Sunday, September 29, 2024
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रोहिंग्याओं को पीटकर देश से बाहर भगा रहा है सऊदी अरब

जनवरी के पहले सप्ताह ही भारत देश से पाँच रोहिंग्या परिवारों को असम जेल से निकालकर वापस म्यांमार भेजे जाने के बाद सऊदी अरब भी दर्जनों रोहिंग्याओं को बांग्लादेश भेजने की तैयारी कर रहा है। ये लोग कई दशकों से बिना नागरिकता के ही अपने परिवार के साथ सऊदी अरब में रह रहे थे।

मिडिल ईस्ट आई के अनुसार रोहिंग्याओं को हथकड़ियों में शुमेसी डिटेन्शन सेंटर, जेद्दाह से लाइन में खड़ा कर बांग्लादेश भेजने की तैयारी की जा रही है। कुछ रोहिंग्याओं, जिन्होंने वापस भेजे जाने का विरोध किया, उन्हें हथकड़ियों में कैद कर और पीटकर वापस भेजा जा रहा है।

सऊदी अरब द्वारा बंधक बनाए गए एक रोहिंग्या कैदी द्वारा मिडिल ईस्ट आई को भेजे गए विडियो में बताया है कि वो पिछले 6-7 सालों से सऊदी अरब में रह रहा है और अब उसे बांग्लादेश भेजने कि तैयारी की जा रही है, जहाँ पर वो भी दूसरे रोहिंग्याओं की तरह ही शरणार्थी बन जाएगा।

बंधक बनाए गए रोहिंग्या ने MEE को भेजे गए अपने विडियो में कहा, “वो लोग रात को 12 बजे हमारे घरों में घुसे और हमें सामान बांध कर बांग्लादेश जाने की तैयारी करने को कहने लगे। अब मैं कैद हूँ और मुझे जबरदस्ती एक ऐसे देश भेजा जा रहा है जहाँ का मैं हूँ ही नहीं, मैं बांग्लादेशी नहीं बल्कि रोहिंग्या हूँ।”

रिपोर्ट्स का कहना है कि शुमेसी डिटेन्सन सेंटर से वापस भेजे जा रहे कई रोहिंग्या शरणार्थी ऐसे हैं जो फ़र्ज़ी पासपोर्ट बनाकर पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश जैसे अन्य देशों से आए हैं। जबकि बहुत से रोहिंग्या शरणार्थियों का कहना है कि उन्होने अपनी पूरी ज़िंदगी सऊदी अरब में ही गुजारी है।

पिछले साल से ही भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने और उन्हें वापस भेजे जाने के प्रश्न पर बहुत सारे वामपंथी खेमे और लिबरल संगठन सरकार की आलोचना करते आ रहे हैं। वामपंथी बुद्धिजीवियों ने सरकार पर असहिष्णु होने और उनके मुस्लिमों के खिलाफ होने के आरोप लगाकर रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे को धार्मिक और सांप्रदायिक रंग देने के प्रयास भी किए। जबकि सऊदी अरब का रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति रवैया इस द्वंद को साफ करने के लिए काफी है।

देश के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने सरकार को घेरने के लिए उन पर आरोप भी लगाए हैं कि मुस्लिम होने की वजह से ही रोहिंग्याओं को देश से निकाला जा रहा है। लेकिन सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देश ने भी रोहिंग्याओं को देश से बाहर निकालने के लिए सख्त रवैया अपनाया है।

ये बात साफ है कि रोहिंग्या वर्तमान में दुनिया में सबसे ज्यादा पीड़ितों की श्रेणी में आ चुके हैं, जो दुनियाभर में अपनी नागरिकता को लेकर निरंतर जूझ रहे हैं। लेकिन साथ ही ये भी तय है कि रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे को धार्मिक रंग देना उनकी मुश्किलों को कम करने के बजाय बढ़ा ही रहा है।

इस मुद्दे पर तस्लीमा नसरीन ने एक ट्वीट करते हुए लिखा था, “सऊदी अरब रोहिंग्याओं का निर्वासन कर रहा है। अभी तक तो मैंने यही सुना था कि मुस्लिम लोग आपस में भाई होते हैं! लेकिन हमेशा यही देखा है कि अमीर मुस्लिम गरीब मुस्लिम से नफरत करता है, शिया मुस्लिम सुन्नी मुस्लिम को पसंद नहीं करता और सुन्नी मुस्लिम शिया मुस्लिम से नफरत करता है। सुन्नी मुस्लिम अहमदिया मुस्लिम से नफरत करते हैं। सऊदी मुस्लिम यमन के मुस्लिमों, पंजाबी मुस्लिमों, बंगाली मुस्लिमों से नफरत करते हैं।”

म्यांमार की जेल से भागकर अवैध तरीकों से भारत में घुस रहे रोहिंग्या भारत सरकार के लिए एक बड़ा प्रश्न बनते जा रहे हैं। वहीं कुछ मानवाधिकार समूह भी इस मामले पर लगातार निगाह रख रहे हैं। जबकि भारत सरकार रोहिंग्याओं को ‘सुरक्षा के लिए खतरा’ बताकर उनकी पहचान कर वापस भेजने के प्रयास कर रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार भागकर आए हुए रोहिंग्या पूरे भारत देश के कई प्रमुख राज्यों में रह रहे हैं, जिनमें जम्मू -कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, असम, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु राज्य प्रमुख हैं।

पूर्व सांसद प्रिया दत्त नहीं लड़ेंगी लोकसभा चुनाव, राहुल गांधी को ईमेल के ज़रिए दी जानकारी

कॉन्ग्रेस की पूर्व सांसद प्रिया दत्त के आगामी चुनाव ना लड़ने की बात सामने आई है। चुनाव ना लड़ने की जानकारी उन्होंने इमेल के ज़रिये राहुल गांधी को दी। जानकारी के मुताबिक़ उन्होंने मुंबई की नॉर्थ सेंट्रल सीट से चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया है।

प्रिया दत्त के चुनाव ना लड़ने की जानकारी के मिलने के बाद से ही कॉन्ग्रेस के खेमें में हलचल देखने को मिल रही है। एक तरफ, कॉन्ग्रेस उस सीट से चुनाव लड़ने के लिए नए नाम पर विचार कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ प्रिया दत्त ने इस बात का ख़ुलासा नहीं किया है कि वो कहाँ से और किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगी।

कयास तो यहाँ तक लगाए जा रहे हैं कि कॉन्ग्रेस किसी फ़िल्मी सितारे को ही इस सीट पर टिकट दे सकती है। इन फ़िल्मी सितारों में नगमा और राज बब्बर जैसे नाम शामिल हैं।

जानकारी के मुताबिक़ दो बार सांसद रह चुकी प्रिया दत्त ने कुछ निजी वजहों और पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी को देखते हुए यह फ़ैसला लिया है। वजह भले ही कुछ भी हो लेकिन इस प्रकार के निर्णय से एक बात तो साफ़ है कि कॉन्ग्रेस के अंदरुनी खेमें में कई बड़े राजनेता पार्टी के आलाकमान की गतिविधियों और पार्टी की स्थिति से ख़ुश नहीं हैं।

जानकारी के मुताबिक़ आज यानि सोमवार को मुंबई में महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस पार्टी की बैठक होनी है जिसमें लोकसभा सीटों पर विचार किया जाना है। इस बैठक के बाद कॉन्ग्रेस की राजनीति के कुछ पहलू खुलकर सामने आएँगे जिससे पार्टी की स्थिति साफ़ होती नज़र आ सकेगी।

बांग्लादेश में एक बार फिर ढहा दिया गया हिन्दू मंदिर, बनवाने वाले के परिवार पर हुआ जानलेवा हमला

राम मंदिर और बाबरी मस्ज़िद मामला हमारे देश मे इतना बड़ा विवाद है कि जब भी इसपर कोर्ट सुनवाई की तारीख बताता है तो मौजदा कुछ न्यूज़ चैनल अपने आप ही देश मे आपातकाल की घोषणा करने लगते हैं। उन न्यूज़ चैनल को देख रहा दर्शक घर में बैठे हुए, सोते-जागते ख़तरा महसूस करने लगता है। समझना बेहद मुश्किल होता है कि उनको अपने कथित रूप से अल्पसंख्यक होने से डर लगता है या फिर देश में हिंदुओं की संख्या ज़्यादा होने से। हमारे सेक्युलर देश में लोगों के धर्म पर खतरा मंडरा रहा होता है, जबकि धर्म के आधार पर बने देशों में हिंदुओं को और उनके धर्म को सुरक्षित होने का दावा किया जाता है।

स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश में हिन्दू मंदिर को ढहा देने की घटना सामने आई है। बांग्लादेश के तंगेल ज़िले के भात्रा गाँव में बीते शुक्रवार को आठ-नौ लोगों के समूह ने मंदिर में तोड़-फोड़ की और मंदिर बनवानेवाले चित्तरंजन के साथ उनके परिवार पर भी हमला किया।

ख़बरों की मानें तो ये हमलावर वहाँ के कुछ स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर की जगह को हथियाना चाहते थे। इसी वजह से उन्होंने अपनी गुंडई दिखाकर मंदिर को तोड़ डाला और परिवार पर भी जानलेवा हमला किया। रंजन ने इस ज़मीन पर करीब बीस साल पहले मंदिर बनवाया था। उनका कहना है कि बहुत पहले से ही कुछ लोगों की नज़र मंदिर पर हमेशा से बनी हुई थी।

बता दें कि बांग्लादेश में समय-समय पर हिंदुओं पर हमला होता आया है। पिछले साल बांग्लादेश के नेत्रकोना जिले के एक मंदिर को नष्ट करने के दौरान मूर्तियों को भी खंडित कर दिया गया था। इसके अलावा 30 दिसंबर को हुए आम चुनावों से पहले यहाँ हिंदुओं के घर भी जला दिए गए थे।

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा अगर किसी को लगाना है तो इन घटनाओं के अलावा तस्लीमा नसरीन की किताब ‘लज्जा’ उस हर शख्श को पढ़नी चाहिए जो हर बात पर भारत में रह रहे अल्पसंख्यको पर बेवज़ह खतरा मंडराने की स्थिति पर दुःख जताते हैं। ये किताब बताती है हिंदुओं की बांग्लादेश में उस दयनीय स्थिति को जो सन 1992 के पहले से और आजतक बनी हुई है।

चीन ने इस्लाम के चीनीकरण के लिए पास किया क़ानून

चीन ने इस्लाम के सिनीसाईजेशन की बात कही है और उसके लिए कानून भी पास कर लिया गया है। चीन में किसी चीज को सिनीसाइज़ करने का अर्थ होता है उसे चीन के अनुरूप ढालना या फिर उसका चीनीकरण करना। ताजा क़ानून के अनुसार चीन में अब इस्लाम का चीनीकरण किया जायेगा और उसे समाजवाद के अनुरूप ढाला जायेगा। इस क़ानून में अगले पांच सालों के लिए एक वर्कप्लान बनाया गया है जिसमे कहा गया है कि इस्लाम के भीतर चीन के मूल्यों को शामिल किया जायेगा। साथ ही इसमें इस्लाम का मार्गदर्शन करने की बात भी कही गयी है। यानी कि अब ये क़ानून यह तय करेगा कि चीन में इस्लाम को मानने वाले लोग अपने धर्म का किस तरह से पालन करेंगे।

चीन के अंग्रेजी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चीन के सरकारी अधिकारीयों ने आठ इस्लामी संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद ये तय किया कि इस्लाम को समाजवाद के मूल्यों के अनुरूप ढाला जायेगा और उसका मार्गदर्शन किया जायेगा। बता दें कि चीन के इतिहास में सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जाने वाले राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने देश में एक सीनीफीकेशन अभियान शुरू किया है जिसके अंतर्गत ये निर्णय लिए गए। पिछले महीने में ही चीन के युन्नान प्रांत में प्रशासन ने हुइ मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किये गए तीन मस्जिदों को बंद कर दिया था।

चीन का ये दावा है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग को इस्लामी चरमपंथियों और आतंकवादियों से ख़तरा है। चीन के अधिकारीयों के मुताबिक़ अलगाववादी चीन के बहुसंख्यक हुन और मुस्लिमों के बीच एक खाई पैदा करना चाहते हैं। लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन अल्पसंख्यकों की “नैतिक सफाई” कर रहा है।

चीन के कई हिस्सों में इस्लाम का पालन करना काफी कठिन हो गया है क्योंकि खुले में नमाज पढ़ने, बुरका या हिजाब पहनने, रोजा रखने, दाढ़ी बढाने जैसे कार्यों के लिए वहां सुरक्षाबलों ने कई लोगों को गिरफ्तार किया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दस लाख से भी ज्यादा उइगर मुस्लिमों को नजरबन्द तौर पर कैम्पों में रखा गया है जहां उन्हें सत्त्ताधारी कम्युनिस्ट सरकार के प्रति वफादारी निभाने और इस्लाम को त्यागने की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है। एसोसिएट प्रेस समाचार एजेंसी के मुताबिक़ चीन के विद्यालयों में अरबी की शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है और वहां के धार्मिक विद्यालयों में बच्चों के इस्लामी गतिविधियों में हिसा लेने पर भी रोक लगा दी गयी है।

हालाँकि चीन ने कहा है कि वह अल्पसंख्यकों के धर्म और संस्कृति की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। एसोसिएट प्रेस के अनुसार चीन के एक हुइ मुस्लिम समुदाय से जुड़े एक कवि ने कहा कि उन्हें अपने समुदाय के लोगों के लिए काफी डर लगता है जिनकी संख्या चीन में करीब एक करोड़ के आसपास है।

नसीर साहब देश का विवेक जाग चुका है, आग लगाना बंद कीजिए

नसीर को शायद ही देश ने कभी एक मुस्लिम के नज़रिए से देखा हो, उनकी छवि आज भी एक शानदार एक्टर की है। पर नसीरुद्दीन शाह एक के बाद एक विवादित और भड़काऊ बयान अलग-अलग मंचो और संस्थाओं की छत्रछाया में दिए जा रहें हैं। इससे पहले कि आप भी बुरी तरह डर जाएँ और अपने पड़ोसी, सगे-सम्बन्धी को शंका की नज़र से देखने लगे। आपको अपना देश पकिस्तान, तालिबान से भी बद्तर नज़र आने लगे, थोड़ा ठहर कर पहले डर के मनोविज्ञान को समझ लीजिए। फिर शायद आपको ऐसे दिखावटी डर पर भय नहीं बल्कि हंसी आए। आपको बताता चलूँ कि  ‘हमारे अधिकांश डर काल्पनिक होते हैं और अक्सर भविष्य में होते हैं, जो अज्ञात से उपजते हैं।’

पहले आपको नसीरुद्दीन शाह साहब के डर से परिचित कराता हूँ। देखिये डर किस रूप में आपके ज़ेहन में ज़हर घोलने को तैयार है।

Naseeruddin Shah
कारवां-ए-मोहब्बत में विवादित बयान देते हुए

“ये ज़हर फैल चुका है और दोबारा इस जिन्न को बोतल में बंद करना बड़ा मुश्किल होगा। खुली छूट मिल गई है कानून को अपने हाथों में लेने की। कई इलाकों में हम लोग देख रहे हैं कि एक गाय की मौत को ज़्यादा अहमियत दी जाती है, एक पुलिस ऑफ़िसर की मौत के बनिस्बत। मुझे फिक्र होती है अपनी औलाद के बारे में सोचकर। क्योंकि उनका मज़हब ही नहीं है। मज़हबी तालीम मुझे मिली थी, रत्ना (रत्ना पाठक शाह-अभिनेत्री और नसीर की पत्नी) को बिलकुल नहीं मिली थी, वो एक लिबरल परिवार से आती हैं। हमने अपने बच्चों को मज़हबी तालीम बिलकुल नहीं दी। क्योंकि मेरा ये मानना है कि अच्छाई और बुराई का मज़हब से कुछ लेना-देना नहीं है। अच्छाई और बुराई के बारे में ज़रूर उनको सिखाया।”

“तो फ़िक्र मुझे होती है अपने बच्चों के बारे में कि कल को उनको अगर भीड़ ने घेर लिया कि तुम हिंदू हो या मुस्लिम, तो उनके पास तो कोई ज़वाब ही नहीं होगा। इस बात की फ़िक्र होती है कि हालात जल्दी सुधरते तो मुझे नज़र नहीं आ रहे। इन बातों से मुझे डर नहीं लगता गुस्सा आता है। और मैं चाहता हूँ कि राइट थिंकिंग इंसान को गुस्सा आना चाहिए, डर नहीं लगना चाहिए हमें। हमारा घर है, हमें कौन निकाल सकता है यहाँ से।”

पूरा वक्तव्य पढ़कर क्या लग रहा है आपको? क्या नसीर का डर वास्तविक है या उनके दिमाग ने कुछ न्यूज़ चैनेल देखकर, उनके दिखाए माहौल और कुछ खतरे में आये तथाकथित लोगों के वक्तव्य के आधार पर या किसी एजेंडे के तहत खुद के लिए भी काल्पनिक डर का माहौल नहीं पैदा कर लिया? हो सकता है ये आने वाली किसी बड़ी घटना या साज़िश की पूर्वपीठिका हो या फिर कुछ संस्थाओं द्वारा सम्पादित स्क्रिप्ट का पूर्वपाठ। ध्यान दें, जो तथ्य अपने वक्तव्य में उन्होंने चुने हैं अपनी बात कहने के लिए, क्या वह सम्पूर्ण देश की तस्वीर है? या चंद घटनाओं को अपने हिसाब से चुनकर अपनी बात को सही दर्शाने की नापाक कोशिश?  

मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या सच में आपको लग रहा है, वर्तमान में आपका अस्तित्व खतरे में है? और है भी तो कितना और किससे? क्या उसकी वजह आप खुद हैं या आपके आस-पास के लोग या कुछ और? ज़्यादातर लोग भरे पड़े हैं अपने तमाम तरह के पूर्वग्रहों से, हर बात और घटना पर, हर पल प्रतिक्रिया देने को तैयार, चाहे ज़रूरत हो या न हो। कुछ ने तो बात बे बात देश का माहौल गरमाने का ठेका ही ले लिया है।

पहला विवाद अभी थमा भी नहीं था कि सुलगती अँगीठी में उन्होंने एक बार फिर आग भड़काने की कोशिश की। उनका पहला विवादित बयान यूपी के बुलंदशहर कांड का जिक्र कर हिंदुस्तान में डर लगने जैसा माहौल क़ायम करने के लिए था। पर जनता ने उनका सारा खेल समझ लिया। उनके देश विरोधी मंसूबे को भाँप कर अपने काम में व्यस्त हो गई। योजना विफल होती दिखी। असहिष्णुता का डर खड़ा होने से पहले ही दम तोड़ता नज़र आया तो उसमें जान डालने के लिए उन्होंने एक और विवादित बयान दे डाला। जिसे एमनेस्टी इंटरनेशनल ने हाथों-हाथ लिया। और उस पर एक मुहीम चलाकर देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की।

नसीर के अनुसार, “भारत में धर्म के नाम पर घृणा की दीवार एक बार फिर खड़ी हो गई है। जो अन्याय के खिलाफ हैं उन्हें दण्डित किया जा रहा है। जो अधिकार माँग रहे हैं उन्हें जेलों में डाला जा रहा है। कलाकारों, अभिनेताओं, विद्वानों, कवियों को डराया जा रहा है। पत्रकारों को बोलने से रोका जा रहा है। जो अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, उनके ऑफ़िसों पर छापे डाले जा रहे हैं, उनके लाइसेंस रद्द किये जा रहे हैं, उनके बैंक अकाउंट फ्रीज़ किये जा रहे हैं। आज जहाँ हमारा देश खड़ा है, वहाँ असहमतियों के लिए कोई जगह नहीं है। देश में केवल अमीरों और ताक़तवर लोगों को सुना जा रहा है। गरीब और वंचित कुचले जा रहे हैं। जहाँ कभी न्याय हुआ करता था वहाँ अब केवल अंधकार है। ”

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उनके बयान को #AbakiBaarManavAdhikaar हैशटैग के साथ न सिर्फ ट्वीट किया बल्कि ये दावा भी किया कि ‘भारत में फ्रीडम ऑफ़ स्पीच को दबाया जा रहा है। और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को डराया जा रहा है।’

फिलहाल नसीर साहब की भावनाओं से सहमत हूँ, बावजूद इसके कि उनकी बात मुझे कुछ ख़ास समझ नहीं आई। चलिए मान लेता हूँ कि देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ा हुआ है। समय-समय पर बिगड़ता रहता है। कुछ लोगों ने बिगाड़ने का ठेका जो ले रखा है। न बिगड़े तो उन्हें मज़ा ही नहीं आता। सामान्य-सी आपराधिक घटना में भी जातिवाद की बू आने लगती है उन्हें। हर घटना में यही ढूँढते है कि जाति क्या है? हिन्दू-मुस्लिम वाला कोई एंगल निकल रहा है कि नहीं, उसमे भी कोई मुस्लिम आहत हो या फिर उनकी भावनाएँ। खैर ऐसे भड़काई हुई असहिष्णुता की आग जल्दी ही शांत हो जाती है। फिर माहौल अपने आप ठीक हो जाता है और होता रहेगा। भारत देश ही ऐसा है। तमाम विविधताओं, विरोधाभाषों से भरा समाज है। एकतरफ़ा सोच वाले वामपंथी घामडों को यह देश कभी समझ में नहीं आएगा। वो हर बात में सिर्फ़ खामियाँ ही ढूँढने में खुद को खपा देंगे।

आश्चर्य इस बात का होता है कि जन्म से भारतीय होने वाला इतना बड़ा कलाकार जिसे समाज की बहुत अच्छी समझ होनी चाहिए ऐसी कोई बचकानी बात कहें जिसका कोई तुक समझ नहीं आए तो दुःख देश के माहौल पर नहीं बल्कि ऐसे लोगों की समझ पर होता है।

मुझे तो इस देश में ऐसा कोई बोतल से निकला हुआ जिन्न दिखाई नहीं देता जिसे बोतल में वापस न डाला जा सके। जिस देश में विभाजन की विभीषिका झेलने और दस लाख से अधिक लोगों के कत्ल होने के बाद भी बोतल से कोई जिन्न नहीं निकला। जिस देश ने चौरासी के सिख नरसंहार या और भी ऐसी घटनाओं के बाद भी हर तरह के जिन्न को बोतल में बंद कर दौड़ना सीखा हो। उसमें आठ-दस मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) की घटनाओं से बोतल से कोई जिन्न निकल गया कहना बचकानापन है। जहाँ भी अनियंत्रित भीड़ होगी और उन्हें उकसाने वाला कोई टुटपुँजिया नेता, तथाकथित लिबरल वामपंथी कामपंथी होगा वहाँ ऐसी घटनाएँ घट सकती हैं।

ये मामला लॉ एंड ऑर्डर का होता है और कानून ऐसे मामलों में अपना काम करता है। हाँ, कहीं-कहीं भीड़ का फ़ायदा उठाकर कुछ आपराधिक तत्व या विपक्षी पार्टियाँ आपराधिक घटनाओं को अंज़ाम देते और दिलवाते रहते हैं। चाहे वो बुलंदशहर का सुबोध सिंह का मामला हो या फिर निषाद पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री के भाषण से लौटते समय एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर देना। पर ऐसी घटनाओं में भी मीडिया आमतौर पर पहले जातिवादी, सम्प्रदायवादी मसाला ढूँढती है मिल गया तो हो-हल्ला, नहीं तो पूरा मामला ही सामाजिक न्याय का हो जाता है। आपको अंकित या डॉ. नारंग का मामला याद होगा जिसे इसी वामपंथी मीडिया ने ऐसा ट्रीट किया कि कहीं कुछ हुआ ही नहीं।

वैसे मुझे नसीर साहब का अपने बच्चों के लिए चिंतित होना समझ आता है। हम सब अपने बच्चों के लिए चिंतित होते हैं, होना भी चाहिए। कहीं किसी स्कूल बस की दुर्घटना की खबर सुनकर भी आपको चिंता हो सकती है कि बच्चे को स्कूल बस में भेजा करूँ या खुद ही छोड़ आया करूँ। मगर मुझे समझ नहीं आया कि उनकी बच्चों के लिए चिंता का मज़हबी तालीम से क्या सम्बन्ध है? आपने अपने बच्चों को मज़हबी तालीम नहीं दी, अच्छा किया या बुरा किया मगर इसका ज़िक्र क्यों? आप हिंदुस्तान में पले-बढ़े हैं तो आपको इतनी समझ तो होनी चाहिए कि हिंदुस्तान के अधिकांश बच्चों को कोई मज़हबी तालीम नहीं दी जाती।  

मेरे पूरे खानदान में मैंने किसी को मज़हबी तालीम पाते नहीं देखा। न ही मुझे कभी कोई धार्मिक शिक्षा मिली। और न ही अपने आस-पास बच्चों को कोई धार्मिक शिक्षा देते या दिलाते देखा। हिन्दुओं में तो आमतौर पर बच्चों को कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती जब तक कि बच्चे को पंडित या पुरोहित न बनाना हो। यहाँ तक कि तलफ्फुज़ ठीक करने के लिए भी रामायण या महाभारत नहीं पढ़ाई जाती। लोग वैसे ही आधे-अधूरे तौर पर बाकि कहानियों की तरह इनसे भी परिचित हो जाते हैं पर कोई ज़रूरी क़ायदा या ज़बरदस्ती नहीं है।

नसीर साहब आपकी चिंता वाज़िब है मगर अपनी चिंता को मज़हबी रंग न दें। साम्प्रदायिकता से लड़ना ठीक है, धर्म से नहीं। और यदि हिन्दुस्तानी होकर भी आप इन दोनों के बीच कोई फ़र्क नहीं समझते तो खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर आपको शर्म आनी चाहिए।

आपको इस देश ने बहुत कुछ दिया नसीर साहब और आपने देश विरोधी ताकतों को अपने ही देश पर सवाल उठाने का मौका दिया। आपके वक्तव्यों की आड़ में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भारत पर ये आरोप लगाता है कि यहाँ मुस्लिम ख़तरे में हैं, उन पर अत्याचार हो रहा है। उसे बलूचिस्तान का जघन्य अत्याचार या पाकिस्तान में हिन्दुओं पर लगातार हो रहा अत्याचार नज़र नहीं आ रहा।  वहाँ लगातार हिन्दुओं की संख्या घटते-घटते विलुप्ति के कगार पर है और यहाँ पाकिस्तान से भी बड़ी मुस्लिमों की आबादी पनप और फल-फूल रही है तो संकट में है।

नसीर साहब आप जैसे लोग अक्सर अपने डर को जायज़ ठहराने के लिए अपने हिसाब से घटनाएँ चुन लिया करते हैं फिर उस घटना को सोचकर इतना बड़ा करते हैं कि उनका काल्पनिक डर उन्हें भयावह लगने लगता है। क्या ये संभव है कि हर किसी के सोच और कार्यों पर सेंसर लगा दिया जाए। आप जो चिल्लाते हैं बोलने की आज़ादी छीनी जा रही है और आपका पूरा गिरोह जिसे न सिर्फ समर्थन देता है बल्कि बढ़ा-चढ़ाकर देश में अराजकता का माहौल पैदा करने की कोशिश करता है। आपको पूरी आज़ादी है तभी आप आज कुछ भी कह पा रहें हैं। कोई भी मीम या बहुत कुछ आपत्तिजनक कह और दिखा पा रहें हैं, फिर भी चिल्लाहट कि तानाशाही आ गई। याद होगा आपको इमरजेंसी का वो दौर भी जब केवल इस आशंका से कि कोई कुछ बोल न दे लाखों नेताओं, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, यहाँ तक कि आम लोगों को भी को जेल में ठूँस दिया गया था। तब आपको तानाशाही नज़र नहीं आई।

बताइए नसीर जी क्या कोई छिपी हुई मंशा है आपकी? किसी ने आपको कुछ लिखित स्क्रिप्ट दिया है या यूँ ही आपके दिमाग ने ही कुछ खेल खेला है जिससे आप लगातार इस तरह का वक्तव्य दे रहें हैं। और रही सही कसर, पहले से खेमों में बंटें वामपंथी कूढ़मगज, लिबरल चाटुकार पूरी कर रहे हैं। खेल तो अब भी जारी है और शायद चुनाव तक रह-रह कर ये सब चलता भी रहे।

नसीरुद्दीन शाह के वक्तव्य पर कई प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं, आपने भी अपने अंदाज़ में प्रतिक्रिया की ही होगी। कुछ ने उसे वैसा ही लिया जैसा कि वह है। कुछ ने फिर से तिल का ताड़ बना इसकी आड़ में अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की। कुछ के लिए तो फिर से यहाँ रहना मुश्किल हो गया था लेकिन अब आराम से रह रहें हैं। विपक्षियों, वामपंथियों से लेकर देश-विरोधी ताकतों को नई संजीवनी मिलते-मिलते रह गई।  

वैसे तो सब कुछ साफ़ है फ़िर भी चलते-चलते मैं कोई निष्कर्ष नहीं देना चाहता। ये आप पर छोड़ता हूँ। देश की जनता के विवेक पर मुझे पूरा भरोसा है। आप अपने विवेक से माहौल का बिलकुल सही अंदाजा लगा लेंगे। मुझे नहीं लगता आप को सच जानने या महसूस करने के लिए ऐसे किसी सेलेब्रिटी वक्तव्य की ज़रूरत होगी। जब भी ऐसा माहौल पैदा किया जाए तो कुछ दिन ऐसे भड़काऊ टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पोस्टों से दूर रहिये फिर सब सामान्य लगने लगेगा। क्योंकि देश की सनातन परम्परा में इतनी ताकत है जो आपको हर हाल में संभाले और जोड़े रखेगी।

इसी विषय पर एक कटाक्ष यहाँ पढ़ें: चोखा धंधा है अभिव्यक्ति की आज़ादी का छिन जाना!

8 साल से दुष्कर्म पीड़िता बेटी के लिए इंसाफ मांग रहे माँ-बाप, BJP दिलाएगी इंसाफ

साल 2011, ओडिशा के पुरी जिले में पीपली निवासी एक 19-वर्षीय दलित लड़की के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म ने वहाँ के लोगों को हिला के रख दिया था। अस्पताल में भर्ती कराने के बाद पीड़िता लगभग 6 महीने कोमा में रही, लेकिन उसके बाद ज़िंदगी की जंग हार गई। इस दुष्कर्म में 8 आरोपित शामिल थे, जिनमें से 4 को गिरफ्तार कर लिया गया था, जबकि 4 को छोड़ दिया गया था। इनमें से एक बर्खास्त पुलिस इंस्पेक्टर था जबकि अन्य तीन डॉक्टर थे। इंसाफ की गुहार लगाते पीड़िता के माँ-बाप 8 साल से इंतज़ार में हैं कि अपनी बिटिया को न्याय दिला पाएँ।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ओडिशा दौरे के दौरान बादीपुर सभा में ओड़िसा सरकार की इस मामले को लेकर जमके आलोचना की। इसके बाद इस मामला ने दोबारा से तूल पकड़ लिया। कल रविवार (6 जनवरी 2019) को केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पीड़िता के माँ-बाप से मुलाकात की। धर्मेंद्र प्रधान ने रविवार को पीड़िता के परिजनों के घर जाकर उनसे मिलकर उन्हें इन्साफ़ दिलाने का आश्वाशन दिया। साथ ही बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें न्याय दिलाने के लिए ये मामला दोबारा उठाया है। पीड़िता की माँ ने इस दौरान मंत्री जी से सीबीआई जाँच की माँग की है।

इस मामले में ओडिशा सरकार के एक मंत्री ने कोर्ट से आरोपियों को बरी किए जाने वाले फैसले का स्वागत किया था। जिसको लेकर ओडिशा सरकार पर विपक्ष ने खूब आलोचना की थी। इन आरोपियों का समर्थन करने वाले बीजू जनता दल के वरिष्ठ नेता और कृषि मंत्री प्रदीप महारथी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके अनुसार वो अपनी पार्टी के ईमानदार कार्यकर्ता हैं और मुख्यमंत्री की इज्ज़त करते हैं, इसलिए वो नैतिकता के आधार पर त्याग पत्र दे रहें हैं।

आपको बता दें कि फर्स्ट एडिशनल मजिस्ट्रेट (भुवनेश्वर) ने इस मामले में दो आरोपियों को गवाह न होने के कारण बरी कर दिया। जिसका समर्थन करते हुए नवीन पटनायक सरकार में कृषि मंत्री प्रदीप महारथी ने आरोपियों के पक्ष में टिप्पणी की थी। जिसके बाद से ही मामला फिर गर्म हो गया।

‘BJP के पास CBI है, तो हमारे पास गठबंधन है’ – सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में अवैध रूप से रेत खनन मामले में सीबीआई द्वारा एक के बाद एक कई छापे मारे गए और एजेंसी द्वारा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से पूछताछ की संभावना पर भी ज़ोर दिया गया है।

ख़ुद से पूछताछ की संभावना पर अखिलेश ने अपना कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, “जो संस्कृति इन्होंने (बीजेपी) शुरू की है, उसका सामना इन्हें ख़ुद भी करना पड़ सकता है।” अखिलेश इतने पर ही नहीं रुके बल्कि बीजेपी को कड़ी चेतावनी देते हुए ये भी कहा, “अगर उनके पास सीबीआई है तो हमारे पास गठबंधन है।”

रेत खनन घोटाले मामले में सीबीआई द्वारा समन भेजे जाने की संभावना का सामना करते हुए, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि एजेंसी द्वारा इस तरह की पूछताछ का सामना करना उनके लिए नया नहीं था, “इससे पहले कॉन्ग्रेस ने मुझ पर इस तरह की कार्रवाई की थी और अब बीजेपी भी ऐसा कर रही है। मैं एजेंसी द्वारा सभी सवालों के जवाब देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन किसानों की आत्महत्या और देश में बढ़ती बेरोज़गारी के बारे में जनता के सवालों का जवाब देने के लिए बीजेपी को भी तैयार होना चाहिए।”

अखिलेश ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपना हर हथकंडा आजमाने का प्रयास करेगी। फिर चाहे वो सीबीआई हो या फिर हो मनी पावर, लेकिन सपा और बसपा अपने गठबंधन को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे जिससे आने वाले समय में ज़्यादा से ज़्यादा सीटें प्राप्त की जा सकें।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पूर्व सपा सरकार के शासनकाल में वर्ष 2012 से 2016 के बीच राज्य में हुए कथित खनन घोटाला मामले में सीबीआई ने कल लखनऊ में आईएएस अफसर बी. चंद्रकला के घर पर छापा मारा था।

सीबीआई ने बुंदेलखण्ड में अवैध खनन के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर चंद्रकला समेत 11 लोगों पर मुक़दमा दर्ज किया था। वर्ष 2012-13 में खनन विभाग तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास था। लिहाज़ा ये कयास लगाए जा रहे हैं कि सीबीआई इस मामले में उनसे भी पूछताछ कर सकती है।

नागरिकता बिल जल्द पास नहीं हुआ तो असम जिन्ना के पास चला जाएगा: हेमंत बिस्वा शर्मा

असम से आने वाले उत्तर-पूर्व के वरिष्ट भाजपा नेता हेमंत बिस्वा शर्मा ने एक बार फिर से नागरिकता बिल 2016 के समर्थन में बयान दिया है। शर्मा ने एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, “पड़ोसी मुल्कों से आने वाले घुसपैठियों को रोकने के लिए नागरिकता बिल 2016 को जल्द पास करना जरूरी है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो असम जिन्ना के पास चला जाएगा।” इस प्रेस वार्ता के दौरान हेमंत बिस्वा शर्मा ने यह भी कहा कि घुसपैठियों को शरण देने के लिए कई सारे लोग चिंतित हैं, जो कि गलत है। यदि हम ऐसा करते हैं तो एक तरह से खुद को जिन्ना के दर्शन के लिए आत्मसमर्पण कर रहे होंगे। यह एक तरह से भारत और जिन्ना के विरासत की लड़ाई है।

इस बिल पर भाजपा सरकार की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बिल की चर्चा खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सिलचर में की थी। उन्होंने इसे विभाजन का दंश बताया था।

नागरिकता बिल 2016 क्या है?

2016 में नागरिकता अधिनियम 1955 में बदलाव किया गया है। इस विधेयक का नाम नागरिकता अधिनियम 2016 दिया गया है। इस बिल के मुताबिक भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को बिना वैध दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके साथ ही 24 मार्च 1971 के बाद देश में प्रवेश करने वाले घुसपैठियों को देश से बाहर कर दिया जाएगा। इस कानून को बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि बिना सरकारी वैध कागज के कोई पड़ोसी मुल्क के लोग भारत में नहीं रह सकते हैं।

विवाद की वजह

सदन में  इस बिल को पास होते ही एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) अपने आप ही प्रभावहीन हो जाएगा। कांग्रेस ने इस बिल को 1985 के असम समझौते के खिलाफ बताकर खारिज किया है। इस समय एनआरसी बनने की प्रक्रिया जारी है। ऐसे में यदि सदन में यह बिल पास हो जाता है, तो देश के सुरक्षा के ख्याल से बेहतर होगा।

पेराम्बरा मस्जिद पर पत्थरबाजी के मामले में CPI (M) कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज

केरल के पेराम्बरा मस्जिद पर पत्थरबाजी के मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और वामपंथी संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज किया गया है। ख़बरों के अनुसार दोनों संगठनों के कार्यकर्ताओं पर दो समुदायों के बीच विद्वेष फैलाने के लिए केज रजिस्टर किया गया है। अखिलदास नाम के व्यक्ति सहित कुल 20 लोगों पर धारा 153A के तहत पुलिस ने दंगा भड़काने का भी केस दर्ज किया। इन सभी ने पिछले सप्ताह पेराम्बरा मस्जिद पर पत्थरबाजी की थी।

पेराम्बरा में DYFI और UDF के कार्यकर्ताओं ने मार्च निकाले थे जिस दौरान ये घटनाएं हुई। डीवाईएफआई एक वामपंथी संगठन है और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार और केरल के पूर्व स्पीकर एम विजयकुमार सहित कई बड़े वामपंथी नेता इस संगठन में अहम पद संभल चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ यूडीएफ केरल में कांग्रेस के नेतृत्व में बना एक राजनितिक गठबंधन है जिसमे इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित कुल छः पार्टियां शामिल है।

बता दें कि इसी मामले में सीपीआई ने 2 दिन पहले ही निष्पक्ष जांच की मांग की थी। बीते तीन जनवरी को सबरीमाला हड़ताल समीति द्वारा किये जा रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान पेराम्बरा में मस्जिद पर पत्थरबाजी की गयी थी। ये विरोध प्रदर्शन सबरीमाला मंदिर में दो 50 से कम उम्र की महिलाओं द्वारा प्रवेश करने के बाद शुरू हुए थे। ख़बरों के अनुसार इस हड़ताल के शुरू होने के बाद से अब तक 5700 से भी ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और कईयों को नजरबन्द भी किया जा चुका है।

गुरुवार को हुए विरोध प्रदर्शन में कई संगठन शामिल थे। केरल के डीजीपी ने जानकारी देते हुए बताया कि पुलिस ने इस मामले में करीब तेरह सौ केस दर्ज किये हैं। सबरीमाला मामले को लेकर कई दिनों से लगातार वामपंथी दलों और श्रद्धालुओं के बीच हिंसक टकराव की स्थिति बन रही है जिसके कारण केरल में सामान्य जनजीवन प्रभावित हो रहा है। इसी सिलसिले में कोच्ची में कई भाजपा नेताओं के घरों पर भी हमले किये गए थे जिसके बाद वहां के डीएम ने एक शांति बैठक बुला कर वामदलों और भाजपा नेताओं को हड़ताली मार्च न निकालने की सलाह दी थी।

इस्लाम छोड़ने की सज़ा: एयरपोर्ट पर सऊदी अधिकारियों ने पकड़ा, अब जान का ख़तरा

नाम – राहफ़ मोहम्मद अल क़ुनन
उम्र – 18 साल
‘ज़ुर्म’ – अपनी मर्ज़ी से इस्लाम का त्याग
सज़ा – बैंकॉक एयरपोर्ट पर डिटेन्ड, ज़बरदस्ती सऊदी अरब ले जाने की तैयारी
भय – परिवार वालों से जान का ख़तरा

राहफ़ का यह पहला ट्वीट है, जो अंग्रेज़ी में है। इसके पहले उन्होंने अरबी में ट्वीट किया था। इसके बाद ट्विटर पर राहफ़ के सपोर्ट में लोगों के साथ-साथ दुनिया भर की मीडिया ने भी आवाज़ उठाई।

ऊपर के ट्वीट से यह साफ़ है कि राहफ़ को ऑनर कीलिंग का भी अंदेशा है। उनके एक अरबी ट्वीट के अनुवाद से भय साफ झलकता है – “मुझे सउदी दूतावास और कुवैती एयरलाइंस के कई कर्मचारियों द्वारा धमकी दी गई। उन्होंने कहा “यदि तुम भागती हो, तो हम तूझे ढूंढ लेंगे, तुम्हारा अपहरण कर लेंगे, फिर तुम्हें सज़ा देंगे।” अगर मैं भागी तो वो मेरे साथ क्या करेंगे, मुझे नहीं पता!

राहफ़ मोहम्मद अल क़ुनन अपने परिवार के साथ कुवैत गई थीं। वे अपने परिवार से दूर भागकर ऑस्ट्रेलिया जाने की कोशिश में पहले बैंकॉक गईं, जहाँ से वो ऑस्ट्रेलिया की फ़्लाइट लेतीं। लेकिन बैंकॉक में सऊदी अधिकारियों ने उसका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया। क़ुनन के चचेरे भाई ने ट्विटर पर उनका गला काटने तक की धमकी दे डाली है।

आज़ादी के लिए इस्लाम का त्याग

राहफ़ ने अपनी मर्ज़ी से इस्लाम को त्याग दिया है। उनके अनुसार, “मैंने अपनी बात और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की। मेरे पिता इस बात को लेकर बहुत ज़्यादा नाराज़ हैं। अपने देश में पढ़ाई नहीं कर सकती, नौकरी नहीं कर सकती। जबकि मैं आज़ादी चाहती हूँ। पढ़ना चाहती हूँ, नौकरी करना चाहती हूँ।”