Monday, September 30, 2024
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प्रियंका गाँधी ने ट्वीट कर पूछा गन्ना पर, योगी आदित्यनाथ ने समझा दिया पूरा खेती-किसानी

कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने किसानों को लेकर योगी सरकार और मोदी सरकार पर हमला बोला है। प्रियंका ने रविवार (24 मार्च 2019) को उत्तर प्रदेश में गन्‍ना किसानों के बकाए के भुगतान की समस्‍या का जिक्र करते हुए एक ट्वीट किया। प्रियंका ने ट्वीट करते हुए लिखा, “गन्ना किसानों के परिवार दिनरात मेहनत करते हैं। मगर उप्र सरकार उनके भुगतान का भी जिम्मा नहीं लेती। किसानों का 10000 करोड़ बकाया मतलब उनके बच्चों की शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य और अगली फसल सबकुछ ठप्प हो जाता है। यह चौकीदार सिर्फ अमीरों की ड्यूटी करते हैं, गरीबों की इन्हें परवाह नहीं।”

प्रियंका गाँधी के ट्वीट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पलटवार किया। इसका जवाब देते हुए सीएम योगी ने दो ट्वीट किए। पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा, “हमारी सरकार जब से सत्ता में आई है हमने लंबित 57,800 करोड़ का गन्ना बकाया भुगतान किया है। ये रकम कई राज्यों के बजट से भी ज्यादा है। पिछली सपा-बसपा सरकारों ने गन्ना किसानों के लिए कुछ नहीं किया जिससे किसान भुखमरी का शिकार हो रहा था।”

दूसरे ट्वीट में सीएम योगी ने पूछा, “किसानों के ये ‘तथाकथित’ हितैषी तब कहाँ थे जब 2012 से 2017 तक किसान भुखमरी की कगार पर था। इनकी नींद अब क्यों खुली है? प्रदेश का गन्ना क्षेत्रफल अब 22 प्रतिशत बढ़कर 28 लाख हेक्टेयर हुआ है और बंद पड़ी कई चीनी मिलों को भी प्रदेश में दोबारा शुरू किया गया है। किसान अब खुशहाल हैं।”

गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से प्रियंका समाज के अलग-अलग वर्गों से जुड़कर कॉन्ग्रेस के सरोकारों और चिंता को दिखाने की कोशिश कर रही हैं। चाहे वह भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर से मिलना हो या फिर गंगा में नाव यात्रा और मंदिरों में दर्शन-पूजन। इस नाव यात्रा के दौरान भी प्रियंका ने किसानो का हवाला देकर पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि चौकीदार गरीबों के नहीं, बल्कि अमीरों के होते हैं। बता दें कि राफेल डील को लेकर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पीएम मोदी के लिए ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया। जिसके जवाब में पीएम मोदी ने ‘मैं भी चौकीदार’ कैंपेन की शुरुआत की थी।

चुनावी स्नैपशॉट: वोट उसी को जो दाढ़ी के साथ पैडिक्योर, मैनिक्योर और फेशियल भी कराएगा

ऋतुराज वसंत प्रेमी हृदयों को व्याकुल करने को प्रकट हुए, एवं मौसमी प्रेमियों ने चहुँओर हरित वातावरण से उत्साहित होकर, निकटवर्ती कवियों को धर दबोचा और उचित दरों पर पर प्रेम पत्र लिख कर पठाए ही थे। कठोर हृदय समाज की तनी हुई भृकुटियों से छुपते-छुपाते पत्र कमल-नयन, चंदन-वर्ण प्रियतमा की खिड़की पर पत्थर मे लपेट कर अभी भेजे ही गए थे। हाय, प्रेम पत्र के वाहक ढेले को फेंकने वाले प्रेमी के पाजामे के पायचों को जीर्ण शीर्ण करने वाले कुत्तों की गगनभेदी गर्जना और प्रेमी का हृदयरोगियों सा निनाद अभी थमा भी ना था।

ऐसे समय में जब प्रेमिका का उत्तर आया ही था और प्रेम प्रसंग उस खंड मे प्रविष्ट हो रहा था जब सत्तर के दशक के दक्षिणी फ़िल्मों के निर्देशक मटकों की क्यारियाँ और उत्तर के निर्देशक पुष्प-युगल ढूँढ लेते थे, चुनाव की घोषणा हो गई और आचार संहिता लागू हो गई। सब कुछ जहाँ जैसा था थम गया। प्रेमिका की आती हुई स्वीकृति अब मई की प्रतीक्षा में है। फटा पाजामा थामे हुए प्रेमी मेघदूतम के यक्ष की भाँति चुनाव स्लोगनो के माध्यम से प्रियतमा को सँदेश भेजने पर विचार कर रहा है किंतु आचार संहिता को ले कर असमँजस में है। पति के लिए प्रेम-पूर्वक पकौड़े बनाती हुई पत्नी आचार संहिता की आड़ मे पुन: लौकी की सब्ज़ी पर स्थिरप्रज्ञ हो गई है। पति मैनिफ़ेस्टो में साड़ियाँ फ़िट कर के जीवन को पुन: पकौड़ा-युक्त बनाने की जुगत में है।

देश में चुनावों की घोषणा हो गई। सोशल मीडिया पर पाँचजन्य के उद्घोष के साथ ट्विटर-वीरों ने धनुष सँधान कर लिए हैं, कीबोर्ड-रूपी गाँडीव धारण किया युवा पार्थ उत्साहपूर्वक युद्ध क्षेत्र का अवलोकन कर रहे हैं। महारथी टैग-रूपी शब्द-बाण छोड़ते हैं जो धनुष की टँकार के मध्य अनगिनत हैशटैगों का रूप धारण कर के आकाश को आच्छादित कर देते हैं।

युद्ध क्षेत्र एक सेना से दूसरी सेना की ओर आते-जाते महारथियों के पदचापों से गुँजायमान है। महान वीर ध्वजों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। कुछ योद्धा अपनी छोटी-छोटी युद्धभूमी बना कर उसी में लड़ रहे हैं। इंद्रप्रस्थ के प्रतापी सम्राट महायुद्ध की अक्षौहिणी सेनाओं के मध्य अपनी टिटिहरी सेना लिए हुए उतरे हैं, और युद्ध क्षेत्र के मध्य शक्ति प्रदर्शन की परेड करते हुए, योद्धाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे अधेड़ होता अभिनेता मुष्टिकाएँ भींच कर, माँसपेशियाँ अकड़ा कर एक्शन सिनेमा के निर्माता को आकर्षित करने का प्रयास करता है। सैनिक वेशभूषा-धारी रिंकिया के पापा रथ ले कर पाकिस्तान सीमा की ओर प्रस्थान करने को आतुर दिखते हैं। दिल्ली सल्तनत इस चुनावी संग्राम में ओखला से बदरपुर के मध्य सीमित होती जान पड़ती है। केजरीवाल जी इसी उहापोह में हैं कि धरना करना है या नहीं करना है और अगर धरना नहीं करना है तो क्या करना है। यह चुनाव पाठ्यक्रम से बाहर हुआ जाता है। दिल्ली में कॉन्ग्रेस ने केजरीवाल जी के साथ गठबँधन से लगभग मना कर दिया है और विधि का विधान या ऊपर वाले का बेआवाज लट्ठ देखिए कि वहाँ उत्तर प्रदेश में बहनजी ने कॉन्ग्रेस को लगभग मना कर दिया है।

कॉन्ग्रेसी खेमे में अपनी ही चिन्ताएँ हैं। राजकुमार अपने घातक अस्त्रों को पिछले चुनावों में उपयोग कर के शरहीन प्रतीत हो रहे हैं। मंदिरों में चंदन लगवाने और चर्चों में बीफ बँटवाने के बाद युवराज के पास फैंसी ड्रेस के विकल्प समाप्तप्राय हैं। तरकश के राफ़ेल इत्यादि तीर रामानंद सागर के धारावाहिक के शस्त्रों की भाँति जगमगा कर धराशायी हो चुके हैं। युवराज्ञी की नाक की नानी से समानता का प्रारम्भिक उत्साह भी पत्रकारों की भद्द उड़वा कर और कार्यकर्ताओं के पिंक बाबासूट बनवाने के बाद बोरियत की कगार पर है। युवराज्ञी उत्पाती युवकों को दल में ले कर ईवीएम वाले दौर में बैलेट बॉक्स वाले युग के शौर्य की पुनर्स्थापना करने में प्रयासरत है। जिस प्रकार संध्या होते ही बछड़े माता के पास लौट आते हैं, चुनावी संध्या में भीम आर्मी के विकट वीर और हार्दिक पटेल जैसे महान योद्धा कॉन्ग्रेस की गौशाला की ओर लौट रहे हैं। सपा ‘पार्टी ही परिवार है’ और ‘परिवार ही पार्टी है’ के सिद्धांत पर पार्टी चलने दी जाए।

पार्टी प्रवक्ताओं ने अपनी कुर्सियों के पीछे मोटी-मोटी किताबें जमा ली हैं। जिनके पास किताबें नहीं हैं, उन्होंने पुस्तक की फ़ोटो वाले वॉलपेपर लगवा लिए हैं। प्रवक्ता सीरीज़ के वॉलपेपर मार्केट में वास्तविक पुस्तकों और साक्षात प्रवक्ता से अधिक डिमांड में है। चैनलों का माहौल देखते हुए सत्तर के दशक के बूथ कैप्चरिंग वाले बलिष्ठ पहलवान आज वॉलपेपर लगा कर प्रवक्ता बनने को तैयार हैं। सावन में प्रकट होने वाले मेंढकों की भाँति बैनर, पोस्टर वालों के साथ चुनाव विश्लेषको की नई खेप टीवी चैनलों पर उतर आई है। योगेन्द्र यादव और जीवीएल सरीखे सेफ़ॉलॉजिस्ट गरारे कर के वाणी की सौम्यता का अभ्यास कर रहे हैं। पुस्तक वाले वॉलपेपर की इस वर्ग में भी खासी डिमांड देखी जा रही है।

एक दिशा से जहाँ ‘चौकीदार चोर है’ का उद्घोष होता है, ‘मैं भी चौकीदार’ का जयघोष दूसरे खेमे से उठ कर उसे डुबा देता है। इस सब के बीच चुनाव आयोग मंद स्वर में जनता के बीच ‘जागते रहो’ पुकारता हुआ लाठी खटका रहा है। जनता ऊँघ सी रही है और चुनावी घोषणापत्रों की प्रतीक्षा में कलर टीवी और लैपटॉप की ख़रीददारी रोके बैठी है। पड़ोस के छगनलाल जी ने दाढ़ी भी बनाना बंद कर दिया है इस प्रण के साथ कि उनकी दाढ़ी चुनाव तक प्रत्याशी ही बनवाएँगे, और उनका मत उसी प्रतिभाशाली प्रत्याशी के पक्ष में गिरेगा जो शेव के साथ पैडिक्योर, मैनिक्योर और फेशियल करा के देगा। नोटावीरों ने चुनाव की तारीख़ों का संज्ञान लेते हुए, लॉन्ग वीकेंड की व्यवस्था कर ली है। मुफ़्त वाय-फाय वाले होटल ढूँढ लिए गए हैं ताकी वहाँ से भारत के राजनैतिक और नैतिक पतन पर ब्लॉग निर्बाध रूप से लिखे जाएँ। राग दरबारी और कैम्ब्रिज एनालिटिका आपस में संघर्षरत हैं और श्रीलाल जी के शिवपालगंज में चुनाव आयोग की लाठी की खटखटाहट सुन कर वैद्यजी पूछते हैं, यह कैसा कुकुरहाव है, और लाठी को तेल चढ़ाते तृणमूल कॉन्ग्रेस के बदरी पहलवान उत्तर देते हैं, देश में चुनाव है।

हर परिवार को 10L दारू व ₹25000, नवविवाहितों को ₹10 लाख और 10 सोने का सिक्का: चुनावी घोषणापत्र

चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी वादे करने में किस प्रकार मर्यादा भूल जाते हैं, इसकी ताज़ा बानगी हमें इस लोकसभा चुनावों में देखने को मिल रही है। तमिलनाडु के एक निर्दलीय प्रत्याशी ने अपने क्षेत्र में हर एक परिवार को 10 लीटर शराब हर महीने बाँटने का चुनावी वादा किया है।

पेशे से दर्जी एएम शेख दाउद एरोड जिले के अन्त्यूर इलाके के मूल निवासी हैं। लोकसभा चुनावों में वो राज्य की तिरुपुर सीट से प्रत्याशी हैं।

उनके लम्बे-चौड़े वादों की फेहरिस्त सिर्फ दारू पर ही नहीं थमती। दाउद ने यह भी वादा किया है कि यदि वे लोकसभा सदस्य बन गए तो वे अपने क्षेत्र में हर गृहणी को ₹25 हजार मासिक देंगे। इसके अलावा उन्होंने नवविवाहित युगलों को ₹10 लाख और 10 सोने के सिक्के भी लोकसभा सदस्यों के विचाराधीन कोष से देने का वादा किया है।

“मेरे घोषणापत्र में जो 15-सूत्री कार्यक्रम है, वह जन-सामान्य में सबको फायदा पहुँचाएगा।” दाउद ने दावा करते हुए कहा।

10 लीटर शराब के वादे के बारे में दाउद का कहना है कि वैसे भी लगभग हर कोई आजकल पी ही रहा है। पर लोग नकली शराब पी रहे हैं और अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं। दाउद का कहना है कि वह पुडुचेरी से उच्च गुणवत्ता वाली शुद्ध शराब लाकर लोगों में वितरित कराएँगे।

तिरुपुर में पानी की समस्या का भी जिक्र करते हुए दाउद कहते हैं कि वे सलेम जनपद के मत्तुर जलाशय से तिरुपुर को जोड़ती नहरें बनवाकर इस समस्या का समाधान करेंगे।

PMJAY: 2.2 लाख कैंसर रोगी लाभान्वित, बड़े कैंसर विशेषज्ञों से भी करा सकेंगे इलाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में कई योजनाओं को लागू किया। जिसका लोगों को काफी लाभ मिल रहा है। इन्हीं योजनाओं में से एक है प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना। ये देश के गरीब लोगों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम है। इसके तहत देश के 10 करोड़ परिवारों को सालाना ₹5 लाख का स्वास्थ्य बीमा मिल रहा है।

अब इसके लाभार्थियों के लिए एक और ख़ुशख़बरी है। इसके लाभार्थी जल्द ही देश के बड़े कैंसर विशेषज्ञों से सलाह ले पाएँगे। देश भर के कैंसर विशेषज्ञों को ग्रिड से जोड़ने की तैयारी की जा रही है। कैंसर विशेषज्ञों के ग्रिड से जुड़ने के बाद मरीज बड़े विशेषज्ञों के नेटवर्क से डिजिटल माध्यम से जुड़ जाएँगे।

नैशनल हेल्थ अथॉरिटी पार्टनरशिप के लिए नैशनल कैंसर ग्रिड से बातचीत कर रहा है, जो कि मुंबई के टाटा मैमोरियल हॉस्पिटल से वर्चुअल ट्यूमर बोर्ड संचालित करता है। बता दें कि यह बोर्ड ग्रिड के माध्यम से (डिजिटल नेटवर्क से जुड़े हॉस्पिटल्स में) जटिल कैंसर केसों को सुलझाता है और यह आयुष्मान भारत के लाभार्थियों के लिए भी सर्वोत्तम इलाज मुहैया करा सकता है।

अधिकारियों का कहना है कि अगर इस प्रस्ताव के लागू हो जाने से कुछ अस्पतालों में एक से अधिक प्रकार के इलाज उपलब्ध नहीं होने की समस्या से राहत मिलेगी। कैंसर विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में कैंसर के लगभग एक चौथाई मामले ही ‘जटिल’ होते हैं, जिसका इलाज करना सरल नहीं होता।

इस मामले पर आयुष्मान भारत के डिप्टी सीईओ दिनेश अरोड़ा ने कहा, “हम 2-3 सप्ताह में नैशनल कैंसर ग्रिड से समझौता होने की उम्मीद कर रहे हैं। इससे ना केवल इलाज तक पहुँच आसान होगी, बल्कि यह सभी प्रकार के कैंसर के लिए स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल्स और गाइडलाइन्स बनाने में भी मददगार होगा।”

बता दें कि अब तक प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत कैंसर केयर के लिए 2.20 लाख लोग भर्ती हुए थे। इसमें से 1,53,000 मेडिकल ऑन्कोलॉजी के केस थे, जबकि 44,479 ने रेडियोथैरेपी, अन्य सर्जरी और पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी से थे।

‘राहुल गाँधी अमेठी से भाग रहे हैं… वायनाड वाली मेरी ख़बर पूरी तरह से ग़लत है, अफ़वाह है’

2019 लोकसभा चुनाव क़रीब आने के साथ ही भाजपा और कॉन्ग्रेस दोनों ने अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। हालाँकि, अमेठी की चुनावी लड़ाई में कॉन्ग्रेस को अभी से अपनी हार नज़र आ रही है। बीजेपी ने घोषणा की है कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, गाँधी के गढ़ माने जाने वाले अमेठी से चुनाव लड़ेंगी। इस घोषणा के बाद से ही कॉन्ग्रेसी खेमे में हड़कंप सा मच गया है। इसके परिणामस्वरूप ही कॉन्ग्रेस में राहुल गाँधी की जीत सुनिश्चित करने की छटपटाहट भी देखने को मिल रही है।

ऐसे में राहुल गाँधी को पत्र लिखकर उनसे अमेठी से लड़ने के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का आग्रह किया गया है। ऐसा करने के पीछे मक़सद केवल राहुल गाँधी की जीत सुनिश्चित करना है। राहुल के दो जगह से चुनाव लड़ने के फ़ैसले को स्मृति ईरानी का डर न कहा जाए तो भला और क्या कहा जाए। इससे कॉन्ग्रेस की हताशा और निराशा दोनों की तस्वीर एकदम साफ़ नज़र आ रही है।

अब, अफ़वाहें सामने आई हैं कि राहुल गाँधी का मुक़ाबला करने के लिए भाजपा वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से स्मृति ईरानी को मैदान में उतार सकती है।

Matrubhumi.com ने बताया कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने ऐसा संकेत दिया है। रिपोर्ट के अनुसार राहुल गाँधी, जो कि फिलहाल एक सुरक्षित सीट की तलाश में हैं, का मुकाबला करने के लिए स्मृति ईरानी को वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा जा सकता है।

हालाँकि, इस मामले को लेकर OpIndia.com ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से संपर्क किया। इस मामले पर स्मृति ईरानी ने इन अफ़वाहों का स्पष्ट रूप से खंडन कर दिया है।

स्मृति ईरानी ने Opindia.com से बात करते हुए कहा, “राहुल गांधी अमेठी से भाग रहे हैं, मैं नहीं। मैं यहीं पर हूँ और लोगों के लिए लड़ रही हूँ। यह ख़बर पूरी तरह से ग़लत और महज़ एक अफ़वाह है।”

स्मृति ईरानी ने आगे कहा कि यह स्पष्ट हो चुका है कि कॉन्ग्रेस अफ़वाहों की खान बन चुकी है, शायद ही ऐसा कोई होगा, जो राहुल गाँधी जैसा नेता पाकर शर्मिंदा नहीं होगा।

हाल ही में, कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा राहुल गाँधी के लिए एक सुरक्षित सीट खोजने की एक कोशिश सामने आई है। हमने पहले ही बताया है कि कैसे कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य ईकाई राहुल गाँधी को पत्र लिखकर केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने का आग्रह कर चुके हैं। आज अमेठी ईकाई ने भी राहुल गाँधी को पत्र लिखकर अमेठी और वायनाड दोनों सीट से लड़ने की सिफ़ारिश करते हुए कहा कि वो भविष्य के प्रधानमंत्री हैं और इंदिरा गाँधी और सोनिया गाँधी की तरह, उन्हें भी उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों जगह से लड़ना चाहिए। कॉन्ग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने भी कहा है कि वायनाड को ‘सकारात्मक’ माना जाए।

बता दें कि कर्नाटक, तमिलनाडु और अमेठी के अलावा अखिल भारतीय किसान कॉन्ग्रेस ने भी राहुल गाँधी से अमेठी के साथ-साथ वायनाड से चुनाव लड़ने का निवेदन किया था।

नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ इंडिया ने भी राहुल गाँधी से अमेठी और वायनाड दोनों से चुनाव लड़ने का आग्रह किया था। राहुल गाँधी को इसी तरह के पत्र ज़िला कॉन्ग्रेस समितियों द्वारा भी लिखे गए हैं।


2014 में, राहुल गाँधी को ज़बरदस्त जीत नहीं प्राप्त हुई थी, उसका कारण स्मृति ईरानी ही थीं। हार के बावजूद स्मृति ने अमेठी पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखी। इस दौरान उन्होंने अमेठी के विकास और लचर व्यवस्था को अनेकों बार उजागर किया। अमेठी में राहुल गाँधी के द्वारा पिछले 10 वर्षों में किए गए कार्य और स्मृति ईरानी के पिछले 4 वर्षों में किए गए कार्यों की तुलना कीजिए – सब स्पष्ट हो जाएगा। स्पष्ट यह भी हो जाएगा कि 2019 लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी पीछे चल रहे हैं जबकि स्मृति ईरानी लीड ले रही हैं।

कॉन्ग्रेस इस बात को अब अच्छी तरह से जान चुकी है कि अमेठी में इस बार स्मृति ईरानी को हराना आसान काम नहीं होगा। साथ ही कॉन्ग्रेस का यह भ्रम भी टूट गया कि अमेठी सीट उसका गढ़ है। राहुल गाँधी की जीत सुनिश्चित करने में जुटी कॉन्ग्रेस को फ़िलहाल कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। शायद इसीलिए जल्दबाज़ी में राहुल को केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया गया।

‘हमारी लड़ाई बंग्लादेशियों से है, ना कि भारतीय अल्पसंख्यकों से’- हेमंत बिस्वा शर्मा

केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पारित होने के साथ ही इसका विरोध भी देखने को मिला। इस मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस ने हेमंत बिस्वा शर्मा से बातचीत की। बता दें कि हेमंत बिस्वा शर्मा 23 साल तक कॉन्ग्रेस के साथ काम करने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे। हेमंत ने दावा किया है कि आशंकाओं के बावजूद, पूर्वोत्तर के लोग मोदी सरकार के विकास कार्यों के लिए भाजपा को वोट देंगे।

इस दौरान जब हेमंत बिस्वा शर्मा से पूछा गया कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के विरोध के बावजूद, भाजपा ने पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में प्रमुख गठबंधन किए हैं। ये करने में वे कैसे सफल रहे? तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि जब पार्टी ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित करने की कोशिश की, तो कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया और कुछ लोगों ने आरक्षण को मुद्दा बनाया। लेकिन उन्होंने परिणाम की चिंता किए बिना इस विधेयक को पारित करवाया, क्योंकि उनका मानना है कि किसी एक मुद्दे पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वहाँ पर जो विकास कार्य हुआ है, उसके बाद कोई भी भाजपा के खिलाफ नहीं है। सभी को ऐसा लगता है कि उन्होंने सही किया है।

उनसे पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायुसेना की तरफ से किए गए एयर स्ट्राइक पर पूछा गया कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा चुनाव के सभी मुद्दों पर भारी पड़ेगा। क्या इससे भाजपा को कोई फायदा मिल सकता है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसी मुद्दे पर लोग वोट करेंगे। लोग सरकार के पूरे कामकाज के आधार पर वोट देंगे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि अभी अगर सिर्फ पिछले 6 महीने की ही बात की जाए, तो आयुष्मान भारत, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10% आरक्षण आदि कई ऐसे मुद्दे हैं, जो पीएम मोदी के पक्ष में है। सरकार जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सक्रिय है, वहीं स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को लेकर गंभीर भी। ऐसे में मतदाता पीएम मोदी को पूरे कामकाज के लिए वोट देंगे।

असम में हुए आंदोलन को लेकर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने इसके धार्मिक और सामाजिक दोनों पहलूओं को जवाब के तौर पर रखा। हेमंत बिस्वा शर्मा ने बताया कि असम आंदोलन में उन मजहबी प्रवासियों का हवाला दिया गया था, जिनकी वजह से असम के लोग अपनी पहचान खो रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी पहचान से जुड़ा संकट बांग्लादेशियों से है, ना कि भारतीय समुदाय विशेष से। भारतीय अल्पसंख्यक हों या हिंदू या सिख-बौद्ध-जैन… इनसे आपको समस्याएँ इसलिए नहीं होती क्योंकि ये सभी लोग राजनीतिक रूप से भारतीय होते हैं और आपके सामाजिक ताने-बाने को तोड़ते नहीं हैं। जबकि बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे देश में आकर राजनीतिक समस्या को जन्म देते हैं क्योंकि वो यहाँ के समाज को अपना नहीं मानते हैं।

हेमंत बिस्वा शर्मा ने यह भी बताया कि पहले पूरे भारत में लोग इस बारे में खुलकर नहीं बोलना चाहते थे। क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वो कुछ बोलेंगे तो उनको धर्मनिरपेक्ष नहीं समझा जाएगा। मगर पिछले 10 वर्षों में, और खासकर भाजपा के सत्ता में आने के बाद, लोगों ने थोड़ा और खुलकर बोलना शुरू कर दिया है।

वाइस ऐडमिरल करमबीर सिंह नए नौसेना प्रमुख नियुक्त, वरिष्ठता नहीं प्रतिभा को बनाया आधार

ईस्टर्न नौसेना कमांड के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ़ (FOC-in-C) वाइस ऐडमिरल करमबीर सिंह को अगला नौसेना प्रमुख नियुक्त किया गया है। वे 31 मई 2019 को रिटायर हो रहे सुनील लांबा का स्थान ग्रहण करेंगे। वाइस ऐडमिरल सिंह के बारे में बता दें कि वो ऐसे पहले हेलीकॉप्टर पायलट हैं, जिनके हाथों में नौसेना की कमान सौंपी गई है।

वाइस ऐडमिरल सिंह की नियुक्ति विपक्ष एक बार फिर मोदी सरकार को घेर सकती है। वजह सीनियरटी होगी। आपको बता दें कि अंडमान निकोबार के कमांड चीफ वाइस ऐडमिरल बिमल वर्मा उनसे 5 महीने सीनियर हैं। ऐसे में केंद्र सरकार ने वरिष्ठता के मापदंड को नज़रअंदाज़ करके वाइस ऐडमिरल सिंह के हाथों में नौसेना प्रमुख की ज़िम्मेदारी सौंपने का जो निर्णय लिया है, उसके पीछे वजह प्रतिभा है, जिसे अवसर देने का अधिकार सरकार के पास सैद्धांतिक तौर पर है। थल सेना प्रमुख जनरल रावत की नियुक्ति के समय भी सरकार ने यही मापदंड अपनाया था। और तब विपक्ष ने इस को मुद्दा भी बनाया था।

वाइस ऐडमिरल सिंह की प्रतिभा की बात करें तो वे एक कुशल नौसेना अधिकारी हैं। उनके पास चेतक, कामोव-25 और कामोव-28 जैसे ऐंटी-सबमरीन युद्धक हेलीकॉप्टर उड़ाने का अनुभव प्राप्त है। अपने 39 साल के करियर में उन्होंने कई बड़ी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाया और अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने विजयदुर्ग, INS राणा, INS दिल्ली की कमान संभालते हुए अपनी पूरी ईमानदारी से कर्तव्यों का पालन किया। इसके अलावा वे महाराष्ट्र और गुजरात में भी कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। वाइस ऐडमिरल सिंह की नियुक्ति दो साल के लिए की गई है। इसके तहत वे नवंबर 2021 तक नौसेना प्रमुख रहेंगे।

वाइस ऐडमिरल सिंह की नियुक्ति से पहले भी केंद्र सरकार ने ऐसे ठोस क़दम उठाए हैं, जिनसे यह साफ झलकता है कि महत्वपूर्ण पदों पर सिर्फ वरिष्ठता को आधार न मानते हुए प्रतिभा को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए। थल सेना प्रमुख की नियुक्ति के समय भी वरिष्ठता को एक तरफ रखते हुए जनरल प्रवीण बख्शी और पीएम हारिज की जगह सरकार ने जनरल बिपिन रावत को ज़िम्मेदारी सौंपी थी।

केंद्र सरकार ने सत्ता पर क़ाबिज़ होते ही इस तरह के फ़ैसलों को तरजीह दी थी, जिसमें वरिष्ठता के पुराने ढर्रे को त्यागकर प्रतिभा को प्राथमिकता देना शामिल था। सरकार अपने द्वारा उठाए गए इन क़दमों से देश में यह संदेश देना चाहती थी कि किसी भी पद पर क़ायम होने के लिए वरिष्ठता को आधार नहीं बनाना चाहिए बल्कि प्रतिभा की प्राथमिकता को महत्व देना चाहिए। साल 2014 में वरिष्ठता की पुरानी परिपाटी पर न चलते हुए ऐडमिरल रॉबिन धवन को सैन्य प्रमुख नियुक्त किया गया था। उस वक्त ऐडमिरल शेखर उनसे सीनियर थे।

देखा जाए तो केंद्र सरकारी ने शुरुआत से ही अपनी नीतियों को स्पष्ट कर दिया था। इसमें नए तरीक़ों को भी शामिल किया गया था। सरकार का मानना है कि इस तरह के फ़ैसलों से देश के विकास को सही और न्यायोचित दिशा मिल सकेगी।

बीवी को टिकट या अपनी प्रतिष्ठा बचाने की जद्दोजहद: कॉन्ग्रेस के सीनियर नेता का इस्तीफा देने का ऑडियो वायरल

लोकसभा चुनाव का समय नजदीक है। हर दिन कोई न कोई ऐसी बातें सामने आ जाती हैं, जो कि राजनीतिक गलियारे में तहलका मचा देती है। इसी बीच शनिवार की शाम महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण का एक ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वो चंद्रपुर के एक कार्यकर्ता से बात करने के दौरान इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं। हालाँकि चुनाव के मौके पर ये ऑडियो क्लिप वायरल होने से कॉन्ग्रेस में खलबली मच गई थी, मगर चव्हाण ने पार्टी स्तर पर इस ऑडियो को लेकर अपनी सफाई देते हुए कहा कि उन्हें ऑडियो क्लिप के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन इस तरह से किसी की निजी बातों को सार्वजनिक करना गलत है। वो ना तो इस्तीफा देने जा रहे हैं और ना ही ऐसा कुछ सोच रहे हैं।

इसके बाद अशोक चव्हाण ने महागठबंधन के प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि वो पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते एक पार्टी कार्यकर्ता के मनोबल को बढ़ाने का काम कर रहे थे। बता दें कि कॉन्ग्रेस ने चंद्रपुर से विनायक बांगड़े को उम्मीदवारी दी है। इससे स्थानीय कार्यकर्ता नाराज हैं। वायरल हुए इस ऑडियो में वो चंद्रपुर के एक कार्यकर्ता को समझाते हुए कहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद उनकी कोई नहीं सुनता। इसलिए बेहतर होगा कि वो उनसे बात करने की बजाय कॉन्ग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक से बात करें। साथ ही चव्हाण ने ये भी कहा कि वो भी पार्टी से इस्तीफा देने की सोच रहे हैं।

अशोक चव्हाण अब लाख टालमटोल करें, इस ऑडियो के जारी होने से एक बात तो साफ है कि कॉन्ग्रेस पार्टी में असंतोष और निराशा व्याप्त है। परिवारवाद तो खैर हमेशा से ही कॉन्ग्रेस की परिचायक रही है। चव्हाण, जो इस्तीफा देने की बात करने के बाद अब मुकर रहे हैं, अगर आप इस ख़बर की तह तक जाएँगे तो इसके पीछ भी परिवारवाद का ही मुद्दा है। दरअसल चव्हाण चाहते थे कि औरंगाबाद से पूर्व मंत्री अब्दुल सत्तार और नांदेड़ से उनकी पत्नी अमृता चव्हाण को टिकट मिले। जबकि पार्टी ने औरंगाबाद से सुभाष झांबड़ को उम्मीदवारी दी। पार्टी ने चव्हाण की पत्नी को टिकट देना भी मुनासिब नहीं समझा।

वैसे तो टिकट बँटवारे के बाद हर पार्टी में थोड़ी बहुत खटपट देखने को मिलती है, लेकिन कॉन्ग्रेस में तो यह कुछ ज्यादा ही हो गया है, जब प्रदेश अध्यक्ष खुद अपने इस्तीफे की बात करने लगा। हालाँकि कॉन्ग्रेस नेताओं की एक खास बात ये भी है कि ये खुलकर विरोध तक नहीं कर पाते। अगर मन की बात निकल भी गई तो उससे मुकरने में भी पीछे नहीं हटते। पार्टी में फैले निराशा और असंतोष की वजह से ही चुनाव के समय में कई दिग्गज नेताओं ने पार्टी से किनारा करना ही उचित समझा है।

इनमें कॉन्ग्रेस के बड़े नेता टॉम वडक्कन, हरियाणा के पूर्व कॉन्ग्रेस सांसद अरविंद शर्मा, प्रवीण छेड़ा, एसएम कृष्णा, कर्नाटक के पूर्व विधायक उमेश जाधव, ओडिशा के विधायक प्रकाश चंद्र बेहरा, जो कि पिछले 20 साल से कॉन्ग्रेस में थे, ने पार्टी का हाथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। इससे साफ जाहिर होता है कि राहुल गाँधी कितना ही पीएम मोदी और भाजपा को कोस लें, लेकिन वो अपनी पार्टी के नेताओं को संतुष्ट कर पाने में असफल रहे हैं।

राजस्थान: राजसमंद सीट से रमेंद्र सिंह राठौड़ हो सकते हैं भाजपा के उम्मीदवार

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी अभी तक 286 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। शनिवार (मार्च 23, 2019) रात भाजपा महासचिव जे पी नड्डा ने पाँचवी सूची में 48 अन्य उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की। हालाँकि, इसमें भी अभी तक राजस्थान की बहुप्रतीक्षित राजसमन्द सीट की घोषणा नहीं की गई है। पूर्व में इस सीट पर गजेन्द्र सिंह शेखावत के नाम की चर्चा थी, जिन्हें पहले ही जोधपुर से टिकट दिया जा चुका है।

राजस्थान की राजसमंद लोकसभा सीट 4 जिलों के क्षेत्र को मिलाकर बनाई गई है- उदयपुर, अजमेर, नागौर और पाली। इसलिए 4 जिलों से सम्बंधित होने के कारण यह सीट खासी चर्चा का विषय बनी हुई है। 2018 विधानसभा चुनावों में यहाँ की 8 में से 4-4 विधानसभाएँ भाजपा व कॉन्ग्रेस के कब्जे में हैं।

संगठन और क्षेत्रीय व्यक्ति को टिकट देने का दबाव

राजसमन्द से मौजूदा सांसद हरिओम सिंह राठौड़ खराब स्वास्थ्य के चलते पहले ही टिकट लेने से मना कर चुके हैं। स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, इस सीट पर संघ, संगठन के किसी व्यक्ति को टिकट देने की वकालत कर रहा है। इसमें किसान पृष्ठभूमि वाले 38 वर्ष के युवा दावेदार रमेंद्र सिंह राठौड़ का नाम आगे चल रहा है।

रमेंद्र सिंह लगातार 6 वर्ष तक जयपुर महानगर से ABVP के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष रह चुके हैं और विश्व हिन्दू परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के साथ-साथ संघ के पाली जिले के धर्म जागरण प्रमुख भी रहे हैं। पेशे से कृषक रमेंद्र सिंह राठौड़ योग शिक्षक और देश के उन गिने चुने लोगों में हैं, जो योग में पीएचडी उपाधि प्राप्त हैं। किसानों, मजदूरों और युवाओं में इनकी गहरी पैठ मानी जाती है।

वर्ष 1942 से ही तीन पीढ़ियों से राठौड़ का परिवार संघ के राष्ट्रीय संगठन का हिस्सा रहा है। रमेंद्र सिंह राठौड़ के नाना भागीरथ सिंह शेखावत स्वतंत्र पार्टी से प्रत्याशी के साथ-साथ आपातकाल में 18 महीने जेल में रहे हैं, इसलिए क्षेत्र में इस परिवार का नाम माना जाता है। रमेंद्र सिंह के माता, पिता एवं भाई, जनसंघ के समय से संघ एवं भाजपा के अनुषांगिक संगठनों के विभिन्न पदों पर रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रमेंद्र सिंह राठौड़ सभी अर्हताएँ पूरी करते दिखाई दे रहे हैं।

राजपूतों को साधना सबसे बड़ी चुनौती

3 लाख राजपूत वोट वाली राजसमंद सीट पिछले कई चुनाव से राजपूत सीट मानी जाती रही है। इस क्षेत्र से लगातार राजपूत उम्मीदवार को ही टिकट देने की माँग उठ रही थी। इसी वजह से राजसमन्द से विधायक किरण माहेश्वरी का नाम भी सूत्रों के अनुसार रेस से बाहर हो चुका है। कई मीडिया समूहों द्वारा दीया कुमारी और किरण महेश्वरी में मुकाबले की बात कही जा रही थी, लेकिन जयपुर की राजकुमारी दिया कुमारी का नाम भी रियासत काल के इतिहास और बाहरी उम्मीदवार होने के नाते दौड़ से बाहर माना जा रहा है। ऐसे में राजपूत समाज में गहरी पैठ होने कारण रमेंद्र सिंह राठौड़ का नाम लगभग तय माना जा रहा है।

मजदूर और किसानों के बीच पकड़ हैं मजबूत पक्ष

रमेंद्र सिंह राठौड़ की संसदीय क्षेत्र के मजदूरों और किसानों में गहरी पकड़ उनके पक्ष में जाती दिख रही है। गौरतलब है कि किसान व मजदूर संघर्ष समिति द्वारा जैतारण और ब्यावर की सीमेंट फैक्ट्रियों के खिलाफ आंदोलनों में राठौड़ खासे सक्रिय रहे हैं। इसलिए 50 हजार मजदूर और डेढ़ लाख किसानों, यानि 2 लाख मतदाताओं तक इनकी सीधी पहुँच से विरोधी राजनीतिक दल भी असमंजस में हैं।

गौरतलब है कि राठौड़ के बड़े भाई आरपी सिंह भारतीय मजदूर संघ के जिला उपाध्यक्ष रहे हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त होने के कारण युवा वर्ग में भी राठौड़ अपनी सीधी पहुँच रखते हैं। इसलिए उम्मीदें लगाई जा रही है कि भारतीय जनता पार्टी राजसमन्द सीट पर प्रभावी समीकरण वाले नए चेहरे रमेंद्र सिंह राठौड़ को प्रत्याशी घोषित कर चौंका सकती है।

संघ का लोकतंत्र बनाम कॉन्ग्रेस पार्टी प्राइवेट लिमिटेड- संस्कार कहाँ से लाओगे?

कॉन्ग्रेस पार्टी बेशक ‘संघ’ से पुरजोर नफरत करती हो, लेकिन वह संघ के मायने और ताकत भी समझती है, और इसीलिए एक संघ जैसा ही संगठन कॉन्ग्रेस पार्टी में भी चलता है, जिसे ‘सेवा दल’ के नाम से जाना जाता है।

लेकिन सब कुछ चाहत, लालच और महत्वकांक्षाओं से ही नहीं होता, कुछ बातों और इरादों को फलीभूत करने के लिए ‘संस्कारों’ की भी जरूरत होती है, जो कि नेहरू-गाँधी परिवार को छू कर भी नहीं गए।

यही वजह है कि लगभग आरएसएस के साथ ही स्थापित हुआ ‘सेवा दल’ का आज मात्र इतना काम रह गया है है कि इसका अध्यक्ष कॉन्ग्रेस के स्थापना दिवस के दिन, कॉन्ग्रेस के मुख्यालय में, कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बल्कि गाँधी परिवार के वारिस को सूत की माला पहनाता है और उन्हें सलामी देता है, बाकी साल भर इसका अध्यक्ष और इनका संगठन, कॉन्ग्रेस शासित राज्यों में दलाली और उगाही करता है।

जबकि संघ की ताकत और सिस्टम देखिए कि आज अगर भाजपा, कॉन्ग्रेस पार्टी की तरह एक वंश से संचालित पार्टी नहीं बन सकी है तो उसके मूल में संघ का ‘अंकुश’ है। संघ का मुखिया कभी भाजपा मुख्यालय में भाजपा अध्यक्ष को सैल्यूट मारने नहीं जाता है, बल्कि आवश्यकता होने पर वही संघ के दरवाजे पर जाता है, क्योंकि वह उसका घर है और उसका संस्कार है।

आज भारत के किसी भी राज्य में देख लीजिए, भाजपा का कोई भी नेता पार्टी और संघ से ताकतवर नहीं है। किसी भी नेता में इतनी ताकत और साहस नहीं है कि पार्टी को जागीर की तरह चला सके, जैसा कि कॉन्ग्रेस में होता है।

वहीं कॉन्ग्रेस में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक भारत में जितने भी राज्य हैं, वहाँ पार्टी को एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह वह नेता चला रहे हैं, जिन्हें दिल्ली स्थित 10 जनपथ नामक शक्ति पीठ से अभयदान हासिल है। या, यूँ कह लीजिए कि जो थैलियाँ भेजते रहने के बावजूद, गाँधियों की खड़ाऊँ सर पर ढो सकता है, और जहाँ ऐसे लोग नहीं बचे वहाँ कॉन्ग्रेस लगभग खत्म हो चुकी है।

पर भाजपा में ऐसा नहीं हैं, यहाँ एक साधारण कार्यकर्ता नेता बन सकता है, नेता से क्षत्रप, क्षत्रप से राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री तक बन सकता है, लेकिन वह चाहकर भी पार्टी को हायजैक नहीं कर सकता है, चाहे वह कितना भी कद्दावर बना रहे। वह चाहकर भी पार्टी के शीर्ष पदों को बाकी दलों की तरह अपने परिवार के सदस्यों के लिए रिजर्व नहीं कर सकता।

इसलिए जबकि इन दिनों लाल कृष्ण आडवाणी जी को टिकट न दिए जाने पर जो रार मची है, खासकर उन लोगों में जो आडवाणी को तो फूटी आँख पसंद नहीं करते लेकिन इस बहाने मोदी और भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे हैं; वह इसी बात को प्रमाणित करती है कि बेशक आडवाणी जी पार्टी के आधार स्तम्भ हैं, लेकिन वह पार्टी नहीं हैं, बल्कि भाजपा और संघ की स्थापना के मूल में जो राष्ट्र, सनातन और भारत का विचार हैं। वे उस विचार के एक कर्मठ वाहक थे और उसी विचार के तहत उनको विश्राम देने का निर्णय पार्टी ने सर्वसम्मति से लिया।

अगर वे पार्टी से बड़े होते तो आज उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में होती, उनके परिवार से ही पार्टी के पदाधिकारी और पीएम चुने जाते। और तब यह राजनीति नहीं बल्कि विकृति कहलाता, जो कि इस दौर में हम कॉन्ग्रेस सहित बाकी क्षेत्रीय दलों के भीतर देख रहे हैं।

पर भाजपा में यह विकृति नहीं पनपी है, तो उसके मूल में संघ का हाथ है। संघ जो भाजपा को वैचारिक और नैतिक ऊर्जा प्रदान करता है। जैसा कि संघ के बारे में कहा जाता है, कि वह एक राजनीतिक संगठन न होकर, एक सांस्कृतिक संगठन है, क्योंकि संघ के लोग संघ में रहने के दौरान राजनीतिक हसरतें नहीं पालते, अगर उन्हें राजनीति करना है तो वे संघ और भाजपा की मर्जी से राजनीति की मुख्यधारा में आते हैं।

संघ ने अपना यह चरित्र उस दौर में विकसित किया जब वह दशकों तक देश में कॉन्ग्रेस, वामपंथियों और सेक्युलरों के निशाने पर रहा, जब उसको खत्म करने और बदनाम करने के अनेकों षड्यंत्र हुए। लेकिन संघ के बरक्स कॉन्ग्रेस का ‘सेवा दल’ आज एक परिवार के सामने घुटनों के बल उन स्थितियों के बावजूद है, जबकि उसके पास अपने वैचारिक, नैतिक और सांस्कृतिक उत्थान के असीमित अवसर थे। लेकिन फिर सवाल वही ‘मंशा’ और ‘नीयत’ का है।

पुनश्च: कल कॉन्ग्रेस पार्टी के सर्वगुण सम्पन्न प्रवक्ता और राफेल मामलों के विशेषज्ञ रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया में सबूतों के साथ आरोप लगाया कि 2009 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने भाजपा के शीर्ष नेताओं को जिनमें आडवाणी, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के नाम शामिल हैं, उनको कुल 1800 करोड़ रुपए की रिश्वत दी गई। खैर सबूतों के ‘अकाट्य’ होने के बारे में क्या बात की जाए, जबकि यह रिश्वत राउंड फिगर में है और रिश्वत विवरण के प्रत्येक पेज के नीचे रिश्वत देने वाले ने अपने हस्ताक्षर भी किए हुए हैं, ताकि वह कभी पकड़ा जाए तो उसकी जमानत भी न हो सके।

लेकिन मैं यहाँ कुछ और बात करना चाहता हूँ कि 1800 करोड़ रुपए देने के बाद भी, और उन नेताओं के देने के बाद भी जो भाजपा के शीर्ष पदों पर हैं, येदियुरप्पा जी भी आज पार्टी और संगठन से बड़े नहीं हो सके हैं, पार्टी में उनकी हस्ती और हैसियत उनके कर्मानुसार ही है।

हालाँकि, उन्होंने बड़ा बनने की कोशिश की थी; पार्टी छोड़ कर गए थे, असलियत पता चल गई और वापस आ गए और अब सहर्ष आडवाणी जी के क्लब में शामिल होने को तैयार हैं। इसलिए भाजपा के बारे में सोचिए, भाजपा की बात कीजिए। यह सच मायने में पार्टी विथ डिफ़रेंस है।