Monday, September 30, 2024
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कॉन्ग्रेस को बड़ा झटका: राफेल के विज्ञापन पर चला EC का हथौड़ा, दिग्विजय सिंह को भेजा नोटिस

मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस पार्टी ने राफेल से जुड़े विज्ञापन को चुनाव आयोग के पास अनुमति के लिए भेजा था, जिसे आयोग ने अस्वीकार कर दिया। चुनाव आयोग ने कॉन्ग्रेस को साफ़-साफ़ कहा कि चूँकि यह मामला कोर्ट में है, राफेल के विज्ञापन का प्रयोग करना उचित नहीं होगा। लोकसभा चुनावों के ऐलान के बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है और चुनाव आयोग इस बार किसी भी गड़बड़ी को लेकर सख़्त नज़र आ रहा है। कई राज्यों में छापों के कारण बड़ी मात्रा में नकदी और प्रलोभन सामग्रियाँ भी ज़ब्त की गई हैं। इनका इस्तेमाल वोटरों को लुभाने के लिए किया जाने वाला था। मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस ने चुनाव आयोग के पास कुल 9 विज्ञापनों को अनुमति के लिए भेजा था, जिनमें से 6 पर आपत्ति जताई गई है।

मध्य प्रदेश चुनाव आयोग के अध्यक्ष वीएलके राव ने कहा कि अगर आयोग के आदेश से किसी को आपत्ति है, तो वो आगे अपील कर सकता है। बता दें कि कॉन्ग्रेस राफेल को लेकर काफ़ी सख़्त नज़र आ रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल मामले में केंद्र सरकार को क्लीन चिट के बावजूद कॉन्ग्रेस पार्टी इस मामले को उठाती रही है। कैग ने भी मामले में केंद्र सरकार को क्लिन चिट दिया था। कैग के अनुसार, वर्तमान डील यूपीए सरकार द्वारा नेगोशिएट की जा रही डील से सस्ती है। राफेल को लेकर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी पीएम मोदी के बारे में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया है, जिसे उनके हर भाषण में सुना जा सकता है।

चुनाव आयोग पूरी निष्पक्षता से कार्य कर रहा है। भाजपा द्वारा ट्रेनों में ‘मैं भी चौकीदार’ कार्यक्रम चलाए जाने पर भी चुनाव आयोग ने आपत्ति जताई थी। इस मामले में आयोग ने रेलवे के अधिकारियों तक पर कार्रवाई करने की बात कही थी। उधर अप्रैल में चुनाव से पहले रिलीज के लिए तैयार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक को लेकर चुनाव आयोग ने हरी झंडी दिखा दी है। विवेक ओबेरॉय अभिनीत इस फ़िल्म में प्रधानमंत्री की ज़िंदगी को उकेरा गया है। चुनाव आयोग ने कहा कि चूँकि सेंसर बोर्ड फ़िल्म को हरी झंडी दे चुका है, आयोग ये नहीं तय कर सकता कि फ़िल्म कब रिलीज होगी।

फ़िल्म पर रोक लगाने के लिए दिल्ली और बॉम्बे हाईकोर्ट में भी याचिकाएँ दाखिल की गई थीं लेकिन चुनाव आयोग ने साफ़ कर दिया है कि ये आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। मध्य प्रदेश में ही कॉन्ग्रेस द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन का एक और मामला सामने आया है। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा सीहोर में एक मंदिर के बाहर पैसे बाँटे जाने को लेकर चुनाव आयोग से उनकी शिकायत कर दी है। आयोग ने इस मामले में सिंह को नोटिस भी जारी कर दिया है। दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से कॉन्ग्रेस ने मैदान में उतारा है। भाजपा ने अभी इस क्षेत्र से अपने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है।

कॉन्ग्रेस ने नमो टीवी के प्रसारण को लेकर भी चुनाव आयोग से शिकायत की है। बता दें कि यूट्यूब से शुरू किया गया नमो टीवी अब डायरेक्ट टू होम पर भी दस्तक दे चुका है और उस पर पीएम मोदी से जुड़े कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाता है। कॉन्ग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई ने इस पर आपत्ति जताई है। इंदौर जिला प्रशासन ने चुनाव आयोग से इस मामले में मार्गदर्शन भी माँगा है। कॉन्ग्रेस ने चैनल पर पार्टी विशेष के पक्ष में राजनीतिक कंटेंट प्रसारित करने का आरोप मढ़ा है।

कह के लूँगा, कह के लूँगा, कह के लूँगा… तेरी कह के लूँगा!

जौन एलिया का एक शेर है (ये बस इसलिए लिख रहा हूँ कि शेर लिख कर शुरु करने वालों को गम्भीरता से लिया जाता है):

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता/ एक ही शख़्स था जहान में क्या

हमारे देश के नौटंकीबाज़ जमात के लिए ये शेर, अपने अकेलेपन में, सटीक बैठता है। इनके भीतर खलबली मची हुई है। इनके साँसों की आवाजाही और धड़कनों की लब-डब तक मोदी ही मोदी है। इन्हें चैन नहीं है। ये अवार्ड वापसी दोहराना चाहते हैं, लेकिन सामाजिक अपराध का शिकार अखलाख है कि मर ही नहीं रहा इस बार। ये लम्पट मंडली इतनी बेईमान है कि ईमानदारी से नाम तक नहीं लिख रही।

अरे चिरकुटो! अगर कहना चाहते हो कि मोदी को वोट नहीं देना है, तो कौन रोक रहा है? संविधान या मोदी की पर्सनल पुलिस? खुलकर लिखो कि मोदी को वोट मत दो, भाजपा को वोट मत दो। इसमें किस बात का डर है जबकि तुम्हारी लेजिटिमेसी तो वैसे भी है नहीं। उन्हीं चार चिरकुटों के साथ उठना-बैठना, वही घिसी हुई बातें हर सेमिनार में कहना, वही कुतर्क हर रोज करना… तुम्हें सीरियसली लेता कौन है?

मैं लेता हूँ, क्योंकि तुम्हारे जैसे लम्पटों की हर एक बात पर दस आर्टिकल लिखना ज़रूरी है। तुम्हें तुम्हारे ही खेल में, तुम्हारे ही नियमों के साथ, उन्हीं संसाधनों के प्रयोग से हराना है। इसलिए कीचड़ में भी उतरूँगा, सूअरों से भी लड़ूँगा, और उनकी गर्दन उन्हीं की विष्ठा में तब तक दबाए रखूँगा जब तक कि वो ठंढे न पड़ जाएँ। मैंने भी जान से मारने की बात नहीं की, बस ठंढा करने की बात की है क्योंकि ऐसे लोगों का ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है। ये हमारे समाज के वो उदाहरण है जिन्हें आने वाली पीढ़ियाँ यह कह कर याद करेंगी कि किसी भी स्थिति में इतना नहीं गिरना है कि ऐसे बन जाएँ। साथ ही, भीतर से ही कुढ़ते रहने वाले माओवंशी कामपंथी वामभक्तों की दयनीय स्थिति किस दक्षिणपंथी को पसंद नहीं!  

ये दो सौ लोग जब सिग्नेचर कैम्पेन चलाते हैं, पाकिस्तान जाकर इनके मित्र नेता मोदी को हराने के लिए मदद माँगते हैं, जब सौ फ़िल्ममेकर लिखते हैं कि मोदी को वोट मत दो, तब इन्हें समाज से कुछ खास लेना-देना नहीं है। ये चुनावों से पहले एक वेबसाइट बनाते हैं, उस पर कहीं से फ़िल्मकारों की डायरेक्टरी निकाल लेते हैं, लेखकों के नाम इकट्ठा कर लेते हैं, और फिर एक स्टेटमेंट ड्राफ़्ट करके, इन्हें बिना बताए ही जारी कर देते हैं।

ये केयर फ़ॉर सोसायटी नहीं, रेलेवेंट रहने की जद्दोजहद है। इसी को शास्त्रों में फड़फड़ाना कहा गया है। ये तड़प आपसे वो सारे काम करवा लेती है जो आप शांत दिमाग से बैठकर सोचने पर तब तक नहीं करते जब तक आपके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगता। असफल लोगों की एक भीड़, उस पार्टी और उस प्रधानमंत्री को नीचे लाने की कोशिश में है जिसने उनका निजी हित नहीं साधा, बल्कि जिन ग़रीबों, वंचितों, दलितों, अल्पसंख्यकों की बात ये कर रहे हैं, उनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाया है। 

पता कीजिए आँकड़े कि कितने करोड़ लोगों के सर पर छत आई, कितने घरों में सिलिंडर पहुँचाया, कितने घरों को किरासन तेल के दिये से मुक्ति मिली, कितने लोगों तक सब्सिडी का पैसा सीधा खाता में पहुँचा, कितनी गलियों को सड़क, और सड़कों को हाइवे बनाया गया, कितनी औरतों को आज अँधेरे में शौच के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता, कितने करोड़ लोग व्यवस्थित और अव्यवस्थित क्षेत्रों में रोजगार से जुड़े, कितने किसानों को क़र्ज़माफ़ी की जगह उन्हें इनेबल करने की कोशिश की गई, कितनी निर्मल गंगा हुई और कैसे यमुना को ज़िंदा करने की कोशिश जारी है, कितने आतंकी मारे गए, कितने जिले नक्सल प्रभाव से बाहर आए, उत्तरपूर्व में कितना ढाँचागत विकास हुआ… 

इसलिए, पहले महीने से ही ‘विकास कहाँ है’ की बात करने वाले, अब विकास की बात कर ही नहीं रहे। आप गौर कीजिएगा कि किस तरह से वैसी बातें की जा रही हैं जिसको आप चाहकर भी क्वांटिफाय नहीं कर सकते या गिन नहीं सकते। बात इस पर अब नहीं होती कि प्रतिदिन कितने किलोमीटर सड़कें बनीं, प्रति व्यक्ति सरकार कितने लाख रूपए प्रतिवर्ष ख़र्च कर रही है, हर क्वार्टर में अर्थव्यवस्था कैसे बेहतर हो रही है, सारी रेटिंग एजेंसियाँ, वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मोनेटरी फ़ंड क्यों इस सरकार के द्वारा किए गए सुधारों को सकारात्मक बताकर सराह रहे हैं… 

तब मूडीज एंजेंसी को डीलेजिटिमाइज कर दिया जाएगा। और ये काम होता कैसे हैं? ये काम हर बार एक ही कुतर्क के बहाने होता है: भारत की अर्थ व्यवस्था अगर इतनी ही अच्छी है तो लोग गरीब क्यों हैं, भूखे क्यों हैं? ये वही कुतर्क है कि आप मंगलयान भेज कर क्या करेंगे, लोग तो भूखे मर रहे हैं। ये बातें पहली बार सुनने पर ठीक-ठाक आदमी सोचने लगता है कि बात तो सही है, लेकिन यह बात बिलकुल वैसी ही है कि कोई कहे ‘कौआ तुम्हारा कान लेकर भीग गया’ और आप कौए के पीछे दौड़ रहे हैं। 

भारत में गरीबी भी है, भुखमरी भी है। आप खूब चमचमाती सड़क बना लीजिए, एक पत्रकार कहीं से उसके किनारे, फोटोशॉप करके ही सही, एक गरीब परिवार को ज़मीन पर खाता दिखा देगा। उसके नीचे एक कैची कैप्शन लगा देगा: क्या हमें ऐसा विकास चाहिए? जबकि, ये दोनों दो बातें हैं। गरीबी उन्मूलन पर कार्य हो रहे हैं, लेकिन ये जो लॉबी है, वो ऐसे कुतर्क करती है जिसका सीधा अर्थ यही समझ में आता है कि हर गरीब के सामान्य होने तक, विकास के सारे कार्य बंद कर दिए जाएँ। ऐसा तो है नहीं कि सरकार ने वंचितों की बेहतरी के लिए तय पैसे को मंगलयान में लगा दिया! लोककल्याणकारी कार्यों में सरकार प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष एक लाख रुपए से ज़्यादा ख़र्च करती है। लेकिन लॉबी को उससे मतलब नहीं है, आप खूब बड़ा पुल बना देंगे ताकि आने-जाने वालों को आसानी हो, एनडीटीवी वाले इस बात पर स्टोरी कर लेंगे कि अब उन नाव चलाने वालों का क्या होगा?

भारत में समस्याएँ दशकों से हैं, लेकिन समाधान अभी ही चाहिए। और कमाल की बात यह है कि इस सरकार ने यह तो दिखा ही दिया कि पिछली सरकारों से ज्यादा तेज़ी से, पारदर्शिता से, बेहतरी से कार्य हो सकते हैं। यही कारण है कि अब विकास को कोई नहीं ढूँढता, सबको साढ़े चार साल तक गंगा की बड़ी चिंता होती थी, और ‘फ़ंड कहाँ जा रहा है’ के मनचले सवाल किए जाते थे। टीवी के एंकर एक अश्लील हँसी हँसा करते थे। लेकिन सरकारी एजेंसियाँ नाले बंद करने में लगी थी, सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट बनाने में लगी थी, बीस करोड़ लीटर कचरे को गंगा में उतरने से रोकने में लगी हुई थी। 

इसलिए अब नैरेटिव से विकास गायब हो चुका है, क्योंकि विकास हर जगह खड़ा है, मुस्कुरा रहा है। जिन्होंने अवसाद और फ़्रस्ट्रेशन में कैक्टस रगड़ लिया है, उन्हें नहीं दिखेगा। अब नैरेटिव में कॉन्ग्रेस पार्टी के डिम्पल वाले अध्यक्ष के ‘प्यार की राजनीति’ वाली लाइन आ गई है और उसे हमारे छद्म-बुद्धिजीवियों ने ले अपना बना लिया है।

आप बस यह सोचकर मुस्कुराइए कि हमारे बुद्धिजीवी कितने समझदार और क्रिएटिव हैं कि उन्हें राहुल गाँधी की लाइन चुरानी पड़ रही है। किस तरह की मजबूरी रही होगी इन लोगों की कि हर मुद्दा सिरे से नकार दिया गया है, क्योंकि हर बात पर आँकड़ों की भाषा विलग है, और अपील किस बात पर हो रही है: नफ़रत की राजनीति को नकारिए। 

अरे लम्पटो! नफ़रत की राजनीति तो तुम लोगों ने की है। मरने वाले की जाति तुम ढूँढते हो, भले ही वो निजी रंजिश की वजह से मरा हो; वेमुला लिखकर मरता है कि उसके नाम पर राजनीति न हो, लेकिन उसकी माँ को पैसे देने का वादा करके हर मंच पर घसीटते हो; नजीब अहमद की अहमियत जब तक थी, तुमने उसे खूब मुद्दा बनाया; जुनैद को तुमने बीफ का शिकार बता दिया, जबकि वो सीट की लड़ाई थी; दंगे भड़कें इसके लिए तुमने बीफ ईंटिंग फेस्टिवल कराए, लेकिन दंगे नहीं भड़के; तुमने कठुआ कांड पर आख्यान लिखे, कैम्पेनिंग की, और गीता को भूल गए; तुमने लिंचिंग की खूब बातें की और तुम्हारे लिस्ट से पुजारी, नारंग, राजीव, अंकित जैसे हिन्दू नाम गायब रहे… 

फिर तुम्हारी ज़मीन है कहाँ? तुम तो सड़े हुए लोग हो जिनकी चमड़ी से बदबू आती है क्योंकि उसके अंग-अंग से व्यक्ति विशेष से घृणा का पीब रिस रहा है। तुम्हारी कमाई क्या है? सत्ता की दलाली के बाद पाए अवार्ड जिनके मेमेंटो तुम लौटा देते हो, लेकिन पैसे और रॉयल्टी नहीं लौटाते। तुम क्या विरोध करोगे, तुम उस लायक नहीं हो, तुम्हारे विरोध में बेईमानी सनी हुई है। तुम्हारी औक़ात नहीं है विरोध करने की क्योंकि तुम भीतर से चोर हो।

ये तथाकथित लेखक और फ़िल्मकार घटनाओं को चुनकर प्रतिक्रिया देते हैं इसलिए इनके हर ट्वीट के नीचे सकारात्मक और नकारात्मक कमेंट का अनुपात दूसरी तरफ झुका हुआ होता है। नहीं, कोई आईटी सेल ऐसा नहीं करता, बस लोग उब चुके हैं। लोगों को इनकी नग्नता का एहसास हो चुका है। लोगों को पता चल चुका है कि इनके लिए किसी की मृत्यु एक मानव मात्र की मृत्यु नहीं है, बल्कि उसकी आइडेंटिटी का, उस समय की राजनैतिक परिस्थिति के साथ मैच करना ज़रूरी है, क्रांति तभी शुरु होगी। रोहित वेमुला की मौत के बाद चुनाव हो चुके थे, और एक डेंटल हॉस्पिटल में तीन दलित छात्राओं ने ख़ुदकुशी कर ली थी, ये ख़बर कभी एक ख़बर से ऊपर कुछ बन ही नहीं पाई। 

ये बौद्धिक डकैत और पॉकेटमार हैं। ये बसों में रामपुरी दिखाकर पर्स झिटकने वालों के समकक्ष रखे जाने वाले लोग हैं। इन्हें मतलब अपने फ़ायदे से है, वो फ़ायदे जो भी पार्टी इन्हें देगी, या देती रही है, ये उसके लिए अपील कर देंगे। ये वो लोग हैं जिन्हें पुलवामा पर पीएम की चुप्पी पर छप्पन इंच पर सवाल करने की आज़ादी होती है, लेकिन एक्शन लेते ही शांति की याद आती है। ये बहुत ही उच्च कोटि के निम्नस्तरीय लोग हैं। 

इसलिए, तरकश के तीर सँभालिए, उनकी नोक पर तर्क का लेप लगाइए, और हमेशा प्रत्यंचा तान कर रखिए कि छद्मबुद्धिजीवी के मुँह खोलने की कोशिश से पहले ही उसकी जीभ वेध दीजिए। याद है न, एकलव्य ने कुत्ते की आवाज सुन कर, एक के बाद एक सात बाण छोड़ कुत्ते का मुँह बंद कर दिया था?

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32 साल बाद अरुणाचल प्रदेश से 3 जिलों से हटाया गया AFSPA

सुरक्षा बलों को अतिरिक्त शक्तियाँ देने वाला सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून अरुणाचल प्रदेश के 9 में से 3 जिलों से आंशिक रूप से हटा लिया गया है। हालाँकि, यह कानून म्यामांर से सटे इलाकों में अभी लागू रहेगा। यह कदम राज्य में कानून लागू होने के 32 साल बाद उठाया गया है। अधिकारियों ने मंगलवार (मार्च 02, 2019) को यह जानकारी देते हुए बताया कि अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों से AFSPA हटा लिया गया है, इन जिलों में रविवार 31 मार्च को स्थिती का जायजा लिया गया था।

अरुणाचल प्रदेश में फरवरी 20, 1987 को बनने के समय से AFSPA कानून लागू था। यह कानून असम और केंद्र शासित प्रदेश मणिपुर में पहले से लागू था। अरुणाचल प्रदेश के बाद मेघालय, मिजोरम और नागालैंड अस्तित्व में आए और इन राज्यों में भी यह कानून लागू किया गया था। न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी समिति ने राज्य से AFSPA हटाने की सिफारिश की थी।

AFSPA : Armed Forces (Special Powers) Acts

AFSPA कानून के तहत, सुरक्षा बल किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं और किसी भी परिसर में छापा मार सकते हैं। गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित अरुणाचल प्रदेश के 4 थाना क्षेत्र रविवार से इस विशेष कानून के अंतर्गत नहीं हैं। जिन थाना क्षेत्रों से अफस्पा हटाया गया है, उसमें पश्चिम कामेंग जिले के बालेमू तथा भालुकपोंग थाने, पूर्वी कामेंग जिले का सेइजोसा थाना और पापुमपारे जिले का बालीजान थाना शामिल है।

इन जिलों में अभी लागू रहेगा अफस्पा कानून

अधिसूचना के अनुसार, हालाँकि, तिराप, चांगलांग और लोंगडिंग जिलों, नामसाई जिले के नामसाई तथा महादेवपुर थानों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों, लोअर दिबांग घाटी जिले के रोइंग तथा लोहित जिले के सुनपुरा में अफस्पा 6 और महीनों के लिए 30 सितंबर तक लागू रहेगा।

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के कारण चार थाना क्षेत्रों से ‘अशांत क्षेत्र’ का टैग वापस ले लिया गया है और पूर्वोत्तर के प्रतिबंधित उग्रवादी समूहों के निरंतर क्रियाकलापों को देखते हुए यह कानून अन्य क्षेत्रों में लागू रहेगा। अधिसूचना में कहा गया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस कानून की धारा तीन के तहत उसे मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह फैसला किया।

पिछले साल मार्च में मेघालय में सुरक्षा स्थिति में सुधार आने पर अफस्पा पूरी तरह से हटा लिया गया था। एक अधिकारी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के कुछ भागों में प्रतिबंधित एनएससीएन, उल्फा और एनडीएफबी जैसे उग्रवादी समूह उपस्थित हैं।

पति बदलने के साथ बढ़ती है स्मृति की बिंदी: महागठबंधन के साथी नेता

चुनावों का दिन जैसे-जैसे समीप आ रहा है, कॉन्ग्रेस नेताओं और गठबंधन सहयोगियों के बयानों का स्तर उतना ही नीचा होता जा रहा है। महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस के महागठबंधन के साथी दल पीपल रिपब्लिकन पार्टी (पीआरपी) के सुप्रीमो जोगेंद्र कडावड़े के बेटे जयदीप कडावड़े ने भाजपा नेत्री और केन्द्रीय कपड़ा उद्योग मंत्री स्मृति ईरानी पर चारित्रिक हनन करता हुआ बयान दिया है

“स्मृति ईरानी गडकरी के बगल में बैठती है और संविधान बदलने की बात करती है। मैं बताता हूँ स्मृति ईरानी के बारे में। वो सर पर बड़ी सी बिंदी लगाती है और किसी ने मुझे बताया है कि जो औरत पति बहुत बार बदलती है, उसकी बिंदी का आकार उसी (पति बदलने के) हिसाब से बढ़ता जाता है।” कडावड़े के यह शब्द थे। उन्होंने इसके आगे स्मृति ईरानी को सीधे-सीधे संबोधित करते हुए यह ‘जानकारी’ दी कि संविधान बदलना पति बदलने जितना आसान नहीं है।

जयदीप कडावड़े की पीआरपी महागठबंधन के महाराष्ट्र संस्करण का हिस्सा है और कॉन्ग्रेस, शरद पवार की राकांपा और ‘भारत की किसान मजदूर पार्टी’ नामक मार्क्सवादी पार्टी इस संस्करण के अन्य भाग हैं।

स्मृति ने ठोंक रखी है अमेठी से ताल

स्मृति ईरानी को भाजपा ने लगातार दूसरी बार अमेठी से लोकसभा का टिकट दिया है। पिछली बार भाजपा ने स्मृति को हालाँकि बहुत देर से अपना प्रत्याशी बनाया था और स्मृति चुनाव प्रचार करने भी आखिरी दस ही दिनों में ही पहुँचीं थीं, पर तब भी उन्होंने राहुल गाँधी के जीत के अंतर को एक-चौथाई से भी कम में समेट दिया था।
2009 में जहाँ राहुल गाँधी अपना चुनाव 4 लाख मतों से ज्यादा में जीते थे, वहीं 2014 में स्मृति ने दस दिन के भीतर इस अंतर को 1 लाख से कुछ ऊपर ही छोड़ा था।

इसके बाद स्मृति ने 5 साल तक अमेठी से लगातार संपर्क बनाए रखा और सांसद न होते हुए भी कई विकास कार्यों का प्रबंध किया था। माना जा रहा है कि स्मृति के इस तरह अमेठी में जनसंपर्क और जनाधार बनाने और बढ़ाने के चलते ही राहुल गाँधी अमेठी के अलावा एक और ‘सुरक्षित’ सीट तलाशने को मजबूर हुए।

राहुल गाँधी अमेठी के अलावा केरल के वायनाड जिले से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

पहले भी हो चुके हैं स्मृति पर अभद्र राजनीतिक हमले

पिछले साल राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने स्मृति ईरानी को ‘हट्टी-कट्टी गाय’ कहा था। इसके अलावा कॉन्ग्रेस के तत्कालीन प्रवक्ता संजय निरुपम भी ईरानी को एक बार ‘टीवी पर ठुमके लगाने वाली’ कह चुके हैं।

स्मृति ईरानी ने जनवरी में बयान दिया था कि अमेठी का विकास राहुल गाँधी के पुरुषार्थ को चुनौती है। उसे भी वामपंथी झुकाव वाले टेलीग्राफ ने तोड़-मरोड़कर स्मृति ईरानी के राहुल गाँधी की मर्दानगी को ललकारना बताने का प्रयास किया था

…जो कुर्सी के लालच में अंधा होकर PM के बाद CM बना (जी हाँ, भारत का ही नेता था वो)

मौसम चुनावी हो रखा है लेकिन आज बात इतिहास की करेंगे। राजनीति उसमें आप स्वयं ढूँढ लीजिएगा। इतिहास की बात इसलिए क्योंकि भारत के कुछ नेता जनता से पढ़ाई-लिखाई-सड़क-सुरक्षा-स्वास्थ्य-नौकरी आदि की बात न करके इतिहास की बात कर रहे हैं। हमेशा ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वाले ऐसे नेता यह भूल जाते हैं कि उनके बाप-दादाओं की क्या हैसियत थी! और यह भी भूल जाते हैं कि उनके पूर्वज ने लालच में आकर कुर्सी की खातिर कब थूका और कब चाटा। इसलिए आज इतिहास की बात।

कहानी की शुरुआत होती है जनक सिंह से, जो आर्मी अफसर थे। 15 अगस्त 1947 – देश तब आजाद हुआ था। कहानी के दूसरे पात्र हैं – मेहर चंद महाजन। यह वकील थे, फिर जज बने। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रहे। कहानी के तीसरे पात्र वो हैं, जिन पर शीर्षक लिखा गया है। ये वो हैं, जिनके वंशज अभी भी राजनीति कर रहे हैं – मतलब इनका नाम जिंदा रखे हुए हैं। बाकी दोनों पात्र भुला दिए गए हैं। तभी कहानी के जरिए आप तक पहुँच रहे हैं।

15 अगस्त 1947 से 14 अक्टूबर 1947

इस कालखण्ड में जनक सिंह प्रधानमंत्री थे – जम्मू और कश्मीर के। इसके पहले वो आर्मी मिनिस्टर और रेवेन्यू मिनिस्टर भी रहे थे। आजादी के आस-पास उथल-पुथल वाले माहौल में जनक सिंह केवल 65 दिनों तक जम्मू और कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे।

15 अक्टूबर 1947 से 5 मार्च 1948

जनक सिंह के बाद जम्मू और कश्मीर के प्रधानमंत्री पद पर मेहर चंद महाजन की एंट्री होती है। इन्हीं के समय आजाद भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू और कश्मीर को लेकर पहला युद्ध (22 अक्टूबर 1947 से 5 जनवरी 1949) लड़ा गया। युद्ध की शुरुआत के 4 दिनों के बाद 26 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन जाता है। मतलब प्रधानमंत्री के तौर पर मेहर चंद महाजन ने अपना रोल बखूबी निभाया होगा, इसमें कोई शक नहीं।

5 मार्च 1948 – 9 अगस्त 1953

शेख अब्दुल्ला इस कहानी के तीसरे पात्र हैं। आजाद भारत में जम्मू और कश्मीर के तीसरे प्रधानमंत्री भी। लगभग साढ़े पाँच साल यह जम्मू और कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे। तब राज्य के चीफ करण सिंह (राजा हरि सिंह के बेटे) ने शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया। इतना ही नहीं, कश्मीर कॉन्सपिरेसी केस मामले में अब्दुल्ला को लगभग 11 साल तक जेल में भी रहना पड़ा।

PM से CM पद तक का सफर

नाटकीय घटनाक्रम के तहत 8 अप्रैल 1964 को शेख अब्दुल्ला पर लगे सारे आरोप हटा लिए जाते हैं। ये फिर से राजनीति में आते हैं। दुखद यह कि जो शख्स कभी जिस रियासत का प्रधानमंत्री था, उसने अपने आत्मसम्मान का गला घोंटकर मुख्यमंत्री बनना स्वीकार कर लिया। एक बार नहीं, बल्कि 2-2 बार। 25 फरवरी 1975 से 26 मार्च 1977 और फिर 9 जुलाई 1977 से 8 सितंबर 1982 तक शेख अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे।

शेख अब्दुल्ला के पोते हैं उमर अब्दुल्ला। वो भी जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके पापा हैं फारुक अब्दुल्ला – मतलब शेख अब्दुल्ला के बेटे। ये भी जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। बाप का, दादा का, पोता का… मतलब जम्मू और कश्मीर की राजनीति खानदानी पेशा है इनका

उमर अब्दुल्ला शायद अपने दादाजी का नाम और इतिहास भूल गए हैं। यह कहानी उमर के लिए भी। उनको याद दिलाने के लिए कि कैसे उनके दादाजी ने ‘वज़ीर-ए-आज़म’ का सपना थूक कर मुख्यमंत्री की कुर्सी थामी थी। और चुनावी माहौल में पोता चले हैं अपने दादा के थूके हुए को चाटने… ताकि फिर से ‘वज़ीर-ए-आज़म’ का सपना बेच कर सत्ता की कुर्सी पर तशरीफ़ रखी जा सके। मतलब साफ है – थूकना हो या थूक कर चाटना हो – कुर्सी पाना खानदानी पेशा है इस परिवार का।

ध्रुव राठी के वीडियो से केजरी हुए एक्सपोज़, हड़बड़ी में YouTube से किया वीडियो डिलीट, यहाँ देखें

इस साल 19 जनवरी को, AAP समर्थक प्रोपेगेंडा वीडियो ब्लॉगर ध्रुव राठी ने अपने Youtube चैनल पर एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें बताया गया था कि कैसे राजनेता टीवी बहस में पूछे गए कठिन सवालों को दरकिनार करते हैं। राजनेताओं के इस व्यवहार को समझाने के लिए, राठी के साथ एक और बहरूपिया व्यक्ति राजनेता की भूमिका में था। नेता के नाम पर इस अभिनेता के माथे पर एक बड़ा भगवा तिलक था और गले में एक मोतियों की माला थी जो रुद्राक्ष की तरह दिखती है।

हालाँकि, अभिनेता की कल्पना ने उस राजनेता का रूप ले लिया था जिसे आमतौर पर राठी द्वारा टारगेट किया जाता है। राजनेताओं की ‘लॉजिकल फ़ैलेसी’ को समझाते हुए राजनेता का परिचय अंध भक्त बनर्जी नामक एक बड़े मोदी समर्थक के रूप में कराया गया। एजेण्डाधारी ध्रुव राठी द्वारा लिए गए संघी राजनेता के साक्षात्कार की कई क्लिपें, एक मोनोलॉग के फॉर्म में डाली गई थीं, जो राजनेताओं के विभिन्न तार्किक फ़ैलेसी की व्याख्या करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

वैसे तो लगभग सभी विचारधाराओं और दलों के राजनेता लॉजिकल फ़ैलेसी अर्थात विभिन्न विरोधाभाष या कुतर्क का उपयोग करते हैं जैसे कि स्ट्रोमैन तर्क (strawman argument), स्लिपरी स्लोप (slippery slope), सर्कुलर तर्क (circular argument), लाल हेरिंग (red herring) आदि, लेकिन वीडियो में यह समझाने की कोशिश की गई कि जैसे केवल भाजपा के राजनेता ही ऐसी रणनीति में लिप्त हैं।

अन्य पार्टियों के राजनेताओं द्वारा भी इस तरह की रणनीति का उपयोग किया जाता है, यही दिखाने के लिए एक अन्य यूट्यूब चैनल ने उस वीडियो को एडिट किया और Youtube पर अपलोड किया। इस वीडियो में, ध्रुव राठी के मोनोलॉग को बरकरार रखा गया था, लेकिन वीडियो में इस्तेमाल किए गए नकली साक्षात्कार के उदाहरण को हटाकर, उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वास्तविक साक्षात्कार और भाषणों के साथ बदल दिया गया था।

कमाल की बात ये है कि क्लिप को इस तरह बदल दिया गया था कि वीडियो का कथानक बिलकुल वैसा ही रहे। केजरीवाल की क्लिप ध्रुव राठी द्वारा अपने वीडियो में किए गए तर्कों से बिल्कुल मेल खाती थी। संपादित वीडियो में उपयोग किए गए क्लिप केजरीवाल को उसी रणनीति का उपयोग करते हुए दिखाते हैं, जो वीडियो में इस तरह से दिखाया गया था कि जैसे केवल भाजपा नेताओं द्वारा उपयोग किया जाता हो।

संपादित वीडियो से ऐसा लग रहा है कि ध्रुव राठी लॉजिकल फ़ैलेसी को समझाते हुए AAP सुप्रीमो का पर्दाफाश कर रहे हैं और आप समर्थक ध्रुव राठी के लिए यह एक बड़ी शर्मिंदगी वाली बात है। इसलिए उसने कॉपीराइट उल्लंघन का हवाला देते हुए YouTube से वीडियो को हटा दिया है। जिसे हटाने से पहले 50 हजार से अधिक बार देखा गया था।

चैनल के मालिक ने यह भी बताया कि कॉपीराइट उल्लंघन के लिए चैनल को YouTube द्वारा निलंबित कर दिया गया था। इसलिए उन्होंने अन्य वेबसाइटों पर वीडियो अपलोड किया है। वीडियो नीचे देखा जा सकता है।

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यह साफ देखा जा सकता है कि वीडियो को राठी के प्रोपेगेंडा को आईना दिखाने के लिए, एक व्यंग्य के रूप में संपादित किया गया था, यह साबित करने के लिए कि अरविंद केरीवाल भी मूल वीडियो में बताए गए रणनीति का ही उपयोग करते हैं। संपादित वीडियो वास्तव में यह साबित करता है कि ध्रुव राठी सही है, क्योंकि अब इस वीडियो में उनके स्पष्टीकरण के सन्दर्भ में वास्तविक जीवन के उदाहरण थे। चलते-चलते एक और बात, विश्लेषण, समीक्षा या व्यंग्यात्मक उद्देश्यों के लिए मूल कार्य का उपयोग अवैध नहीं है, लेकिन फिर भी प्रोपेगेंडा चलाने वालों की वजह से वह वीडियो हटा दिया गया।

‘आयुष्मान’ ने नहीं बिकने दी हमारी जमीन, गरीबों के मुख से निकला मोदी जी के लिए आयुष्मान भवः

आयुष्मान योजना ने किस कदर लोगों की मदद की है, इसे जानने के लिए गाँवों की तरफ रुख करना होगा। ग्रामीण, गरीब, किसानों से मिलने पर पता चलता है कि किस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘आयुष्मान भारत’ न सिर्फ ज़िंदगियाँ बचा रही बल्कि उन्हें जीने का सम्बल भी दे रही है। लोकसभा चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान जब पत्रकार विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में कवरेज के लिए गए हैं तो वहाँ किस तरह से विभिन्न सरकारी योजनाओं ने कितना लाभ पहुँचाया, कहाँ-कहाँ अभी भी सुधार की जरुरत है, ये सब बाहर आ रहा है।

दैनिक जागरण ने एक ग्रॉउंड रिपोर्ट पब्लिश की है पलामू का, बताता चलूँ कि पलामू लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र झारखंड के 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। दो जिलों के कुछ हिस्सों को मिलाकर इस संसदीय क्षेत्र का गठन किया गया है।

पलामू की ही एक कहानी है विनोद की, कि किस तरह से एक बदहवास-सा मजदूर पिता अपनी सतमासी बेटी को लेकर दौड़ता हुआ अस्पताल पहुँचा। बिटिया के जन्म के साथ ही डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। बड़े अस्पताल के लिए रेफर तो कर दिया गया पर पैसा न विनोद के पास और न ही उनके रिक्शा चलाने वाले पिताजी शिवनारायण चौधरी के पास, बेटी के जन्म के समय ही नीजि डॉक्टर के यहाँ नौ हजार रुपए खर्च करने के बाद, जमीन बेचने का मन बना चुके विनोद के अस्पताल पहुँचते ही उनका गोल्डन कार्ड बन गया। पता लगा आयुष्मान योजना के तहत बेटी का इलाज शुरू हो गया। बिना एक पैसा खर्च किए। यह उनके लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। आज विनोद की बेटी अच्छी है। जमीन बेचने की नौबत नहीं आई। आयुष्मान योजना ने उसकी जमीन बचा दी और बच्ची भी।

जागरण की रिपोर्ट में ही एक और घटना जिक्र है कि पांकी के पगार खुर्द के सलोक का, सलोक एक बीघा जमीन के मालिक हैं, माँ-बेटी की जान बचाने के लिए डॉक्टर ने बड़े अस्पताल के लिए रेफर तो कर दिया। पिताजी छठू साव राँची में रिक्शा चलाते हैं। माली हालत ऐसी नहीं थी कि जमा पैसे से इलाज करा पाते। सलोक ने जमीन बेचकर भी इलाज कराने का फैसला किया और पहुँच गया पलामू। 42 दिनों से एनआइसीयू में भर्ती बेटी का, रोजाना तीन-चार हजार रुपए के हिसाब से कोई डेढ़ लाख रुपए का बिल बन गया लेकिन आयुष्मान भारत योजना से पूरा इलाज हुआ, उसकी भी जमीन बिकने से बच गई।

गाँव में एक कहावत है कि ‘जिसे अस्पताल और अदालत का चक्कर लगा वह बर्बाद हो गया।’ सोचिये फिर उन गरीबों पर क्या बीतती होगी जिन्हें खाने के लाले पड़े हैं या बस किसी तरह से गुज़ारा कर रहे हैं।

आयुष्मान भारत योजना ने किसी तरह मजदूरी का जीवन यापन करने वाले गरीबों के लिए, किसानों के लिए, यह योजना बहुत बड़ा सहारा है। पाँच साल के बीजेपी के शासन काल में जहाँ उनकी बाकी ज़रूरतें उज्ज्वला, अन्त्योदय सहित विभिन्न योजनाओं से पूरी हो रही थी। आयुष्मान योजना ने सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर दिया।

जागरण के रिपोर्ट के अनुसार ही बता दें कि पलामू के अस्पतालों में विनोद और सलोक जैसे कोई 6200 मरीज थे जिनका एक साल के भीतर इलाज हुआ। इस मद में करीब साढ़े छह करोड़ रुपए खर्च हुए। अनेक गरीबों की जमीन बिकने से बची तो अनेक सूदखोरों के चंगुल में फँसने से बचे।

रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ पलामू में ही 65 हजार से अधिक लोगों के गोल्डन कार्ड बन चुके हैं। ये सभी सूचीबद्ध 37 सरकारी गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं। पाँच लाख तक का मुफ्त इलाज सेवा का लाभ लेने वालों के दिल से योजना चलाने वाले के लिए आयुष्मान भव: का आशीर्वाद निकलना अस्वभाविक नहीं है।

ये आँकड़े तो सिर्फ एक लोकसभा क्षेत्र के हैं। आज देश में इस योजना ने गरीबों, वंचितों, किसानों को उस बेबसी और लाचारी से बाहर लाने में बड़ी मददगार सिद्ध हुई है। अब उन्हें पैसों की किल्लत की वजह से अपनों को नहीं खोना पड़ेगा। हालिया संशोधनों के बाद आयुष्मान भारत योजना के तहत देश के सभी बड़े विशेषज्ञ चिकित्सकों को इससे जोड़ा जा रहा है, ताकि देश का कोई भी गरीब, वंचित वर्ग बीमारी की लाचारी में अपने जमीन और जीवन भर की कमाई से वंचित न हो।

CBI ने किए भ्रष्टाचार संबंधी आँकड़े जारी, 2018 में 1468 दोषी साबित

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) के 57वें वार्षिक दिवस पर सीबीआई निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला ने कहा कि सीबीआई को लोगों, संसद, न्यायपालिका और सरकार के भरोसे का से खुशी मिल रही है। जब भी कोई बड़ा अपराध होता है या एक विश्वसनीय जाँच की आवश्यकता होती है, तो हमेशा सीबीआई जाँच की माँग होती है। इस दौरान सीबीआई ने भ्रष्टाचार से संबंधित आँकड़े जारी किए। इन आँकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल सीबीआई के जाँच के अनुसार 1,468 लोगों को भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराया गया। इन आँकड़ों के अनुसार एंटी-ग्राफ्ट एजेंसी ने 2018 से अब तक 8,999 केस और प्रारंभिक पूछताछ के मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 544 मामलों में दोष साबित करने में सफलता हासिल हुई। जिसके बाद अदालतों के निर्देश पर इनमें से 209 मामले उठाए गए।

एजेंसी का दावा है कि उसने रिश्वत के आरोपों का पता लगाने के लिए 156 ट्रैप ऑपरेशन किए थे और बैंक धोखाधड़ी से संबंधित 211 मामले दर्ज किए थे। सीबीआई के एक प्रवक्ता ने पुष्टि करते हुए कहा कि कई संवेदनशील मामलों में भी सजाएँ दी गई हैं,। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने शिमला में एक नाबालिग लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले की जांच करते हुए भारत में पहली बार डीएनए और वंश मिलान के प्रतिशत मिलान की तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया।

सीबीआई के निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला ने 14 जांच अधिकारियों, 6 कानून अधिकारियों, 46 कार्यकारी और 46 कार्यकारी और मंत्रालयिक कर्मचारियों और 2 तकनीकी अधिकारियों को निदेशक सीबीआई के प्रशस्ति पत्र और उनके अनुकरणीय कार्य के लिए नकद पुरस्कार से सम्मानित किया है। इस दौरान सीबीआई अधिकारियों को दिए अपने संबोधन में, शुक्ला ने शिकायत निवारण के महत्व पर भी जोर दिया और इस संबंध में संगठन के सभी अधिकारियों के लिए ‘ओपन डोर पॉलिसी ’का उल्लेख किया।

शुक्ला ने कहा कि सीबीआई एक भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी से बहुआयामी, बहु-विषयक केंद्रीय पुलिस कानून प्रवर्तन निकाय के रूप में विकसित हुई है, जिसमें देश भर में अपराधों की जाँच और मुकदमा चलाने की क्षमता, विश्वसनीयता और कानूनी जनादेश है। हाल ही में, एक नियुक्ति समिति में आईपीएस ऋषि कुमार शुक्ला को नए सीबीआई निदेशक के रूप में नियुक्त किया। इसमें पीएम मोदी, सीजेआई राजन गोगोई और लोकसभा में कॉन्ग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे।

भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के पद से हटने के बाद सीबीआई प्रमुख का पद 10 जनवरी से खाली पड़ा हुआ था। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के इस्तीफा देने के बाद एम नागेश्वर राय ने कार्यभार संभाला था।

ऋषि कुमार शुक्ला को नव निर्वाचित कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा मध्य प्रदेश में डीआईजी के रूप में अपने पद से हटा दिया गया था, जिसकी वजह से सरकार और विपक्ष के बीच जुबानी जंग छिड़ गई थी। सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा और एजेंसी के पूर्व उप प्रमुख राकेश स्थाना के बीच भी कुछ ठीक नहीं था। दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए और एजेंसी की प्रतिष्ठा पर एक गंभीर प्रहार किया।

बिग बी ने की व्हाट्सप्प वाले ‘चाणक्य’ की पंक्तियाँ ‘पूज्य बाबूजी’ के नाम, साहित्यप्रेमी दुखी

सोशल मीडिया पर अक्सर हम देखते हैं कि मोटिवेशनल कोट्स और पंक्तियों को किसी भी शायर या बड़े लेखक के नाम से ‘वायरल’ कर दिया जाता है। इस प्रचलन के सबसे बड़े शिकार अब तक सबसे ज्यादा गाँधी, ग़ालिब, रूमी और चाणक्य हुए हैं। लेकिन इस बार जो दुर्घटना घटी है उसमें शिकार और शिकारी दोनों ही लोगों को स्तब्ध कर देने वाले नाम हैं। ये ताजा प्रकरण जुड़ा है अमिताभ बच्चन और उनके पिता स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी की एक ‘कविता’ से।

अप्रैल फूल के नाम से मनाए जाने वाले 1 अप्रैल के दिन बॉलीवुड के वरिष्ठ अभिनेता अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर एक ऐसी कविता पोस्ट कर डाली, जो सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी पर खूब चलाई जाती हैं। लेकिन दुखद बात ये थी कि खुद अमिताभ बच्चन ये बात नहीं समझ पाए कि ये कविता के नाम पर एक धब्बा है और उनके पिता हरिवंशराय बच्चन जी ने ये नहीं लिखी है। ‘पूज्य बाबू जी का लेखन’ के साथ दो हाथ जोड़ती इमोजी बनाकर अमिताभ बच्चन ने ये ऐतिहासिक भूल कर डाली, लेकिन ट्विटर यूज़र्स की आपत्ति के बावजूद भी उन्होंने ये कविता अभी तक डिलीट भी नहीं की है।

इस कविता के लिरिक्स कुछ इस तरह हैं (हमने इसमें एडिटिंग नहीं की है)

*हारना तब आवश्यक हो जाता है ,*
*जब लड़ाई ” अपनों ” से हो ,* 
*और ,* 
*जीतना तब आवश्यक हो जाता* 
*जब लड़ाई ‘ अपने आप ‘ से हो* ….. 
*मंजिल मिले ना मिले ये* 
*मुकदर की बात है ,* 
*हम कोशिश ना करें , यह तो गलत बात है !* 
*किसी ने बर्फ से पूछा कि-* 
*आप इतने ठडे क्यो हो?* 
*बर्फ ने बडा सुन्दर उत्तर दिया-* 
*मेरा आतीत भी पानी* 
*मेरा भविष्य भी पानी* 
*फिर गर्मी किस बात की रखूं !*

हिन्दीनामा (Hindinama2) ने चाणक्य की एक रैंडम तस्वीर पर लिखी गई इन्हीं पंक्तियों के साथ आपत्ति जताते हुए लिखा है कि ये चाणक्य ने लिखा है ना कि हरिवंशराय बच्चन जी ने।

हालाँकि, ये बच्चन साहब का पारिवारिक मामला है लेकिन यह एक बड़ा सन्देश है कि जब अमिताभ बच्चन जैसी जागरूक हस्ती भी इंटरनेट पर चलने वाली अफवाहों के सही और गलत होने का निर्णय नहीं ले पाते हैं तो फिर आम नागरिक इन सूचनाओं से किस स्तर तक प्रभावित हो सकता है, वो भी ऐसे समय में, जब लोग सोशल मीडिया के माध्यम से और सस्ते कॉमेडियंस द्वारा दी गई जानकारियों को ही ब्रह्म सत्य मान बैठते हैं और हर दूसरे मनचले व्यक्ति के आँकड़ों को ही सही मानकर सरकार को कोसना चालू कर देते हैं।

क्या कनेक्शन है केजरीवाल का टैक्स-हेवन देशों और हेम प्रकाश शर्मा से?

कल ही ऑपइंडिया ने यह खुलासा किया कि आप सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल मध्य-पूर्व के मुस्लिम-बहुल देशों से चंदा माँग रहे हैं, और उसके लिए आम आदमी पार्टी के विज्ञापन इन देशों में चल रहे हैं। आज यह पता चला कि यह खबर बाहर आने के बाद भी आम आदमी पार्टी का संदिग्ध चंदा-उगाही अभियान थमा नहीं है बल्कि और फैल गया है। और इस फेहरिस्त में टैक्स-चोरी आसान करने के लिए बदनाम (लेकिन टैक्स-चोरों में ‘हेवन’ के रूप में मशहूर) देशों में भी अब आम आदमी पार्टी के विज्ञापन भेजे जा रहे हैं।

जिन 62 देशों में आप के विज्ञापन चिह्नित हैं, उनमें भारत, ऑपइंडिया द्वारा पहले ही खुलासा किए गए चार देशों सऊदी अरब, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, और क़तर, के अलावा ऑलैंड आइलैंड्स, मखदूनिया (Macedonia, आक्रान्ता सिकंदर का देश), मॉलडोवा जैसे देश भी शामिल हैं।


टैक्स-हेवन देशों का नाम निकल कर आता है सामने

ऑलैंड आइलैंड्स की कुल आबादी 2017 की जनगणना के हिसाब से 30,000 है। अप्रवासी हिन्दुस्तानी भी यहाँ केवल 38 ही हैं। केजरीवाल यहाँ से कितने चंदे की उम्मीद कर रहे थे?

ऐसा ही एक और देश गर्न्सी भी इस सूची में है जहाँ 2016 की जनगणना 63,000 की आबादी बताती है। इसके अलावा यह देश टैक्स-हेवन के रूप में भी विख्यात/कुख्यात है। एंडोरा भी एक और देश है जो आप की विज्ञापन सूची और आंशिक टैक्स-हेवन देशों की सूची, दोनों में मौजूद है।

मखदूनिया, अल्बेनिया, कोसोवो- तीनों के तीनों टैक्स-हेवन देशों की सूची में हैं, और आम आदमी पार्टी की संभावित दानदाता-लक्ष्य की सूची में भी हैं। मॉलडोवा भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से अपनी राजनीति शुरू करने वाले अरविन्द केजरीवाल के चंदा-अभियान के लक्ष्य पर है, और सावर्जनिक भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाली संस्था CiFAR इस देश को ‘यूरोप का बिसराया भ्रष्टाचार का स्वर्ग’ कहती है।

केजरीवाल वेटिकेन सिटी में भी चंदे के लिए विज्ञापन लगाए हैं, और यहाँ कुल 1000 ही लोग रहते हैं, जिनमें शायद ही कोई हिंदुस्तान का नागरिक या गैर-ईसाई होगा!

केजरीवाल और चंदा- दाल में काला, या फिर…?

2017 में आम आदमी पार्टी पर यह आरोप लगा था कि उसने हवाला के जरिए शेल कम्पनियों से चंदे के पैसे लिए। उसके पहले केजरीवाल के ‘गुरु’ अन्ना हजारे भी उन्हें पत्र लिखकर पार्टी को मिल रहे चंदे के बारे में स्थिति स्पष्ट करने के लिए कह चुके थे।

यही नहीं, केजरीवाल पर 2014 के आम चुनावों के पहले भी संदिग्ध स्रोतों से चंदा लेने का आरोप है। आप के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने यह आरोप लगाया था कि उनके (केजरीवाल के) वाराणसी से लोकसभा चुनावों का पर्चा भरने के एक सप्ताह पूर्व 5 अप्रैल 2014 को आम आदमी पार्टी के खाते में 4 शेल कम्पनियों से ₹2 करोड़ जमा किए गए। उन तीन कम्पनियों में एक डायरेक्टर समान था- हेम प्रकाश शर्मा।  नोटबंदी के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में छापा मारकर ₹13 करोड़ से अधिक की नकदी बरामद की थी। इस मामले में फँसी कम्पनी में भी हेम प्रकाश शर्मा के डायरेक्टर होने की बात निकल कर सामने आई थी।

कपिल मिश्रा इस हेम प्रकाश शर्मा को ही नोटबंदी के समय की केजरीवाल की विवादास्पद प्रेस कांफ्रेंस के पीछे बताते हैं। और कपिल मिश्रा के आरोप यहाँ से और संगीन ही होते गए। उन्होंने न केवल हेम प्रकाश शर्मा के फर्जी डायरेक्टर होने का आरोप लगाया बल्कि यह अंदेशा भी जताया कि शायद हेम प्रकाश शर्मा का कोई अस्तित्व ही नहीं है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि केजरीवाल को नोटबंदी की वजह से ही चुनाव लड़ने में दिक्कत हो रही है, और नोटबंदी में केजरीवाल का भारी नुकसान हुआ है। केजरीवाल के शुरूआती दिनों में भ्रष्टाचार विरोधी भाषणों को अगर याद करें तो यह आरोप चौंकाने वाले हैं।

DNA की तफ्तीश वेबसाइट से गायब!  

ऑपइंडिया ने जब इस रहस्यमयी हेम प्रकाश शर्मा की तहकीकात करने का प्रयास किया तो हमें इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट मिली जिसमें कई असहज कर देने वाले तथ्य दर्ज थे। इस रिपोर्ट के अनुसार आप को चंदा देने वालीं जिन तीन कम्पनियों का जिक्र ऊपर किया गया है, उनके पास दिखाने के लिए कोई राजस्व नहीं है। इन सभी में तीन लोग डायरेक्टर थे- हेम प्रकाश शर्मा, धरमेंदर कुमार, और मुकेश कुमार। इन कम्पनियों का जो पता रजिस्ट्रार हाउस में दर्ज है वहाँ पर एक डाकखाना, एक शटरबंद किराने की दुकान, और एक छोटा से सिलाई कारखाना है। रिपोर्ट पढ़कर यह कम्पनियाँ निश्चय ही शेल कम्पनियाँ प्रतीत होतीं हैं।

एक और भी चौंकाने वाला वाकया हमारे यह खबर लिखने के बाद हुआ है, जिसके लिए हम इस रिपोर्ट को सम्पादित कर रहे हैं। DNA ने उपरोक्त डायरेक्टरों में से एक मुकेश कुमार को तलाशा और उसके हवाले से यह दावा किया था कि हालाँकि वह इन कागजी कम्पनियों के मालिक जरूर हैं पर उन्होंने कभी आप को चंदा नहीं दिया। DNA ने यह भी लिखा था कि वह हेम प्रकाश शर्मा के आधिकारिक रूप से दर्ज पते पर पहुँचे तो उन्हें वहाँ एक दो-मंजिला घर मिला जहाँ एक अन्य 60-वर्षीया महिला और अपने परिवार के साथ रह रहीं दीपिका शर्मा ने हेम प्रकाश शर्मा की कोई भी जानकारी होने से इंकार किया है।

पर यह खबर लिखे जाने के बाद ऑपइंडिया को यह जानकारी मिली कि यह रिपोर्ट DNA के पोर्टल से हट चुकी है, और वहाँ अब केवल एक error message आ रहा है।

आखिर हेम प्रकाश शर्मा का ऐसा कौन सा सच है, जिसे छिपाने के लिए इस रिपोर्ट को हटाया गया है?? और हेम प्रकाश शर्मा का अरविन्द केजरीवाल से असली connection क्या है?

बेहतर होगा केजरीवाल खुद स्थिति स्पष्ट करें   

केजरीवाल के राजनीतिक उद्गम, और नैतिक श्रेष्ठता के उनके ऊँचे होते जा रहे दावे, दोनों का तकाजा यही है कि केजरीवाल खुद आगे आकर अपने और हेम प्रकाश शर्मा के संबंधों का खुलासा करें, और यह साफ़ करें कि उनके विज्ञापन इतने सारे टैक्स-हेवन देशों में क्यों चल रहे हैं।

अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो वे अपने ऊपर उँगलियाँ उठने से नहीं रोक सकते।