Monday, September 30, 2024
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नितिन गडकरी का महिला आरक्षण पर आया स्पष्ट बयान, कहा- इंदिरा गांधी ने बिन आरक्षण दिखाई थी राजनीति में शूरता

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राजनीति में नाम और प्रतिष्ठा कमाने वाली महिलाओं का उदाहरण देते हुए महिला आरक्षण पर बहुत ही स्पष्ट बयान दिया है।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता गडकरी जी ने रविवार को नागपुर में महिला स्वयं सेवा समूह द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा- “मैं महिला आरक्षण का विरोध नहीं करता लेकिन जाति और धर्म के आधार पर की जाने वाली राजनीति का सख्त विरोधी हूँ”।

नितिन गडकरी ने देश की राजनीति में नाम कमाने वाली केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज,राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन जैसी सशक्त महिलाओं का नाम लेते हुए कहा, “ये वो महिलाएं हैं, जिन्होंने बिना महिला आरक्षण के राजनीति में ऊंचे पदों पर जगह बनाई हैं।”

नितिन गडकरी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि इंदिरा गांधी एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने बिना किसी महिला आरक्षण अपनी काबिलियत को साबित किया और कई पुरुष नेताओं से बेहतर नेता साबित हुईं।

गडकरी जी ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा- “मैं महिला आरक्षण के खिलाफ नहीं हूँ, महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए, मैं इसका विरोध नही कर रहा।” उन्होंने कहा, “किसी को भी उसकी प्रतिभा, क्षमता के आधार पर आगे बढ़ाना चाहिए न कि भाषा,जाति,धर्म और क्षेत्र के आधार पर।”

कोई भी शख्स अपनी प्रतिभा पर आगे बढ़ता है, क्या हमने कभी साईबाबा, गजानन महाराज या संत तुकडोजी महाराज की जाति पूछी है? क्या हमने कभी भी छत्रपति शिवाजी की, बाबा साहब अम्बेडकर या ज्योतिबाई फूले की जाति पूछी है। उन्होंने कहा कि मैं ऐसी राजनीति के सख्त खिलाफ हूँ, जो जाति और धर्म के आधार पर की जाती है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की यह बात रामधारी सिंह दिनकर की इन पंक्तियों की भी याद दिलाती है, जो हर मायनों में कालजयी अर्थ समेटे हुए है-

‘तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के’

फोटो फ़ीचर: कुम्भ 2019 – परम्परा और आधुनिकता का अनोखा संगम

कुम्भ अर्थात स्नान, ध्यान, सौहार्द्र और मेल-जोल का पर्व, सनातन परम्परा का एक अनोखा संगम। सनातन परम्परा कब से है, इसके बारें में हम सिर्फ़ अनुमान ही कर सकते हैं।

तस्वीर- अवनीश पी.एन. शर्मा

वैसे परम्पराओं और संस्कृति के बारे में कहा जाता है कि ये आसानी से ख़त्म नहीं होती, बल्कि बदलते समय के साथ खुद को ढालकर नित-नवीन ढंग से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती है।

तस्वीर- अवनीश पी.एन. शर्मा

भारत का विश्व प्रसिद्ध कुम्भ मेला सनातन परम्परा का जीवन्त प्रमाण है। साथ ही, परम्परा में आधुनिकता का अद्भुत संगम भी।

तस्वीर- अवनीश पी.एन. शर्मा

कुम्भ लोगों के स्वागत के लिए पूरी भव्यता के साथ तैयार है। जगमग सड़कें, भव्य तोरणद्वार, शानदार लाइटिंग का बेहतरीन नज़ारा देखने को मिलेगा आपको।

तस्वीर- अवनीश पी.एन. शर्मा

तीर्थयात्रियों और आगन्तुकों की सुख-सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक इन्तज़ाम किये गए हैं।

प्रयागराज कुम्भ की एक सड़क
तस्वीर- अवनीश पी.एन. शर्मा

इसमें युवाओं को आकर्षित करने के लिए सेल्फी पॉइन्ट से लेकर इमरजेंसी के मौके पर वाटर और एयर एम्बुलेन्स, स्नाइपर और स्पेशल कमाण्डो जैसे इन्तज़ाम भी शामिल होंगे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ कुम्भ को यादगार बनाने के लिए पूरे मनोवेग से तत्पर हैं।

जनरल कैटेगरी के गरीबों को 10 फ़ीसदी आरक्षण की मंज़ूरी, सरकार करेगी संविधान संशोधन

केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले बड़ा क़दम उठाते हुए सामान्य वर्ग के पिछड़ों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के फ़ैसले पर मुहर लगा दी है। इस फ़ैसले से सामान्य वर्ग के ग़रीबों के लिए सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में 10 फ़ीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को कैबिनेट की मंज़ूरी मिल गई है।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस बाबत कैबिनेट बैठक के बाद जानकारी दी। एससीएसटी एक्ट (SC/ST Act) पर मोदी सरकार के इस फ़ैसले के बाद सवर्ण जातियों में नाराज़गी को दूर करने और हाल के दौरान हुए चुनाव में मिली हार के मद्देनज़र इसे सवर्णों को अपने साथ लाने की कोशिश समझा जा सकता है। मोदी सरकार के फ़ैसले से सियासत के साथ-साथ ख़ास विचारधारा के बुद्धिजीवियों में हड़कंप मच चुका है।

जानकारी के मुताबिक़, मंगलवार यानि कल मोदी सरकार संविधान संशोधन बिल संसद में पेश कर सकती है और मंगलवार को ही संसद के शीतकालीन सत्र का आख़िरी दिन भी है।

सूत्रों की मानें तो इस फ़ैसले के तहत आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा। मोदी सरकार के इस फ़ैसले को ऐतिहासिक फ़ैसले के तौर पर देखा जा सकता है। पहले भी कई अन्य राज्यों से सवर्ण आरक्षण की माँग उठ रही थी जिसे अब जाकर अमली जामा पहनाया गया।

भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन ने इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सवर्ण समुदाय पिछले काफी समय से इस आरक्षण की माँग कर रहे थे। उथल-पुथल भरे राजनीति के तमाम समीकरणों के इतर यह मान लेना चाहिए कि मोदी सरकार का यह फ़ैसला सवर्ण समाज को मज़बूत करने के लिए एक ठोस क़दम है, निश्चित तौर पर इसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेंगे।

जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार के इस नए फॉर्मूले को लागू करने के लिए आरक्षित कोटा बढ़ाया जाएगा, क्योंकि फ़िलहाल भारतीय संविधान में आर्थिक आरक्षण की व्यवस्था मौजूद नहीं है। इन परिस्थितियों में सरकार के पास आरक्षण संबंधी इस फ़ैसले को अमली जामा पहनाने का एकमात्र रास्ता संविधान संशोधन ही है।

आइये इस बात को थोड़ा और नज़दीक से समझते हैं और इसके तक़नीकी पहलू पर भी एक नज़र डालते हैं। मीडिया सूत्रों की मानें तो जिन लोगों की पारिवारिक आय 8 लाख रुपये सालाना से कम है केवल उन्हें ही इस 10 फ़ीसदी के आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसके अलावा शहर में 1,000 फीट से छोटे मकान और 5 एकड़ से कम कृषि भूमि की शर्त भी रखे जाने की ख़बरें हैं।

संविधान संशोधन की ज़रूरत

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भले ही 10 फ़ीसदी आरक्षण को कैबिनेट ने मंज़ूरी दे दी हो, लेकिन इसे लागू करने की डगर अभी भी मुश्किल है। इस फ़ैसले को ठोस स्वरूप देने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करने की ज़रूरत पड़ेगी और इसके लिए उसे संसद में अन्य दलों के समर्थन की भी आवश्यकता होगी। ऐसा करने के लिए मोदी सरकार को थोड़ी विषम परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ सकता है।

संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 15 और 16 संशोधित होंगे। अनुच्छेद 15 क्लॉज़ 4 के अनुसार सरकार किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है।

संभव है कि इसी क्लॉज़ में संशोधन हो और उसमें आर्थिक पिछड़ेपन को भी जोड़ा जाए। अनुच्छेद 16 क्लॉज़ 4 के अनुसार भी सरकारी नौकरियों में सरकार किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है जिसे संशोधित कर इसमें आर्थिक पिछड़ेपन का प्रावधान किया जा सकेगा।

हालाँकि, कैबिनेट से मंज़ूरी मिलने के बाद कई पार्टियों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है जिसमें बीजेपी की धुर विरोधी पार्टी कॉन्ग्रेस भी शामिल है। इसके अलावा एनसीपी (राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी) और आम आदमी पार्टी ने भी इस फ़ैसले का समर्थन किया है।

बता दें कि केंद्र और राज्यों में पहले ही अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फ़ीसदी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 22 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है। कई राज्यों में आरक्षण का प्रतिशत 50% से भी ज़्यादा है।

फोटो फ़ीचर: कुम्भ का भव्य आकर्षण ‘संस्कृति ग्राम’

10 एकड़ में फैला अद्भुत ‘संस्कृति ग्राम’ कुम्भ का महत्वपूर्ण आकर्षण है। आइए इसकी तैयारियों की एक झलक देखते हैं।

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

इस बारे में मुख्य सचिव अनूप चन्द्र पाण्डेय ने निर्देश जारी कर दिए है। जानकारी के मुताबिक कुम्भ मेले में अंतरराष्ट्रीय स्तर के बैले कलाकारों द्वारा रामलीला का आयोजन भी किया जाएगा।

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

‘संस्कृति ग्राम’ का आयोजन देश दुनिया को कुम्भ की ऐतिहासिकता से परिचित कराने के लिए किया जा रहा है।

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

विदेशी लोगों को कुम्भ की महत्ता से मोहित करने के लिए खास व्यवस्था की गई है।

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

जिनमें कुम्भ की अब तक की यात्रा और महत्त्व के बारे में जानकारी उपलब्ध कराती पत्रिकाओं से लेेकर, निशानी के तौर पर गंगा जल भी दिए जाने की योजना है।

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

भारत के सांस्कृतिक विभाग के सचिव जितेंन्द्र कुमार ने कहा, “भारत और दुनिया भर से कलाकारों को स्टेज पर रामलीला और कृष्णलीला में भाग लेने के लिए बुलाया जा रहा है।
यह दोनों मंच 2019 के कुम्भ में बेहद ख़ास हैं।”

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

इसका मक़सद इस आयोजन को विश्वस्तरीय बनाने का है, इसलिए 196 देशों से NRI भी आमंत्रित किए जाएंगे।

तस्वीर- ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

बता दें, कुम्भ के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम 55 दिन तक चलेंगे।

महागठबंधन का कोई भविष्य नहीं: नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज पटना में लोकसंवाद की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए महागठबंधन के प्रश्न पर कहा, “उनका कोई भविष्य नहीं है। हमारे सामने उनकी कोई चुनौती नहीं है।” मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया है कि 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए की जीत तय है। इसके साथ ही सीएम नीतीश ने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, हालांकि यह उनका व्यक्तिगत मत है और जनता ही मालिक है, अंतिम फैसला उसे ही करना है।

अपने वक्तव्य में सीएम ने कहा, “बिहार में सद्भावना का माहौल है, किसी भी राज्य से यहाँ ज्यादा शांति और अमन-चैन है। हमने 13 वर्षों में कभी कोई दंगा नहीं होने दिया। यहाँ गलती करनेवालों पर कार्रवाई की जाती है। किसी को बख़्शा नहीं जाता।”

मीडिया को संबोधित करते हुए तीन तलाक और राममंदिर मुद्दे पर भी नितीश कुमार ने अपनी बात जनता के सामने रखी। उन्होने कहा, “इन मामलों में शुरू से ही हमारा एजेंडा क्लियर रहा है। ये मुद्दे धर्मविशेष से जुड़े हैं और इसीलिए इन मुद्दों पर आपसी सहमति और कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार करना चाहिए। जहाँ तक तीन तलाक़ का मुद्दा है, ये किसी खास धर्म को मानने वाले लोगों की समस्या से जुड़ा है और इस पर बिना लोगों की सहमति के किसी तरह का कानून बनाना सही नहीं।”

2018 में बॉक्स ऑफ़िस पर देखने को मिली घोर असहिष्णुता, तीनों ख़ान पस्त

भारतीय सिनेमा के इतिहास में पिछले बारह सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन के मामले में चोटी की फ़िल्मों में तीनों ख़ान यानि कि शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान और आमिर ख़ान की फ़िल्मों को कोई स्थान नहीं मिला है। बता दें कि पिछले एक दशक से भी ज्यादा से बॉक्स ऑफिस के मामले में टॉप पर ख़ान त्रिमूर्ति की ही कोई न कोई फ़िल्म होती थी लेकिन 2018 में ये गणित बदल गया है। आइये जानते हैं कि इस साल तीनो खान में से किसका प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा और वो कौन से स्टार्स हैं जो सबसे टॉप पर रहे।

इस साल सबसे पहले आई सलमान खान की रेस 3 जो कि उनकी कई ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों की तरह ईद पर रिलीज़ की गयी। अच्छी ओपनिंग लेने और त्यौहार के मौके पर रिलीज़ होने के बावजूद ये फिल्म बॉक्स ऑफ़िस पर धड़ाम से गिरी। और हाँ, यहाँ पर रेस 3 की IMDB रेटिंग की बात करना ज़रूरी है क्योंकि IMDB रेटिंग को फ़िल्मों के मामले में विश्व में सबसे ज़्यादा भरोसेमंद माना जाता है। जनता की समझदारी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने रेस 3 को हिमेश रेशमिया की फिल्म आप का सुरूर से भी कम रेटिंग दी। रेस 3 की रेटिंग 2.1 है वहीं 2007 में आई आप का सुरूर की रेटिंग 2.3 है। वो तो अच्छा हुआ कि नसीरुद्दीन शाह की नींद उस वक्त नहीं खुली नहीं तो उन्होंने जनता पर अल्पसंख्यक समुदाय के सबसे बड़े त्यौहार के मौके पर एक अल्पसंख्यक को प्रताड़ित करने का आरोप मढ़ डाला होता।

वैसे संसद हमले का दोषी आतंकी याकूब के फाँसी के बाद गुस्साए सलमान ने इस बार अपना गुस्सा काफी नियंत्रण में रखा और ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया जिस से कोई विवाद हो। याकूब मेनन वाले बयान के बाद उनके पिता सलीम खान ने सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगी थी जिसके बाद सलमान ने डैमेज कण्ट्रोल ट्वीट भी किये थे लेकिन लोगों का मानना है कि सलीम ख़ान ने फ़िल्म के फ्लॉप होने के बाद उन्हें पहले ही चुप रहने की नसीहत दे दी थी।

अब बात करते हैं आमिर ख़ान की ठग्स ऑफ हिंदुस्तान की। इस फ़िल्म के लिए काफी हाइप बनाया गया। मार्केटिंग गुरु आमिर ख़ान ने इसके लिए गूगल मैप का सहारा जहाँ पर उनके द्वारा इस फ़िल्म में निभाए गए करैक्टर का चित्र दिखता था। बता दें कि आमिर ने इस फ़िल्म में एक ठग का किरदार निभाया था। वो तो भला हो कि लोग पहले दिन बाद ही समझ गए कि आखिर गूगल मैप में वो चित्र किसलिए था। असल में लोगों को ये पता चल गया कि गूगल मैप उनसे ये कहना चाहता है कि उस तरफ मत जाओ वरना ठग लिए जाओगे।

मानो गूगल मैप कह रहा हो- “उस तरफ मत जाओ, ख़तरा है।”

खैर, पहले दिन रिकॉर्डतोड़ कमाई के बाद फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर औंधे मुह गिरी। वीएफएक्स से सजी हाई बजट वाली इस फ़िल्म को डिज़ास्टर की श्रेणी में रखा गया। डिस्ट्रीब्यूटर से लेकर प्रोडूसर तक को लगे घाटे का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिनेमाघरों ने दूसरे सप्ताह से ही इस फ़िल्म को निकाल बाहर करना शुरू कर दिया। वो तो भला हो कि इसे लेकर आमिर खान की पत्नी किरण राव का जमीर इस वक्त नहीं जागा नहीं तो वो दूसरे दिन ही देश छोड़ कर जाने की बात कर देती। वैसे इस पर विचार करना जरूरी है कि आमिर अगर देश छोड़ कर जायेंगे भी तो कहाँ। हाँ, एक देश ऐसा है जिसने बॉक्स ऑफ़िस पर उन्हें काफी सफलता दी है। वो देश है चीन।

तो आमिर ख़ान ने खुद देश छोड़ने की बजाय अपनी फ़िल्म को ही देश छुड़ा दिया। भारत में हुए भारी घाटे की भारपाई के लिए ठग्स ऑफ हिंदुस्तान चीन गयी। आमिर को लगा कि शायद चीन वाले भारतीयों की तरह असहिष्णु नहीं होते हैं और वो उनके घाटे की भारपाई कर दें। भारतीय भी मन ही मन खुश हुए कि आजतक चीन अपने नकली प्रोडक्ट भारत में बेचता रहा है, चलो कोई तो आया जो चीन को बेवकूफ़ बनाने जा रहा है। लेकिन आमिर खान ने सपने में भी नहीं सोंचा होगा कि चीनी भारतीयों से भी ज्यादा असहिष्णु निकलेंगे। वहाँ फ़िल्म अपने लाइफ़टाइम में 50 करोड़ रुपए के दर्शन भी नहीं कर पाई। खैर इसके बाद से किरण राव का कोई भी बयान नहीं आया है क्योंकि जिस देश में उनके बसने की उम्मीद रही होगी उसने ही धोखा दे दिया। इस मामले में नसीरुद्दीन शाह ने अब तक चीनियों के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है।

अब अंत में बात करते हैं किंग ख़ान की। जी हाँ, वही शाहरुख़ ख़ान जिन्होंने अपना 50वाँ जन्मदिन राजदीप सरदेसाई के वीडियो और असहिष्णुता के बयान के साथ मनाया था। ज़ीरो फ़िल्म को लेकर तगड़ा प्रमोशन किया गया। शाहरुख़ कहते हैं कि जब भी उन्हें भारत में अपने स्टारडम का घमंड होता है वो एक बार अमेरिका हो आते हैं। दरअसल जब भी शाहरुख़ अमेरिका जाते हैं तो वहाँ के सुरक्षाबलों द्वारा एअरपोर्ट पर उनके कपड़े उतारने की ख़बर आती है। ख़ैर, 200 करोड़ के बजट वाली ज़ीरो की शूटिंग के लिए भी शाहरुख़ अमेरिका गए। नासा में भी शूटिंग की।

देशवासी अभी भी ये सोचते हैं कि आखिर शाहरुख़ जैसा सुपरस्टार अमेरिका के सिक्यूरिटी गार्ड्स से उस तरह बात क्यों नहीं कर पाता जैसा कि उन्होंने आईपीएल के दौरान वानखेड़े स्टेडियम के गार्ड के साथ किया था। कुछ भी हो, तनी हुई उँगली उठा कर शाहरुख़ ख़ान ने जब वानखेड़े के उस गार्ड को झिड़का था तभी लोगों ने समझ लिया था कि शाहरुख़ अमेरिका वाला गुस्सा यहाँ उतार रहे हैं। वैसे अब तक शाहरुख द्वारा अमेरिकन सिक्यूरिटी गार्ड्स को ऐसे झिड़कने की कोई खबर नहीं आई है जैसा कि उन्होंने मुंबई में उस गार्ड को झिड़का था जबकि उस गरीब ने तो उनके कपड़े भी नहीं उतारे थे।

वानखेड़े में सिक्यूरिटी गार्ड और शाहरुख की नोकझोंक

जब सारे दाव फ़ेल हो गए तब शाहरुख़ ने अनुष्का शर्मा से मदद माँगी। शायद विराट का स्टारडम फ़िल्म को बचा ले जाये। शाहरुख़ मार्केटिंग के एक्सपर्ट माने जाते हैं और इसी क्रम में उन्होंने शायद अनुष्का को उनके पति यानि विराट के ट्विटर हैंडल से ट्वीट करने की सलाह दी। लेकिन हाय रे असहिष्णु जनता, उसने न शाहरुख़ की सुनी न अनुष्का की, सुनी तो बस फ़िल्म के कंटेंट की और जिस फ़िल्म के कलेक्शन में 3 के साथ दो ज़ीरो लगने की उम्मीद थी उसमें एक के साथ दो ज़ीरो भी आफ़त हो गयी।

वैसे अगर हम सिर्फ़ फ़्लॉप फ़िल्मों की ही बात करते रहे तो शायद इस से उन फ़िल्मों के साथ नाइंसाफी होगी जो असल में अच्छी थी और कम बजट और बड़े स्टार्स के न होने के बावजूद कंटेंट के आधार पर खूब चली। इस क्रम में आई फ़िल्म अन्धाधुन। आयुष्मान खुराना अभिनीत इस फिल्म में दर्शकों को दृश्यम के बड़े दिनों बाद बॉलीवुड में किसी अच्छे सस्पेंस थ्रिलर के दर्शन हुए। फ़िल्म IMDB पर 2018 की टॉप रेटेड फ़िल्म है और इसे दर्शकों ने भी खूब प्यार दिया। आयुष्मान की बधाई हो लीक से हटकर फ़िल्म थी लेकिन अच्छे कंटेंट की वजह से खूब चली। राजकुमार राव भी इस वर्ष पूरे फ़ॉर्म में दिखे और हॉरर-कॉमेडी स्त्री से दर्शकों का ख़ासा मनोरंजन किया। स्त्री में पंकज त्रिपाठी के किरदार की भी जम कर सराहना हुई।

अगर इस लिस्ट में हम तुमबाड का जिक्र न करें तो ये अधूरी रह जाएगी। फ़िल्म को दर्शकों का काफी प्यार मिला और कम सिनेमाघरों में रिलीज होने के बावजूद लम्बी चली। जॉन अब्राहम की परमाणु ने वाजपेयी के प्रधानमंत्रीत्व के दौरान हुए परमाणु परीक्षण की कहानी को दिखाया जिस की खूब सराहना हुई। अक्षय कुमार की गोल्ड ने आजाद भारत के पहले हॉकी मेडल की कहानी दिखाई और फ़िल्म ने सौ करोड़ की कमाई की। आलिया भट्ट की राज़ी भी खूब चली और महिला प्रधान फ़िल्मों के लिए एक ट्रेंड सेट किया।

अब अंत में बात कर लेते हैं उन स्टार्स की जिनकी फ़िल्में सबसे ज्यादा चली। कमर्शियल तौर पर रजनीकांत-अक्षय कुमार की हाई बजट फ़िल्म 2.0 इस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फ़िल्म बनी। दूसरे स्थान पर रही संजू जिसमें रणबीर कपूर ने संजय दत्त के किरदार को जीवंत किया। उसके बाद पद्मावत का स्थान आता है। विवादों में रहीपद्मावत से रणवीर सिंह ने 2018 की शुरुआत की और सिम्बा से उन्होंने साल का अंत किया। दोनों ही फ़िल्में रिकॉर्डतोड़ रहीं।

कानून को हाथ में ले रहे गौ-तस्कर हिंदू या मजहबी नहीं, बस अपराधी हैं

भारत संविधान से चलने वाला एक धर्म निरपेक्ष देश है। इस देश में रहने वाले शर्मा हो या वर्मा, झा हो या ओझा, खान हो या पासवान सभी लोगों को संविधान द्वारा एक समान अधिकार मिला है। ऐसे में देश में रहने वाले हर नागरिक की यह जिम्मेदारी होती है कि वो अपने देश के संविधान में दर्ज नियम और कानून का सही से पालन करे। यदि कोई कानून हाथ में लेता है तो स्वाभाविक है कि पुलिस कार्रवाई करेगी। इसलिए गौ-तस्करी के आरोपित को किसी मज़हब से जोड़कर देखने के बजाय एक अपराधी के रूप में देखना जरूरी है।

जिन मुट्ठी भर लोगों ने पहलू खान की मौत के बाद भारत को असहिष्णु बताकर सरकार के खिलाफ मंडी हाउस टू जंतर-मंतर तक पैदल मार्च किया, वही लोग गौ-तस्करी के मामले पर कुछ बोलने से परहेज़ करते रहे। जबकि होना यह चाहिए था कि जो गलत है उसे गलत कहा जाए और जो सही है उसे सही कहा जाए।

निश्चित रूप से गौरक्षकों द्वारा यदि कानून को हाथ में लिया जाता है तो वह गलत है। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने खुद इस मामले पर बयान देकर फ़र्ज़ी गौरक्षकों पर कार्रवाई करने की बात कही है। इसके बावजूद जो लोग गौरक्षकों के मामले पर सरकार को घेरने की कोशिश करते हैं, उन्हें गौ-तस्करों द्वारा गोलीबारी की घटना पर सोचने की जरूरत है।

राजस्थान विधानसभा में विधायक हीरालाल नागर ने सरकार से गौ-तस्करी को लेकर सवाल किया था। इस सवाल के जवाब में राजस्थान सरकार के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने बताया सवाल के जवाब में राजस्थान सरकार के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने बताया कि 2015 से वर्ष 2017 के बीच गौ-तस्करी के कुल 1,113 मामले दर्ज हुए थे। इस दौरान पुलिस ने 16,428 गौवंश बरामद किया और 2,198 गौ-तस्करों को धर दबोचा।

इस सवाल के जवाब में कटारिया ने आगे बताया कि इस दौरान 33 बार फायरिंग की घटना हुई है। इन आँकड़ों से यह पता चलता है कि गौ-तस्करों ने कई बार पुलिस के ऊपर गोलीबारी करके कानून को अपने हाथ में लिया है। राजस्थान की तरह ही, यूपी और हरियाणा में भी गौ-तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। इन राज्यों में भी आए दिन गौ-तस्करी में लिप्त अपराधियों द्वारा पुलिस पर गोलीबारी की घटना सामने आती रहती है।

कुछ दिनों पहले गोकशी के मामले में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या हो गई थी। इस मामले में भी गौरक्षकों को बदनाम करने की कोशिश की गई। इसी तरह जब कभी गौतस्करी के आरोपित को पुलिस हिरासत में लेती है तो लोग इस मामले में आरोपित को किसी खास मज़हब से जोड़कर देखने लगते हैं। यदि कानून तोड़ने वाला व्यक्ति अपराधी है तो फिर ऐसे मामले को मजहब के एंगल के देखना तो किसी भी तरह से सही नहीं हो सकता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा गौ-तस्करों द्वारा पुलिस पर गोलीबारी की कई घटना हो चुकी है।

दिसंबर 2018 में मेरठ के मंडाली में गो-तस्करों द्वारा पुलिस के जवानों पर गोली चलाने का एक मामला सामने आया था। इसके बाद पुलिस के जवानों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए दो तस्करों को हिरासत में लिया था। इस घटना में मंडाली थाना के एसओ बाल-बाल बचे थे। इस घटना में एजाज़ और महमुद्दीन नाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था। ये दोनों ही जबद्दीन नाम के आरोपित के लड़के हैं, जो इस समय दो दर्जन से अधिक गौ-तस्करी के मामले में जेल में हैं।

इस घटना की चर्चा यहाँ इसलिए की गई ताकि आप समझ सकें कि किस तरह एक खास समूह के लोग लगातार कानून को हाथ में ले रहे हैं। यदि इन लोगों पर पुलिस कार्रवाई करती है और कोई हादसा हो जाता है तो यह संभव है कि मुट्ठी भर लोग दिल्ली में पैदल मार्च निकालते हुए देश को ख़तरे में बताना शुरू कर दें।

हमें इस बात को समझने की जरूरत है कि हमारे देश की अंतरात्मा में सहिष्णुता है। हमारे समाज की कानून में अहिंसा व धर्म निरपेक्षता की भावना सबसे पहले आती है। अंग्रेज़ों ने हमारे बीच फूट डालने की कोशिश की तो हमने मिलकर तोप-गोलों का सामना किया। अहिंसा की राह पर चलते हुए उन्हें देश से भागने के लिए मजबूर कर दिया।

ऐसे में हमें यह भी समझने की जरूरत है कि जो कानून और समाज के ख़िलाफ़ है वो न तो हिंदू है न ही किसी मजहब विशेष के। ऐसे लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराधी हैं। अपराधी को समाज में रहने कोई अधिकार नहीं है, ऐसे में यदि कुछ लोग कानून के दायरे में गौ-तस्करों का विरोध कर रहे हैं तो वह गलत कैसे हो सकता है? हमें समाज में गलत तत्वों को समाप्त करने के लिए उठ रहे आवाजों को जगह देने की ज़रूरत है।   

219 साल से तारीख़ पे तारीख़, भारत का सबसे पुराना केस 1800 में हुआ था दर्ज़

कलकत्ता हाई कोर्ट बना 1862 में। लेकिन यहां के सबसे पुराने पेंडिंग केस की बात करें तो यह लगभग 219 साल पुराना है। चौंक गए! लाज़िमी भी है। क्योंकि जिस पेंडिंग केस AST/1/1800 की बात यहाँ की जा रही है, वो साल 1800 में दर्ज़ की गई थी। यह आंकड़ा सरकारी है – नेशनल जूडिशियल डेटा ग्रिड का।

साल 1800 में दर्ज़ ‘ऐतिहासिक’ केस

कलकत्ता हाई कोर्ट भारत का पहला हाई कोर्ट था। 1 जुलाई 1862 में जब इसकी स्थापना हुई, तब इसे फोर्ट विलियम हाई कोर्ट के नाम जाना जाता था। इसका मतलब यह हुआ कि जिस ‘ऐतिहासिक’ केस AST/1/1800 की बात इस ख़बर में की जा रही है, वो साल 1800 में किसी लोअर कोर्ट में दर्ज़ की गई होगी।

निचली अदालतों में लगभग 170 साल ख़ाक छानने के बाद 1 जनवरी 1970 को यह ‘ऐतिहासिक’ केस AST/1/1800 कलकत्ता हाई कोर्ट में रजिस्टर किया गया। अफ़सोस, हाई कोर्ट में भी इसे पिछले 49 साल से तारीख़ पे तारीख़ ही नसीब हुई। इस केस में आखिरी सुनवाई 20 नवंबर 2018 को हुई थी।

कलकत्ता हाई कोर्ट में भी पिछले 49 साल केस पर फैसला नहीं

नेशनल जूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) एक सरकारी वेबसाइट है। यहाँ देश भर की अदालतों के पेंडिंग केसों की जानकारी आपको एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाती है।

NJDG के चौंकाने वाले आंकड़े:

  • देश भर की कुल पेंडिंग केसों की संख्या 2.94 करोड़
  • देश की 24 हाई कोर्ट में करीब 49 लाख केस पेंडिंग
  • 2.44 लाख पेंडिंग केस के साथ कलकत्ता हाई कोर्ट सबसे ऊपर
  • देश की सभी हाई कोर्ट में 10 लाख से ज्यादा केस, जो 10-30 साल से पेंडिंग
  • सभी केसों को खत्म होने में लगेंगे 324 साल (सरकारी सर्वे)

संसद में हंगामा कर रहे उत्पाती सांसदों पर बरसा सुमित्रा महाजन का कहर, 4 सांसदों को फिर किया सस्पेंड

लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने आज नियम 374 ए के तहत 4 सांसदों को दो दिन के लिए बर्खास्त कर दिया। इन बर्खास्त सांसदों में AIADMK पार्टी में 3 बड़े सांसद पी वेणुगोपाल, के एन रामचंद्रन, के गोपाल नाम शामिल हैं। इनके अलावा TDP पार्टी के सांसद एन. शिवप्रसाद भी शामिल हैं।

आज सुबह संसद का सत्र शुरू होने के बाद ही रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने झूठ बोलने का आरोप लगाया और साथ में रफाल सौदे पर एक बार फिर जेपीसी मांग की । जिसके बाद विपक्षी दलों ने हंगामा करना शुरू कर दिया। स्पीकर सुमित्रा महाजन की बहुत कोशिशों के बाद भी शोर कर रहे सांसद नहीं मानें। संसद में बिगड़ती परिस्थितियों को देखते हुए स्पीकर द्वारा कड़ा कदम उठाया गया और AIADMK पार्टी के तीन सांसद और TDP के एक सांसद को अगले दो दिनों के लिए ससपेंड कर दिया गया।

इस बार चल रहे शीतकालीन सत्र में लोकसभा स्पीकर अपनी शक्तियों का पूरा इस्तेमाल करती दिखाई दे रही हैं। इससे पहले भी सुमित्रा महाजन ने AIADMK और TDP के कुछ सांसदों को 5 दिनों के लिए ससपेंड कर दिया था।

दरअसल, इस दिन कावेरी नदी पर बनने वाले बाँध के मुद्दे पर और रफाल मुद्दे पर कुछ सांसद बिना रुके हंगामा कर रहे थे। इस दौरान विपक्ष द्वारा लोकसभा और राज्यसभा के भीतर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। इस बीच कुछ सांसद स्पीकर की वेल में आकर हंगामा किया और कागज के कुछ टुकड़ों को फाड़कर अध्यक्ष के सीट की तरफ फेंक दिया। सांसदों का ऐसा बर्ताव देखकर स्पीकर महोदय बेहद नाराज़ हुई और सांसदों को जमकर फटकार लगाई और 22 सांसदों को ससपेंड भी कर दिया।

मुस्लिम बस्ती में गिरी पतंग, पत्थरबाज़ी, मारपीट, लूटपाट में 7 महिलाओं समेत 14 घायल

पतंगबाज़ी का ज़िक्र आते ही जो दृश्य सबसे पहले आँखों के सामने उभरता है वो किसी भी तरह से भयानक तो नहीं हो सकता, लेकिन बच्चों के इस खेल और हँसी ठिठोली के ज़रिये भी कोई भयावह मंज़र देखने को मिल सकता है तो ये बड़े ही ताज्जुब की बात है।

ऐसी ही एक घटना जमशेदपुर के बर्मामाइंस में देखने को मिली है जहाँ बच्चों का यह खेल पत्तथरबाज़ी, लूटपाट, तोड़फोड़ और दो समुदायों के बीच टकराव का कारण बन गया।

दरअसल, हुआ यूँ कि बीते शुक्रवार को सेवा आश्रम में रहने वाले एक बच्चे की पतंग कट जाने के बाद वो मुस्लिम बस्ती में जा गिरी। पतंग कट जाने के बाद वो पतंग बस्ती के ही एक अन्य बच्चे के हाथ लग गई और वहीं से शुरू हुआ पतंग पर अपनी-अपनी दावेदारी सिद्ध करने का दौर। इसी दौर में पतंग को अपनी-अपनी तरफ छीना-झपटी की स्थिति में वो पतंग फट गई।

पतंग के फटने के बाद आपसी विवाद में दो पक्षों में जमकर पत्थरबाज़ी हुई, क़रीब आधा दर्जन कच्चे मकानों की छतें टूटी और दो घरों में लूटपाट हो गई। दो पक्षों में बढ़ता यह विवाद जब स्थानीय पुलिस स्टेशन में पहुँचा, तो वहाँ भी कार्रवाई करने की मांग हंगामे को न्योता दे डाला।

मामले के पुलिस तक पहुँचने के बाद दोनों परिवार को पुलिस द्वारा शांत कराया गया, लेकिन स्थिति एक बार फिर बिगड़ गई जब बीते रविवार को एक बार फिर से यह मुद्दा आपसी विवाद का सबब बन गया। बस्ती में हुए विवाद में दोनों पक्षों के लोग आपस भिड़ गए जिसके परिणामस्वरूप कई लोग घायल हुए।

पुलिस के मुताबिक़, दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ थाने में लिखित शिक़ायत दर्ज की थी। पुलिस के अनुसार शुक्रवार को जिन दो बच्चों के बीच पतंग की वजह से विवाद हुआ था, उनमें एक बच्चे की माँ ने बस्ती में पहले पक्ष के बच्चों से कहा था कि तुमने मेरे बेटे को क्यों मारा, मारने से पहले हमें बताना चाहिए था।

पतंगबाज़ी के इस मामले ने उस समय गंभीर रूप ले लिया जब पड़ोसियों द्वारा इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई। पड़ोसियों द्वारा उकसाये जाने के बाद बच्चों के इस आपसी खेल ने एक साम्प्रदायिक रूप ले लिया।

जानकारी के मुताबिक़ घायलों को एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहाँ उनका इलाज चल रहा है। दो पक्षों के विवाद की ख़बर पाकर बर्मामाइंस, बिरसानगर, टेल्को पुलिस और डीएसपी सिटी अनुदीप सिंह क्यूआरटी के साथ पहुंचे। मामले की गंभीरता को समझते हुए क्यूआरटी द्वारा भीड़ को वहाँ से भगाया गया और हालात पर क़ाबू पाया गया।