बिहार के बेगूसराय में CPI उम्मीदवार कन्हैया कुमार को ग्रामीणों ने खदेड़ दिया है। दोनों तरफ के लोगों के बीच झड़प हुई ऐसा भी कहा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसे उनके काफिले पर हमला भी कहा जा रहा है। बताया जा रहा है कि आज सुबह जब कन्हैया प्रचार के लिए जा रहे थे उसी समय कुछ असामाजिक तत्वों ने सड़क को जाम कर दिया था। जब कन्हैया के समर्थक जाम खुलवाने के लिए गए तो वही उनसे झड़प होने लगी।
हालाँकि, कन्हैया कुमार ने सीधे-सीधे गिरिराज सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह हार मान चुके हैं। गिरिराज सिंह को भय है कि कन्हैया जीत जाएगा, इसलिए अब गिरिराज सिंह लोकतंत्र की हत्या करते हुए अपने गुंडों द्वारा उन पर हमलों जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
जबकि सच ये भी है कि जब से कन्हैया कुमार के देश विरोधी और सैनिकों के बारे में भद्दी टिप्पणी करती उनकी वीडियो सोशल मीडिया और मीडिया पर दिखाई गई तभी से बिहार के लोक उनसे भड़के हुए हैं। यहाँ तक कन्हैया के अपने गाँव में भी उनके गाँव वाले भी उन्हें धकिया के भगा रहे हैं।
बता दें कि बिहार में बेगूसराय सीट से भाजपा के टिकट पर लोकसभा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा था कि उनकी लड़ाई ‘देश के गद्दार’ से है। गिरिराज सिंह ने पिछले दिनों बेगूसराय में ही एनडीए के नेता और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “मुझे पूरा भरोसा है कि बेगूसराय के लोग न केवल उन्हें (देशद्रोही) को हराएँगे, बल्कि उन्हें मुँहतोड़ जवाब भी देंगे।”
गिरिराज सिंह ने यह भी कहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी लडाई ‘किसी पार्टी या उम्मीदवार’ के खिलाफ नहीं, बल्कि राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ है।
कन्हैया कुमार सहित विपक्षी नेताओं का नाम लिए बिना गिरिराज सिंह ने कहा था कि पाकिस्तान में वायुसेना के हवाई हमले के सबूत माँगने वाले देशद्रोही लोग चुनाव मैदान में हैं। “मैं देशद्रोहियों को हराने के लिए बेगूसराय आया हूँ।”
दरअसल आज पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कन्हैया का एक रोड शो था और सुबह 8:00 बजे से ही अपने समर्थकों के साथ कपस्या चौक से निकलकर विभिन्न मार्गों से होते हुए कन्हैया जब लोहिया नगर पहुँचे तो भड़के लोगों से झड़प हुई। हालाँकि, इस मामले में पुलिस ने भी त्वरित कार्रवाई करते हुए वीडियो क्लिप के आधार पर आरोपियों की शिनाख्त शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार आरोपियों की पहचान होते ही उन पर एफआईआर की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
1 अप्रैल को तमिलनाडु के पेरियापट्टिनम में बीजेपी की ओर से चुनाव रैली की जा रही थी, इसी दौरान बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष नैनार नागेंद्रन के चुनाव अभियान के दौरान किसी ने बोतल फेंककर हमला कर दिया। बोतल लगने से एक व्यक्ति घायल हो गया। इस हमले से वहाँ अफरा-तफरी मच गई। नैनार नागेंद्रन रामनाथपुरम संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
Tamil Nadu: Man injured after a bottle was thrown during BJP State vice-president Nainar Nagendran’s election campaign in Periyapattinam on 01 April for the upcoming Lok Sabha polls. He is contesting polls from Ramanathapuram parliamentary constituency. pic.twitter.com/M5mEWfaSeY
तमिलनाडु की रामनाथपुरम लोकसभा सीट पर 18 अप्रैल को दूसरे चरण में वोट डाले जाएँगे। NDA में समझौते के तहत यह सीट बीजेपी के खाते में गई है। पार्टी ने नैनार नागेंद्रन को उम्मीदवार बनाया है, जबकि UPA गठबंधन की ओर से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने यहाँ से के. नवासकणि को टिकट दिया है।
रामनाथपुरम लोकसभा सीट पर कुल 23 उम्मीदवार मैदान में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में रामनाथपुरम सीट से AIDMK ने यहाँ से जीत दर्ज की थी और ए. अनवर राजा यहाँ से सांसद हैं। उन्हें 4,05,945 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर DMK के एस मोहम्मद जलील रहे थे, जिन्हें 2,86,621 वोट मिले थे।
पत्रकारिता के नाम पर आजकल कुछ वामपंथी या कॉन्ग्रेस पोषित पत्रकार किस तरह से खुलेआम ‘पक्षकार’ होने के बावजूद भी निष्पक्ष पत्रकार बने हुए हैं। इसकी बानगी देखिए, इंडिया टुडे के सेलिब्रिटी टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित उनकी आगामी बायोपिक के बारे में अभिनेता विवेक ओबेरॉय का साक्षात्कार लेते हुए लाइव टेलीविज़न शो पर कई जगह सवाल पूछने के नाम पर विपक्ष के नाम से वह सारे सवाल किए, जो उनके एजेंडा को शूट करते हैं, वो भी बिना फिल्म का ट्रेलर देखे ही।
फिर भी कमाल की बात ये है कि अपने ही शो में राजदीप विवेक ओबेरॉय द्वारा कई बार बेचैन और निःशब्द किए गए। एक जगह सरदेसाई ने विवेक से पूछा अपने दिल पर हाथ रख के कहिए कि क्या इस फिल्म को बनाने के लिए किसी भी राजनीतिक पार्टी से पैसा मिला है? विवेक ने तो इसका जवाब ना में दे दिया, प्रॉसेस भी समझा दिया। लेकिन क्या राजदीप जानते हुए भी ये सवाल उन तमाम पक्षकारों, लेखकों या अन्य खुले-तौर पर प्रोपेगेंडा बाजों से पूछने की हिम्मत कर सकते हैं? जवाब नहीं है, खुलेआम एजेंडा चलाते राजदीप को कई बार धरा गया है। लेकिन इसके बाद भी उनकी पक्षकारिता निष्पक्षता के चोंगे में लिपटी सुरक्षित है।
इसी इंटरव्यू में, जब राजदीप ने पीएम मोदी की बायोपिक पर अपनी राय और घृणा विपक्ष के कंधों पर बन्दूक रख के चलानी चाही तो उनकी सड़ाँध बाहर आते देर नहीं लगी। साथ ही राजदीप ने विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित आगामी फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ और अनुपम खेर स्टारर ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ जैसी अन्य फिल्मों पर भी पूर्वग्रह ग्रसित कमेंट किया।
साक्षात्कार के इस विशेष भाग में, राजदीप सरदेसाई ने विवेक ओबेरॉय से कहा कि वह राजनीतिक दलों के बीच रस्साकशी के बीच फँसे हुए हैं क्योंकि फिल्म के रिलीज़ का समय संदिग्ध है। इससे पहले जब चुनाव के समय किसान आंदोलन प्रायोजित किए गए, अवॉर्ड वापसी का पूरा नाटक चला वो भी चुनाव से पहले ही था तब उन्हें उसमें प्रोपेगेंडा और किसी एक व्यक्ति के प्रति दुराग्रह नज़र नहीं आया और अब जब 200 लेखक खुलेआम बीजेपी को वोट न देने की अपील कर रहे हैं तो राजदीप को उसमें न दुराग्रह नज़र आ रहा, न पक्षकारिता, न लोकतंत्र की हत्या, न प्रोपेगेंडा।
राजदीप ने कहा कि अन्य फिल्मों, जैसे ताशकंद फाइल्स, को भी रिलीज़ किया जा रहा है जिससे ‘कॉन्ग्रेस नेतृत्व’ पर सवाल उठाए जा रहे हैं। शायद यहाँ राजदीप ये भूल गए कि कहाँ गया उनका वह आदर्श कि सवाल पूछे जाने चाहिए। क्या यहाँ वह यह कहना चाहते हैं जब सवाल कॉन्ग्रेस या वामपंथियों पक्षकारों से हो तो मुँह पर ताला लगा लेना चाहिए?
बता दें कि फिल्म द ताशकंद फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म भारत के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत पर आधारित है। राजदीप को तो खुद कॉन्ग्रेस या उससे जुड़े सभी पक्षों से सवाल करना चाहिए। खैर, राजदीप सरदेसाई के इस कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल वाले सेगमेंट का जवाब देने के लिए भी ट्विटर पर विवेक अग्निहोत्री ने खुद ही मोर्चा संभाला कि आपका आरोप है कि ताशकंद फाइल्स कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रही है।
Friends,
Someone sent me the attached clip from Rajdeep Sardesai’s show.
Since Rajdeep Sardesai has blocked me, I have not other way to communicate to him.
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) April 3, 2019
उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि जब से राजदीप सरदेसाई ने उन्हें ब्लॉक किया है, उनके पास नोट ट्वीट करने के अलावा उनसे संवाद करने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। नोट में, राजदीप के इस आरोप का जवाब देते हुए कि फिल्म ‘कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाती है’, उन्होंने पूछा कि राजदीप को कैसे पता चल गया कि फिल्म में कॉन्ग्रेस पार्टी पर सवाल उठाया गया है कि जबकि आपने अभी फिल्म देखी भी नहीं है।
विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से पूछा कि जब आपने फिल्म नहीं देखी है और पहले से ही इस बारे में झूठी अफवाह फैला रहे हैं तो क्या यह नहीं माना जाए कि आप द ताशकंद फाइल्स के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं क्योंकि वह उनके खिलाफ राजनीतिक रूप से पूर्वग्रह से प्रेरित हैं।
इसके बाद विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से पूछा कि चूँकि आपने फिल्म को बिना देखे ही यह घोषणा कर दी कि फिल्म कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाती है। तो क्या सरदेसाई यह स्वीकार कर रहे हैं कि कॉन्ग्रेस पार्टी वास्तव में लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत में शामिल थी?
इस मामले पर ऑपइंडिया से बात करते हुए, विवेक ने कहा कि राजदीप संभवतः फिल्म के ट्रेलर को भी देखे बिना ही स्वघोषित जज के रूप में फैसले दे रहे हैं।
यह एक फिल्म को दुष्प्रचारित और उसके प्रति पक्षपात पूर्ण नजरिया रखने का एक स्पष्ट मामला है। चूँकि, राजदीप भारत के एक प्रमुख पत्रकार हैं, इसलिए उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए। ऐसा पूर्वग्रह ग्रसित रवैया रखना ठीक नहीं है। ताशकंद फाइल्स एक ऐसी कहानी है, जिसमें शास्त्रीजी की मृत्यु के आसपास की सभी संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है। पात्रों में से एक वास्तव में किसी भी साजिश या हत्या के कोण को दृढ़ता से खारिज करता है। यह फिल्म के ट्रेलर में ही स्पष्ट है।
सवाल उठाने के मुद्दे पर विवेक ने कहा, “विडंबना यह है कि यह काम एक पत्रकार को करना चाहिए कि किसी भी बात की सभी संभावनाओं को तलाशना। न कि बिना देखे खुद जज बनकर ये घोषित करना कि कोई फिल्म प्रोपेगेंडा है या नहीं।”
उन्होंने आगे कहा कि अगर राजदीप वास्तव में फिल्मों और चुनावों को जोड़ना ही चाहते हैं, तो उन्हें वास्तव में उन फिल्मों के बारे में बात करनी चाहिए, जिन्होंने सेना को नकारात्मक भूमिका में चित्रित किया है, खासकर कश्मीर में।
विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से सवाल किया, “कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कश्मीर में AFSPA में संशोधन करने का वादा करते हुए कॉन्ग्रेस ने लगभग भारतीय सेना पर बलात्कारी होने का आरोप लगाया है। इससे पहले सेंसर बोर्ड के सदस्य के रूप में, आप भी इस कहानी को जानते हैं कि कैसे मैंने एक फिल्म निर्माता से विश्वसनीय प्रमाण माँगे, जब वह भारतीय सेना को ऐसे ही अत्याचार में लिप्त दिखाना चाहता था। मुझे आश्चर्य है कि क्या राजदीप ऐसी फिल्मों को कभी प्रोपेगेंडा कहेंगे।”
यह पहली बार नहीं है जब राजदीप की हिप्पोक्रेसी पकड़ी गई है। हाल ही में, राजदीप ने राहुल गाँधी द्वारा हिंदू-अल्पसंख्यक वाले क्षेत्र वायनाड से लड़ने के बारे में प्रधानमंत्री मोदी के बयान को ट्विस्ट कर उसे सांप्रदायिक रंग दे दिया और पकडे जाने पर भी राजदीप ने अपनी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
ऐसा लगभग हर वामपंथी पत्रकार, लेखक, समर्थक कर रहा है। वह खुलेआम मतदाताओं को भड़का रहा है। उनकी राय को प्रभावित करने के लिए उन पर दबाव डाल रहा है। खुलेआम कॉन्ग्रेस के समर्थन और बीजेपी विरोध में बयानबाजी और एजेंडा परोसने के बाद भी निष्पक्ष है और देश से ऐसी ही चाटुकारिता भरे व्यवहार की उम्मीद लगाए बैठा है। पर जनता इन्हें हर जगह से खदेड़ रही है। अब न इनके पत्रकारों के गिरोह को जनता सिरियसली ले रही है न इनके लेखकों-प्रोफेसरों के अर्बन-नक्सल टुकड़ी को, बौखलाहट में इन्होने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जनता इनकी खीझ का मजा ले रही है और इनकी खिसियाहट बढ़ती जा रही है।
अब देखना ये है कि लोकसभा चुनाव तक ये पूरा गिरोह और कौन-कौन से रंग दिखाता है? कितना नीचे गिरता है? कौन-कौन सी संस्थाओं पर आरोप मढ़ता है? खुद जज बनकर फैसले सुना, उनका असर न होता देख क्या-क्या हरकत करता है? खैर, जनता तो इनके पूरे मजे लेने को तैयार है।
जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने आज हिंदुस्तान के एक और बँटवारे की धमकी दी है। लोकसभा चुनावों के लिए अनंतनाग से नामांकन दाखिल करने के दौरान उन्होंने धमकी दी है कि यदि भाजपा या किसी ने संविधान की धारा 370 हटाई तो जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान से अलग हो जाएगा।
यह विरोधाभास का ही चरम कहा जाएगा कि महबूबा ने यह बात उस समय कही जब वह लोकसभा सदस्यता के लिए हो रहे चुनावों का पर्चा भर रहीं थीं- यदि वे यह चुनाव जीत जातीं हैं तो उन्हें हिंदुस्तान के संविधान से प्रतिबद्धता की शपथ लेनी होगी, और संविधान में कश्मीर को हिंदुस्तान का अविभाज्य अंग होने की बात कहना ही उन्हें ठेंगा दिखाएगा।
अमित शाह के बयान पर दे रहीं थीं प्रतिक्रिया
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहा था कि संविधान की धारा 370 और 35-A को हटा कर जम्मू कश्मीर का पूर्ण विलय भाजपा की देशवासियों के प्रति पुरानी प्रतिबद्धता है, जिसे 2020 में राज्यसभा में बहुमत मिलने के बाद पूरा किया जाएगा।
उसके जवाब में महबूबा मुफ़्ती ने न केवल इस वादे की खिल्ली उड़ाते हुए इसे दिवास्वप्न बताया बल्कि यह धमकी भी दी कि जो कोई 370 और 35-A को हटाने की कोशिश करेगा, उसके हाथ काट दिए जाएँगे।
नहीं हैं राज्य की प्रतिनिधि किसी भी प्रकार से
हिंसा और विभाजन की धमकी देने वाली महबूबा मुफ़्ती शायद यह भूल रहीं हैं कि वे राज्य के किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं हैं- यानि कि वे किसी भी प्रकार राज्य के हवाले से यह निर्णय नहीं ले सकतीं कि राज्य हिंदुस्तान का हिस्सा रहेगा या नहीं।
दिनेश लाल यादव निरहुआ- एक ऐसा नाम जिसके इर्द-गिर्द पिछले एक दशक से पूरी भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री घूमती है। उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में जिन्होंने निरहुआ की फ़िल्म नहीं देखी है, उन्हें भी उनका नाम पता है। निरहुआ के स्टारडम का आलम यह है कि अगर यूपी-बिहार में वो कहीं निकल जाते हैं तो वहाँ उतनी ही भीड़ जमा होती है, जितनी अजय देवगन जैसे बड़े बॉलीवुड अभिनेताओं को देखने के लिए आमतौर पर जुटा करती है। अगर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में ख़ान तिकड़ी और अक्षय, अजय हैं, मलयालम में मोहनलाल, मामूट्टी और जयराम हैं, तमिल में रजनीकांत, कमल हासन और विजय हैं, पंजाबी में जिमि शेरगिल और दिलजीत दोसांझ हैं, मराठी में रितेश देशमुख और स्वप्निल जोशी हैं, तेलुगु में महेश बाबू, पवन कल्याण और एनटीआर हैं, कन्नड़ में सुदीप और उपेंद्र हैं, तो भोजपुरी इंडस्ट्री में भी मनोज तिवारी और रवि किशन के बाद निरहुआ ही निरहुआ हैं।
भोजपुरी फ़िल्मों की एक ख़ासियत रही है कि यहाँ आमतौर पर वही बड़ा अभिनेता बनता है, जिसकी आवाज़ अच्छी हो और जो अच्छा गा सकता हो। मनोज तिवारी ने भी छठ के गीतों के साथ अपना सफ़र शुरू करते हुए ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ के रूप में पहली ब्लॉकबस्टर भोजपुरी फ़िल्म दी। काफ़ी तेज़ी से सीढियाँ चढ़ते हुए तिवारी ने अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों तक से भी भोजपुरी सिनेमा में पदार्पण करवाया। रवि किशन ने अपनी दमदार आवाज़ के कारण मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई। पवन सिंह भी गायक से अभिनेता बने। निरहुआ को जानने जानना होगा कि ‘बिरहा’ क्या होता है?
बिरहा यूपी-बिहार के गाँवों में मनोरंजन का एक माध्यम है जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। बिरहा भोजपुरी ‘Folk Music’ है, जिसे गानेवाले लोग पीढ़ियों से इसी से अपना व्यवसाय चलाते आ रहे हैं। वैसे तो गाँवों में बिरहा ज्यादा प्रसिद्ध है और शादी-विवाह के मौसमों में आज भी इसका प्रयोग होता है लेकिन शहरों में अब यह मंदिरों में होने वाले पूजा-पाठ कार्यक्रम तक ही सीमित है। ऐसे ही एक बिरहा खानदान गाज़ीपुर में था। इसे बिरहा घराना कह लीजिए। नहीं, निरहुआ के पिता बिरहा गाकर गुज़र-बसर नहीं करते थे। लेकिन हाँ, इसका खानदान ज़रूर बिरहा परिवार से था। निरहुआ का बचपन तो कोलकाता की झुग्गियों में ही बीता।
कोलकाता की गलियों में बड़े हो रहे निरहुआ के पिता उधर ही एक फैक्ट्री में काम करते थे। यूपी-बिहार का ये वो दौर था, जब हर घर से किसी न किसी को कमाने के लिए पंजाब, गुजरात, बंगाल और दिल्ली जाना ही जाना पड़ता था। बेरोज़गारी की चरम सीमा यूपी-बिहार ने देखी है। शिक्षा से वंचित लोगों को कोई इज़्ज़त वाली नौकरी भी नहीं मिलती थी। इन राज्यों के कॉलेजों की डिग्रियों की बात ही छोड़ दीजिए। उनका मोल किसी काग़ज़ के टुकड़े से ज़्यादा नहीं था। संघर्ष के उस दौर में निरहुआ के पिता भी बंगाल में थे। कोलकाता के उन्हीं कस्बों में स्थित विद्यालय में निरहुआ की शिक्षा-दीक्षा भी पूरी हुई। अब आपको बताते हैं कि हमने बिरहा का ज़िक्र क्यों किया?
विजय लाल यादव अपने इलाक़े में लोकप्रिय बिरहा गायक हुआ करते थे। उनके भाई प्यारे लाल यादव गाने लिखकर उनका साथ दिया करते थे। ये दोनों अभी भी हैं, लेकिन फ़िल्मों में ज़्यादा सक्रिय हैं। ये दोनों ही निरहुआ के चचेरे भाई हैं। विजय लाल को ‘बिरहा सम्राट’ भी कहा जाता था। विजय-प्यारे की केमिस्ट्री से लोगों का ख़ूब मनोरंजन होता था। निरहुआ की अधिकतर फ़िल्मों की सफलता में इन दोनों की म्यूजिकल जुगलबंदी का हाथ हुआ करता है, आज भी। जब भोजपुरी सिनेमा से मनोज तिवारी युग जा रहा था और वो अलग अलग प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हो रहे थे, ऐसे में भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में एक शून्य पैदा हुआ, जिसे भर पाना सबके बूते की बात नहीं थी।
बिहार में आज भी वो कहानी चलती है कि कैसे ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ के समय 21वीं सदी के शुरुआती दौर में गाँव के घर-घर से औरतें झोला भर-भर कर दूर कस्बों और शहरों में स्थित सिनेमाघरों में मनोज तिवारी को देखने गई थीं। भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसा क्रेज फिर कभी देखने को नहीं मिला। लेकिन, 2008 में ऐसा कुछ हुआ, जिस से भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री की दशा एवं दिशा बदल गई। हालाँकि, बॉक्स ऑफिस और कंटेंट के मामले में भोजपुरी सिनेमा आज कन्नड़ वालों से भी काफ़ी पीछे है लेकिन इसमें भोजपुरी सिनेमा में कई गायकों व अभिनेताओं द्वारा द्विअर्थी अश्लील गानों और डायलॉग्स का योगदान था।
2008 में एक ऐसा गाना आया, जिसने भोजपुरी बोलने वालों को फिर से अपनी पहचान पर घमंड खाने का मौक़ा दिया। इसके बोल कुछ इस तरह थे:
“भोजपुरिया जवान, नाही सहेला गुमान… बा ई बात के चारु ओरी हाला… निरहुआ रिक्शावाला… निरहुआ रिक्शावाला…”
इसका अर्थ हुआ कि भोजपुरी बोलने वाले लोग किसी की गीदड़-भभकी को बर्दाश्त नहीं करते और इस बात की चारो तरफ चर्चा है। इसके बाद उस फ़िल्म का टाइटल- निरहुआ रिक्शावाला। जैसे आज नरेंद्र मोदी के अभियान से चौकीदारों की एकाएक चर्चा बढ़ गई है और उन्हें अपने अस्तित्व को नए सिरे से गढ़ने और अपनी महत्ता का एहसास हो रहा है, थी वैसा ही कुछ आज से एक दशक पहले हुई था। बॉलीवुड से लेकर भोजपुरी तक बड़े अभिनेताओं ने ऑटो ड्राइवर के रोल तो किए थे लेकिन रिक्शा वाला का रोल शायद ही किसीने इस तरह मुख्य रूप से किया हो। कहते हैं, इस फ़िल्म के रिलीज की ख़बर सुनते ही रिक्शा वालों ने इसे थिएटर में देखने के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए थे।
इसके बाद निरहुआ की एक से एक फ़िल्म आई। उन्होंने भोजपुरी बोलने वाले दर्शकों के एक ऐसे वर्ग को आकर्षित किया जो डाली था, ग़रीब था, माध्यम वर्ग का युवा था, यूपी-बिहार से बाहर नौकरी कर रहा समूह था। मनोज तिवारी के गाँव वाले इमेज को एक क़दम आगे ले जाते हुए निरहुआ ने अपनी फ़िल्मों को उन्हें विलेन दर्शाया जो विधायक थे, मुखिया थे, दबंग थे, औरतों से अच्छा व्यवहार नहीं करते थे और ग़रीबों का शोषण करते थे। विलेन का एक भरा-पूरा खानदान होता था, जिसके क्रूर सदस्यों को एक-एक कर निरहुआ द्वारा ‘सैंत’ दिया जाता था। उनकी प्रेमिका किसी दबंग की बहन-बेटी ही होती थी, जिसके लिए वो कुछ भी कर गुज़रते थे।
भोजपुरी सिनेमा बॉलीवुड के 80 के दशक को फिर से जी रहा था और दर्शक उसमे पूरी रुचि ले रहे थे। अगर औरतें मनोज तिवारी की ‘मंगलसूत्र’ देखने जा रही थी तो बच्चे-बूढ़े ‘निरहुआ हिन्दुस्तानी’ देख कर तालियाँ पीट रहे थे। ये फ़िल्म सीरीज आज भी चल रही है। अब निरहुआ का अपना अलग प्रोडक्शन हाउस है, उनकी फ़िल्म ‘बॉर्डर’ को बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता मिली है और आगे भी वो फ़िल्म निर्माण में और सक्रिय होने वाले हैं। निरहुआ अपनी फ़िल्मों के प्रोमोशन के लिए भी अलग-अलग तरीके आज़माते हैं कभी वो मोतिहारी में क्रिकेट मैच खेलने निकल जाते हैं तो कभी साइकल से सैर पर निकल लेते हैं। बिहार के इन इलाक़ों में उनके पहुँचने की ख़बर सुनते ही हज़ारों की भीड़ जुटती हैं, जिनमे युवतियाँ भी होती हैं।
निरहुआ को अपनी माँ से ख़ास लगाव है। एक बार जब एक फ़िल्म की शूटिंग कर के घर पहुँचे तो उनकी माँ से उनसे कहा ‘ऐ बबुआ, तू हेतना ज्यादा पैसा कमालिस लेकिन अभियो फाटल जीन्स काहे पेन्हले बारे?‘ अर्थात, तुम इतना ज्यादा रुपया कमाते हो, फिर भी तुमने ये फ़टी हुई जींस क्यों पहन रखी है? दरअसल, आजकल ‘Ripped Jeans’ का चलन है और निरहुआ इसे ही पहने हुए थे, जिसे उनकी माँ से फटा कपड़ा समझ लिया। इस वाकये से आप समझ सकते हैं कि आज के दौर में भोजपुरी के जुबली स्टार कहा जाने वाला व्यक्ति कितनी सीधी और ज़मीन से जुड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता है। 2007 में निरहुआ ही थे, जिन्होंने अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर शो और कार्यक्रम कर के विदेश में रह रहे उत्तर भारतीयों को भोजपुरी सिनेमा के नए उत्थान से रूबरू करवाया था।
अपनी फ़िल्मों को लोकप्रियता मिलते देख निरहुआ ने कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम किए, विदेशी डिस्ट्रीब्यूटर्स से बात कर अपने गानों को विदेशों में भी रिलीज करवाया। ये सब आज से एक दशक से भी पहले की बात है। अब निरहुआ भोजपुरी की पहली वेब सीरीज ‘हीरो वर्दी वाला’ की रिलीज के लिए तैयार हैं और जल्द ही एकता कपूर के साथ ये उनका पहला कोलैबोरेशन है। आज प्रति फ़िल्म 40 लाख रुपया लेने वाला कभी पाँच भाई-बहनों के साथ एक छोटे से घर में रहा करता था। निरहुआ भोजपुरी स्टार हैं, आप उनका मज़ाक बना सकते हैं लेकिन आपको पता होना चाहिए कि वो भोजपुरी दर्शकों को वो देते हैं, जो उन्हें चाहिए। अब निरहुआ ने भोजपुरी से अश्लीलता मिटाने का संकल्प लिया है और उन्होंने इसके लिए सभी अभिनेताओं-गायकों सहित ख़ुद को भी दोष दिया।
असल ज़िन्दगी में निरहुआ कितने सीधे-सादे हैं, ये देखने के लिए कपिल शर्मा के वो एपिसोड्स देखें, जिनमें भोजपुरी कलाकारों का जमावड़ा लगा था। जहाँ एक तरफ मनोज तिवारी वक्ता हैं, विचारों को आवाज़ देना जानते हैं, निरहुआ आज भी एक बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं, उन्हें तुरंत प्रतिक्रया देना नहीं आता, वो कई स्टारों की तरह बड़बोले नहीं हैं और वाद-विवाद में उतनी रूचि नहीं रखतेव् हालाँकि, समय और स्टारडम बढ़ने के साथ उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर खुल कर बोलने की कला धीरे-धीरे विकसित कर ली है। वो बिग बॉस का भी हिस्सा रह चुके हैं, उसमे उनपर ज्यादा ड्रामेटिक होने के आरोप लगे थे। उन्होंने बताया था कि वो बिग बॉस में इसीलिए गए थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके बारे में जान सकें।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास जताने वाले निरहुआ को आजमगढ़ से उतारा है। अब देखना यह है कि भोजपुरी सिनेमा के फलक पर चमक रहे निरहुआ राजनीति में कहाँ तक पहुँचते हैं। आजमगढ़ से उनका मुक़ाबला यूपी के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से है। अखिलेश से उनके अच्छे रिश्ते हुआ करते थे, ऐसे में ये मुक़ाबला देखने दिलचस्प होगा।
312 साल पुरानी ब्रिटेन की संसद के इतिहास में सोमवार (अप्रैल 01, 2019) को पहली बार लगभग नग्न होकर प्रदर्शन किया गया। ये कार्यकर्ता ब्रेक्जिट करार की शर्तों में क्लाइमेट चेंज के मुद्दा शामिल नहीं करने पर नाराज थे और इस बात से नाराज पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अन्तःवस्त्रों में प्रदर्शन किया।
एक्सिंटशन रेबेलियन ग्रुप के 11 कार्यकर्ताओं ने संसद (हाउस ऑफ़ कॉमन्स) पब्लिक गैलरी में 20 मिनट तक अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी गैलरी में बनी काँच की दीवार से सटकर खड़े थे और इनकी पीठ सांसदों की तरफ थी। इनकी छाती पर ‘सबकी जिंदगी के लिए’ (For All Life) जैसे नारे लिखे थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक स्थल की गरिमा भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
1978 में घोड़े की लीद फेंक कर हुआ था प्रदर्शन
जुलाई 1978 में माल्टा के पूर्व प्रधानमंत्री डोम मिन्टॉफ की बेटी याना ने स्कॉटिश होम रूल पर बहस के दौरान गैलरी से सांसदों पर घोड़े की लीद से भरे बैग फेंके थे। ये बैग फट गए थे और गंदगी बेंच व सांसदों पर फैल गई थी। इस तरह से एक बार साल 2004 में प्रदर्शनकारियों द्वारा बैंगनी आटा फेंका गया था। फादर्स फॉर जस्टिस के कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर पर पर्पल फ्लोर (बैंगनी आटा) फेंका था। प्रदर्शनकारी तलाकशुदा पिता की बच्चों से मुलाकात के कानून को लचीला बनाने की माँग कर रहे थे।
1707 में बनी थी ब्रिटेन की संसद
ध्यान रहे कि ब्रिटेन की संसद 1707 में बनी थी। दुनिया के कई लोकतंत्रों के लिए यह उदाहरण है, इसलिए इसे मदर ऑफ पार्लियामेंट भी कहा जाता है।
फ़ेसबुक के CEO मार्क ज़ुकरबर्ग ने हाल में जर्मनी और यूरोप के सबसे बड़े डिजिटल प्रकाशन हाउस एक्सेल स्प्रिंगर के सीईओ मैथियास डॉप्फ्नर से बात की। यह ज़ुकरबर्ग की उस संवाद श्रृंखला का हिस्सा है जिसमें वह कई सारे बिजनेस और टेक्नोलॉजी कम्पनियों के टॉप लीडर्स से तकनीक और समाज के भविष्य के बारे में वार्तालाप कर रहे हैं।
इसी दौरान ज़ुकरबर्ग ने खुलासा किया कि वे फ़ेसबुक ऐप पर न केवल उच्च-गुणवत्ता वाली ख़बरों के लिए एक अलग टैब बनाना चाहते हैं बल्कि वे इसके लिए उन समाचारों के प्रकाशकों को धनराशि भी देने के लिए तैयार हैं। यह फ़ेसबुक के समाचारों को लेकर पिछले स्टैंड से अलग है। पिछले वर्ष फ़ेसबुक ने यह घोषणा की थी कि वह अपने यूज़र्स की न्यूज़ फीड में ‘समाचार’ कम और उनकी फ्रेंडलिस्ट में जुड़े हुए लोगों की पोस्ट्स ज्यादा दिखाएगा।
इस बात का सामान्य यूज़र्स ने स्वागत किया था क्योंकि पिछले काफी समय से पाश्चात्य बौद्धिक जगत में फ़ेसबुक और ट्विटर न्यूज़ फीड के पूर्ण राजनीतिकरण को लेकर लोग खिन्न चल रहे थे। पर समाचार प्रकाशकों समेत डिजिटल कंटेंट के क्षेत्र में काम करने वाली कम्पनियों ने इसका विरोध किया था- खासकर कि मेनस्ट्रीम मीडिया ने यह निराशा जताई थी कि इससे उनकी कमाई के स्रोत और भी कम हो जाएँगे।
गौरतलब है कि मुख्यधारा के मीडिया की कमाई का सबसे बड़ा पारंपरिक स्रोत विज्ञापन होते थे, जो गूगल और फ़ेसबुक के आने के बाद से बहुत कम हो चुका है- यहाँ तक कि द गार्जियन जैसा पुराना अख़बार भी अब अपने हर लेख के नीचे अपने पाठकों से आर्थिक सहयोग की अपील करता है।
समाचारपत्रों को मिलेगी नई जान?
यूरोप की संसद में पहले ही एक ऐसे कानून पर बहस चल रही है, जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स- जैसे फेसबुक, यूट्यूब आदि- को किसी कॉपीराइट वाली सामग्री के अपने प्लेटफ़ॉर्म पर इस्तेमाल के बदले लाइसेंस फीस चुकानी होगी। यहाँ तक कि यदि कोई यूज़र फ़ेसबुक पर कोई लिंक शेयर करता है और snippet/preview में कॉपीराइट के अंतर्गत आने वाली सामग्री है तो संभव है कि फ़ेसबुक को उस सामग्री के कॉपीराइट की लाइसेंस फ़ीस देनी पड़े।
यदि समाचारपत्र और समाचार पोर्टल इस हद की तंगहाली से गुज़र रहे हैं तो जाहिर है कि उनके हिसाब से फ़ेसबुक का उनकी ख़बरें दिखाने के लिए उन्हें पैसे देना किसी संजीवनी से कम नहीं है।
इसके अलावा जो लोग समसामयिक ख़बरों में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं, उनके लिए भी फेसबुक की यह सेवा लाभदायक होने की उम्मीद है क्योंकि फ़ेसबुक प्रतिष्ठित प्रकाशनों की सामग्री छाँट कर उन तक पहुँचा देगी।
अपने राजनीतिक दबदबे और bias को और मजबूत करने की तैयारी?
सिक्के के दूसरे पहलू की और देखें तो फ़ेसबुक की इस योजना की स्याह संभावनाएँ भी कम नहीं हैं। फ़ेसबुक के सर्वेसर्वा मार्क ज़ुकरबर्ग अमेरिकी संसद से बात करते हुए यह मान चुके हैं कि उनकी संस्था वामपंथी झुकाव वाली है। यह झुकाव न ही केवल उनके लोगों का व्यक्तिगत मतदान झुकाव है, बल्कि यह आग्रह फ़ेसबुक की नीतियों से लेकर किसे बैन करना है, किसे चलने देना है जैसे निर्णयों तक फैला है। कुछ समय पहले यह खबर आई थी कि फेसबुक ने अमेरिका में दक्षिणपंथी झुकाव के मशहूर लोगों की पोस्ट्स पर गुप्त रूप से अड़ंगे लगाने शुरू कर दिए थे। हाल ही में भारत में फ़ेसबुक ने अकारण ही भाजपा समर्थक एक बड़े पेज The Third Eye और कॉन्ग्रेस समर्थक 600+ छोटे-मोटे पेजों को बैन कर दिया था।
ऐसे में यह अति महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या फ़ेसबुक इस टैब में भी वामपंथी और अपने bias पर आधारित ख़बरें ही चलाएगा?
पल्लवी जोशी आने वाली फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ में मुख्य भूमिका में नजर आएँगी। इसी फिल्म की प्रचार और तैयारी के दौरान उन्होंने उन सभी सितारों को लेकर रिएक्ट किया, जिन्होंने पिछले दिनों देश में ‘असुरक्षा का माहौल’ फैलने पर ‘देश छोड़ने’ की बात की थी। आमिर खान, नसीरुद्दीन शाह और आलिया भट्ट की माँ सोनी राजदान इस तरह के बयान देकर सुर्खियों में आ चुके हैं।
NBT को दिए एक इंटरव्यू में एक्ट्रेस पल्लवी जोशी ने आमिर और नसीरुद्दीन शाह के बारे में पूछे जाने पर कहा, “आप लोग जाइए पाकिस्तान, अगर आप वहाँ खुश हैं तो जरूर जाइए। अगर आप यहाँ अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं तो जरूर जाइए। निकल जाइए यहाँ से।”
अपने इंटरव्यू में पल्लवी जोशी ने कहा, “मैं जानती हूँ कि देश में असुरक्षित महसूस करने वाली बात नसीरुद्दीन शाह ने कही थी। उन्हें लगता है कि वह भारत में सुरक्षित नहीं है। ऐसे में उन्हें वहाँ जाना चाहिए जहाँ वे सुरक्षित हैं। यह उनके विचार हैं, इसमें हम कुछ नहीं कह सकते।” पल्लवी जोशी की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह भी हैं।
देश में असुरक्षित महसूस करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हानि को लेकर आमिर खान ने भी काफी चर्चा बटोरी थी। अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए अनाप-शनाप बयान देने के लिए मशहूर आमिर खान ने कहा था कि देश का माहौल देखकर उन्हें लगने लगा है कि वो भारत से बाहर चले जाएँ। इसके अलावा, कुछ दिन पहले ही आलिया भट्ट की माँ और महेश भट्ट की पत्नी सोनी राजदान ने भी कहा था कि वह पाकिस्तान में ज्यादा खुश रहेंगी।
अपनी फिल्म ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ के प्रमोशन के लिए उन्होंने पाकिस्तान जाकर रहने तक की बात बोल डाली थी। सोनी राजदान ने बयान दिया था कि जब भी वह कुछ बोलती हैं तो ट्रॉल का हिस्सा बन जाती हैं। उन्हें देशद्रोही कहा जाता है। इसलिए कभी-कभी वह सोचती हैं कि उन्हें पाकिस्तान ही चले जाना चाहिए, वह वहाँ पर ज्यादा खुश रहेंगी।
फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात करते हुए पल्लवी जोशी ने कहा, “जैसे मुझे अपने पूरे विचार रखने की आजादी है, वैसे उनको भी विचार रखने की आजादी है, जो उन्होंने रखे हैं और इसके बाद जिस तरह से लोगों ने उनके विचारों पर प्रतिक्रिया दी है, उन लोगों को भी अपने विचारों को रखने की आजादी है। फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन तो सबके लिए सब जगह है। अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि मैं अपने विचार रखूँ और उसको लेकर लोग अपने विचार मुझे न सुनाएँ।”
पल्लवी जोशी जल्द ही फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ में नजर आने वाली हैं। फिल्म देशभर के सिनेमाघरों में 12 अप्रैल को रिलीज हो रही है।
आज दुनिया सिकुड़ती और आबादी बढ़ती ही जा रही है, लोग जनसंख्या विस्फोट से त्रस्त हैं, इसके कारण समस्याएँ खड़ी होने लगी हैं। लेकिन कुछ हैं, जो आँखें मूँदे हुए हैं। इस्लामिक जगत पूरे विश्व में अन्य समुदायों की तुलना में 150% ज्यादा प्रजनन कर रहा है। यह हम नहीं, दुनिया के सबसे ‘लिबरल’ देश अमेरिका का fact-tank प्यू रिसर्च सेंटर कह रहा है। अपनी इस रिपोर्ट में उसने चेतावनी दी है कि जहाँ दुनिया के बाकी बड़े मज़हब महज 11% (स्थानीय उपासना पद्धतियाँ) से लेकर 34-35% (ईसाई और हिंदुत्व) तक की दर से बढ़ रहे हैं, और बौद्ध मतावलंबी तो 0.3% से घट रहे हैं, वहीं इस्लाम 73% से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है- वह भी ज्यादा बच्चे पैदा करके। दुनिया की जरूरतों के लिए वैसे ही कम पड़ रहे संसाधनों के बीच यह खबर अत्यंत निराशाजनक है।
2050 तक 9 अरब हो जाएगी दुनिया की आबादी
प्यू के शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि दुनिया की आबादी आने वाले 30 वर्षों में बढ़ कर 930 करोड़ के करीब होगी। यह 2010 के आँकड़े से 35% अधिक होगा।
रिपोर्ट के आँकड़ों पर नज़र डालें तो कुछ मज़हब (यहूदी, बहाई आदि) दुनिया की औसत आबादी वृद्धि दर की आधी दर से अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं। जबकि हिन्दू-ईसाई की आबादी औसत दर से ही बढ़ रही है। इसके उलट या यूँ कहें कि चिंताजनक स्थिति मुस्लिम समुदाय की है, जिनकी आबादी औसत दर की दोगुनी तेजी से बढ़ रही है।
प्रतिशत के अलावा संख्या की बात करें तो भी ईसाई साल 2010 के 216 करोड़ से बढ़कर 2050 में 290 करोड़ हो जाएँगे। वहीं हिन्दू 2010 में 103 करोड़ से 2050 में 138 करोड़ तक पहुँचेंगे। जबकि मुस्लिम 2010 में महज 159 करोड़ की जनसंख्या के मुकाबले 2050 में 276 करोड़ के आस-पास होंगे।
आदर्श दर 2.1, औसत दर 2.5, मुस्लिम बढ़ रहे @3.1
प्यू के अनुसार दुनिया की औसत fertility rate 2.5 के करीब है। fertility rate का अर्थ है किसी भी समुदाय या समूह में प्रति महिला कितने बच्चे पैदा होते हैं। दुनिया की आबादी स्थिर रखने के लिए ज्यादातर समाज शास्त्री मानते हैं कि आदर्श स्थिति में fertility rate 2.1 (2 के हल्का सा ऊपर) होना चाहिए- ताकि वे दो बच्चे आने वाले समय में अपने माँ-बाप की मृत्यु के उपरांत उनका स्थान लें और लम्बे समय में दुनिया पर अतिरिक्त बोझ न पड़े।
पूरे विश्व की औसत fertility rate 2.5 है। जो बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए आदर्श दर से तो ज्यादा है, पर चिंताजनक स्तर पर नहीं है। यदि जनजागरण अभियान चला कर लोगों को बढ़ी आबादी के नुकसान के बारे में बताया जाए, और कुछ प्रतिशत युगलों (खासकर महिलाओं) को बच्चे पैदा न करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाए, तो कुछ दशकों में 2.5 को 2.1 के पास तक खींच सकने की उम्मीद की जा सकती है। हिन्दुओं की fertility rate 2.4 है, यानी हिन्दू आबादी रोकथाम की ओर अग्रसर दिख रही है।
अब इस्लाम की ओर देखें तो मुस्लिमों की fertility rate 3.1 है- यानी दुनिया की जरूरत का 150%!! मतलब हर एक मुस्लिम युगल (पति-पत्नी) अपने बाद दो के बजाय तीन इंसान का बोझ दुनिया को दे जाता है।
(यहाँ गणितीय सरलता के लिए हम मुस्लिमों के बहु-विवाह सिद्धांत, जिसके अंतर्गत हर मुस्लिम पुरुष को इस्लाम 4 बीवियाँ तक रखने की इजाज़त देता है, को शामिल नहीं कर रहे। अगर करते तो गणितीय तौर पर यह आँकड़ा कहता कि एक मुस्लिम पुरुष और उसकी 4 पत्नियों की मृत्यु के बाद औसत तौर पर उनके 12 वंशज होते – यानी मरे 5 और आए 12)
आम आदमी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं की ग्रह दशा कुछ ठीक नहीं चल रही है, यही वजह है कि पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल गठबंधन के लिए संघर्षरत नजर आ रहे हैं और पार्टी विधायक अलका लाम्बा केजरीवाल जी की अनदेखी से परेशान रहा करती हैं। इसी वजह से अलका लाम्बा ट्विटर पर हर दूसरे दिन किसी ना किसी नेता पर ‘अरविन्द केजरीवाल मॉडल’ पर भिड़ती हुई नजर आती हैं।
इस बार अटेंशन की कमी से जूझती AAP विधायक अलका लाम्बा ने अपनी पार्टी विधायक से ही बहस करते हुए बड़ी बात कह डाली। AAP के दोनों नेताओं के बीच विवाद मंगलवार (मार्च 03, 2019) को कॉन्ग्रेस की ओर से जारी किए गए घोषणापत्र के बाद हुआ।
दिल्ली में AAP और कॉन्ग्रेस के गठबंधन की अटकलों के बीच अलका लांबा ने ट्वीट किया और अपनी ही पार्टी की दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की माँग पर सवाल उठा दिया। उन्होंने लिखा, “हर पार्टी का अपना घोषणा पत्र होता है, कॉन्ग्रेस के घोषणा पत्र में पॉन्डिचेरी को तो पूर्ण राज्य देने की बात है, पर दिल्ली को लेकर कोई बात नही है, साफ है कि कॉन्ग्रेस के लिए अब ‘दिल्ली-पूर्ण राज्य’ मुद्दा नही रहा। वहीं AAP इसी मुद्दे को अपना प्रमुख मुद्दा बना रही है, गठबंधन कैसे होगा?”
हर पार्टी का अपना घोषणा पत्र होता है, काँग्रेस के घोषणा पत्र में #पॉन्डिचेरी को तो पूर्ण राज्य देने की बात है,पर #दिल्ली को लेकर कोई बात नही है,साफ है कि काँग्रेस के लिये अब”दिल्ली-पूर्ण राज्य”मुद्दा नही रहा। वहीं आप इसी मुद्दों को अपना प्रमुख मुद्दा बना रही है#गठबंधन कैसे होगा?
विधायक सौरभ भारद्वाज के इस ट्वीट के बाद अल्का ने ट्वीट कर लिखा, “मेरे चाहने ना चाहने से क्या फ़र्क पड़ता है…. वैसे भी यह पूछने का समय अब निकल चुका है… अब तो दिल्ली की जनता ही तय करेगी।”
मेरे चाहने ना चाहने से क्या फ़र्क पड़ता है…. वैसे भी यह पूछने का समय अब निकल चुका है… अब तो दिल्ली की जनता ही तय करेगी। https://t.co/4hbvPr2KlI
इस पर सौरभ ने लिखा कि जनता को पता होना चाहिए, उनका नेता क्या चाहता है, तभी तो जनता अपने नेता के बारे में तय करेगी। इसके बाद अलका लाम्बा ने सीधा फ़्रंटफूट पर आकर जवाब दिया, “मेरी जनता मुझे बखूबी जानती है, 2020 आने पर पूरे 5 साल का जवाब-हिसाब और क्या सोचती हूँ, सब बता दूँगी, दूसरी बात मैं आप से उलट सोचती हूँ, जनता से अधिक नेता को पता होना चाहिए कि उसकी जनता क्या सोचती और चाहती है, नेता को वही करना चाहिए, ना कि जनता पर अपनी थोपनी चाहिए”
मेरी जनता मुझे बखूबी जानती है, 2020 आने पर पूरा 5 साल का जवाब-हिसाब और क्या सोचती हूँ सब बता दूँगी, दूसरी बात मैं आप से उलट सोचती हूँ, जनता से अधिक नेता को पता होना चाहिए कि उसकी जनता क्या सोचती और चाहती है,नेता को वही करना चाहिये, नाकि जनता पर अपनी थोपनी चाहिये। https://t.co/uYS9Lt5Glz
इस पर सौरभ ने उन्हें ट्रॉल करते हुए पूछा, “जनता से पूछना कि ‘कॉन्ग्रेस में चली जाऊँ?’ अगर जनता ‘हाँ’ कह दे, तो इसको साइन करके भेज देना, बाक़ी ज़िम्मेदारी आपके इस भाई की। अगर जनता ‘ना’ कहे तो अनुशासन से रहो, तब भी ज़िम्मेदारी इसी भाई की। अब सो जाओ, शुभ रात्रि।”
जनता से पूछना कि “कांग्रेस में चली जाऊँ ?”
अगर जनता ” हाँ ” कह दे तो इसको साइन करके भेज देना, बाक़ी ज़िम्मेदारी आपके इस भाई की ।
अगर जनता “ना” कहे तो अनुशासन से रहो, तब भी ज़िम्मेदारी इसी भाई की ।
सौरभ के इस ट्वीट के जवाब में अलका ने लिखा, “छोटे भाई, धोखा मत दो बड़ी बहन को, यह आदत अब बदल लो, वचन दिया है, अब कल 3 बजे, जामा मस्जिद गेट नंबर 1 पर पहुँच जाना थूक कर चाटने की आदत तो भाजपाइयों की है, आप को यह शोभा नही देता। कल मुझे छोटे भाई सौरव का इंतज़ार रहेगा। शुभ रात्रि, जय हिंद !!!
छोटे भाई, धोखा मत दो बड़ी बहन को, यह आदत अब बदल लो, वचन दिया है,अब कल 3 बजे ,जामा मस्जिद गेट नंबर 1 पर पहुँच जाना। थूक कर चाटने की आदत तो भाजपाइयों की है, आप को यह शोभा नही देता। कल मुझे छोटे भाई सौरव का इंतज़ार रहेगा। शुभ रात्रि ?. जय हिंद !!! https://t.co/hz7iezCgOZ
इसके बाद अलका लाम्बा ने अरविन्द केजरीवाल का नाम लिए बिना उनकी तानाशाही की ओर इशारा करते हुए एक स्वरचित भावुक और सुंदर कविता को भी ट्विटर पर पोस्ट किया जिसके बोल हैं, “जिसे हम #लोकतंत्र समझते थे, आज #प्रश्न करने पर उन्हें वह #अनुशासनहीनता लगने लगी। तानाशाही के दौर में, लगता है उसे भी अब कुछ सुनना पसंद नही। बड़े आये, बड़े चले गए, ना कुछ लाया था साथ, ना कुछ साथ ले जायेगा। घमंड में कोई लंबा जिया नही। कुर्सी तो आनी जानी है, लालच इसका हमें नही !”
जिसे हम #लोकतंत्र समझते थे, आज #प्रश्न करने पर उन्हें वह #अनुशासनहीनता लगने लगी।#तानाशाही के दौर में, लगता है उसे भी अब कुछ सुनना पसंद नही। बड़े आये, बड़े चले गए, ना कुछ लाया था साथ, ना कुछ साथ ले जायेगा।#घमंड में कोई लंबा जिया नही।#कुर्सी तो आनी जानी है,#लालच इसका हमें नही !
ट्विटर पर चल रही 2 खलिहर विधायकों की इस चकल्लस पर ट्विटर यूजर्स ने दोनों विधायकों को सलाह देते हुए कहा कि दोनों भाई-बहन कॉल कर के लड़ लो और घर के मामलों को इस तरह से सड़क पर मत लाओ।