Sunday, September 29, 2024
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कम्युनिस्टों को नहीं पसंद हैं राहुल गाँधी, वायनाड सीट पर हरा कर ही लेंगे दम

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को अमेठी में अपनी हार का डर है और इसीलिए कॉन्ग्रेस द्वारा राहुल गाँधी को केरल के वायनाड से चुनाव लड़ाने का फ़ैसला लिया गया। यह फैसला कम्युनिस्टों को नागवार गुजरा है। ख़बर के अनुसार CPI (M) के पूर्व महासचिव प्रकाश करात कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की उम्मीदवारी से काफी नाराज़ हैं। करात ने दावा किया कि कॉन्ग्रेस पार्टी के फ़ैसले ने संकेत दिया कि भाजपा से लड़ने की (कथित) राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के विपरीत कॉन्ग्रेस पार्टी की प्राथमिकता अब वामपंथियों से लड़ने की हो गई है।

प्रकाश करात ने कहा, “लेफ्ट के ख़िलाफ़ राहुल गाँधी जैसे उम्मीदवार को चुनने का मतलब है कि कॉन्ग्रेस केरल में लेफ्ट को निशाना बनाने जा रही है। यह ऐसा फ़ैसला है जिसका हम पुरज़ोर विरोध करेंगे और इस चुनाव में हम वायनाड में राहुल गाँधी की हार सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे।”

कम्युनिस्ट केरल में कुछ सीटें जीतने के सपने दिख रहे हैं, लेकिन कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के केरल से चुनाव लड़ने के फैसले ने उस सपने को तोड़ दिया है और इससे वो काफी हद तक आहत भी हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी नाराज़गी जताते हुए कहा कि वामपंथी तो वैसे भी राहुल गाँधी से लड़ेंगे, लेकिन राहुल को भाजपा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ना चाहिए था।

पिनाराई विजयन ने कहा, “वह केरल के 20 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक में लड़ रहे हैं और उन्हें किसी भी भिन्न के रूप में देखने की आवश्यकता नहीं है। हम उनसे लड़ेंगे। उन्हें उस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहिए जहाँ भाजपा चुनाव लड़ रही हो, राहुल गाँधी का वायनाड से चुनाव लड़ना वामपंथियों के ख़िलाफ़ लड़ने से ज़्यादा और कुछ नहीं है।”

वायनाड में चुनावी मुक़ाबला बहुत दिलचस्प है क्योंकि कॉन्ग्रेस ने 2014 में लोकसभा में माकपा के उम्मीदवार के रूप में मुस्लिम उम्मीदवार एमएल शाहनवाज़ को मैदान में उतारा था। कॉन्ग्रेस उम्मीदवार ने 21,000 मतों के बहुत कम अंतर से जीत हासिल की थी। 2019 में, माकपा ने एक मुस्लिम उम्मीदवार पीपी सुनीर को राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ एक ऐसी सीट पर उतारा है, जहाँ आधी जनता मुस्लिम और ईसाई आबादी की है। ये आबादी राहुल गाँधी की चुनावी लड़ाई को और अधिक मुश्किल बना देगी।

लालू परिवार में संकट के पीछे का गणित: तेज प्रताप के बग़ावत से अधर में महागठबंधन

चुनाव के मौसम में यूँ तो पूरे भारत का राजनीतिक माहौल गर्म रहता है लेकिन बिहार की आबोहवा को क़रीब से देखने वाले लोग जानते हैं कि जैसी हलचल, सरगर्मी और उठापटक यहाँ होती है, वैसी कहीं भी नहीं। भले ही राजनीतिक रूप से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश हो लेकिन बिहार की राजनीतिक स्थितियों में कब और क्या बदलाव आ जाए, इसका पता लगाना मुश्किल है। अब लालू परिवार को ही लीजिए। एक समय बिहार की राजनीति के एकमात्र सिरमौर रहे लालू प्रसाद यादव आज अपने ही कुनबे को बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। यादव परिवार में फूट पड़ चुकी है। तेजस्वी-तेज प्रताप एक दूसरे के आमने-सामने खड़े नज़र आ रहे हैं। महागठबंधन की प्रतिष्ठा दाँव पर है। इसे समझने के लिए ताजा घटनाक्रम के कुछ पहलुओं को देखना पड़ेगा।

बात दरभंगा से शुरू करते हैं। दरभंगा में भाजपा के बागी नेता कीर्ति झा आजाद कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए थे। जिस तरह से सभी विपक्षी दल एकता दिखाने की जुगत में लगे हुए थे, उन्हें शायद इस बात का अंदाजा भी न हो कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनकी ही टिकट कट जाएगी। 2014 आम चुनाव में दरभंगा से 3 लाख मत पाकर सांसद बनने वाले कीर्ति झा का टिकट कट जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि राजद को इस बात की भनक है कि भाजपा से लड़ने वाले अधिकतर नेताओं को मोदी लहर का अच्छा साथ मिलता है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अब्दुलबारी सिद्दकी को दरभंगा से टिकट दिया गया है। 2014 में दूसरे नंबर पर रहे अली अशरफ फातमी और कीर्ति झा के बीच क़रीब 35 हज़ार मतों का ही अंतर था। ऐसे में, सिद्दकी को टिकट मिलने से वे बिफर गए।

अब दरभंगा से सीधा तेजस्वी-तेज प्रताप के मतभेदों की तरफ बढ़ते हैं। अब्दुलबारी सिद्दकी को तेजस्वी यादव का क़रीबी माना जाता है। पहली मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे अली अशरफ फातमी को लालू यादव का क़रीबी माना जाता था। यह दिखाता है कि टिकट बँटवारे में तेजस्वी की सलाह पर जेल से लालू यादव ही सारे निर्णय ले रहे हैं। इस बारे में हमने एक ख़बर भी प्रकाशित की थी। 2 वर्ष पहले अब्दुलबारी सिद्दीकी सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि तेजस्वी यादव में लालू यादव के सारे गुण-लक्षण दिखते हैं (भले ही ऐसा न हो)। हर पार्टी में बड़े नेताओं व सुप्रीम परिवार (राजद, सपा, डीएमके) के सदस्यों की कामना रहती है कि उनके क़रीबी लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट मिले ताकि बाद में किसी भी प्रकार के संकट या विवाद की स्थिति में उनकी कृपा से जीते जनप्रतिनिधि उनके खेमे की तरफ से आवाज़ उठाएँ। मुखिया की अनुपस्थिति में राजद अभी इसी दौर से गुज़र रहा है।

तेजस्वी यादव के उपर्युक्त ट्वीट को देखिए। इसमें उनका तेवर साफ़ झलक रहा है। जहानाबाद से अपने क़रीबी चंद्र प्रकाश यादव को टिकट दिलाने की जुगत में लगे तेज प्रताप को पार्टी से निराशा हाथ लगी और तेजस्वी ने सुरेंद्र यादव के नाम पर मुहर लगा दी। इस बात से बौखलाए तेज प्रताप ने समर्थकों से नामांकन दाखिल का आदेश देकर एक तरह से बगावत का ही ऐलान कर दिया। इसी तरह शिवहर से भी वह अंगेश यादव को टिकट देना चाहते थे लेकिन वहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। गुरुवार (मार्च 28, 2019) को तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का ऐलान किया था लेकिन ऐन वक़्त पर पार्टी के बड़े नेताओं को इसकी भनक लग गई और उन्होंने तेज प्रताप को किसी तरह मनाया।

दरअसल, लालू यादव के समय उसके आसपास रघुनाथ झा, रघुवंश प्रसाद यादव, अखिलेश सिंह और सीताराम सिंह जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता संकटमोचक के रूप में हुआ करते थे, जो पार्टी में किसी भी तरह की स्थिति को संभालने की ताक़त रखते थे। अखिलेश आज राज्य में कॉन्ग्रेस प्रचार समीति के अध्यक्ष हैं, रघुनाथ झा और सीताराम सिंह का निधन हो गया और रघुवंश आज के दौर में उतने सक्रिय नहीं हैं। एक और बात गौर करने वाली है कि मुस्लिम-यादव समीकरण की बात करने वाले लालू के ये सभी क़रीबी सवर्ण थे। आज पार्टी में दो गुट होने के साथ ही उन्हें ऐसे नेताओं की कमी भी खल रही है जो स्थिति को नियंत्रित कर सकें। आज तेज प्रताप का अगला क़दम क्या होगा, बताना मुश्किल है।

बिहार की राजनीति को देखें तो में लालू के आस-पास के नेताओं और खुद लालू यादव की रणनीतिक क्षमता तो थी ही। आज भ्रष्टाचार के मामलों में जेल की सज़ा भुगत रहे लालू अपना ही क़िला बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हालाँकि, इसकी भनक तभी लग गई थी जब तेज प्रताप यादव ने अपनी पत्नी से तलाक़ लेने की बात कही थी और पूरा लालू परिवार उन्हें मनाने में नाकाम साबित हुआ था। अपने घर से दूर निकल चुके तेज प्रताप को मनाने में उनकी माँ राबड़ी देवी भी नाकाम साबित हुई थीं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे पर भी तेज प्रताप निशाना साध चुके हैं। उनका आरोप था कि पूर्वे उनके लोगों की अनदेखी कर रहे हैं। तेज प्रताप ने यह भी कहा कि जहानाबाद को लेकर तेजस्वी से उनकी बात नहीं हुई है। यह दिखाता है कि लालू परिवार में कम्युनिकेशन गैप भी हद से ज्यादा बढ़ चुका है।

इन सबके अलावा तेज प्रताप यादव अपने ससुर चन्द्रिका यादव को सिवान से टिकट देने के पक्ष में नहीं थे लेकिन इस मामले में भी पार्टी में उनके राय की अनदेखी की गई। चन्द्रिका ने नामांकन दाखिल करने के बाद तेजस्वी में प्रधानमंत्री बनने की क्षमता होने की बात कह अपने दामाद तेज प्रताप को नाराज़ कर दिया। हालाँकि, उन्होंने दावा किया कि तेज प्रताप उनके लिए प्रचार करेंगे लेकिन फिलहाल इसके आसार बहुत कम ही नज़र आ रहे हैं। अब देखना यह है कि शिवहर, जहानाबाद, दरभंगा और सारण में उम्मीदवार चयन से नाराज़ तेज प्रताप आगे क्या करते हैं? चर्चा है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ख़ुद मामले को सुलझाने के लिए पहल करने वाले हैं क्योंकि बिना उनके हस्तक्षेप के परिवार में शायद ही सब कुछ ठीक हो। हाँ, महागठबंधन में इसका नकारात्मक असर पड़ना तय है। तेजस्वी के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कॉन्ग्रेस और कुशवाहा की अनुपस्थिति ने इस बात को बल दे दिया है।

वरुण ने किया था इनकार लेकिन मेनका कर सकती हैं अमेठी में राहुल के खिलाफ चुनाव प्रचार

केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी को भाजपा ने सुल्तानपुर से अपना प्रत्याशी बनाया है। भाजपा की उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पहली बार सड़क मार्ग से सुल्तानपुर जा रही मेनका गाँधी का जगदीशपुर में भाजपाइयों ने जोरदार स्वागत किया। इस दौरान जब पत्रकारों ने मेनका गाँधी से अमेठी में चुनाव प्रचार करने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने ये कहकर कॉन्ग्रेस की बेचैनी बढ़ा दी कि अगर पार्टी कहेगी तो वो राहुल गाँधी के खिलाफ प्रचार करने के लिए अमेठी भी जाएँगी। वैसे मेनका का ये बयान इसलिए भी खास हो जाता है, क्योंकि भाजपा प्रत्याशी के रूप में पाँच साल पहले सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने आए उनके बेटे वरुण गाँधी ने तब इसी सवाल के जवाब पर कहा था कि वे अपने चचेरे भाई के खिलाफ चुनाव प्रचार नहीं करेंगे।

शनिवार (मार्च 30, 2019) को मेनका गाँधी ने शहर के राजीव गाँधी पार्क में बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने मंच से कहा कि वो यहाँ न्याय का रास्ता खोलने आई हैं। अन्याय करने वाला चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, उसके खिलाफ कार्रवाई जरूर होगी। मेनका ने कहा कि उन्होंने हमेशा गरीबों व मजलूमों की लड़ाई लड़ी है, इसी कारण वह पीलीभीत से पिछले सात बार से सांसद चुनी गईं और सुल्तानपुर चुनाव में भी उनका मुद्दा विकास ही होगा।

संबोधन के दौरान भावुक होती हुई मेनका ने कहा कि उनके पति संजय गाँधी का सुल्तानपुर, अमेठी से पुराना लगाव था और उन्होंने अपने पति के साथ ही सुल्तानपुर से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। मेनका ने कहा कि उनके पति की मृत्यु के दो दशक बाद भी यहाँ की जनता ने जिस तरह से उनका और उनके बेटे वरुण गाँधी का सम्मान किया है, उसके लिए वो उनकी आभारी हैं। आगे उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी ने देश में जो कुछ किया, उसे भुलाया नहीं जा सकता। उनके द्वारा महिलाओं के लिए शौचालय, गरीब किसानों के लिए उनके खाते में 6 हजार रुपए की सहायता राशि, आयुष्मान योजना, उज्ज्वला योजना जैसी कई सुविधाएँ जनता को उपलब्ध कराई गई हैं।

गौरतलब है कि मेनका के पति संजय गाँधी, अमेठी से गाँधी-नेहरू परिवार के पहले सांसद थे। वे 1980 में यहाँ से सांसद बने। 23 जून 1980 को संजय गाँधी की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद साल 1984 में मेनका खुद राजीव गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हैं।

मिग 27 क्रैश: लड़ाकू विमान को आबादी से दूर ले गए पायलट, जान-माल का नुकसान नहीं

राजस्थान के जोधपुर के पास आज 31 मार्च 2019 को भारतीय वायुसेना का लड़ाकू विमान मिग-27 क्रैश हो गया। यह दुर्घटना रूटीन मिशन पर उड़ान भरते समय शिवगंज के पास गोड़ाना गांव में हुई।

जैसे ही इंजन में खराबी आई, पायलट सूझबूझ दिखाते हुए विमान को आबादी से दूर ले गए। इससे क्रैश वाली साइट पर किसी भी तरह के जान-माल का नुकसान नहीं हुआ है। समय रहते पायलट ने खुद भी इजेक्ट कर लिया और वो सुरक्षित हैं।

सूचना मिलते ही वायुसेना के अधिकारी क्रैश की साइट पर पहुँच गए और दुर्घटनाग्रस्त मिग-27 के पायलट को हेलिकॉप्टर से जोधपुर लाया गया है। जहाँ यह लड़ाकू विमान क्रैश हुआ है, वहाँ आस-पास के लोगों ने बताया कि हवा में ही विमान में आग लग गई थी।

मिग और IAF

भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के दुर्घटना पर नजर डालें तो सबसे अधिक हादसे मिग-21 और मिग-27 के ही हुए हैं। इसी साल बीकानेर में 8 मार्च को भी एक मिग-21 क्रैश हुआ था। हालाँकि वायुसेना चीफ ने मिग को ‘खराब’ लड़ाकू विमान कहे जाने पर आपत्ति जताई थी। आपको याद दिला दें विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तानी F-16 को अपने मिग-21 बाइसन से ही मार गिराया था।

2008-11 के बीच कॉन्ग्रेस की सरकार ने ₹34 लाख करोड़ के कर्ज़ बाँटे: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज TV9 भारतवर्ष के राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर खुलकर बातें की और पिछले पाँच वर्षों में अपनी सरकार द्वारा देशहित में उठाए गए कई ठोस क़दमों का ज़िक्र किया। अपने संबोधन में उन्होंने विपक्ष की कमियों के बारे में तो बताया ही साथ में देश को एक बार फिर नए भारत के अपने दृष्टिकोण से अवगत कराया। विभिन्न योजनाओं और लक्ष्यों की प्राप्ति कर देश की नींव को मज़बूत करने से लेकर आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने की बातें भी साझा की। प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  • TV 9 ग्रुप के सभी लोगों को लॉन्चिंग के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, आप ऐसे समय में उतरे हैं जब हम नए भारत की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। आपने अपने चैनल का नाम भारतवर्ष रखा है, इसलिए इस नाम के साथ बहुत बड़ा दायित्व जुड़ गया है। आप देश की आशा पर खरे उतरें, इसके लिए मेरी शुभकामनाएँ हैं।
  • पाँच वर्ष पहले तक क्या होता था दुनियाभर से हम पर सवाल-जबाव शुरू हो जाते थे, दुनिया के देश रूल बनाते थे और हम उसे फॉलो करने के लिए मजबूर हो जाते थे। आज हर मामले में देश ख़ुद आगे बढ़कर निर्णय लेता है, फिर चाहे कोई भी मामला हो।
  • आज हम आतंकियों को घुसकर मारते हैं तो पूरी दुनिया हमारे साथ खड़ी हो जाती है। जो मंच कभी पाक के प्रोपेगैंडा का माध्यम बनता था आज वो भारत के साथ हैं।
  • अंतरिक्ष हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप अपने चैनल की कल्पना बिना सैटेलाइट के कीजिए, आपको समझ में आ जाएगा।
  • क्या हम वैसी ही स्थिति में रहें जैसे 1962 में थे। हम कमिटमेंट के साथ काम करते हैं। आज के फ़ैसलों को कल के लिए टालना आपराधिक लापरवाही है।
  • स्वतंत्रता के बाद से 2008 तक बैंकों द्वारा 18 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ दिया गया। 2011 में बढ़कर 52 लाख करोड़ का हो गया। कोई भी घोटाला देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए काफी है।
  • अब ये नहीं होगा कि 1 कंपनी को दिवालिया घोषित करके बाकी कंपनियों का पैसा आराम से रखे। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा देश को सारा पैसा लौटाना पड़ेगा।
  • कड़े क़ानून के चलते 3 लाख करोड़ रुपयों की वापसी हो गई है अब तक। इस क़ानून की वजह से मुझपर जो दबाव था, वो मैं ही जानता हूँ।
  • जो आदमी 9 हज़ार करोड़ का घोटाला करके भागा था, उसकी 14 हजार करोड़ की संपत्ति ज़ब्द कर ली गई है।
  • हमारी सरकार ने सवा तीन लाख से ज़्यादा कंपनियों पर ताला लगा दिया किसी ने कुछ नहीं कहा, न ही कहीं पुतले जले और न कहीं मोदी मुर्दाबाद के नारे लगे
  • भ्रष्टाचारियों ने ऐसी व्यवस्थाएँ विकसित कर ली थी कि बस पैसा मिलता रहेगा। जिस देश में कागजों में 8 करोड़ से ज़्यादा फ़र्ज़ी नाम वाले लोग हों। और सरकारी सुविधाओं का लाभ रहे हों, ये हमारे यहाँ सालों से चल रहा है। हमने इनकी पहचान का काम शुरू कर दिया है।
  • ग़रीबों के अधिकार कोई न छीन सके इसलिए उनके खाते खुलवाए गए, जनधन योजना के तहत। उनके हक़ का पैसा सीधा उनके खाते में जमा हो रहा है।
  • आधार का मामला SC में इतना लंबा क्यों चला। मूल कारण है कि मलाई खाना बंद हो गया था। आधार के ज़रिए ही 1 लाख 10 हज़ार करोड़ रुपए ग़लत हाथों में जाने से बचाया गया। ये लूट आपके टैक्स के पैसे की थी। दशकों तक जिनका इस देश पर राज रहा है क्या उनकी इस बात पर कोई जवाबदेही है कि नहीं?
  • पहले की सरकार में डीबीटी का मतलब ‘डायरेक्ट बिचौलिया ट्रांसफर’ था।
  • 2014 के बाद जनता की आशाएँ अब विश्वास में बदल गई हैं। अब देश को विश्वास हो गया है कि अब हिंसा और आतंकवाद को मुँह तोड़ जवाब दे सकता है। देश को लूटने वाले कहीं भी हों वो अब बच नहीं पाएँगे। एक तरफ आशा और अकांक्षाएँ हैं तो दूसरी तरफ विपक्ष के पास केवल अविश्वास और नकारात्मकता है उसको भी देश अब भलिभाँति समझ रहा है। सच्चाई यह है कि जिनको दशकों तक सत्ता में रहने का अवसर मिला वो विफल रहे। नकारात्मक फैला कर भ्रम फैलाकर कभी सफलता नहीं पाई जा सकती।

‘NYAY’ योजना: जनता को ग़ैर-ज़िम्मेदार बनाता राहुल गाँधी का चुनावी ढकोसला

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मतदाताओं को लुभाने के लिए एक घोषणा करते हुए कहा कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस सत्ता में आती है, तो वह देश के 20% सबसे गरीब परिवारों को सालाना ₹72,000 न्यूनतम आय के तौर पर देगी। राहुल गाँधी द्वारा की गई इस घोषणा को लेकर काफी सियासी बवाल देखने को मिल रहा है। इसकी काफी आलोचना भी की जा रही है। इस बीच NYAY योजना से जुड़ी एक ऐसी खबर आ रही है, जो यह दिखाती है कि इस योजना की बाट जोह रहे लोग अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों से विमुख हो रहे हैं।

दरअसल मध्य प्रदेश के इंदौर की अदालत में उस समय सभी लोग हैरान रह गए, जब मुकदमे के दौरान टीवी कलाकार आनंद शर्मा ने शुक्रवार (मार्च 29, 2019) को याचिका दायर करते हुए कहा कि वो पत्नी को गुजारा भत्ता तभी दे पाएगा, जब राहुल गाँधी की सरकार आएगी। शख्स का कहना है कि जब उसे कॉन्ग्रेस की ‘न्याय’ योजना से पैसा मिलने लगेगा, तो वो अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता दे देगा। इसलिए तब तक गुजारा भत्ता देने पर रोक लगाई जाए। पति-पत्नी के बीच कुछ विवाद चल रहा है जिसका मुकदमा अदालत में विचाराधीन है। इसलिए आनंद की पत्नी और उसकी 12 वर्षीय बेटी पिछले कुछ समय से अलग रह रही हैं।

आनंद की पत्नी ने आनंद के खिलाफ मुकदमा दायर करते हुए ₹4,500 प्रतिमाह गुजारे भत्ते की माँग की थी जिसके बाद कोर्ट ने आनंद से अपनी पत्नी को ₹4,500 रुपये महीने गुजारा भत्ता के रूप में देने के लिए कहा। इस पर आनंद ने कहा, “मैं बेरोजगार हूँ और मैंने कोर्ट में आवेदन दिया है कि जब तक केंद्र में कॉन्ग्रेस पार्टी की सरकार नहीं बन जाती और न्यूनतम आय योजना का पैसा नहीं मिलने लगता है, तब तक मैं गुजारा भत्ता देने में असमर्थ हूँ।”

इस मामले में साफ देखने को मिल रहा है कि न्याय योजना की घोषणा की वजह से कैसे कोई इंसान अपनी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियों को निभाने से कतरा रहा है। उसे अपनी ज़िम्मेदारियों को कैसे निभाना है यह सोचने की बजाय राहुल गाँधी के दिखाए गए ख्वाब को संजोए बैठा है कि कॉन्ग्रेस की सरकार आएगी, उसे पैसे देगी तो अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर लेगा। उसे खुद इसके लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है।

यहाँ पर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कॉन्ग्रेस सरकार न्याय योजना के नाम पर लोगों को गैर-जिम्मेदार बना रही है, उन्हें मुफ्तखोरी सिखा रही है। राहुल गाँधी बड़े-बड़े सपने दिखाकर लोगों को निष्क्रिय बना रहे हैं। सरकार को जहाँ लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध करवा कर जिम्मेदार बनाने की कोशिश करनी चाहिए, उन्हें मेहनत करके अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, वहाँ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष लोगों में मुफ्तखोरी का बीज बो रहे हैं। अगर इसी तरह हर व्यक्ति न्याय योजना से मिलने वाले की आस में बैठ जाए, और सारे काम-काज छोड़ दे तो फिर सोचिए क्या होगा?

कोर्ट में जिस तरह से आनंद शर्मा ने कॉन्ग्रेस सरकार के आने तक की मोहलत माँगी है, उससे साफ जाहिर है कि वो किस तरह से अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए राहुल गाँधी पर निर्भर है। तो क्या राहुल गाँधी के न्याय योजना का मकसद लोगों को गैर जिम्मेदार बनाना है? असल में कॉन्ग्रेस को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। लोकलुभावन वादे करके वोट बैंक बढ़ाना और सत्ता में आना ही कॉन्ग्रेस पार्टी का एकमात्र मकसद है। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इससे देश की जनता पर किस तरह से नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

भारतीय पादरी बाल यौन शोषण का दोषी: अमेरिकी कोर्ट ने दी 6 साल जेल की सज़ा

भारतीय मूल के एक पूर्व रोमन कैथोलिक पादरी को अमेरिका में एक किशोर लड़की का यौन शोषण करने के अपराध में छह साल जेल की सज़ा सुनाई गई है। रैपिड सिटी जर्नल अख़बार के अनुसार 38 वर्षीय जॉन प्रवीण को एक 13 वर्षीय नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया। अभियोजन पक्ष द्वारा अधिकतम एक वर्ष की सजा देने की अपील किए जाने के बाद न्यायाधीश स्टीवन मैंडेल ने शुक्रवार (29 मार्च) को छः साल की सजा सुनाई। मेंडेल ने कहा कि एक साल की सजा अभियुक्त के लिए कम थी।

ख़बर के अनुसार, 16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन संबंध रखने के एक मामले में प्रवीण को दोषी ठहराए जाने के बाद सज़ा सुनाई गई। इस अपराध के लिए अधिकतम 15 साल की सज़ा होती है। मैंडेल ने कहा कि अगर प्रवीण को पैरोल दिया जाता है, तो पैरोल बोर्ड होमलैंड सिक्योरिटी से उसे तुरंत हैदराबाद भेजने के लिए कह सकता है।

प्रवीण ने दिसंबर 2017 में 10 साल के असाइनमेंट के लिए रैपिड सिटी डायोसिज़ को ज्वॉइन किया था। प्रवीण ने शुक्रवार को अदालत में घड़ियाली आँसू बहाते हुए कहा, “मैंने जो किया है उसके लिए मैं पीड़िता और उसके परिवार से माफ़ी माँगता हूँ। उसने कहा कि वो यह अच्छी तरह से जानता है कि मात्र सॉरी कह देना काफ़ी नहीं होगा, लेकिन भविष्य में वो ऐसा दोबारा कभी नहीं करेगा।”

एक ई-मेल किए के माध्यम से रैपिड सिटी बिशप रॉबर्ट ग्रस ने रैपिड सिटी के डायोसिज़ की ओर से पीड़िता और उसके परिवार से माफ़ी माँगी, इस ई-मेल में प्रवीण के कुकृत्य को “पापपूर्ण”, दर्दनाक और विश्वासघात कहा गया है। ग्रस ने कहा, “मुझे बहुत अफ़सोस है कि नाबालिग को एक पादरी के कुकृत्य को झेलना पड़ा।” उन्होंने आगे कहा कि इस दर्द को केवल वे ही लोग समझ सकते हैं सकते हैं, जो इस तरह के दुर्व्यवहार के शिकार हुआ हो। विश्वासघात का अनुभव बहुत पीड़ादायक होता है, ख़ासतौर पर अगर वो शख़्स पादरी हो तो ये और भी चिंता का विषय होता है।

अमेठी का कर बंटाधार, राहुल गाँधी चले दक्षिण के द्वार: दो सीटों पर लड़ेंगे लोकसभा चुनाव

लोकसभा चुनाव 2019 में राहुल गाँधी की उम्मीदवारी पर कई दिनों से जारी अटकलों का दौर समाप्त हो चुका है। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि राहुल गाँधी दो सीटों पर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। सुरजेवाला ने कहा कि राहुल गाँधी अमेठी के अलावा केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ेंगे।

पिछले कुछ दिनों से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि राहुल गाँधी दो सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। कुछ दिनों पहले केरल के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने राहुल गाँधी के केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि राहुल गाँधी द्वारा दूसरी सीट से चुनाव लड़ने पर पिछले क़रीब एक महीने से विचार किया जा रहा था। हालाँकि इस बात का ख़ुलासा हुआ है कि दो सीट से चुनाव लड़ने के लिए राहुल तैयार नहीं थे, लेकिन काफ़ी समझाने-बुझाने के बाद राहुल इस सीट से लड़ने के लिए तैयार हो गए।

आज रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि जिस प्रकार मोदी सरकार में दक्षिण भारतियों की संस्कृति पर हमला बोला जा रहा है उससे तीन राज्यों (केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु) की जनता का मान रखते हुए राहुल गाँधी ने वायनाड से चुनाव लड़ने का निश्चय किया है।

लोकसभा का परिसीमन होने के बाद साल 2008 में केरल की वायनाड सीट अस्तित्व में आई थी। यह सीट कन्नूर, मलाप्पुरम और वायनाड संसदीय क्षेत्र को मिलाकर बनी है। इससे पहले कॉन्ग्रेस के एमएल शाहनवाज़ इस सीट पर दो बार अपनी जीत दर्ज कर चुके हैं।

हालाँकि यह भी कहा जा रहा है कि, अमेठी की चुनावी लड़ाई में कॉन्ग्रेस को अभी से अपनी हार नज़र आ रही है। बीजेपी ने घोषणा की है कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, गाँधी के गढ़ माने जाने वाले अमेठी से चुनाव लड़ेंगी। इस घोषणा के बाद से ही कॉन्ग्रेसी खेमे में हड़कंप सा मच गया है। इसके परिणामस्वरूप ही कॉन्ग्रेस में राहुल गाँधी की जीत सुनिश्चित करने की छटपटाहट भी देखने को मिल रही है।

ऐसे में राहुल गाँधी को पत्र लिखकर उनसे अमेठी से लड़ने के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का आग्रह किया गया है। ऐसा करने के पीछे मक़सद केवल राहुल गाँधी की जीत सुनिश्चित करना है। राहुल के दो जगह से चुनाव लड़ने के फ़ैसले को स्मृति ईरानी का डर न कहा जाए तो भला और क्या कहा जाए। इससे कॉन्ग्रेस की हताशा और निराशा दोनों की तस्वीर एकदम साफ़ नज़र आ रही है।

कॉन्ग्रेस ज्वाइन करते ही लोग बौरा काहे जाते हैं? प्रियंका तो ‘C’ फ़ैक्टर है, पर बाकी?

प्रियंका का तो चलता है, वो तो ‘सी’ फ़ैक्टर है कॉन्ग्रेस के लिए, जिसके बारे में पत्रकार याद दिलाना नहीं भूलते, लेकिन कॉन्ग्रेस में आते ही सरदार को असरदार कहने से लेकर, राहुल गाँधी में डायनमिक लीडरशिप देखने और ‘कॉन्ग्रेस ही भारत का कर्ता-धर्ता है’ कहने वालों की कमी नहीं है। 

कुछ दिन पहले प्रियंका गाँधी ने देश को बताया और जताया कि माचिस से मिसाइल तक जो भी है भारत में, सब कॉन्ग्रेस की देन है। उसके बाद पीसी चाको ने कहा है कि भारत को कॉन्ग्रेस का शुक्रगुज़ार होना चाहिए क्योंकि गाँधी परिवार भारत की ‘फ़र्स्ट फ़ैमिली’ है। उसके बाद मुंबई में नई नवेली कॉन्ग्रेसन उर्मिला मार्तोंडकर ने सूचना दी कि ‘मुंबई कॉन्ग्रेस की है’। 

मुझे यह सोचने में समस्या हो रही है कि क्या कॉन्ग्रेस पार्टी में आजकल नया इंडक्शन प्रोसेस चालू हुआ है जहाँ कुछ वाक्य रटा दिए जाते हैं? सिद्धू का तो समझ में आता है कि उसके पास मोदी जी समय का लिखा हुआ स्पीच था, जिसमें फ़ाइंड और रीप्लेस मारकर राहुल गाँधी करते हुए, उसने कॉन्ग्रेस की सभा में वही स्पीच पढ़कर लहरिया लूटने की कोशिश की थी। बाद में इंटरनेट के योद्धाओं ने पकड़ लिया था।

प्रियंका गाँधी, जो कि सिर्फ अपनी नाक और हेयर स्टाइल के कारण ही कॉन्ग्रेस समर्थकों में पार्टी के प्रति विश्वास जगाने में सफल हुई हैं, जिनकी चाटुकारिता में तल्लीन पत्रकार उनके ऑफिस के बाहर के नेम प्लेट का विडियो बनाकर एक्सक्लूसिव रिपोर्ट करते हैं, जिनके बारे में जनता को बताया जाता है कि वो ट्विटर पर कपड़े बदलकर जीन्स वाली फोटो भी लगा सकती हैं, और जो गाँधी के साथ-साथ वाड्रा भी हैं, जब कॉन्ग्रेस के बारे में कहती हैं तो समझ में आता है कि बचपन से ही भारत के मैप के साथ ‘व्यापारी’ खेलते हुए पलने वाले लोग शायद देश को खेल ही समझते हों कि यहाँ से जो भी जाएगा कॉन्ग्रेस को ‘किराया’ देकर जाएगा। 

प्रतीत होता है कि दिव्या स्पंदाना टाइप के लोग और एजेंसियाँ मोटा माल पाए हैं कॉन्ग्रेस की छवि को ‘सुधारने’ के लिए। स्पंदाना तो कॉन्ग्रेस के ऑफिशियल हैंडल को ‘भारतीय राष्ट्रीय मीम आयोग’ बनाकर पार्टी को उल्लू बना रही है कि देखो इतने लाइक्स और रीट्वीट्स मिले। जिस तरह की पार्टी है, और जैसे चाटुकार लोग हैं, वो लोगों की गालियों वाले ट्वीट को भी ‘चर्चा में तो हैं हमलोग’ मानकर निकल ले रहे हैं। मालिक तो पहले ही मूर्ख है, वो तो पेपर देखकर पढ़ नहीं पाता, उसको कुछ भी कह दो, क्या फ़र्क़ पड़ता है! 

इसी में अगली कड़ी है कि अब भारत के लोगों को विश्वास दिलाया जाए कि भारत में जो भी है, वो कॉन्ग्रेस की वजह से है, या भारत जो भी है, वो कॉन्ग्रेस ने बनाया है, या भारत है इसका मतलब है कि कॉन्ग्रेस ने दया किया है वरना वो तो मोज़ाम्बिक भी जाकर, उस देश को सुधार सकते थे। अब लोगों को यह बताया जा रहा है कि भारत का अस्तित्व कॉन्ग्रेस के पार्टी फ़ंड से गढ़ा गया है।

जबकि है इसका उल्टा कि कॉन्ग्रेस ने भारत को अपने पहले दिन से लूटा है। परिवार के हर प्रधानमंत्री का नाम घोटाले से सना हुआ है। जो प्रधानमंत्री नहीं थी, वो प्रधानमंत्री की पत्नी, एक परिवार की बहू और पीएम बनने की उम्मीद में बैठे लड़के की माँ, उसने भी लूटने में कसर नहीं छोड़ी। फिर देश को इन्होंने कैसे बनाया? या तो भारत की जनता के कॉन्स्पेट्स हिले हुए हैं कि लूटने वालों को हम लोग आज तक गलत समझते आए हैं, जबकि वो तो अच्छे लोग हैं जिनके डिम्पल पड़ते हैं और उन्हें प्रधानमंत्री बनाकर जनता खुद को कृतार्थ करे! 

गलती उर्मिला की है भी नहीं। फिल्म के लोग वैसे भी स्क्रिप्ट पढ़कर, भाव के साथ मेक-बिलीव में यक़ीन रखते हैं। उर्मिला को भी कॉन्ग्रेस के इंडक्शन में कहा गया होगा कि मुंबई कॉन्ग्रेस की है, उन्होंने जाकर पढ़ दिया। असली समस्या तो उनकी है, जो इस बात में विश्वास करने लगे हैं। ये बात और है कि वो लोग पार्टी के वैसे लोग हैं जो अपने अस्तित्व की लड़ाई उस नाव पर खड़े होकर लड़ रहे हैं जिसमें छेद है। 

चुनाव आयोग का निर्देश- मतदान से 48 घंटे पहले नेता नहीं कर सकेंगे प्रेस कॉन्फ्रेंस

चुनाव का समय नज़दीक है। इस बीच चुनाव आयोग ने शनिवार (मार्च 30, 2019) को 41 राजनीतिक दलों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार का शोर थमने यानी कि ‘साइलेंस पीरियड’ के दौरान कोई भी नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस कर या फिर अखबार व टीवी के माध्यम से इंटरव्यू नहीं दे सकते।

लोकसभा के लिए सात चरणों में मतदान होगा। पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होगा, जिसके 48 घंटे पहले यानी कि 9 अप्रैल को इस चरण के लिए चुनाव प्रचार थम जाएगा। मगर चुनाव आयोग ने ये निर्देश दिया है कि पहले चरण का चुनाव प्रचार थमने के बाद नेता दूसरे चरण में होने वाले मतदान क्षेत्रों में भी ऐसे भाषण नहीं दे सकते, जिससे पहले चरण के क्षेत्र के लिए वोट अपील करने का भाव उत्पन्न होता हो। आयोग ने यह निर्देश सभी प्रदेशों के मुख्य सचिवों तथा निर्वाचन अधिकारियों को भेज दिया है।

इसके साथ ही चुनाव आयोग ने सभी दलों से कहा है कि वे अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिदायत दें कि वे साइलेंस पीरियड का पूर्ण रूप से पालन करें। वे ऐसा कोई काम न करें, जो जनप्रतिनिधि कानून की धारा 126 की भावना के खिलाफ हो। चुनाव के 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार थमने के साथ ही ‘ड्राइ डे’ घोषित कर दिया जाएगा, और ये मतदान के समाप्त होने तक जारी रहेगा। यह आदेश विशेष प्रकार के लिकर लाइसेंस वाले संस्थानों पर भी लागू होगा।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने शनिवार (मार्च 16, 2019) को चुनाव आचार संहिता के नियमों में घोषणापत्र से संबंधित प्रावधानों को जोड़ते हुए कहा था कि मतदान से दो दिन पहले तक ही राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र जारी कर सकेंगे। प्रचार अभियान थमने के बाद यानी कि मतदान से 48 घंटे की अवधि में घोषणा पत्र जारी नहीं किया जा सकेगा। चुनाव आयोग के प्रमुख सचिव नरेन्द्र एन बुतोलिया ने सभी राजनीतिक दलों और राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को एक दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि यह समय सीमा एक या एक से अधिक चरण वाले चुनाव में समान रूप से लागू होगी।