Sunday, September 29, 2024
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अमर्त्य सेन आए ‘डरे हुए’ नसीरुद्दीन शाह के बचाव में

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने रविवार को दिये अपने एक बयान में नसीरुद्दीन शाह का बचाव किया है। सेन ने कहा कि देश में इस तरह के विरोधों के खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिए। अमर्त्य सेन ने रविवार को अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें ‘परेशान’ करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

देश में भीड़ हिंसा पर प्रतिक्रिया देने और गैर सरकारी संगठनों पर सरकार द्वारा की जा रही कथित कार्रवाई के खिलाफ एमनेस्टी इंडिया को दिये एक वीडियो में शाह ने कहा है कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। साथ ही ये भी कहा कि इस देश में अधिकार मांगने वालों को कैद किया जा रहा है। इस विडियो के बाद से नसीरुद्दीन शाह एक बार फिर विवादों में आ गए हैं।

अमर्त्य सेन ने कहा कि “अभिनेता को ‘परेशान’ करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हमें अभिनेता को परेशान करने के इस तरह के प्रयासों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। देश में जो कुछ हो रहा है, वह आपत्तिजनक है और इसे जरूर रोका जाना चाहिए।”

इसी मुद्दे पर एक कटाक्ष यहाँ पढ़ें: चोखा धंधा है अभिव्यक्ति की आज़ादी का छिन जाना! गुनाह है ये!

Ind vs Aus: सीरीज जीत भारत ने रचा इतिहास, फिर भी कोहली दिखे निराश!

क्रिकेट के इतिहास में अभी की भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई सरजमीं पर टेस्ट सीरीज़ जीतने वाली एकमात्र टीम बन गयी है और विराट कोहली ये कारनामा करने वाले पहले कप्तान बने। भारतीय टीम ने चार मैचों की इस सीरीज को 2-1 से अपने नाम किया। बारिश के कारण अंतिम मैच को ड्रा घोषित कर दिया गया और चेतेश्वर पुजारा मैन और द मैच के साथ साथ मैन ऑफ़ द सीरीज भी घोषित किये गए। इस सीरीज में तीन शतकों की मदद से 521 रन बनाकर पुजारा रन बनाने के मामले में सबसे ऊपर रहे। वहीं विकेटकीपर रिषभ पन्त ने 350 रन बनाये। कप्तान कोहली 282 रन बना कर तीसरे स्थान पर रहे। बता दें कि पन्त ऑस्ट्रेलिया में शतक बनाने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर हैं।

गेंदबाजी के मामले में भी भारत ने इस सीरीज में काफी कमाल दिखाया। भारतीय तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह 21 विकेट चटका कर सबसे ऊपर रहे तो ऑस्ट्रेलिया के नाथन लियोन ने भी उनके बराबर विकेट ही झटके। मोहम्मद शमी 16 विकेट लेकर तीसरे स्थान पर रहे।

हलांकि भारतीय कप्तान विराट कोहली सीरीज जीतने के बाद भी निराश नजर आये। विराट कोहली ने कहा कि उनकी टीम इस सीरीज का अंतिम मैच भी जीतना चाहती थी जो कि बारिश की वजह से संभव नहीं हो सका। उन्होंने कहा;

“हम सीरीज़ जीतकर बहुत खुश है, लेकिन हम ये सीरीज़ 2-1 की जगह 3-1 से जीतना चाहते थे। बारिश और खराब रोशनी की वजह हम ऐसा नहीं कर सके और इसके लिए हम निराश है, लेकिन मौसम पर हमारा बस नहीं चलता।”

वहीं भारतीय टीम की इस ऐतिहासिक जीत के बाद पूर्व क्रिकेटरों और बड़ी हस्तियों ने कप्तान कोहली और टीम को बधाई दी। सुरेश रैना ने कहा कि भले ही ये मैच बारिश से ख़त्म हुआ हो लेकिन इस से हमारे जीत के उत्सव पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। वहीं मोहम्मद कैफ ने कहा कि सभी भारतीय को इस जीत पर गर्व है।

विराट कोहली ने कहा कि ये जीत उनके लिए काफी ख़ास है। साथ ही बुमराह की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि वह अभी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज है। उन्होंने हनुमा विहारी की भी तारीफ़ की। पूर्व विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंदर सहवाग ने ट्वीट कर कहा कि इस जीत के लिए भारतीय टीम के हर सदस्य ने ख़ास योगदान दिया।

बता दें कि विराट कोहली के नेतृत्व में ये पहली एशियाई टीम है जिसने ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीती है। इसके अलावा अंतिम मैच में भारतीय टीम पिछले तीस सालों में ऐसी पहली टीम बन गयी जिसने ऑस्ट्रेलिया को फ़ॉलो-ऑन खेलने पर मजबूर किया।

मुज़फ़्फ़रनगर में गौ-तस्करों ने पुलिस पर की गोलीबारी, 2 लोग गिरफ्तार

उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में गौ-तस्करों ने आतंक मचा रखा है। राज्य के अलग-अलग जिलों से तस्करी के मामले सामने आते रहे हैं। तीन दिसंबर को बुलंदशहर में गोकशी की बात पर भारी हिंसा हुई थी। इस हिंसा में एक पुलिस इंस्पेक्टर व एक अन्य युवक की मौत हो गई थी। जिसके बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के आलाधिकारियो को गोकशी जैसे मामले पर सख्त दिशानिर्देश दिए थे। इतना सबकुछ होने के बावजूद गौ-तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं।

5 जनवरी को गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस मुज़फ़्फ़रनगर के शिकारपुर गांव पहुँची। पुलिस को देखते ही तस्करों ने ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी। जिसके बाद पुलिस की ओर से जवाबी कार्रवाई की गई। दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में एक सिपाही और एक तस्कर के घायल होने की खबर है। दो तस्कर मौके से भाग निकलने में सफल रहे जबकि दो लोगों को पुलिस ने मौके पर हिरासत में ले लिया है। 

मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस अधीक्षक आलोक शर्मा ने पत्रकारों को बताया कि घटना स्थल पर पुलिस को 100 किलो गौमांस मिला है। पुलिस ने घायल अभियुक्त को हिरासत में लेने के बाद अस्पताल में भर्ती कर दिया है।

इससे पहले मेरठ में पुलिस और गौ-तस्करों के बीच चली थी गोली

उत्तर प्रदेश में तस्करी के मामले आए दिन देखने को मिलते हैं। गौ-तस्कर और पुलिस के बीच गोलीबारी समान्य-सी बात हो गयी है। सात दिसंबर को देर रात मेरठ के मुंडाली क्षेत्र में भी गौ-तस्करों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई थी। दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में आखिरकार दो घायल गौ-तस्करों को पकड़ने में पुलिस कामयाब रही थी। घायल तस्कर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने अस्पताल में भर्ती कर दिया था। घायल की पहचान इमामउद्दीन और एजाज के रूप में हुई थी।

जब गौ-तस्करी में शामिल पुलिस वालों पर बरसा योगी का कहर

राज्य में लॉ एंड आर्डर को बनाए रखने के लिए योगी आदित्यनाथ लगातार पुलिस को दिशा निर्देश देते रहते हैं। इसके बावजूद यदि कोई पुलिस अधिकारी कानून को हाथ में लेते पकड़ा जाता है, तो योगी सरकार उसे सेवा मुक्त करने में भी देर नहीं करती है। पिछले दिनों गौ-तस्करी को बढ़ावा देने वाले दो दरोगा और 9 सिपाही की छुट्टी हो चुकी है। इसमें जहानाबाद थाने के कस्बा इंचार्ज एसआई रहे महेंन्द्र कुमार वर्मा, हेड कांस्टेबल नरेन्द्र कुमार सिंह, हेड कांस्टेबल शहनवाज हुसैन आदि थे।


BJP विधायक ने ओवैसी की पार्टी के प्रोटेम स्पीकर के सामने शपथ लेने से किया इनकार

तेलंगाना में भाजपा के एकमात्र नव-निर्वाचित विधायक राजा सिंह ने 17 जनवरी को होने वाले शपथग्रहण समारोह में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है क्योंकि उस समारोह में AIMIM के प्रोटेम स्पीकर द्वारा शपथ दिलाया जाना है। राजा सिंह ने कहा कि वो मुमताज़ अहमद खान द्वारा शपथ नही लेंगे और इसी कारण शपथ ग्रहण समारोह का भी बहिष्कार करेंगे। अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो अपलोड कर राजा सिंह ने अधिक जानकारी देते हुए कहा;

“सभी नव-निर्वाचित विधायकों को AIMIM के प्रोटेम स्पीकर के सामने शपथ लेना है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने ये निर्णय लिया है। मैं आज ये कहना चाहते हूँ कि रजा सिंह उस शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लेगा और उस दिन विधानसभा भी नहीं जायेगा।”

बता दें कि परसों ही ये घोषणा की गयी थी कि 16 जनवरी को मुमताज अहमद खान को प्रोटेम स्पीकर के रूप में शपथ दिलाई जाएगी और फिर 17 को उनके द्वारा बांकी विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी। सामान्य तौर पर नव निर्वाचित विधानसभा में सबसे सीनियर व्यक्ति को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। 70 वर्षीय खान ने इस साल हुए विधानसभा चुनावों मेन हैदराबाद के चारमीनार विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की है। वहीं भाजपा के टी राजा सिंह ने गोशामहल विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की जहां उन्हें 45 प्रतिशत से भी अधिक मत मिले थे।

राजा सिंह ने कहा कि वो AIMIM के प्रोटेम स्पीकर के सामने शपथ नहीं लेंगे क्योंकि ओवैसी की पार्टी हिन्दुओं को ख़तम करने की बात करती है और वन्दे मातरम का विरोध करती है। उन्होंने कहा कि हिन्दुओं को ख़त्म करने की बात बोलने वाले के सामने वो कभी शपथ नहीं ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि ओवैसी की पार्टी एक गन्दी पार्टी है और वो देश में युद्ध करने की बात करते हैं। उन्होंने कहा;

“तेलंगाना के मुख्यमंत्री राव निजाम (हैदराबाद राज्य के पूर्व शासक) और एमआईएम के प्रशंसक रहे हैं। उन्होंने एमआईएम के विधायक को विधानसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला किया है। मैं विधानसभा नहीं जाऊंगा और उनकी मौजूदगी में विधायक पद की शपथ नहीं लूंगा। अन्य पार्टी के नेता जा सकते हैं लेकिन मैं नहीं जाऊंगा।”

इस मामले में अभी तक AIMIM या TRS की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। राजा सिंह ऐसे मुद्दों पर पहले भी काफी मुखर रहे हैं। पिछले साल उन्होंने बांग्लादेशियों को असम नहीं छोड़ने पर गोली मरने की बात कही थी।

बता दें कि तेलंगाना इस साल हुए विधानसभा चुनावों में केसीआर कि पार्टी टीआरएस ने भारी जीत दर्ज की थी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने अपने गढ़ हैदराबाद की सातों सीटों पर अपना कब्ज़ा बरक़रार रखा था।

BJP ने जेपी नड्डा को यूपी, पीयूष गोयल को तमिलनाडु का प्रभारी बनाया

लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने जेपी नड्डा को उत्तर प्रदेश जबकि पीयूष गोयल को तमिलनाडु का प्रभारी बनाया है। पीयूष गोयल को तमिलनाडु के आलावा पुदुचेरी और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह की जिम्मेदारी भी दी गई है। इसी तरह पार्टी में महासचिव की भूमिका निभाने वाले मुरलीधर राव को कर्नाटक का प्रभारी नियुक्त किया गया है, जबकि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारण को दिल्ली की जिम्मेदारी दी गई है।

भाजपा ने तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अपने संगठन में महत्वपूर्ण बदलाव किए। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कुछ दिनों पहले 17 राज्यों में प्रभारी व सहप्रभारियों की नियुक्ति की थी। इस दौरान गुजरात से आने वाले गोवर्धन झपाड़िया को उत्तर प्रदेश में सहप्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में प्रभारी के साथ काम करने के लिए कई सहप्रभारियों की जरूरत होती है। यही वजह है कि पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अभी तक तीन सहप्रभारियों की नियुक्ति कर दी है।

जेपी नड्डा इससे पहले भी प्रभारी रह चुके हैं

जानकारी के लिए बता दें कि जेपी नड्डा को इससे पहले भी कई राज्यों में बतौर प्रभारी नियुक्त किया जाता रहा है। 2016 में धर्मेंद्र प्रधान के साथ जेपी नड्डा को उत्तराखंड का प्रभारी बनाया गया था। इसके बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अक्टूबर 2018 में जेपी नड्डा को तेलांगना का प्रभारी नियुक्त किया था। इसके अलावा भाजपा संगठन में भी जेपी नड्डा की मजबूत पकड़ है। यही वजह है कि 2019 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भाजपा की नैय्या को पार लगाने के लिए जेपी नड्डा को नियुक्त किया गया है।

पीयूष गोयल भी पार्टी के अहम पदों पर रहे हैं

पेशेवर तौर पर चार्टर्ड एकाउंटेंट रहे पीयूष गोयल राजनीति के क्षेत्र में भी अव्वल हैं। दो दशक तक पार्टी के कोषाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। इसके आलावा सोशल मीडिया प्रभारी के रूप में भी गोयल पार्टी में योगदान दे चुके हैं। इससे पहले गोयल को कर्नाटक में प्रभारी नियुक्त किया गया था।

केंद्र सरकार द्वारा सेक्स वर्कर्स और मानव तस्करी पीड़ितों को बैंकिंग सुविधाओं से जोड़ने की पहल

केंद्र सरकार ने सेक्स वर्कर्स और मानव तस्करी पीड़ितों को अपने वित्तीय समावेश (फाइनेंसियल इन्‍क्‍ल्‍युजन) के अंतर्गत जोड़ने के लिए प्रयास शुरू कर दिये हैं। यह केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ग के लिए एक बड़ी पहल साबित हो सकती है।

2 जनवरी को वित्त मंत्रालय द्वारा एक मेमोरेंडम जारी कर दिया जा चुका है, जो विशेष उच्चस्तरीय टास्क फ़ोर्स के गठन और क्रियाकलापों से संबन्धित है। यह टास्क फ़ोर्स तय करेगी कि सेक्स वर्कर्स के साथ ही ऐसा वर्ग, जो वित्तीय समावेश जैसी सुविधाओं के दायरे में अब तक नहीं आ पाया है, उन्हें किस तरह से बैंकिंग सुविधाओं के साथ ही अन्य वित्तीय सुविधाएँ दी जा सकती हैं।

टास्क फ़ोर्स की पहली बैठक अगले सप्ताह हो सकती है। मेमोरेंडम के अनुसार टास्क फ़ोर्स वित्त विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा संचालित की जाएगी। इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, गृह मंत्रालय, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI), राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन ऑन बोर्ड प्रतिनिधि होंगे। इसके अलावा, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक के साथ कुछ गैर सरकारी संगठन भी टास्क फ़ोर्स में ऑन बोर्ड प्रतिनिधि रहेंगे।

टास्क फ़ोर्स का प्रमुख लक्ष्य सेक्स वर्कर्स तथा मानव व्यापार पीड़ितों को बैंक अकाउंट जैसी सुविधाओं से जोड़ना होगा जो उन्हें उनके स्वयं के रुपयों के रखरखाव के प्रति सशक्त और आत्मनिर्भर कर सकेगा। केंद्र सरकार की यह पहल समाज के वंचित, शोषित वर्ग के साथ ही उन लोगों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है जो अब तक किसी भी प्रकार की वित्तीय सुविधाओं के दायरे में और सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित रहे हैं।

राजस्थान: कर्ज़ माफ़ी के नाम पर घोटाला शुरू, शक़ के घेरे में कॉन्ग्रेसी सरकार!

चुनावी वादों के अनुसार विभिन्न राज्यों में किसानों की कर्ज़ माफ़ी में विफलता के बाद, कॉन्ग्रेस पार्टी एक और विवाद में फंसती नज़र आ रही है। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट को मानें तो राजस्थान के किसानों ने आरोप लगाया है कि कर्ज़ माफ़ी योजना अब घोटाले में तब्दील हो गई है।

जिन किसानों को इस योजना के तहत लाभ मिलने वाला था, उनके नामों की सूची http://www.lwa.rajasthan.gov.in/ पर डाली गई। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान सरकार की इस सूची में गैर-लाभार्थियों के नाम भी हैं। स्थानीय किसानों ने राज्य सरकार के इस रवैये को ‘घोटाले’ का नाम दिया है।

इसी मामले पर इकॉनमिक टाइम्स ने भी एक रिपोर्ट की है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि जिन लोगों के नाम पर कोई कर्ज़ नहीं था, योजना का लाभ देने के लिए उनका नाम भी सूची में जोड़ दिया गया है।

कर्ज़ माफ़ी के नाम पर यह घोटाला कितने बड़े स्तर का है, इसका पैमाना है अकेले डूंगरपुर जिले से लाभार्थियों की सूची। यहां के 1700 से अधिक किसानों के नाम उस सूची में हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि किसी ने भी लोन नहीं लिया था।

डूंगरपुर के सागवाड़ा सहकारी बैंक के अधिकारियों ने कथित रूप से स्वीकारा कि जैसे ही उन्हें पता चला कि अशोक गहलोत सरकार ने किसान कर्ज़ माफ़ी का आदेश दिया है, उन्होंने उन लोगों के नाम पर लोन जारी किए, जिन्होंने कभी भी लोन नहीं लिया था।

राहुल गांधी ने किसान कर्ज़ माफ़ी का चुनावी कार्ड खेलकर हिन्दी पट्टी के तीन बड़े राज्यों पर सत्ता तो पा लिया लेकिन ‘घोटाले का यह खेल’ शायद राजनीतिक रूप से भारी पड़ने वाला है। भारतीय जनता पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस के खिलाफ़ ‘घोटाले के जिन्न’ को एक बार फिर भुना सकती है।

स्मार्ट सिटी अभियान ने बदला भारतीय शहरों का चेहरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी अभियानों में एक अभियान स्मार्ट सिटी अभियान भी है; जिसका मक़सद भारतीय शहरों में ‘ईज ऑफ़ लिविंग’ को प्रोत्साहन देना है। इस अभियान के तहत 6,85,758 करोड़ रुपये के निवेश का असर शहरों में परिवहन, स्वच्छता, प्रशासनिक कार्यप्रणाली, पर्यावरण और लोगों की मानसिकता पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस प्रभावशाली अभियान से प्रधानमंत्री मोदी की देश को आगे ले जाने की सोच बयां होती है।

जानकारी के मुताबिक स्मार्ट सिटी अभियान के तहत 2,05,018 करोड़ रुपये की 5000 से ज़्यादा स्मार्ट परियोजनाओं की शुरूआत की गई थी। इन परियोजनाओं के फलीभूत होने से निश्चित रूप से शहरों की तस्वीर बदली है और आगे भी बदलेगी।

प्रधानमंत्री आवास योजना में शहरी क्षेत्रों में 65 लाख से ज़्यादा मकानों के निर्माण को मंज़ूरी भी दी गई। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाए गए इस क़दम से शहरी क्षेत्रों की दशा बेहतर होने में काफी हद तक मदद मिलेगी।

अमृता योजना के तहत पानी, सीवरेज और सफ़ाई के लिए 77,640 करोड़ रुपये की योजना का प्रावधान किया गया जो कि सामान्य जन-जीवन को पहले से बेहतर करने में सहायक सिद्ध होगा।

शहरों के लिए लाइफ़लाइन बनी मेट्रोलाइन के ज़रिये आवागमन को सरल और उसे विस्तार देने के लिए युवाओं के कौशल का विकास कर उन्हें ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना’ और ‘राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन’ के तहत रोज़गारपरक प्रशिक्षण दिया गया है। ऐसा करने से एक तरफ तो युवाओं को रोज़गार मुहैया होगा और दूसरी तरफ शहरों के नवीनीकरण को भी विस्तार मिलेगा।

इसके अलावा क़रीब 12 शहरों के लिए ‘सिटी हृदय योजना’ के कार्यान्वयन को भी मंज़ूरी दी गई जिसका असर आने वाले समय में बख़ूबी देखने को मिलेगा।

शहरों की सुरक्षा और उसकी निगरानी के लिए ‘स्मार्ट कमांड’ और ‘कंट्रोल सेंटर’ योजना के लिए लगभग 11 शहरों में परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं और 29 शहरों में काम चल रहा है। इसके अलावा ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थलों के सौंदर्यीकरण से संबंधित परियोजनाएँ 16 शहरों में पूरी की जा चुकी हैं और क़रीब 32 शहरों में काम चल रहा है।

स्वच्छ भारत मिशन के ज़रिये मूलभूत शहरी सुधार, शहरों के कायाकल्प की योजनाएँ, निजी और सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के ज़रिये बदलाव की शुरूआत की जा चुकी है।

यह मिशन प्रधानमंत्री मोदी की सटीक दूरदर्शिता और उनकी बेहतर कार्यशैली को स्पष्ट रूप से दिखाता है। निश्चित रूप से ये सभी परियोजनाएँ उनके विरोधियों और आलोचकों के लिए क़रारा जवाब है, जो बेवजह की अड़चनों से देशवासियों के ध्यान को भटकाने का काम करती हैं।

कॉन्ग्रेस के विधायक ने वन अधिकारी को दी हाथ-पाँव काट देने की धमकी

राम मंदिर पर सबसे ज्यादा अटकलें लगाने वाली कॉन्ग्रेस सरकार के ही एक विधायक ने कर्नाटक में वन अधिकारी को धमकी दी है- “अगर मंदिर के निर्माण में कोई रोक लगाई तो हाथ पैर काट दूँगा।”

जब भी चुनावों के ज़रिए जनता अपने लीडर को किसी भी पद के लिए चुनती है तो उनकी बहुत अपेक्षाएँ होती हैं। इन्हीं अपेक्षाओं में एक अपेक्षा क़ानून और न्यायव्यवस्था को बनाए रखने की भी होती है। लेकिन कर्नाटक के भद्रवती इलाके में विधायक जी ने सबकी तमाम अपेक्षाओं को और अपने पद की गरिमा को उस समय तार-तार कर दिया, जब उन्होंने वन अधिकारी को गुस्से में हाथ-पाँव तोड़ने की धमकी दी।

ये मामला उस समय टूल पकड़ने लगा जब कर्नाटक के भद्रवती इलाके में मंदिर बनने की बात शुरू हुई, लेकिन वन विभाग के एक अधिकारी ने इस मंदिर निर्माण पर कथित तौर से रोक लगा दी। जिससे बात बढ़ गई और अधिकारी की ‘न’ पर स्थानीय विधायक बी के संगमेश्वर नाराज़ हो गए। जिसके बाद अपना आपा खोते हुए उन्होंने अधिकारी को फोन करके कहा कि वह मंदिर की नींव रख रहे हैं और जिसके बाद गाँव वाले आगे काम करना शुरू कर देंगे। साथ मे उन्होंने ये भी कह डाला ‘कोई अधिकारी रोकने नहीं आएगा वरना मैं हाथ और पैर काट दूंगा।’ 

विधयाक जी का ये रवैया दिखाता है कि वह कानून की और न्यायप्रणाली के साथ अपने पद की और अन्य अधिकारियों की कितनी इज्ज़त करते हैं। वैसे देखा जाए अगर तो कर्नाटक की राजनीति में ऐसे बयान आना कोई बड़ी बात नहीं है। इससे पहले भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री जी फोन कॉल पर मारने की धमकी दे चुके हैं।

डियर थरूर जी, मोदी के कपड़े खींचते हुए आप मोर बन जाते हैं

सामाजिक संरचना और उससे उपजा भेदभाव अंग्रेज़ी के ‘टेन्जिबल’ और ‘इन्टेन्जिबल’, दोनों ही, स्तरों पर दिखता है। टेन्जिबल यानि प्रकट रूप से, जिसे आप वास्तविक रूप से देख सकते हैं। इन्टेन्जिबल यानि वो दिखता नहीं, पर महसूस किया जा सकता है। तमाम तरह के ‘वाद’ हैं, जो कि नकारात्मक स्वरूप में हमारे हर तरफ दिखते हैं। उसी में एक बीमारी है ‘एलिटिस्ट’ मानसिकता वाली। 

यह एक ऐसी मानसिकता है जो अपने साथ एक तरह का कैंसर लिए चलती है: एनटायटलमेंट। एनटायटलमेंट का मतलब है कि आपको ऐसा लगता है कि किसी भी चीज पर आपका अधिकार है। ये मानसिकता तब आती है जब आप सत्ता और पैसे के बहुत क़रीब होते हैं। उसके बाद जब से दोनों चीज़ें, या एक भी, चली जाए तो आपको लगता है कि जो मेरा था, वो किसी और का कैसे। 

दूसरी बात है आज कल का पोलिटिकल डिस्कोर्स। हर पक्ष के नेता एक से एक क्रिएटिव मुहावरे, फब्तियाँ और शब्दों का प्रयोग करते नज़र आते हैं। इसमें एक समय में एक स्तर हुआ करता था। एक समय तक मजाक के लहजे में कुछ कहा जाता था, पार्टी के छोटे नेता भले ही कुछ भी बकवास करते हों, पर बड़े नाम आमतौर पर एक स्तर बनाकर रखते थे।

फिर सत्ता पर 55 साल आठों पाँव से जकड़ बनानेवाले साम्राज्य का पतन हो गया। उसकी चारदीवारी, क़िले और यहाँ तक की दरबारी तक भगा दिए गए। सत्ता गई, पार्टी को फ़ंड देने वाले हाथ खींचने लगे। लेकिन एलिटिज्म और एनटायटलमेंट तो मानसिकता का हिस्सा बन चुके हैं, तो ऐसे में जली रस्सी की ऐंठन तो रहेगी ही।

उसी का परिणाम ‘चाय वाला’, ‘नीच’, ‘ख़ून का दलाल’, ‘गंगू तेली’ से लेकर ‘मौत का सौदागर’, ‘ज़हर की खेती’ और तमाम तरह की उपमाएँ और बयान हैं। ये सारे बयान कॉन्ग्रेस के शीर्ष नेताओं के मुखारविन्दों से निकले हैं। और, हर बार चुनावों में जनता ने इसका जवाब दिया है। 

स्वयंसिद्ध डिक्शनरीबाज़ शशि थरूर ने नेहरू ख़ानदान से अपनी वफ़ादारी निभाते हुए ये कहा है कि किसी चायवाले के प्रधानमंत्री बनने के पीछे नेहरू द्वारा पोषित संस्थाएँ हैं। ये उसी पार्टी के शीर्ष नेता का बयान है जिसके कई नेता कई बार ये पता लगाने में व्यस्त रहे हैं कि मोदी न तो चाय बेचता था, न ही वो ओबीसी से है। 

पहले कॉन्ग्रेस के नेताओं को एक बात पर टिक जाना चाहिए कि वो मोदी को चायवाला मानता है कि नहीं? अगर हाँ, तो आगे बात करते हैं। नेहरू क्या था, क्या नहीं, वहाँ जाने की आवश्यकता नहीं है। नेहरू ने कॉन्ग्रेस को एक पार्टी नहीं पारिवारिक संपत्ति की तरह पाला, और यही कारण है कि कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष राहुल गाँधी है। जबकि पूरा देश जानता है कि राहुल गाँधी किसी भी सरकारी स्कूल की कक्षा का मॉनिटर बनने के भी क़ाबिल नहीं है। 

इसलिए ‘लोकतंत्र’ और लोकतांत्रिक संस्थाओं को पोषित करने के चुटकुले कॉन्ग्रेस के मुँह से अच्छे नहीं लगते। लोकतंत्र को राजतंत्र बनाने, और स्वयं को ही ‘भारत रत्न’ मानने वाले चोरों के ख़ानदान ने इस देश को जो भी देने की बातें की हैं, वो डाके डालने के बड़े प्रयोजन थे। जो भी विकास हो पाया वो बस इसलिए कि प्रोजेक्ट को लूटने के लिए प्रोजेक्ट बनाना तो पड़ेगा ही। 

नेहरू ने कुछ किया हो या न किया हो, उसने ये ज़रूर किया कि उसके बच्चे प्रधानमंत्री ज़रूर बनें। चायवाला तो चायवाला ही रहेगा, ये भी तय ही था। उसके समय के कितने नेताओं को आज के भारत में किस पत्थर पर कितनी जगह हासिल हुई है ये सबके देखने की बात है। मजबूरी में ही परिवार से बाहर का कोई प्रधानमंत्री बना है इनके 55 साल के राज में। इतिहास देख लीजिए। 

जिस विकास और सामाजिक समानता की बात कॉन्ग्रेस करती है, वो विकास होने की एक नैसर्गिक प्रक्रिया का चरण है। सामाजिक समानता की बात तो ऐसे लोगों के मुँह से शोभा नहीं देती जिसके लिए किसी निचली जाति के चायवाले का प्रधानमंत्री बनना इतना दुखदायी है कि हर चुनाव में इनके नेता अपशब्द और घटिया मुहावरे लेकर उपस्थित हो जाते हैं। 

ये लोग सामाजिक समानता की बातें करेंगे जिनके लिए सत्तर साल बाद भी ‘गरीबी हटाओ’ एक प्रमुख नारा है? ये लोग सामाजिक समानता और लोकतांत्रिक संस्थाओं को पालने की बातें करेंगे जिन्होंने हर संस्था पर एक परिवार के पाँच लोगों के नाम चिपका रखे हैं? ये लोग सामाजिक समानता की बात करेंगे जो प्रधानमंत्री और पार्टी विशेष की घृणा में इतना गिर चुका है कि जातिवादी गालियाँ देकर ‘नीच’ आदमी और ‘गंगू तेली’ जैसे आक्षेप करके अल्पवयस्कों की तरह आपस में खीं-खीं करके हँसता है?

इनकी सड़ी हुई मानसिकता, सत्ता से दूर होने और भविष्य में बेघर होने की सोच की सिहरन से ऐसे शब्द बोल जाती है जो कि इनके अंदर, बंद कमरों में, बसती है, बोली जाती है। शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर, गुलाम नबीं आज़ाद, राहुल गाँधी या सोनिया गाँधी जैसे लोगों की बिलबिलाहट उनसे ऐसी भाषा बुलवा लेती है। 

ये कोई मिसकोट नहीं है। ऐसी बातें फ़्रस्ट्रेशन हैं, छटपटाहट है, अभिजात्यता की ऐंठ से जनित सोच है। ये अगर बाहर नहीं आएगा तो ये लोग सड़कों पर कुत्तों की तरह आते-जाते भाजपाइयों या उनके समर्थकों को दाँत काटने लगेंगे। दाँत काटने से बेहतर है कि अंग्रेज़ी में ऐसे बयान दो कि आदमी को समझने में दो मिनट लगे कि क्या बोल गया। 

नेहरू मर गया। नेहरू अगर प्रधानमंत्री था, तो वो एक बाप भी था। फिर उसकी बेटी आई जो प्रधानमंत्री थी, और एक माँ भी। फिर उसका बेटा आया जो एक प्रधानमंत्री था, और पारिवारिक परम्परा के हिसाब से बेटे को सेटल करने वाले बाप का दायित्व पूरा कर पाता, उससे पहले उसकी हत्या कर दी गई। अब एक माँ है, और एक पार्टी है जो हर हाल में एक नकारे और निकम्मे लौंडे को प्रधानमंत्री बनाने के चक्कर में इस हालत में आ चुकी है कि पता चले किसी जिले में मुखिया संघ के चुनाव में किसी ‘बैंगन छाप’ वाली पार्टी को समर्थन दे देगी। 

यही कॉन्ग्रेस है। राजमाता से मोतियों के हार पाने के लिए उसकी नकली महात्वाकांक्षा को हवा देते रहने के लिए, इस तरह के बयान दिए जाते रहेंगे। एक नंबर के नशेड़ी और निकम्मे लौंडे को भारत की सत्ता दिलवाने के लिए, तमाम बातें की जा रही हैं। इस चक्कर में इनका जो काम है, वो भी ढंग से नहीं कर पा रहे हैं: विपक्ष की ज़िम्मेदारी। 

रिएक्शन की राजनीति करनेवाली, विचारहीन पार्टी आखिर गालियों और अपनी असुरक्षाओं को अंग्रेज़ी में ढालकर नहीं कहेगी तो करेगी क्या? ऐसे बयानों से भाजपा को लगातार फायदा ही हुआ है, और होता ही रहेगा, लेकिन कॉन्ग्रेसियों की नंगई और साफ़ तरीके से सामने आएगी। भाजपा की जीत के ये छुपे मोहरे हैं जो हर बार चुनाव के समय पर ऐसे बयान देकर लोगों पर अपनी सच्चाई ज़ाहिर कर देते हैं।