Sunday, September 29, 2024
Home Blog Page 5340

J&K: पुलवामा में लश्कर के 4 आतंकी ढेर, सर्च ऑपरेशन अब भी जारी

जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। आज तड़के पुलवामा जिले के लस्सीपोरा में आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच जारी मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने 4 आतंकियों को मार गिराया। सुरक्षाबलों को खुफिया सूत्रों से जानकारी मिली थी कि एक घर में कुछ आतंकी छिपे हैं। इसके बाद सेना, सीआरपीएफ और पुलिस ने संयुक्त रूप से तलाशी अभियान चलाया और इलाके को घेर लिया। जब आतंकवादी सुरक्षा बलों से घिर गए तो उन्होंने सुरक्षाबलों पर फायरिंग करना शुरू कर दिया, जिसका सुरक्षाबलों ने मुँहतोड़ जवाब दिया और इस दौरान हुए मुठभेड़ में चार आतंकवादी ढेर हो गए।

जानकारी के मुताबिक, सभी आतंकवादी लश्‍कर-ए-तैयबा के थे। सुरक्षाबलों ने आतंकियों के पास से 2 एके राइफल, एक एसएलआर और एक पिस्टल बरामद की है। सर्च ऑपरेशन अब भी जारी है। जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारी ने बताया कि, मुठभेड़ के दौरान सेना के तीन जवान और एक पुलिसकर्मी घायल हो गए हैं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। यह एक साफ ऑपरेशन था। मुठभेड़ के दौरान किसी तरह की नागरिक संपत्ति की क्षति नहीं हुई। मुठभेड़ स्थल से हथियार और गोला-बारूद बरामद किया गया है और मामला दर्ज कर लिया गया है।

गौरतलब है कि, इससे पहले सुरक्षा बलों ने 29 मार्च को दो आतंकवादी मार गिराए थे। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने बताया था कि श्रीनगर शहर के बाहरी क्षेत्र नौगाम में एक मुठभेड़ में आतंकवादी मारे गए। वहीं, 28 मार्च को जम्मू कश्मीर के शोपियां और कुपवाड़ा जिलों में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में चार आतंकवादी मार गिराए थे। आतंकियों के खिलाफ ‘ऑपरेशन ऑलआउट’ काफी लंबे समय से चल रहा है। इस ऑपरेशन के तहत इस साल अभी तक 250 से ज्यादा आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारा गया है, जबकि पिछले साल 217 आतंकवादी ही मारे गए थे। पुलवामा आतंकी हमले के बाद सुरक्षाबलों ने कार्रवाई तेज कर दी है। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी घाटी में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं।

EMISAT: शत्रु के रडार को पकड़ने में सक्षम भारत का इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट

इसरो ने आज सुबह 9:30 बजे PSLV C-45 रॉकेट से अन्य देशों के 28 सैटेलाइट सहित EMISAT को भी लॉन्च किया। यह भारत का इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट है।

इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) सैटेलाइट क्या होता है?

गुप्तचरी या ख़ुफ़िया तरीकों से सूचना जुटाना मानव इतिहास के सबसे पुराने पेशे में से एक माना जाता है। आधुनिक शब्दावली में इसे ‘Intelligence gathering’ कहा जाता है। जब व्यक्तियों के बीच जाकर सीधा सम्पर्क कर सूचना एकत्रित की जाती है तब उसे ह्यूमन इंटेलिजेंस या HUMINT कहते हैं। लेकिन जब मनुष्यों से सीधा सम्पर्क न कर के उनके द्वारा प्रयोग में लाए जा रहे डिवाइस के सिग्नल को पकड़ कर सूचना जुटाई जाती है तब उसे SIGINT कहा जाता है।

SIGINT दो प्रकार का होता है- एक जिसमें संचार या कम्युनिकेशन हो रहा हो, और दूसरा जिसमें कम्युनिकेशन न हो रहा हो। जब दो व्यक्ति बात कर रहे हों और उनकी बातचीत को सुना जाए तो उसे COMINT कहते हैं। लेकिन जब सिग्नल ऐसा हो जिसमें प्रत्यक्ष रूप से कोई कम्युनिकेशन न हो रहा हो जैसे कि रडार के सिग्नल, तब उसे इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस या ELINT कहते हैं। EMISAT भी शत्रु के रडार के सिग्नल को पकड़ने में सक्षम सैटेलाइट है। डीआरडीओ की 2013-14 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार ‘प्रोजेक्ट कौटिल्य’ के अंतर्गत इस सैटेलाइट का निर्माण किया गया। ‘कौटिल्य’ के अर्थशास्त्र में भी गुप्तचरी की भूमिका को सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है।

एमीसैट के अलावा PSLV C-45 लॉन्च वेहिकल द्वारा अमेरिका के 24, स्पेन का एक, लिथुआनिआ के दो और एक स्विट्ज़रलैंड का सैटेलाइट भी कक्षा में स्थापित किया गया। यह इसरो का 47वां मिशन था जिसे समय पर और सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया। इसरो ने इस मिशन को देखने के लिए आम जनता के लिए भी अपने द्वार खोल दिए। लॉन्च के पहले रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया अपनाई गई जिसके कारण सामान्य नागरिकों ने भी यह लॉन्च प्रत्यक्ष देखा।

मुश्किल चुनावों के दौरान सोनिया और इंदिरा भी भागी थीं दक्षिण भारत, जीत कर छोड़ दी थीं सीटें

लोकसभा चुनाव आते ही बड़े से बड़े नेताओं को हार का डर सताने लगता है और जिन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में कुछ काम ही नहीं किया हो, उनका कहना ही क्या! कुछ ऐसी ही स्थिति राहुल गाँधी की हो चली है। अमेठी में स्मृति ईरानी द्वारा चौतरफा घिरे राहुल को जब कुछ नहीं सूझा, उन्होंने दक्षिण भारत का रुख कर अपनी पारिवारिक परंपरा को निभाया है। केरल के वायनाड से राहुल गाँधी की उम्मीदवारी का ऐलान कर कॉन्ग्रेस ने लोगों की इस आशंका को बल दे दिया है कि राहुल गाँधी के लिए अमेठी में इस बार राह आसान नहीं है। स्मृति ईरानी ने हारने के बावजूद समय-समय पर क्षेत्र का दौरा किया है और जनसम्पर्क किया है। राहुल ने हमेशा की तरह अमेठी को फिर से नज़रअंदाज़ किया, शायद इस कारण उन्हें दो जगहों से परचा भरना पड़ रहा है। लेकिन क्या आपको पता है गाँधी परिवार के दो और लोग दक्षिण भारत से चुनाव लड़ चुके हैं?

यूपी में हारी इंदिरा गाँधी पहुँचीं चिकमंगलूर

दरअसल, इंदिरा गाँधी 1977 में रायबरेली से चुनाव हार गई थीं। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को भारतीय लोक दल (BLD) के दिग्गज नेता राज नारायण ने हराया था। बीएलडी का जन्म स्वतंत्र पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी सहित 7 कॉन्ग्रेस विरोधी पार्टियों को मिलाकर हुआ था और चौधरी चरण सिंह इसके नेता थे। 1977 में यह जनसंघ के साथ मिलकर जनता पार्टी बना और बीएलडी के चुनाव चिह्न पर ही चुनाव में हिस्सा लिया गया। इंदिरा गाँधी की करारी हार से कॉन्ग्रेस को तगड़ा झटका लगा क्योंकि न सिर्फ़ रायबरेली बल्कि पूरे देश में पार्टी की हालत बदतर हो चली थी। तब पूर्ण बहुमत के साथ जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई थी।

रायबरेली में 55,000 से भी अधिक वोटों से हारी इंदिरा ने वापस संसद पहुँचने के लिए चिकमंगलूर का रुख किया था। कर्नाटक के चिकमंगलूर की जीत इंदिरा गाँधी के करियर के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई और उन्होंने एक बार फिर से खोई सत्ता हासिल करने की कवायद शुरू की। चिकमंगलूर में एक महीने के गहन प्रचार-प्रसार के दौरान इंदिरा ने रेलगाड़ी, बैलगाड़ी से लेकर बिना एसी वाली एम्बेसडर से भी प्रचार किया। उस दौरान वह एक दिन में 18 घंटे प्रचार किया करती थीं। उस दौरान कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने नारा गढ़ा था- “एक शेरनी, सौ लंगूर – चिकमंगलूर, चिकमंगलूर”।

जनता पार्टी ने दिवंगत जदयू नेता जॉर्ज फर्नांडिस से प्रचार करवाया था। उन्होंने इंदिरा गाँधी को कोबरा बताया था। इंडियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार के अनुसार, रामनाथ गोयनका उस समय कॉन्ग्रेस के विरोधी थे और उन्होंने सभी पत्रकारों को इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ हर एंगल से लिखने के निर्देश जारी किए थे। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी यह चुनाव चर्चा का विषय बना था। चिकमंगलूर से इंदिरा के 70,000 वोटों से जीतने के बावजूद बाद में यह कॉन्ग्रेस का गढ़ नहीं रहा। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने यहाँ कई बार जीत का परचम लहराया। लेकिन, इतिहास में ये दर्ज हो गया कि जब इंदिरा गाँधी रायबरेली हार गईं, तब दक्षिण भारतीय राज्य के एक संसदीय क्षेत्र ने उन्हें वापस संसद पहुँचाया।

जब बेल्लारी में हुआ सोनिया बनाम सुषमा मुक़ाबला

इसी तरह जब सोनिया गाँधी ने पहली बार चुनाव लड़ा, तो उन्होंने अमेठी के साथ-साथ कर्नाटक के बेल्लारी से पर्चा भरा। उस समय सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के होने के कारण उन्हें लेकर देश में विवादों का दौर चल रहा था। भाजपा की फायरब्रांड नेता रहीं सुषमा स्वराज ने तो यहाँ तक कह दिया था कि अगर सोनिया देश की प्रधानमंत्री बनती हैं तो वो अपना बाल मुँड़वा लेंगी। 1999 में कॉन्ग्रेस ने सोनिया गाँधी को 2 सीटों पर लड़ाने की सोची क्योंकि शायद उन्हें जनता के मूड का अंदाज़ा नहीं था और वे इस बात से निश्चिंत नहीं थे कि क्या भारत की जनता इतालवी मूल की महिला को नेता के रूप में स्वीकार करेगी? बेल्लारी में सोनिया को टक्कर देने ख़ुद सुषमा स्वराज पहुँचीं।

वहाँ 56,000 वोटों से हार-जीत का निर्णय हुआ और चूँकि सोनिया गाँधी ने अमेठी से भी जीत दर्ज की थी, उन्होंने बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र को छोड़ दिया। बेल्लारी भी 2004 से 2018 तक भाजपा का गढ़ रहा। 2018 में हुए उपचुनाव में कॉन्ग्रेस ने पिछले 15 वर्षों में पहली बार इस सीट को फतह किया। उस समय भी कॉन्ग्रेस ने सेफ सीट के चक्कर में ही बेल्लारी को चुना था। सुषमा को वहाँ भेजे जाने के साथ ही सोनिया की एकतरफा जीत का सपना धरा का धरा रह गया था। इंडिया टुडे ने इसे ‘बहनजी बनाम बहूजी’ का नाम दिया था। एक तरफ बिंदी और भारतीय रीति-रिवाजों को मानने वाली सुषमा स्वराज थीं तो दूसरी तरफ विदेशी मूल की सोनिया गाँधी।

बेल्लारी को कॉन्ग्रेस के सबसे बड़े गढ़ों में से एक माना जाता था। इंदिरा गाँधी का जादू यहाँ सर चढ़ कर बोला करता था। फिर भी, सोनिया को यहाँ जीतने के लिए नाकों चने चबाने पड़े। कॉन्ग्रेस ने भाजपा को मूर्ख बनाने और सोनिया को आसान जीत दिलाने के लिए उनके दक्षिण भारत के किसी तीन में से एक सीट से लड़ने का अफवाह उड़ाया। सोनिया गाँधी को हैदराबाद ले जाया गया ताकि भाजपा को छला जा सके लेकिन उस समय हैदराबाद में बैठे वेंकैया नायडू को इसकी भनक लग गई कि सोनिया को बेल्लारी से लड़ाया जा रहा है। वहाँ एसपीजी की तैयारियों से भी भाजपा को बहुत कुछ पता चल गया।

सोनिया द्वारा कुडप्पा से लड़ने की स्थिति में भाजपा ने लोकप्रिय तेलुगु अभिनेत्री विजयशंति से चुनाव लड़ने की पेशकश की थी। आख़िरकार वाजपेयी की सहमति के बाद बेल्लारी से सुषमा स्वराज को लड़ने को कहा गया और उन्होंने अपनी सहमति भी दे दी। इस तरह डरी हुई कॉन्ग्रेस की तरफ से लड़ रही सोनिया गाँधी को भी दक्षिण भारत के एक संसदीय क्षेत्र ने जिताया और तमाम आशंकाओं के बावजूद उन्हें वहाँ से जीत मिली।

अब बारी हार के डर से जूझ रहे राहुल की

अब राहुल गाँधी ने अपनी मुश्किल राजनीतिक परिस्थितियों में केरल के वायनाड को चुना है। उनके इस निर्णय से केरल में राज कर रही वामपंथी सरकार भी नाराज़ हो गई है। मुख्यमंत्री विजयन और वामपंथी नेता प्रकाश करात ने राहुल के इस क़दम को पार्टी के ख़िलाफ़ लड़ाई माना है। आपको बता दें कि मुस्लिम मतों का यहाँ पर ख़ासा प्रभाव है और कॉन्ग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिमों का वोट राहुल गाँधी को जिताने के लिए काफ़ी होगा। केरल में राहुल गाँधी के कई भरोसेमंद बड़े नेता भी हैं जो अपनी कुशल मशीनरी के साथ उनकी इस सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए मेहनत करेंगे ताकि राहुल देश के अन्य इलाक़ों में प्रचार कर सकें। इस पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि राहुल को ‘हार का डर’ है।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, राहुल की उम्मीदवारी पर निर्णय से पहले कॉन्ग्रेस ने मुस्लिम लीग के नेताओं से भी बातचीत की ताकि मुस्लिमो मतों को अपनी तरफ किया जा सके। वाम नेता सीताराम येचुरी ने भी राहुल की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वो ऐसी भी सीट से लड़ सकते थे, जहाँ भाजपा से उनकी सीधी टक्कर हो। कॉन्ग्रेस इस क्षेत्र में बढ़ी माओवादी घटनाओं को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों पर निशाना साधेगी ताकि यहाँ वोट बटोरे जा सकें। कुल मिलकर यह कि कॉन्ग्रेस जब-जब मुश्किल में होती है, अपने सुप्रीम नेता के लिए दक्षिण भारत में एक सेफ पैसेज खोजती है।

‘सम्राट अशोक ने रोबोटों से लड़ा था युद्ध, वैज्ञानिक सोच के मामले में हिन्दू ग्रंथ था विश्व-गुरु’

एड्रियेन मयोर प्राचीन विज्ञान की इतिहासकार हैं, दंतकथाओं में रुचि रखती हैं, और अमेरिका के प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्विद्यालय में शोध छात्रा हैं। सन्डे टाइम्स अख़बार से बात करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे हिन्दू मिथकों में सम्राट अशोक के रोबोटों से युद्ध करने का वर्णन है। अपनी ताज़ा कृति Gods and Robots: Myths, Machines, and Ancient Dreams of Technology में मयोर प्राचीन सभ्यताओं द्वारा भविष्य की तकनीक को कल्पित करने का विश्लेषण करती हैं।

प्रश्न: हिन्दूवादियों का ऐसा मानना है कि प्राचीन भारतीयों ने अंतरिक्षयान से लेकर मिसाइल व इन्टरनेट तक सब कुछ बना रखा था। अपने शोध में आप इसे कैसे देखती हैं?

मयोर: मेरे शोध का मूल विषय प्राचीन मानव में वैज्ञानिक प्रेरणा के उद्गम और प्रथम आभास का है। इस विषय में शोध करते-करते मैं मिथकों के बीच जा पहुंची, जहाँ मैंने पाया कि प्राचीन व्यक्तियों ने कृत्रिम जीवन, यंत्रमानव (रोबोट), मशीनें आदि बनाने के बारे में तब से सोचना शुरू कर दिया था जब वे तकनीकी रूप से इसे निष्पादित करने से कोसों दूर थे। रोबोटों और उन्नत मशीनों की मौखिक कहानियों को लिखित रूप में पहली बार 2700 साल पहले होमर (यूनान) के समय लाया गया था। ऐसी ही कहानियाँ रामायण, महाभारत, आदि में भी मिलतीं हैं- विश्वकर्मा और माया भी ऐसी ही चीजें बनाया करते थे। यूनानियों में यही चीज़ देवता हिफेस्टस और शिल्पकार डेडॉलस करते हैं।

इन कहानियों को मैं विश्व का प्रथम साइंस फिक्शन मानती हूँ। उन्नत तकनीक के प्राचीन सपने किसी एक सभ्यता की बपौती नहीं हैं। आप यूनानी, मिस्री, हिन्दू, इस्लामिक, इट्रस्केन, चीनी या किसी भी अन्य सांस्कृतिक मिथक को देखें जो कृत्रिम जीवन के बारे में है। उनमें यह कल्पना होती है कि यदि किसी व्यक्ति को दैवीय रचनात्मकता और शक्तियाँ मिल जाएँ तो क्या-क्या संभव है। पर उन मिथकों को समकालीन आधुनिक विज्ञान के विकास से सीधे नहीं जोड़ा जा सकता।

प्रश्न: आप कहती हैं कि भारतीय और यूनानी संस्कृतियाँ एक-दूसरे से तकनीकों की कल्पनाएँ उधार लेती हैं। कैसे?

मयोर: भारतीय और यूनानी मतों का एक-दूसरे पर प्रभाव डालना लगभग ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व प्रारंभ हुआ, और सिकंदर तथा पुरु के बीच की संधि के बाद यह और भी बढ़ गया। जैन ग्रंथों में लिखा है कि अजातशत्रु के अभियंताओं ने ऐसे रथों का अविष्कार किया, जिनमें घूमते चक्र थे। ऐसा माना जा सकता है कि उत्तरकाल के फारसी रथों में लगी हुई दरांतियाँ इसी से प्रेरित थीं। इसके अलावा मखदूनिया (Macedon) के राजा फिलिप-II के बहुत पहले से अजातशत्रु के पास गुलेल जैसे अस्त्र हुआ करते थे, जिनसे भारी चट्टानों को दुश्मन की सेनाओं पर फेंका जा सकता था।

भारतीय हमेशा से तेल के दिए जलाते आए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि यूनानियों और रोमनों से बहुत पहले उन्हें मिट्टी के तेल की भी जानकारी रही होगी। यूनान के टियाना के घुमक्कड़ संत अपोलोडोरस ने स्वचालित नौकर और खुद से चलने वाले रथ भारतीय राजाओं के पास देखे। प्राचीन भारत प्राचीन यूरोप से हायड्रॉलिक्स और डिस्टिलेशन (hydraulics and distillation) की तकनीक में सदियों आगे था। तकनीक का आदान-प्रदान किस हद तक हुआ होगा, यह ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता।

प्रश्न: और किन संस्कृतियों में उनके खुद के दिव्यास्त्र, रोबोट, और उड़ते रथ थे?

मयोर: उड़ते रथों और कृत्रिम हंसों, कृत्रिम नौकरों, विशाल रोबोटों, मशीनों जैसे मिथक महाभारत, रामायण, कथासरित्सागर, हरिवंश, और कई अन्य किताबों में मिलते हैं। मिस्री अभिलेखों और होमर की ओडिसी में ऐसे जहाजों का ज़िक्र है, जो अपना रास्ता खुद तलाश लेते थे। होमर के इलियड और चीनी ग्रंथों में मानव-मशीन मिश्रणों (android) और स्वचालित रोबोटों (automatons) का जिक्र है। और भी मिसालें दी जा सकतीं हैं।

प्रश्न: बुद्ध के अवशेषों के रक्षक एंड्राइड लड़ाकों की क्या कहानी है?

मयोर: इसकी सबसे विस्तृत कहानी लोकपनत्ती नामक बर्मी ग्रन्थ में है। कथा है कि गौतम बुद्ध की मृत्यु के पश्चात राजा अजातशत्रु ने उनके शव को एक स्तूप के नीचे गुप्त कमरे में छिपा दिया। उसकी रक्षा भूत वाहन यंत्र (spirit movement machines) कर रहे थे। यह रोबोट लड़ाके थे, जिनके पास तलवारें भी थीं- यह राजा अजातशत्रु के पास मौजूद तलवारों से लैस युद्ध वाहनों और मशीनों की याद दिलाते थे। यूनानी मिथकों में भी इंसानी और पशु रूप में automaton लड़ाकों का जिक्र है, जो महलों और खजानों के रक्षक थे, पर इस कहानी के ऐतिहासिक और तकनीकी विवरण इसे उनसे अलग करते हैं। कहानी के अनुसार इन रोबोटों को बनाने से संबंधित जो स्केच था, उसे गुप्त रूप से रोमा-विषया से पाटलिपुत्र मंगवाया गया था। रोमा-विषया यूनान से प्रभावित एक पाश्चात्य जगत था, और मंगवाने वाला यंत्रकर्ता एक रोबोट बनाने वाला कारीगर था, जो पाटलिपुत्र में जन्मा था।

यह automaton सैनिक बुद्ध के अवशेषों के तब तक रक्षक रहे, जब तक कि सम्राट अशोक को इस गुप्त कमरे के बारे में पता नहीं चल गया। अशोक ने इन सैनिकों से युद्ध किया और इन्हें हराने के बाद इन पर काबू करना सीखा, जिसके बाद वे अशोक के आज्ञाकारी हो गए। ऐतिहासिक रूप से हम यह जानते हैं कि अशोक ने बुद्ध के अवशेषों को तलाशा और पूरे देश में उन्हें बाँटा था।

प्रश्न: क्या किसी ने इन प्राचीन ग्रंथों में कल्पित automatons को बनाया था?

मयोर: ईसा से तीसरी शताब्दी पहले तक यूनान, अलेक्सांद्रिया (मिस्र), अरब, भारत और चीन के शिल्पकारों और अभियंताओं ने स्वचालित वस्तुएँ बनानी प्रारंभ कर दीं थीं। साथ ही वे उड़ते पक्षियों के प्रतिरूप, सजीवित मशीनें, और मिथकों में वर्णित automatons से मिलते-जुलते automatons भी बना रहे थे। कुछ सूक्ष्म थे तो कुछ काफी बड़े थे, कुछ काफी आसानी से बनने वाले थे तो कुछ काफी जटिल थे। उनके शक्ति-स्रोतों में स्प्रिंग, लीवर, पुली से लेकर वायु, ऊष्मा, पानी तक थे।

जगन्नाथपुरी: BJD के गढ़ में हिंदुत्व और गरीबों की आवाज़ बन कर गरज रहे संबित पात्रा

अगर आपके घर में टीवी है, तो आपने संबित पात्रा का नाम ज़रूर सुना होगा। असल में, आपने उन्हें ज़रूर देखा होगा। तथ्यों को रखने की उनकी क्षमता, विपक्षियों के दावों की पोल खोलती उनकी प्रतिक्रियाएँ और हंगामेबाज न्यूज़ एंकरों के तीखे सवालों के सुलझे हुए जवाब देने की उनकी कला, ये सब उनको उनके प्रतिद्वंद्वी प्रवक्ताओं में सबसे अलग बनाती है। बहस के दौरान वो बीच में हंगामा नहीं करते, ऊँगली उठाकर अपनी पाली का इंतजार करते हैं। वो आँकड़ों पर पूरी तैयारी करके आते हैं, सिर्फ़ आरोप-प्रत्यारोप से अपना काम नहीं चलाते। संबित पात्रा ने भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में टीवी दर्शकों को केंद्र सरकार की नीतियाँ व योजनाओं की सफलता समझाने में अहम भूमिका निभाई है, जिसका पुरस्कार उन्हें जगन्नाथपुरी से लोकसभा टिकट के रूप में मिला। उन्होंने ज़ोर-शोर से अपना प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है।

संबित पात्रा की रैली: हाथों में भगवान जगन्नाथ, मस्तक पर त्रिपुण्ड

अगर आप संबित पात्रा के प्रचार अभियान और उनके सोशल मीडिया हैंडल पर ग़ौर करें तो आप पाएँगे कि उनका प्रचार अभियान हिंदुत्व और ग़रीबी पर केंद्रित है। उनके बारे में एक ख़ास बात यह है कि वो राहुल गाँधी की तरह अकस्मात हिन्दू नहीं बने हैं बल्कि पहले भी वो अक्सर मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए जाते रहे हैं, जलाभिषेक इत्यादि धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं और भारतीय पारम्परिक परिधानों में भी दिखते रहे हैं। कभी-कभी माथे पर त्रिपुण्ड और बदन पर धोती के साथ वो न्यूज़ बहस में भी पहुँच जाया करते हैं। अतः उन्हें लगातार देखने वालों को पता है कि जगन्नाथपुरी का उनका ताज़ा प्रचार अभियान उनकी इसी सोच, लक्षण और व्यवहार के आयाम का विस्तार है, ये उनके लिए कुछ नया नहीं है।

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य को दण्डवत प्रणाम करते संबित पात्रा

उन्होंने गोवर्धन पीठ जाकर पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती से मुलाक़ात की। शंकराचार्य के चरणों में दंडवत करते संबित पात्रा की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई और लोगों ने उनकी श्रद्धा और सादगी को सराहा। न सिर्फ़ शंकराचार्य, बल्कि पात्रा ने उनके साथ बैठे अन्य साधू-संतों को भी दण्डवत प्रणाम किया। यह कुछ नया नहीं है, यही हिन्दू संस्कृति है और पात्रा ऐसा पहले भी करते आए हैं। संबित शंकराचार्य को पुष्पहार पहनाने के लिए आगे बढ़े लेकिन शंकराचार्य ने वो हार संबित को ही पहना दिया। संबित पात्रा के राष्ट्रीय प्रवक्ता होने का फ़ायदा भी उन्हें मिल रहा है। नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार अभियानों तक, मीडिया की माइक उनके आगे तनी रहती है और उनके बयानों को अच्छी कवरेज मिल जाती है।

भगवान जगन्नाथ की आरती करते संबित पात्रा

नामांकन दाखिल करने से पहले संबित पात्रा ने जगन्नाथपुरी मंदिर में दर्शन किए। हाथों में ज्वलित अग्नि वाली आरती का थाल लिए पात्रा ने समर्थकों सहित भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद लिया। इसके बाद वे नामांकन दाखिल करने पहुँचे। नामांकन दाखिल करने से पहले हुई रैली में भी ओडिशा की संस्कृति की झलक दिखी और उसमें शामिल लोग उड़िया तौर-तरीकों से सुसज्जित थे। इस दौरान उन्होंने दक्षिण काली माता के भी दर्शन किए। सबसे बड़ी बात कि पात्रा ने न सिर्फ़ पुरी जाकर मंदिरों के दर्शन किए बल्कि पार्टी कार्यालय में भी भक्ति का माहौल पैदा कर दिया। अगर आप प्रचार अभियान में लगे संबित की वेशभूषा पर गौर करें तो पाएँगे कि उसमें उड़िया संस्कृति और हिंदुत्व, दोनों की ही महक है।

भाजपा चुनाव कार्यालय, पुरी में पूजा-अर्चना करते संबित

संबित ने पार्टी कार्यालय में पूजा अर्चना की। समर्थकों व कार्यकर्ताओं ने भी पूरी के भाजपा दफ़्तर में हुए इन धार्मिक क्रियाकलापों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्होंने चिल्का में जनसभा को सम्बोधित करने के साथ-साथ माँ अङ्कुलेश्वरी के भी दर्शन किए। नयागढ़ में उन्होंने पूर्व बीजद नेता दिवंगत कुमार हेमेंद्र चंद्र की प्रतिमा का लोकार्पण किया। नयागढ़ राजपरिवार से आने वाले हेमेंद्र को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही संबित ने बीजद के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश शुरू कर दी है। 2014 में हेमेंद्र पौने दो लाख से भी अधिक मतों के अंतर से जीत कर लोकसभा पहुँचे थे। संबित द्वारा उनकी प्रतिमा लोकार्पण के समय केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और बीजद से भाजपा में शामिल हुए बैजयंत जय पांडा भी थे।

दक्षिण काली के दर्शन के दौरान लोगों से मिलते संबित पात्रा

संबित पात्रा के पुरी पहुँचने के बाद भाजपा के दफ़्तर का उद्घाटन भी हुआ, जिसमें मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हिस्सा लिया। संबित ने ब्रह्मगिरि से कई बार विधायक रहे दिवंगत नेता लालतेन्दु विद्याधर मोहापात्रा की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण किया। 5 वर्षों तक ओडिशा प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे लालतेन्दु की जन्मस्थली पुरी संसदीय क्षेत्र में आने वाले गाँव गदरोडंगा में ही है। कॉन्ग्रेस व बीजद के दिवंगत स्थानीय नेताओं की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण व उनका लोकार्पण कर संबित ने अपना चुनावी एजेंडा सेट कर दिया है। चाहे वो किसी भी पार्टी के दिवंगत जनप्रतिनिधि हों, संबित ने उनका सम्मान कर व उन्हें याद कर यह सन्देश देने की कोशिश की है कि उनके लिए भी उनके मन में आदरभाव है। इसी तरह उन्होंने पीपली विधानसभा में हनुमानजी के दर्शन भी किए।

इसी तरह उन्होंने पाइक विद्रोह के नेतृत्वकर्ता बख्शी जगबंधु की प्रतिमा के भी दर्शन किए और वहाँ माल्यार्पण किया। बख्शी जगबंधु ओडिसा के अग्रणी व सबसे पुराने स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक हैं। इसी तरह संबित ने ब्रह्मगिरि में अलरनाथ मंदिर के भी दर्शन किए। शुरुआती प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने अपने हाथ में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा रखी थी, जिस पर चुनाव आयोग में उनके ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज कराई गई है। इन सबके बावजूद संबित पात्रा के प्रचार अभियान को क़रीब से देखने पर पता चलता है कि उन्होंने अपनी भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व वाली छवि के साथ ही चुनाव में उतरने का निश्चय किया है।

संबित पात्रा की रैली में पारम्परिक उड़िया संस्कृति की झलक

इसके अलावा संबित सिर्फ़ मंच से हाथ हिलाने और गाड़ियों से रैली करने वाले नेताओं के उलट पदयात्रा और ग़रीबों के घर जाकर उनसे मिलने का कार्य भी कर रहे हैं। संबित ने जनसम्पर्क का नरेंद्र मोदी वाला तरीका ही अपनाया है। बच्चों को गोद में लेकर खिलाना, बुज़ुर्गों के पाँव छूना, युवाओं को गले लगाने से लेकर कार्यकर्ताओं व संगठन के लोगों को एकजुट करने तक, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाला तरीका ही अपनाया है। एक और वीडियो में वह एक बूढ़ी महिला को अपने हाथों से खाना खिलाते हुए दिख रहे हैं। वह महिला खाना बना कर उन्हें परोस रही है। एक अन्य फोटो में उन्हें एक बुज़ुर्ग के पाँव पर अपना सिर रख कर प्रणाम करते हुए देखा जा सकता है। हालाँकि, अगर चुनावी गणित की बात करें तो जगन्नाथपुरी भाजपा के लिए टेढ़ी खीर है। यहाँ पिछले 21 वर्षों से बीजद उम्मीदवार ही जीतते आ रहे हैं।

पुरी संसदीय क्षेत्र में आने वाले चिल्का विधानसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में भाजपा को मात्र 541 मतों से विजय प्राप्त हुई थी। भाजपा के लिए यहाँ उम्मीद की किरण तो है लेकिन उनका मुक़ाबला वरिष्ठ बीजद नेता पिनाकी मिश्रा से है। 1996 में तत्कालीन पुरी सांसद और केंद्रीय मंत्री ब्रज किशोर त्रिपाठी को हरा कर सांसद बने मिश्रा 2009 और 2014 में इसी क्षेत्र से संसद पहुँचे थे। पुरी के एक पुराने नेता होने के साथ-साथ पिनाकी बीजद के प्रवक्ता भी हैं। मजे की बात यह कि कॉन्ग्रेस उम्मीदवार सत्यप्रकाश भी अपनी पार्टी के प्रवक्ता हैं। प्रवक्ताओं की इस लड़ाई में हिंदूवादी संबित कहाँ ठहरते हैं, ये तो समय ही बताएगा। पुरी सीट का महत्व अचानक से इसीलिए भी बढ़ गया है क्योंकि यहाँ से ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लड़ने की चर्चाएँ चल निकली थी।

इलेक्शन है तो मंदिर भी जाना पड़ता है – 582 दिनों का सच अब आया सामने

जामा मस्जिद के शाही इमाम द्वारा किसी खास पार्टी के समर्थन की घोषणा करने से लेकर जनेऊ और शिव-भक्त बनते हुए भारतीय राजनीति ने लंबा सफर तय कर लिया है। इस सफर में मजार पर चढ़ते चादर से लेकर गंगा आरती तक के स्टेशन आए। अब जो स्टेशन आया है, वो है – मंदिर जाना और आशीष लेना। वैसे तो यह स्टेशन पहले भी आ चुका है, लेकिन इस बार वाले में ग्लैमर है, बॉलीवुड है, ‘मुसलमान’ भी है!

‘कौन’ हैं वो

उस ‘मासूम’ का नाम उर्मिला मातोंडकर है। इन्होंने हाल में कॉन्ग्रेस पार्टी जॉइन की है। 2019 का लोकसभा चुनाव यह उत्तर मुंबई सीट से लड़ेंगी। कभी यह बॉलिवुड की लीडिंग एक्ट्रेस हुआ करती थीं। फिर धीरे-धीरे पर्दे की दुनिया से गायब हुईं और 2016 में कश्मीरी बिजनेसमैन मोहसिन अख्तर मीर से शादी कर लीं।

‘थैंक राहुल जी’ कहतीं उर्मिला

लगाई मंदिर की ‘दौड़’

‘सेकुलर’ पार्टी कॉन्ग्रेस का टिकट पाकर उर्मिला भी मंदिर की दौड़ पर निकल पड़ीं। भगवान से आशीर्वाद लिया। फोटो खिंचवाया। सोशल मीडिया पर अपलोड किया। लेकिन यह क्या? लोग बिफर गए! क्यों भला? मुसलमान से शादी करने के बाद कहीं लिखा है क्या कि आप मंदिर नहीं जा सकतीं! सोशल मीडिया को लेकिन आप कंट्रोल करें भी तो कैसे करें?

कॉन्ग्रेसी दुपट्टा के साथ भगवन-भक्ति का यह सुयोग 30 मार्च को हुआ

लोगों ने चुनाव के लिए उर्मिला को अपना मुस्लिम नाम छिपाने को लेकर ट्रोल करना शुरू कर दिया। इसमें कितनी सच्चाई है, नहीं पता। वो हिंदू हैं या उन्होंने इस्लाम को अपना धर्म मान लिया है, ये सिर्फ वो ही बता सकती हैं। खास बात यह कि मुझे दिलचस्पी भी नहीं है – अपने समय में वो मेरी फेवरिट (क्रश कह लीजिए) रही हैं। तो जैसे ही मंदिर वाली फोटो इंस्टाग्राम पे देखा, बाकी के और फोटो को स्क्रॉल करके देखने से खुद को रोक न पाया। तभी दिखा मुझे ‘सत्य’।

‘Satya’ क्या है

सत्य यह है कि उर्मिला ने 30 मार्च 2019 को मंदिर वाली फोटो इंस्टाग्राम पर डाली। कुत्ते, पहाड़, नदी-नाले जैसे फोटो से भरे पड़े इनके इंस्टाग्राम पर मेरी नजर तब रूकी जब एक और मंदिर दिखा मुझे – बहुत देर के बाद। यह फोटो अपलोड किया गया था 25 अगस्त 2017 को। मतलब 582 दिनों पहले। मतलब 582 दिन तक आप भगवान से दूर रहीं! फूल-पत्ती, बेडरूम, चाँद-सूरज में आप खोई रहीं और अचानक से ‘सेकुलर’ कॉन्ग्रेस के टिकट ने आपको मंदिर की राह दिखा दी!

साल: 2017, माह: अगस्त, तारीख: 25

कुछ ज्यादा नहीं हो गया? खैर फैन हूँ, आप ‘भक्त’ भी कह सकती हैं – इसलिए ज्यादा लिखकर आपको परेशान नहीं करूँगा। लेकिन संख्या के हिसाब से देखें तो 582 दिन बहुत लंबी ‘जुदाई’ हो गई। आपके लिए मैं तो खैर कुछ और ही चाहता हूँ। वोटिंग और मतगणना के दिन देखना दिलचस्प होगा कि भगवान और वोटर आपके लिए क्या चाहते हैं।

PS: जिनको ऊपर लिखी बातों पर भरोसा नहीं, वे कृपया उर्मिला के अकाउंट पर जाकर खुद सारे फोटो देख सकते हैं।

वैधानिक चेतावनी: यह काम कोई फैन ही कर सकता है। कुत्ते-नदी-नाले से प्यार एक बात है और उनके फोटो देखते जाना और बात!

‘कमेंट्स’ के लिए AltNews के प्रतीक ने OpIndia CEO राहुल रोशन को बोला, मिला करारा जवाब

फ़र्ज़ी न्यूज फैलाने में पेशेवर और स्वघोषित फ़ैक्ट-चेकर AltNews के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ‘कमेंट’ के लिए ऑपइंडिया के CEO राहुल रोशन के पास जा पहुँचे। सिन्हा ने कहा कि वो ट्विटर हैंडल @padhalikha के बारे में एक लेख लिख रहे हैं, और इस पर वो राहुल रोशन की टिप्पणी जानना चाहते हैं।

प्रतीक सिन्हा द्वारा भेजा गया ई-मेल


ऑपइंडिया के CEO राहुल रोशन ने जो जवाब दिया, वो इस प्रकार है:

प्रश्न 1) अकाउंट के साथ आपका वर्तमान संबंध क्या है? क्या आप भी उस टीम का हिस्सा हैं, जो इसे चलाती है?

उत्तर: आपको उक्त ट्विटर अकाउंट को मेरे साथ जोड़ने के लिए विवेक अग्निहोत्री के साक्षात्कार का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है।

जब आप जैसे बेशर्म शिकारी (stalker) ने मेरे परिवार को निशाना बनाया था, तो उस बारे में लिखते हुए मैंने तो उसी समय इस अकाउंट (और कुछ अन्य इन्टरनेट आउटलेट्स, जैसे पैरोडी वेबसाइट juntakareporter) से जुड़े होने की पुष्टि कर दी थी।
(मुझे उम्मीद है कि आपको अपने [उपरोक्त] कर्मों की सज़ा एक दिन ज़रूर मिलेगी, यद्यपि मुझे नहीं लगता कि आप ऐसी ‘दकियानूसी’ अवधारणाओं पर विश्वास करते होंगे)

हाँ, मैंने इस अकाउंट को शुरू किया था, लेकिन इसे शुरू करने के कुछ हफ्तों के बाद मैं अपने जीवन में विभिन्न चीजों में व्यस्त हो गया, इसलिए मैंने दूसरों को इसका एक्सेस दे दिया और इसे लगभग भूल गया। Nework18 छोड़ने के बाद और फिर अब कुछ वर्षों से मैं OpIndia और निजी जीवन में व्यस्त हो गया और ऐसे पैरोडी अकाउंट चलाने के लिए समय ही नहीं बचा (एक समय, 2011 के आसपास, मैं पाँच पैरोडी अकाउंट चलाता था)।

फिलहाल पैरोडी के लिए स्थापित इस अकाउंट ने एक तरह से अपने वास्तविक स्वरूप को खो दिया है, यानि अपनी अधिकांश पोस्ट्स में अब यह स्वयंभू उदारवादियों की बातों का मखौल नहीं उड़ाता; अब यह राजनीतिक रूप से ‘ग़लत’ (politically incorrect) विचारों और संदेशों के प्रसार का एक जरिया बन गया है।


प्रश्न 2) क्या आप इस अकाउंट द्वारा पोस्ट की गई सामग्री का समर्थन करते हैं?

उत्तर: चूँकि यह उन लोगों के समूह द्वारा चलाया जाता है जिन्हें मैंने एक्सेस दिया था, अतः इसमें उनकी अपनी मान्यताओं और मुद्दों की समझ पर आधारित मिश्रित सामग्री है। मैं इस बात का हिसाब नहीं रखता कि कौन क्या पोस्ट करता है, लेकिन वे कौन हैं यह मैं जानता हूँ- और यह एक गुप्त जानकारी है, जो मेरे पास सुरक्षित है।

मैं व्यक्तिगत ट्वीट्स का समर्थन कर भी सकता हूँ या नहीं भी कर सकता हूँ।
(तथाकथित ‘राइट विंग’ आप की सोच से कहीं अधिक विविध है, जबकि आपका वामपंथी गिरोह फिलहाल सामूहिक सोच यानि group-think से ग्रसित है और लोग अक्सर एक दूसरे से सहमत नहीं होते हैं।)

मैं उन स्थानों पर विचारों को नियंत्रित नहीं करता जहाँ मेरा कोई वर्तमान योगदान न हो। इसके अलावा, मैं समय के साथ और अधिक politically incorrect हो गया हूँ। मुझे अपने स्वयं के व्यक्तिगत अकाउंट के अलावा किसी अन्य फ़ेक अकाउंट की कोई ज़रूरत नहीं है- वो भी वह जिसकी follower संख्या मेरे निजी अकाउंट से भी कम हो।

अगर कुछ कहना ही होता है तो मैं अपने व्यक्तिगत अकांउट का इस्तेमाल करता हूँ- उदाहरण के लिए, न्यूजीलैंड की गोलीबारी के बाद भी इस्लामोफोबिया को एक फर्जी शब्द और अवधारणा कहना।

या फिर वह ट्वीट जहाँ आपने प्रशांत भूषण पर मेरे कमेंट्स को तोड़ा-मरोड़ा था। मैं फिर से कहूँगा कि कर्म आपको सबक सिखाएगा।
(“धर्मनिरपेक्षता” के अपने तकाजे के लिए अगर कर्म नहीं, तो अल्लाह मान सकते हैं।)

कृपया मुझे फिर कभी न लिखें। आपकी टीम का कोई अन्य व्यक्ति यह कर सकता है, लेकिन आप नहीं। मैं आपके ई-मेल को स्पैम लिस्ट में डाल रहा हूँ। आपने मेरे परिवार, विशेष रूप से मेरी दो-महीने की बेटी के साथ जो किया, उन्हें निशाना बनाया, उसके बाद से मैं आपसे व्यक्तिगत रूप से नफ़रत करता हूँ। आपको फिर से मेरे निजी जीवन में घुसने की अनुमति नहीं है।

और हाँ, यदि आपके अंदर कोई नैतिकता का भाव है, तो आप मेरी इन प्रतिक्रियाओं को ठीक इसी रूप में प्रकाशित करेंगे।

संपादक की ओर से: हमें पता है कि भव्यता के भ्रम और लोगों का पीछा करने की बीमारी से पीड़ित एक विक्षिप्त व्यक्ति को खबर नहीं बनाना चाहिए। पर इस स्तर पर भ्रमित हो चुके (deslusional)लोगों में अक्सर शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की आदत होती है और इन्हें जो कहा जाता है वह इनको पूरी तरह से समझ में नहीं आता। इस प्रतिक्रिया को प्रकाशित इसीलिए किया गया है ताकि ऐसे तत्वों को ऑपइंडिया के CEO के बयान को ग़लत ढंग से प्रचारित और प्रसारित करने का कोई अवसर न मिल सके।

मेजर गोगोई के बहाने राष्ट्रवाद और दक्षिणपंथियों को गरियाने वाले… पढ़ लो असली ख़बर

2017 में ‘मानव-कवच’ (human-shield) विवाद का केंद्र-बिंदु रहे मेजर लीतुल गोगोई के विरुद्ध चल रही कोर्ट मार्शल की कार्रवाई पूरी हो गई है और उन्हें स्थानीय युवती के साथ ‘घुलने-मिलने’ के आरोप में वरिष्ठता घटने का दण्ड मिलने की सम्भावना है। इसी मामले में उनके ड्राईवर समीर मल्ला के खिलाफ कश्मीर में चल रहा कोर्ट मार्शल भी हाल ही में पूरा हुआ है। मल्ला को अनधिकृत रूप से ड्यूटी छोड़ कर जाने के आरोप में आधिकारिक रूप से कड़ी फटकार लगाए जाने की सम्भावना है। अनधिकृत रूप से ड्यूटी छोड़ कर जाने का आरोप मेजर गोगोई के विरुद्ध भी लगा है।

मेजर गोगोई को पिछले साल कश्मीर पुलिस ने हिरासत में तब ले लिया था जब वह एक 18 वर्षीया स्थानीय युवती के साथ एक होटल में जाने की कोशिश कर रहे थे और उनका होटल स्टाफ के साथ विवाद हो गया था। हालाँकि उस युवती ने बार-बार यह साफ किया है कि वह मेजर गोगोई के साथ अपनी इच्छा से थी पर मामला उसके उपरांत भी गंभीर ही था। मालूम हो कि सेना की अपने अधिकारियों को साफ हिदायत है कि अपनी तैनाती के दौरान वे स्थानीय लोगों के साथ घनिष्ठता नहीं कर सकते, और मेजर गोगोई का आचरण आदेशों के पूरी तरह विपरीत था।

ताली बजाने वालों के चेहरे पर अंडा

मेजर गोगोई के खिलाफ यह मामला जब प्रकाश में आया था तो टुकड़े-टुकड़े गिरोह के समर्थकों ने यह हवा बनानी शुरू कर दी थी कि मेजर गोगोई को कोई सजा नहीं मिलेगी क्योंकि उन्हें ‘राईट-विन्गर्स’ का समर्थन है। वामपंथी गुर्गों की मेजर गोगोई से असली अदावत तो यह थी कि एक तो वह सेना के थे, ऊपर से ‘समुदाय विशेष’ के भी ‘लल्ला विशेष’ कश्मीरी पत्थरबाजों को अपनी यूनिट की जान सुपुर्द करने की बजाय उन्हीं के एक ‘बिरादर’ को अपनी ढाल बनाने की ‘हिमाकत’ की, और उसके बाद ‘दुष्ट’ आत्मसम्मानी हिन्दुओं के हीरो बन गए।

इसीलिए अपने लोगों के लिए हर कानून छिन्न-भिन्न करने वालों के मन का चोर इसी दुश्चिंता में पड़ गया कि सामने वाले (दक्षिणपंथी) भी हो-न-हो ऐसा ही करेंगे।

और यह तब था जब उसी समय थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने यह साफ कह दिया था कि मेजर गोगोई यदि जाँच में किसी भी तरह दोषी निकले तो उनको ऐसी सजा मिलेगी जो नज़ीर बनेगी- और आज यही हो रहा है। वरिष्ठता घटाए जाने का मेजर गोगोई के करियर पर क्या प्रतिकूल प्रभाव होगा, यह ठीक-ठीक मापा नहीं जा सकता। पर चूँकि उन्होंने गलती की है, तो वह दण्ड के पात्र हैं।

अब जबकि मेजर गोगोई सजा पाने की दहलीज पर हैं तो हवाई भविष्यवाणी करने के बहाने पूरे दक्षिणपंथी समुदाय और सशस्त्र बलों को निशाना बनाने वालों से भी जवाब लिया जाना लाजमी है।

झारखंड में धर्मांतरण का मामला: 2 महिलाएँ पुलिस की हिरासत में

राँची स्थित लालपुर थाना क्षेत्र के नागरा टोली में सरना धर्म से ईसाई धर्म में परिवर्तन कराने का मामला सामने आया है। घटना बीते शनिवार (मार्च 30, 2019) की है। धर्मांतरण का यह धंधा वार्ड नंबर 19 की पार्षद रोशनी खलखो के घर के बगल में चल रहा था। धर्मांतरण के दौरान प्रार्थनाओं की आवाज़े सुनाई देने पर रोशनी मोहल्ले की अन्य महिलाओं के साथ उस घर में पहुँची जहाँ दो महिलाएँ प्रार्थना करवा रही थीं और बाक़ी दो महिलाएँ झूम रही थीं।

पार्षद और अन्य महिलाओं ने मिलकर धर्मांतरण कराने के आरोप में करीना कुजूर व सुकरो मुंडा को पकड़ा और इन्हें लालपुर पुलिस के हवाले कर दिया गया। दोनों आरोपित महिलाएँ कुजरू नगड़ी की रहने वाली हैं। इन दोनों के पास से धार्मिक पुस्तक भी बरामद की गई।

पार्षद ने बताया कि वह अपने घर के पास अन्य महिलाओं से बातें कर रही थी कि तभी प्रार्थनाओं की आवाज़े आने लगी, इस पर वो बगल में रहने वाले परिवार के घर पहुँची जहाँ उन्होंने धर्मांतरण का दृश्य देखा। धर्म परिवर्तन करवा रही किमी मुंडा और उसकी गोतनी सुमित्रा प्रार्थना में झूम रही थी। इसके अलावा रोशनी ने बताया कि धर्मांतरण की इस घटना के बारे में सबसे पहले केंद्रीय सरना समिति के कार्यकारी अध्यक्ष बबलू मुंडा को बताया गया, इसके बाद पुलिस पहुँची और दोनों महिलाओं को थाने ले गई।

इस मामले पर थाने में RSS के भैरव सिंह व अन्य धर्मों के प्रतिनिधि भी पहुँचे थे उन्होंने धर्मांतरण करवाने वाली महिलाओं के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने की माँग की।

धर्मांतरण के ज़रिए ईसाई बनने वाली किमी मुंडा ने बताया कि जिस सुकरो मुंडा को हिरासत में लिया गया है वो उसकी मौसी हैं, जो पहले सरना धर्म से थी, बाद में उसने ईसाई धर्म अपना लिया था। दूसरी महिला करीना कुजूर के बारे में सुकरो मुंडा को कोई जानकारी नहीं है। साथ ही उसने यह भी बताया कि धर्मांतरण जैसे किसी काम को अंजाम नहीं दिया जा रहा था, वो बस पूजा कर रही थी। इस मामले पर भाजपा के राज्यसभा सदस्य समीर उरांव ने राँची में कॉन्ग्रेस और जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) को ज़िम्मेदार ठहराते हुए इस मामले को लेकर गंभीरतापूर्वक कार्रवाई करने की माँग की।

जनसंघ (BJP) का एक पूर्व सांसद ऐसा भी जो 82 की उम्र में बीड़ी बनाकर करता है जीवन यापन

आमतौर पर देखा गया है कि सांसदों का जीवन काफी ऐशो-आराम और शानो-शौकत से भरा होता है और उनका यह लाइफस्टाइल सांसद पद से हटने के बाद भी कायम रहता है। मगर आज हम जिस पूर्व सांसद की बात करने जा रहे हैं, उनकी छवि इससे बिल्कुल विपरीत है। दरअसल हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड के पूर्व सांसद राम सिंह अहिरवार की, जिन्हें लोग ‘साइकिल वाले नेताजी’ कहकर भी बुलाते हैं।

राम सिंह, मध्य प्रदेश के सागर शहर की पुरव्याउ टोरी मुहल्ले में संकरी गली में स्थित एक सामान्य से मकान में अपनी पत्नी राजरानी के साथ रहते हैं। उनके पास दर्शन शास्त्र में स्नातक और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक की डिग्री भी है। वह वर्ष 1967 में भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर यहाँ से लोकसभा का चुनाव लड़े थे और उन्होंने जीत दर्ज कराई थी।

आपको जानकर हैरानी होगी कि 82 साल के पूर्व सांसद राम सिंह को अपना घर खर्च चलाने के लिए बीड़ी बनाने का काम करना पड़ता है और इस उम्र में भी वो इतने सक्रिय हैं कि साईकिल चलाकर लोगों से मिलते-जुलते रहते हैं। वो कहते हैं कि उन्हें कभी गाड़ी की जरूरत ही नहीं पड़ी।

कुछ समय पहले उन्हें लकवा मार गया था, जिससे उन्हें बोलने में थोड़ी दिक्कत है। मगर उम्र के इस पड़ाव में भी उन्होंने साइकिल चलाना नहीं छोड़ा है। राम सिंह बताते हैं पूर्व सांसद की पेंशन के लिए भी उन्हें कितने चक्कर काटने पड़े, तब जाकर साल 2005 में पेंशन शुरू हो पाई थी।

पूर्व सांसद के पड़ोसी गोविंद का कहना है कि राम सिंह दूसरे नेताओं से बिल्कुल अलग हैं। वो ऐसे नेता नहीं हैं कि एक बार सांसद बनने पर खूब सारे सुख सुविधाएँ हासिल कर लें। वो तो इतने सीधे सरल व्यवहार के हैं कि लगता ही नहीं है कि वो कभी सांसद भी रहे हैं।

सागर के मौजूदा सांसद लक्ष्मीनारायण यादव यूनिवर्सिटी में पूर्व सांसद राम सिंह के जूनियर रहे हैं। वे कहते हैं कि जब राम सिंह को जनसंघ ने उम्मीदवार बनाया था, तो सभी हैरान रह गए थे। वे चुनाव भी जीत गए, मगर उन्होंने पूरा जीवन सादगी से बिताया।