Sunday, September 29, 2024
Home Blog Page 5543

माकन का दिल्ली कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा, शीला ने कहा AAP से मिला सकती हैं हाथ

अजय माकन ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। एक ट्वीट के द्वारा अपने इस्तीफे की जानकारी देते हुए माकन ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया। अजय ने अपने बयान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।

ख़बरों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ दिल्ली कांग्रेस में पार्टी मामलों के प्रभारी पीसी चाको और अजय माकन की गुरुवार शाम को एक बैठक हुई जिसमे राहुल ने माकन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। अजय माकन को 2015 में दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और पीछे साल सितम्बर में भी उनके इस्तीफे की खबर उड़ी थी जिसे कांग्रेस पार्टी ने उस समय नकार दिया था। यूपीए के शासनकाल में केंद्रीय मंत्री रहे अजय माकन दो बार लोकसभा सांसद और तीन बार दिल्ली से विधायक रह चुके हैं।

तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने एक बयान देते हुए कहा है कि अगर पार्टी आलाकमान उन्हें दिल्ली में कांग्रेस की टीम का नेतृत्व करने का मौका देता है तो वह उसके लिए पूरी तरह तैयार है। इंडिया टुडे के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि अगर पार्टी उन्हें उनके प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल के लिए प्रचार करने को कहती है तो वह उसके लिए भी तैयार हैं। ज्ञात हो कि 2013 के दिल्ली चुनावों में केजरीवाल ने शीला दीक्षित को ही मुख्यतः अपने निशाने पर रखा था और उनके खिलाफ धुआंधार प्रचार कर पहली बार सत्ता पर काबिज़ हुए थे।

अभी कुछ महीनों पहले ही फ्रांस में शीला दीक्षित की हार्ट सर्जरी हुई थी और वो काफी दिनों से बीमार भी थी। बीते अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उनका हालचाल लेने उनके निवास पर भी पहुंचे थे। उस से पहले शीला ने अपनी हार्ट सर्जरी में हो रही देरी के लिए दिल्ली की आआप सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि सरकार द्वारा समय पर खर्चे की मंजूरी न देने के कारण उनकी सर्जरी में विलम्ब हुआ। अब उनके नए बयानों से ये साफ़ हो गया है कि वो केजरीवाल के साथ हाथ मिलाने और उनके साथ अपनी राजनितिक दुश्मनी को भुलाने के लिए तैयार हैं।

दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस और AAP के बीच चुनावी गठबंधन के लिए अगर कोई बातचीत चल भी रही तो वह अभी उनसे अनभिज्ञ है लेकिन किसी भी अंतिम निर्णय तक पहुँचने से पहले सभी पहलू को ध्यान में रखा जायेगा। शीला दीक्षित ने चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि इन सब मामलो में सामान्य पार्टी कार्यकर्ताओं की राय नहीं ली जा सकती है और हमे हर हाल में आलाकमान का जो भी फैसला हो उसे ही मानना पड़ता है।

हलांकि AAP से गठबंधन या अगले दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कांग्रेस ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है और इस बारे में कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। अब देखना यह है कि माकन के ताजा इस्तीफे के बाद पार्टी की दिल्ली में रणनीति क्या रहती है। इस साल लोकसभा के चुनाव भी होने वाले हैं और अभी दिल्ली की सात की सात लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में है, ऐसे में दिल्ली कांग्रेस में क्या बदलाव किया जाता है इसपर सबकी नजरें टिकी हुई है।

‘उल्लू का पट्ठा’ जिसने मनमोहन देसाई और अमिताभ को सितारा बना दिया

हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की दमदार शख़्सियत कादर खान साहब नहीं रहे। नए साल की ये एक तरह से पहली दुखद ख़बर है।  कादर खान की एक्टिंग, कॉमेडी टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी अपने आप में अभिनय का एक पूरा स्कूल है। निश्चित रूप से उनका जाना ना सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक अपूर्णीय क्षति है बल्कि उन सभी के लिए जो उनकी फिल्मों और अभिनय के कद्रदान है।

ऐसी शख्सियतें जिन्होंने खुद के बल पर जीवन में एक बड़ा और प्रभावी मुकाम हासिल किया होता है, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणापुंज होती हैं। अभिनय और फ़िल्मी दुनिया से थोड़ा परिचित होने की वजह से भी मेरा उनसे लगाव कुछ ज्यादा ही है। जिन शख्सियतों से मिलने की चाहत थी, उनमें से सदैव कादर खान की प्रमुखता बनी रही, हालांकि कभी उनसे मिलने का मौका नहीं मिला। कादर खान का शुरुआती जीवन दुखों की अबूझ पहेली है, जो हर उस इंसान को प्रेरणा देने के लिए पर्याप्त है, जो हमेशा अभाओं का रोना रोते हैं। फ़िल्म पत्रकार और मित्र रोशन जोशी ने कादर खान से जुड़ी कई कहानियाँ कुछ साल पहले साझा की थी, आज जब कादर खान हमारे बीच नहीं हैं तो वो सभी बातें खूब याद आ रहीं हैं। कादर खान का जीवन संघर्ष ही है जो उन्हें उन्हें एक कलाकार से कहीं ऊपर उठाकर, हम सब के दिलों का सरताज़ बना देती है।

अब्दुल रहमान खान और इक़बाल बेग़म अफगानिस्तान में काबुल के करीब पहाड़ी इलाके में गरीब और अनपढ़ों की बस्ती में अपना गुजर बसर किया करते थे। आठ वर्ष की उम्र में उनका बड़ा बेटा शम्स उल रहमान किसी बीमारी से चल बसा। उसके बाद फिर दो बेटे हबीब उल रहमान और फज़ल उल रहमान भी आठ वर्ष के होते ही खुदा को प्यारे हो गए। एक दिन इक़बाल बेग़म ने अपने शौहर से कहा- “इस मुल्क की आबो-हवा मेरे बच्चों को रास नहीं आती, क्यों न हम कहीं और चलें?”

अपने चौथे बेटे के जन्म पर उसकी सलामती और लम्बी उम्र की दुआ माँगते हुए दोनों मियाँ बीवी फौजियों की गाड़ी में बैठकर, कुछ रास्ता पैदल चल, कभी बस में कभी रेलगाड़ी में भटकते-भटकते पाकिस्तान (वर्तमान) होते हुए बम्बई (मुंबई) आ पहुँचे। मुंबई आकर यहाँ के कमाठीपुरा इलाके में रहने लगे, जहाँ शराब, चरस, गांजा, अफ़ीम, कोकीन, जुआ, पत्ते, सट्टा के साथ-साथ दिन दहाड़े हत्या का भी माहौल था। वालिद मुंबई का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सके। कुछ दिनों बाद दोनों मियाँ-बीवी का निबाह न हो सका और दोनों तलाक़ लेकर अलग हो गए। इक़बाल बेगम के वालिद आये और उन्होंने कहा, “एक नौजवान, खूबसूरत, क़द्दावर, गरीब और पठान बेटी का तन्हा बम्बई में यूँ ऐसे रहना ठीक नहीं है।”

उन्होंने अपनी बेटी की दूसरी शादी एक शख़्स से करवा दी, जो पेशे से कारपेंटर थे। नन्हा बेटा मुंसिपल कॉर्पोरेशन के स्कूल में जाने लगा। घर में दुःख, फ़ाक़ा, तंगहाली का आलम इस कदर परेशान किये रहता था कि एक दिन सौतेले पिता ने बच्चे से कहा – “जा तेरे बाप से 2 रुपये लेकर आ, तब खाना मिलेगा।”

बच्चा पैदल-पैदल जाकर अपने पिता से दो रुपये लेकर आया और तब घर में आटा, चावल, राशन आदि लाया जा सका। बच्चा परेशान रहने लगा और उसने अपनी माँ की आर्थिक मदद करने के लिए कुछ कमा कर लाने की सोची। पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे उस बच्चे को मोहल्ले के दूसरे बच्चों ने एक फैक्ट्री में मजदूरी करने जाने के लिए मना लिया। उसने अपना बस्ता घर के एक कोने में पटका। स्कूल जाने के बजाये सुबह फैक्ट्री में मजदूरी के लिए जाने के लिए अपना कदम घर से बाहर निकाला ही था कि अचानक पीछे से कंधे पर माँ ने हाथ रखा। माँ को भनक लग चुकी थी।

इकबाल बेग़म ने अपने बेटे से सिर्फ इतना कहा- “तू कमाने जाना चाहता है, जा, मैं तुझे रोकूंगी नहीं, पर सोच बेटा इस तरह तू कितना कमायेगा? दो रुपये? तीन रुपये? पर याद रखना, ऐसे हमेशा तेरी औकात तीन रुपये की ही रहेगी। घर की तंगहाली और भूख से निपटने के लिए मैं मेहनत मजदूरी करुँगी। तू बस एक ही काम कर, तू पढ़। तू बस पढ़।”

कादर खान
कादर खान अपने स्टडी रूम में विचारमग्न मुद्रा में

बच्चे को लगा जैसे किसी ने गरम पिघला हुआ सीसा उसके बदन पर उड़ेल दिया हो। वो भागता हुआ अंदर घर में गया और अपनी किताबें और बस्ता उठा कर स्कूल की तरफ दौड़ता हुआ भागा। जिंदगी भर अपनी माँ के शब्द “तू पढ़, तू बस पढ़” उसके कानों में ऐसे गूंजते गए कि उस बच्चे ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। धुन ऐसी कि पाठ्यक्रम की किताबों के अलावा दूसरे भी तमाम साहित्य पढ़ डाले। पढ़ने वालों के लिए जगह की कमी कहीं नहीं होती। शिवाजी पार्क, मरीन ड्राइव, आजाद मैदान के अलावा ये बच्चा कभी कब्रिस्तान में भी जाकर किताब खोल कर बैठ जाता। पढ़ना, पढ़ना और पढ़ते ही रहना – यह वाक्य दिमाग पर इस कदर हावी रहा कि किताब पढ़ते-पढ़ते वो बच्चा इंसानों के चेहरे पढ़ना सीख गया। बहुत कम लोग जानते हैं कि कादर खान दूर से ही सामने वाले व्यक्ति के होठों को हिलते देखकर भी समझ जाया करते थे कि वो उनके बारे में क्या बात कर रहा है।

इस्माइल युसूफ कॉलेज (बम्बई यूनिवर्सिटी) से ग्रेजुएशन करने के बाद कादर खान ने ‘मास्टर्स डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग’ (MIE) किया। पढ़ने का अगला पड़ाव अक्सर पढ़ाना होता है, सो अपने स्कूल और कॉलेज टाइम पर भी ट्यूशन्स पढ़ा लिया करते थे। इस तरह कादर खान एम. एच. साबू सिद्दीकी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, भायखला (मुंबई) में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर की नौकरी करने लगे। ग़ुरबत और तंगहाली में अपना पूरा बचपन बिता चुके कादर खान के लिए 300 रुपये महीना पगार उस ज़माने में बहुत थी।

स्कूल-कॉलेज के ज़माने में नाटकों का मंचन करने का शौक प्रोफ़ेसर बनने के बाद भी कादर खान साहब को बना रहा। अदाकारी और लिखने का फ़न छुपता कहाँ है। कादर खान ने एक नाटक के मंचन में अभिनय, लेखन और निर्देशन के तीनों पुरस्कार हासिल किये। वहाँ निर्णायक मंडली में कामिनी कौशल और निर्देशक नरेंद्र बेदी भी थे। उन्होंने कहा – “तुम इतने पढ़े लिखे हो, अदाकारी के साथ-साथ लिखने का फ़न भी जानते हो, फिल्मों में क्यों नहीं आते?” एक दिन दिलीप कुमार साहब के कानों तक भी बात पहुंची। फिल्म ‘सगीना’ और ‘बैराग’ में छोटी भूमिकायें मिलीं।

निर्माता रमेश बहल और निर्देशक नरेंद्र बेदी की फिल्म ‘जवानी दीवानी’ के बाद कादर खान ने निर्माता रवि मल्होत्रा और निर्देशक रवि टंडन (अभिनेत्री रवीना टंडन के पिता) की फिल्म ‘खेल खेल में’ के डायलॉग लिखे और फिल्म इंडस्ट्री में धीरे-धीरे उनका नाम होने लगा। फिर निर्माता आइ. ए. नाडियावाला और निर्देशक नरेंद्र बेदी की फिल्म ‘रफू चक्कर’ आई। तीनों फिल्में सुपर हिट रहीं। इस तरह कादर खान के पास फिल्मों के प्रस्ताव पर प्रस्ताव आने लगे। दिन भर फिल्मों में शूटिंग, शाम को लिखना और पढ़ना एक साथ जारी रहता था। साथ-साथ उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद से अरबी भाषा में एम. ए. भी कर लिया तो यार लोग हैरान रह गए, “ये आदमी सोता कब है?”

मनमोहन देसाई और कादर खान

(दिग्गज फिल्मकार मनमोहन देसाई से हुई मुलाक़ात को कादर खान अक्सर ज्यों का त्यों सुनाया करते थे।)

मनमोहन देसाई – “मेरे को मालूम है कि तुम मियाँ भाई लोगों को लिखने को आता नहीं है। तुम या तो शायरी लिखते हो या मुहावरे वगैरह। मुझे शेर-ओ-शायरी नहीं चाहिए। डायलॉग चाहिए। क्लैप ट्रैप डायलॉग चाहिए। तालियां बजना चाहिए। लिख सकता है? बकवास लिख के लाएगा तो मैं उसको फाड़ के वो उधर नाली में फेंक दूंगा।”

कादर खान – “अगर अच्छा लिख कर लाया तो?”

मनमोहन देसाई – “तो फिर मैं तुझे सिर पे बिठा के नाचूँगा, जैसे लोग गणपति को लेकर नाचते हैं।”

मनमोहन देसाई ने सबसे पहले अपनी फिल्म ‘रोटी’ (राजेश खन्ना, मुमताज़) का क्लाइमैक्स लिखने का काम दिया। कादर खान ने उसे चैलेंज के बतौर लिया और रात भर बैठ कर डायलॉग लिख डाले। दूसरे दिन अपना लेम्ब्रेटा स्कूटर लेकर मनमोहन देसाई के घर खेतवाड़ी इलाके (चर्नी रोड स्टेशन के पास) में पहुंचे। वो मोहल्ले के बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे, उन्होंने कादर खान की तरफ देखा और हल्के होठों से बुदबुदाये, “उल्लू का पट्ठा!”

कादर खान – “आपने मुझे गाली दी।”

मनमोहन देसाई – “नहीं, मैंने गाली नहीं दी।”

कादर खान – “सर, मैं बुदबुदाते हुए होठों को दूर से पढ़ लेने का हुनर जानता हूँ।”

मनमोहन देसाई कादर खान की इस काबिलियत के इस कदर कायल हुए कि बरसों बाद उन्होंने फिल्म ‘नसीब’ में इस चीज का भी उपयोग किया। याद कीजिये, जब हीरोइन दूरबीन की मदद से बहुत दूर विलेन के होठों को हिलता देख सारे डायलॉग समझ जाती है और बोलकर बता देती है।

रोटी का क्लाइमैक्स पढ़कर मनमोहन देसाई इतने खुश हो गए कि उसी वक़्त हाथ का सोने का ब्रेसलेट निकाल कर दे दिया। पच्चीस हजार कैश और एक टेलीविजन सेट भी उठाकर उपहार में दे दिया। कादर खान याद करते हुए कहते थे, ‘मनमोहन देसाई मुझसे डांटकर, चिल्लाकर, झिंझोड़कर और गाली देकर काम करवा लिया करते थे।’

मनमोहन देसाई – “कितने पैसे लेता है लिखने के?”

कादर खान (थोड़े सकुचाते हुए) – “पच्चीस हजार”

(विशुद्ध व्यावसायिक बुद्धि वाले गुजराती भाई मनमोहन देसाई चाहते तो तुरंत हाँ कह देते, मगर…..)

कादर खान अपने दोनों बेटों के साथ

मनमोहन देसाई – “रायटर है या हज़ाम? मैं तेरे को एक लाख रुपये देगा। मस्त डायलॉग लिखना प्यारे।”

सिलसिला चल निकला। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की अमिताभ बच्चन के साथ वाली ढेरों फिल्मों में कादर खान ने ऐसे-ऐसे सुपर-डुपर हिट डायलॉग लिखे, जिनको सुनकर सिनेमा हाल में दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सिक्के उछाला करते थे, सीटियाँ बजाया करते थे। आज भी अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों की जुबान पर वो डायलॉग जस-के-तस हैं।

बतौर संवाद लेखक (डायलॉग रायटर) उन्होंने करीब ढाई सौ फिल्में लिखी। इनमें प्रमुख हैं- सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एन्थोनी, शराबी, कूली, सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, गंगा जमुना सरस्वती, परवरिश, मिस्टर नटवरलाल, खून पसीना, दो और दो पांच, इंक़लाब, गिरफ्तार, हम, अग्निपथ, हिम्मतवाला, कुली नंबर-1, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, कानून अपना अपना, खून भरी मांग, कर्मा, सल्तनत, सरफ़रोश, जस्टिस चौधरी, धरम वीर।

कादर खान साहब ने अग्निपथ और नसीब फिल्मों का स्क्रीन प्ले भी लिखा। उन्हें खलनायक और कॉमेडियन की भूमिकाओं में देखते हुए कितने लोगों का बचपन और जवानी बीती है। जीतेन्द्र, राजेश खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती, श्रीदेवी जयाप्रदा, अरुणा ईरानी, असरानी और उनके खासमखास शक्ति कपूर के साथ वाली फिल्मों ने तो कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। गोविंदा अभिनीत फिल्मों का एक के बाद एक लगातार हिट होते चले जाना कादर खान के साथ का ही कमाल था।

इतनी उपलब्धियों के बाद भी अमिताभ बच्चन के साथ ‘ज़ाहिल’ फ़िल्म बनाने की इच्छा दिल की दिल में ही रह गई। फिल्म कूली के बाद वो शूटिंग शुरू करने वाले थे। अमिताभ बच्चन के एक्सीडेंट के बाद फिल्म अटक गई। फिर कादर खान अपनी दूसरी फिल्मों में खुद व्यस्त हो गए। बच्चन साहब राजनीति में चले गए और फिर बात आई-गई हो गई। ‘जाहिल’ ना बना पाने का उन्हें हमेशा अफ़सोस रहा। बच्चन साहब एक जमाने में बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे। इसलिए कभी-कभार कुछ मौकों पर कादर खान नाराजगी भी जाहिर कर चुके थे। हालांकि अमिताभ बच्चन की तारीफ करते हुए कादर ख़ान कहते थे, “वो संपूर्ण कलाकार हैं, अल्लाह ने उनको अच्छी आवाज़, अच्छी जबान, अच्छी ऊंचाई और बोलती आंखों से नवाजा है।”

एक और खास बात, कादर खान अपने महत्वपूर्ण और अच्छे डायलॉग लिखकर ही नहीं बल्कि अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर के हीरो को दिया करते थे। ताकि बोलते समय अर्धविराम, पूर्णविराम, आवाज के उतार और चढ़ाव आदि का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा जाए। जिससे स्क्रीन पर परफॉर्मेंस वैसा ही उभर कर आता, जैसा लिखते समय कादर खान साहब के जेहन में रहा हो।

इस प्रकार अपनी लम्बी यात्रा (जन्म: 22 अक्तूबर 1937 से लेकर लम्बी बीमारी के बाद इंतकाल 31 दिसंबर 2018 तक) में उन्होंने भरपूर जीवन जिया। उनके व्यक्तिगत जीवन में पत्नी अज़रा खान बेटे सरफ़राज़ खान, शाहनवाज़ खान, और क्यूडस खान हैं।

सुनो पप्पू बाबू, संसद तुम्हारे बाप, दादी या परनाना की नहीं

रहुलबा के पैंट में अलकतरा की तरह राफ़ेल चिपक गया है और वो चाहे किरासन तेल डाल ले, पेट्रोल डाल ले, लेकिन वो छुटाए नहीं छूटता। जब देह में घोटालों का अलकतरा बाप से लेकर परनाना तक ने डीएनए के स्तर तक घुसा दिया हो तो ‘रोम-रोम’ से भ्रष्टाचार करनेवाले आदमी को फ़्रान्स-फ़्रान्स तक घोटाला ही दिखता है। ख़बर यह है कि हमारे अपने पपुआ ‘ठाकुर’ ने संसद में राफ़ेल सौदे पर चर्चा के दौरान अपने चिरकुट सांसदों की फ़ौज से लोकसभा के अंदर काग़ज़ों के जहाज उड़वाए। 

जिस आदमी का काग़ज़ से इतना ही नाता हो कि कभी वो अपनी मम्मा के मनोनीत प्रधानमंत्री के कैबिनेट को डिसीजन के प्रिंट आउट को फाड़ चुका हो, या फिर उसके हवाई जहाज बनाए हों, (या फिर जीभ लगाकर रोल किया हो) उससे राफ़ेल के दामों के गणित पर क्या सवाल करना! जेटली बाबू भी ये सब बेकार की बातों में उलझ जाते हैं कि रहुलबा को बेसिक एरिथमेटिक नहीं आता! ऐ भैबा! उसको तो एरिथमेटिक होता क्या है वो भी नहीं पता होगा। 

इसीलिए तो रहुलबा बहुत गुस्सा हो गया! संसद में गुस्सा हो गया कि ये सुमित्रा महाजन उसको बताएगी कि उसको क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं? मतलब नेहरू के परनाती, इंदिरा के पोते और राजीव के बेटे को आजकल की स्पीकर बनी महिला बताएगी कि उसको संसद के भीतर कैसा व्यावहारिक करना चाहिए? जिसकी माँ चाभी से चलने वाले रोबोट को प्रधानमंत्री बना चुकी हो, उसे स्पीकर हेडफ़ोन लगाकर आदेश सुनने कहेगी? जिसके परनाना ने संसद बनाया हो, रात के बारह बजे उठकर डेस्टिनी के साथ इंडिया का ट्रिस्ट कराया हो, उस आदमी को संसद में कैसे और क्या बोलना है, वो बात दस साल सत्ता में रही पार्टी की सांसद बताएगी?

इसी को रहुलबा घोर कलजुग कहता है काहे कि डिम्पल वाले हंस को दाना-पानी चुगने कह दिया और ये कौआ सब मोती खा रिया है! जिसका बचपन इसी संसद में बोफ़ोर्स के मॉडल की चटनी चाटते बीता है, उस चिरयुवा व्यक्ति को बताया जाएगा कि संसद में पेपर प्लेन उड़ाना ग़लत है! वो काहे नहीं उड़ाएगा प्लेन? बचपन से उड़ाया है, अब तो जवान हुए हैं, संसद में परिवार है, घर का मामला है, तो पेपर मोड़ कर प्लेन नहीं बना सकते? “आपको मज़ा नहीं आया? अच्छा, मज़ा आया? तो आप भी उड़ा लीजिए प्लेन! ऐसे मोड़कर बना लीजिए न प्लेन! मैं वही मज़ा आपको देना चाहता हूँ जो एक बार महिलाओं को देना चाह रहा था।”

जिस परिवार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का जज कौन बनेगा ये तय होता था, उस परिवार का छोना बाबू सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन को सही मानेगा? रहुलबा का माइंड इज़ इक्वल टू ब्लोन हो गया जब गोगोई ने बंद लिफ़ाफ़े में राफ़ेल के दस्तावेज मँगाए और कह दिया कि सब सही है। हैं! सब सही कैसे है, रहुलबा कह रहा है कि गलत है, तो गलत है।  

महीनों की मेहनत, फ़्रान्स के अनाम पोर्टल को बहलाकर, ओलांद से कहवाकर, इतना इलेबोरेट झूठ बुना था चाटुकारों ने, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुड़गोबर कर दिया। इस मामले में एक्के बात बुझाता है और वो ये है कि कॉन्ग्रेस को घोटाले करने का अनुभव तो है, लेकिन जब न किया हो तो मैनुफै़क्चर करने का बिलकुल नहीं। पहले कभी ज़रूरत नहीं हुई, और प्रैक्टिस करने से बेहतर घोटाला ही कर लेना इनकी हर सरकार का हॉलमार्क रहा है, तो ठीक से ताना-बाना बुन नहीं पाए। 

बात भी सही है कि जब पूरा ध्यान घोटाला करने और उससे बाल-बाल बच जाने पर हो, और मगज में ये गर्मी कि हम कभी सत्ता से बाहर नहीं होंगे, उसको चौवालीस कर देना, ठीक बात थोड़े ही है। अब ऐसी स्थिति में नया स्किलसेट डेवलप करना पड़ा रहा है। मोदी डिजिटल इंडिया ले आया और अम्बानी जियो, उसका अलग ही टंटा है। हर आदमी को थोड़ा सर्च करने पर काम का मैटेरियल मिलिए जाता है। 

पपुआ के बर्तन वाले जीजू से लेकर बोफ़ोर्स वाले अब्बू, इमरजेन्सी वाली दादी और जीप वाले नाना तक ने ऐसे कांड किए हैं कि पार्टी कार्यकर्ता तक मुख्यालयों की हवा सूँघकर ही करप्ट हो जाता है। ऐसे में दिन-रात वहीं बिताने वाली लीडरशिप जन्मजात अनुभव के साथ आती है, और घोटाले तो बस नैसर्गिक रूप से हो जाते हैं। 

जब ये कहते हैं कि इन्होंने व्हीलचेयर से लेकर कोयला, स्पैक्ट्रम, कॉमनवेल्थ और अगस्ता वैस्टलैंड के हेलिकॉप्टर तक घोटाला नहीं किया, तो आप मानिए कि वो बिलकुल सही कह रहे हैं। क्योंकि इनकी ख़ून में घोटाले के इतने तत्व घुल चुके हैं कि इन्हें ‘करना’ नहीं पड़ता, वो बस ‘हो’ जाते हैं। यही कारण है कि ये लोग अपने घोटाले को, अगस्ता वाले हेलिकॉप्टर और ‘HAL को कॉन्ट्रैक्ट क्यों नहीं दिया’ को आसानी से भूल जाते हैं क्योंकि इन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि ये जो कर रहे हैं, वो घोटाला है। 

मतलब देखिए आप, अपने आस-पास कॉन्ग्रेसी सरकारों की लाई गई परम्परा को निहारिए तो पाएँगे कि चपरासी को सौ रुपए देकर ‘आवासीय प्रमाण पत्र’ बनवाने से लेकर, पासपोर्ट के लिए तिमारपुर के पुलिसवाले को 1000 रूपए देने तक, आप झिझकते भी नहीं, क्योंकि आईआईटी ही नहीं भ्रष्टाचार के घूमते-फिरते संस्थान भी तो इनके परनाना ने ही दिए हैं, जो कि आपको कभी भी आउट ऑफ़ प्लेस नहीं लगेंगे। आप अपने दोस्तों को कहेंगे, तो वो उल्टे आपको कह देंगे कि ‘इतना तो चलता है’। ये एटीट्यूड बाय डिफ़ॉल्ट भारतीय जनता में भर देना, कम्प्यूटर लाने से कम थोड़े ही है! 

कम्प्यूटर इनके बाप ने दिया, आईआईटी इनके परनाना, और ‘इमरजेन्सी’ में ‘पावर’ ले गई इनकी दादी, तो  चपरासियों की ऊपरी कमाई के इस नायाब स्टार्टअप का ज़िम्मा भी तो उन्हें ही लेना होगा ना? अब ऐसे में घोटाला न कर पाने का ‘विथड्राअल सिम्पटम’ तो दिखेगा ही कॉन्ग्रेसियों में। ‘यार चार साल हो गए यार! घोटाला नहीं किया यार…’ की फ़ीलिंग कितनी मजबूर कर देती है इन्सान को, इसका उदाहरण कॉन्ग्रेस और राफ़ेल को लेकर उनके प्रेम से दिखता है। 

चोर वाली प्रवृत्ति हो, और ऐसे माहौल में पले-बढ़ें हों जहाँ आपके शरीर के हर मॉलीक्यूल घोटालों की कोवेलेंट बॉन्डिंग से बने हुए हों, तो फिर लगता है कि सबको चोर बताकर अपने आप को नॉर्मल बता पाना ज़्यादा सही रहेगा। इसीलिए पपुआ कभी भी अपने पप्पा या पार्टी के पापों का ज़िक्र नहीं करता क्योंकि उसको लगता होगा कि घोटाला तो नॉर्मल-सी बात है, जो नहीं करते वो एब्नॉर्मल हैं। 

इसी चक्कर में उसको विश्वास ही नहीं हो रहा है कि रक्षा क्षेत्र में सौदा हो गया और घोटाला हुआ ही न हो। बात सही या गलत की है ही नहीं, बात है कि किसी का विश्वास सरकारों के घोटाला करने की प्रवृत्ति में इतना प्रगाढ़ हो तो उसके लिए भ्रष्टाचार से दूर रहने वाली सरकार के अस्तित्व में होने की संभावना पर खुद को समझा पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। वो तो यही कहेगा, “अबे चल! सरकार घोटाला नहीं करेगी… मतलब कुछ भी बोलेगा!” 

इसीलिए, डिम्पल पड़नेवाले क्यूट आदमी का शातिर होना मुझे तो बिलकुल सही अवधारणा नहीं लगती। इतना क्यूट आदमी, जो पार्टी का अध्यक्ष होकर संसद में काग़ज़ के हवाई जहाज उड़वा देता हो, मैडम को सर बोल देता है, चार सवाल के बारे में ट्वीट करता हो और तीसरा लिखना ही भूल जाता हो, वो रहुलबा, हमारा पपुआ, भले ही कॉन्ग्रेस में जन्मा, लेकिन सोच-समझकर विरोधियों पर हमला करेगा, ये गलत बात है। 

मोदी सरकार की वो 6 योजनाएँ, जिन्होंने 2014 से ही बदलनी शुरू कर दी थी देश की तस्वीर

तमाम मुश्किलों के बाद भी यदि भाजपा का शुरुआती समय याद किया जाए, तो मालूम पड़ेगा कि देश की सत्ता संभालने के साथ ही मोदी जी ने ऐसी योजनाओं को शुरू किया, जिसने समाज के उस तबके को आगे बढ़ाया है, जो सालों से पिछड़ा था। जिनकी वजह से लोगों के उज्ज्वल भविष्य की न केवल कामना की गई, बल्कि उन्हें समाज में आगे बढ़ने का पूरा मौका दिया गया। ऐसे में भी कुछ नकारात्मक शक्तियों के लगातार वार करने के बाद भी विकास गति धीमी नहीं हुई।

विपक्ष में बैठे लोगों का कहना है कि मोदी जी देश मे बुलेट ट्रेन को लाने का सपना देख रहे हैं, जबकि ग़रीब तबके की स्थिति बिगड़ती जा रही है। ऐसे में लोगों को उन योजनाओं के बारे में जानना ज़रूरी है, जो कि आम लोगों की ज़िंदगी पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से असर करती हैं और जिन पर प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता सँभालते ही काम करना शुरु कर दिया था।

सरकार तरह- तरह की योजनाओं के ज़रिये देश के आख़िरी आदमी को रोजगार दिलाने के लिए मशक्कत कर रही है, जिसमें ‘स्टार्टअप इंडिया’ से लेकर ‘स्किल इंडिया’ और ‘मुद्रा योजना’ जैसी योजनाएँ प्रमुख हैं। साथ ही, सरकार न सिर्फ रोज़गारदाता बनना चाहती है, बल्कि उसका एक लक्ष्य देश के युवाओं की क्षमता को विस्तार देते हुए उन्हें भी हर संभव मदद दे रही है जिससे वो समाज में कई लोगों को रोज़गार दे सकें।

जहाँ, मोदी सरकार आम आदमी की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के उपाय करती नज़र आती है, वहीं 2014 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने बेहतर विपक्ष के रूप में सरकार की मदद की बजाय भाजपा के हर कार्य पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम किया है। फिर चाहे वो 2016 में की गई नोटबंदी हो या फिर दुश्मनों के खिलाफ उठाया गया सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में सबसे कड़ा कदम, विरोधी खेमा हर बात में अपने विचारों और सवालों का स्तर गिराता ही जा रहा है।

आज हम आपको भाजपा के उन शुरुआती योजनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनकी वजह से भाजपा ने आम आदमी के कल्याण का सपना पहले साल से ही देखा है। इसमें भारत का विकास सर्वोपरि है। लेकिन कांग्रेस ने जनता को भाजपा के प्रति ऐसे बरगलाया है, कि देश की जनता अब इन बातों में आने लगी है कि भाजपा द्वारा किए गए देश के या देश के नागरिकों के लिए कार्य उनके हित में नही हैं। इसलिए जानना ज़रूरी है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद उसने किस प्रकार जनता के भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए लाभकारी कदम उठाए हैं। आइये जानते हैं उन शुरुआती योजनाओं के बारे में जिनके तमाम फ़ायदे यदि आम आदमी की समझ में आ जाएँ, तो भाजपा के लिए 2019 में दोबारा बहुमत से पाना आसान ही होगा।

विपक्ष की कुर्सी पर बैठे कांग्रेस ने विपक्ष की भूमिका अदा करने से ज्यादा भाजपा से अपनी दुश्मनी का समय-समय पर प्रमाण दिया है। क्योंकि, जहां तक राजनैतिक मूल्यों की बात है, उसमें विपक्ष की भूमिका सत्ता में बैठे लोगों को सही दिशा में लाना होता है। सत्ताधारियों को उनकी ज़ुबाँ से किए गए वादे याद दिलाने का होता है, जिन्हें अक्सर राजनेता कुर्सी पाने के बाद भूलते दिखाई पड़ते हैं। लेकिन बेवजह ही लगातार हर मुद्दे पर भाजपा पर ऊँगली उठाना, मोदी सरकार को कटघरे में लेना, साफ़ बताता है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीतने के लिए जनता तक पहुँचने की बजाय भाजपा को नीचा दिखाने का एजेंडा बना कर चल रही है।

डिजिटल इंडिया

आधार कार्ड के माध्यम से भारत सरकार ने देश के 121.9 करोड़ निवासियों को डिजिटल पहचान दिलाई है। जिसमें 30 नवम्बर 2018 तक के आंकड़ों में 99% वयस्क शामिल हैं। ‘डिजिटल इंडिया’ के बढ़ते हुए प्रभावों से देश की अर्थव्यवथा में भी बड़ा बदलाव आया है। आधार कार्ड से पैसों का लेन-देन भी डिजिटल तरीकों से किया जाने लगा है। ये सरकार की उपलब्धि है कि भीम एप और आधार कार्ड को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है।

बीते 4 सालों में डिजिटल रास्ता अपनाकर लोगों ने इन आँकड़ों को काफी उछाला है। एक तरफ 2014-15 में जहाँ मात्र ₹316 करोड़ के ट्रान्जेक्शन हुए थे, वहीं 2017-2018 में यह आँकड़ा ₹2,071 करोड़ तक पहुँच गया। यहीं ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज के समय में ‘डिजिटल इंडिया’ के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए ‘भीम एप्लीकेशन’ के ज़रिए सबसे ज्यादा डिजिटल ट्रान्जेक्शन होता है।

इसके अलावा ‘डिजिटल इंडिया’ की दिशा में ‘डिजी लॉकर’ नाम की एप भी लॉन्च की गई। इसमें आप अपने आधार नंबर से ही सभी ज़रूरी काग़ज़ात निकाल सकते हैं, चाहे वो दसवीं की मार्कशीट ही क्यों न हो। जिन काग़ज़ात के खो जाने पर हमें संस्थानों के चक्कर लगाने पड़ते थे, आज वो सब इंटरनेट के ज़रिये मात्र आधार नंबर से पाए जा सकते हैं।

अटल पेंशन योजना

2015 में शुरू हुई यह योजना प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों के लिए काफी लाभकारी है। इसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वालों और मजदूरों के लिए 60 की उम्र के बाद एक नियमित पेंशन प्रदान करना है, ताकि वह मात्र 42 रुपये निवेश करने के साथ खुद को और अपने बुढ़ापे को सुरक्षित कर सके। अब तक ‘अटल पेंशन योजना’ के लाभार्थियों की संख्या 1.24 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। साल 2018-19 में इनकी संख्या में लगभग 27 लाख से ज़्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है।

जन-धन योजना

28 अगस्त 2014 से इस योजना की शुरुआत हुई थी। एक दिन में ही लोगों ने इस योजना के तहत लगभग डेढ़ करोड़ खाते खोले। इन सभी लोगों को 1 लाख रुपये दुर्घटना का बीमा कवर दिया गया। 2016 में तक ये आंकड़े 3.02 करोड़ तक पहुँच गए थे। मार्च 2018 के रिकॉर्डों के अनुसार इस योजना के तहत खोले गए खातों की संख्या 31.20 करोड़ हो गई है। जिनमें 75 लाख से अधिक की धन राशि भी जमा है। लोगों द्वारा इस योजना का बढ़-चढ़ कर फायदा उठाया जा रहा है। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ प्रधानमंत्री द्वारा ‘डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रॉन्सफ़र’ योजना द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का सीधा लाभार्थी के बैंक अकाउंट में पहुँचना था। पहले ग़रीबों, वंचितों आदि के पास बैंक अकाउंट न होने के कारण भ्रष्टाचार करनेवाले उनके हक़ के पैसे खा जाते थे, और उचित लोगों तक उनके हिस्से का पैसा नहीं पहुँच पाता था।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

जिस देश में युवाओं के रोजगार को लेकर आए दिन संशय की स्थिति जताई जाती है, वहीं ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ का यही उद्देश्य है कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाए। देश के युवाओं को इस काबिल बनाया जाए कि वो बढ़ते दौर में रोज़गार के लिए न सिर्फ़ खुद को सक्षम बना पाएँ बल्कि अपने स्टार्टअप के ज़रिये दूसरों को भी अवसर दे सकें। ‘स्किल इंडिया’ जैसी योजना के द्वारा युवाओं को कई संस्थानों में प्रशिक्षण भी दिया गया।

12 दिसंबर 2018 के आँकड़ों के अनुसार 33,43,335 अभ्यर्थियों को या तो प्रशिक्षण दिया जा चुका है या दिया जा रहा है। इनमें में से कुछ को कम अवधि वाला प्रक्षिक्षण दिया जा रहा है तो कुछ को विशेष परियोजनाओं के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। साल 2018 में इस योजना के तहत 10 लाख से ज्यादा लोगों को प्लेसमेंट के ज़रिए रोज़गार मिला जिसमें एक बेहतर बात देखने को मिली कि महिलाओं ने पुरुषों को लगभग एक लाख की संख्या से पछाड़ दिया है। साथ ही, अन्य प्रशिक्षुओं के लिए रोज़गार के कई क्षेत्र खुलते दिखाई दिए।

मेक इन इंडिया

‘मेक इन इंडिया’ एक ऐसी सोच का नतीजा है, जिसमें भाजपा ने भारत के सशक्त होने का सपना देखा था। जिसके ज़रिए मोदी सरकार ने एक ऐसे देश की कल्पना की थी जहाँ पर विदेशी और देशी सभी कंपनियाँ भारत में ही वस्तुओं का निर्माण करें। ‘मेक इन इंडिया’ में 4 चीजों पर ज़ोर दिया गया था: नई कार्यविधि, नए बुनियादी ढाँचे, नए क्षेत्र और नई सोच। ‘डिजिटल इंडिया’ के बाद ‘मेक इन इंडिया’ एक ऐसा प्रयोग था जिसने लोगों को अपनी क्षमताओं को विस्तार करने का मौका दिया।

आज हर दिन तिगुनी रफ्तार से लोग अपने बिज़नेस को ऑनलाइन शिफ्ट कर रहे है। घर बैठे अपने हुनर को व्यवसाय का रूप देते लोग ही ‘मेक इन इंडिया’ के उद्देश्य को कामयाब बना रहे हैं। सैमसंग जैसी प्रतिष्ठित मोबाइल कंपनी जो अभी तक केवल विदेशों में अपने मोबाइल सेट का निर्माण करती थी, उसने पहली बार इसी बीच भारत मे अपने मोबाइल बनाने शुरू किए। ये भारत जैसे देश के लिए बहुत बड़ी बात है। जिसे लोग मामूली-सी चीज समझ कर नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ के ज़रिये भाजपा ने देश के लिए एक ऐसा सपना देखा, जहाँ हर घर की रसोई में चूल्हे के धुएँ की जगह एलपीजी सिलिंडर पहुँचाए गए। उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से इस योजना की शुरुआत की गई थी, जिसमें 5 करोड़ महिलाओं की रसोई में मुफ्त गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। पर, हाल ही के आंकड़ों पर यदि पर गौर करें तो इस योजना ने 6 करोड़ का आँकड़ा छू लिया है।

एलपीजी की शुरुआत के बाद से 50 वर्षों में केवल 13 करोड़ कनेक्शन लोगों को उपलब्ध कराए गए थे, जबकि पिछले 54 महीनों में सरकार ने लगभाग इतने ही कनेक्शन उपलब्ध कराए हैं। आज लगभग 80 प्रतिशत लाभार्थी अपने एलपीजी सिलेंडरों की रीफ़िलिंग करवा रहे हैं।

तो, ये थी वो योजनाएँ जिन्हें कुर्सी को सँभालने के साथ ही मोदी सरकार ने कार्यान्वित किया था और जिनका लाभ करोड़ों लोगों ने उठाया है। 2014 से लेकर 2018 के बीच में आज भी कई योजनाएं शुरू की जा रही हैं। जिनका उद्देश्य, बिना जाति-धर्म आदि देखे, हर व्यक्ति का कल्याण है। लेकिन आज भ्रम की स्थिति में फँसकर लोग इन बातों को भी भूल गए हैं कि देश के व्यवस्थित तबके को सुव्यवस्थित करने के साथ ही मोदी सरकार ने बिगड़ी चीजों को भी सुधारा है।

आज हमें समझने की जरूरत है कि विकास की राह इतनी आसान नहीं होती जितनी अपेक्षा की जाती है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लिए गए छोटे-बड़े फ़ैसले देश के हित में कार्य कर रहे हैं, जिन्हें समझने के लिए सकारात्मक नज़रिये की ज़रूरत है। 60 साल तक देश को सँभालने वाली कांग्रेस सरकार को ये बात अच्छे से समझनी चाहिए कि यदि उनका लक्ष्य देश का विकास है तो फिर उन्हें हर बात में कमी निकालने की जगह समस्याओं के समाधान के लिए विस्तार से बात करके उन पर सुझाव देना चाहिए। जो लोग भाजपा की कोशिशों को समझते हैं उन्हें बेहतर भारत की तस्वीर भी दिखती ही होगी।

मध्यम वर्ग के लिए मोदी सरकार बनाम कांग्रेस का रिपोर्ट कार्ड आप यहाँ विस्तार से पढ़ सकते हैं।

चर्च की चारदीवारियों के बीच पादरियों के कुकर्मों की पोल खोलती एक डरावनी दास्तान

भारतीय चर्चों में नन्स के साथ हो रहे दुर्व्यवहार ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा है। ऐसी अगनित ख़बरें आती रही है जिनसे चर्च की चहारदीवारीयों के बीच ननों के साथ बलात्कार, दुर्व्यवहार और छेड़छाड़ की घटनायों का पता चलता है और इन घृणित कार्यों के पीछे अक्सर पादरियों का हाँथ होता है। मीडिया द्वारा इन ख़बरों को तवज्जो नहीं दी जाती या फिर ये मुख्यधारा की ख़बरें नहीं बन पाती। भारत में मामला चर्च और मस्जिदों का आता है तो फिर मुद्दा संवेदनशील हो जाता और फिर इस पर कुछ बोलने से पुलिस अधिकारी से लेकर बड़े-बड़े राजनेता तक बचते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसी एपी न्यूज़ ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसमे ऐसे कई चौंकाने वाले खुलासे किये गए हैं। ननों की दर्दनाक दास्तान सुनाती इन रिपोर्ट में पादरियों की करतूतों की पोल खोली गई है। ये एक दिल दहला देने वाली घटनाओं को ननों के हवाले से सुनाती है ताकि आम जन भी चर्च की बंद दीवारों के पीछे क्या चल रहा है इस बारे में जाने। आइये आगे जानते हैं कि टिम सुल्लिवन द्वारा लिखे गए इस रिपोर्ट में क्या खुलासे हुए हैं। एसोसिएट प्रेस ने पिछले साल ही ये बात बताई थी कि एशिया, अमेरिका और यूरोप के चर्चों में नन्स के साथ हो रहे दुर्व्यवहार से वेटिकन भलीभांति वाकिफ था और उसने इस बारे में कोई एक्शन नहीं लिया।

“वो शराब के नशे में था” एक नन ने कहा वहीं दूसरे ने बताया “ऐसे समय पर पता नहीं चलता कि कैसे मना किया जाये”। यहाँ अपनी डरावनी आपबीती सुनाती ये नन्स बता रही है कि कैसे उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और चर्च प्रशासन ने उन्हें बचाने और आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कुछ भी नहीं किया। एपी न्यूज़ कि वेबसाइट के मुताबिक़ जब उन्होंने भारत में ननों से इस बारे में बात करनी चाही तो वो इतनी डरी हुई थी कि अधिकतर ने कुछ भी बताने इ इनकार कर दिया। काफी मशक्कत के बाद कुछ ने बताया भी तो अपने नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर।

अभी कुछ महीनों पहले ही एक 44 साल की नन ने एक पादरी पर पिछले 3 साल में उसके साथ 13 बार बलात्कार करने का आरोप लगा कर खलबली मचा दी थी और अदालत में इस मामले की सुनवाई भी हुई थी। सिस्टर जोसेफिन ने एपी को बताया कि कुछ लोग उन्हें कहते हैं कि वो चर्च के विरुद्ध काम रही है और शैतान की पूजा कर रही है। उन्होंने बताया कि इन सबसे बावजूद उन्हें सच्चाई के लिए खड़े होने की जरूरत है। 23 सालों से नन रही जोसेफिन दर्द भरे आवाज में बताती है कि वो सभी सिस्टर्स मर जाना चाहती है।

कुछ घटनाएँ तो दसीयों साल पुरानी है। एक नन जो कि 1990 के दशक में किशोरावस्था में थी और एक कैथोलिक चर्च में पढ़ा रही थी, ने बताया कि वो लोग नयी दिल्ली रिट्रीट सेंटर में कुछ अन्य सिस्टर्स के साथ गयी थी और उनका नेतृत्व करने के लिए एक पादरी को लाया गया। नाम नहीं बताने की शर्त पर उन्होंने बताया कि 60 साल के उस पादरी ने रात के साढ़े नौ बजे उनका दरवाजा खटखटाया और उनसे मिलने की इक्षा व्यक्त की। अपने से चालीस साल छोटी लड़की पर बुरी नजर डाल रहे उस पादरी की नजर में खोट उन्हें साफ़-साफ़ नजर आ रहा था और अव्वल तो ये कि उसने पी भी रखी थी।

“आप अभी सही अवस्था में नहीं हैं और इसीलिए मै आपसे नहीं मिलना चाहती”- नन ने उस पादरी से कहा लेकिन वो जिद करता रहा कि वो उनसे आध्यात्मिक चर्चा करना चाहता है। मना करने पर वह पागल हो गया और उसने नन को जकड लिया और बलपूर्वक दरवाजा खोल कर उनके शरीर पर जहां-तहां छूने लगा और फिर जबरदस्ती किस करने की कोशिश की। घबराई हुई नन ने उसे जोर से धकेला और दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया। आज भी इस घटना को याद कर वो सिहर उठती है। वो बताती है कि उन्होंने चर्च प्रशासन को गुप्त रूप से एक चिट्ठी भी लिखी लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। साथ ही उन्होंने बताया कि उस समय वो डर के मारे उस विकृत पादरी के खिलाफ आवाज उठाने की सोंच भी नहीं सकती थी।

कैथोलिक इतिहास में महिलाओं के साथ क्रूरता का पुराना गवाह रहा है। संत लूसी का वक्षस्थल सिर्फ इसीलिए चीर दिया गया था क्योंकि उन्होंने शादी करने से मना कर दिया था, संत लूसी को उनकी वर्जिनिटी साबित करने के लिए जिन्दा दफ़न कर दिया गया था और उनका गला रेत दिया गया था। संत मरिया गोरेटी को 11 वर्ष की उम्र में ही बलात्कार के प्रयास के बाद हत्या कर दी गई थी।

केरल में हालत और भी बुरी है। वहाँ कि नन्स अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की घटनाओं को अपने दिल में दबाये रखती है और सार्वजनिक तौर पर न तो कुछ बोल पाती है और ना ही इस बारे में पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का साहस कर पाती है। केरल की एक नन ने बताया कि रविवार के दिन वहां कई चर्चों में आवारा लड़के जमा हो जाते हैं ताकि वो अन्दर जाती हुई लडकियों को घूर सके। वो बताती हैं कि जब वो किशोर अवस्था में थी तभी गोवा से आये एक साठ वर्षीय पादरी ने उन्हें जोड़ से जकड लिया था और फिर उनके साथ जबरदस्ती की थी। इस से पहले कि वो कुछ समझ पाती, वो पादरी उन्हें इधर-उधर किस करने लगा। उन्होंने बताया कि वो एक प्रभावशाली पादरी था जिस वजह से वो डर के मारे चिल्ला भी नहीं सकती थी।

चर्च के पादरी के खिलाफ आवाज उठाने का मतलब हुआ कि आप चर्च व्यवस्था में अपने से सीनियर के ऊपर आरोप लगा रही हैं और आपको अलग-थलग होना पड़ता है। चर्च और उनके पादरी इतने शक्तिशाली और प्रभावशाली होते हैं कि कोई भी उनके खिलाफ आवाज उठाने वालों का समर्थन करने से डरता है।

केरल के कैथोलिक पादरी फ्रांसो मुलक्कल का ही उदहारण लीजिये। केरल के एक गाँव से निकल कर उत्तर भारत में बिशप बने मुल्क्कल पर एक नन ने बलात्कार का आरोप लगाया था। तीन सप्ताह जेल में रह कर छूटे मुल्क्कल का स्वागत एक हीरो की तरह किया गया था और केरल में कई लोग ऐसे हैं जो उसे एक हीरो की तरह ही मानते हैं। केरल में इसाई मिशनरियों का दबदबा कुछ ऐसा है कि लोग अपने व्यापार और कम्पनी का नाम भी कुछ इस तरह रखते हैं- संत मेरी फर्नीचर, मरिया इलेक्ट्रॉनिक्स इत्यादि। आलम कुछ यूँ रहा कि पीड़ित नन से मिलने मुट्ठी भर लोग ही पहुंचे और उनके समर्थन में तो न के बराबर ही लोगों ने आवाज उठाई लेकिन उस आरोपित पादरी के समर्थन में तो नेता-विधायक तक ने बयान दिया। ये इस बात को जाहिर करता है कि चर्च और पादरियों की पैठ कितनी गहरी है।

पीड़ित सिस्टर एक आर्मी के पूर्व जवान की बेटी है। जब वो उच्च विद्यालय में थी तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। उस नन ने बाते कि इतने शक्तिशाली आदमी के खिलाफ वो शिकायत करने जाए भी तो कहाँ जाये। वो बताती है कि उन्होंने कई अन्य ननों और चर्च प्रशासन से भी इस मामले की शिकायत की लेकिन सब व्यर्थ।

एपी न्यूज़ द्वारा इस विस्तृत रिपोर्ट में जो बातें बताई गयी है वो चर्चों में चल रहे पादरियों के कुकर्मो पर पर्दा डालने वालो और उनका समर्थन करने वालों की पोल खोलती है। ये सवाल है प्रसाशन और न्याय व्यवस्था के ऊपर भी क्योंकि एक तरफ पीडिता के लिए कोई बोलने वाला भी खड़ा नहीं होता वहीँ दूसरी तरफ बलात्कार का आरोपित पादरी ठीक से एक महीने भी जेल में नहीं रह पाता और जमानत पर बाहर आ जाता है। ये दुखद है और मुख्यधारा की मीडिया द्वारा इस पर बात नहीं करना, पीडिता के लिए आवाज नहीं उठाना- ये सब और भी दुखद है।

धार्मिक स्थल से ऐलान के बाद मामूली विवाद ने लिया हिंसक रूप

नई दिल्ली। झारखण्ड की राजधानी रांची स्थित कांके थाना क्षेत्र के मुरूम गांव में मामूली विवाद ने बड़ा रूप ले लिया। इस दौरान युवकों के दो गुटों में जमकर मारपीट हुई। इसके बाद गुस्साई भीड़ ने पुलिस की टीम पर भी हमला बोल दिया, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और उनके वाहन को भी भीड़ ने आग के हवाले कर दिया। साथ ही उपद्रवियों ने कई घरों और दुकानों में भी आग लगा दी, जिसके चलते कई लोग गांव छोड़कर चले गए हैं। हालांकि पुलिस अधीक्षक, यातायात पुलिस अधीक्षक ने लोगों से शांति बनाए रखने और किसी भी तरह के अफवाह पर ध्यान न देने की अपील की है।

धार्मिक स्थल से ऐलान के बाद भड़की हिंसा

दरअसल नए साल के मौके पर पिकनिक मना कर लौट रहे युवक की मोटरसाइकिल होचर गांव के एक युवक की मोटरसाइकिल से टकरा गई, जिसके बाद विवाद शुरू हुआ। इसके बाद मुरूम गांव के युवक के घर पर लोगों ने हमला कर दिया, जिसके बाद दो गांव आमने-सामने हो गए। कुछ देर बाद ही धार्मिक स्थल से ऐलान होने के बाद दो गुट आपस मे भीड़ गए और पत्थरबाजी शुरू हो गई। उपद्रवियों ने पुलिस की बोलेरो समेत दो अन्य बोलेरो और तीन मोटरसाइकिल को आग के हवाले कर दिया।

घटना की सूचना मिलते ही थाना प्रभारी अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और भीड़ से शांति की अपील की। लेकिन भीड़ मानी नहीं तो पुलिस ने बल का प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसके बाद भीड़ और आक्रोशित हो गई और पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया, जिसमें थानेदार और उनके ड्राइवर घायल हो गए। भीड़ ने धार्मिक स्थल के पास खड़ी थानेदार की गाड़ी को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद भारी संख्या में पुलिसबल मौके पर पहुंची और हालात को काबू में कर लिया। पूरे घटना क्षेत्र को छावनी में तब्दील कर दिया गया।

पुलिस ने की शांति की अपील

हालात की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी अनीश गुप्ता, एसपी यातायात अजीत पीटर डुंगडुंग, एसपी ग्रामीण आशुतोष शेखर, कांके के सीओ प्रभात भूषण सिंह सहित एक दर्जन थानेदार व डीएसपी मौके पर पहुंचे। इसके बाद भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई। इस दौरान एसएसपी ने लोगों से अपील किया है कि अफवाहों पर ध्यान न दें। जो दोषी हैं, उनकी पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

500 अज्ञात उपद्रवियों के खिलाफ मामला दर्ज

मुरूम गांव की स्थानीय महिला के बयान पर तीन गांव होचर, मुरूम व कनादु के 59 लोगों को नामजद आरोपित बनाया गया है। इसमें जिला परिषद सदस्य मोजीबुल अंसारी भी शामिल हैं। इसके अलावा पांच सौ अज्ञात उपद्रवियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है।

इससे पहले भी रांची में पुलिस पर हुआ था हमला

बता दें कि बीते वर्ष 28 दिसंबर को भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया था, जिसमें रांची जिले के पुलिस उपाधीक्षक उदय चंद्र झा शहीद हो गए थे। दरअसल थाने की गाड़ी से धक्का लगने पर एक बच्चे की मौत हो गई थी, जिसके बाद भीड़ सड़क पर प्रदर्शन करने लगी थी। इस दौरान लोगों को समझाने गई पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया था, जिसमें उदय चंद्र झा शहीद हो गए थे। इसके अलावा यूपी के बुलंदशहर जिले में भी भीड़ ने इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या कर दी थी। इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपित को गिरफ्तार कर लिया है।

घोड़े की लीद के सेवन से उपजते हैं ऐसे तर्क और आतंकियों के प्रति इतना प्रेम

एनआईए (NIA) ने जब से कुछ आतंकियों को पकड़ा है तब से लगातार सोशल मीडिया पर NIA का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। एक से बढ़कर एक तर्क गढ़े जा रहे हैं। मोदी विरोध अपनी जगह है लेकिन उस विरोध में तथाकथित लिबरल बुद्धिवादी और विद्वान इतने आगे निकल चुके हैं कि जब तक उनकी आँखों के सामने विस्फोट नहीं होगा तब तक वो ये भी नहीं मानने को तैयार हैं कि ऐसे ‘जुगाड़-टेक्नोलॉजी’ से भी बम बनाया जा सकता है।   

आईईडी ( IED) ऐसे ही जुगाड़ से बनाया जाता है। बम बनाने के लिए बनारस में कुकर, टिफिन और साइकिल का भी इस्तेमाल हुआ था। अगर यहाँ प्रेशर कुकर मिल जाता तब भी ये कोई न कोई कुतर्क गढ़ लेते। ऐसी प्रतिक्रियाओं से ही ऐसे नरपिशाचों  का मनोबल बढ़ता है।

अभी साल भर पहले सेना ने दंतेवाड़ा के जंगलों से गुण्डाधुर नाम के एक नक्सली कमांडर को उसके साथियों सहित पकड़ा था, जिनके पास से कुछ पाइप बम बरामद किए गए थे जो रॉकेट लॉन्चर की तरह काम करते थे। इनको बनाने के लिए वाहनों का प्रेशर नोज़ल काम में लिया गया था जो कि पाइप बम में मौजूद विस्फोटक को ठीक रॉकेट लॉन्चर की तरह दूर तक फेंकता था। यह पाइप बम आम पाइप बम से कई गुना ज्यादा खतरनाक था क्योंकि साधारण पाइप बम के धमाके में इतनी तीव्रता नहीं होती थी। जिससे सेना के वाहनों को कभी-कभी कम क्षति पहुँचती थी और उसमें मौजूद जवानों के बचने की पूरी सम्भावना बनी रहती थी। लेकिन प्रेशर नोज़ल से बने रॉकेट लॉन्चर की तरह काम करने वाले पाइप बम की मारक क्षमता साधारण पाइप बम से कई गुना अधिक थी। इसे दूर से रिमोट कंट्रोल डिवाइस से भी चलाया जा सकता था।

पूछताछ में गिरफ्तार नक्सली कमांडर ने बताया कि प्रेशर बम से एक-दो वाहन ही चपेट में आते हैं लेकिन इस तकनीक से एक बार में एक से ज्यादा वाहनों और जवानों को टार्गेट किया जा सकता है। इसके दायरे में आए वाहनों या जवानों का बचना नामुमकिन है। प्रेशर बम को ज़मीन में 20 से 25 डिग्री के कोण पर दबाकर रखा जाता था, ताकि पहले वाहन के पीछे चल रहे अन्य वाहन भी धमाके के दायरे में आ सकें।

ये सारी बातें इसलिए बतानी ज़रूरी हैं क्योंकि पिछले दो-चार दिन से एक से बढ़कर एक हाई क्वालिटी ईर्ष्या और कुढ़न की डोज़ लिए हुए पत्रकार और तथाकथित विद्वान जो सरकार का मज़ाक उड़ाते हुए लिख रहें हैं कि NIA जिसको रॉकेट लॉन्चर कह रही है, वो राकेट लॉन्चर नहीं था बल्कि वह तो ट्रैक्टर की ट्रॉली का प्रेशर नोज़ल था।

यह तो कमाल की बात हो गयी कि एक आदमी के पास आईईडी बम नहीं पकड़ा गया, सिर्फ कुछ किलोग्राम पोटैशियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट, सल्फर पेस्ट, सुगर मैटेरियल, लोहे के पाइप व छड़ें, कंचें, नोकदार कीलें, तार के बंडल, सैकड़ो डिजिटल अलार्म घड़ियां, मोबाइल फोन सर्किट, मोबाइल की बैटरियाँ, रिमोट कंट्रोल डिवाइस, वायरलेस स्विच पकड़े गए। अब बताइये कि इनमें आईईडी बम कहाँ है? यह तो सिर्फ सामान भर था। जब आईईडी बम पकड़ा जायेगा तब ही माना जायेगा कि ये लोग आतंकवादी हैं? नहीं, तब तक हमारे कई मीडिया के पुरोधा और तथाकथित समाज सेवकों की नज़र में वर्कर माने जायेंगे। हो सकता है फिर भी ये लोग नहीं माने। ऐसे हाई क्वालिटी के महानुभाव तब भी कहेंगे कि सिर्फ आईईडी बनाया ही तो है, फोड़ा कहाँ है?

जब तक कहीं किसी स्कूल-कॉलेज में, मंदिर में, बाजारों, बस अड्डों पर बम नहीं फोड़ेंगे तब तक ये नहीं मानेंगे कि पकड़े गए लोग आतंकवादी हैं। वैसे, ऐसे महानुभाव तब भी कहेंगे कि बम धमाके में जो लोग पकड़े गए हैं वह तो इनोसेंट हैं, यह काम तो आरएसएस का है, या यह हिन्दू आतंकवाद है, और सिर्फ समुदाय विशेष से होने की वजह से मोदी सरकार इनको फँसा रही है।

शायद इन्होंने नक्सलियों और आतंकवादियों के काम करने के तरीकों को ठीक से नहीं जाना है जो साधारण चीजों से भी खतरनाक से खतरनाक बम बनाने में एक्सपर्ट हैं। या फिर जानबूझकर ये ऐसी दलीलें लाते हैं ताकि इनके गिरोह के लोग, और वो आतंकी बचे रहें जिन्हें इनका मूक समर्थन मिलता रहता है।

इसलिए यह किसी हालत में नहीं मानेंगे कि पकड़े गए लोग आतंकवादी हैं। यह तो तभी मानेंगे जब इनके कान के नीचे धमाका होगा ।

नये साल पर किसानों को मोदी सरकार का बड़ा तोहफा; 0% ब्याज पर मिलेगा कर्ज

ख़बरों के अनुसार नये साल पर केंद्र सरकार किसानों को बड़ा तोहफा देने का मूड बना चुकी है। अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाहने केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से उनके दिल्ली स्थित आवास पर मुलाक़ात की थी, तभी से ये अटकलें तेज हो गई थी कि सरकार चुनावी साल में किसानों के लिए बड़ी घोशनाए करने वाली है। मोदी सरकार किसानों को हर एक क्रॉप सीजन में एक प्रति एकड़ चार हजार रुपये देने की तैयारी कर रही है। इतना ही नहीं, किसानों को एक लाख तक के ब्याज मुक्त कर का लाभ भी दिया जा सकता है। ये सारे पैसे किसानों को डायरेक्ट ट्रान्सफर यानी सीधे उनके बैंक खातों में दिए जायेंगे।

वहीं इन फैसलों से केंद्र सरकार के खजाने पर सालाना ढाई लाख करोड़ तक का बोझ पड़ने की उम्मीद है। इसके अलावे अन्य योजनाओं की भी घोषणा की जा सकती है। कहा जा रहा है कि केंद्र ने प्रधानमंत्री कार्यालय और नीति आयोग के साथ बैठक भी बुलाई है जो इसी सप्ताह होने की उम्मीद है। इन बैठकों में कृषि और खाद्य सम्बन्धी मंत्रालयों और विभागों के प्रमुख अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री खुद इन योजनाओं की निगरानी कर रहे हैं और उन्होंने कई किसान नेताओं से मुलाकात कर उनका सुझाव भी मांगा है।

बता दें कि अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी को मुद्दा बनाया था और हिंदी बेल्ट के तीनो राज्यों में भाजपा की हार हुई थी। विश्लेषकों ने कांग्रेस द्वारा किसानों से किये गए कर्जमाफी के वादे को उसकी जीत की प्रमुख वजहों में से एक गिनाया था। इसके बाद से ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी इस मुद्दे को लेकर पीएम मोदी पर अक्सर निशाना साधते रहे हैं। ख़बरों से पता चलता है कि इन चुनावों में मिली हार के बाद सचेत भाजपा ने किसानों को बड़ी रहत देने के लिए चुनावी साल में ये फैसला लिया है।

पिछले साल केंद्र सरकार ने दस लाख करोड़ के कृषि ऋण का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसे हासिल भी किया गया लेकिन अब कई दलों द्वारा किया जा रहे कर्जमाफी के चुनावी वादों के बाद बैंकों ने किसानों को कर्ज देना लगभग बंद कर दिया है। ताजा निर्णय में रुपये और अहयता सीधे किसानों के पास भेजे जायेंगे। इसके लिए किसानों से कुछ जानकारियां जैसे कि जमीन विवरण, आधार कार्ड डिटेल, फसल की जानकारी इत्यादि मांगी जा सकती है।

बता दें कि केंद्र सरकार लगातार 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने की बात कहती आ रही है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने भी कुछ दिनों पहले कहा था कि सरकार किसानों की आया दुगुनी करने के लिए अमान्य फसलों की खेती के अलावे पशु, मछली इत्यादि के पालन के लिए भी प्रोत्साहित कर रही है। अब देखना यह है कि होने वाली घोषणाओं में इन योजनाओं के साथ-साथ किसानों को और क्या सौगातें मिलती है।

सचिन तेंदुलकर के कोच रमाकांत आचरेकर का निधन; क्रिकेट जगत ने जताया शोक

भारतीय क्रिकेट के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले दिग्गज कोच रमाकांत अचरेकर का कल उनके मुंबई स्थित आवास में निधन हो गया। 87 वर्षीय आचरेकर काफी दिनों से व्हीलचेयर पर थे और उनकी तबियत भी ख़राब चल रही थी। उनके परिजनों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को फोन पर बताया कि उन्होंने कल शाम को अंतिम साँस ली। मुंबई क्रिकेट में अभूतपूर्व योगदान देने वाले आचरेकर को क्रिकेट के भगवन कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट करियर को नयी ऊँचाइयों तक पहुंचाने के लिए जाना जाता है। बचपन में ही सचिन आचरेकर के संपर्क में आ गए थे और उन्होंने काफी दिनों तक उनकी निगरानी में ही अपने क्रिकेट करियर को आकार दिया। स्वर्गीय आचरेकर सचिन के अलावा अजित अगरकर, विनोद काम्बली और प्रवीन आमरे सहित कई दिग्गजों के कोच भी रहे थे।

सचिन तेंदुलकर ने आचरेकर के निधन पर शोक जताया। अपने शोक सन्देश में तेंदुलकर ने कहा;

“आचरेकर सर की उपस्थिति में क्रिकेट स्वर्ग में भी समृद्ध होगा। उनके कई विद्यार्थियों की तरह मैंने भी क्रिकेट की एबीसीडी सर के मार्गदर्शन में ही सीखा है। मेरी ज़िन्दगी में उनके योगदान को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उन्होंने उस आधार को बनाया जिस पर आज मई खड़ा हूँ। पिछले महीने ही मैंने सर के कुछ अन्य विद्यार्थियों के साथ उनसे मिला था और उनके साथ कुछ समय बीताया था। हम पुरानी बातों को याद कर हँसे भी। आचरेकर सर ने हमें साफ़-सुथरा खेलने और साफ़-सुथरे तरीके से जीने के गुर सिखाये थे। मुझे अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने के लिए धन्यवाद।

वहीं विश्व में क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी ने भी आचरेकर के निधन पर शोक जताया। वहीं भारतीय क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था बीसीसीआई ने अपने शोक सन्देश में कहा कि आचरेकर ने न सिर्फ अच्छे क्रिकेटर्स बनाये बल्कि उन्हें एक अच्छा आदमी बनना भी सिखाया। बीसीसीआई ने कहा कि भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान अभूतपूर्व है।

रमाकांत आचरेकर के शिष्य रहे पूर्व भारतीय क्रिकेटर अजीत अगरकर ने उनके निधन पर शोक जताते हुए उन्हें ‘बहुत बहुत ख़ास’ आदमी बताया और लिखा “सभी चीजों के लिए धन्यवाद सर”।

भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित रामाकांत आचरेकर मुंबई के दादर स्थित शिवाजी पार्क में क्रिकेट का प्रशिक्षण देने के लिए प्रसिद्ध थे। उनके निधन की खबर सुनते ही देर शाम सचिन और अगरकर उनके निवास पर पहुंचे।


राजस्थान सरकार का नया फरमान; सरकारी दस्तावेजों से हटेंगे दीनदयाल उपाध्याय के फोटो

राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने नया फरमान जारी करते हुए सभी सरकारी दस्तावेजों से एकात्म मानवतावाद के पुरोधा पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम हटाने का आदेश जारी किया है। सरकार ने ये आदेश सभी सरकारी डिपार्टमेंट, कारपोरेशन और एजेंसियों को ये आदेश जारी किया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो सभी 73 सरकारी विभागों में ये आदेश लागू होगा। ये आदेश राज्य की नवगठित सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग के चार दिन बाद आया है। बता दें कि चार दिन पहले हुए कैबिनेट मीटिंग में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल ने ही अपनी पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के कई फैसलों को भी पलट दिया है।

राज्य सरकार ने आदेश जारी करते हुए कहा कि सभी सरकारी लैटरपैड से स्वर्गीय उपाध्याय की फोटो वाले लोगो हटा दिए जाएँ। गौरतलब है कि दिसम्बर 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने यह निर्णय लिया था कि सभी सरकारी लैटरपेड पर पंडित उपाध्याय की फोटो वाला लोगो इस्तेमाल किया जायेगा। उस आदेश में कहा गया था;

“पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सही आकार की एक तस्वीर पहले से मौजूद लैटरपेड में लगाईं जाये और भविष्य में छपने वाले लैटरपेड में इसे अनिवार्य रूप से छपवाया जाये।”

अब ताजा आदेश के बाद वसुंधरा सरकार का ये फैसला पलट दिया गया है। इसके निर्णय के पीछे कारण बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश और समाज के लिए कोई भी ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया था जिस से उनकी फोटो को अशोक स्तम्भ के साथ स्थान दिया जाये। साथ ही सरकार ने सभी दस्तावेजों पर उनकी फोटो की जगह राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह इस्तेमाल करने का आदेश दिया। इसके अलावे ताजा कैबिनेट बैठक में पंचायती चुनावों में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता सम्बन्धी बंदिश भी खत्म करने का निर्णय लिया गया।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और जन संघ के संस्थापकों में से एक थे। भाजपा उन्हें अपना आदर्श पुरुष मानती है और केंद्र सरकार की कई योजनायें उनके नाम पर चल रही है। फरवरी 1968 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी। गांधीजी के तीन प्रमुख विचारों- स्वदेशी, स्वराज्य और सर्वोदय को आगे ले जाने वाले पंडित उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे थे।