Sunday, September 29, 2024
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धर्म नहीं, क्रिकेट का झगड़ा था गुरुग्राम में हुए हमले का कारण – पुलिस ने कर दिया कंफर्म

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक भीड़ ने मुस्लिम परिवार के घर में घुसकर लाठियों से खूब मारपीट की। सोशल मीडिया पर इस हमले को तुरंत साम्प्रदायिक करार दे दिया गया, क्योंकि वीडियो में पीड़ित दुसरे समुदाय से था और हमलावरों की पहचान हिंदुओं के रूप में की गई। इस घटना के बाद राहुल गाँधी और कुछ अन्य लोगों ने बिना हक़ीकत का पता लगाए भाजपा और आरएसएस पर निशाना साधा। ऐसे लोगों ने जानने की भी कोशिश नहीं कि क्या वाकई ये हमला आरएसएस और भाजपा की विचारधारा से प्रेरित था?

दरअसल, यह हमला किसी साम्प्रदायिक घृणा का नतीज़ा नहीं था बल्कि क्रिकेट पर हुई लड़ाई इसका कारण थी। ऑपइंडिया ने जब गुरुग्राम की पुलिस से इसके बारे में बात की तो यह तथ्य सामने निकलकर आए। गुरुग्राम पुलिस द्वारा दिए बयान में यह साफ़ हुआ कि इस पूरी घटना का साम्प्रदायिकता से कोई वास्ता नहींं था।

सुभाष बोकन (पुलिस) ने बताया कि यह झगड़ा क्रिकेट के कारण शुरू हुआ था, जिसमें एक बच्चे को गेंद लग गई। और इसी बात पर उनका झगड़ा हो गया। क्रिकेट खेल रहे लड़को ने अपने दोस्तों को बुला लिया। जब उन्हें एहसास हुआ कि वे (पीड़ित परिवार) संख्या में कम हैं, तो वे घर में भाग गए। फिर, लड़को की यह पूरी भीड़ पीड़ित परिवार घर में घुसी और सबके साथ मारपीट की। पुलिस ने बताया कि यह कोई साम्प्रदायिक मामला नहीं है। यहाँ तक कि पीड़ित परिवार का भी कहना था कि यह सांप्रदायिकता नहीं है, वे लंबे समय से इस क्षेत्र में रह रहे हैं।

अब इसके बाद जब यह सुनिश्चित हो गया कि यह मामला घृणा से संबंधित अपराध का न होकर क्रिकेट पर हुई एक लड़ाई का है, तो कुछ मीडिया हाउस इस घटना को साम्प्रदायिक विवाद बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी मीडिया रिपोर्टों का दावा है कि पीड़ित पक्ष को हमलावरों की ओर से ‘पाकिस्तान जाओ’ जैसी बातें कही गई। लेकिन जब सुभाष बोकन (पुलिस) से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पीड़ित पक्ष की ओर से ऐसी कोई शिक़ायत नहीं दर्ज कराई गई।

इसके अलावा पीड़ितों ने एबीपी न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में अपनी आपबीती भी सुनाई, और उस इंटरव्यू में भी उन्होंने कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि हमलावरों ने उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा। अब इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मीडिया के एक वर्ग द्वारा ख़बर को ऐसा एंगल सिर्फ़ सनसनीखेज़ बनाने के लिए जोड़ा गया था, जबकि वास्तव में हमलावरों ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था।

इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि पूरे मामले में जिस एंगल के साथ आरएसएस और भाजपा को टारगेट किया जा रहा था, वो पूर्ण रूप से निराधार था। इस घटना को बिना आपराधिक प्रवृति का बताए, कुछ तथाकथित सेकुलरों द्वारा सांप्रदायिक एंगल देकर केवल इसलिए पेश किया गया, ताकि समुदाय विशेष को पीड़ित के रूप में चित्रित किया जा सके।

अल-क़ायदा और IS कर सकते हैं हमला, गोवा समेत दिल्ली, मुंबई में अलर्ट जारी

भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने गोवा, मुंबई और दिल्ली में अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट (IS) द्वारा आतंकी हमला होने की संभावना जताई है। इस संभावना के चलते स्थानीय पुलिस प्रशासन को अलर्ट भी जारी कर दिया गया। गोवा पुलिस ने कहा कि राज्य में इज़रायली पर्यटकों पर इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा ‘संभावित बदले’ के रूप में हमला किया जा सकता है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें इज़रायल के पर्यटकों के अलावा उत्तरी गोवा में एक प्रार्थना घर को भी सुरक्षित रखना होगा। यह आतंकी हमला इस्लामिक स्टेट या अल-क़ायदा द्वारा न्यूज़ीलैंड की मस्जिद में हुई हत्याओं का बदला लेने के लिए किया जा सकता है।

ख़बर के अनुसार, वर्तमान में कई दर्जन इज़रायली यहूदी गोवा में लंबे समय तक वीजा पर हैं और वे अक्सर उत्तरी गोवा के छाबड़ हाउस में प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते हैं।

कथित तौर पर अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी अलर्ट जारी किया गया है, जिसमें यहूदी आराधनालयों समेत वो जगह भी शामिल हैं जहाँ इज़रायली पर्यटक निवास करते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, चाकू को भी एक हथियार के तौर पर हमले के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुंबई में इज़रायली दूतावास, महावाणिज्यिक दूतावास के अलावा छाबड़ हाऊस की सुरक्षा और निगरानी तत्काल प्रभाव से बढ़ाई जाए।

हाल के दिनों में, इस्लामी आतंकवादी समूहों से जुड़े आतंकवादियों ने लोगों को मारने के लिए वाहनों का उपयोग किया गया। पुलवामा आतंकी हमले में भी, आत्मघाती बम विस्फोट के लिए एक वाहन का ही इस्तेमाल किया गया था। यूरोप में, पैदल यात्रियों के ऊपर आतंकवादियों ने ट्रक चढ़ा दिए।

बता दें कि शुक्रवार (15 मार्च) की सुबह न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर के अल नूर मस्जिद में गोलीबारी हुई थी जिसमें कई लोगों के हताहत होने की ख़बर थी। इस घटना के बारे में न्यूज़ीलैंड पुलिस ने अपने बयान में क्राइस्टचर्च में गंभीर स्थिति पैदा होने की स्थिति को स्वीकारा था हमले से बिगड़ते हालात में शहर के सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया था और भीड़भाड़ वाले इलाक़े से बचने की सलाह दी गई थी। इस आतंकी हमले में कम से कम 49 लोग मारे गए थे।

धोनी ने बेटी जीवा से 6 भाषाओं में किए सवाल, जीवा ने दिए सटीक जवाब, वीडियो वायरल

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का रोमांचक आग़ाज़ हो चुका है। एम एस धोनी के नेतृत्व वाली टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के हौसले बुलंद हैं। सीएसके ने IPL-12 के पहले मुकाबले में विराट कोहली के नेतृत्‍व वाली रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर को सात विकेट से मात देकर अपने अभियान की विजयी शुरुआत की।

बता दें कि IPL में बिजी शेड्यूल के बावजूद धोनी अपनी फैमिली के साथ भी क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं। धोनी ने अपने आधिकारिक इंस्‍टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वो अपनी बेटी जीवा के साथ 6 भाषाओं में बातें करते नज़र आ रहे हैं। पापा धोनी ने बंगाली, गुजराती, तमिल, उर्दू, भोजपुरी समेत 6 भाषाओं में जीवा से पूछा कि “हाउ आर यू?” जीवा ने सभी भाषाओं में इसका सही सही और बेहद प्यारे अंदाज़ में जवाब दिया। खास बात यह है कि धोनी ने जीवा से जिस भाषा में सवाल पूछा, जीवा ने उसी भाषा में जवाब दिया। धोनी ने जीवा के जवाब को सुनकर ताली बजाकर उसका उत्साहवर्धन किया। धोनी के द्वारा शेयर किया गया वीडियो वायरल हो गया है। लोग वीडियो को लोग खूब पसंद कर रहे हैं।

हालाँकि धोनी सोशल मीडिया पर कम ही नज़र आते हैं, लेकिन जब भी वो कुछ पोस्ट करते हैं, तो उसमें उनकी बेटी जीवा जरूर होती है। हाल ही में जीवा का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वो एक रेस्‍टोरेंट में कॉकटेल का मज़ा लेते हुए दिख रही थीं। उन्‍होंने कुछ मेहमानों को अपनी कॉकटेल भी ऑफर की।

कॉन्ग्रेस के लिए देश है प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी: ‘मालिक’ चाहेगा तो ‘मैनेजर’ हट जाएगा, संतान आ जाएगी

इन दिनों क्योंकि चुनावी सीजन चल रहा है, और राजनीति में मेरी मामूली सी दिलचस्पी भी है, तो अक्सर लेखन में राजनीति या राजनीति के किसी प्रसंग का पुट आ ही जाता है। और ऐसा ही एक प्रसंग मुझे फिलहाल याद आ रहा है, जिसे मैं कॉन्ग्रेसियों को समर्पित करना चाहूँगा।

2006-07 की बात है। मैं दिल्ली में कॉन्ग्रेस के एक सीनियर नेता का पी.ए. हुआ करता था। उनकी सीनियरटी का अंदाज इससे लगा लीजिए कि वे इंदिरा गाँधी की कैबिनेट में भी कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे। एक बार वह बीमार पड़ गए, और कुछ दिनों के लिए उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। उनकी गैर मौजूदगी में अक्सर उनके दामाद उनके चैम्बर में बैठने आया करते थे। उनको ‘भला’ तो नहीं कहूँगा पर लगभग ‘सज्जन’ ही थे।

एक बार वे साहब के चैम्बर में बैठे हुए थे, और उन्होंने मुझे बजर देकर बुलाया। मैं जब उनके पास पहुँचा तो वे फोन पर किसी से बात करते हुए कह रहे थे, “अभी तो हम हॉस्पिटल में एडमिट हैं।” बात खत्म होने के बाद उन्होंने कुछ काम बताया और मैं बाहर आ गया। लेकिन उनके यह शब्द मेरे दिमाग में खटक रहे थे कि यह तो भले चंगे हैं, ये कहाँ एडमिट हैं, तो क्यों कह रहे हैं कि एडमिट हैं?

फितरतन जरूरी चीजों में बेशक दिमाग काम नहीं करता है, लेकिन ऐसी मिस्ट्री सुलझाने में दिमाग एकदम फ्रंट-फुट पर खेलने लगता है। और मैं बाद में, तमाम चिन्तन के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इसके दो मायने हैं- एक पर्सनल है, और दूसरा कॉन्ग्रेसी कल्चर का हिस्सा।

जैसे साहब के दामाद के कथन से यह अभिप्राय था कि उनका अपना कोई वजूद नहीं है, वे जो कुछ भी हैं साहब की वजह से हैं, जो कि सच भी था। और इसलिए अगर ‘साहब’ को बुखार है तो वे भी ‘क्रोसिन’ खाना शुरू कर देते हैं, साहब को अगर मलेरिया है तो वे भी अपना ब्लड टेस्ट करवा लेते हैं, साहब अगर खुश हैं तो वे नाचने लगते हैं, साहब अगर दुखी हैं तो वे रुदाली बन जाते हैं। क्योंकि उनका अपना कुछ भी नहीं है, वे जो कुछ भी हैं साहब की वजह से हैं।

यही हाल हूबहू कॉन्ग्रेसियों का है। उनका अपना कुछ भी नहीं है। वे जो कुछ भी हैं नेहरू-गाँधी परिवार की वजह से हैं और इसलिए वे जो कुछ भी करते हैं, वह इस परिवार विशेष को ही समर्पित होता है।

आपको याद होगा कि 2014 के चुनावों में, मोदी जी के पीएम पद का प्रत्याशी घोषित होने के बाद भी, मीडिया और विपक्ष के कई नेता इस अफवाह को हवा देते थे कि भाजपा के कुछ सीनियर नेता, मसलन आडवाणी, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार, वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी इत्यादि, ‘मिशन 180’ पर काम कर रहे हैं- ताकि भाजपा 200 सीटों के भीतर सिमट जाए और मोदी की बजाय उनमें से ही कोई एक पीएम बन जाए। यह थ्योरी कुछ लोग अभी भी चला रहे हैं।

एकबारगी इस थ्योरी और अफवाह पर यकीन भी कर लिया जाए तो हमें भाजपा की इस बात के लिए दाद तो देनी पड़ेगी कि यहाँ कोई भी छोटा-बड़ा, साधारण और विशिष्ट नेता पीएम बनने की सोच सकता है।

पर क्या कॉन्ग्रेस में ऐसा मुमकिन हो सकता है? क्या कॉन्ग्रेस में किसी की मजाल है कि वे वह अपने माई-बाप यानि दस जनपथ परिवार की मर्जी के बिना एक पार्षद बनने तक का ख्वाब देख सके? ऐसा नहीं है कि सारी योग्यता और टैलेंट बीजेपी के ही नेताओं में है; मैं मानता हूँ कि कॉन्ग्रेस में भी योग्य नेताओं की कमी नहीं है।

लेकिन उनकी तमाम योग्यता तब धरी रह जाती है, जब वे किसी मजबूरी, स्वार्थ, अथवा सस्ती चालाकी के चक्कर में गाँधी परिवार की गुलामी का वरण कर लेते हैं और इसे सहर्ष स्वीकार भी करते हैं- जैसा कि आज राजस्थान के सीएम ने अपने बयान में कहा है कि कॉन्ग्रेस के लिए गाँधी परिवार का नेतृत्व इसलिए जरूरी है कि इसकी वजह से पार्टी में एका है। अगर कॉन्ग्रेसियों के सिर से गाँधी परिवार का ‘हाथ’ हट जाए तो यहाँ भगदड़ मच जाएगी।

जैसा कि नरसिंह राव के दौर में हुआ था। जब राजीव गांधी रहे नहीं थे। सोनिया गाँधी सक्रिय राजनीति में उतरी नहीं थीं। तब देश की सबसे पुरानी पार्टी होने और आजादी की लड़ाई लड़ने का दंभ भरने वाले कॉन्ग्रेसियों ने तिवारी कॉन्ग्रेस, सिंधिया कॉन्ग्रेस, अर्जुन कॉन्ग्रेस, तमिल मनीला कॉन्ग्रेस, इसकी कॉन्ग्रेस, उसकी कॉन्ग्रेस जैसे तमाम दल बना लिए थे। फिर सोनिया जी ने कॉन्ग्रेस की बागडोर संभाली और सबको पुचकार के बुलाया तो सब फिर से दस जनपथ के वफादार बन गए।

भाजपा दूध की धुली नहीं है। दूध का धुला मैं भी नहीं हूँ। और दुनियादारी को दूध में धुले होने वाले मानकों से नापना भी नहीं चाहिए- खासकर राजनीति को तो कतई नहीं। पर इसके बाद जो पैमाने बच जाते हैं, उन सभी पैमानों पर भाजपा एक श्रेष्ठ पार्टी है, पार्टी विथ डिफ़रेंस है। और इसे कई प्रकार से समझा जा सकता है।

सितम्बर 2013, तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। राहुल गाँधी अपनी ही पार्टी के नेता अजय माकन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुँचते हैं। वहाँ अपनी ही सरकार के एक अध्यादेश को फाड़ कर फेंक देते हैं। अध्यादेश जो एक क़ानून होता है, जिसे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट पास करती है। पर राहुल गाँधी ऐसा कर देते हैं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न केवल गोंद पीकर रह जाते हैं, बल्कि जब उनका मुँह खुलता है तब वे कहते हैं कि राहुल जी जब चाहेंगे, तब वे अपने पद से हटने को तैयार हैं।

क्यों भई? यह लोकतांत्रिक देश है या कोई प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी, कि ‘मालिक’ जब चाहेगा तब ‘मैनेजर’ को हटा देगा और अपनी संतान को कम्पनी सौंप देगा?

आज भाजपा में कोई नेता सरकार के किसी अध्यादेश को फाड़ कर दिखाने की हिम्मत कर सकता है; अगर कर भी दे तो क्या पार्टी में राहुल गाँधी सरीखे रुतबे के साथ राजनीति कर सकता है? आडवाणी जी पार्टी लाइन से इतर जिन्ना की मजार पर सेक्यूलरीज्म के फूल चढ़ा आए थे, जिसका हश्र यह हुआ कि उनकी बाकी राजनीति जिन्ना के भूत से पीछा छुड़ाने में गुजर गई। यही हश्र भाजपा के एक और कद्दावर नेता जसवंत सिंह के साथ हुआ। उन्होंने किताब लिखकर जिन्ना को सेकुलर होने का तमगा दिया और उनकी जीवन भर की राजनीति जिन्ना के वास्ते होम हो गई। यह सब एक राष्ट्रवादी और जीवंत संगठन में ही सम्भव हो सकता है।

यह अगर संभव नहीं हो सकता है तो कॉन्ग्रेस में, क्योंकि कॉन्ग्रेस कोई पार्टी-वार्टी नहीं है बल्कि एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी है।

और इसीलिए यहाँ जो लोग अपने आपको नेता, कार्यकर्ता, पदाधिकारी कहते हैं, मुझे उन पर भी बड़ा तरस आता है, क्योंकि जहाँ कार्यकर्ता हो सकते हैं वह एकमात्र पार्टी सिर्फ भाजपा है, वरना कॉन्ग्रेस सहित जितने भी दल हैं, वहाँ कार्यकर्ता नहीं बल्कि ‘बाउंसर’ होते हैं। वे बाउंसर हैं सोनिया गांधी के, वे बाउंसर हैं राहुल गांधी के, और वे बाउंसर हैं मिसेज प्रियंका वाड्रा के।

खैर, फिलहाल इस चर्चा को यहीं विराम देना चाहिए। लिखने का उद्देश्य सिर्फ लेखक बनना नहीं होता बल्कि अपनी उन भावनाओं को भी अभिव्यक्ति देना होता है, जिनके बारे में आपको लगता है कि अब कह ही देना चाहिए। सही-गलत के सबके अपने-अपने पैमाने हो सकते हैं, पर कुछ मौके ऐसे आते हैं जहाँ ‘खामोश’ और ‘निष्पक्ष’ नहीं रहना चाहिए।

क्या यूपीए काल में गंगाजल पीतीं प्रियंका: गडकरी

केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास व गंगा कायाकल्प मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार (24 मार्च) को कॉन्ग्रेस की पूर्वांचल महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा पर निशाना साधते हुए पूछा कि क्या वे यूपीए के दस साल के शासनकाल के दौरान गंगा का पानी पीतीं ?

यात्रा भी की

नागपुर से आगामी लोकसभा चुनाव के भाजपा प्रत्याशी व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष गडकरी ने प्रियंका पर कटाक्ष करते हुए पूछा कि यदि वे गंगा नदी पर वाराणसी-प्रयागराज (इलाहबाद) जलमार्ग का निर्माण न कराते तो भला कॉन्ग्रेस महासचिव की हालिया गंगा-यात्रा कैसे संपन्न हो पाती।

गौरतलब है कि हाल ही में चुनावों की घोषणा के कुछ ही समय पहले प्रियंका गाँधी वाड्रा ने कॉन्ग्रेस संगठन में विधिवत भूमिका संभाली थी। इसके साथ ही उन्हें पार्टी की पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) महासचिव का पदभार उनके भाई व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने दे दिया था। इसी भूमिका के निर्वहन में प्रियंका कुछ दिन पहले वाराणसी-प्रयागराज जलमार्ग के दौरे पर थीं। इस दौरान उनकी नाव पर बैठे हुए व आचमन करते हुए तस्वीरें सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी रहीं थीं। जहाँ कॉन्ग्रेस ने इसे गाँधी परिवार की पुरानी हिन्दू आस्था का प्रतीक बताया वहीं भाजपा और उसके समर्थकों ने चुनावी स्टंट।

प्रश्न के मायने

माना जा रहा है कि गडकरी के इस प्रश्न के कई मायने हैं। उन्होंने न केवल कॉन्ग्रेस के मोदी सरकार पर विकास न करने, गंगा को साफ न करने आदि के दावे पर सवाल उठा दिया, बल्कि इशारों-इशारों में यह भी पूछ लिया कि क्या वे (प्रियंका) यूपीए सरकार के समय में अपनी हिन्दू आस्था का ऐसा प्रदर्शन करतीं?

गौरतलब है कि भाजपा व उसका वैचारिक पितृ-संगठन आरएसएस हमेशा से कॉन्ग्रेस पर मुस्लिम-तुष्टीकरण व हिन्दू हितों की अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं। कॉन्ग्रेस पर अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण में बाधा बनने और श्रीराम के अस्तित्व को नकार कर भारत-श्रीलंका के बीच के श्रीराम-सेतु को तोड़ने का प्रयास करने जैसे आरोप भी लगते रहे हैं।

2020 तक 100% शुद्धि का दावा  

इसके अलावा गडकरी ने एक साल के अन्दर, यानि मार्च 2020 तक, गंगा की 100% शुद्धि में सफलता हासिल कर लेने का भी दावा किया। उनके मुताबिक वे ₹26,000 करोड़ के अविरल गंगा प्रोजेक्ट को लेकर गर्वित अनुभव करते हैं। बकौल गडकरी वे 12,000 करोड़ की लागत से दिल्ली-प्रयागराज को भी जलमार्ग से जोड़ने के लिए एक डीटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) विश्व बैंक को जमा करेंगे

आपको बता दें कि हल्दिया से प्रयागराज तक फैला 1,620 किमी लम्बा गंगा-भगीरथी-हुगली जलमार्ग, जिसे राष्ट्रीय जलमार्ग 1 नाम दिया गया है, दुनिया का सबसे लम्बा जलमार्ग है।

#SatireLikeAmarUjala: उल्टा पड़ा कॉन्ग्रेस का फेक न्यूज़ फैलाने का दाँव

सोशल मीडिया पर कॉन्ग्रेस की बेईमानी न केवल एक बार फिर उजागर हो गई बल्कि उसने साथ ही अपना मखौल भी खुद उड़वा लिया। और irony का आलम यह है कि कॉन्ग्रेस की खिल्ली भी मजाकिया लेख (satire) को गंभीर, सच्ची खबर के रूप में चलाने की कोशिश में उड़ी।

अमर उजाला का हास्य लेख, कॉन्ग्रेस ने की काट-छाँट

होली के मौके पर हिन्दी दैनिक अमर उजाला ने एक व्यंग्य लेख छापा था जिसमें योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में संपन्न हुए कुम्भ मेले में भरी गड़बड़ी पाई गई। लेख में यह भी कहा गया कि इसी बनिस्बत जाँच के भी आदेश जारी किए गए हैं। लेख को व्यंग्य बताते हुए उसके ऊपर यह स्पष्टीकरण साफ-साफ छपा था, जिसमें लिखा था कि यह मजाकिया लेख है, सच्ची खबर नहीं।

अमर उजाला में छपा मूल व्यंग्य: ऊपर स्पष्टीकरण दिया गया है कि यह व्यंग्य है, तथ्यात्मक खबर नहीं

पर मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैण्डल से इसे असली खबर बताते हुए निम्न ट्वीट किया गया:


कॉन्ग्रेस ने स्पष्टीकरण (disclaimer) को काट दिया

अगर दोनों चित्रों को ध्यान से देखा जाए तो साफ पता चलेगा कि कॉन्ग्रेस द्वारा ट्वीट किए गए चित्र में से वह स्पष्टीकरण गायब है, जिसमें इस लेख को satire बताया गया है।

ट्विटरगणों ने लिया आड़े हाथों

जैसे ही 2-3 लोगों ने कॉन्ग्रेस का यह फेक न्यूज़ फैलाने का प्रयास इंगित किया, लोगों ने कॉन्ग्रेस को निशाने पर लेकर #SatireLikeAmarUjala के साथ अपने-अपने व्यंग्यात्मक मीम चलाने शुरू कर दिए।

कुछ लोगों ने तो कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर उत्सुक दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल को भी लपेटे में ले लिया।

गफलत नहीं है यह

इसमें कोई शक नहीं कि अच्छा हास्य-व्यंग्य सच्चाई के इतने करीब होता है कि कई बार दोनों में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से लेकर न्यूज चैनल सीएनएन-आईबीएन तक व्यंग्य को तथ्य मानने की भूल कर चुके हैं

मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस की इस हरकत को व्यंग्य की श्रेणी में रख उसे संशय का लाभ नहीं दिया जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि लेख के ऊपर छपे स्पष्टीकरण को हटाने के कार्य से साफ पता चलता है कि कॉन्ग्रेस ने यह जानबूझकर किया और फेक न्यूज़ फैलाई।

‘हिंदू बहनों’ पर हुए अत्याचार पर नारीवादी Pak मलाला चुप भी है और ब्लॉक भी कर रही – दोहरेपन की हद है यह

विश्व के कोने-कोने में पहुँचकर महिलाओं के हक़ पर बात करने वाली नोबेल प्राइज विजेता मलाला यूसफ़जई आज न केवल पाकिस्तान में बल्कि समूचे विश्व में कई नारीवाद आंदोलनों का एक बड़ा चेहरा बन चुकी हैं। लेकिन जब उनके ख़ुद के मुल्क़ में दो हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण की ख़बर आई, तो उन्होंने चुप्पी साध ली। आखिर क्यों?

मानवाधिकारों पर और विशेष तौर पर महिलाओं पर बात करने वाली मलाला की चुप्पी को देखकर लगता है कि उनके मुल्क़ में पसरी कट्टरपंथी उनको आवाज़ उठाने की इजाज़त नहीं दे रही हैं। जिसके कारण सोशल मीडिया पर यूजर्स उनकी इस चुप्पी पर उनसे लगातार सवाल कर रहे हैं। और साथ ही उन दोनों हिन्दू बहनों के ऊपर हुए अत्याचार पर आवाज़ उठाने की माँग कर रहे हैं।

कहा जाता है कि ‘नारीवाद’ की लड़ाई, नारी के साथ हो रहे अन्यायों के ख़िलाफ़ होती है, इसमें शायद किसी तय मज़हब, जाति और धर्म का कोई उल्लेख नहीं होता है। इसलिए ‘नारीवाद’ का बीड़ा उठाने वाले हर शख़्स का दायित्व होता है कि उसकी आवाज़ समाज में हर नारी के लिए बराबर उठे। मलाला का न्यूज़ीलैंड के मुद्दे पर दु:ख प्रकट करना और रवीना (13) और रीना (15) पर शांत हो जाना दिखाता है कि इंसान कितना ही प्रोगरेसिव क्यों न हो जाए, लेकिन उसके भीतर मज़हब और मज़हब का डर हमेशा ज़िंदा रहता है।

आज इस घटना ने पूरे विश्व को पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। लेकिन तब भी मलाला को इस संदर्भ में आवाज़ उठाना उचित नहीं लग रहा है। और इसलिए उन्होंने उन सभी यूजर्स को ब्लॉक करना शुरू कर दिया है, जो उनसे इन दोनों हिंदू बहनों के लिए इंसाफ़ की आवाज़ उठाने की माँग कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर कुछ लोग मलाला के इस दोहरेपने को ‘Biggest scam’ बता रहे हैं। और आरोप लगा रहे हैं कि वह विश्व के किसी भी मुद्दे पर बोलने को तैयार हैं, लेकिन अपनी मातृभूमि पर पनप रहे आतंकवाद और कट्टरता पर उनसे एक शब्द भी नहीं बोला जाता। ऐसे हालातों में मलाला पर सवालों का उठना लाज़िमी है क्योंकि जो नोबेल प्राइज विजेता दूर-दूर विश्व में मानवाधिकारों का पाठ लोगों को पढ़ाती-समझाती हो, वह अपने मुल्क़ में हिंदू बहनों पर हुए ऐसे अपराध पर क्यों शांत हैं?

मलाला की यह चुप्पी एक तरफ जहाँ पाकिस्तान की कट्टरता को दर्शाती है वहीं उनके दोहरे चेहरे को भी उजागर करती है, जिसमें या तो मज़हब के लिए डर है या मज़हब के लिए अथाह प्रेम जो न्यूज़ीलैंड पर जगता है लेकिन ऐसे मुद्दों पर कहीं दुबक जाता है।

ख़ैर, बताते चलें कि रवीना और रीना नामक नाबालिग हिंदू लड़कियों के पिता पुलिस स्टेशन के सामने रोए, गिड़गिड़ाए और विरोध भी किए। वायरल हुए वीडियो में पिता को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “आप मुझे गोली मार सकते हैं, मैंने बहुत सब्र किया, लेकिन अब मैं अपनी बेटियों के वापस आने तक यहाँ से नहीं जाऊँगा”। सोचिए उनकी स्थिति!

इसी बीच, सिंध प्रांत के कई हिंदुओं ने कथित तौर पर अपहरणकर्ताओं के ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज करने से इनकार करने के बाद पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया। पाकिस्तान में हिंदू देश के सबसे वंचित और सबसे ज्यादा सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक हैं।

इस घटना के बाद मलाला जैसे लोग भले ही अपने मुल्क़ से इंसाफ़ की माँग करें न करें, लेकिन भारतीय विदेश मंत्री ने रविवार (मार्च 25, 2019) को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में होली की पूर्व संध्या पर दो हिंदू लड़कियों के अपहरण पर विवरण मँगाया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त से घटना पर रिपोर्ट भेजने को कहा है।

राहुल की चुनावी चाल: गरीब परिवार को ₹72000 सलाना, 5 करोड़ फैमिली और 25 करोड़ आबादी को डायरेक्ट फायदा

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मिनिमम इनकम गारंटी स्कीम पर आज ‘धमाका’ किया है। धमाका शब्द का प्रयोग उन्होंने खुद किया। उन्होंने ऐलान किया कि जिन परिवारों की आय 12,000 रुपए से कम है, उन्हें वो हर महीने 12,000 रुपए तक की आमदनी पर ले जाएँगे। शर्त यही है कि अगर उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में जीतेगी तभी यह वादा पूरा करेगी।

कॉन्ग्रेस कोर कमिटी की बैठक खत्म करने के बाद राहुल गाँधी ने कहा, “पिछले 5 साल में हिंदुस्तान ने काफी मुश्किलें सहीं। हम अब गरीबों को न्याय देने जा रहे हैं। कॉन्ग्रेस पार्टी देश के 20% सबसे गरीब परिवारों को हर साल 72,000 रुपए देने जा रही है। शॉक मत होना, धमाका होने जा रहा है। हर साल में 20% गरीब परिवारों को 72,000 रुपए उनके बैंक अकाउंट में सीधा डाल दिया जाएगा।”

राहुल गाँधी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर वो देश के सबसे अमीर लोगों को पैसा दे सकते हैं तो हम सबसे गरीब लोगों को पैसा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे 25 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाल देंगे, गरीबी को हिन्दुस्तान से मिटा देंगे।

राहुल गाँधी ने न्याय की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “हम दो हिन्दुस्तान नहीं बनने देंगे। गरीबों या अमीरों वाला दो हिन्दुस्तान नहीं बनने दूँगा। मिनिमम इनकम गारंटी स्कीम से 5 करोड़ फैमिली और 25 करोड़ आबादी को डायरेक्ट फायदा मिलेगा।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद किसी पत्रकार ने जब राहुल गाँधी से राफेल को लेकर बात की तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि वे आज राफेल पर बात नहीं करेंगे, सिर्फ न्याय की बात करेंगे। जब किसी पत्रकार ने सब्सिडी और सरकार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को लेकर सवाल पूछा तो उनका जवाब था, “दुनिया के बेहतरीन इकॉनमिस्ट से इस पर चर्चा की गई है। चिदंबरम के साथ हमारी जो टीम इस पर काम कर रही है वह आपसे पूरी डिटेल साझा करेगी। मिनिमम इनकम गारंटी स्कीम आर्थिक तौर पर पूरी तरह से संभव है।”

भारत का पहला स्वदेशी लड़ाकू विमान ‘तेजस’ अब विदेशों में भी अपनी ताक़त दिखाने के लिए तैयार

देश का पहला स्वदेश निर्मित लड़ाकू विमान तेजस जिसे विश्व में सबसे हल्के सुपरसोनिक लड़ाकू विमान का दर्जा हासिल है। वो अब विदेशों में भी अपनी ताक़त और हवाई गतिविधियाँ दिखाने के लिए तैयार है।

तेजस, 26 मार्च से मलेशिया में शुरू होने वाली 5 दिवसीय लंगकावी इंटरनेश्नल मेरीटाइम एंड एयरोस्पेस प्रदर्शनी में भाग लेने वाला है। इसके लिए भारतीय वायु सेना मलेशिया पहुँच चुकी है। इस हवाई प्रदर्शन में भारत ने पहली बार हिस्सा लिया है। भारत यहाँ तेजस विमान को बड़े स्तर पर पेश करेगा।

वायु सेना ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकॉउंट पर जानकारी दी है कि भारत का स्वदेशी सुपरसोनिक हल्का लड़ाकू विमान तेजस और भारतीय वायु सेना में पहले ही शामिल हो चुका है और अब वह पहली बार पाँच दिवसीय लंगकावी इटरनेशनल मैरीटाइम एंड एयरोस्पेस एक्जीबिशन में हिस्सा लेगा।

इसके अलावा वायु सेना ने ट्वीट किया, “26 मार्च 2019 से शुरू हो रहे एलआईएमए 2019 के लिए उद्घाटन प्रदर्शन से पहले आज आख़िरी अभ्यास सत्र था। मलेशिया, लंगकावी इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर अभ्यास सत्र के दौरान भारतीय वायुसेना का तेजस।” वायुसेना ने अभ्यास करते तेजस की तस्वीरें और वीडियो भी पोस्ट की हैं।

एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी(एडीए) द्वारा भारतीय वायु सेना और नौसेना के लिए डिजाइन किए गए तेजस का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने पूर्ण रूप से भारत में ही किया है। इसे लीमा एयर शो में पेश करने के पीछे भारत की योजना इसकी तरफ मलेशिया का ध्यान आकर्षित करना है ताकि वो इसे ख़रीदने में दिलचस्पी पैदा कर सके। इसके अलावा भारतीय वायुसेना का दल इस दौरान रॉयल मलेशियाई एयरफोर्स के साथ द्विपक्षीय मुलाक़ात भी करेगा, जिसमें दोनों सेनाओं के बीच सहयोग मज़बूत करने की कोशिश होगी।

‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ कहने वाला हिन्दुस्तानी नेता: जो Pak को 1 गाली देगा, मैं उसे 10 गालियाँ दूँगा

नेशनल कॉन्फ्रेंस के बारामूला निर्वाचन क्षेत्र के सांसद अकबर लोन ने कश्मीर के कुपवाड़ा में एक रैली को संबोधित करते हुए “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” का नारा लगाया।

ख़बर के अनुसार, एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए लोन ने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा उस भाजपा नेता को जवाब देने के लिए लगाया है, जिन्होंने पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए थे। लोन ने आगे कहा कि उन्होंने अपनी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ पाकिस्तान के समर्थन में ये नारा लगाया है।

बता दें कि लोन ने एक उत्साही भीड़ से कहा, “मेरा पार वाला वो मुल्क़ (पाक) है, वो आबाद रहे, वो क़ामयाब रहे, हमारी और उसकी दोस्ती बढ़े, पाकिस्तान और हिंदुस्तान की दोस्ती आपस में रहे, उस दोस्ती का मैं आशिक़ हूँ…अगर उनको कोई एक गाली देगा तो मैं यहाँ से दस गालियाँ दे दूँगा।”

इसके साथ ही लोन ने कहा, “देश भर में एक मुस्लिम देश है और वह चाहता है कि यह फलता-फूलता रहे, नई ऊँचाइयों तक पहुँचे और दोस्ती बढ़ती जाए। मैं भारत-पाकिस्तान की दोस्ती का प्रशंसक हूँ। अगर कोई उन्हें गाली देता है, तो मैं उन्हें दस गुना अधिक वापस गाली दूँगा।”

गौरतलब है कि इससे पहले, फ़रवरी 2018 में भी अकबर लोन ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाए थे। उनका पाकिस्तान समर्थित नारा तब जम्मू के सुजवान में सेना के शिविर पर हुए आत्मघाती हमले के बाद विधानसभा में भाजपा नेता द्वारा लगाए गए पाकिस्तान विरोधी नारे के जवाब में था। उस समय भी उमर अब्दुल्ला ने माफ़ी माँगने से इनकार कर दिया था।