Sunday, September 29, 2024
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सबरीमाला: सोनिया ने लगाई अपने ही सांसदों को फ़टकार, विरोध प्रदर्शन करने से भी कर दिया साफ़ मना

सबरीमाला विवाद इस समय देश के बड़े विवादों में से एक बन चुका है। केरल के सबसे पुराने सबरीमाला मंदिर में हाल ही में 40 वर्षीय दो महिलाओं ने प्रवेश कर लिया था। जिसका विरोध जगह-जगह किया गया। जिसमें केरल में कांग्रेस सांसदों ने तो इस बात का विरोध करने के लिए काले दिवस का भी आह्वान किया था।

कांग्रेस के सांसद इस दिशा में लोकसभा में काली पट्टी को बांध कर संसद भी पहुंचे थे, लेकिन यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन सबको विरोध प्रदर्शन करने से मना कर दिया। सोनिया गांधी का मानना है कि उनकी पार्टी एक ऐसी पार्टी है, जो महिलाओं के अधिकार के बारे में बात करती है। इसलिए कांग्रेस के किसी भी शख्स को ऐसे विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना पार्टी के खिलाफ जा सकता है।

आपको बता दें कि फिलहाल लोकसभा में केरल के 7 सांसद हैं। अब से तीन महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी उम्र वाली महिलाओं के लिए एंट्री खोल दी थी। इस दौरान मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की सरकार ने औरतों को मंदिर में प्रवेश देने के फैसले का समर्थन किया था, जबकि अब केरल कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने सीएम पर आरोप लगाते हुए कहा है कि मंदिर में दो महिलाओं का इस तरह प्रवेश कर लेना एक साजिश है, जिसको रचने वाले खुद सीएम महोदय हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष की यदि मानें तो वह ये सब करके हिंदू वोट बैंक को बाँट देना चाहते हैं। वहीं, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने सबरीमाला केस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था। लेकिन अब दो महिलाओं के मंदिर में घुसने के कारण काला दिवस का आह्वान उनके दो रूपों को जनता के समक्ष लेकर आता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राएँ और भारत का बढ़ता क़द

विश्व के दृष्टिपटल पर अपने अस्तित्व को मज़बूती से रख पाना किसी भी देश के लिए अपने आप में एक सबसे बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में प्रत्येक देश को अपने चहुमुखी विकास की गति में तेज़ी लाने और ख़ुद को एक मज़बूत साझेदार के रूप में साबित करने के लिए देश के मुखिया और अन्य उच्च पदासीनों को अनेकों विदेश यात्राएँ करने की आवश्यकता होती है, फिर चाहे वो देश विकासशील हो या विकसित।

ये विदेश यात्राएँ देश की भविष्य निर्माता भी साबित होती हैं। दौर किसी भी सरकार का रहा हो, ये यात्राएँ उनके कार्यकाल का एक अभिन्न हिस्सा होती हैं, इसमें कोई दोराय नहीं कि हर सरकार अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बुनने में अपना योगदान देती आयी हैं लेकिन हर सरकार अपने इस कर्तव्य को कितनी ईमानदारी से निभाती हैं उसके बारे में हम यहां विस्तार से चर्चा करेंगे।

भूटान, नेपाल और श्रीलंका में भारत की मज़बूत होती बुनियाद

बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान लगभग 41 बार विदेश यात्राएँ की हैं और इस दौरान उन्होंने लगभग 50 देशों का दौरा किया। प्रधानमंत्री मोदी ने पदभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरे के लिए भूटान का रुख़ किया और ये दौरा भूटान नरेश और भूटानी प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर हुआ था।

इस यात्रा पर जाने से पूर्व प्रधानमंत्री ने भूटान को प्राथमिकता देते हुए कहा था कि भारत और भूटान के बीच अद्वितीय और ख़ास संबंध हैं जिन्हें भविष्य में और अधिक विकसित करना है। इस विदेश यात्रा के दौरान दोनों देश एक-दूसरे को सामाजिक, आर्थिक और और सांस्कृतिक रूप से सहयोग देने पर कटिबद्ध हुए। निष्कर्ष के तौर पर हम ये देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भूटान को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुनना एक साकारात्मक पहल थी जो प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता को प्रदर्शित करता है।

प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल और श्रीलंका की यात्रा भी इस ओर इशारा करती हैं कि भारत अपनी विदेश नीति के तहत मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संबंधो को आगे बढ़ाने में अग्रणी है। अगर बात करें नेपाल की तो नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का रहा है और बीते कुछ वर्षों से नेपाल और भारत के रिश्तों में दूरी आने लगी थी। ऐसे में यह यात्रा भारत के लिए नए रिश्ते बुनने का काम कर रही है। परवान चढ़ते इस रिश्ते का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को ही जाता है जिन्होंने नेपाल को अपने अभिन्न अंग के रूप में समझा और भविष्य में संबंधों को मधुर बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी जताई।

भारत का नेपाल के साथ अच्छे रिश्ते बनाने का दूसरा कारण चीन का नेपाल की सड़क, बिजली जैसी अन्य मूलभूत संरचना में बढ़ती भागीदारी को रोकना है। पाकिस्तान का नेपाल के साथ मैत्रीपूर्ण प्रयासों के संदर्भ में भारत के लिए यह आवश्यक भी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि चीन-नेपाल-पाकिस्तान का भारत के विरोध में सामूहिक गंठजोड़ न हो पाये।

भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों ने 2018 में अपने दूसरे द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन को चिह्नित करते हुए, 11 मई 2018 को प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता आयोजित की, जो अत्यंत गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण माहौल के माहौल में संपन्न हुई। यह वार्ता दोनों देशों के बीच की गहरी दोस्ती और समझ को दर्शाती है। विभिन्न स्तरों पर दोनों देशों के बीच मौजूद घनिष्ट और बहुमुखी संबंधों की समीक्षा करते हुए, दोनों प्रधान मंत्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर सहयोग को मजबूत करने के साथ-साथ समानता, आपसी विश्वास, सम्मान और पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक-आर्थिक विकास साझेदारी का विस्तार कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाने के लिए मिलकर काम करने के अपने संकल्प को दोहराया।

दोनों प्रधानमंत्रियों ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और लोगों के आवागमन को बढ़ावा देने में संपर्कों की उत्प्रेरक भूमिका को रेखांकित किया। वे वायु, भूमि और पानी से आर्थिक और भौतिक संपर्क बढ़ाने के लिए कदम उठाने पर सहमत हुए। लोगों के आपसी जीवंत संपर्कों और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को पहचानते हुए, दोनों प्रधानमंत्रियों ने संबंधित अधिकारियों को संबंधित तकनीकी टीमों द्वारा नेपाल में अतिरिक्त हवाई प्रवेश मार्गों पर प्रारंभिक तकनीकी चर्चा सहित नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए निर्देश दिया।

श्रीलंका से भारत का रिश्ता प्राचीन काल से है और अपनी इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज श्रीलंका को बौद्धों का एक प्रमुख स्थल होने पर उन्हें गर्व है। बौद्ध धर्म की शुरूआत भले ही भारत में हुई हो लेकिन श्रीलंका ने इस धर्म की पवित्र शिक्षाओं को यहां संरक्षित रखा है और इस कारण भारत को अपनी जड़ों की तरफ लौटने की प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के चक्र को बौद्ध धर्म से लिया गया है।

इन देशों की यात्रा का सीधा असर अन्य गतिविधियों पर भी पड़ता है जैसे एक तरफ चीन का बढ़ता हाथ जो पाकिस्तान से होकर नेपाल और श्रीलंका तक जा पहुंचा था उस पर इन विदेशी दौरो ने विराम लगाने का काम किया है।

भारत-कनाडा के बीच विश्वास का नया माहौल बना

भारत-कनाडा के बीच रिश्तों को सुदृढ़ करने में प्रधानमंत्री मोदी का एक अहम रोल था। अपनी इस विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और कनाडा के बीच अपने बढ़ते संबंधों पर खुलकर बात की और इस बात को स्पष्ट तौर पर जगज़ाहिर किया कि भारत की राष्ट्रीय विकास प्राथमिकता के सभी क्षेत्रों में कनाडा एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच हुए कई प्रकार के समझौतों के फलस्वरूप भारत और कनाडा के मध्य आपसी विश्वास का एक नया माहौल तैयार हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित भारत के अपने सपने का उल्लेख करते हुए इस बात का भी ज़िक्र किया कि यहां युवाओं के लिए भरपूर अवसर उपलब्ध हैं।

खालिस्तानी और इस्लामी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ भारत और कनाडा एकमत हैं और इनके ख़िलाफ़ साझा तौर पर लड़ने का संकल्प भी लिया गया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे पर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ने के लिए अलग से सहयोग का एक ढ़ांचा जारी किया था। इसके अलावा दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने साझा बयान जारी कर मालदीव के हालात पर ना केवल चिंता व्यक्त की बल्कि दक्षिण चीन सागर में भी समुद्री क़ानून का पालन करने पर ज़ोर दिया। इसके अलावा दोनों देशों ने आपसी रक्षा सहयोग बढ़ाने संबंधी 6 समझौतो पर भी हस्ताक्षर किए गए थे।

कनाडा ने भारत का पक्ष लेते हुए आतंकवाद और उग्रवाद के मुक़ाबले के लिए सहयोग के दस्तावेज़ में दोनों देशों ने खालिस्तान समर्थक संगठनों बब्बर खालसा इंटरनैशनल और इंटरनैशनल सिख यूथ फेडरेशन को आतंकवादी संगठन बताया और इनकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए दोनों देश एकजुट हुए। इसके अलावा इस्लामी गुटों अलक़ायदा, आईएस, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मौहम्मद का भी आतंकवादी संगठनों के तौर पर नाम लेकर इनसे साझा मुक़ाबला करने की बात कही गई।

प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी एशियाई देशों की ऐतिहासिक यात्रा

पश्चिमी एशियाई देशों की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक क़दम उठाने की बात कही। इन देशों में फिलिस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ओमान शामिल हैं।

ओमान के सुल्तान से कई विषयों पर चर्चा होने साथ-साथ रक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग सहित आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिसका असर भविष्य में देखने को मिलेगा। ऐसे में ये विदेश यात्राएं प्रधानमंत्री मोदी की सूझबूझ को दर्शाता है।

अफ्रीकी देशों के साथ बढ़ते रिश्तों को मिला नया आयाम

प्रधानमंत्री अपने अफ्रीकी देशों के दौरे के वक़्त दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल हुए जहां उन्होंने चीन, दक्षिण अफ्रीका, तुक्री और रूस के राष्ट्रपतियों सहित कई वैश्विक स्तर के नेताओं से द्विपक्षीय बैठकें कीं। इस दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने न्यू वर्ल्ड ड्रीम की योजना ब्रिक्स सदस्यों से साझा की थी। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी के न्यू वर्ल्ड का सपना टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन पर टिका है जिसका सीधा सा मतलब ये है कि काम करने की तक़नीक को बेहतर और आसान बनाया जाए यानि शिक्षा से लेकर मार्केट और दफ़्तर तक सभी काम ऑनलाइन माध्यम से संपन्न हों।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा से यही निष्कर्ष निकलकर आया कि अब भारत दुनिया में टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन लाने के लिए ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया में विकसित की जा रही नई टेक्नोलॉजी और परस्पर संपर्क के डिजिटल तरीके हमारे लिए अवसर भी हैं और चुनौती भी।  टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन के जरिए रोबोटिक, आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉक चैन, नैनो-टेक्नोलॉजी, क्वांटम कम्प्यूटिंग, बायो-टेक्नोलॉजी, थ्रीडी प्रिंटिंग और ऑटोनोमस व्हिकल्स को बढ़ावा दिया जाएगा।

जर्मनी, रूस, फ्रांस और स्पेन का दौरा कई मायनों में मील का पत्थर साबित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हर विदेश यात्रा में इस बात का ख़ासा ध्यान रखा कि दुनिया भारत को एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप देखे। जर्मनी को मूल्यवान सहयोगी बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जर्मन स्किल्स भारत के रूपांतरण के लिए उनकी दृष्टि के साथ सटीक बैठती है। अपनी जर्मनी की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने शीर्ष उद्योगपतियों के साथ बातचीत की जिससे व्यापार और निवेश संबंधों को और मज़बूत बनाया जा सके।

अपने स्पेन के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक सहयोग, द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने समेत अन्य वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। इस चर्चा का एक अहम हिस्सा मेक इन इंडिया योजना के तहत भारत में निवेश करने का न्योता देना था जिससे भारत में रोज़गार के अवसरों का सृजन हो सके। इसके अलावा स्पेन-भारत के बीच द्विपक्षीय, आर्थिक और निवेश संबंधी समझौते शामिल थे। इन समझौतों में इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और पर्यटन संबंधी करार शामिल थे, साथ ही ऐसे कई क्षेत्र शामिल थे जिनमें भारत और स्पेन की आपसी साझेदारी देखी गई।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रूस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 18वें भारत-रूस वाषिर्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और उसके बाद सेंट पीटर्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच में भी शिरकत की। अपनी रूस यात्रा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रिश्तों में गर्मजोशी बनाए रखने पर वचनबद्धता को दोहराया। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैन्युल मैक्रां के साथ भारत-फ्रांस रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के उद्देश्य से आधिकारिक वार्ता में हिस्सा लिया। फ्रांस को भारत का अहम रणनीतिक साझेदार बताते हुए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पश्चिम यूरोप) रणधीर जायसवाल ने कहा था कि दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु, रक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में मजबूत सहयोग है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने रूस की सबसे आधुनिक वायु रक्षा प्रणाली को खरीदने के लिए समझौते पर हस्‍ताक्षर कर दिए हैं। भारत ने करीब 39000 करोड़ की लागत से 5 एस-400 ‘ट्रायंफ’ वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की खरीद के लिए समझौते पर हस्‍ताक्षर किए थे।

एस-400 मिसाइल सिस्टम 400 किलोमीटर के दायरे में क़रीब 300 निशानों को ट्रैक कर सकता महै और एक साथ क़रीब दर्जन को मार गिरा सकता है। इस मिसाइल का संवेदनशील रडार स्टील्थ विमानों का भी पता लगाने में सक्षम ना जाता है। ग़ौरतलब है कि स्टील्थ विमान प्राय: पकड़ में नहीं आते हैं।

भारत द्वारा ख़रीदी जा रही 5 मिसाइलों से सामरिक महत्व के बड़े ठिकानों जिनमें परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों की सुरक्षा में मदद मिलेगी। ये मिसाइलें भारत के लिए एक तरह से शील्ड का काम भी करेंगी जो पाकिस्तान और चीन की परमाणु शक्ति संपन्न बैलेस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करेगी।

अमेरिका, इज़रायल और जापान यात्रा ने भारत की दशा और दिशा सुधारने में योगदान दिया

भारत के अमेरिका से प्रगाढ़ होते रिश्ते कहीं ना कहीं पाकिस्तान और चीन को अपनी हद याद दिलाने में सहायक साबित होते हैं। दबाव की स्थिति जो भारत की ओर से बनती है उसमें प्रधानमंत्री मोदी के ये विदेशी दौरे काफी हद तक मायने रखते हैं। अमरीका ने भारत को एक ख़ास दर्जा देकर ना सिर्फ़ दुनिया में भारत की धाक बढ़ाई है, बल्कि चीन को एक कड़ा संदेश भी दिया है। एनएसजी में भारत के शामिल होने पर आपत्ति करने वाले चीन के लिए एक तरह से ये एक बड़ा झटका है क्योंकि मरीका ने भारत को रणनीतिक व्यापार अधिकरण-1 (एसटीए-1) का दर्जा दिया जाता है और ये दर्जा पाने वाला दक्षिण एशियाई देशों में भारत इकलौता राष्ट्र बन गया है।

इस बात को इस नज़रिये से भी समझा जा सकता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को रोकन के लिए भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर जिस चतुर्भुज की स्थापना की है उससे चीन का चिंतित होना स्वाभाविक है और चिंतित होना भी चाहिए। इसी संदर्भ में भारत और जापान ने एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर बनाने की बात कही जिसके लिए अफ्रीका के कई देशों ने इस कॉरिडोर के लिए अपनी सहमति भी दे दी है। इस कॉरिडोर के बन जाने के बाद अफ्रीका समुद्री रास्तों से सीधे-सीधे दक्षिण-पूर्वी एशिया से जुड़ जाएगा। इन परिस्थितियों में ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह एक प्रकार से चीन की मेरीटाइम सिल्क रोड के द्वारा यूरोप और अफ्रीकी देशों से व्यापार करके उन पर दबदबा कायम करने की उसकी नीति का व्यावहारिक जवाब साबित होगा। वैसे भी भारत चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ की नीति का विरोध करने वालों में पहला देश रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़राइल यात्रा के दौरान उन्होंने इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को समुद्र में एक विशेष प्रकार की जीप में बैठे देखा था। इस विशेष प्रकार की जीप का काम समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में परिवर्तित करने का था, जो काफी अश्चर्यजनक था। इसके बाद जब दोनों प्रधानमंत्रियों ने उस खारे पानी को पिया तो ऐसा वास्तव में था कि समुद्र का खारा पानी मीठे पानी में तब्दील हो चुका था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उस जीप को प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपने भारत दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी को बतौर भेंट स्वरूप प्रदान कर दिया। 71 लाख की क़ीमत वाले इस संयंत्र से एक दिन में 20, 000 लीटर पानी शुद्ध किया जा सकता है।

दुनिया में इज़रायल ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में परिवर्तित करने का अदम्य साहस किया है। दुनिया में इज़रायल इकलौता देश है, जिसने समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने की तकनीक ईजाद की है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2050 तक जब विश्व की 40 फीसदी आबादी जल संकट भोग रही होगी, तब भी इज़रायल में पीने के पानी का संकट नहीं होगा।

इज़रायल न सिर्फ़ हथियारों, बल्कि पानी के मामले में भी महाशक्ति बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर संयुक्त रूप से कार्य करने को लेकर सहमति बनी। साइबर सुरक्षा के अलावा फिल्म निमार्ण, पेट्रोलियम, ‘इनवेस्ट इंडिया इनवेस्ट इजरायल को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है। इसके अलावा दोनों देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी मिलकर काम करने को वचनबद्ध हुए हैं साथ ही दोनों देशों के बीच फिल्म, स्टार्ट अप इंडिया, रक्षा और निवेश को लेकर सहमति बनी है। वैश्विक स्तर पर भारत के प्रगाढ़ होते संबंध निश्चित तौर पर एक अच्छे संदेश के रूप में देखे जा सकते हैं जिसका फलीभूत होना आने वाले समय में तय है।

आज भारत डिजिटल संसाधनों के क्षेत्र में शानदार तरीके से प्रगति कर रहा है। ब्राडबैंड की कनेक्टिविटी गांव-गांव तक पहुंच रही है। डिजिटल माध्यम एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। बुलेट ट्रेन से लेकर स्मार्ट सिटी तक न्यू इंडिया का नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है, उसमें जापान की भूमिका एक अहम् भूमिका है। भारत को जापान की स्किल का भरपूर लाभ मिल रहा है।

जापान ने 29 अक्टूबर 2018 को अनुमोदन पत्र जमा कराते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में शामिल होने की घोषणा की। आईएसए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (आईएसए एफए) पर अब तक 70 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और 47 देशों ने इसका अनुमोदन किया है। जापान आईएसए एफए पर हस्‍ताक्षर करने वाला 71वां देश और इसे मंजूरी देने वाला 48वां देश होगा।

येन में ऋण वाली सात परियोजनाओं से संबंधित प्रावधानों के दस्‍तावेजों का आदान-प्रदान किया गया। इन परियोजनाओं में मुंबई-अहमदाबाद हाई स्‍पीड रेल के निर्माण के लिए परियोजना, उमियम-उमत्रूस्टेज-III पनबिजली संयंत्र के नवीनीकरण एवं आधुनिकीकरण के लिए परियोजना, दिल्‍ली मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्‍टम प्रोजेक्‍ट (चरण-3), पूर्वोत्‍तर सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजना, टरगा पंप्‍ड स्‍टोरेज के निर्माण के लिए परियोजना, चेन्नई पेरिफेरल रिंग रोड के निर्माण के लिए परियोजना और त्रिपुरा में स्‍थायी जलग्रहण वन प्रबंधन के लिए परियोजना शामिल हैं। (कुल ऋण प्रावधान 316.458 अरब येन तक)

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के उज्ज्वल भविष्य को संवारने का काम किया

निष्कर्ष के तौर पर हम ये कह सकते हैं कि निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तमाम विदेशी दौरे के ज़रिये देश की साख को मज़बूत करने सार्थक प्रयास किया है। भारतवासियों के मान और अभिमान को नई ऊंचाईयां देने की कोशिश की है जिसका लाभ आने वाले समय में देखने को मिलेगा। भारत के भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होने वाली विदेश नीति का उचित पालन कर प्रधानमंत्री मोदी ने अपना साकारात्मक योगदान दिया है इसलिए ये कहना उचित नहीं होगा कि भारतीय प्रधानमंत्री तो विदेशी दौरो पर ही रहते हैं।

वहीं अगर तुलना की जाए कांग्रेस के शासनकाल की तो ये सच है कि उस समय में इतने विदेशी दौरे तो नहीं हुए है, लेकिन अगर परिणाम की बात की करें तो वर्तमान में भारत विश्वभर में एक उभरती शक्ति के रूप में ख़ुद को प्रदर्शित कर चुका है। बात अगर मनमोहन सरकार की करें तो उनका अधिकांश फोकस अमरीका या एशियाई देशों तक ही सीमित रहा वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विस्तारवादी नीति के अंतर्गत इनोवेशन दिखाते हुए कई देशों का चयन किया, जहां वर्षों तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गए।

भारत देश विश्व-विख्यात तो पहले भी था लेकिन आज के युग में भारत का बदलता स्वरूप ना सिर्फ़ इसकी आभा को चारों तरफ फैला रहा है बल्कि तमाम तरह के विकास कार्यों की बदौलत अपने वजूद को और मज़बूत कर रहा है, फिर चाहे वो तक़नीकी तौर पर हो या आध्यात्मिक। ऐसे में विरोधियों और आलोचकों का ये कहना अनुचित ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केवल विश्व भ्रमण पर ही रहते हैं या भाजपा सरकार की नेतृत्व क्षमता क्षीण हो रही है।

लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में अकेले उतरेगी BJP; अमित शाह का शिवसेना को कड़ा सन्देश

ख़बरों के अनुसार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र में पार्टी के सांसदों से अकेले चुनाव में उतरने की तयारी करने को कहा है। शाह ने दिल्ली में महाराष्ट्र के भाजपा सांसदों की एक बैठक बुलाई थी जहां उन्होंने ये बातें कही। एक सांसद ने बताया कि अमित शाह ने बैठक में कहा कि राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारियां शुरू कर दीजिये क्योंकि इसकी जरूरत पड़ सकती है। सूत्रों के अनुसार भाजपा अध्यक्ष ने बैठक में कहा कि इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों में शिवसेना से गठबंधन के लिए बातचीत चल रही है और इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन अगर चीजें सही नहीं रही तो हमे अकेले चुनाव में उतरने की तैयारी भी शुरू कर देनी चाहिए।

बता दें कि अभी केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना गठबंधन साथी हैं लेकिन शिवसेना भाजपा के खिलाफ काफी मुखर रही है। कुछ दिनों से शिवसेना के नेता लगातार भाजपा के खिलाफ बयान दे रहे हैं और राफेल, नोटबंदी जैसे मुद्दों पर भी शिवसेना केंद्र सरकार के खिलाफ रुख अख्तियार करती रही है। गुरुवार को राम मंदिर को लेकर भी शिवसेना ने भाजपा पर निशाना साधा था और कहा था कि अगर भाजपा के शासनकाल में भी मंदिर नहीं बना तो फिर अब कब बनेगा? इसके अलावे राफेल सौदे की जांच के लिए जेपीसी का गठन किये जाने के विपक्ष की मांग पर भी शिवसेना ने संसद में उनका साथ दिया। इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रख कर अमित शाह ने महाराष्ट्र की सभी 48 लोकसभा सीटों पर चुनावी समर में अकेले उतरने की बात कही है।

अगर सीटों की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और शिवसेना साथ-साथ मैदान में उतरी थी और दोनों से क्रमशः 23 और 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा और शिवसेना दोनों का ही स्ट्राइक रेट काफी बेहतर रहा था क्योंकि भाजपा को कुल 24 सीटों में से सिर्फ एक पर हार मिली थी वही शिवसेना ने 20 सीटों पर जोर आजमाया था और उसे सिर्फ दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। पीटीआई ने एक भाजपा नेता के हवाले से बताया कि अमित शाह ने इस मामले में अपना रुख साफ़ कर दिया है कि अगर 2019 आम चुनावों में शिव्व्सेना के साथ गठबंधन न भी हो तो भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।

बता दें कि पांच राज्यों में पिछड़ने के बाद अमित शाह ने बैठकों का सिलसिला शुरू कर दिया है जिसमे वो आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में लगे हैं। महाराष्ट्र के लिए हुए तजा बैठक में भी इसी पर चर्चा की गई। इस बैठक में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, प्रकाश जावड़ेकर और पीयूष गोयल उपस्थित थे। जी न्यूज़ ने अपने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि दिलीप गाँधी द्वारा गठबंधन पर पूछे गए सवाल पर अमित शाह ने कहा;

“आप सभी अपने-अपने चुनाव क्षेत्र में काम करो। विधानसभा में शिवसेना के साथ हमारा गठबंधन टूट गया। तब हमने तैयारी की और सबसे ज्यादा सीटें लेकर सत्ता में आ गए। ऐसी ही तैयारी इस बार करनी है। शिवसेना के साथ चर्चा चल रही है, लेकिन कुछ खोकर गठबंधन नही करेंगे।”

शाह के इस बयान से यह साफ़ हो जाता है कि भाजपा अपनी सीटें खोएगी नहीं यानी कि वो शिवसेना द्वारा ज्यादा सीटों की मांग पर झुकने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं। इसके अलावे शाह ने सांसदों को कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने का भी आदेश दिया। उन्होंने सांसदों से कहा कि कार्यकर्ताओं को भोजन पर आमंत्रित करें और उनकी समस्याओं को सुन कर समाधान करें।

कॉन्ग्रेस नेता अहमद पटेल की बढ़ी मुश्किलें, राज्यसभा सदस्यता पर करना पड़ेगा मुकदमे का सामना

अगस्त 2017 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता अहमद पटेल को जीत मिली थी। इस चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हुए अहमद पटेल के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर किया गया। इस याचिका को अहमद पटेल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत ने दायर किया जिसे कांग्रेस ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कांग्रेस के इस अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

इसके बाद कांग्रेस नेता ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व में दो जजों की बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट में चल रहे इस मामले में किसी भी तरह से दखल देने से इनकार कर दिया। इस तरह कांग्रेस नेता अहमद पटेल को गुजरात उच्च न्यायालय में उनकी सदस्यता पर चल रहे मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।

मामला कुछ इस तरह है

अगस्त 2017 में राज्य सभा के 10 सीटों के लिए चुनाव हो रहे थे। इस चुनाव में गुजरात की एक सीट से कांग्रेस पार्टी की तरफ से अहमद पटेल चुनाव लड़ रहे थे। पटेल के सामने भाजपा की तरफ से बलवंत सिंह राजपूत चुनौती दे रहे थे। इस चुनाव में दो विधायकों की सदस्यता को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। ये दोनों ही विधायक इस चुनाव में भाजपा को समर्थन दे रहे थे। सदस्यता रद्द होने की वजह से इनके वोट की वैल्यू शून्य हो गयी। इस तरह कुल मतों की संख्या 45 से घटकर 44 हो गई। भाजपा नेता अपने विरोधी अहमद पटेल से महज दो वोटों से हार गए। ऐसे में यदि उन दो विधायकों के वोट का वैल्यू होता तो भाजपा उम्मीदवार चुनाव जीत गए होते।  

इन विधायकों की सदस्यता रद्द की गई

इस चुनाव में कांग्रेस की तरफ से विधायक भोलाभाई गोहेल व राघव जी पटेल अपनी ही पार्टी के खिलाफ विद्रोही हो गए। अपनी पार्टी के खिलाफ उनके बगावती तेवर की वजह से अहमद पटेल का चुनाव जीतना मुश्किल हो गया। लेकिन इसी समय निर्वाचन आयोग ने दोनों विधायकों की सदस्यता रद्द कर दिया। इस घटना के बाद चुनाव में कांग्रेस की तरफ से अहमद पटेल राज्यसभा पहुँच गए।

राहुल गाँधी द्वारा स्मिता प्रकाश पर टिप्पणी करने के मामले में एडिटर्स गिल्ड ने साधा शीर्ष BJP नेताओं पर निशाना

अभी कुछ दिनों पहले ही नरेन्द्र मोदी ने एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश को एक देश घंटे लम्बा इंटरव्यू दिया था। उस इंटरव्यू में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों और सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर राफेल और नोटबंदी तक पर पूछे गए सवालों का पीएम ने धड़ल्ले से जवाब दिया था। उस इंटरव्यू के बाद से ही काफी लोगों ने मोदी की आलोचना शुरू कर दी थी और कहा था कि वो केवल चुने गए पत्रकारों को ही इंटरव्यू दे रहे हैं। यही नहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने तो इंटरव्यू लेने वाली पत्रकार स्मिता प्रकाश को भी निशाने पर ले लिया और उन पर टिप्पणी की। राहुल ने स्मिता पर टिपण्णी करते हुए कहा कि वो सवाल भी खुद ही पूछ रही थी और जवाब भी खुद ही दे रही थी।

स्मिता प्रकाश ने राहुल गाँधी के हमलों का प्रत्युत्तर देते हुए कहा था कि आप पीएम मोदी की जो भी आलोचना करना चाहते हैं करें लेकिन मेरा उपहास उड़ाना बेतुका है। उन्होंने ये भी कहा था कि देश के सबसे पुराने राजनितिक दल के मुखिया से उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी।

अव्वल तो ये कि राहुल के इन बयानों के बाद लोगों द्वारा विरोध किये जाने के बावजूद कांग्रेस इसके बचाव में लगी रही और अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर इस बयान का बचाव किया और इसे दुहराया भी। कांग्रेस ने अपने ट्वीट में कहा कि आज के मीडिया की यही स्थिति है और ये कोई अपमानजनक शब्द नहीं है।

इस मामले ने जब तूल पकड़ा तो लोगों ने संपादकों के एसोसिएशन एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया पर जम कर निशाना साधते हुए राहुल गाँधी की टिप्पणी को लेकर बयान जारी करने का दबाव बनाया। बता दें कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया पत्रकारों के हितों के लिए आवाज उठाने का दावा करता रहा है। देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस मामले में एडिटर्स गिल्ड की चुप्पी पर सवाल पूछे और ट्वीट कर कहा कि सभी नकली लिबरल चुप क्यों हैं?

लोगों द्वारा लगातार आवाज उठाने के बाद एडिटर्स गिल्ड ने चुप्पी तोड़ते एक बयान तो जरी किया लेकिन उसमे राहुल गाँधी द्वारा स्मिता प्रकाश पर की गई टिप्पणी को लेकर आपत्ति जताने से ज्यादा पुराने घिसे-पिटे मुद्दों पर भाजपा नेताओं को निशाना बनाया गया।

एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में कहा;

पत्रकारों को स्वस्थ और सभ्य आलोचना से किसी छूट का दावा नहीं करना चाहिए लेकिन साथ ही उन पर किसी तरह का ठप्पा लगाना उनकी गरिमा कम करने और उन्हें धमकाने के ‘‘पसंदीदा हथकंडे’’ के तौर पर सामने आया है। हमने देखा कि हमारे नेता इसका कुछ समय से इस्तेमाल कर रहे हैं । हाल फिलहाल में भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ आप के नेताओं ने पत्रकारों के लिए प्रेस्टीच्यूट , खबरों के कारोबारी, बाजारू और दलाल जैसे अपमानजनक शब्दों का स्पष्ट तौर पर इस्तेमाल किया।’’ 

एडिटर्स गिल्ड ने राहुल गाँधी की टिप्पणी पर आपत्ति जताना तो दूर, सिर्फ एक पंक्ति में उस मामले को समेट कर इतिश्री कर ली और अपने बयान के बांकी हिस्सों में पुराने मामलों को लेकर भाजपा नेताओं पर निशाना साधा। इसके बाद लोगों ने एडिटर्स गिल्ड की जमकर आलोचना की और उसका मजाक उड़ाया। लोगों ने ट्विटर पर पुछा कि आखिर एडिटर्स गिल्ड ने राहुल गाँधी के एक पत्रकार को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान का विरोध क्यों नहीं किया या इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई?

कॉन्ग्रेस नेता के बयान पर कुमार विश्वास ने कहा ‘ऊँचाई पाते ही लोग अपनी औकात भूल जाते हैं’

मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “टाइगर अभी जिंदा है।” उनके इस बयान पर पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “शेर अब बूढ़ा हो गया है। शेर के अब दाँत और पंजे भी काम नहीं करते हैं, ऐसे में हम शेर को सर्कस में काम दे सकते हैं।”

कांग्रेस नेता अरूण यादव के इस बयान पर कुमार विश्वास ने तंज करते हुए ट्वीट किया, “थोड़ी ऊँचाई मिलते ही लोग अपनी औकात भूल जाते हैं। कितने कर्ज माफ हैं ये गुब्बारे, चंद साँसों में ही फूल जाते हैं।” इतना ही नहीं अपने ट्वीट में कांग्रेस नेता ने यह भी लिखा कि सत्ता हर झंडू को भ्रम दे देती है कि वो च्यवनप्राश हो गया।

आपको बता दें कि राजनीति में वाक जंग शिवराज सिंह चौहान और अरूण यादव के बीच कोई नई नहीं है। अरूण यादव उसी बुधनी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं, जहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लड़ते हैं। अरूण यादव राज्य के कद्दावर कांग्रेस नेता के रूप में जाने जाते हैं। अरूण यादव के बयान पर ट्वीट करके एक तरह से कांग्रेस पार्टी के नेताओं को कुमार विश्वास ने उनकी जगह और मर्यादा की दिलायी है।

कांग्रेस नेती के इस बयान पर कुमार विश्वास ने ट्वीट किया। इसके बाद कई सारे ट्वीटर यूजर ने कांग्रेस के ऊपर हामला बोल दिया। एक ट्वीटर यूजर मोहिताबी ने लिखा, “राहुल गांधी ने कल अपने भाषण में कहा की मेरे कारण कुछ चोरों की नींद उड़ी हुई है… और आज प्रियंका चतुर्वेदी ने बताया कि सोनिया जी को रात में नींद नही आती।”

एक दूसरे यूजर सचिन ने लिखा, “जनता सरकार बनाती है, 2019 में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनेगी।”

शामली में लव जिहाद: ‘बिंदास आशिक़’ ने शादी के बाद लड़की का किया 3 लाख में सौदा

दिल्ली की एक हिंदू लड़की और शामली का एक मुस्लिम लड़का! शुरुआती प्रेम के बाद युवती ने आरोप लगाया कि शामली के मुस्लिम युवक ने न सिर्फ पहचान छिपाकर उससे शादी की बल्कि उसका शारीरिक और मानसिक शोषण भी किया। इससे पहले कि वह उसे सऊदी अरब में बेच देता, लड़की को साज़िश की भनक लग गई और पीड़िता गढ़ीपुख़्ता से भागकर थाने पहुंच गई। पीड़िता ने थाने पहुँचकर पूरी घटना बताई और एसपी को प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की गुहार लगाई। जिसके बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है।

युवती ने बताया कि वह फेसबुक पर ‘निषाद’ नाम से आईडी चलाती थी और मुस्लिम लड़का ‘बिंदास आशिक’ के नाम से फेसबुक पर आईडी चलाता था। दोनों ने एक दूसरे को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। धीरे-धीरे यह बातचीत प्यार में बदल गई और दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई। युवती का आरोप है कि एक दिन इस लड़के ने एक्सीडेंट का बहाना बनाकर उसे दिल्ली के एक होटल में बुलाया और उसे नशीली दवा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए उसकी अश्लील एमएमएस बना ली। जिसके बाद से लड़का न सिर्फ उसे लगातार ब्लैकमेल करता रहा, बल्कि उससे मोटी रकम भी वसूली।

इतना सब होने के बावजूद लड़की लोक-लाज वश चुप रही। लड़के ने ऐसे मौके का फ़ायदा उठाते हुए उसे ब्लैकमेल कर शादी के लिए तैयार कर लिया। शादी के लिए युवती दिल्ली से शामली आ गई, जहाँ उसका निकाह करा दिया गया। जब निकाह हुआ तब उसे पता चला कि जिससे वह प्यार करती है, वह लड़का मुस्लिम है।

निकाह के बाद लड़के ने उसका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न करना शुरू कर दिया। लड़की के साथ मारपीट की घटनाएँ बढ़ने लगी। इतना ही नहीं, अब आरोपित इस लड़की को सऊदी अरब में बेच देना चाहता था। यहाँ तक कि उसका तीन लाख में सौदा भी कर दिया था। लेकिन इससे पहले कि आरोपित लड़की को बेचता, उसे मोबाइल के जरिए पूरी कहानी पता चल गई। और उसकी साज़िश फेल हो गई।

केरल लव ज़ेहाद मामले से जुड़ी तस्वीर

वैसे इस तरह का मामला नया नहीं है। इससे पहले भी बंगाल, झारखण्ड, मुज़फ्फरनगर और केरल में लव जिहाद के कई मामले रिपोर्ट हो चुके हैं। अगर अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो इस तरह का छद्म प्यार, धोखे का रूप लेकर न जाने कितनी युवतियों का जीवन बर्बाद करेगा।  कहीं न कहीं  ऐसी घटनाओं की जड़ में एक गहरी रूढ़ मानसिकता है, आमतौर पर सोशल मीडिया पर छद्म नाम से बढ़ा प्यार का सिलसिला यौन शोषण, ब्लैकमेलिंग और धोखे से शादी तक पहुँचता है। बाद में जब सच्चाई का पता चलता है तो लड़की कहीं की नहीं रहती।

देश के सबसे संवेदनशील अयोध्या मामले पर एक बार फिर टली सुनवाई, 10 जनवरी को नई पीठ करेगी फैसला

देश के सबसे संवेदनशील राम जन्मभूमि मामले पर बढ़ते विवादों में दायर की गई अपीलों पर आज सुनवाई एक बार और टाल दी गई है। इस मामले पर अब 10 जनवरी को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने आज (4 जनवरी 2019, शुक्रवार) बताया कि आगे की सुनवाई नई पीठ द्वारा की जाएगी।

आपको बता दें कि इस मामले पर पहले पूर्व चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की तीन अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही थी। जिसकी वजह से इस विवाद पर दो सदस्यों की बेंच विस्तार से सुनवाई नहीं कर सकती है, इसलिए इस मुद्दे पर तीन या फिर उससे अधिक जजों की बेंच ही सुनवाई करेगी। ये सुनवाई इलाहाबाद हाइकोर्ट के 30 सिंतबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर की गई कुल 14 अपीलों पर होगी।

नवंबर 2018 में जनहित याचिका लगाकर वकील हरिनाथ राम ने इस मामले पर जल्द से जल्द हर रोज़ सुनवाई करने की मांग की थी। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने भी इस बात को कहा था कि केंद्र सरकार चाहती है कि अयोध्या मामले पर रोज़ाना सुनवाई हो।

चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मामले को हर पार्टी और राजनैतिक संगठन द्वारा उछाला जा रहा है। केंद्र में एनडीए के सहयोगी शिवसेना का कहना है कि अगर 2019 के चुनावों से पहले राम मंदिर नहीं बनता है, तो ये जनता के साथ धोखा होगा। वहीं केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का ही आदेश मानना चाहिए।

इन सबसे अलग आपको बता दें कि 2019 का ये शुरुआती महीना, सुनवाई के लिए एक ऐसा समय है जब चुनाव की गर्मा-गर्मी में सरकार पर तमाम संगठनों द्वारा अध्यादेश लाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन हाल ही में एएनआई को दिए इंटरव्यू में मोदी ने इस बात को कहा है कि मंदिर से जुड़ा अध्यादेश लाया जाएगा या फिर नहीं, इस पर फैसला कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लिया जाएगा। साथ ही उन्होंने कानूनी प्रक्रिया के धीमा चलने का कारण कांग्रेस को ठहराया। इस इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के मन मे उठ रहे सवालों और खुद पर लगाये जा रहे आरोपों पर भी खुलकर बात कही।

इलाहाबाद कोर्ट का पुराना फैसला

साल 2010 में 30 सिंतबर को इलाहाबाद के हाइकोर्ट में 3 सदस्यों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला लिया था कि 2.77 एकड़ की ज़मीन को तीनों पक्षों में यानि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। लेकिन हाई कोर्ट के इस फैसले को किसी भी पक्ष द्वारा नहीं स्वीकार गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को लेकर चुनौती भी दी गई, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने इन फैसले पर 9 मई 2011 में रोक लगा दी। इलाहाबाद उच्च न्यायलय से निकलने के बाद ये मामला सर्वोच्च न्यायलय पर बीते 8 साल से है।

2019 लोकसभा चुनाव में क्या होगा महागठबंधन का भविष्य ?

प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने हाल ही में न्यूज एजेंसी एएनआई को करीब डेढ़ घंटे का इंटरव्यू दिया। उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि विरोधी पार्टियों के पास मोदी को हराने के लिए कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि महागठबंधन की आड़ में कुछ अवसरवादी पार्टियाँ और नेता अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। महागठबंधन के मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए और उनके नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाओं से सने हुए शब्दों को सुनकर यही लगता है कि मोदी को हराने के लिए ये नेता किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकते हैं।

यदि आप महागठबंधन के भविष्य के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हाल-फिलहाल की कुछ घटनाओं को समझना होगा। पहली घटना अक्टूबर 2018 की है जब तीन राज्यों में होने वाली विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही एक तरफ जहाँ वायुमंडल का पारा नीचे गिरने लगता है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक माहौल का पारा ऊपर चढ़ने लगता है।

ठीक इसी समय बसपा (बहुजन समाज पार्टी) सुप्रीमो मायावती ने कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए एक के बाद एक बयानों की मानो झड़ी ही लगा दी हो। उनके इन बयानों ने राजनीतिक माहौल को और अधिक गर्मा दिया है जो बहुतों के लिए सिरदर्दी का कारण भी बन गया है। अपने एक बयान में उन्होंने कड़े अंदाज़ में ये मांग की है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में यदि कांग्रेस या अन्य पार्टी उन्हें सम्मानजनक सीटें देती है तो ठीक, वर्ना वो किसी से भीख नहीं मांगेंगी।

दूसरी घटना इसके ठीक एक महीने बाद नवंबर की है जब ममता बनर्जी ने चंद्र बाबू नायडू से मिलने के बाद साफ शब्दों में कहा कि कोई एक नहीं हर कोई महागठबंधन का चेहरा होगा। इसके बाद अब बारी तीसरी घटना की जो कि दिसंबर 2018 की है। तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान महागठबंधन का हिस्सा बताए जाने वाले तीन बड़े नेताओं – ममता बनर्जी, अखिलेश यादव व मायावती – ने समारोह से नदारद रहकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी।

इन सभी घटनाओं से साफ है कि महागठबंधन में कोई एक मान्य नेता नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि महागठबंधन का माजरा बिन दूल्हा बारात जैसा ही है। कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखने के बाद पता चलता है कि केंन्द्र हो या फिर राज्य, जब कभी कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई, इस पार्टी ने अपने शर्तों और हितों को जरूर आगे बढ़ाया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मायावती ने 2 अप्रैल 2018 में कानून व्यवस्था बदहाल करने वाले दलितों के मुकदमे को वापस लेने की बात कही है।

इससे साफ हो गया कि यदि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन बनता है तो सभी पार्टियों द्वारा अपनी-अपनी शर्तें थोपी जाएँगी। इस गठबंधन की जिम्मेदारी किसी एक पार्टी के पास नहीं होगी। हर पार्टी लूट-खसोट में लग जाएगी। इस तरह हम कह सकते हैं कि हालात कुछ ऐसे होंगे कि, ‘तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊँगा’। महागठबंधन के बनने से देश कैसे प्रभावित होता है इसके बारे में इतिहास की कुछ घटनाओं को याद किया जा सकता है।

जब इंदिरा सरकार ने चरण सिंह पर थोपी स्वार्थी शर्तें

इमरजेंसी के बाद अगस्त 1979 की बात है। जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद केंन्द्र में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी। इस सरकार को बाहर से इंदिरा का समर्थन था। इंदिरा गांधी ने कुशल राजनीतिक व्यापारी की तरह चौधरी साहब से तोल-मोल करना शुरू कर दिया। इंदिरा चाहती थी कि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार ने संजय गांधी के उपर जो मुकदमें लगाए हैं, उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाए। किसान नेता चौधरी साहब ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के हितों को सरकार द्वारा किनारा किये जाने के बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इस तरह चौधरी साहब की नेतृत्व वाली सरकार गिर गयी।

भ्रष्टाचार के मामले पर राजीव गांधी का दबाव

यह बात उत्तर प्रदेश के बलिया वाले बाबू साहब के सरकार की है। बलिया के बाबू साहब इन दिनों राजीव गांधी की मदद से देश की सत्ता में बैठे थे। राजीव गांधी ने भी अपनी माँ की तरह ही मौका मिलते ही अपनी शर्तों को सरकार के ऊपर थोप दिया। अपने बिंदास अंदाज़ वाले बाबू साहब को यह शर्त नागवार गुजरी, उन्होंने राजीव के इस फैसले को ठुकरा दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन-सी शर्त थी जिसके चलते चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद तक की परवाह नहीं की। दरअसल राजीव बोफोर्स के मामले को दबाना चाहते थे। इस मामले को रफा-दफा करने से सरकार ने मना कर दिया जिसके बाद बाबू साहब को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

कर्नाटक में भी शर्तों पर ही समर्थन

2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा को कांग्रेस ने अपने दांव पेंच के जरिये सरकार बनाने से रोक दिया। कर्नाटक में जेडीएस (जनता दल सेक्यूलर) और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनने के बाद वेणुगोपाल ने कहा कि राहुल गांधी जी ने कहा है कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है। देश के बड़े हितों को ध्यान में रखकर कुछ फैसले लिए जाते हैं। इस तरह वेणुगोपाल ने माना कि कांग्रेस जेडीएस के सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार है।

यही नहीं राज्य के वित्त मंत्रालय और सिंचाई मंत्रालय जैसे रसूख वाले पद को भी कांग्रेस ने सिर्फ इसलिए हाथ से जाने दिया क्योंकि कांग्रेस जेडीएस को हर हाल में महागठबंधन में बनाए रखना चाहती है। इस तरह दोनों ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने –अपने हितों के लिए गठबंधन किया है। जिस दिन उनमें से किसी एक का हित नजरअंदाज होगा, इन पार्टियों का गठबंधन टूट जाएगा।

2019 कहीं अगस्ता एवम् अन्य घोटालों की जाँच दबाने की कोशिश न बन जाए

अगस्ता वेस्टलेंड मामले में सोनियां गांधी का नाम आने के बाद मामले में गांधी पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा शिकंजा मजबूत होता जा रहा है। ऐसे में यदि महागठबंधन की सरकार आती है तो पहले की तरह ही इस बार भी राहुल बाबा इस संगीन मामले को दबा सकते हैं। यही नहीं अपने जीजा के ऊपर चल रहे मामले को भी राहुल बाबा रफा-दफा कर सकते हैं। इस तरह एक तरह से मोदी के ख़िलाफ़ आने वाली यह महागठबंधन की सरकार भी हितों व स्वार्थ के आधार पर ही बन सकती है।

साथ ही, ऐसे लोगों के एक मंच पर आने से अर्थ यही निकलता है कि किसी भी तरह से एक ऐसी सरकार को सत्ता से बाहर फेंक दिया जाए जो भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख़ रखती है। मोदी सरकार ने न सिर्फ़ भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसा बल्कि अपने पूरे मंत्रीमंडल को बेदाग़ बनाए रखने की बात बार-बार कही है, साबित की है। यही कारण है कि अवसरवादी नेता, जिनमें से कई ज़मानत पर बाहर हैं, या जिन पर आरोप तय किए जा रहे हैं, एक साथ आकर ‘मोदी बनाम सारे’ की रट लगाकर, किसी भी क़ीमत पर सत्ता में आना चाहते हैं।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना भड़काऊ, उकसाने वाला और गैरज़रूरी काम: शशि थरूर

अक्सर अपने विवादित बयानों और अजीबोगरीब अंग्रेजी शब्दावली के इस्तेमाल के लिए चर्चा में रहने वाले शशि थरूर ने सबरीमाला मंदिर विवाद पर अपना विचार रखकर सबको चौंका दिया है। शशि थरूर ने इस विषय पर बोलते हुए कहा, “सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना भड़काऊ, उकसाने वाला और गैरज़रूरी काम है।” साथ ही स्पष्टीकरण देते हुए शशि थरूर ने ये भी कहा है कि हालांकि वो महिला सशक्तिकरण के समर्थक हैं, लेकिन फिर भी सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना उकसाने वाला काम है। अपने बयान में शशि थरूर ने ये आरोप भी लगाए हैं कि सी.पी.एम.और भाजपा द्वारा किसी पवित्र स्थान को राजनीति का मंच बना देना एक निंदनीय काम है।

शशि थरूर का ये बयान बुधवार को करीब 40 वर्ष की दो महिलाओं, बिन्दु और कनकदुर्गा के बुधवार सुबह 3.45 मिनट पर मंदिर में प्रवेश करने की घटना के बाद आया है। न्यूज़ चैनल ‘मिरर नाव’ को दिये गए अपने इंटरव्यू में शशि थरूर ने कहा है, “कोई भी महिला जो भगवान अयप्पा में श्रद्दा रखती है, अपनी पचास साल कि उम्र से पहले भगवान अयप्पा कि पूजा नहीं करना चाहेगी।” महिलाओं के प्रवेश के पश्चात मंदिर के ‘शुद्धिकरण’ के फैसले भी देशभर में, विशेषकर लिबरल मीडिया के लोगों ने नाराजगी व्यक्त की है।

क्योंकि सबरीमाला मंदिर विवाद आस्था से जुड़ा हुआ प्रश्न  है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा भगवान अयप्पा के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी मिलने के बाद से ही इस बात पर लगातार बहस का माहौल बना हुआ है, कि क्या वाकई में महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश करना चाहिए या नहीं ?

वहीं वामपंथी मीडिया इस बात से हैरान भी है कि अक्सर महिलाओं के समर्थन में बयान देने वाले शशि थरूर ने अचानक महिलाओं के प्रवेश को उकसाऊ कैसे बता दिया है। शशि थरूर के समर्थकों ने भी ट्वीटर पर शशि थरूर के महिलाओं के प्रति नजरिए के विरोध में ट्वीट कर उनसे अपनी नाराजगी व्यक्त की। कुछ लोगों ने प्रश्न किए कि अगर मंदिर मुद्दे पर भाजपा और सी.पी.एम. हीरो और विलेन का रोल निभा रही है तो फिर काँग्रेस का इसमें क्या योगदान रहा  है ? ट्वीटर पर शशि थरूर के प्रसंशकों ने उनपर अपनी ‘सुविधानुसार उदारवादी’ होने के आरोप भी लगाए हैं।

इस बयान पर बरखा दत्त ने ट्वीट कर के कहा है कि “शशि थरूर ने सबरीमाला पर अपनी स्थिति बदल दी है।”  शशि थरूर ने बरखा दत्त को दिये इंटरव्यू में ये भी कहा है, ” भले ही वो सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन फिर भी वो आस्था के मसले पर जनता कि भावनाओं के साथ हैं। “

शशि थरूर अक्सर सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर अपनी राय देकर चर्चा मे आ जाते हैं और महिला सशक्तिकरण पर जनता उनके बयानों को लेकर उत्साहित भी रहती है। इसलिए सबरीमाला विवाद पर शशि थरूर का बयान उनके समर्थकों के लिए हतोत्साहित करने वाली घटना रही है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप महिला विरोधी बयान के बाद अपने अगले बयान में शशि थरूर किस दिशा में राय रखते हैं ?