Sunday, September 29, 2024
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Money Laundering: राहुल गाँधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा को ज़मानत, लेकिन कोर्ट ने लगाई #शर्त

मनी लॉन्डरिंग के मामले में सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को अदालत से ज़मानत मिल गई है। हालाँकि स्पेशल सीबीआई अदालत ने अग्रिम ज़मानत देते हुए वाड्रा को बिना अनुमति देश नहीं छोड़ने को कहा। वाड्रा के क़रीबी मनोज अरोड़ा को भी ज़मानत दे दी गई है। ये दोनों अभी अंतरिम ज़मानत पर बाहर थे। हालाँकि, स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने ज़मानत के लिए शर्तें भी रखी हैं। ये दोनों ही आरोपित बिना अदालत की पूर्व अनुमति के देश छोड़ कर नहीं जा सकते। दोनों को ही जब भी बुलाया जाएगा, उन्हें आकर जाँच में सहयोग करना पड़ेगा। इसके अलावा कोर्ट ने उन्हें सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करने व गवाहों को न बरगलाने के भी आदेश दिए।

कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी के पति रॉबर्ट वाड्रा और उनके सहयोगी को कोर्ट ने 5 लाख रुपए के निजी मुचलके पर ज़मानत दी है। बता दें कि ज़मीन ख़रीद और शेल कंपनियों के जरिए विदेशों में (लंदन और दुबई) संपत्ति खरीदने के मामले में वाड्रा से अब तक प्रवर्तन निदेशालय (ED) कई बार लंबी पूछताछ भी कर चुका है।

दुबई के जुमैरा में ई-74 नामक एक विला है, जिसकी क़ीमत ₹14 करोड़ बताई जा रही है। इसी विला को लेकर ED ने उनसे जानकारियाँ माँगी थी। दुबई की कम्पनी स्काईलाइट्स इंवेस्टमेंट्स से वाड्रा के संबंधों को लेकर भी उनसे सवाल किए गए थे। एजेंसी का मानना है कि वाड्रा ने इस कम्पनी में भारी मात्रा में नकदी जमा कराया था। वाड्रा की एक कम्पनी का नाम भी स्काईलाइट्स हॉस्पिटैलिटी है। जाँच अधिकारी इसे महज़ संयोग नहीं मान रहे।

वाड्रा से सीसी थम्पी नमक व्यक्ति से अपना सम्बन्ध स्पष्ट करने को भी कहा गया था। बता दें कि थम्पी स्काईलाइट्स इन्वेस्टमेंट का शेयरहोल्डर था। ED को शक है कि ये कोई शेल कम्पनी है। थम्पी ने ही जून 2010 में भगोड़े हथियार कारोबारी संजय भंडारी से लंदन का फ्लैट ख़रीदा था। पूछताछ के दौरान वाड्रा ने स्काईलाइट्स इंवेस्टमेंट्स के साथ किसी प्रकार के सम्बन्ध होने की बात को नकार दिया। अमर उजाला में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पूछताछ के दौरान वाड्रा घबराए से लग रहे थे।

वाड्रा और उसकी माँ से बीकानेर ज़मीन ख़रीद में अनियमितताओं को लेकर सवाल किए जाएँगे। आरोप है कि वाड्रा ने बीकानेर जिले के कोलायत में 79 लाख रुपए में 270 बीघा जमीन खरीदकर तीन साल बाद उसे 5.15 करोड़ रुपए में बेच दी थी। रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ कई राज्यों में जमीन खरीद में अनियमितता बरतने के केस चल रहे हैं।

Seema-The Untold Story: 1962 में चीनी आक्रमण और सरकारी उदासीनता को दर्शाती फिल्म

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता हिरेन बोरा द्वारा बनाई गई असमिया भाषा की फिल्म सीमा- द अनटोल्ड स्टोरी ने सिनेमाघरों में धूम मचा दी है। ये फिल्म 29 मार्च को रिलीज हुई। इस फिल्म में 1962 में चीन द्वारा किए गए आक्रमण के दौरान असम के तेजपुर के लोगों की स्थिति को दर्शाया गया है। इसमें दिखाया गया है कि उस समय किस तरह डर गए थे और उन्होंने अपना बचाव किस तरह से किया था।

बता दें कि, फिल्म निर्माता हिरेन बोरा का होमटाउन तेजपुर है और जिस समय ये आक्रमण हुआ था, उस समय बोरा 12 साल के थे। उस घटना को इन्होंने अपनी आँखों से देखा है। चीनी आक्रमण के लगभग 6 दशक बाद, बोरा ने इस फिल्म के जरिए उस समय के भयावह स्थिति को दिखाने का प्रयास किया है। हिरेन का कहना है कि इस फिल्म के जरिए उन्होंने उस तेजपुर को श्रद्धांजलि दी है, जहाँ पर उनका बचपन बीता है। इस फिल्म में निपॉन गोस्वामी, अरुण नाथ और जहाँआरा बेगम जैसे कलाकारों ने मुख्य किरदार निभाए हैं। वहीं, जाने-माने अभिनेता जॉर्ज बेकर ने ब्रिटिश पत्रकार विलियम स्मिथ की प्रमुख भूमिका निभाई है।

हिरेन 1962 की घटना को याद करते हुए कहते हैं कि हालाँकि तेजपुर से उनकी काफी यादें जुड़ी हैं, लेकिन एक ऐसी याद है जो वहाँ से दूर जाने के बाद आज भी उनके जेहन में जिंदा है। बोरा बताते हैं कि तेजपुर में उस समय हाहाकार मच गया, जब 1962 में असम के एक छोटे से शहर तेजपुर में युद्ध की आशंका पैदा हुई। चीनी सैनिक तेजी से भारत में अपना रास्ता बनाकर लगभग 150 किमी दूर बोमडिला पहुँच गए थे। हालाँकि चीन ने युद्धविराम की घोषणा कर दी, मगर लोगों के मन में भय पहले से ही पैदा हो गया था। जब स्थिति को काबू करने में प्रशासन भी असफल हो गई, तो लोगों ने युद्ध के डर से भागना शुरू कर दिया।

हिरेन बोरा बताते हैं कि उनके दादा जी ने अपने बेटों को परिवार के साथ वहाँ से निकलकर पास के नागाँव जाने के लिए कहा। मगर उन्होंने खुद वहाँ पर रहकर अपने शहर की रक्षा करने का फैसला किया। हिरेन कहते हैं कि उनके दादाजी इस दौरान अकेले नहीं थे। कुछ और भी लोग थे वहाँ पर, जिनमें से कुछ लोगों के पास तो बचने का विकल्प नहीं था, तो कुछ लोग तेजपुर से लगाव की वजह से वहाँ रुक गए थे। हिरेन को इस बात का अफसोस है कि 1962 का चीनी आक्रमण पूर्वोत्तर भारत के इतिहास में एक बहुत बड़ी घटना होने के बावजूद इसे ना तो लोकप्रिय संस्कृति में, ना ही किताबों में चित्रित किया गया और ना ही फिल्मों में दिखाया गया।  

चिंतन: निराशावादी और विरोधाभासी है वामपंथ, समाज के विपरीत है इसकी अवधारणा

हेगेल के सिद्धांत के मुताबिक मानव मस्तिष्क की जीवन प्रक्रिया, अर्थात चिंतन की प्रक्रिया, जिसे हम ‘विचार’ के रूप में जानते हैं, एक विषय या कर्ता है, और वास्तविक दुनिया केवल इस विचार का प्रतिबिंब है।
एक अन्य संदर्भ में हेगेल ने विचारों को दुनिया के सृजनकर्ता के रूप में माना। लेकिन मार्क्स के अनुसार भौतिक दुनिया मानव मस्तिष्क में प्रतिबिंबित होती है, और फिर विचार बनते हैं। यानी कि कम्युनिज्म या वामपंथ का पूरा सिद्धांत “विचारों” पर केंद्रित है, बिना किसी विचारधारा के। साम्यवाद केवल ‘विचार’ की बात करता है, ‘विचारहीनता’ या ‘सोचने की प्रक्रिया’ की नहीं।

जैसा कि परंपरागत फिलोसफी में माना जाता है, विचार अल्पकालिक रहते हैं, सभी विचारों को बदला जा सकता और वे खुद भी प्रतिक्षण विलुप्त होते रहते हैं। इसके विपरीत, “विचार प्रक्रिया” कभी समाप्त नहीं होती है और यह लगभग दसियों या सैकड़ों अन्य विचारों को हर विचार के लिए संसाधित करती है, जो मर जाती है। कम्युनिज्म ये नोटिस ही नहीं करता है कि “इस दुनिया के प्रति हमारी प्रतिक्रिया ही हमारे विचारों को जन्म देती है”।

उदाहरण के लिए, अगर मैं फूल देखता हूँ- यहाँ ‘देखना’ एक विचार नहीं है और अगर मैं देख रहा हूँ तो कोई विचार नहीं उठेंगे। लेकिन जब बहुत ही तत्परता से मैं कहता हूं कि ‘फूल बहुत सुंदर है’, तो विचार पैदा होता है। अगर मैं केवल तभी देखूँ तो सुंदरता की भावना होगी, लेकिन विचार पैदा नहीं होगा। लेकिन जैसे ही हम इसे अनुभव करते हैं, हम इसे एक शब्द देना शुरू करते हैं। यह विचार ज्ञान को शब्द देने के रूप में जन्म लेता है, यहीं प्रतिक्रिया, शब्द देने की आदत, दर्शन को धारणा देती है। सनसनी दब जाती है, दर्शन उदास हो जाता है, पर शब्द मन में तैरते रहते हैं। ये शब्द एकमात्र विचार हैं!

मार्क्सवाद समाज को दो भागों में वर्गीकृत करता है, जो कि शोषण कर रहे हैं और जो शोषित हैं। यह उन परिभाषाओं के विपरीत है, जिन पर ‘समाज’ मौजूद है। और ये उन सभी सिद्धांतो को भी ख़ारिज करता है जो एक व्यक्ति या संस्था की सफलता और खुशी के उपायों का अनुमान लगाते हैं। तो, मूल रूप से कम्युनिज्म ये भविष्यवाणी करता है कि ‘समाज में कोई भी सफल नहीं है या कुछ अच्छा भला नहीं होता है।

और फिर यह कम्युनिस्टों द्वारा लिखी गई बहुत लोकप्रिय स्लोगन के विपरीत है, जो हर किसी को उसकी क्षमताओं के अनुसार देने और उनकी जरूरतों के अनुसार प्राप्त करने की वकालत करता है। इस प्रकार, किसी समाज की आवश्यकताओं को एक व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं से ऊपर और उससे आगे रखा जाएगा, कम्युनिज्म अपनी इस एकमात्र थ्योरी को भी विरोधाभास की नजर से देखने लगता है।

इसलिए, एक आभासी विचारधारा पर आधारित कम्युनिज्म, नवाचार को पूरा करने पर या विचारों की प्रकृति निर्धारित करने वाली विचार प्रक्रिया पर काम नहीं करता। मैं समझता हूँ कि वामपंथ के पीछे छिपे पागलपन और विवेकशीलता का निर्धारण करने के लिए इतना ही काफ़ी है।

(उपर्युक्त चिंतन अमेरिकी लेखक और FBI के अधिकारी रहे W. Cleon Skousen की पुस्तक “The Naked Communist” को आधार बनाकर लिखा गया है। वामपंथियों ने इस पुस्तक को राइट विंग वालों का हथकंडा बताकर रिजेक्ट कर दिया था।)

बेगूसराय: गिरिराज के पहुँचते ही कन्हैया गैंग के छूटे पसीने, चोखा-भुजिया के बीच का अंतर भूले जिग्नेश

बेगूसराय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की भूमि है। इस क्षेत्र पर इस बार पूरे देश की मीडिया की नज़रें हैं क्योंकि यहाँ मुक़ाबला भाजपा की मूल विचारधारा के प्रखर समर्थक गिरिराज सिंह बनाम वामपंथी कन्हैया के बीच होने वाला है। कन्हैया कुमार पर जेएनयू में देशद्रोही नारे लगाने का भी आरोप है। अदालत में पेश होते समय वकीलों ने उनकी पिटाई भी की थी। इस चुनाव की सबसे बड़ी बात है कि इसमें एक तरफ तो खादी के लाल कुर्ते और एक पैर के टखने तक उठी हुई धोती पहने मिट्टी से जुड़े गिरिराज हैं तो दूसरी तरफ दिल्ली और मुंबई के पाँच सितारा होटलों और इलीट जमावड़ों के जाने-पहचाने चेहरों द्वारा समर्थित कन्हैया कुमार हैं। एक तरफ भगवा तो दूसरी तरफ लाल सलाम। एक तरफ मीडिया के एक गिरोह द्वारा विवादित माने जाने वाले सिंह तो दूसरी तरफ लिबरल्स और सेकुलर्स के नए पोस्टर बॉय कन्हैया।

यहाँ की लड़ाई दिलचस्प है। हमारे विश्लेषणों में पिछले चुनावों के आँकड़ों के आधार बताया जा चुका है कि कन्हैया कुमार के दूसरे नंबर पर भी रहने के चांस नहीं हैं। ऐसे में, जहाँ समीकरणों और जनता के रुख की बात होती रहेगी, वहाँ यह जानना ज़रूरी है कि गिरिराज और कन्हैया को समर्थन कहाँ-कहाँ से मिल रहा है। दोनों के आसपास कैसे लोगों का जमावड़ा है, दोनों के प्रचार अभियान में क्या अंतर है और दोनों ही में से कौन ज़मीन पर है और कौन हवा में? नीचे हम इसी बातों पर चर्चा करते हुए बेगूसराय की चुनावी स्थिति की पड़ताल करेंगे।

कन्हैया के हवा-हवाई इलीट समर्थक

रविवार (मार्च 31, 2019) को अभिनेत्री शबाना आज़मी ने ट्विटर पर एक फोटो पोस्ट किया। इस फोटो में कन्हैया कुमार के साथ मुट्ठी में कलम दबाए लोग हैं और इसपर वामपंथी प्रतीकों की भरमार है। इसपर ‘लाल सलाम’ भी लिखा हुआ है। मज़े की बात तो यह कि खुलेआम पार्टी और नेता विशेष की आराधना करनेवाले ये सेलिब्रिटीज राजनीतिक रूप से न्यूट्रल होने की बात कह कूल बनने की भी कोशिश करते हैं। कल को अगर शबाना आज़मी निष्पक्षता के दावे करती हैं तो क्यों न वामपंथी पार्टियों के समर्थक के रूप में उनके बयानों को आँका जाए? शबाना आज़मी ने ‘द वायर’ में कन्हैया कुमार द्वारा लिखे लेख को भी ट्वीट किया और उनके समर्थन में लिखने वाले लोगों के ट्वीट्स को भी जम कर रीट्वीट किया।

शबाना आज़मी के नाम पर शायद बेगूसराय में एक भी वोट न मिले। बिहार की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि यहाँ लालू यादव जैसे ज़मीन से जुड़े दिग्गज नेता भी सांसद का चुनाव हार सकते हैं तो बाकि हवा-हवाई नेताओं की बात ही क्या! शबाना आज़मी आजकल स्कॉटलैंड में एक फ़िल्म फेस्टिवल के दौरे की तैयारी कर रही हैं। उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल पर मोदी का मज़ाक उड़ाने वाले और कन्हैया के समर्थन में किए जाने वाले पोस्ट्स देखर यह समझा जा सकता है कि उनका राजनीतिक झुकाव किस तरफ है। उन्होंने कन्हैया को आशा, बुद्धिमता और सत्य का प्रतीक बताते हुए उनकी ‘अच्छी लड़ाई’ के लिए उन्हें शुभकामनाएँ दी।

इसी तरह एक और वामपंथी समर्थक हैं स्वरा भास्कर। स्वरा ने भी कन्हैया कुमार का समर्थन करते हुए कार्ल मार्क्स के शब्दों का सहारा लिया। उन्होंने कन्हैया को सिद्धांतवादी राजनेता बताते हुए उन्हें एक सराहनीय वक्ता बताया। उनके इस ट्वीट से बिहार या बेगूसराय के किसी गाँव में भी शायद ही कोई असर पड़े लेकिन स्वरा का राजनीतिक झुकाव भी छिपा नहीं रहा। यह साबित करता है कि सभी लिबरल्स अब एकजुट होकर कन्हैया कुमार के समर्थन में उतर आए हैं और सोशल मीडिया पर दिल्ली और मुंबई से उनके समर्थन में ट्वीट्स किए जा रहे हैं।

इसी तरह निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी भी गुजरात से चुनाव प्रचार करने आए। उनके वोट माँगने के अंदाज़ से पता नहीं चल रहा था कि वो पिकनिक मनाने आए हैं या चुनाव प्रचार करने? जिग्नेश मेवानी और शबाना आज़मी के बीच एक समानता है। जिग्नेश को भुजिया और चोखा के बीच का अंतर नहीं पता जबकि शबाना आज़मी को पोहा और उपमा के बीच का अंतर नहीं पता। अब चोखा और भुजिया के प्रेमी बिहार वाले ऐसे लोगों को शायद ही वोट दें, जिन्हे इन दोनों के बीच का अंतर नहीं पता।

ज़मीन केंद्रित है गिरिराज सिंह का प्रचार अभियान

जिग्नेश मेवानी से प्रचार करवा कर दलित वोटों की जुगत में लगे कन्हैया कुमार को गिरिराज सिंह ने करारा जवाब दिया। उन्होंने जिग्नेश पर गुजरात से बिहारियों को मार-मार कर भगाने व बिहारी माँ-बेटियों को परेशान करने का आरोप लगाया। जिग्नेश ने जवाब में उनपर मानहानि का केस ठोकने की धमकी दी। साथ ही उन्होंने कन्हैया कुमार से पूछा कि उन्होंने भारतीय सेना को बलात्कारी क्यों कहा था? गिरिराज सिंह ने अपने प्रचार अभियान का श्रीगणेश सिमरिया से किया। सिमरिया गाँव दिनकर की जन्मस्थली है। यहाँ स्थित काली मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ गिरिराज सिंह ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की।

इसके बाद गिरिराज सिंह ने व्यवसायियों से मुलाक़ात की, वकीलों से मिले और संगठन कार्यकर्ताओं के साथ भी बैठकें की। कन्हैया कुमार ने क्षेत्रीयता की राजनीति करते हुए गिरिराज सिंह को बाहरी बताया। जवाब में गिरिराज सिंह कन्हैया को उनके घर में ही जवाब देने के लिए उनके गाँव बीहट पहुँच गए। वहाँ स्थित दुर्गा मंदिर में समर्थकों सहित पूजा-अर्चना के साथ उन्होंने कन्हैया को उनके ही गाँव में घेरा। ख़बरों के मुताबिक, अगले कुछ दिनों में थिएटर आर्टिस्ट्स, दिग्गज वामपंथी नेतागण, सेलिब्रिटीज सहित कई हस्तियाँ कन्हैया कुमार के लिए चुनाव प्रचार में कूदने वाली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि 29 अप्रैल को यहाँ होने वाली वोटिंग में ऊँट किस करवट बैठता है।

गिरिराज सिंह ने दिवंगत अजेय सांसद भोला सिंह की पत्नी से भी मुलाकात की और चुनाव प्रचार शुरू करने से पहले आशीर्वाद लिया। भोला सिंह की पत्नी के पाँव छूते हुए गिरिराज के फोटो को सोशल मीडिया पर बेगूसराय वासियों ने ख़ूब शेयर किया। भोला सिंह यहाँ के लोकप्रिय सांसद थे और 2014 में उन्हें यहाँ भारी जीत मिली थी। एक तरफ गिरिराज स्थानीय मुद्दों को उठा रहे हैं, स्थानीय नेताओं, नागरिकों व हस्तियों को साथ ला रहे हैं तो दूसरी तरफ कन्हैया मुम्बइया सेलिब्रिटीज के दम पर चुनाव में उतरे हैं।

पाउडर के बाद अब Johnson & Johnson का शैंपू भी हुआ फेल, पाए गए हानिकारक पदार्थ

हाल ही में खबर आई थी बच्चों के लिए हैल्थ केयर प्रोड्क्ट्स बनाने वाली कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के बेबी पाउडर में हानिकारक पदार्थ हैं। जिसके कारण कैंसर जैसी बड़ी बीमारियाँ भी हो सकती हैं। लेकिन अब पाउडर के बाद इस कंपनी का शैम्पू भी स्टैंडर्ड क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गया है

दरअसल, राजस्थान ड्रग कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन ने जॉनसन एंड जॉनसन शैम्पू के 2 बैच में हानिकारक पदार्थ होने की बात का खुलासा किया है। राजस्थान ड्रग रेगुलेटर ने इस शैम्पू के 2 बैच – ‘BB58204’ और ‘BB58177’ को टेस्ट किया था, जिसमें हानिकारक फार्मेल्डिहाइड मौजूद होने की रिपोर्ट हैं। हालाँकि इन शैम्पू की एक्सपायर डेट 2021 है। लेकिन इनके इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश दे दिया गया है।

राजस्थान के ड्रग्स कंट्रोलर ने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (DCGI) को लिखे एक पत्र में कहा है, “कृपया समय-समय पर बाजार में उपलब्ध उक्त निर्माताओं के अन्य बैचों और दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करें।”

इसके अलावा राजस्थान ड्रग्स वॉचडॉग ने ड्रग्स ऑफिसर से नोटिस में कहा है कि इन स्टॉक्स को किसी के भी द्वारा इस्तेमाल न किया जाए। इसके साथ ही आदेश दिया गया है कि इन्हें मौजूदा स्टॉक मार्केट से भी हटाया जाए। यहाँ बता दें कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत राजस्थान ड्रग रेगुलेटर चाहे तो वो कंपनी पर मुकदमा भी चला सकती है।

कंपनी ने अपने प्रोडक्ट के पक्ष में बात रखते हुए जॉनसन एंड के जॉनसन के बेबी शैम्पू में फार्मेल्डिहाइड होने की रिपोर्ट से इनकार किया। कंपनी के प्रवक्ता का कहना है कि वे शैंपू में हानिकारक फार्मेल्डिहाइड होने की रिपोर्ट को नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें टेस्ट से जुड़ी जानकारी नहीं दी हैं और न ही बताया है कि किस तरीके से ये टेस्ट हुआ।

कॉन्ग्रेस ने करोड़ों हिन्दुओं पर लगाया आतंकवाद का दाग, अंग्रेजों ने भी नहीं किया था ऐसा: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए कॉन्ग्रेस शासन काल में उछाले गए ‘हिन्दू आतंकवाद’ को लेकर पार्टी पर निशाना साधा। प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वर्धा में आयोजित रैली में ये बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को भी आड़े हाथों लिया। पीएम ने कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा:

“वोट-बैंक की राजनीति के लिए एनसीपी और कॉन्ग्रेस किसी भी हद तक जा सकती हैं। इस देश के करोड़ों लोगों पर हिंदू आंतकवाद का दाग लगाने का प्रयास कॉन्ग्रेस ने ही किया है। सुशील कुमार शिंदे जब भारत सरकार में मंत्री थे, तो उन्होंने इसी महाराष्ट्र की धरती से हिंदू आतंकवाद की चर्चा की थी। कुछ दिन पहले कोर्ट का फैसला आया है और इस फैसले से कॉन्ग्रेस की साज़िश की सच्चाई देश के सामने आई है।”

“कॉन्ग्रेस ने हिन्दुओं का जो अपमान किया है, कोटि-कोटि जनता को दुनिया के सामने नीचा दिखाने का जो पाप किया है, ऐसी कॉन्ग्रेस को माफ़ नहीं किया जा सकता है। आप मुझे बताइए, जब आपने हिन्दू आतंकवाद शब्द सुना तो आपको गहरी चोट पहुँची थी कि नहीं। हज़ारों साल के इतिहास में हिन्दू कभी आतंकवाद करे, ऐसी एक भी घटना नहीं है। अंग्रेजी इतिहासकारों ने भी कभी ‘हिन्दू हिंसक हो सकता है’ इस बात का जिक्र तक नहीं किया।”

प्रधानमंत्री ने कॉन्ग्रेस पर भारत की पाँच हज़ार वर्ष से भी पुरानी संस्कृति का अपमान करने का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने कॉन्ग्रेस के इस ‘पाप’ की याद दिलाते हुए जनता से यह याद रखने को कहा कि ‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसे शब्दों को किसने उछाला था? पीएम ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने जिसे आतंकी कहा, वो शांतिप्रिय समाज अब जाग चुका है। उन्होंने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का जिक्र करते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस ने पूरे विश्व को परिवार मानने वाले समाज को आतंकवादी बताया।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी कॉन्ग्रेस को इसी मुद्दे पर घेरा। यूपी के नगीना में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए शाह ने कहा:

“समझौता ब्लास्ट को हिन्दू आतंकवाद बोलकर कॉन्ग्रेस ने अपने वोट बैंक के लिए पूरी दुनिया में शांति और सौहार्द के प्रतीक हिन्दू धर्म को बदनाम किया। आतंकवाद को हिंदू धर्म के साथ जोड़ने का पाप कॉन्ग्रेस ने किया। राहुल बाबा, आपको पता नहीं है हम तो चींटियों को भी आटा खिलाने वाले लोग हैं। कॉन्ग्रेस ने इसके साथ ही पाक प्रेरित लश्कर-ए-तैयबा के ब्लास्ट करने वाले असली गुनहगारों को छोड़कर देश की सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ किया।”

राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने और मुस्लिम तुष्टिकरण के जवाब में भाजपा अध्यक्ष शाह और पीएम मोदी द्वारा चुनावी मौसम में कॉन्ग्रेस की करतूत याद दिलाना भाजपा की आगामी रणनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है। पार्टी ने अब कॉन्ग्रेस द्वारा हिन्दुओं को लेकर कही गई बातों को नए सिरे से उठाना शुरू कर दिया है। दोनों बड़े नेताओं के इस बयान के बाद कई अन्य भाजपा नेताओं ने भी ‘हिन्दू आतंकवाद’ को लेकर कॉन्ग्रेस को निशाना बनाया और जनता को ये सब याद दिलाने की कोशिश की।

गाली के बाद डिलीवरी एजेंट ने की सेक्स की माँग, Swiggy ने कहा – ‘Sorry, ये लो ₹200’

बेंगलुरु में Swiggy की अजीबोगरीब माफी का मामला सामने आया है। ऑन-डिमांड खाना पहुँचाने वाली कंपनी Swiggy के डिलीवरी एजेंट ने तथाकथित तौर पर एक महिला को गाली दी, उसके साथ अश्लील और अभद्र आचरण किया। महिला का आरोप है कि शिकायत करने पर कंपनी ने उसे एक “Sorry” नोट और ₹200 का कूपन दे कर मामला रफा-दफा करने का प्रयास किया।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक नेहा (नाम परिवर्तित) ने इसे नाकाफी मानते हुए कंपनी से उक्त व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने की माँग की है।

नेहा ने इस घटना के बारे में फेसबुक पर लिखते हुए बताया कि यह घटना गत बृहस्पतिवार की है। नेहा ने Swiggy से खाने का ऑर्डर दिया था। जब खाना लेने नेहा बाहर निकलीं तो डिलीवरी एजेंट ने कुछ कहा जिसे वह ठीक से सुन नहीं पाईं। एजेंट ने जब दोहराया तो नेहा को समझ में आया कि वह उनसे सेक्स की माँग कर रहा है और गाली दे रहा है।

नेहा ने लिखा, “मैं स्तब्ध रह गई… मुझे उससे literally खाना छीन कर दरवाज़ा बंद करना पड़ा। पर खाना खाना तो दूर, मुझसे उस खाने की ओर देखा भी नहीं जा रहा था।।”

नेहा ने जाहिर तौर पर Swiggy की उपभोक्ता सेवा (customer service) से इसकी शिकायत की, और जवाब में कंपनी ने उन्हें एक “Sorry” नोट और ₹200 के कूपन दिए। तभी नाराज़ होकर नेहा ने फेसबुक पर शिकायत करने का फैसला लिया।

फेसबुक पर कंपनी ने अपने ढीले रवैये से नेहा को हुए दुखद अनुभव के लिए माफी माँगी है और आगे कार्रवाई करने के लिए उनसे मामले से जुड़े तथ्य और विवरण देने का आग्रह किया है।

बेंगलुरु में खाना डिलीवर करने वाली कंपनियों के डिलीवरी एजेंट की बदतमीजी के मामले रह-रह कर सामने आते रहते हैं। पिछले ही साल एक महिला डीजे ने भी रात को खाना पहुँचाने आए एजेंट की बदतमीजी की शिकायत की थी।  

ऐसे में जब यह कंपनियाँ अपना दायरा बढ़ाने को लेकर इतनी उत्सुक हैं तो इन पर सरकार और समाज दोनों को यह दबाव बनाना चाहिए कि उपभोक्ताओं की सुरक्षा को लेकर इनके इंतजामों और शिकायत निवारण तंत्र (grievance redressal systems) में भी सुधार उतनी ही तेजी से हो जितनी तेजी से यह व्यापार बढ़ाना चाहती हैं।

कॉन्ग्रेस के सहयोगी डीएमके नेता के ठिकानों पर IT विभाग की छापेमारी, लाखों रुपए बरामद

आयकर विभाग (IT) के अधिकारियों ने चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ तमिलनाडु में कॉन्ग्रेस की सहयोगी पार्टी द्रमुक के वरिष्ठ नेता दुरईमुर्गन के ठिकानों पर छापा मारा। बता दें कि आगामी लोकसभा चुनाव कॉन्ग्रेस और डीएमके मिलकर लड़ेंगे

ख़बर के अनुसार, वेल्लोर में डीएमके लीगल सेल के अधिकारियों द्वारा विरोध करने के बावजूद आयकर अधिकारियों ने छापे मारे। डीएमके लीगल सेल के अधिकारियों ने कर विभाग के इलेक्शन सर्विलांस, ज़िला स्टेटिक सर्विलांस और फ्लाइंग स्क्वॉड की टीमों को बिना वारंट तलाशी लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

आईटी अधिकारियों ने दुरई मुरुगन के वेल्लोर निवास पर शनिवार (30 मार्च) को सुबह 10 बजे तक छापे मारे, जिनके बेटे डीएम कथिर आनंद वेल्लोर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे हैं। मुरुगन और उनके बेटे काथिर आनंद के स्वामित्व वाली जगहों जिनमें उनके आवास, किंग्स्टन इंजीनियरिंग कॉलेज और दुरई मुरुगन बी.एड कॉलेज आदि शामिल हैं वहाँ छापे मारे गए।

आईटी विभाग ने कहा कि तलाशी के दौरान 10 लाख रुपए की बेहिसाब नकदी ज़ब्त की गई है। इसके अलावा निवास स्थान से लगभग 19 लाख रुपए नकद बरामद किए गए। शनिवार को आईटी विभाग द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि चुनावी हलफ़नामे में 6 लाख रुपए नकदी घोषित करने का बाद, अतिरिक्त 10 लाख रुपए ज़ब्त किए गए हैं।

आयकर विभाग ने वेल्लोर में एक सीमेंट गोदाम से भारी मात्रा में नकदी भी बरामद की है। टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के अनुसार, 29-30 मार्च की मध्यरात्रि को दुरीमुरुगन कॉलेज से नकदी को यहाँ स्थानांतरित कर दिया गया था।

इस बीच, दुरई मुरुगन ने आईटी छापे को पूरी तरह से विशुद्ध राजनीतिक करार दिया है। मुरुगन ने कहा कि इसका उद्देश्य चुनाव में उनके बेटे की जीत में बाधा डालना है। मीडिया से बात करते हुए, दुरई मुरुगन ने कहा कि यह पूरी तरह से राजनीति है। यदि आईटी विभाग को इस तरह की छापेमारी करनी थी तो उन्हें यह छापेमारी पिछले महीने ही करनी चाहिए थी। वो इस समय क्यों की गई, हम क़ानूनी रूप से इसका सामना करेंगे।

हालाँकि, आईटी विभाग ने स्पष्ट किया है कि उन्हें वेल्लोर के ज़िला निर्वाचन अधिकारी द्वारा बुलाया गया था और राज्य पुलिस प्रमुख द्वारा जारी आधिकारिक ज्ञापन प्राप्त करने के बाद ही छापेमारी की गई।

लड़ाकू विमान उड़ाने और वॉरशिप पर पराक्रम दिखाने के बाद महिलाएँ अब ‘Defence Attache’ भी बन सकेंगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने महिलाओं को लेकर नए आयाम स्थापित किए हैं। एक समय था जब महिला सशक्तिकरण के नाम पर औरतों को सिलाई मशीन थमा कर सीमित कर दिया जाता था। लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं। मोदी के नेतृत्व में इंदिरा गाँधी के बाद देश को निर्मला सीतारमन के रूप में पहली महिला पूर्णकालिक रक्षा मंत्री मिलीं जिन्होंने सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तेज़ करने के साथ सैन्य क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति को भी में संवारा।

प्रायः देखा गया है कि सैन्य सेवाओं को पुरुषों का अधिकारक्षेत्र माना जाता रहा है। पूर्व में भारतीय वायुसेना से रिटायर हुईं एयर मार्शल पी.बंदोपाध्याय (भारत की पहली एयर मार्शल) जैसी महिलाओं ने इस मिथक को तोड़ा है। इस वर्ष (2019) की शुरूआत में फैसला लिया गया कि भारत अपने विदेशी मिशनों में ‘डिफेंस अताशे’ के रूप में महिला अधिकारियों को भी तैनात करेगा। इस फैसले के बाद तीनों सेनाओं से उन महिलाओं की पहचान करने के लिए कहा गया जो इन पदों के साथ न्याय कर सकती हैं। इस दिशा में पहले डिफेंस अताशे के रूप में महिला सैन्य अधिकारियों को यूरोप और अमेरिका के मिशन पर तैनात करने की योजना है।

हालाँकि ये सच हैं कि भारत में अब तक कई प्रतिष्ठित महिलाएँ राजदूत, राजनयिक यहाँ तक ​​कि विदेशी सचिव भी रही हैं, लेकिन डिफेंस अताशे के रूप में पुरुष अधिकारियों को प्राथमिकता दी जाती थी। यह स्वयं रक्षा मंत्रालय ने स्वीकार किया है। लेकिन अब इन पदों के लिए चुनी गईं महिला ऑफिसर्स अपनी तैनाती पर जल्द ही जा सकती है। किसी देश के राजनयिक मिशन में डिफेंस अताशे का पद महत्वपूर्ण होता है। किसी अन्य देश में भारतीय दूतावास में तैनात डिफेंस अताशे सैन्य विशेषज्ञ के रूप में काम करते हैं। वे रक्षा खरीद संबंधित निर्णय लेने में भारत सरकार की सहायता करते हैं।

बीते कुछ वर्षों में भारत की रक्षा और सुरक्षा व्यवस्था में हुए बड़े परिवर्तन के कारण डिफेंस अताशे पद पर तैनात हुए सैन्य अधिकारी की जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं। रक्षा कूटनीति अब निश्चित रूप से प्रमुख देशों के साथ भारत की राजनयिक भागीदारी का एक अहम हिस्सा हैं।

मोदी नेतृत्व में रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी

कुछ महीने पूर्व रक्षा मंत्रालय द्वारा इस बात की घोषणा की गई गई थी की भारतीय सेना की 10 शाखाओं में महिलाओं को स्थाई कमिशन मिलेगा। इनमें सिग्नल, इंजीनियर, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डनेंस कोर और इंटेलिजेंस भी शामिल होंगे।

अवनी के रूप में देश को पहली लड़ाकू विमान पायट मिली

इसके अलावा भारतीय वायुसेना की सभी शाखाएँ अब महिलाओं के लिए खुली हुई हैं, इस सूची में लड़ाकू विमान के पायलट का पद भी शामिल है। इस दिशा में याद दिला दें कि गत वर्ष फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी लड़ाकू विमान को उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थी जिन्होंने मिग-21 उड़ाकर इतिहास रचा था। यहाँ अवनी के साथ मोहना सिंह और भावना कंठ को भी पहली बार लड़ाकू विमान उड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

इन तीनों महिलाओं की नियुक्ति पूरे देश के लिए गर्व की बात थी, साथ ही मोदी सरकार की उपलब्धि भी। इसके अलावा मोदी सरकार द्वारा महिला सामर्थ्य पर दिखाया गया अटल विश्वास उस समय दिखा जब देश के 66 वें गणतंत्र दिवस के मौक़े पर तीनों सेनाओं के एक विशेष महिला दस्ते ने मार्च करते हुए अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गौरव बढ़ाया।

शुभांगी बनी पहली नेवी पायलट

नौसेना क्षेत्र में शुभांगी के रूप में जब पहली महिला पायलट मिली तो यह देश के लिए गर्व की बात थी। शुभांगी के साथ-साथ आस्था सहगल, रूपा ए. और शक्तिमाया को भी नेवी के आर्मामेंट इंस्पेक्शन ब्रांच में पहली बार नियुक्त किया गया है। पिछले साल नेवी चीफ एडमिरल सुनील लान्बा ने कहा था कि आज नहीं तो कल महिला नौसेना अधिकारियों को युद्धपोत पर तैनाती का अवसर दिया जाएगा।

महिलाओं को सैन्य सेवा में ‘कॉम्बैट रोल’

साल 2017 में थल सेना के प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि जल्द ही महिलाओं को कॉम्बैट रोल (लड़ाकू भूमिका) देने की तैयारी है। अभी तक दुनिया में कुछ चुनिंदा देश ही ऐसा कर पाए हैं। रावत ने कहा था कि महिलाओं को कॉम्बैट रोल, जिसमें अभी तक केवल पुरुष ही होते हैं, देने की प्रकिया तेजी से बढ़ रही है। शुरुआत में महिलाओं को मिलिट्री पुलिस में शामिल किया जाएगा। लेकिन बाद में जनरल बिपिन रावत द्वारा इस फैसले पर स्वयं ही सवालिया निशान लगा दिए गए। जिनको कई लोगों द्वारा वाजिब भी बताया गया।

2018 में इस विषय पर जनरल बिपिन रावत के बयान ने उस समय तूल पकड़ा जब उन्होंने महिलाओं को कॉम्बैट रोल पर संशय जताया। न्यूज़ 18 को दिए इंटरव्यू में कहा भारत अभी महिलाओं को कॉम्बैट रोल में देखने के लिए तैयार नहीं है। रावत ने कहा था कि महिलाओं की ज़िम्मेदारी माँ के रूप में है और उनको छह महीने का मातृत्व अवकाश देना भी मुश्किल है। साथ ही जनरल बिपिन रावत ने महिलाओं की सुरक्षा और सहजता को आधार बताकर भी उन्हें कॉम्बैट रोल देने के लिए असमर्थ बताया। उन्होंने साक्षात्कार में कहा कि ऐसा नहीं है देश में बच्चों की माँ नहीं मरती हैं, लेकिन आतंकी ऑपरेशन में आतंकवादियों को मारने के दौरान जैसे हमारे जवानों का शरीर वीरगति प्राप्त करके घर लौटता है, उस तरह से महिलाओं को देखने के लिए अभी हमारा समाज तैयार नहीं हैं।

इसके अलावा बिपिन ने अपने साक्षात्कार में अपने 2017 के बयान को बदलने के पीछे एक वजह यह भी बताई कि हमारी सेना में अधिकतर जवान गाँव से आते हैं। जो अभी इन चीजों को एकदम से स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके अनुसार बहुत से सैनिकों के बहुत से कार्य (कपड़े बदलना, जिम जाना आदि) ऐसे होते हैं जिन्हें सुरक्षा पर तैनात जवान एक साथ कर लेते हैं, लेकिन महिलाएँ उसमें सहज नहीं होंगी।

हालाँकि इस विचार के बाद इसपर काफ़ी विमर्श चल रहा है और महिलाओं को माँ के रूप में दर्शाकर कई अटकलें भी लग रही हैं। लेकिन यकीनन जिस तरह से सरकार द्वारा महिलाओं को रक्षा के क्षेत्र में तैनात करने की प्रक्रिया तेज हैं। उस दिशा में जल्द ही कॉम्बैट रोल को लेकर भी संकोच वाली स्थिति जल्दी समाप्त होगी। बता दें जिन सवालों से आज भारत गुज़र रहा है, उन्हीं दुविधाओं से साल 2013 में अमेरिका को भी जूझना पड़ा था जब वह अपनी सेना में महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने पर विचार कर रही थी, लेकिन बाद में इसपर स्टडी हुई और आखिरकार अमेरिका में महिलाएँ कॉम्बैट रोल में शामिल हुईं। अमेरिका के अलावा डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, जर्मनी, फ्रांस, इज़रायल ने भी इस मामले से जुड़ी मुश्किलों को समाप्त किया। यकीनन भारत में भी इसपर काम होगा।

आज भारत में अनेकों लिहाज से महिलाओं की भूमिका को संवारा जा रहा है। फिर चाहे वो महिलाओं के निजी जीवन से संबंधित हो स्थिति हो या फिर देश में रक्षा के लिए तैनात होने को लेकर। हर रूप में और हर क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रक्रिया चालू है। निर्माला सीतारमन के रूप में देश को एक सशक्त रक्षा मंत्री का मिलना, राजपथ पर महिलाओं के दस्ते द्वारा भारत का गौरव बढ़ाना, अवनी द्वारा लड़ाकू विमान उड़ाना और शुभांगी का नेवी पायलट बनकर पहचान बनाना, इसके साथ ही अब डिफेंस अताशे के रूप में महिला अधिकारियों की नियुक्ति होना नए भारत की नई तस्वीर है।

कुश द्वारा बसाए, मुगलों ने बदली जिसकी पहचान… UP के उस जिले को अब मिलेगा नया नाम!

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सुल्तानपुर जिले का नाम बदलने के लिए खत लिखा है। इस खत में उन्होंने ‘राजपूताना शौर्य फाउंडेशन’ की माँग का जिक्र करते हुए सीएम योगी से सुल्तानपुर जिले का नाम बदलकर कुशभवनपुर करने की सिफारिश की है।

राम नाईक ने पत्र में लिखा, “राजपूताना शौर्य फाउंडेशन के प्रतिनिधि मंडल द्वारा मुझसे मुलाकात कर एक किताब ‘सुल्तानपुर इतिहास की झलक’ के साथ एक ज्ञापन सौंपा गया। इसमें उन्होंने सुल्तानपुर को हेरिटेज सिटी में शामिल किए जाने और उसका नाम बदलकर कुशभवनपुर किए जाने का अनुरोध किया है।” राम नाईक ने सीएम योगी से कहा है कि इस किताब के आधार पर उचित कदम उठाया जाए। उन्होंने खत के साथ वो पुस्तक भी सीएम योगी को भेजी है।

गवर्नर राम नाईक द्वारा सीएम योगी को लिखी गई चिट्ठी

सुल्तानपुर जिले का नाम बदलने की माँग नई नहीं है। ये माँग काफी दिनों से उठ रही है। हाल ही में सुल्तानपुर नगरपालिका में एक प्रस्ताव भी पास किया गया। इससे पहले सुल्तानपुर के लंभुआ से भाजपा विधायक देवमणि ने विधानसभा में जिले का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा था। देवमणि का कहना था कि अयोध्या से सटे सुल्तानपुर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बसाया था। इसलिए पौराणिक कथाओं में इसे कुशभवनपुर नाम से संबोधित किया गया था। उन्होंने कहा था, “देवी सीता यहीं ठहरी थीं। उनकी याद में आज भी सीताकुंड घाट है। सुल्तानपुर के गजेटियर में भी इस बात का उल्लेख है कि इसका नाम कुशभवनपुर ही था। बाद में मुगल शासकों ने इसका नाम बदल दिया था। ऐसे में इसका पुराना नाम होने से जहाँ गर्व की अनुभूति होगी, वहीं शहर का सांस्कृतिक महत्त्व भी बढ़ेगा।”

गौरतलब है कि इससे पहले योगी सरकार द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज, फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या और मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन किया गया है।