Sunday, September 29, 2024
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मुंशी प्रेमचंद की यादगार कहानी ईदगाह वाला बच्चा ‘हामिद’ मिज़ोरम के अस्पताल में!

दया और निश्छल भाव में मासूम बच्चों का कोई सानी नहीं होता। कोमल मन की पराकाष्ठा के प्रतीक इन बच्चों का दिल सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम करना जानता है। फिर चाहे वो इंसान हो या कोई छोटा-सा, नन्हा-सा जीव हो। ऐसी ही एक तस्वीर सोशल मीडिया पर ख़ूब छाई हुई है, जिसमें बच्चे के एक हाथ में ₹10 का नोट है और दूसरे हाथ में घायल अवस्था में एक चूजा (मुर्गी का बच्चा) है।

ख़बर मिज़ोरम की है। यहाँ एक बच्चे से ग़लती से अपने पड़ोसी के चूजे पर साईकिल चढ़ जाती है। इस दौरान मासूम बच्चे को अपराधबोध का एहसास होता है। वो उसके इलाज के लिए अपने पास जमा पूरी पॉकेट मनी लेकर तुरंत अस्पताल पहुँच जाता है।

ख़बर के अनुसार, बच्चे ने अस्पताल में डॉक्टर से कहा कि ये पैसे ले लीजिए और चूजे का इलाज कर दीजिए। आप इस तस्वीर को देखकर अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बच्चे के मन में उस चूजे को लेकर कितनी करुणा और तकलीफ़ का भाव है, इसे हम शब्दों से बयाँ नहीं कर सकते।

बता दें कि इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर सांगा सेज (Sanga Says) नाम के यूजर ने शेयर किया है। फ़िलहाल इस बात की तो कोई ख़बर नहीं है कि घायल अवस्था में वो चूजा बच सका कि नहीं लेकिन इस मासूम ने अपनी ज़िम्मेदारी को बख़ूबी अंजाम दिया जो वाकई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

अक्सर हमारे सामने ऐसी ख़बरें आती हैं कि फलाँ दिन सड़क पर कोई किसी को गाड़ी से टक्कर मारकर, घायल अवस्था में मरने के लिए तड़पता हुआ छोड़ गया। इसके अलावा जैसे सड़क किनारे कोई ज़ख़्मी हालत में हो तो वहाँ से गुजरने वाले लोग अक्सर जी चुराकर कन्नी काटने को बेहतर विकल्प समझ आगे बढ़ जाते हैं। ऐसे में इस मासूम की तड़प जो उसे अस्पताल तक ले पहुँची, उन सभी जी चुराने वालों के लिए एक तमाचा है। इससे सीख लेनी की ज़रूरत सभी को है।

इस बच्चे का नाम जो भी है लेकिन इसने हम सब को मुंशी प्रेमचंद के किरदार हामिद की याद दिला दी। ‘ईदगाह’ में हामिद भी अपने पैसों से मेले में कुछ खाने या खिलौने खरीदने के बजाय दादी माँ के लिए चिमटा लेकर जाता है ताकि रोटियाँ बनाते वक्त उनके हाथ न जलें।

Video: कन्हैया को माला पहनाने के बाद बेगूसराय के ग्रामीणों ने बोला – ‘हर हर मोदी’

बेगूसराय के आज़ाद नगर स्थित एक गाँव में जब सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया कुमार चुनाव प्रचार के लिए पहुँचे, तो ग्रामीणों ने उनका स्वागत फूल-मालाओं से किया लेकिन उन्हें वोट देने से इनकार कर दिया। ग्रामीणों ने कहा कि भले ही कन्हैया का बेगूसराय में कुछ नाम बना हो लेकिन उनका वोट तो मोदीजी को ही जाएगा। उन्होंने पुलवामा हमले के बाद हुई एयर स्ट्राइक का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारे पास ऐसा प्रधानमंत्री है जो देश के लिए लड़ता है, देश के लिए जीता-मरता है, तो हम किसी और को क्यों वोट दें? नीचे इस वीडियो में ख़ुद ही देख लें, ग्रामीणों ने क्या कहा।

ट्विटर पर लेखक एवं पत्रकार राहुल पंडिता द्वारा ट्वीट किए गए वीडियो में ग्रामीणों की राय देखकर साफ़-साफ़ लगता है कि नरेंद्र मोदी की इमेज आम जनों के मन में एक प्रभावशाली और निर्णायक नेता की है। ऐसा नेता, जो कड़े फैसले लेने की क्षमता रखता है। ग्रामीणों ने कहा कि सिर्फ़ कन्हैया ही नहीं बल्कि गाँव में कोई भी नेता आता है तो फ़र्ज़ निभाते हुए उसका स्वागत करेंगे लेकिन वोट मोदीजी को ही देंगे।

वीडियो में ग्रामीणों का कॉन्ग्रेस के प्रति गुस्सा भी देखा जा सकता है। ग्रामीणों का कहना था कि आज़ादी के बाद से लगातार हमारे जवान वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं लेकिन कॉन्ग्रेस पार्टी ने कभी उनके लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वो ऐसी पार्टी है जो पाकिस्तान के ही गुण गाती रहती है। बकौल ग्रामीण, हमारे पास मोदीजी के रूप में एक ऐसा नेता है जो देश के गीत गाता है।

बेगूसराय में गिरिराज सिंह के पहुँचते ही कन्हैया गैंग में हड़कंप मचा हुआ है। उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान भी लोगों का साथ नहीं मिल रहा है। हाल ही में बिहार के बेगूसराय में CPI उम्मीदवार कन्हैया कुमार को ग्रामीणों ने खदेड़ दिया था। दोनों तरफ के लोगों के बीच झड़प हुई ऐसा भी कहा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसे उनके काफिले पर हमला भी कहा जा रहा है। बताया जा रहा है कि कल सुबह जब कन्हैया प्रचार के लिए जा रहे थे उसी समय कुछ असामाजिक तत्वों ने सड़क को जाम कर दिया था। जब कन्हैया के समर्थक जाम खुलवाने के लिए गए तो वही उनसे झड़प होने लगी।

हालाँकि, कन्हैया कुमार ने सीधे-सीधे गिरिराज सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह हार मान चुके हैं। गिरिराज सिंह को भय है कि कन्हैया जीत जाएगा, इसलिए अब गिरिराज सिंह लोकतंत्र की हत्या करते हुए अपने गुंडों द्वारा उन पर हमलों जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जबकि सच ये भी है कि जब से कन्हैया कुमार के देश विरोधी और सैनिकों के बारे में भद्दी टिप्पणी करती उनकी वीडियो सोशल मीडिया और मीडिया पर दिखाई गई तभी से बिहार के लोक उनसे भड़के हुए हैं। यहाँ तक कन्हैया के अपने गाँव में भी उनके गाँव वाले भी उन्हें धकिया के भगा रहे हैं।

UP: पूर्व सांसद, पूर्व विधायक व पूर्व राज्यमंत्री सहित कई नेता BJP में शामिल, विपक्ष सदमे में

भाजपा ने ऐन चुनावी वक्त पर विपक्षी खेमे को बड़ा झटका दिया है। अमेठी, कन्नौज, आगरा से लेकर मुज़फ़्फ़रनगर तक, राज्य में विपक्ष के कई बड़े चेहरे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उत्तर प्रदेश में भाजपा अब और मजबूत दिखने लगी है। जिन प्रमुख नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की, उनके बारे में जानकारी:

निर्मल तिवारी, पूर्व सांसद प्रत्याशी, बसपा

कन्नौज में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ चुके निर्मल तिवारी ने भाजपा ज्वाइन कर ली। 2014 आम चुनाव में बसपा ने उन्हें डिंपल यादव से मुकाबला करने के लिए उतारा था। हालाँकि, डिंपल ने इस सीट से जीत दर्ज की थी, सवा लाख से भी अधिक वोटों के साथ निर्मल तिवारी तीसरे नंबर पर रहे थे।

मोहम्मद मुस्लिम, पूर्व विधायक, तिलोई

डॉक्टर मोहम्मद मुस्लिम अमेठी जिला स्थित तिलोई के विधायक रहे हैं। उन्होंने 2012 में 61,000 से भी अधिक मत पाकर कॉन्ग्रेस पार्टी के टिकट से इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2016 में उन्हें कॉन्ग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार कपिल सिब्बल के विरुद्ध वोट करने के कारण पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में वो दूसरे स्थान पर रहे थे। वो विधानसभा में कॉन्ग्रेस के मुख्य सचेतक भी रहे हैं। तिलोई विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की प्रभावी संख्या होने के कारण उनके जुड़ने से भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद है।

सुरेश पासी, पूर्व सांसद, कौशाम्बी

कौशाम्बी (तब चायल) लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 1999 में संसद पहुँचे थे। 2014 आम चुनाव में उन्होंने सपा के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था। उन्हें उस चुनाव में 2 लाख से भी अधिक वोट मिले थे। अंदेशा लगाया जा रहा था कि वह 2019 आम चुनाव में कौशाम्बी से महागठबंधन का चेहरा होते। लेकिन उनके भाजपा में शामिल होने से विपक्ष को इलाक़े में झटका लगा है।

नित्यानंद शर्मा, पूर्व राज्यमंत्री

नित्यानंद शर्मा को सपा सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त था। वो राज्य शिशिक्षु परिषद के अध्यक्ष भी रहे थे। अखिलेश सरकार में शर्मा दर्जा प्राप्त टेक्निकल एजुकेशन मिनिस्टर थे।

राम सकल गुर्जर (आगरा), पूर्व मंत्री

आगरा के जाने-पहचाने चेहरे व अखिलेश सरकार में स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहे राम सकल गुर्जर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। उनके साथ पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भी भाजपा में शामिल हुए। सपा शासनकाल में खेल मंत्री रहे गुर्जर की गिनती मुलायम सिंह यादव के करीबियों में होती है। उनके आने से इलाक़े में गुर्जर समाज के भी भाजपा का रुख करने की उम्मीद है। सपा सरकार में इन्हें ‘मिनी मुख्यमंत्री’ भी कहा जाता था।

पूर्व मंत्री राम सकल गुर्जर के भाजपा में शामिल होने के समय केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद रहे

उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि विपक्ष के बड़े चेहरे भाजपा में शामिल हो रहे हैं और प्रियंका गाँधी ने भी आगामी चुनाव में मोदी लहर को स्वीकार कर लिया है। उपर्युक्त नेताओं के अलावा टीवी कलाकार मुकेश त्यागी, पूर्व बसपा प्रत्याशी जगदीश गौतम, रालोद के पूर्व प्रदेश महामंत्री राजीव चौधरी, रामनरेश भारतीय सहित कई और नेताओं ने भी भाजपा का दामन थामा। इस दौरान कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, राज्यमंत्री मोहसिन रजा, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित, प्रवक्ता समीर सिंह भी मौजूद थे।

‘BJD नेता व MLA उम्मीदवार ने मेरा रेप किया था’ – CM हाउस के बाहर खुद को जलाने पहुँची पीड़िता

उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आवास के सामने एक महिला ने आत्मदाह की कोशिश की है। बुधवार (अप्रैल 3, 2019) को मुख्यमंत्री के निवास स्थान ‘नवीन निवास’ के सामने महिला ने आत्मदाह की कोशिश की। महिला ने बीजद नेता और उडाला विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार श्रीनाथ सोरेन पर बलात्कार का गंभीर आरोप लगाया। मामला 2014 का बताया जा रहा है। महिला ने बताया कि सोरेन ने अपने एक अन्य साथी के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था। उडाला विधानसभा क्षेत्र ओडिशा के मयूरभंज ज़िले में स्थित है। ओडिशा में विधानसभा चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव के साथ ही होने हैं।

ऐन वक्त पर नवीन पटनायक के आवास के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने महिला द्वारा आत्मदाह की कोशिश को देख लिया और फिर महिला को बचाया। सुरक्षाकर्मियों ने महिला को आत्मदाह करने से रोकने में सफलता पाई। महिला ने अपने ऊपर केरोसिल तेल डाल लिया था, लेकिन आग लगाने से पहले ही उसे बचा लिया गया। महिला ने कहा कि पटनायक द्वारा सोरेन को उडाला से उम्मीदवार बनाए जाने का उसे दुःख पहुँचा है और उसकी उम्मीदवारी को रोकने के लिए उसने ऐसा किया। भुवनेश्वर के डीसीपी अनूप साहू ने बताया कि उक्त महिला का स्वास्थ्य अब ठीक है।

हालाँकि, श्रीनाथ सोरेन ने महिला के आरोपों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ये उनके विरोधियों द्वारा रची हुई एक साज़िश है ताकि उन्हें आगामी चुनावों के मद्देनज़र बदनाम किया जा सके। उन्होंने महिला को पहचानने से भी इनकार कर दिया और कहा कि वो उसे जानते ही नहीं। दरअसल, जनवरी 2014 में उडाला के तत्कालीन विधायक श्रीनाथ सोरेन और उनके क़रीबी स्वरुप दास पर महिला ने गैगंरेप का मामला दर्ज कराया था। महिला ने अपनी शिकायत में यह भी कहा था कि उसने विधायक को सरकारी नौकरी दिलाने के लिए एक लाख रुपए घूस के रूप में दिया था।

शिकायत के अनुसार, जब विधायक उक्त महिला को सरकारी नौकरी दिलाने में नाकाम रहे तो महिला ने अपने रुपए वापस माँगने शुरू कर दिए। बार-बार आग्रह करने पर विधायक ने रुपए देने के बहाने महिला को अपने निवास पर बुलाया जहाँ उसके साथ गैंगरेप किया गया। महिला ने ओडिसा पुलिस पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस ने मामले में कोई कार्रवाई नहीं की और हाथ पर हाथ धर कर बैठी रही। उडाला के पूर्व विधायक श्रीनाथ सोरेन तब चर्चा में आए थे, जब विधायन बनने के बाद भी उन्हें बीपीएल कार्ड जारी कर दिया गया था। उनके पास महँगी गाड़ियाँ और सोने के ज़ेवर होने के बावजूद उन्हें ओडिशा सरकार ने बीपीएल कार्ड दिया था।

कॉन्ग्रेस घोषणापत्र के झूठ और चरमसुख पाते पत्रकार: आदतन तुमने कर दिए वादे…

जब मैं वादों की बात कर रहा हूँ, तो मतलब यह है कि मैं चुनावों की बात कर रहा हूँ। जब मैं चुनावों और वादों की बात कर रहा हूँ, तो मैं मैनिफ़ेस्टो यानी, घोषणापत्रों की बात कर रहा हूँ। और, घोषणापत्र तो फ़िलहाल एक ही है जिस पर बात हो रही है: कॉन्ग्रेस पार्टी का घोषणापत्र। इस मैनिफ़ेस्टो का विश्लेषण हो रहा है, जहाँ प्राइम टाइम एंकर इसे तोड़-तोड़ कर जेटली और मोदी को ललकार रहे हैं। 

छुटभैये प्रकाशपुंज टाइप के फेसबुकिया पत्रकार इसे विजनरी और कालजयी लिख रहे हैं। फिर मैं याद करने लगता हूँ कि पिछली बार इस तरह की उम्मीद किसी घोषणापत्र ने कब जगाई थी। याद कुछ नहीं आता, बस याद यह आता है कि आज कल फ़िल्मों के ट्रेलर ही नहीं आते, पोस्टर आते हैं, मोशन पोस्टर आते हैं, टीज़र वन, टू और थ्री आते हैं, फिर ट्रेलर वन आता है, फिर ट्रेलर टू आता है, फिर गाने आते हैं, गाने की मेकिंग आती है… और खाली बैठे एंटरटेनमेंट बीट के पत्रकार पोस्टर से लेकर ट्रेलर तक के रिव्यू लिखते हैं।

ये पत्रकार भी उसी मोड में हैं। ये राहुल गाँधी के बीस लाख नौकरियों के रैली वाले बयान पर मोदी को घेरते हैं कि मोदी ऐसा क्यों नहीं कहते! अरे भाई, मोदी कहता नहीं, करता है। नौकरी के मुद्दे पर घेर कर थक गए तो रवीश कुमार चुटकुला बनाते फिर रहे हैं कि ओला का ड्राइवर और स्विगी का डिलीवरी ब्वॉय बनने को रोजगार नहीं कहा जा सकता।

जबकि जानकारों ने, जो रवीश से तो ज़्यादा ही जानकारी रखते हैं, आँकड़ों से बताया है कि प्रोफ़ेशनल सेक्टर में ही, जो पूरी तरह से प्राइवेट है, पिछले चार सालों में 40 लाख नौकरियाँ दी हैं, बाकी की करोड़ों नौकरियों की बात रहने ही दीजिए। ये नौकरियाँ डिलीवरी ब्वॉय और ड्राइवर की नहीं हैं लेकिन, जिस व्यक्ति का यह दंभ हो कि वो लाल माइक लेकर कहीं भी जाता है, और किसी के भी पास रोजगार नहीं है, तो ये विक्षिप्त होने की निशानी है। सवाल यह है कि अगर आप उन इलाकों में प्रोग्राम करने जाएँगे जहाँ हर आदमी तैयारी कर रहा है, तो ज़ाहिर है कि सौ प्रतिशत लोग वहाँ बेरोज़गार ही मिलेंगे। मुखर्जीनगर में जो बच्चे यूपीएससी और एसएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, वो बेरोज़गार नहीं होंगे तो आखिर वो तैयारी कर क्यों रहे हैं?

कभी लाल माइक लेकर उन्हें रेसिडेंशियल सोसायटी में जाना चाहिए, साइबर हब में जाना चाहिए, फ़िल्मसिटी में जाना चाहिए, तब लगेगा कि सबके पास नौकरी है। क्योंकि, वाक़ई ऐसी जगहों में रहने वाले लोग अमूमन वही होते हैं जो नौकरी करते हैं। इसलिए, ये दोनों ही तरीक़ा गलत है। तब आपको हमेशा बेरोज़गार भीड़ ही दिखेगी जब आपका एजेंडा क्लियर हो और आप माइक लेकर गलत जगहों पर ही जाते हों।

खैर, रवीश कुमार पर ज़्यादा नहीं कहना, क्योंकि उनकी जगह दो पैराग्राफ़ लायक ही है। वादों पर बात करते हुए, मैं आपको यह नहीं बताऊँगा कि कॉन्ग्रेस के मैनिफ़ेस्टो में क्या है, क्योंकि जब मैं लिखता हूँ, बोलता हूँ, तो मैं यह मानकर चलता हूँ कि मुझे पढ़ने और सुनने वाले, इतनी मेहनत करके आते हैं। 

विपक्ष में रहने वाले लोगों के चुनावी वादे सबसे ज्यादा क्रिएटिव और आउटरेजस होते हैं। आउटरेजस से तात्पर्य है दिमाग झनझना देना वाला। वो वास्तव में ‘कुछ भी’ बोल लेते हैं। उनके ‘कुछ भी’ बोल लेने के पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है कि मैनिफेस्टो हमेशा एकतरफ़ा ही होता है, उस पर जनता सवाल नहीं करती कि ये जो लिख गए हो, वो करोगे कैसे? क्योंकि जनता को फ़्री के कुकर और लैपटॉप में ज्यादा आस्था रहती है।

जनता इतनी बेकार की सामूहिक संस्था बनती जा रही है जिसके लिए छः लेन का एक्सप्रेस वे किसी काम का नहीं, अगर उसकी गली में आने वाली सड़क उसकी देहरी को न छूती हो। इसीलिए जनता न तो विकास समझती है, न प्रकाश, उसे सौ रुपए का नोट देकर, पार्टियाँ लाखों करोड़ के घोटाले कर जाती है जिसे वो पेपर में पढ़ कर कोसते रहते हैं। 

कॉन्ग्रेस ने इस बार न सिर्फ बीस साल पहले के कुछ वादे बिना किसी एडिटिंग के सलामत रखे हैं, जैसे उनकी दादी ने ग़रीबों की गरीबी को सलामत रखा और सास द्वारा बहू तक ट्रांसफर होने वाले ख़ानदानी कंगनों की तरह राहुल गाँधी तक पहुँचाया (क्योंकि वो अभी अविवाहित हैं), बल्कि ऐसी बातें कह दी हैं जिन्हें शास्त्रों में ‘टू गुड टू बी ट्रू’ कहा जाता है। 

कॉन्ग्रेस का मैनिफेस्टो हार को स्वीकार लेने जैसा है। पाँच सालों में वाहियात विपक्ष बनकर मीडिया के कैम्पेनों पर निर्भर होकर, उनके द्वारा लगातार चल रहे साम्प्रदायिक डिबेट में उलझ कर देश का नुकसान करने वाली यह पार्टी, मीडिया की गोदी में खेलती रही। कारण यह भी था कि इनके बड़े नेता अडानी और अम्बानी के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ कर पैसा बनाने में व्यस्त थे, और राहुल गाँधी को जितना लिख कर दिया गया, उसमें भी जेब फाड़कर हाथ हिलाते नजर आने लगे।

राहुल गाँधी स्वयं तो मजाक का वैयक्तीकरण हैं ही, लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद भी (या कन्फर्म होने के प्रोसेस में भी) कभी भी राजनीति को गम्भीरता से लिया ही नहीं। उन्हें यह लगता रहा कि दिस टू शैल पास! राजनीति जब विरासत में मिली हो, तो लोग अपने जीन्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं। उनकी हर रैली अपनी मूर्खता को ज्यामीतीय अनुक्रम में बढ़ाने के लिए हुई है, जिसके पीछे, मुझे यक़ीन है कि कॉन्ग्रेस में भीतरघाती दुश्मन लगे हुए हैं। 

जब आपने कभी असली मुद्दों पर बात की ही नहीं, और जो मुद्दा पकड़ा, उसका सच बाहर निकल कर यह आया कि उस राफेल डील के न होने के पीछे आपकी यूरोफाइटर के लिए अगस्ता वैस्टलैंड वाले दलाल मिशेल की लॉबिंग थी, आपके निजी हित उसमें शामिल थे, तो आपको राफेल, अम्बानी और तीस हजार करोड़ का कैसेट पान की दुकान पर रिकॉर्ड करवा कर बजाना पड़ा। ‘हाल’ (HAL) की बात की, और उसे बर्बाद करने की बात की, तो कल की बासी ख़बर से पता चला कि 2018-19 के वित्त वर्ष में संस्था ने रिकॉर्ड ₹19,600 करोड़ का टर्नओवर दर्ज किया।

खैर, फिर से घोषणापत्र के ढकोसले पर आते हैं कि जो पार्टी सबसे बेकार कंडीशन में होती है, उसके वादे सबसे ज्यादा आसमानी होते हैं। कॉन्ग्रेस का वही हाल है। 2014 के पहले महीने से ‘कहाँ हैं अच्छे दिन’ और ‘विकास पागल हो गया’ की माला जपने वाले अब विकास की बात नहीं कर रहे। विकास पर इतने आँकड़े मोदी ने, उनकी कैबिनेट ने, मीडिया ने गिनाए हैं कि अजेंडाबाज पत्रकारों से लेकर माओवंशी गिरोह तक विकास के ट्रैक से उतर कर कहीं और भाग रहा है। 

मोदी ने हाल ही में दिए इंटरव्यू में भी कहा कि विकास के मुद्दे पर आकर बात करे जिसे भी करना है। लेकिन, वो मुद्दा गायब है और रैलियों से लेकर नौटंकीबाज़ लेखकों तक बात अब ‘नफ़रत की राजनीति’ जैसे बेहूदे वाक्यांशों पर लाने की कोशिश हो रही है। बात अब इस पर हो रही है कि कॉन्ग्रेस का घोषणापत्र कितना विजनरी है, जबकि उसमें दो-दो लाइन में बातें कही गई हैं, उनके होने के तरीके कहीं नहीं लिखे गए। 

यह कह देना बहुत आसान है कि हर गरीब को 72,000 रुपए दिए जाएँगे, लेकिन बजट और फिस्कल डेफिसिट के आलोक में वो पैसा नेहरू जी दे जाएँगे या मनमोहन के जादू की छड़ी से आएगा, ये कहीं नहीं बताया गया। कह दिया गया है कि जीएसटी खत्म कर दिया जाएगा, और नए तरह के टैक्स लागू किए जाएँगे, लेकिन यह नहीं बताया गया कि जीएसटी के कलेक्शन को, नए तरह के टैक्स से कैसे बढ़ाया जाएगा, उसका तरीक़ा क्या होगा, और अभी के तरीके में क्या समस्या है जबकि कमिटी में सारी पार्टियों के लोग हैं।

कह दिया गया कि ये हटा देंगे, वो लगा देंगे, लेकिन लिखते वक्त बस लिखा ही गया है, कश्मीर या उत्तरपूर्व की ज़मीनी स्थिति को बिना समझने की कोशिश किए सेना को कटघरे में रख दिया गया है। समझेंगे भी तो कैसे, ये एलीट ख़ानदानों के चिराग़, जिनके गुणसूत्रों में 22 जोड़े तो X और Y हैं, लेकिन तेइसवाँ जोड़ा P और M वाला है, ज़मीन पर उतरे कब कि पता चले हर खेत में फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट ही लगा दोगे तो खेती कहाँ होगी!

इन्होंने ख़्वाब बेचकर राजस्थान और मध्यप्रदेश में सत्ता पा ली है, और किसानों के साथ जो तेरह रुपए वाले मजाक किए हैं, उसके बाद भी इन्हें लगता है कि कल्पना बेचकर यह चौवालीस से बेहतर कर पाएँगे। वैसे, सेना की बात पर तो कॉन्ग्रेस ने कन्सिस्टेन्सी दिखाई, जिसके लिए वो बधाई के पात्र हैं। उन्होंने जिस सहृदयता से एनएसए को संसद के प्रति जवाबदेह बनाने की बात की, सेना को लेकर यौनशोषण और मानवाधिकारों को रौंदने की बातें पाकिस्तान के समाचारपत्रों की टोन में की, राजद्रोह को कानूनी मान्यता प्रदान करने की बात की, इससे लगता है कि पूरी कैबिनेट ने साथ बैठकर मुल्क की माचिस जलाने का लक्ष्य रखा है।

पत्रकारों को चरमसुख मिल रहा है क्योंकि पत्रकारों के हर स्टेटस पर भक्त लोग आँकड़ा फेंक आते हैं और उन बेचारों के पास अब दो ही रास्ते बचे हैं। पहला यह कि विकास संबंधी नैरेटिव को नकार कर प्रेम और नफ़रत जैसे फर्जी शब्दों पर बात करने लगें; और दूसरा यह कि अपनी बात पर अड़े रहें कि नहीं, विकास कहीं नहीं हो रहा, नौकरियाँ कहीं नहीं है, मोदी देश को बर्बाद कर रहा है।

जब आँख मूँद कर ही बैठे हैं, तो यही लाइन क्यों न बार-बार कहते रहें। कम से कम रवीश के भक्त तो खुश रहेंगे कि हमारे देवतातुल्य एजेंडाबाज पत्रकार शिरोमणि पाँच साल से एक ही बात पर टिके हुए हैं ये नहीं कि मोदी बनकर इतनी योजनाएँ बना दीं और इतने लोगों की ज़िंदगी पर सकारात्मक और प्रत्यक्ष प्रभाव डाला कि गिनने वाला भी गिन नहीं पाता।

इसलिए, अब देश में क्या बन गया है, कैसे टैक्स कलेक्शन बढ़ा, किस तरह से सत्रह टैक्स की जगह एक टैक्स आया है, कैसे अर्थ व्यवस्था सधी हुई गति से आगे जा रही है, कैसे ढाँचे बन रहे हैं, कैसे सड़कें, पुल और जल परिवहन के रास्ते तैयार हो रहे हैं, कैसे गरीब आदमी केन्द्रीय वित्तीय व्यवस्था के दायरे में आ रहा है, कैसे एक ही गरीब को सौभाग्य से एलईडी, विद्युतीकरण से बिजली, उज्ज्वला से गैस, स्वच्छता से शौचालय, आवास से घर, राशन से सस्ता अनाज और स्किल से रोजगार के अवसर मिल रहे हैं, इसे एक लाइन में ‘अरे कुछ नहीं हुआ है, मोदी ने बर्बाद कर दिया है देश को’ कह कर नकार देते हैं।

मजबूरी है, कर भी क्या सकते हैं। अगर सही मुद्दों पर बात करने लगेंगे, तो आँकड़ों और ज़मीनी हक़ीक़त के सामने प्रोपेगेंडा बहुत समय तक नहीं चल पाएगा। पहले ही कार्यकाल में अंधेरा को भी तस्वीर बना लिया, हर तीसरे दिन आपातकाल भी ले आए, हर बात पर मोदी को चैलेंज भी कर दिया, देश की बर्बादी की तस्वीर भी बना डाली, लेकिन हुआ वैसा कुछ भी नहीं, तो अब करेंगे क्या?

अब, राहुल गाँधी जैसे अध्यक्ष की दो कौड़ी के, मैनिफेस्टो के नाम पर बेहूदे मजाक का विश्लेषण करेंगे। ये मजाक नहीं तो और क्या है? पूरी किताब बना डाली लेकिन आदमी को सक्षम बनाने की जगह उसे पंगु और लाचार रख कर, उसे जिंदगी भर मछली सप्लाय करने का वादा कर आए। आम जनता का तो समझ में आता है कि उसे मैनिफ़ेस्टो से कोई खास मतलब होता नहीं, लेकिन इन पत्रकारों ने क्या भाँग खा रखी है? 

राहुल गाँधी को इस बात की शाबाशी देने की जगह कि उसने कितनी बेहतरीन बातें लिखवाई हैं, ये क्यों नहीं पूछा जा रहा कि ‘अरे पगले, ये सब करेगा कैसे?’ ये नहीं पूछा जाएगा क्योंकि राहुल गाँधी की सीमा कॉन्ग्रेस को भी पता है, जीभ पर सैंड पेपर लेकर घूमने वाले चाटुकार पत्रकारों को भी पता है, और राहुल गाँधी को भी पता है। सबको पता है कि राहुल गाँधी ने जब-जब इंटरव्यू दिया है तो वो महिलाओं को ‘वही मजा’ देने से लेकर पता नहीं किस मल्टीवर्स के किस आयाम तक घूम आते हैं।

इसलिए, राहुल गाँधी के इस मैनिफ़ेस्टो में क़ैद छलावे को भविष्य बताने वाले पंडितों के समूह को इसे, कालिदास के मुक्के को ‘पाँच तत्वों के मिलने से जीव बनता है’, जैसा बताने दीजिए, लेकिन ध्यान रहे कि राहुल गाँधी जनेऊ भले दिखाता है, लेकिन वो इतना डेडिकेटेड नहीं है कि काली मंदिर में बारिश में हर रात दिया जलाए, और विद्योत्तमा के दरवाज़े पर पहुँच कर, उसके यह पूछने पर कि ‘अस्ति कश्चित् वाग्विशेषः’, उन तीनों शब्दों से, ‘अस्ति’ शब्द से ‘कुमारसम्भवम्’; ‘कश्चित्’ शब्द से ‘मेघदूतम्’, और ‘वाग्विशेषः’ शब्द से ‘रघुवंशम्’ नामक तीन महाकाव्यों की शुरुआत करे। 

आर्टिकल का वीडियो यहाँ देखें


बेगूसराय में कन्हैया कुमार खदेड़े गए, झड़प के बाद गिरिराज सिंह पर लगाया आरोप

बिहार के बेगूसराय में CPI उम्मीदवार कन्हैया कुमार को ग्रामीणों ने खदेड़ दिया है। दोनों तरफ के लोगों के बीच झड़प हुई ऐसा भी कहा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसे उनके काफिले पर हमला भी कहा जा रहा है। बताया जा रहा है कि आज सुबह जब कन्हैया प्रचार के लिए जा रहे थे उसी समय कुछ असामाजिक तत्वों ने सड़क को जाम कर दिया था। जब कन्हैया के समर्थक जाम खुलवाने के लिए गए तो वही उनसे झड़प होने लगी।

हालाँकि, कन्हैया कुमार ने सीधे-सीधे गिरिराज सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह हार मान चुके हैं। गिरिराज सिंह को भय है कि कन्हैया जीत जाएगा, इसलिए अब गिरिराज सिंह लोकतंत्र की हत्या करते हुए अपने गुंडों द्वारा उन पर हमलों जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।

जबकि सच ये भी है कि जब से कन्हैया कुमार के देश विरोधी और सैनिकों के बारे में भद्दी टिप्पणी करती उनकी वीडियो सोशल मीडिया और मीडिया पर दिखाई गई तभी से बिहार के लोक उनसे भड़के हुए हैं। यहाँ तक कन्हैया के अपने गाँव में भी उनके गाँव वाले भी उन्हें धकिया के भगा रहे हैं।

बता दें कि बिहार में बेगूसराय सीट से भाजपा के टिकट पर लोकसभा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा था कि उनकी लड़ाई ‘देश के गद्दार’ से है। गिरिराज सिंह ने पिछले दिनों बेगूसराय में ही एनडीए के नेता और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “मुझे पूरा भरोसा है कि बेगूसराय के लोग न केवल उन्हें (देशद्रोही) को हराएँगे, बल्कि उन्हें मुँहतोड़ जवाब भी देंगे।”

गिरिराज सिंह ने यह भी कहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी लडाई ‘किसी पार्टी या उम्मीदवार’ के खिलाफ नहीं, बल्कि राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ है।  

कन्हैया कुमार सहित विपक्षी नेताओं का नाम लिए बिना गिरिराज सिंह ने कहा था कि पाकिस्तान में वायुसेना के हवाई हमले के सबूत माँगने वाले देशद्रोही लोग चुनाव मैदान में हैं। “मैं देशद्रोहियों को हराने के लिए बेगूसराय आया हूँ।”

दरअसल आज पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कन्हैया का एक रोड शो था और सुबह 8:00 बजे से ही अपने समर्थकों के साथ कपस्या चौक से निकलकर विभिन्न मार्गों से होते हुए कन्हैया जब लोहिया नगर पहुँचे तो भड़के लोगों से झड़प हुई। हालाँकि, इस मामले में पुलिस ने भी त्वरित कार्रवाई करते हुए वीडियो क्लिप के आधार पर आरोपियों की शिनाख्त शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार आरोपियों की पहचान होते ही उन पर एफआईआर की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

तमिलनाडु BJP उपाध्यक्ष के काफिले पर हमला, एक व्यक्ति लहूलुहान

1 अप्रैल को तमिलनाडु के पेरियापट्टिनम में बीजेपी की ओर से चुनाव रैली की जा रही थी, इसी दौरान बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष नैनार नागेंद्रन के चुनाव अभियान के दौरान किसी ने बोतल फेंककर हमला कर दिया। बोतल लगने से एक व्यक्ति घायल हो गया। इस हमले से वहाँ अफरा-तफरी मच गई। नैनार नागेंद्रन रामनाथपुरम संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।

तमिलनाडु की रामनाथपुरम लोकसभा सीट पर 18 अप्रैल को दूसरे चरण में वोट डाले जाएँगे। NDA में समझौते के तहत यह सीट बीजेपी के खाते में गई है। पार्टी ने नैनार नागेंद्रन को उम्मीदवार बनाया है, जबकि UPA गठबंधन की ओर से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने यहाँ से के. नवासकणि को टिकट दिया है।

रामनाथपुरम लोकसभा सीट पर कुल 23 उम्मीदवार मैदान में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में रामनाथपुरम सीट से AIDMK ने यहाँ से जीत दर्ज की थी और ए. अनवर राजा यहाँ से सांसद हैं। उन्हें 4,05,945 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर DMK के एस मोहम्मद जलील रहे थे, जिन्हें 2,86,621 वोट मिले थे।

विवेक अग्निहोत्री ने ‘पक्षकार’ राजदीप को याद दिलाई पत्रकारिता, उसकी अजेंडाबाज़ी को किया एक्सपोज़

पत्रकारिता के नाम पर आजकल कुछ वामपंथी या कॉन्ग्रेस पोषित पत्रकार किस तरह से खुलेआम ‘पक्षकार’ होने के बावजूद भी निष्पक्ष पत्रकार बने हुए हैं। इसकी बानगी देखिए, इंडिया टुडे के सेलिब्रिटी टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित उनकी आगामी बायोपिक के बारे में अभिनेता विवेक ओबेरॉय का साक्षात्कार लेते हुए लाइव टेलीविज़न शो पर कई जगह सवाल पूछने के नाम पर विपक्ष के नाम से वह सारे सवाल किए, जो उनके एजेंडा को शूट करते हैं, वो भी बिना फिल्म का ट्रेलर देखे ही।

फिर भी कमाल की बात ये है कि अपने ही शो में राजदीप विवेक ओबेरॉय द्वारा कई बार बेचैन और निःशब्द किए गए। एक जगह सरदेसाई ने विवेक से पूछा अपने दिल पर हाथ रख के कहिए कि क्या इस फिल्म को बनाने के लिए किसी भी राजनीतिक पार्टी से पैसा मिला है? विवेक ने तो इसका जवाब ना में दे दिया, प्रॉसेस भी समझा दिया। लेकिन क्या राजदीप जानते हुए भी ये सवाल उन तमाम पक्षकारों, लेखकों या अन्य खुले-तौर पर प्रोपेगेंडा बाजों से पूछने की हिम्मत कर सकते हैं? जवाब नहीं है, खुलेआम एजेंडा चलाते राजदीप को कई बार धरा गया है। लेकिन इसके बाद भी उनकी पक्षकारिता निष्पक्षता के चोंगे में लिपटी सुरक्षित है।

इसी इंटरव्यू में, जब राजदीप ने पीएम मोदी की बायोपिक पर अपनी राय और घृणा विपक्ष के कंधों पर बन्दूक रख के चलानी चाही तो उनकी सड़ाँध बाहर आते देर नहीं लगी। साथ ही राजदीप ने विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित आगामी फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ और अनुपम खेर स्टारर ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ जैसी अन्य फिल्मों पर भी पूर्वग्रह ग्रसित कमेंट किया।

साक्षात्कार के इस विशेष भाग में, राजदीप सरदेसाई ने विवेक ओबेरॉय से कहा कि वह राजनीतिक दलों के बीच रस्साकशी के बीच फँसे हुए हैं क्योंकि फिल्म के रिलीज़ का समय संदिग्ध है। इससे पहले जब चुनाव के समय किसान आंदोलन प्रायोजित किए गए, अवॉर्ड वापसी का पूरा नाटक चला वो भी चुनाव से पहले ही था तब उन्हें उसमें प्रोपेगेंडा और किसी एक व्यक्ति के प्रति दुराग्रह नज़र नहीं आया और अब जब 200 लेखक खुलेआम बीजेपी को वोट न देने की अपील कर रहे हैं तो राजदीप को उसमें न दुराग्रह नज़र आ रहा, न पक्षकारिता, न लोकतंत्र की हत्या, न प्रोपेगेंडा।

राजदीप ने कहा कि अन्य फिल्मों, जैसे ताशकंद फाइल्स, को भी रिलीज़ किया जा रहा है जिससे ‘कॉन्ग्रेस नेतृत्व’ पर सवाल उठाए जा रहे हैं। शायद यहाँ राजदीप ये भूल गए कि कहाँ गया उनका वह आदर्श कि सवाल पूछे जाने चाहिए। क्या यहाँ वह यह कहना चाहते हैं जब सवाल कॉन्ग्रेस या वामपंथियों पक्षकारों से हो तो मुँह पर ताला लगा लेना चाहिए?

बता दें कि फिल्म द ताशकंद फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म भारत के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत पर आधारित है। राजदीप को तो खुद कॉन्ग्रेस या उससे जुड़े सभी पक्षों से सवाल करना चाहिए। खैर, राजदीप सरदेसाई के इस कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल वाले सेगमेंट का जवाब देने के लिए भी ट्विटर पर विवेक अग्निहोत्री ने खुद ही मोर्चा संभाला कि आपका आरोप है कि ताशकंद फाइल्स कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रही है।

उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि जब से राजदीप सरदेसाई ने उन्हें ब्लॉक किया है, उनके पास नोट ट्वीट करने के अलावा उनसे संवाद करने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। नोट में, राजदीप के इस आरोप का जवाब देते हुए कि फिल्म ‘कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाती है’, उन्होंने पूछा कि राजदीप को कैसे पता चल गया कि फिल्म में कॉन्ग्रेस पार्टी पर सवाल उठाया गया है कि जबकि आपने अभी फिल्म देखी भी नहीं है।

विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से पूछा कि जब आपने फिल्म नहीं देखी है और पहले से ही इस बारे में झूठी अफवाह फैला रहे हैं तो क्या यह नहीं माना जाए कि आप द ताशकंद फाइल्स के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं क्योंकि वह उनके खिलाफ राजनीतिक रूप से पूर्वग्रह से प्रेरित हैं।

इसके बाद विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से पूछा कि चूँकि आपने फिल्म को बिना देखे ही यह घोषणा कर दी कि फिल्म कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाती है। तो क्या सरदेसाई यह स्वीकार कर रहे हैं कि कॉन्ग्रेस पार्टी वास्तव में लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत में शामिल थी?

इस मामले पर ऑपइंडिया से बात करते हुए, विवेक ने कहा कि राजदीप संभवतः फिल्म के ट्रेलर को भी देखे बिना ही स्वघोषित जज के रूप में फैसले दे रहे हैं।

यह एक फिल्म को दुष्प्रचारित और उसके प्रति पक्षपात पूर्ण नजरिया रखने का एक स्पष्ट मामला है। चूँकि, राजदीप भारत के एक प्रमुख पत्रकार हैं, इसलिए उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए। ऐसा पूर्वग्रह ग्रसित रवैया रखना ठीक नहीं है। ताशकंद फाइल्स एक ऐसी कहानी है, जिसमें शास्त्रीजी की मृत्यु के आसपास की सभी संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है। पात्रों में से एक वास्तव में किसी भी साजिश या हत्या के कोण को दृढ़ता से खारिज करता है। यह फिल्म के ट्रेलर में ही स्पष्ट है।

सवाल उठाने के मुद्दे पर विवेक ने कहा, “विडंबना यह है कि यह काम एक पत्रकार को करना चाहिए कि किसी भी बात की सभी संभावनाओं को तलाशना। न कि बिना देखे खुद जज बनकर ये घोषित करना कि कोई फिल्म प्रोपेगेंडा है या नहीं।”

उन्होंने आगे कहा कि अगर राजदीप वास्तव में फिल्मों और चुनावों को जोड़ना ही चाहते हैं, तो उन्हें वास्तव में उन फिल्मों के बारे में बात करनी चाहिए, जिन्होंने सेना को नकारात्मक भूमिका में चित्रित किया है, खासकर कश्मीर में।

विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से सवाल किया, “कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कश्मीर में AFSPA में संशोधन करने का वादा करते हुए कॉन्ग्रेस ने लगभग भारतीय सेना पर बलात्कारी होने का आरोप लगाया है। इससे पहले सेंसर बोर्ड के सदस्य के रूप में, आप भी इस कहानी को जानते हैं कि कैसे मैंने एक फिल्म निर्माता से विश्वसनीय प्रमाण माँगे, जब वह भारतीय सेना को ऐसे ही अत्याचार में लिप्त दिखाना चाहता था। मुझे आश्चर्य है कि क्या राजदीप ऐसी फिल्मों को कभी प्रोपेगेंडा कहेंगे।”

यह पहली बार नहीं है जब राजदीप की हिप्पोक्रेसी पकड़ी गई है। हाल ही में, राजदीप ने राहुल गाँधी द्वारा हिंदू-अल्पसंख्यक वाले क्षेत्र वायनाड से लड़ने के बारे में प्रधानमंत्री मोदी के बयान को ट्विस्ट कर उसे सांप्रदायिक रंग दे दिया और पकडे जाने पर भी राजदीप ने अपनी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।

ऐसा लगभग हर वामपंथी पत्रकार, लेखक, समर्थक कर रहा है। वह खुलेआम मतदाताओं को भड़का रहा है। उनकी राय को प्रभावित करने के लिए उन पर दबाव डाल रहा है। खुलेआम कॉन्ग्रेस के समर्थन और बीजेपी विरोध में बयानबाजी और एजेंडा परोसने के बाद भी निष्पक्ष है और देश से ऐसी ही चाटुकारिता भरे व्यवहार की उम्मीद लगाए बैठा है। पर जनता इन्हें हर जगह से खदेड़ रही है। अब न इनके पत्रकारों के गिरोह को जनता सिरियसली ले रही है न इनके लेखकों-प्रोफेसरों के अर्बन-नक्सल टुकड़ी को, बौखलाहट में इन्होने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जनता इनकी खीझ का मजा ले रही है और इनकी खिसियाहट बढ़ती जा रही है।

अब देखना ये है कि लोकसभा चुनाव तक ये पूरा गिरोह और कौन-कौन से रंग दिखाता है? कितना नीचे गिरता है? कौन-कौन सी संस्थाओं पर आरोप मढ़ता है? खुद जज बनकर फैसले सुना, उनका असर न होता देख क्या-क्या हरकत करता है? खैर, जनता तो इनके पूरे मजे लेने को तैयार है।

370 हटा तो कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा, हाथ काट देंगे: महबूबा मुफ़्ती

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने आज हिंदुस्तान के एक और बँटवारे की धमकी दी है। लोकसभा चुनावों के लिए अनंतनाग से नामांकन दाखिल करने के दौरान उन्होंने धमकी दी है कि यदि भाजपा या किसी ने संविधान की धारा 370 हटाई तो जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान से अलग हो जाएगा

यह विरोधाभास का ही चरम कहा जाएगा कि महबूबा ने यह बात उस समय कही जब वह लोकसभा सदस्यता के लिए हो रहे चुनावों का पर्चा भर रहीं थीं- यदि वे यह चुनाव जीत जातीं हैं तो उन्हें हिंदुस्तान के संविधान से प्रतिबद्धता की शपथ लेनी होगी, और संविधान में कश्मीर को हिंदुस्तान का अविभाज्य अंग होने की बात कहना ही उन्हें ठेंगा दिखाएगा।

अमित शाह के बयान पर दे रहीं थीं प्रतिक्रिया

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहा था कि संविधान की धारा 370 और 35-A को हटा कर जम्मू कश्मीर का पूर्ण विलय भाजपा की देशवासियों के प्रति पुरानी प्रतिबद्धता है, जिसे 2020 में राज्यसभा में बहुमत मिलने के बाद पूरा किया जाएगा।

उसके जवाब में महबूबा मुफ़्ती ने न केवल इस वादे की खिल्ली उड़ाते हुए इसे दिवास्वप्न बताया बल्कि यह धमकी भी दी कि जो कोई 370 और 35-A को हटाने की कोशिश करेगा, उसके हाथ काट दिए जाएँगे

नहीं हैं राज्य की प्रतिनिधि किसी भी प्रकार से  

हिंसा और विभाजन की धमकी देने वाली महबूबा मुफ़्ती शायद यह भूल रहीं हैं कि वे राज्य के किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं हैं- यानि कि वे किसी भी प्रकार राज्य के हवाले से यह निर्णय नहीं ले सकतीं कि राज्य हिंदुस्तान का हिस्सा रहेगा या नहीं।

कोलकाता की झुग्गियों से भोजपुरी के फलक तक, असाधारण है मृदुभाषी निरहुआ का सफर और व्यक्तित्व

दिनेश लाल यादव निरहुआ- एक ऐसा नाम जिसके इर्द-गिर्द पिछले एक दशक से पूरी भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री घूमती है। उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में जिन्होंने निरहुआ की फ़िल्म नहीं देखी है, उन्हें भी उनका नाम पता है। निरहुआ के स्टारडम का आलम यह है कि अगर यूपी-बिहार में वो कहीं निकल जाते हैं तो वहाँ उतनी ही भीड़ जमा होती है, जितनी अजय देवगन जैसे बड़े बॉलीवुड अभिनेताओं को देखने के लिए आमतौर पर जुटा करती है। अगर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में ख़ान तिकड़ी और अक्षय, अजय हैं, मलयालम में मोहनलाल, मामूट्टी और जयराम हैं, तमिल में रजनीकांत, कमल हासन और विजय हैं, पंजाबी में जिमि शेरगिल और दिलजीत दोसांझ हैं, मराठी में रितेश देशमुख और स्वप्निल जोशी हैं, तेलुगु में महेश बाबू, पवन कल्याण और एनटीआर हैं, कन्नड़ में सुदीप और उपेंद्र हैं, तो भोजपुरी इंडस्ट्री में भी मनोज तिवारी और रवि किशन के बाद निरहुआ ही निरहुआ हैं।

निरहुआ के शुरुआती दिनों का वीडियो, जब वो बिरहा गायक हुआ करते थे

भोजपुरी फ़िल्मों की एक ख़ासियत रही है कि यहाँ आमतौर पर वही बड़ा अभिनेता बनता है, जिसकी आवाज़ अच्छी हो और जो अच्छा गा सकता हो। मनोज तिवारी ने भी छठ के गीतों के साथ अपना सफ़र शुरू करते हुए ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ के रूप में पहली ब्लॉकबस्टर भोजपुरी फ़िल्म दी। काफ़ी तेज़ी से सीढियाँ चढ़ते हुए तिवारी ने अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों तक से भी भोजपुरी सिनेमा में पदार्पण करवाया। रवि किशन ने अपनी दमदार आवाज़ के कारण मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई। पवन सिंह भी गायक से अभिनेता बने। निरहुआ को जानने जानना होगा कि ‘बिरहा’ क्या होता है?

निरहुआ की पहली सबसे चर्चित फ़िल्म निरहुआ रिक्शावाला का एक दृश्य

बिरहा यूपी-बिहार के गाँवों में मनोरंजन का एक माध्यम है जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। बिरहा भोजपुरी ‘Folk Music’ है, जिसे गानेवाले लोग पीढ़ियों से इसी से अपना व्यवसाय चलाते आ रहे हैं। वैसे तो गाँवों में बिरहा ज्यादा प्रसिद्ध है और शादी-विवाह के मौसमों में आज भी इसका प्रयोग होता है लेकिन शहरों में अब यह मंदिरों में होने वाले पूजा-पाठ कार्यक्रम तक ही सीमित है। ऐसे ही एक बिरहा खानदान गाज़ीपुर में था। इसे बिरहा घराना कह लीजिए। नहीं, निरहुआ के पिता बिरहा गाकर गुज़र-बसर नहीं करते थे। लेकिन हाँ, इसका खानदान ज़रूर बिरहा परिवार से था। निरहुआ का बचपन तो कोलकाता की झुग्गियों में ही बीता।

निरहुआ हिंदुस्तानी को आधुनिक भोजपुरी के सबसे हिट फ़िल्मों में से एक में गिना जाता है, इसके तीन पार्ट बन चुके हैं

कोलकाता की गलियों में बड़े हो रहे निरहुआ के पिता उधर ही एक फैक्ट्री में काम करते थे। यूपी-बिहार का ये वो दौर था, जब हर घर से किसी न किसी को कमाने के लिए पंजाब, गुजरात, बंगाल और दिल्ली जाना ही जाना पड़ता था। बेरोज़गारी की चरम सीमा यूपी-बिहार ने देखी है। शिक्षा से वंचित लोगों को कोई इज़्ज़त वाली नौकरी भी नहीं मिलती थी। इन राज्यों के कॉलेजों की डिग्रियों की बात ही छोड़ दीजिए। उनका मोल किसी काग़ज़ के टुकड़े से ज़्यादा नहीं था। संघर्ष के उस दौर में निरहुआ के पिता भी बंगाल में थे। कोलकाता के उन्हीं कस्बों में स्थित विद्यालय में निरहुआ की शिक्षा-दीक्षा भी पूरी हुई। अब आपको बताते हैं कि हमने बिरहा का ज़िक्र क्यों किया?

निरहुआ का बयान उन्ही के शब्दों में, पढ़ें क्यों उन्हें पीएम मोदी पर है भरोसा

विजय लाल यादव अपने इलाक़े में लोकप्रिय बिरहा गायक हुआ करते थे। उनके भाई प्यारे लाल यादव गाने लिखकर उनका साथ दिया करते थे। ये दोनों अभी भी हैं, लेकिन फ़िल्मों में ज़्यादा सक्रिय हैं। ये दोनों ही निरहुआ के चचेरे भाई हैं। विजय लाल को ‘बिरहा सम्राट’ भी कहा जाता था। विजय-प्यारे की केमिस्ट्री से लोगों का ख़ूब मनोरंजन होता था। निरहुआ की अधिकतर फ़िल्मों की सफलता में इन दोनों की म्यूजिकल जुगलबंदी का हाथ हुआ करता है, आज भी। जब भोजपुरी सिनेमा से मनोज तिवारी युग जा रहा था और वो अलग अलग प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हो रहे थे, ऐसे में भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में एक शून्य पैदा हुआ, जिसे भर पाना सबके बूते की बात नहीं थी।

बिहार में आज भी वो कहानी चलती है कि कैसे ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ के समय 21वीं सदी के शुरुआती दौर में गाँव के घर-घर से औरतें झोला भर-भर कर दूर कस्बों और शहरों में स्थित सिनेमाघरों में मनोज तिवारी को देखने गई थीं। भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसा क्रेज फिर कभी देखने को नहीं मिला। लेकिन, 2008 में ऐसा कुछ हुआ, जिस से भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री की दशा एवं दिशा बदल गई। हालाँकि, बॉक्स ऑफिस और कंटेंट के मामले में भोजपुरी सिनेमा आज कन्नड़ वालों से भी काफ़ी पीछे है लेकिन इसमें भोजपुरी सिनेमा में कई गायकों व अभिनेताओं द्वारा द्विअर्थी अश्लील गानों और डायलॉग्स का योगदान था।

वाराणसी: आप भी देखें निरहुआ को लेकर लोगों का क्रेज

2008 में एक ऐसा गाना आया, जिसने भोजपुरी बोलने वालों को फिर से अपनी पहचान पर घमंड खाने का मौक़ा दिया। इसके बोल कुछ इस तरह थे:

“भोजपुरिया जवान, नाही सहेला गुमान…
बा ई बात के चारु ओरी हाला…
निरहुआ रिक्शावाला… निरहुआ रिक्शावाला…”

इसका अर्थ हुआ कि भोजपुरी बोलने वाले लोग किसी की गीदड़-भभकी को बर्दाश्त नहीं करते और इस बात की चारो तरफ चर्चा है। इसके बाद उस फ़िल्म का टाइटल- निरहुआ रिक्शावाला। जैसे आज नरेंद्र मोदी के अभियान से चौकीदारों की एकाएक चर्चा बढ़ गई है और उन्हें अपने अस्तित्व को नए सिरे से गढ़ने और अपनी महत्ता का एहसास हो रहा है, थी वैसा ही कुछ आज से एक दशक पहले हुई था। बॉलीवुड से लेकर भोजपुरी तक बड़े अभिनेताओं ने ऑटो ड्राइवर के रोल तो किए थे लेकिन रिक्शा वाला का रोल शायद ही किसीने इस तरह मुख्य रूप से किया हो। कहते हैं, इस फ़िल्म के रिलीज की ख़बर सुनते ही रिक्शा वालों ने इसे थिएटर में देखने के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए थे।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ दिनेश लाल यादव निरहुआ

इसके बाद निरहुआ की एक से एक फ़िल्म आई। उन्होंने भोजपुरी बोलने वाले दर्शकों के एक ऐसे वर्ग को आकर्षित किया जो डाली था, ग़रीब था, माध्यम वर्ग का युवा था, यूपी-बिहार से बाहर नौकरी कर रहा समूह था। मनोज तिवारी के गाँव वाले इमेज को एक क़दम आगे ले जाते हुए निरहुआ ने अपनी फ़िल्मों को उन्हें विलेन दर्शाया जो विधायक थे, मुखिया थे, दबंग थे, औरतों से अच्छा व्यवहार नहीं करते थे और ग़रीबों का शोषण करते थे। विलेन का एक भरा-पूरा खानदान होता था, जिसके क्रूर सदस्यों को एक-एक कर निरहुआ द्वारा ‘सैंत’ दिया जाता था। उनकी प्रेमिका किसी दबंग की बहन-बेटी ही होती थी, जिसके लिए वो कुछ भी कर गुज़रते थे।

कपिल शर्मा के शो में निरहुआ, आम्रपाली और खेसारी लाल

भोजपुरी सिनेमा बॉलीवुड के 80 के दशक को फिर से जी रहा था और दर्शक उसमे पूरी रुचि ले रहे थे। अगर औरतें मनोज तिवारी की ‘मंगलसूत्र’ देखने जा रही थी तो बच्चे-बूढ़े ‘निरहुआ हिन्दुस्तानी’ देख कर तालियाँ पीट रहे थे। ये फ़िल्म सीरीज आज भी चल रही है। अब निरहुआ का अपना अलग प्रोडक्शन हाउस है, उनकी फ़िल्म ‘बॉर्डर’ को बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता मिली है और आगे भी वो फ़िल्म निर्माण में और सक्रिय होने वाले हैं। निरहुआ अपनी फ़िल्मों के प्रोमोशन के लिए भी अलग-अलग तरीके आज़माते हैं कभी वो मोतिहारी में क्रिकेट मैच खेलने निकल जाते हैं तो कभी साइकल से सैर पर निकल लेते हैं। बिहार के इन इलाक़ों में उनके पहुँचने की ख़बर सुनते ही हज़ारों की भीड़ जुटती हैं, जिनमे युवतियाँ भी होती हैं।

दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी के साथ निरहुआ

निरहुआ को अपनी माँ से ख़ास लगाव है। एक बार जब एक फ़िल्म की शूटिंग कर के घर पहुँचे तो उनकी माँ से उनसे कहा ‘ऐ बबुआ, तू हेतना ज्यादा पैसा कमालिस लेकिन अभियो फाटल जीन्स काहे पेन्हले बारे?‘ अर्थात, तुम इतना ज्यादा रुपया कमाते हो, फिर भी तुमने ये फ़टी हुई जींस क्यों पहन रखी है? दरअसल, आजकल ‘Ripped Jeans’ का चलन है और निरहुआ इसे ही पहने हुए थे, जिसे उनकी माँ से फटा कपड़ा समझ लिया। इस वाकये से आप समझ सकते हैं कि आज के दौर में भोजपुरी के जुबली स्टार कहा जाने वाला व्यक्ति कितनी सीधी और ज़मीन से जुड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता है। 2007 में निरहुआ ही थे, जिन्होंने अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर शो और कार्यक्रम कर के विदेश में रह रहे उत्तर भारतीयों को भोजपुरी सिनेमा के नए उत्थान से रूबरू करवाया था।

निरहुआ के पुराने दिन, बिरहा स्टाइल के गाने

अपनी फ़िल्मों को लोकप्रियता मिलते देख निरहुआ ने कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम किए, विदेशी डिस्ट्रीब्यूटर्स से बात कर अपने गानों को विदेशों में भी रिलीज करवाया। ये सब आज से एक दशक से भी पहले की बात है। अब निरहुआ भोजपुरी की पहली वेब सीरीज ‘हीरो वर्दी वाला’ की रिलीज के लिए तैयार हैं और जल्द ही एकता कपूर के साथ ये उनका पहला कोलैबोरेशन है। आज प्रति फ़िल्म 40 लाख रुपया लेने वाला कभी पाँच भाई-बहनों के साथ एक छोटे से घर में रहा करता था। निरहुआ भोजपुरी स्टार हैं, आप उनका मज़ाक बना सकते हैं लेकिन आपको पता होना चाहिए कि वो भोजपुरी दर्शकों को वो देते हैं, जो उन्हें चाहिए। अब निरहुआ ने भोजपुरी से अश्लीलता मिटाने का संकल्प लिया है और उन्होंने इसके लिए सभी अभिनेताओं-गायकों सहित ख़ुद को भी दोष दिया।

मोतिहारी में बॉर्डर के प्रमोशन के लिए क्रिकेट मैच खेलने पहुँचे निरहुआ, भीड़ के कारण मैच पूरा नहीं हो सका

असल ज़िन्दगी में निरहुआ कितने सीधे-सादे हैं, ये देखने के लिए कपिल शर्मा के वो एपिसोड्स देखें, जिनमें भोजपुरी कलाकारों का जमावड़ा लगा था। जहाँ एक तरफ मनोज तिवारी वक्ता हैं, विचारों को आवाज़ देना जानते हैं, निरहुआ आज भी एक बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं, उन्हें तुरंत प्रतिक्रया देना नहीं आता, वो कई स्टारों की तरह बड़बोले नहीं हैं और वाद-विवाद में उतनी रूचि नहीं रखतेव् हालाँकि, समय और स्टारडम बढ़ने के साथ उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर खुल कर बोलने की कला धीरे-धीरे विकसित कर ली है। वो बिग बॉस का भी हिस्सा रह चुके हैं, उसमे उनपर ज्यादा ड्रामेटिक होने के आरोप लगे थे। उन्होंने बताया था कि वो बिग बॉस में इसीलिए गए थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके बारे में जान सकें।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास जताने वाले निरहुआ को आजमगढ़ से उतारा है। अब देखना यह है कि भोजपुरी सिनेमा के फलक पर चमक रहे निरहुआ राजनीति में कहाँ तक पहुँचते हैं। आजमगढ़ से उनका मुक़ाबला यूपी के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से है। अखिलेश से उनके अच्छे रिश्ते हुआ करते थे, ऐसे में ये मुक़ाबला देखने दिलचस्प होगा।