Sunday, September 29, 2024
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₹72000 वाले वादे पर कॉन्ग्रेस ने फिर चली ‘चाल’: परिवार के बाद अब कर दी महिलाओं की बात

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कल बड़ा चुनावी वादा करते हुए देश के 20 प्रतिशत सबसे गरीब लोगों को हर साल 72000 रुपए देने का ऐलान किया था। आज उसी न्यूनतम आय योजना को लेकर कॉन्ग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कल वाली घोषणा पर ‘नियम व शर्तों’ जैसी कुछ बात की। सुरजेवाला ने शुरू में वही बताया जो कल राहुल गाँधी बता चुके थे – इस योजना के तहत देश के सबसे गरीब 5 करोड़ परिवारों को लाभ मिलेगा। यानी करीब 25 करोड़ लोगों को इससे लाभ होगा। बाद में कहा कि योजना को लेकर हो रही उलझनों को सुलझाने के लिए उन्होंने ये प्रेस कॉन्फ्रेंस की है।

रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “हम साफ करना चाहते हैं कि ये टॉप-अप स्कीम नहीं है। हर परिवार को 72,000 रुपया प्रति वर्ष मिलेगा। ये महिला केंद्रित स्कीम होगी। मतलब 72,000 रुपए कॉन्ग्रेस पार्टी घर की गृहणी के खाते में जमा करवाएगी। यह स्कीम शहरों और गाँवों, पूरे देश के गरीबों पर लागू होगी।”

राहुल की चुनावी चाल: गरीब परिवार को ₹72000 सलाना, 5 करोड़ फैमिली और 25 करोड़ आबादी को डायरेक्ट फायदा

कॉन्ग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि उनकी सरकार ने पहले भी गरीबी को कम किया है। और अभी देश में जो 22 प्रतिशत गरीबी है, वो भी इस योजना से खत्म हो जाएगी। उन्होंने मनरेगा और किसानों की कर्जमाफी पर भी बात की।

बता दें कि, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सोमवार (मार्च 25, 2019) को ऐलान किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो देश के सबसे गरीब 20% परिवार को 72,000 रुपए सालाना मदद मिलेगी। इस न्यूनतम आय गारंटी योजना में अधिकतम 6000 रुपए महीने दिए जाएँगे। यानी अगर किसी गरीब परिवार की आय 12,000 से कम होगी, तो सरकार उसे अधिकतम 6,000 रुपए देकर उस आय को 12 हजार रुपए तक लाएगी।

मजदूर पति ने लाचार पत्नी के लिए बना डाला रिमोट कंट्रोल बेड, राष्ट्रपति ने अवॉर्ड देकर किया सम्मानित

तमिलनाडु के 42 वर्षीय मजदूर एस सरावना मुथु ने अपनी बीमार पत्नी की देखभाल के लिए एक ऐसी चीज का आविष्कार कर दिया, जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही है। इस काम के लिए उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की तरफ से पुरस्कृत किया गया है। मुथु को ये अवॉर्ड 5 मार्च को गुजरात में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों मिला। बता दें कि लोहे का काम करने वाले एस सरावना मुथु ने अपनी बीमार पत्नी के लिए उसके बिस्तर को और अधिक आरामदायक बनाने के लिए रिमोट से चलने वाला टॉयलेट बेड बना दिया।

मुथु ने जो बनाया, उसकी कहानी साल 2014 से शुरू होती है। उस वर्ष मुथु की पत्नी की सर्जरी हुई थी, जिसकी वजह से उन्हें दो महीने बेड रेस्ट पर रहना पड़ा था। इस दौरान उन्हें बिस्तर पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। उन्हें उठकर वॉशरुम जाने के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। अपनी पत्नी का ये दर्द सरावना से देखा नहीं गया। उन्होंने पत्नी के लिए कुछ करने की ठान ली और फिर उन्होंने अपनी पत्नी के लिए एक रिमोट कंट्रोल टॉयलेट बेड बना डाला।

टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए मुथु ने बताया कि उन्हें बेड रेस्ट पर रहने वाले मरीजों की पीड़ा समझ में आ रही थी, कि वे कैसे हर चीज के लिए दूसरों के ऊपर निर्भर रहते हैं, यहाँ तक कि उनकी देखभाल करने वालों को भी परेशानी होती है। कई मामलों में तो मरीज की प्राइवेसी भी खतरे में पड़ जाती है। मरीजों की प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए और उनकी परेशानियों को कम करने के लिए मुथु ने रिमोट कंट्रोल बेड बनाने का फैसला किया।

अपने आविष्कार के साथ मुथु (दाएँ से तीसरे) – फोटो साभार: BCCL

मुथु ने फ्लश टैंक, सेप्टिक टैंक से लैस एक रिमोट कंट्रोल बेड बनाया है। रिमोट कंट्रोल बेड में तीन बटन हैं। एक बटन से बेड का बेस खुलता है, जबकि दूसरे से क्लोज़ेट खुलता है। वहीं तीसरा बटन टॉयलेट के फ्लश के लिए लगाया गया है।

मुथु ने इस बारे में बात करते हुए बताया कि इसे बनाने में शुरुआती दौर में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मुथु इस उपलब्धि का श्रेय पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को देते हैं। उनका कहना है कि अब्दुल कलाम ने ही उन्हें इसके लिए प्रेरित किया और उनसे मिलने के बाद ही उनके इस विचार को एक दिशा मिली। अब्दुल कलाम ही वो शख्स थे, जिन्होंने मुथु को उनके आविष्कार के लिए नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन में अप्लाई करने को कहा था।

वैसे देखा जाए तो मुथु ने इस आविष्कार से न केवल पुरस्कार जीता, बल्कि अपनी बीमार पत्नी की सुविधा के लिए इतनी बड़ी बात सोचकर लोगों का दिल भी जीत लिया। देखने में यह सिर्फ एक बेड है लेकिन जो परिवार ऐसे हालातों से गुजरते हैं, उनके लिए यह वरदान साबित हो सकता है। तभी तो मुथु को अब तक 385 ऐसे बेड बनाने के ऑर्डर मिल चुके हैं लेकिन संसाधनों की कमी के कारण उन्होंने सिर्फ एक ही बेड की डिलीवरी की है।

घर से दूर हैं तो बैठे-बैठे Voter ID में ऐसे बदलें अपना पता, समझें पूरी प्रक्रिया

अगर आप अपने घर से दूर हैं और अपने मताधिकार को बेकार नहीं जाने देना चाहते, तो आप काफ़ी आसानी से वोटर आईडी में अपना पता बदल कर वोट डाल सकते हैं। इसके लिए बहुत ही आसान प्रक्रिया है, जिसे हम यहाँ स्टेप बाय स्टेप समझा रहे हैं। नीचे चरणबद्ध तरीके से दिए गए स्टेप्स का अनुसरण करें और वोटर आईडी में अपना पता बदलें।

1.) सबसे पहले आपको फॉर्म 6 के बारे में जानना होगा जिसे आप इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे भर सकते हैं। इसके माध्यम से आप अपने निर्वाचन क्षेत्र में बदलाव कर सकते हैं। आपको इस कार्य के लिए जिन डॉक्यूमेंट्स की ज़रूरत पड़ेगी, उन्हें तैयार रखें। ये डॉक्यूमेंट्स हैं- पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ की स्कैन की हुई कॉपी, उम्र और पता के प्रूफ वाले डॉक्यूमेंट्स की स्कैन की हुई कॉपीज।

2.) डॉक्यूमेंट्स और फोटोग्राफ अपलोड करते समय आपको कुछ बातें ध्यान में रखनी है। आपको सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट सेक्शन में जाकर क्लिक करना होगा ताकि आप अपलोड कर सकें। किसी भी फाइल का आकार 2 एमबी से ज्यादा नहीं हो, इस बात का ध्यान रखें।

उम्र प्रूफ के लिए स्वीकार्य डॉक्यूमेंट्स: जन्म प्रमाण पत्र, 5वीं, 8वीं या 10वीं का मार्कशीट, भारतीय पासपोर्ट, ड्राइविंग लइसेंस, आधार कार्ड।

अभी का पता प्रूफ करने के लिए स्वीकार्य डॉक्यूमेंट्स: ड्राइविंग लइसेंस, भारतीय पासपोर्ट, राशन कार्ड, रेंट एग्रीमेंट, आईटी असेसमेंट ऑर्डर, पानी/बजली/टेलीफोन/गैस/बिजली का बिल, बैंक/किसान/डाकघर का पासबुक।

3.) सबसे पहले राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल (NVSP) की वेबसाइट पर जाएँ

मतदाता पोर्टल की वेबसाइट कुछ यूँ खुलेगी

4.) यहाँ “Apply online for registration of new voter/due to shifting from AC” पर क्लिक करें। ऐसा करते ही आपके सामने फॉर्म 6 खुल जाएगा, जिसे आपको भरना है।

फॉर्म 6 पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें

5.) ऊपर दाहिने कोने में जाकर अपनी भाषा चुनें। आप जो भी भाषा चुनेंगे, फॉर्म 6 उसी भाषा में खुलेगा। ये फॉर्म तीन भाषाओँ में उपलब्ध है- हिंदी, अंग्रेजी, मलयालम।

भाषा चुनें, ड्रॉपडाउन में जाकर नीचे-ऊपर स्क्रॉल कर के भाषा बदल सकते हैं

6.) फॉर्म 6 को 6 भागों में विभाजित किया गया है- Mandatory particulars, Address, Optional particulars, Supporting documents और Declaration में। आपको सभी विवरण भरने हैं। वैकल्पिक को आप इच्छानुसार छोड़ सकते हैं। फॉर्म भरने के बाद आपके SMS आएगा, जो इसकी पुष्टि करेगा।

7.) सबसे पहले ज़रूरी विवरण भरें, जैसे कि राज्य, निर्वाचन क्षेत्र, जिला इत्यादि। ये सारे विवरण आप अभी जिस निर्वाचन क्षेत्र में रह रहे हैं, उसी के अनुसार भरें।

अपने अभी के निर्वाचन क्षेत्र के हिसाब से ये विवरण भरें

8.) ‘पहली बार के मतदाता के रूप में’ या ‘अन्‍य सभा क्षेत्र से स्‍थानांतरण के कारण’ में से कोई एक चुनें। अगर आपने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदला है तो दूसरा वाला विकल्प चुनें।

पहली बार वोट दाल रहे हैं या निर्वाचन क्षेत्र बदल रहे हैं? यहाँ चुनें

9.) अनिवार्य विकल्पों में नाम, उपनाम, नातेदार का नाम, उम्र, इत्यादि को अंग्रेजी और स्थानीय- दोनों ही भाषाओँ में भरें। अगर आप अपनी कीबोर्ड में टैब की दबाते हैं तो वेबसाइट आपके नाम को स्थानीय भाषा में ख़ुद से बदल देगा।

नाम, उम्र इत्यादि को अंग्रेजी व स्थानीय भाषा में भरें

10.) अब आप अपना स्थायी पता और अभी का पता सही-सही भरें।

वर्तमान पता भरें
अपना स्थायी पता सही-सही भरें

11.) अब आप अपना संपर्क विवरण भरें, जैसे की ईमेल पता, मोबाइल नंबर इत्यादि। अगर आप दिव्यांग हैं, तो वो भी इसी सेक्शन में मिलेगा।

संपर्क विवरण और निःशक्तता विवरण

12.) अब अपने डाक्यूमेंट्स अपलोड करें। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए ऊपर हमारे स्टेप 2 पर जाकर फिर से पढ़ें।

डाक्यूमेंट्स अपलोड करें

13.) घोषणा वाले सेक्शन को भरें। यह इस फॉर्म का अंतिम सेक्शन है। यहाँ Captcha डाल कर ‘भेजें’ वाले बटन पर क्लिक करें।

घोषणा वाला सेक्शन
Captcha डाल कर ”भेजें’ पर क्लिक करें

14.) अब आपको एक Reference Id मिलेगा। उसे नोट कर लें। इसी से आप अपने आवेदन की स्थिति पर नज़र रख सकते हैं।

रिफरेन्स आईडी को नोट कर लें

विरोध प्रदर्शन की आड़ में JNU के नक्सलियों द्वारा कुलपति की पत्नी पर हमला कहाँ तक उचित है?

देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक नाम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का भी आता है। यहाँ से हर साल बड़ी तादाद में छात्र उच्च शिक्षा हासिल करके निकलते हैं। जेएनयू के क्लासरूम से लेकर वहाँ के परिसर स्थित ढाबों तक में आपको कई बुद्धिजीवियों का समूह सही और गलत पर फैसला करते दिख जाएँगे। साल 2016 में  नेशनल इंस्टीट्यूशल रैंकिंग फ्रेमवर्क, भारत सरकार द्वारा इस विश्वविद्यालय का नाम देश के टॉप 3 विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल किया गया था और साल 2017 में जेएनयू इस सूची में दूसरे नंबर पर पहुँच गया था।

इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद बीते कुछ सालों में जेएनयू की छवि को देश-विरोधी पाया गया। यहाँ बीते सालों में भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे भी लगे और आतंकवादियों के समर्थन में आवाज़ें भी उठीं। आखिर क्या कारण है कि इन बीते सालों ने जेएनयू की छवि को पूरे देश के सामने बदल कर रख दिया? जहाँ की शिक्षा स्तर की गुणवत्ता का बखान करते कभी लोगों का मुँह नहीं थकता था, वही लोग अब इसे राजनीति का केंद्र मानने लगे हैं। आखिर क्यों?

क्योंकि एक तरफ जहाँ देशविरोधी नारे लगाने के बाद राजनीति में करियर बनाने वाले कन्हैया कुमार के उदय की वजह जेएनयू है, तो वहीं कल रात वहाँ के कुलपति की पत्नी पर हुए हमले का कारण भी जेएनयू ही है। जी हाँ, कल जेएनयू में इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक भयानक चेहरा देखने को मिला। जिसने साफ़ कर दिया कि जेएनयू की विचारधारा पर लगते सवालिया निशान गलत नहीं हैं।

लोकतंत्र बचाने के नाम पर हो-हल्ला मचाने वाले इन बुद्धिजीवियों की भीड़ ने कल (मार्च 25, 2019) को जेएनयू कैंपस में चल रहे विरोध प्रदर्शन के चलते कुलपति के घर का घेराव किया। ताले, खिड़कियाँ, शीशे तोड़ डाले गए और सुरक्षाकर्मियों से मारपीट भी की गई। यहाँ कुलपति प्रो.जगदीश कुमार के घर पर न होने पर इस भीड़ ने अपना गुस्सा उनकी पत्नी पर निकाला। हालाँकि, सुरक्षाकर्मियों ने कुलपति की पत्नी को किसी तरह से उनके निवास से बाहर निकाला, मगर इस बीच वो घायल हो गई।

यहाँ जब ‘नक्सली’ शब्द का इस्तेमाल जेएनयू के इन बुद्धिजीवियों के लिए हो रहा है, तो बता दिया जाए कि ऐसा सिर्फ़ इसलिए क्योंकि इस हरकत के बाद नक्सलियों की नीतियों में और इनकी नीतियों में कोई फर्क़ नहीं रह गया है। उनकी लड़ाई की धरातल में भी अधिकारों और न्याय की माँग हैं, और यहाँ पर भी बुद्धिजीवियों के अनुसार वही स्थिति है। फर्क़ है तो सिर्फ़ इतना कि वह लोग घोषित रूप से नक्सलवादी है, जो शिक्षा को हथियार न मान कर उग्रता को विकल्प समझते हैं। लेकिन जेएनयू के यह बुद्धिजीवी, शिक्षा की आड़ में वह नक्सली नस्ल हैं जो एक शैक्षणिक संस्थान में उग्र विचारधारा को अपने अधिकार बताकर मज़बूत कर रहे हैं।

समाज का इतना प्रोग्रेसिव एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती तकनीक के इस्तेमाल पर इतनी नाराज़गी और गुस्सा कैसे दिखा सकता है। अगर मकसद सिर्फ़ शिक्षा का विस्तार है तो शायद कंप्यूटर आधारित प्रवेश परीक्षा से किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। आज देश की बड़ी-बड़ी परीक्षाएँ भी कम्प्यूटर के माध्यम से होती हैं। ऐसे में इस कदम का विरोध करना केवल मूर्खता को दर्शाता है। लेकिन अगर इसके बावजूद किसी पढ़े- लिखे समुदाय की ‘भीड़’ को इससे शिक्षा व्यवस्था में खतरा नज़र आता है, तो हर विरोध प्रदर्शन का एक तरीका होता है। जिसका अनुसरण करना इंसान की माँग की गंभीरता को दर्शाता है। बड़े-बुजुर्गों के मुँह से हमेशा सुना है कि एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति अगर झाड़ू भी लगाएगा तो उसमें भी उसकी सभ्यता दिखेगी।

वैसे हैरानी वाली बात तो ये भी है कि घर में 400-500 छात्रों द्वारा तोड़-फोड़ करने और पत्नी के घायल होने के बावजूद कुलपति का कहना है कि बतौर शिक्षक उन उत्पाती छात्रों को माफ़ करते हुए उनके ख़िलाफ़ कोई कानूनी एक्शन नहीं लेंगे। प्रो.जगदीश कुमार का यह फैसला उनके आचरण में अपने छात्रों की फिक्र को झलकाता है। जबकि जेएनयू कैंपस में छात्रसंघ समेत अन्य छात्रों का आचरण किसी हमलावर भीड़ का चेहरा दिखाती है, जो जब चाहे उग्रता की किसी भी हद को पार सकती है।

इस पूरी घटना को जानकर ऐसा लगता है मानो जेएनयू ने अब हर चीज का विकल्प विवादों में तलाशने की ही ठान ली है। जिन चीजों में आपसी सहमति और सिस्टम के बनाए नियमों को आधार बनाकर प्रश्न उठाया जा सकता है, उस पर इतना विवाद… आखिर क्यों? विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि कंप्यूटर आधारित प्रवेश परीक्षा का फैसला शैक्षिक और कार्यकारिणी परिषद में हुआ था। प्रवेश परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाएँगे। जिससे छात्रों को ज्यादा परेशानी नहीं होगी। अब इसमें विरोध की आवाजों का क्या औचित्य है, समझ नहीं आ रहा। अगर शिकायत है तो उसे मेज्योरिटी की इच्छा के अनुसार सवाल लायक बनाया जा सकता है। बेवजह माहौल को बिगाड़ना, शिक्षा और तकनीक में खाई बनाए रखने का समर्थन करना, कहाँ की समझदारी है, इसे तो जेएनयू वाले ही जान सकते हैं, जिनके लिए क्लासरूम की शिक्षा से ज्यादा हर धरनास्थल पर धरना देना नैतिक दायित्व बन चुका है।

हमें दीजिए गैर-हिंदू दर्जा, कम से कम ‘हिन्दू’ पहचान तो बचे: ‘मकड़जाल’ से बचने के लिए अय्यावली समुदाय की माँग

होली के ठीक पहले एक खबर आई, जो होली के उल्लास और चुनावी शोरगुल में दब गई। खबर थी – तमिलनाडु के अय्यावली संप्रदाय (Ayya Vazhi sect) द्वारा हिन्दू धर्म से अलग मान्यता की माँग उठाए जाने की। अय्यावली संप्रदाय ने जो कारण बताया है, वही खबर की जान है। माँग के पीछे का कारण है – तमिलनाडु का मंदिर प्रबंधन विभाग, हिन्दू रिलीजियस एण्ड चैरिटेबल एण्डॉमेंट डिपार्टमेंट (HR&CE department) के हाथों अपने संप्रदाय की परम्पराओं में छेड़-छाड़ की आशंका और उससे अपनी पहचान को बचाए रखने की कोशिश।

अपनी माँग को लेकर अय्यावली संप्रदाय के मुखिया बालप्रजापति आदिगालार साफ कहते हैं कि यह कदम उन्हें अपने संप्रदाय के विशिष्ट स्वरूप को सुरक्षित रखने के लिए उठाना पड़ रहा है। संप्रदाय के पवित्र स्थल स्वामीतोप में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “संप्रदाय के भक्त केवल आध्यात्मिक सेवाएँ और कर्मकाण्ड करते हैं जबकि HR&CE विभाग प्रशासनिक हस्तक्षेप करना चाहता था।”

राजनीतिक तौर पर यह संप्रदाय भाजपा का परंपरागत मतदाता रहा है और 2014 के आम चुनावों में इस संप्रदाय की बड़ी संख्या वाली कन्याकुमारी लोकसभा सीट से भाजपा विजयी हुई थी। अतः भाजपा के लिए इस माँग और इसके पीछे के कारण, को नकारना मुश्किल होगा। शायद इसीलिए आदिगालार भाजपा के समर्थन को लेकर आश्वस्त हैं- उनके अनुसार भाजपा के केन्द्रीय मंत्री और नेता पोन राधाकृष्णन ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वे संप्रदाय की विशिष्टता को बचाए रखने व HR&CE विभाग के हस्तक्षेप को दूर करने में पूरी मदद करेंगे।

हिन्दू-विरोधी रहा है HR&CE का इतिहास

HR&CE के नाम में भले ही हिन्दू हो, पर क्षेत्रीय नेताओं से लेकर राज्य के उच्च न्यायलय तक ने हिन्दुओं के मंदिरों और परम्पराओं को नुकसान पहुँचाने संबंधी टिप्पणी इस विभाग पर कर चुके हैं।

भाजपा नेता एच राजा ने यह मांग की थी कि HR&CE विभाग राज्य सरकार के हाथों में जा चुके मंदिरों के स्वामित्व की संपत्ति व चुराई गई मूर्तियों पर स्थिति स्पष्ट करे। नतीजन HR&CE विभाग के कर्मचारी संघ ने उन पर ही अपमानजनक टिप्पणी को लेकर एफआईआर कर दी। और तो और, कर्मचारी संघ के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष उदय कुमार ने चेतावनी दी थी कि एच राजा के खिलाफ तमिलनाडु के हर जिले में अलग-अलग मुकदमा किया जाएगा। उस समय भाजपा ने यह आरोप लगाया था कि यह राज्य में उसकी विपक्षी आवाज़ को दबाने की साजिश है।

बात सिर्फ एच राजा की नहीं है। चोरी की गई मूर्तियों की वापसी में लगे तमिलनाडु के पुलिस अफसर भी चोरियों की जाँच और मूर्तियों की बरामदगी में HR&CE विभाग द्वारा मुश्किलें पैदा करने की ओर इशारा कर चुके हैं। यहाँ तक कि मद्रास हाईकोर्ट ने मूर्तियों की चोरी रोक पाने में विभाग की लगातार नाकामी से तंग आकर यह पूछ दिया था कि अगर चोरियाँ बदस्तूर जारी हैं तो इस विभाग की आवश्यकता ही क्या है। इसी मामले में अदालत ने सीबीआई जाँच की भी चेतावनी दी थी।

इसके अलावा HR&CE विभाग पर यह आरोप भी है कि यह कानूनी रूप से वैध सीमा से अधिक धन की उगाही तमिलनाडु सरकार के नीचे आने वाले मंदिरों से करता है।

यही नहीं, ढाई वर्ष पूर्व 2016 में, श्रद्धालुओं ने नवीनीकरण के नाम पर मंदिरों के पवित्र हिस्सों को खण्डित करने का आरोप लगाया था।  इसके बाद भी अदालत को हस्तक्षेप कर यह निर्देश देना पड़ा था कि हिन्दुओं की आस्था के प्रतीकों के साथ तोड़-फोड़ न की जाए। निर्देश में यह भी कहा गया था कि कोई भी निर्माण, नवीनीकरण या मरम्मत यूनेस्को द्वारा इस विषय के लिए जारी दिशा-निर्देशों के अंतर्गत ही किए जाएँ।

पहले भी हो चुकी है हिन्दू धर्म से अलग होने की माँग

जो माँग आज अय्यावली संप्रदाय कर रहा है, वही माँग विभिन्न समयों पर अन्य समुदाय भी कर चुके हैं। पिछले साल कर्नाटक की सिद्दरमैया सरकार ने ऐसी ही एक माँग को मानकर कर्नाटक के लिंगायत और वीरशैव समुदायों को अलग पंथ/संप्रदाय की मान्यता दे दी थी। नतीजन कर्नाटक में 17% आबादी वाले इस समुदाय के 4 बड़े धर्मगुरुओं ने सार्वजनिक तौर पर सिद्दरमैया और कॉन्ग्रेस को समर्थन की सार्वजनिक घोषणा की थी। यह पिछले कई दशकों में ऐसी पहली घटना थी।

माना जाता है कि इसके पीछे भी सरकारी नौकरशाही का अपने संप्रदाय और परम्पराओं में अकारण हस्तक्षेप रोकना ही लिंगायतों की इस माँग और सिद्दरमैया को समर्थन का कारण था। इसके अलावा अपने घोषणापत्र में राज्य के सभी मंदिरों को सरकारी चंगुल से मुक्त कराने का दावा करने वाली येद्दुरप्पा-नीत भाजपा तब के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी।

यह जानकारी भी जरूरी है कि जब पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का शासन था तो उनके द्वारा समर्थित शिक्षक यूनियन के उपद्रव से बचने के लिए रामकृष्ण मिशन ने भी अहिंदू दर्जे में मान्यता पाने का प्रयास किया था। इसके पीछे भी उद्देश्य यही था – सरकार द्वारा केवल हिन्दू स्कूलों पर थोपे गए नियम-कानूनों से खुद को बचाना।

Pak: सुषमा की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद हिन्दू नाबालिग लड़कियों के जबरन धर्मान्तरण के मामले में 7 गिरफ़्तार

पाकिस्तान स्थित घोटकी में 2 नाबालिग हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्मान्तरण के मामले में पाकिस्तान में 7 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इसमें एक निक़ाह कराने वाला अधिकारी भी शामिल है। शनिवर (मार्च 23, 2019) को इस मामले के 2 अलग-अलग वीडियो के वायरल होने के बाद पाकिस्तान सरकार हरकत में आई। पाक सरकार पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की सक्रियता के करण भी दबाव बना हुआ था। बता दें कि भारतीय विदेश मंत्री ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए भारतीय उच्चायोग को इस मामले की रिपोर्ट सौंपने को कहा था। इसके बाद बौखलाए पाकिस्तानी मंत्री फवाद चौधरी ने सुषमा के इस काम पर आपत्ति जताई थी। सुषमा स्वराज ने पाकिस्तानी मंत्री को कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए यह जता दिया था कि हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए भारत प्रतिबद्ध है।

वायरल हुई वीडियो में देखा जा सकता है कि लड़कियों के भाई एवं पिता नाबालिग लड़कियों के जबरन इस्लामिक धर्मान्तरण की बात कह रहे हैं। वहीं, एक मौलवी ने मामले को रफा-दफा करने के लिए कहा कि लड़कियों ने इस्लाम से ‘प्रेरित’ होकर स्वेच्छा से उसे अपनाया। 20 मार्च को लड़कियों के परिवार वालों ने इस मामले की एफआईआर भी दर्ज कराइ थी। पाकिस्तानी न्यूज़ पोर्टल डॉन में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, पाकिस्तानी पुलिस अधिकारियों ने भी नाबालिग हिन्दू लड़कियों के घर का दौरा किया। उनकी बरामदगी के लिए सिंध के मुख्यमंत्री ने अपने पंजाबी समकक्ष से बातचीत भी की है।

दो लड़कियों के जबरन धर्मान्तरण पर Pak मंत्री ने की सुषमा को ट्रोल करने की कोशिश, हुए बेइज्जत

लेकिन, स्थानीय मेघवाल समुदाय के नेता शिव लाल ने पाकिस्तान सरकार व अधिकारियों द्वारा कही गई बातों को बस ज़बानी जमा-ख़र्च बताया। उन्होंने कहा कि अगर लड़कियों ने इस्लाम अपनाया है तो उन्हें अदालत के समक्ष क्यों नहीं पेश किया जा रहा? उन्होंने कहा कि दोनों ही लड़कियों की उम्र 18 वर्ष से कम है, अतः उनके जबरन धर्मान्तरण और शादी का मामला न्यायालय में जाएगा। स्थानीय दाहरकी पुलिस थाने के आगे नाराज़ मेघवाल समुदाय के लोगों ने धरना प्रदर्शन भी किया। अपने हाथ में बैनर लिए इन लोगों की नाराज़गी इस बात को लेकर थी कि 7 दिन बीत जाने के बावजूद उन लड़कियों को बरामद नहीं किया जा सका है।

प्रदर्शन के दौरान पीड़ित नाबालिग हिन्दू लड़कियों के पिता ने ख़ुद के शरीर पर पेट्रोल छिड़क कर आत्मदाह की कोशिश की लेकिन स्थानीय लोगों ने किसी तरह से उन्हें बचा लिया। ज्ञात हो कि होली की पूर्व संध्या पर दो किशोर हिंदू लड़कियों, 13 वर्षीय रवीना और 15 वर्षीय रीना का अपहरण करके उन्हें पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अपने उम्र से बहुत बड़े पुरुषों से जबरन शादी करने के लिए मजबूर किया गया। हिन्दू किशोरियों पर हुए इस अत्याचार ने पूरे विश्व में लोगों को पाकिस्तान में हिन्दुओं के हालात पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया।

‘मेरी दोनों बेटियों का धर्बमांतरण कर दिया, अब मुझे गोली मार दो’

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के हिन्दू सांसद रमेश कुमार वंकवानी ने कहा कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ तैयार किए गए विधेयक को प्राथमिकता के आधार पर असेंबली में पेश एवं पारित कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “धर्म के नाम पर नफरत की शिक्षा देने वाले सभी लोगों से प्रतिबंधित धार्मिक संगठनों की तरह निपटा जाना चाहिए।

लड़कियों के पिता का दिल दहला देने वाला वीडियो अब वायरल हुआ है। इसमें वो बेबस होकर दहाड़े मारकर रो रहे हैं और पुलिस के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराने और दोषियों पर कार्रवाई करने का अनुरोध कर रहे हैं। इनकी दोनों बेटियों का अपहरण कर लिया गया है और उनका धर्मांतरण कर निकाह करा दिया गया। सुषमा स्वराज के ट्वीट के बाद पाकिस्तान के मंत्री फवाद चौधरी ने उन्हें ट्रोल करने की कोशिश की। लेकिन, वो ख़ुद ही अपनी बेइज्जती करा बैठे।

योगी सरकार ने 7 शिक्षकों को किया निलंबित, पुलवामा पर की थी अभद्र टिप्पणी

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए 7 शिक्षकों को उनके पद से निलंबित कर दिया है। उक्त शिक्षकों का निलंबन पुलवामा हमले को लेकर उनके द्वारा की गई अभद्र टिप्पणियों के कारण किया गया। इनमें से किसी ने पुलवामा हमले को जायज ठहराया था, किसी ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की निंदा की थी तो किसी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की प्रशंसा की थी। फेसबुक, व्हाट्सएप्प और अन्य सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए ऐसा करने वाले लोगों से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार सख़्ती से निपट रही है। इतना ही नहीं, ऐसी करतूतों के लिए एक बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) को भी निलंबित कर दिया गया। बीएसए ग्रुप A शिक्षा अधिकारी होता है।

पढ़ें:धनबाद के शाहनवाज ने पुलवामा के बलिदानियों का उड़ाया मज़ाक, गिरफ़्तार

2 निलंबन चुनाव की घोषणाओं के बाद लागू हुई आदर्श आचार संहिता के तहत किए गए। इतना ही नहीं, एक प्राइवेट शिक्षक पर भी ऐसी करतूतों के लिए एफआईआर दर्ज की गई है। द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, यूपी के मुख्य शिक्षा सचिव प्रभात कुमार ने कहा कि बीएसए को निलंबित करने से पहले पूरी प्रक्रिया के तहत जाँच की गई। वहीं, शिक्षकों के निलंबन वाली कार्रवाई जिला प्रशासनों ने अपने स्तर से तय की।

एक खबर यह भी:एयर स्ट्राइक से ख़फ़ा ‘इस्लामिक स्कॉलर’ ने शेयर की मोदी की एडिट की हुई भद्दी तस्वीरें, गिरफ़्तार

आइए आगे जानते हैं कि किन लोगों को निलंबित किया गया और उन्होंने क्या किया था?

दिनेश यादव, BSA, मुज़फ़्फ़रनगर

इन्होंने पुलवामा हमले के पीछे आंतरिक साज़िश की बात कही थी। एक व्हाट्सप्प ग्रुप में इन्होंने पुलवामा हमले पर निंदनीय सवाल खड़ा किया था। निलंबन के बाद बीएसए ने कहा कि वह बस अपने एक दोस्त से चैट कर रहे थे। उन्होंने उच्चाधिकारियों को अपना उत्तर भेज दिया है।

सुरेंद्र कुमार, प्राथमिक विद्यालय प्राध्यापक, बाराबंकी

इन्होंने भी पुलवामा हमले को लेकर अलूल-जलूल बातें कहीं। शिक्षकों के व्हाट्सप्प ग्रुप में उनके द्वारा फैलाई जा रही चीजों को सर्विस रूल के विरुद्ध माना गया।

अमरेंद्र कुमार, प्राथमिक विद्यालय असिस्टेंट शिक्षक, सुल्तानपुर

इन्होंने शिक्षकों के व्हाट्सप्प ग्रुप में खुलेआम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की प्रशंसा की। इतना ही नहीं, इन्होंने इमरान ख़ान को शांति का मसीहा भी बताया। इन्हें सर्विस रूल के उल्लंघन के मामले में निलंबित किया गया।

रविंद्र कनोजिया, प्राथमिक विद्यालय असिस्टेंट शिक्षक, रायबरेली

भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तान स्थित आतंकी कैम्पों पर की गई एयर स्ट्राइक के बाद रविंद्र ने ‘जीत की प्रकृति’ पर सवाल उठाए थे। इसके लिए इन्होंने भारतीय विंग कमांडर अभिनन्दन को पाकिस्तान द्वारा बंधक बना लिए जाने का हवाला दिया था। सस्पेंशन ऑर्डर के अनुसार, इन्होंने सरकार और सेना के पराक्रम के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की। साथ ही समाज में तनाव पैदा करने वाला कार्य किया। कनोजिया ने सफाई देते हुए कहा है कि उनके मोबाइल फोन से किसी और ने ये हरकत कर दी होगी।

रवि शंकर यादव, प्राथमिक विद्यालय प्राध्यापक, मिर्ज़ापुर

रवि ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की। सर्विस रूल के उल्लंघन के ममले में इन्हें 22 फरवरी को निलंबित किया गया।

नंदजी यादव, प्राथमिक विद्यालय असिस्टेंट शिक्षक, आजमगढ़

नंदजी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की। पूछने पर यादव ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।

सत्य प्रकाश वर्मा, प्राथमिक विद्यालय असिस्टेंट शिक्षक,श्रा वस्ती

जब 6 महीने के गैप के बाद इनका वेतन रिलीज किया गया, तब इन्होंने लिखा था, “कोई बहुत बड़ा तीर नहीं मार लिया”। इन्हें भेजे गए नोटिस में पूछा गया है कि इनके ख़िलाफ़ क्यों न आईटी एक्ट के तहत नोटिस जारी किया जाए? वर्मा ने कहा कि 6 महीने तक वेतन न मिलने से वह दबाव में थे, इसीलिए उन्होंने ऐसा लिखा।

निरंकार शुक्ल, प्राथमिक विद्यालय प्राध्यापक, रायबरेली

निरंकार 16 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने के कारण निलंबित किए गए। इन्होंने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया। इन्होंने कहा कि निलंबन से पहले इनके पक्ष को नहीं सुना गया।

राजेश शुक्ला, प्राथमिक विद्यालय असिस्टेंट शिक्षक, रायबरेली

राजेश बीमा कम्पनी एलआईसी पर बढ़ रहे कथित दबाव व रघुराम राजन द्वारा रिज़र्व बैंक के गवर्नर का पद छोड़ने का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ फेसबुक पर विवादित पोस्ट लिखा। जिलाधिकारी नेहा शर्मा के अनुसार, इन्हें आदर्श आचार संहिता के तहत राजनीतिक कमेंट के लिए निलंबित किया गया। शुक्ल ने पूछा कि जो सरकार के पक्ष में कमेंट करते हैं, उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ कोई कमेंट नहीं करने का दावा किया।

दिलीप सिंह यादव, प्राइवेट अन्तर कॉलेज, शाहजहाँपुर

इन्होंने राजनेताओं व जानवरों को माननीय बताते हुए उनका मज़ाक तो उड़ाया ही, साथ में इन्होंने जाति, धर्म, संप्रदाय वाली सौहार्द्रता के विरुद्ध कमेंट किया। इसके ख़िलाफ़ एफआईआर करने का निर्देश जारी किया गया है।

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किसने और क्यों शास्त्री जी के चेहरे पर चन्दन मल दिया था? पढ़िए उनके नाती संजय नाथ की जुबानी

मेरे नानाजी लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु की ख़बर जब आई, तब मैं सिर्फ़ 9 वर्ष का था। घर में जब पहला फोन कॉल आया, तब भी मैं उसका गवाह बना था और जो आख़िरी फोन कॉल आया, तब भी मैं वहाँ उपस्थित था। जब घर में उनकी मृत्यु का समाचार आया तब मेरे सबसे बड़े वाले मामा ‘मार डाला, मार डाला तुम लोगों ने’ बोलते हुए बदहवास हो उठे। ये इतना ज्यादा शॉकिंग न्यूज़ था कि मैं रो भी नहीं पाया। उनके पार्थिव शरीर को देख कर भी मुझे रोना नहीं आया। जब भी किसी और की मृत्यु होती, मैं हमेशा सोचा करता था कि मेरे परिवार में कोई नहीं मरेगा। ये बचपन का एक विश्वास था। उनके छोड़ जाने के बाद से उन्हें हमेशा मैंने मिस किया और मेरे मन में उनके लिए कुछ करने का ख्याल आता रहा।

जब मैं विवेक अग्निहोत्री से मिला, तो मुझे लगा कि ये आदमी कर सकता है। मैं हमेशा से सच्चाई चाहता था (नानाजी की मृत्यु की) और इस चक्कर में मैंने कई रिकॉर्ड्स, डॉक्यूमेंट्स, साहित्य और काग़ज़ात खंगाल डाले। मैंने कई लोगों से कई तरह की बातें सुनीं और जानी। मैं आज के युवा पत्रकारों व छात्रों को कहना चाहता हूँ कि आप भी सच्चाई की ख़ोज कीजिए, सच को बाहर निकालना ज़रूरी है।

‘मेरे पिता लाल बहादुर शास्त्री की तरह मोदी ने भी भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा उठाया’

नानाजी लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद संसद में भी इस पर सवाल उठे। प्रोफेसर त्रिभुवन नारायण सिंह ने संसद में शास्त्री जी की मृत्यु की प्रवृत्ति पर सवाल उठाए। वह शास्त्री जी के बचपन के मित्र थे। उनके साथ राज नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉक्टर कुंजरू, कामत साहब और लालकृष्ण अडवाणी जैसे लोगों ने सवाल उठाए। उस समय दिल्ली कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे जगदीश संसद में नहीं थे लेकिन उन्होंने भी इसे लेकर आवाज़ उठाई। इन सभी लोगों के सवालों के ऊपर तब मंत्रीगण ने झूठ बोला था।

चाहे उस समय विदेश मंत्री रहे सरदार स्वर्ण सिंह हों या रक्षा मंत्री चौहान, इन सभी ने मिलकर झूठ बोला कि शास्त्री जी के कमरे में 3 टेलीफोन थे। उनके कमरे में एक बजर भी था। एक फोन ऐसा था, जिसे उठाते ही उनके सभी स्टाफ के पास कॉल चला जाता। इसी तरह एक फोन इंटरनल कॉल्स के लिए और एक अंतरराष्ट्रीय कॉल्स के लिए था। मैं अब आपको फैक्ट बताता हूँ। मैं रूस से आए निमंत्रण के बाद अपनी नानी के साथ ताशकंद गया, जब मैं उनके कमरे में गया (जहाँ शास्त्रीजी की मृत्यु हुई थी) तो मुझे पता चला कि उनके कमरे में एक घंटी तक नहीं थी।

इसके बाद बयान बदलते हुए सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा था कि उनके कमरे में चार से पाँच मीटर दूर दूसरे कमरे में फोन था। सरकार ने भी बाद में कहा कि उनके कमरे में फोन नहीं था लेकिन उनके कमरे से लगे दूसरे कमरे में था। अब मैं आपको बचपन की बात बताता हूँ। मैं आपको वही बताने जा रहा हूँ, जो एक बच्चे ने देखा था। जैसा कि सरकार ने दावा किया था, फोन उनसे 4-5 मीटर दूर कमरे में नहीं था बल्कि उनके कमरे से 4-5 कमरा हटके था। सरकार और मंत्रियों ने सफ़ेद झूठ क्यों बोला? मंत्रियों को वो समझ में नहीं आया जो एक बच्चे की समझ में आ गया!

देश को बेचने वाले वामपंथियों को जरूर देखनी चाहिए ‘द ताशकंद फाइल्स’: ऑपइंडिया से बोले विवेक अग्निहोत्री

4 अक्टूबर 1970 का दिन था। जो लोग नहीं जानते हैं, उन्हें बता दें कि उस समय धर्मयुग नामक एक पत्रिका छपा करती थी। यह एक राष्ट्रीय पत्रिका थी। पत्रिका के इस अंक में दिवंगत लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी और मेरी नानी ललिता शास्त्री का साक्षात्कार छपा था। वो भी इस बात से परेशान हो गईं थीं कि उनके पति की मृत्यु के कारणों को कवर-अप किया जा रहा है। उन्होंने इंटरव्यू में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए थे। उस इंटरव्यू में काफ़ी महत्वपूर्ण पॉइंट्स थे, लेकिन मैं आपको सबसे महत्वपूर्ण बात से अवगत कराता हूँ।

जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर आया, तब उनके बेटे हरि शास्त्री को हुतात्मा के पार्थिव शरीर के नज़दीक नहीं जाने दिया जा रहा था। यहाँ तक कि मेरी नानी को भी उनके पति के पार्थिव शरीर के नज़दीक नहीं जाने दिया जा रहा था। बहुत ज़िद करने के बाद परिवार के लोग पार्थिव शरीर के पास जा सके। जब लोगों ने बात उठानी शुरू की तो न जाने कहाँ से एक व्यक्ति आया और उसने शास्त्रीजी के चेहरे पर चन्दन पोत दिया। उनके चेहरे पर अजीब तरह के नीले और काले निशान बन गए थे। उनके पीछे से ख़ून निकला हुआ था, उनके नाक से भी ख़ून निकला हुआ था।

दूसरा फैक्ट यह है कि सरकार ने पोस्टमॉर्टम कराने से मना कर दिया। उन्होंने पोस्टमॉर्टम होने ही नहीं दिया। इसके बाद ‘अंतररष्ट्रीय सम्बन्ध ख़राब होंगे’ जैसी बातें कह कर किनारा कर लिया गया। मैं पूछता हूँ कि क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री की संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो जाती है और उनके मृत शरीर का पोस्टमॉर्टम नहीं होता है, क्यों? इसके बाद ये मामला संसद में फिर उठा। धर्मयुग में ललिता शास्त्री के इंटरव्यू ने सोवियत यूनियन के साथ-साथ भारत सरकार में भी हड़कंप मचा दिया था। सोवियत ने भारत को पत्र लिख कर शास्त्री जी की मृत्यु की जाँच के लिए कमिटी बनाने जैसी माँगों के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराया था।

अंततः भारत सरकार ने कोई जाँच कमिटी नहीं बिठाई। ये सारी चीजें यह साबित करती हैं कि दाल में कुछ काला था। इसमें कोई शक़ ही नहीं है। तभी से मेरे मन में ये बात थी कि कोई न कोई आएगा, जो इस बात को उठाने की ताक़त रखता हो। विवेक अग्निहोत्री ने इस कार्य का बीड़ा उठाया है। वह पिछले ढाई वर्षों से रिसर्च में लगे हुए हैं। मैं उन्हें इसके लिए बधाई देता हूँ। सच्चाई सामने आएगी। मैं पत्रकारों से भी निवेदन करना चाहता हूँ, आप चुप मत बैठिए। सच्चाई की ख़ोज में निकलिए, सच्चाई को बहार लाने का प्रयास कीजिए।

(यह लेख पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती संजय नाथ सिंह द्वारा ‘द ताशकंद फाइल्स’ के ट्रेलर लॉन्च के दौरान कही गई बातों के आधार पर तैयार किया गया है।)

BJP ज्वॉइन करने पर सपा सांसद ने बहनोई से तोड़ा रिश्ता, प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जताया दुःख

ज्यों-ज्यों चुनाव की तारीख़ नज़दीक आ रही है, सियासी रंग भी बदलते दिखाई दे रहे हैं। चुनावी मौसम में दल-बदल का दौर लगातार जारी है। अब इसका असर आपसी रिश्तों पर भी देखने को मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के एक सांसद ने अपने बहनोई से इसलिए रिश्ता तोड़ दिया, क्योंकि उन्होंने भाजपा ज्वॉइन कर ली। सपा सांसद ने इस बात की जानकारी प्रेस विज्ञप्ति जारी करके दी।

दरअसल, उत्तर प्रदेश के बदायूं से सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के बहनोई अनुजेश प्रताप सिंह यादव ने रविवार (24 मार्च 2019) को भाजपा ज्वॉइन कर ली। बता दें कि अनुजेश मैनपुरी ज़िला पंचायत संध्या उर्फ़ बेबी यादव के पति हैं। बेबी यादव, धर्मेंद्र यादव की बहन है। धर्मेंद्र को जैसे ही अनुजेश के भाजपा ज्वॉइन करने की बात पता चली, उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए उनसे सारे रिश्ते तोड़ दिए।

धर्मेंद्र यादव द्वारा जारी किए गए विज्ञप्ति में लिखा, “मीडिया के माध्यम से मुझे पता चला कि अनुजेश प्रताप सिंह, निवासी-भारौल, जनपद फिरोजाबाद ने 24-03-2019 को भाजपा में शामिल हो गए हैं। मीडिया ने उन्हें मेरे बहनोई के रूप में प्रस्तुत कर सुर्खियाँ बनाई हैं। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भाजपा के किसी भी नेता से मेरा कभी भी कोई संबंध नहीं हो सकता। अत: अनुजेश प्रताप सिंह से भी मेरा अब कोई संबंध नहीं है। मेरा मीडिया के साथियों से निवेदन है कि भविष्य में उन्हें कभी भी मेरे रिश्तेदार के तौर पर प्रस्तुत न करें।”

सपा सांसद धर्मेंद्र यादव द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति

सपा सांसद के की तरफ से रिश्ता तोड़े जाने की बात पर अनुजेश प्रताप ने कहा, “अब वह नहीं मान रहे हैं, तो नहीं हैं बहनोई। क्या किया जा सकता है? वह सांसद हैं, मैं उनके लिए कुछ नहीं कहूँगा। नवल किशोर की पत्नी सांसद जी के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं, उन्होंने अपनी पत्नी छोड़ दी है क्या?”

बता दें कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के दामाद और फिरोजाबाद से जिला पंचायत अध्यक्ष अनुजेश यादव रविवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा ज्वॉइन कर ली। जिसकी वजह से कहीं न कहीं सपा को बीजेपी की तरफ से झटका लगा है। गौरतलब है कि अनुजेश को 2017 में पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से निष्कासित कर दिया गया था।


पटना: पकड़े गए दो संदिग्ध बांग्लादेशी, पुलवामा हमले से जुड़े काग़ज़ात बरामद

बिहार पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स को बड़ी कामयाबी मिली है। बता दें कि पटना पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स की टीम ने गुप्त सूचना के आधार पर पटना रेलवे स्टेशन के पास घूम रहे दो बांग्लादेशी नागरिकों को संदिग्ध अवस्था में गिरफ्तार किया है। दोनों के पास से कई संदिग्ध कागजात बरामद हुए हैं। पुलिस के मुताबिक पकड़े गए दोनों शख्स बांग्लादेश के प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जमीयत-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश और इस्लामिक स्टेट बांग्लादेश के सक्रिय सदस्य हैं।

जानकारी के मुताबिक, पुलिस को उनके पास से जम्मू के पुलवामा की घटना से जुड़े कुछ कागजात मिले हैं। दोनों के पास से पुलिस की टीम को अर्धसैनिक बलों की प्रतिनियुक्ति संबंधी रिपोर्ट की कॉपी भी मिली है। पुलिस ने इस कार्रवाई में दोनों के पास से आईएसआईएस और अन्य आतंकवादी संगठनों के पोस्टर और पैंपलेट की फोटोकॉपी भी जब्त की है। गिरफ्तार अभियुक्तों के नाम खैरुल मंडल और अबु सुल्तान बताया जा रहा है। फिलहाल पुलिस दोनों को गुप्त स्थान पर ले जाकर पूछताछ कर रही है।

पुलिस के मुताबिक, ये दोनों बिना किसी पासपोर्ट वीजा या वैध दस्तावेज के अवैध रूप से बांग्लादेश सीमा पार कर भारत में प्रवेश कर गए और दोनों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए फ़र्ज़ी भारतीय मतदाता पत्र बनवाकर उसका इस्तेमाल कर रहे थे। दोनों देश के विभिन्न शहरों में अपने आतंकी संगठन में जुड़ने के लिए युवकों की तलाश कर रहे थे। इसके साथ ही वो बौद्ध धार्मिक स्थलों पर आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए रेकी भी कर रहे थे। दोनों युवक पिछले 11 दिनों से गया शहर में रह रहे थे और ये सीरिया जाकर आतंकी संगठन आईएसआईएस के साथ मिलकर जेहाद में शामिल होना चाहते थे।

गौरतलब है कि 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी प्रतिबंधित संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। भारतीय वायु सेना ने इस आतंकी हमले जवाब पाकिस्तान के बालाकोट पर एयर स्ट्राइक करके दिया था। बता दें कि बीते 2 मार्च को भी बिहार में पुलिस ने एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार संदिग्ध के पुलवामा हमले की साजिश से जुड़े होने की बात सामने आने के बाद पुलिस ने उससे पूछताछ की थी।