड़ी जलाकर तैयार की जाती है। इसके बाद से व्रती का करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।

खरना के बाद तीसरे दिन षष्ठी को व्रती डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं। दिन भर घर में चहल-पहल का माहौल रहता है। इसी दिन व्रती ठेकुआ, खजूर, पूरी आदि बनाते हैं। फिर सभी व्रती सूप (डगरा) में नाना प्रकार के फल, ठेकुआ, खजूर, चावल के आटे के लड्डू और कई तरह की मिठाईयों के साथ तालाब या नदी पर जाकर पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर आराधना करते हैं।

अंत में चौथे दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। चौथे और अंतिम दिन छठ व्रती को सूर्य उगने के पहले ही फिर से उसी तालाब या नदी पर जाना होता है, जहाँ वे तीसरे दिन गए थे। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती भगवान सूर्य से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं और फिर परिवार के अन्य सदस्य भी सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद विधिवत पूजा कर प्रसाद बाँट कर छठ पूजा संपन्न की जाती है। मतलब जो व्रती पंचमी की रात को दूध-गुड़ की खीर प्रसाद रूप में खाए थे और पानी पिए थे, वो फिर सप्तमी के दिन सुबह ही मुँह में पानी या प्रसाद जैसी कोई चीज ले सकते हैं – लगभग 36 घंटे नर्जला।

छठ पर्व में साफ-सफाई और पवित्रता का खासा ख्याल रखा जाता है। पूजा के चारों दिन उपवास के साथ नियम और संयम का पालन करना होता है। इस पूजा में कोरे और बिना सिले वस्त्र पहनने की परंपरा है।

चैती छठ में खासा धूम-धाम देखने को नहीं मिलता है। जबकि कार्तिक छठ में ज्यादा चहल-पहल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कम ही व्रती चैती छठ करते हैं। गरमी के कारण कार्तिक छठ से ज्यादा मुश्किल होता है चैती छठ करना। 12 घंटे के बाद 24 घंटे और उसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत रखना गरमी के समय आसान नहीं होता। इस वजह से कार्तिक छठ की अपेक्षा चैती छठ करना थोड़ा सा मुश्किल हो जाता है।