Sunday, September 29, 2024
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मध्यम वर्ग स्वार्थी न बने, ज़्यादा टैक्स देने के लिए कमर कसे: कॉन्ग्रेस के सैम पित्रोदा

कॉन्ग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने मध्यम वर्ग को ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहने को कहा है। यह टैक्स राहुल गाँधी की महत्वाकांक्षी समाजवादी योजना ‘न्याय’ के लिए आर्थिक बंदोबस्त करने के लिए लगेगा। साथ ही उन्होंने मध्यम वर्ग की इस योजना को लेकर टैक्स बढ़ने की आशंका को ‘स्वार्थी’ भी करार दिया।

बता दें कि राहुल गाँधी ने इस योजना के तहत गरीबों को ₹72,000 प्रति वर्ष देने का वादा किया था। उसके बाद इसके अमल को लेकर जहाँ कॉन्ग्रेस नेताओं के बयानों में आपसी विरोधाभास रहा है, वहीं मध्यम वर्ग से लेकर भाजपा तक इस योजना की आलोचना कर इसे माध्यम वर्ग पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाली करार दे रहे हैं। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविन्द पानगढ़िया ने तो इस योजना का खर्च भारत के रक्षा बजट से भी ज्यादा पहुँच जाने की आशंका जताई है।

Guilt-tripping है कॉन्ग्रेस की चुनावी रणनीति?

India Ahead News नामक समाचार पोर्टल के संवाददाता से बात करते हुए सैम पित्रोदा ने यह बात कही। साथ ही उनका मध्यम वर्ग की टैक्स बढ़ने की चिंता को ‘स्वार्थी’ कहना मध्यम वर्ग की ग्लानि-ग्रंथि को जगाने की कोशिश (guilt-tripping) प्रतीत होता है।

वामपंथ और समाजवाद में इस नीति को काफी प्रभावी माना जाता है और लोकतान्त्रिक देशों में लोकतान्त्रिक तरीके से कम्युनिज्म (साम्यवाद) के एजेण्डे की राजनीति करने वाली पार्टियाँ अक्सर इसका प्रयोग करतीं हैं।

उन्होंने हालाँकि बढ़े टैक्स की कड़वी गोली को मीठा करने के लिए और रोजगार और संभावनाओं का वादा किया, और मोदी-राज में नौकरियों के न होने का कॉन्ग्रेस का दावा भी दोहराया, पर यह रोजगार और संभावनाएँ कॉन्ग्रेस कहाँ से बढ़ाएगी, इसका उन्होंने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।

अभिजित बनर्जी भी यह कह चुके हैं

कॉन्ग्रेस की न्याय योजना का खाका खींचने में महत्वपूर्ण सलाह देने वाले MIT, अमेरिका के अर्थशास्त्री अभिजित बनर्जी भी यह बात पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि कॉन्ग्रेस की यह स्कीम टैक्स बढ़ाने पर टिकी है।

टीवी समाचार चैनल Times Now के टीवी डिबेट में अभिजित ने न केवल टैक्स बढ़ाने की वकालत की थी, बल्कि आवश्यकता होने पर महँगाई बढ़ा कर भी इस योजना के लिए पैसा जुटाए जाने का भी संकेत दिया था।

निजी कहकर खारिज करना मुश्किल होगा

अन्य सभी राजनीतिक दलों की भांति कॉन्ग्रेस भी अकसर अपने नेताओं के विवादित बयानों को निजी कहकर उनसे किनारा कर लेती है- शशि थरूर का प्रधानमंत्री मोदी को ‘शिवलिंग पर बैठा बिच्छू’ कहना, दिग्विजय सिंह का 26/11 में आरएसएस के हाथ का आरोप लगाना, मणि शंकर अय्यर का मोदी को हराने की गुजारिश पाकिस्तान से करना आदि। पर पित्रोदा के इस बयान से पल्ला झाड़ना कॉन्ग्रेस के लिए दो कारणों से मुश्किल हो सकता है- पित्रोदा कॉन्ग्रेस की घोषणापत्र तैयार करने वाली समिति के सदस्य हैं

गोरखपुर में बदल गई बिसात, जिसके लिए एक हुए थे सपा-बसपा, वही BJP में शामिल

गोरखपुर का हाई प्रोफाइल उपचुनाव तो आपको याद ही होगा। वही चुनाव, जिसका मीडिया ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए विश्लेषण किया था। उस चुनाव में सपा उम्मीदवार प्रवीण कुमार निषाद को जिताने के लिए बसपा ने सपा को समर्थन दे दिया था। उसी के बाद से यूपी महागठबंधन की नींव पड़नी शुरू हो गई थी। अब महागठबंधन का वो सेनानी अपनी पूरी निषाद सेना के साथ भाजपाई हो गया है। गोरखपुर इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह योगी की कर्मभूमि है और वो पाँच बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

1989 के बाद पहली बार 2017 में भाजपा ने इस सीट को खोया था। निषाद पार्टी के प्रवीण को सपा ने गोरखपुर से अपना उम्मीदवार बनाया था। अब निषाद पार्टी का भी भाजपा में विलय हो गया है। ये इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गोरखपुर में जनसंख्या के मामले में निषाद समाज दूसरे स्थान पर आता है। प्रवीण निषाद ने भाजपा के दिल्ली स्थित मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता ली। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने भाजपा में उनका स्वागत किया।

प्रवीण के पिता व निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद ने कहा कि यूपी में रामराज के साथ निषाद राज होगा। निषाद पिता-पुत्र ने नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लिया। प्रवीण निषाद को भाजपा द्वारा गोरखपुर से लड़ाए जाने की उम्मीद है। 3.5 लाख निषाद जनसंख्या वाली गोरखपुर सीट के लिए पार्टी के भाजपा में विलय से पार्टी ने राहत की साँस ली है। अगर पूरे उत्तर प्रदेश की बात करें तो 14% निषाद, मल्लाह व केवट समाज किसी भी पार्टी की हार-जीत में बड़ी भूमिका निभाता है।

इसके अलावा आज उत्तर प्रदेश में विपक्ष के कई नेता भाजपा में शामिल हुए जिनमें निम्नलिखित प्रमुख नाम हैं:

निर्मल तिवारी, पूर्व सांसद प्रत्याशी, बसपा

कन्नौज में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ चुके निर्मल तिवारी ने भाजपा ज्वॉइन कर ली। 2014 आम चुनाव में बसपा ने उन्हें डिंपल यादव से मुक़ाबला करने के लिए उतारा था। हालाँकि, डिंपल ने इस सीट से जीत दर्ज की थी, सवा लाख से भी अधिक वोटों के साथ निर्मल तिवारी तीसरे नंबर पर रहे थे।

मोहम्मद मुस्लिम, पूर्व विधायक, तिलोई

डॉक्टर मोहम्मद मुस्लिम अमेठी ज़िला स्थित तिलोई के विधायक रहे हैं। उन्होंने 2012 में 61,000 से भी अधिक मत पाकर कॉन्ग्रेस पार्टी के टिकट से इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2016 में उन्हें कॉन्ग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार कपिल सिब्बल के विरुद्ध वोट करने के कारण पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में वो दूसरे स्थान पर रहे थे। वो विधानसभा में कॉन्ग्रेस के मुख्य सचेतक भी रहे हैं। तिलोई विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की प्रभावी संख्या होने के कारण उनके जुड़ने से भाजपा को फ़ायदा मिलने की उम्मीद है।

सुरेश पासी, पूर्व सांसद, कौशाम्बी

कौशाम्बी (तब चायल) लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 1999 में संसद पहुँचे थे। 2014 आम चुनाव में उन्होंने सपा के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था। उन्हें उस चुनाव में 2 लाख से भी अधिक वोट मिले थे। अंदेशा लगाया जा रहा था कि वह 2019 आम चुनाव में कौशाम्बी से महागठबंधन का चेहरा होते। लेकिन उनके भाजपा में शामिल होने से विपक्ष को इलाक़े में झटका लगा है।

नित्यानंद शर्मा, पूर्व राज्यमंत्री

भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए पूर्व राज्यमंत्री नित्यानंद शर्मा। आपको बताते चलें कि नित्यानंद शर्मा समाजवादी पार्टी मे मुलायम सिंह के बहुत क़रीबी माने जाते थे लेकिन वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा बार-बार नज़रअंदाज़ किए जाने से वह काफी आहत थे।

राम सकल गुर्जर (आगरा), पूर्व मंत्री

आगरा के जाने-पहचाने चेहरे व अखिलेश सरकार में स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहे राम सकल गुर्जर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। उनके साथ पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भी भाजपा में शामिल हुए। सपा शासनकाल में खेल मंत्री रहे गुर्जर की गिनती मुलायम सिंह यादव के करीबियों में होती है। उनके आने से इलाक़े में गुर्जर समाज के भी भाजपा का रुख़ करने की उम्मीद है। सपा सरकार में इन्हें ‘मिनी मुख्यमंत्री’ भी कहा जाता था।

प्रयागराज: BJP के मास्टरस्ट्रोक से कॉन्ग्रेस में ‘भगदड़’, रीता की एंट्री से बदला चुनावी गणित

भाजपा ने इलाहबाद लोकसभा क्षेत्र से अपने सबसे बड़े ट्रम्प कार्ड्स में से एक प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी को उतारा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में पर्यटन मंत्री के तौर पर काम कर रहीं जोशी उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक घराने से आती हैं। उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और चरण सिंह सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री रहे हैं। उनकी माँ कमला बहुगुणा फूलपुर से सांसद थीं। उनके भाई विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं। ऐसे में, रीता बहुगुणा जोशी को राजनीति विरासत में मिली लेकिन उन्होंने अपने बलबूते कई मुकाम हासिल किए। हालाँकि, यूपी में जिस पार्टी को सँवारने के लिए उन्होंने ख़ासी मेहनत की, उन्हें वहाँ उचित सम्मान नहीं मिला और अंततः उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी छोड़ दी।

रीता बहुगुणा जोशी एक समय उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस संगठन की सर्वेसर्वा मानी जाती थीं। कार्यकर्ताओं के बीच उनका अच्छा-ख़ासा प्रभाव हुआ करता था। महिला कॉन्ग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकीं रीता 2009 में उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं। अपने राजनीतिक करियर के ढाई दशक कॉन्ग्रेस में गुज़ारने के बाद उन्होंने अक्टूबर 2016 में भाजपा का रुख़ किया। उन्हें मंत्री रहते इलाहाबाद से उतारना इलाहबाद सीट के महत्व और पार्टी की आगामी रणनीति को दिखाता है। हो सकता है कि अगर चुनाव बाद राजग सरकार बनती है तो उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिले। लेकिन फिलहाल, हम यहाँ चर्चा करेंगे कि इलाहाबाद में रीता बहुगुणा जोशी के आने के बाद समीकरणों में क्या बदलाव आए हैं?

इलाहबाद सीट से ही उनके पिता ने भी 1977 के आम चुनाव में जीत दर्ज की थी। उस समय उन्हें कुल मतों का 58% प्राप्त हुआ था, यही 1,42,000 से भी ज्यादा। हालाँकि, 1984 के चुनाव में उन्हें बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था। इलाहबाद से उन्हें उतारने के पीछे की एक वजह यह भी है कि वो यहाँ की मेयर रह चुकी हैं। भाजपा ने उनके इसी स्थानीय प्रभाव और राज्य स्तरीय लोकप्रियता को भुनाने के लिए इलाहबाद जैसी महत्वपूर्ण सीट से उतारा है। 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने लखनऊ कैंट से मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव को 33,000 से भी अधिक मतों से पराजित किया था। 2012 में उन्होंने यही सीट कॉन्ग्रेस के टिकट पर जीती थी।

प्रियंका गाँधी कहाँ से चुनाव लड़ेंगी, ये अभी तय नहीं हुआ है। वाराणसी, इलाहाबाद और अयोध्या में से किसी एक सीट से उनके लड़ने की चर्चाएँ चल रही हैं। इलाहाबाद के स्थानीय कॉन्ग्रेस नेताओं ने रीता बहुगुणा जोशी के वहाँ से उतरने की ख़बर सुनते ही प्रियंका को वहाँ से लड़ाने की विनती की है। कॉन्ग्रेस के अंदर ये चर्चा ज़ोरो पर है कि अगर वो नहीं लड़ीं तो ये सीट आसानी से भाजपा के खाते में चली जाएगी। उनका ऐसा मानना बेजा नहीं है। इसके पीछे की वजह समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। आज से 24 वर्ष पहले, जब वो इलाहाबाद की मेयर बनी थीं।

उन्होंने पाँच वर्ष तक मेयर का पद संभाला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास का प्रोफेसर होने के कारण पढ़े-लिखे लोगों के प्रोफशनल समूह में उनका अच्छा प्रभाव है और दो दशक बाद वो उस जगह लौट रही हैं,जहाँ उन्होंने मेयर के रूप में पाँच वर्षों तक (1995-2000) काम किया था। लेकिन, आप चौंक जाएँगे जब आपको पता चलेगा कि रीता बहुगुणा जोशी ने अब तक जो 4 लोकसभा चुनाव लड़ा हैं, उन्हें उन सभी में हार मिली है। लेकिन, फिर भी कॉन्ग्रेस के अंदर उनकी वापसी से व्याप्त भय को देख कर कोई भी सकते में आ जाए कि 4 लोकसभा चुनाव हार चुकी उम्मीदवार से कैसा भय? लेकिन नहीं, इसमें एक पेंच है जो आगामी चुनाव में इलाहाबाद की दशा एवं दिशा तय करने वाला है।

लोकसभा उम्मीदवारी तय होने के बाद रीता जैसे ही इलाहाबाद पहुँचीं, वहाँ कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ पड़ा। लेकिन, आश्चर्य की बात यह थी कि वहाँ भाजपा और कॉन्ग्रेस, दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता एक साथ उनका स्वागत कर रहे थे। आम कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं की तो बात ही छोड़िए, जिला कॉन्ग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष संत प्रसाद पांडेय भी भाजपा समर्थकों के साथ जोशी के स्वागत में उपस्थित थे। प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी ने आगामी ख़तरे की आहट को पहचानते हुए जोशी का स्वागत करने वाले अपने पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का ऐलान किया है। उपाध्यक्ष और ब्लॉक प्रभारी समेत कम से कम 20 पार्टी पदाधिकारियों को पार्टी से निकाला जा चुका है, तो कुछ ने ख़ुद ही कॉन्ग्रेस को टा-टा कर दिया। ज़िला कॉन्ग्रेस कमेटी के महामंत्री और प्रवक्ता तक ने पार्टी छोड़ दिया।

लगभग दो दर्जन अन्य कार्यकर्ता और पदाधिकारी अभी भी कॉन्ग्रेस के रडार पर हैं, जिन्हे बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। रीता के पहुँचते ही पार्टी यहाँ लगभग बिखर चुकी है और प्रत्याशी चयन में फूँक-फूँक कर क़दम रख रही है। दरअसल, इलाहाबाद में ऐसे कई कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता हैं जिन्हे रीता की बदौलत पद मिला था। प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रहते रीता ने इन्हे पद और सम्मान दिया था। ऐसे में, ये कार्यकर्ता और पदाधिकारी कॉन्ग्रेस के कम और रीता के ज़्यादा वफ़ादार हैं। अब जब वो इलाहाबाद लौट चुकी हैं, इन्हे नए उत्साह का संचार हुआ है और वो फिर से अपनी पुरानी नेता के आवभगत में मशगूल हो गए हैं।

रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल होने के बाद इलाहाबाद के कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता लगभग हाशिए पर थे। अब रीता ने लौटते ही अपनी पुरानी टीम को सक्रिय कर दिया है, जिसका सबसे ज़्यादा नुकसान कॉन्ग्रेस पार्टी को उठाना पड़ रहा है। 1999 में रीता को इलाहाबाद से हार मिली। उन्हें 1,33,000 से ज़्यादा मत मिले थे। उनके सामने भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी और इलाहाबाद राजपरिवार के कुँवर रेवती रमन सिंह थे। मुरली मनोहर इलाहाबाद से 3 बार सांसद रहे जबकि कुँवर साहब ने भी 2 बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। दिग्गजों के इस खेल में फँसी रीता उस समय तो संसद नहीं पहुँच पाई, लेकिन बदले समय और हालत में अब वो नए उत्साह के साथ उतर रही हैं।

1998 में सपा के टिकट पर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ रही रीता को भाजपा के देवेंद्र बहादुर राय ने हरा दिया था। 2004 में उन्हें लखनऊ से भाजपा के लालजी टंडन ने हराया था। चूँकि लखनऊ वाजपेयी का गढ़ रहा है, उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की स्थिति में उनके संसदीय क्षेत्र इंचार्ज लालजी टंडन ने चुनाव लड़ा और जीते। 2014 में मोदी लहर के बीच रीता को इसी सीट से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने हरा दिया। इस तरह से 4 लोकसभा चुनावों में हार के बावजूद जिस तरह से रीता बहुगुणा जोशी ने इलाहाबाद में एंट्री ली है, उस से ऐसा लगता है जैसे कोई दिग्गज राष्ट्रीय नेता वहाँ से चुनाव लड़ रहा हो।

कभी संयुक्त राष्ट्र द्वारा सबसे प्रतिष्ठित दक्षिण एशियाई मेयर का पुरस्कार पा चुकीं रीता इस बार मोदी-योगी का चेहरा बनाने के साथ-साथ इलाहाबाद को मेयर के रूप में शुरू किए गए विकास कार्यों की याद दिलाएँगी। अभी हाल ही में संपन्न हुए प्रयागराज कुम्भ महापर्व को सफल बनाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। अब कॉन्ग्रेस से इलाहाबाद सीट पर प्रियंका आए या कोई और, देखना यह है कि अपनी उम्मीदवारी के ऐलान मात्र से कॉन्ग्रेस में हड़कंप मचा देने वाली रीता अपने पिता की सीट पर जीत का पताका लहरा पाती हैं या नहीं।

20cm तक ज़ूम करके दुश्मन पर नज़र रखेगी भारतीय सेना, 5 और सैन्य उपग्रह किया जाएगा लॉन्च

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) ने वर्ष 2019 की शुरूआत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) को दो सर्विलांस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजकर की है। इसमें से एक को ए-सैट मिसाइल को लक्षित करने के उद्देश्य से भेजा गया था।

इस साल इसरो अंतरिक्ष में सुरक्षा बलों की निगरानी क्षमता को बढ़ाने के लिए पाँच सैन्य उपग्रह (एडवांस्ड मिलिट्री सैटेलाइट) लॉन्च करेगा। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष से तकनीकी स्तर पर सैन्य क्षमताओं में इज़ाफा करना है। इसरो इस साल चार नई सीरीज़ के रिसैट उपग्रह और एक एडवांस्ड कार्टोसैट-3 उपग्रह लॉन्च करने वाला है। आपको बता दें कि 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान के बालाकोट में जैश कैंप पर हवाई हमले की योजना बनाने के लिए पुराने रिसैट सीरीज़ के उपग्रहों द्वारा भेजी गई तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था।

इसरो पहले साल में एक या दो सैन्य उपग्रह ही भेजता था। लेकिन अब पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर नज़रिया बदल लिया गया है। सैन्य जरूरतों के लिए अंतरिक्ष में तकनीकी रूप से बेहतर और तेज हुए बिना अब आप आगे की नहीं सोच सकते।

ख़बर के अनुसार, इसरो के अध्यक्ष के सिवन ने बताया, “हम इस साल उपग्रहों और रॉकेट सहित 33 मिशन शुरू करने का लक्ष्य बना रहे हैं। मई के मध्य में, पीएसएलवी-सी 46 रॉकेट रिसैट-2B लॉन्च करेगा और उसके बाद जून के चौथे सप्ताह में, पीएसएलवी-सी 47 के द्वारा कार्टोसैट-3 लॉन्च किया जाएगा। जो 5 सैन्य सैटेलाइट भेजे जाएँगे, उनकी विशेषताएँ:

कार्टोसैट-3

कार्टोसैट-3 एक उन्नत उपग्रह है। इसमें 0.2 मीटर (20 सेमी) के रिज़ॉल्यूशन को ज़ूम करने की क्षमता है। इस क्षमता को दुनिया में सबसे अच्छा माना जाता है। इससे बंदूक या दुश्मन के बंकर में मौजूद हर छोटी से छोटी वस्तुओं को स्पष्ट देखा जा सकेगा।

रिसैट-2B

Risat-2BR1 को जुलाई में, Risat-2BR2 को अक्टूबर में और Risat-1A को नवंबर में लॉन्च किया जाएगा। रिसैट-2B सीरीज के सैटेलाइट की क्षमता काफी अच्छी है। इससे बादलों के पार भी तस्वीरें ली जा सकती हैं और 1 मीटर तक ज़ूम करके देखा जा सकता है।

जियो-इमेजिंग सैटेलाइट (Gisat)

इसरो प्रमुख ने कहा, “सितंबर में, हम रिमोट सेंसिंग उपग्रह जियो-इमेजिंग सैटेलाइट-1 (जीसैट-1) और नवंबर में जीसैट-2 की एक नई सीरीज़ भेजेंगे।” इसके हाई रिज़ॉल्यूशन (50 मीटर से 1.5 किमी) से देश के भूमि मानचित्रण की क्षमताओं में बढ़ोत्तरी होगी। जबकि पुराने इमेजिंग उपग्रह से 22 दिनों में केवल एक बार ही किसी विशेष क्षेत्र का नक्शा बनाया जा सकता था। नई सीरीज के जीसैट के साथ, सेना हर दूसरे दिन एक क्षेत्र की स्कैनिंग या मैपिंग कर सकेगी। यह उपग्रह बादल-रहित परिस्थितियों में देश के बड़े क्षेत्रों के वास्तविक समय के चित्रों को प्रदान करने में भी पूरी तरह से सक्षम रहेगा।

PDP विधायक का B.Tech भतीजा बना आतंकी, शामिल हुआ हिजबुल मुजाहिद्दिन में

2020 तक कश्मीर को अलग करने की धमकी देने वाली पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की पार्टी के विधायक ज़फर इकबाल मन्हास का भतीजा कामरान जहूर आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दिन में शामिल हो चुका है। इस बात की पुष्टि कल (अप्रैल 3, 2019) हुई।

खबरों की मानें तो शोपियाँ जिले के करेवा के शादाब इलाके का निवासी कामरान कुछ दिन पहले ही लापता हो हुआ था। लेकिन बुधवार (अप्रैल 3, 2019) को उसकी तस्वीरें एके 47 राइफल लिए सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी। जिसके बाद दक्षिण कश्मीर के एक अधिकारी द्वारा पुष्टि की गई कि तस्वीर में कामरान ही है।

इंडियन एक्सप्रेस से हुई बातचीत में अपने भतीजे के आतंकी संगठन से जुड़ने पर ज़फर ने कहा कि उन्हें इस बात का विश्वास नहीं हो रहा है। उन्होंने ऐसा सपने में भी कभी नहीं सोचा था।

कामरान बीटेक का छात्र था। मन्हास ने बताया कि कामरान ने 20 दिन पहले पड़ोसी मुल्गा शहर के लिए निकला था। उन्होंने बताया कि वहाँ (कुलगाम में) वह अपनी पढ़ाई कर रहा था। लेकिन अब उन्हें पता चला है कि वह आतंकी संगठन में शामिल हो गया है।

बताया जा रहा है कि पिछले 20 सालों में कामरान अपने गाँव से पहला एक शख्स है जो आतंकी संगठन में जाकर शामिल हुआ हो।

PM मोदी को Zayed मेडल: UAE का ‘सबसे बड़ा’ सम्मान, क्राउन प्रिंस ने भारत को बताया ‘सहिष्णु’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब ने जायेद मेडल से सम्मानित करने का ऐलान किया है। सऊदी अरब द्वारा राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला जायेद मेडल सबसे बड़ा सिविल सम्मान है। अबुधाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायेद ने ये जानकारी दी। उन्होंने लिखा कि भारत और यूएई के बीच ऐतिहासिक और व्यापक संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने के लिए ‘मित्र’ नरेंद्र मोदी को ये सम्मान दिया गया।

बता दें कि जायेद मेडल प्रधानमंत्री मोदी से पहले सिर्फ़ 16 लोगों को ही दिया गया है। इसमें यूके की महारानी एलिज़ाबेथ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से लेकर रूस के राष्ट्रपति ब्लामिदिर पुतिन जैसे बड़े नाम शामिल हैं। प्रधानमंत्री को यह सम्मान मिलने सम्बन्धी ऐलान के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें बधाई देने वालों का ताँता लग गया।

ज़ायेद को यूएई का संस्थापक पितृपुरुष माना जाता है। उन्हीं के नाम पर यह पुरस्कार दिया जाता है। नरेंद्र मोदी को भारत और यूएई के बाच रिश्तों को एक नई दिशा देने के लिए इस सम्मान से नवाज़ा गया। यूएई के क्राउन प्रिंस ने पीएम मोदी के लिए इस सम्मान का ऐलान करते हुए भारतीय समाज की सहिष्णुता की भी सराहना की। संयुक्त अरब अमीरात सशस्त्र बल के डिप्टी सुप्रीम कमांडर शेख मोहम्मद बिन जायेद ने कहा कि पीएम मोदी उनके ‘मित्र’ हैं।

PM मोदी की मौत की झूठी ख़बर पोस्ट करने वाला AAP कार्यकर्ता हुआ गिरफ़्तार

वडोदरा में घनश्याम परमार नाम के ‘आप’ कार्यकर्ता को वडोदरा पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। घनश्याम पर आरोप है कि उसने प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर के साथ छेड़छाड़ करके उनकी मौत की झूठी ख़बर फैलाने की कोशिश की।

ख़बर के मुताबिक घनश्याम ने तस्वीर से छेड़छाड़ करके उसे फेसबुक पर डाला था। जिसे 1 अप्रैल की देर रात भाजपा यूथ विंग के कार्यकर्ता जय सिंह परमार ने देखा और पुलिस को इसके बारे में जानकारी दी।

जय सिंह पहले तो पीएम की मौत वाली तस्वीर देखकर हक्का-बक्का रह गए। लेकिन बाद में जब उन्होंने इस खबर की प्रमाणिकता को टीवी की खबरों से सत्यापित किया तो उन्हें एहसास हुआ कि ये किसी की कुचेष्टा है। उन्होंने बाद में इसकी ख़बर पुलिस को दी।

वडोदरा पुलिस के साइबर सेल ने घनश्याम परमार को पकड़ा। जाँच के दौरान उसने इस बात को स्वीकारा कि वह आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है। घनश्याम ने बताया कि उसने पीएम की तस्वीर को पहले इंटरनेट से डाउनलोड किया फिर उसे एडिट करके फेसबुक पर गुजराती में पोस्ट डाला कि हमारे प्रिय प्रधानमंत्री की अचानक मौत हो गई है।

बता दें घनश्याम को कल (अप्रैल 3, 2019) स्थानीय अदालत में पेश किया गया था जहाँ उसे ज़मानत दे दी गई। परमार ने सफाई देते हुए कहा कि उसने ऐसी हरक़त अप्रैल फूल वाले दिन अपने दोस्त पर प्रैंक करने के लिहाज़ से की थी।

Tik-Tok पर बाल यौन शोषण और अश्लीलता: बैन लगे न लगे, ‘डंडा’ पड़ना जरूरी

टिक-टॉक पर वीडियो बनाकर डालना आजकल बेहद आम हो चुका है। इसका क्रेज आपको छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में देखने को मिल जाएगा। किसी भी पुराने डॉयलॉग और गाने पर आज लोग अपने एक्सप्रेशन और क्रिएटिव आइडिया को साथ मिलाकर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब फेमस हो रहे हैं। लेकिन जैसा कि आप में से अधिकतर लोगों ने देखा ही होगा कि आज मनोरंजन के लिहाज़ से बनाए गए इस ऐप पर कुछ लोग अश्लीलता का प्रचार-प्रसार भी करने लगे हैं। जिसके मद्देनज़र मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने इस ऐप की डाउनलोडिंग पर बैन लगाने का निर्देश दे दिया है।

कोर्ट ने इस विषय पर केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या भारत में ऐसा कानून लाया जा सकता है, जैसा अमेरिका में है? अमेरिकी सरकार ने बच्चों को साइबर क्राइम का शिकार होने से बचाने के लिए चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट के तहत एक कानून बनाया है। सरकार के साथ-साथ कोर्ट ने मीडिया से भी टिक-टॉक पर बने वीडियो का प्रसारण रोकने को कहा। बता दें कि पूरे मामले पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से 16 अप्रैल से पहले जवाब माँगा है।

चीन में ‘डुईन’ नाम से प्रसिद्ध हुई इस ऐप की शुरुआत 2016 के सितंबर में चाइना से ही हुई थी। एक साल बाद इसे विदेशी बाजार में टिकटॉक के नाम से उतारा गया था। कुछ ही समय में भारत में इस ऐप के फीचर्स को लेकर क्रेज इतना बढ़ा कि आज देश में 104 मिलियन लोगों द्वारा टिक-टॉक का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन अब लोगों ने मनोरंजन के नाम पर इस पर अश्लील हरकतें करते हुए वीडियो बनानी शुरु कर दी। इसका चर्चित उदाहरण- ‘इसमें तेरा घाटा’ गाने पर ‘तीन लड़कियों‘ का वो वीडियो है, जिसने काफ़ी सुर्खियाँ भी बटोरी थीं। इसके बाद उनकी वीडियो के जवाब में आई कई टिक-टॉक वीडियो ने तो सभी हदों को धीरे-धीरे पार कर दिया।

ऐसी वीडियो की संख्या बढ़ने के कारण एक महीने पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसे रोकने पर चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में चीन के ऐप और कुछ अन्य कंपनियों पर भारत में प्रतिबंध लगाने की माँग की गई थी। एसजेएम की मानें तो देश की सुरक्षा, कारोबार और समाज के लिए इन्हें खतरनाक बताया गया था।

इसके अलावा फरवरी माह में तमिलनाडू के सूचना प्रौद्योगिक मंत्री एम मनिकंदन ने कहा था कि राज्य सरकार केंद्र से इस ऐप को बैन करने की माँग करेगी। दरअसल इस ऐप पर वे वीडियो जो हमारी संस्कृति को खराब करने का काम कर रहे थे, उन्हें लेकर आपत्ति दर्ज कराई गई थी। साथ ही इन शिकायतों को लेकर कोर्ट में याचिका दायर करके ऐप को बैन करने की माँग की गई थी। यह याचिका मदुरै के वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मुथु कुमार द्वारा दायर की गई थी। पोर्नोग्राफी, संस्कृति पर खतरा, बाल शोषण, आत्महत्याओं का हवाला देते हुए, मुथु ने अदालत से टिक-टॉक पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। जिसके बाद कोर्ट का यह फैसला आया।

यहाँ बता दें कि टिक-टॉक के भारत में इतने फेमस होने के बाद भी इस जैसे ऐप का भारत में कोई शिकायत निवारण अधिकारी नहीं था। तो स्थितियाँ तो बिगड़नी ही थीं। बड़े-बड़े कलाकार भी इस चीनी ऐप का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते पाए जाते हैं। कुछ लोगों ने तो इसके चलते सोशल मीडिया पर अपनी अच्छी-खासी फैन फॉलोइंग भी बना ली है। कोर्ट द्वारा आया यह फैसला हो सकता है कुछ लोगों को गलत लगे। लेकिन मनोरंजन के नाम पर ऐसी सामग्रियों को प्रसारित करना, जो तकनीक के औचित्य पर सवाल उठाने लगे और जिनके कारण संस्कृति खतरे में पड़ जाए, उनके लिए बेहतर तो यही है कि कोई विशेष कानून बने ताकि सृजनात्मकता को अश्लीलता के दायरे से दूर रखकर मनोरंजन में शामिल किया जा सके।

मुंशी प्रेमचंद की यादगार कहानी ईदगाह वाला बच्चा ‘हामिद’ मिज़ोरम के अस्पताल में!

दया और निश्छल भाव में मासूम बच्चों का कोई सानी नहीं होता। कोमल मन की पराकाष्ठा के प्रतीक इन बच्चों का दिल सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम करना जानता है। फिर चाहे वो इंसान हो या कोई छोटा-सा, नन्हा-सा जीव हो। ऐसी ही एक तस्वीर सोशल मीडिया पर ख़ूब छाई हुई है, जिसमें बच्चे के एक हाथ में ₹10 का नोट है और दूसरे हाथ में घायल अवस्था में एक चूजा (मुर्गी का बच्चा) है।

ख़बर मिज़ोरम की है। यहाँ एक बच्चे से ग़लती से अपने पड़ोसी के चूजे पर साईकिल चढ़ जाती है। इस दौरान मासूम बच्चे को अपराधबोध का एहसास होता है। वो उसके इलाज के लिए अपने पास जमा पूरी पॉकेट मनी लेकर तुरंत अस्पताल पहुँच जाता है।

ख़बर के अनुसार, बच्चे ने अस्पताल में डॉक्टर से कहा कि ये पैसे ले लीजिए और चूजे का इलाज कर दीजिए। आप इस तस्वीर को देखकर अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बच्चे के मन में उस चूजे को लेकर कितनी करुणा और तकलीफ़ का भाव है, इसे हम शब्दों से बयाँ नहीं कर सकते।

बता दें कि इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर सांगा सेज (Sanga Says) नाम के यूजर ने शेयर किया है। फ़िलहाल इस बात की तो कोई ख़बर नहीं है कि घायल अवस्था में वो चूजा बच सका कि नहीं लेकिन इस मासूम ने अपनी ज़िम्मेदारी को बख़ूबी अंजाम दिया जो वाकई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

अक्सर हमारे सामने ऐसी ख़बरें आती हैं कि फलाँ दिन सड़क पर कोई किसी को गाड़ी से टक्कर मारकर, घायल अवस्था में मरने के लिए तड़पता हुआ छोड़ गया। इसके अलावा जैसे सड़क किनारे कोई ज़ख़्मी हालत में हो तो वहाँ से गुजरने वाले लोग अक्सर जी चुराकर कन्नी काटने को बेहतर विकल्प समझ आगे बढ़ जाते हैं। ऐसे में इस मासूम की तड़प जो उसे अस्पताल तक ले पहुँची, उन सभी जी चुराने वालों के लिए एक तमाचा है। इससे सीख लेनी की ज़रूरत सभी को है।

इस बच्चे का नाम जो भी है लेकिन इसने हम सब को मुंशी प्रेमचंद के किरदार हामिद की याद दिला दी। ‘ईदगाह’ में हामिद भी अपने पैसों से मेले में कुछ खाने या खिलौने खरीदने के बजाय दादी माँ के लिए चिमटा लेकर जाता है ताकि रोटियाँ बनाते वक्त उनके हाथ न जलें।

Video: कन्हैया को माला पहनाने के बाद बेगूसराय के ग्रामीणों ने बोला – ‘हर हर मोदी’

बेगूसराय के आज़ाद नगर स्थित एक गाँव में जब सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया कुमार चुनाव प्रचार के लिए पहुँचे, तो ग्रामीणों ने उनका स्वागत फूल-मालाओं से किया लेकिन उन्हें वोट देने से इनकार कर दिया। ग्रामीणों ने कहा कि भले ही कन्हैया का बेगूसराय में कुछ नाम बना हो लेकिन उनका वोट तो मोदीजी को ही जाएगा। उन्होंने पुलवामा हमले के बाद हुई एयर स्ट्राइक का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारे पास ऐसा प्रधानमंत्री है जो देश के लिए लड़ता है, देश के लिए जीता-मरता है, तो हम किसी और को क्यों वोट दें? नीचे इस वीडियो में ख़ुद ही देख लें, ग्रामीणों ने क्या कहा।

ट्विटर पर लेखक एवं पत्रकार राहुल पंडिता द्वारा ट्वीट किए गए वीडियो में ग्रामीणों की राय देखकर साफ़-साफ़ लगता है कि नरेंद्र मोदी की इमेज आम जनों के मन में एक प्रभावशाली और निर्णायक नेता की है। ऐसा नेता, जो कड़े फैसले लेने की क्षमता रखता है। ग्रामीणों ने कहा कि सिर्फ़ कन्हैया ही नहीं बल्कि गाँव में कोई भी नेता आता है तो फ़र्ज़ निभाते हुए उसका स्वागत करेंगे लेकिन वोट मोदीजी को ही देंगे।

वीडियो में ग्रामीणों का कॉन्ग्रेस के प्रति गुस्सा भी देखा जा सकता है। ग्रामीणों का कहना था कि आज़ादी के बाद से लगातार हमारे जवान वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं लेकिन कॉन्ग्रेस पार्टी ने कभी उनके लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वो ऐसी पार्टी है जो पाकिस्तान के ही गुण गाती रहती है। बकौल ग्रामीण, हमारे पास मोदीजी के रूप में एक ऐसा नेता है जो देश के गीत गाता है।

बेगूसराय में गिरिराज सिंह के पहुँचते ही कन्हैया गैंग में हड़कंप मचा हुआ है। उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान भी लोगों का साथ नहीं मिल रहा है। हाल ही में बिहार के बेगूसराय में CPI उम्मीदवार कन्हैया कुमार को ग्रामीणों ने खदेड़ दिया था। दोनों तरफ के लोगों के बीच झड़प हुई ऐसा भी कहा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसे उनके काफिले पर हमला भी कहा जा रहा है। बताया जा रहा है कि कल सुबह जब कन्हैया प्रचार के लिए जा रहे थे उसी समय कुछ असामाजिक तत्वों ने सड़क को जाम कर दिया था। जब कन्हैया के समर्थक जाम खुलवाने के लिए गए तो वही उनसे झड़प होने लगी।

हालाँकि, कन्हैया कुमार ने सीधे-सीधे गिरिराज सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह हार मान चुके हैं। गिरिराज सिंह को भय है कि कन्हैया जीत जाएगा, इसलिए अब गिरिराज सिंह लोकतंत्र की हत्या करते हुए अपने गुंडों द्वारा उन पर हमलों जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जबकि सच ये भी है कि जब से कन्हैया कुमार के देश विरोधी और सैनिकों के बारे में भद्दी टिप्पणी करती उनकी वीडियो सोशल मीडिया और मीडिया पर दिखाई गई तभी से बिहार के लोक उनसे भड़के हुए हैं। यहाँ तक कन्हैया के अपने गाँव में भी उनके गाँव वाले भी उन्हें धकिया के भगा रहे हैं।