Friday, April 19, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देलेफ़्ट-लिबरल इकोसिस्टम की नई चाल को काटने के लिए कितने तैयार हैं आप?

लेफ़्ट-लिबरल इकोसिस्टम की नई चाल को काटने के लिए कितने तैयार हैं आप?

ट्विटर का हर छठा यूज़र भारतीय है। यह पिछले दो सालों में बढ़ा ही होगा। इस एकता को बना कर रखना होगा, और आशा है कि सरकार इस एकता को सकारात्मक नज़र से देखेगी। इसके अलावा शायद समय आ गया है कि भारत अपना खुद का सोशल मीडिया/माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफार्म लेकर आए, जैसे चीन का Sina Weibo है।

आप राजदीप सरदेसाई या शेखर गुप्ता हों तो आप 2014 के पहले के दिनों की वापसी चाहेंगे। वे दिन, जब आपकी जो मर्ज़ी आए सच-झूठ लिख दें, लोकतंत्र के राजे-महाराजे प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री आपसे इंटरव्यू कराने के लिए लालायित हों, भारतीय मीडिया के आप तुर्रमखाँ हों और वैश्विक मीडिया आपके पीछे हो, फिल्म स्टार आपसे मिलने के लिए ऐसे बेचैन हों जैसे यह उनका ऑडिशन है। आप अपने महलों में चढ़ के बैठे हों और किराने की दुकान, किताबों की दुकान, ट्रैफिक स्टॉप, मॉल या मेट्रो जैसी ‘छोटी-मोटी’ चीज़ों से आपका कोई साबका न पड़ा हो।

लेकिन फिर हवा पलट गई। सत्ता के केंद्र पर ‘राइट-विंग’ काबिज़ हो गया। उनके मीडिया, जिनमें स्वराज्य और ऑपइंडिया सबसे बड़े हैं, लेकिन इकलौते नहीं, ने बुलबुले में छेद करने शुरू कर दिए। झूठ और असहिष्णुता पर पड़े नकाब उठने लगे। उनका हिन्दू-विरोधी स्टांस सार्वजनिक हो गया। उनके गढ़े मिट्टी के पुतले, जैसे ‘वीर’ टीपू सुल्तान, ‘महान’ मुगल, ‘शांतिप्रिय’ अशोक गलने लगे। रोमिला थापर, शेल्डन पोलॉक, ऑड्रे ट्रश्के, इरफ़ान हबीब को वो मिलने लगा, जिसके वे लायक थे। अमर्त्य सेन और रघुराम राजन का आभामंडल फीका होकर बुझ गया। फिल्म अभिनेताओं और निर्देशकों की ‘निष्पक्षता’ का नाटक खत्म हो गया और लेखक तथा अकादमिक जगत के लोग बिकाऊ निकले। कानूनी दाँव-पेंच आजमाने और उनपर हुकुम सुनाने वाले भी मिट्टी के माधो निकले।

लेफ़्ट-लिबरलों का इकोसिस्टम जनाक्रोश के सैलाब में डूबने लगा। मोदी को गरीबों ने जिता दिया, दक्षिणपंथी विचार की आवाज़ को सोशल मीडिया पर मंच मिला। तब इस लेफ़्ट- इकोसिस्टम ने हर विरोधी पर “भक्त” और “ट्रोल” का ठप्पा लगाना शुरू कर दिया, अपने नेरेटिव के विरोधियों को ‘फेक न्यूज़ वाला’ बताने लगे।

लुटियंस मीडिया अपनी ज़मीन बचाने के लिए डिबेट और सेमिनार करने लगे। लेकिन तब भी वे विश्वसनीयता खोते ही रहे। 2019 के बाद तो उनके खुद के लिए इसे नकारना मुश्किल हो गया।

अब जबकि इनकी समझ में आ गया है कि संख्या बल इनके साथ कभी नहीं होना है, तो एक नया खेल शुरू हो गया है। सोशल मीडिया राइट-विंग के ही पक्ष में समर्थक बढ़ा रहा है। “फेक न्यूज़” चिल्लाने से काम नहीं बनना है तो अब इन्होंने अपने अख़बारों और अन्य समाचार माध्यमों के साथ गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यमों को जोड़कर नया प्रपंच शुरू किया है। “फेक न्यूज़” का रोना रोने की बजाय उसी शराब को नई बोतल में डालकर “मिसइंफॉर्मेशन” का लेबल लगा दिया है। अब ‘स्थानीय’ गिरोह को वैश्विक लेफ़्ट-लिबरलों के नेटवर्क के सरगनाओं का साथ मिल रहा है।

The Hindu ने आज अपने पहले पन्ने पर सीना ठोंक के घोषणा की है कि वह BBC और अन्य वैश्विक मीडिया आउटलेटों के साथ मिलकर “मिसइंफॉर्मेशन” से लड़ेगा। इसके लिए वह “पाठकों की रक्षा” का हवाला दे रहा है। BBC ने इस नए प्रपंच की शुरुआत इस साल के “Trusted News Summit” से कर दी थी। इसमें भागीदारी करने वाले थे European Broadcasting Union (EBU), फेसबुक, फाइनेंशियल टाइम्स, गूगल, AFP, माइक्रोसॉफ्ट, रॉयटर्स, ट्विटर, BBC और The Hindu। अब यह सब एक दूसरे को “इत्तला” कर देंगे जहाँ कहीं इनमें से किसी को “मिसइंफॉर्मेशन” दिखे।

यह अब तक इंटरनेट पर प्रभुत्व जमाए राइट-विंग के लिए चुनौती है। अभी तक तो हम खाली परेश रावल के ट्वीट डिलीट करने और वैसे ही ‘अपराध’ पर शेहला रशीद को हाथ न लगाने, ट्विटर इंडिया के सीईओ (2014-18) के पाकिस्तान-समर्थक होने आदि के बारे में शक भर ही करते थे। अब तो इन सब ने खुल कर हाथ मिला लिया है।

तो अब इंटरनेट-वीर कर क्या सकते हैं? पहले तो अपनी संख्या को मज़बूती से पकड़ कर रखना होगा। ट्विटर का हर छठा यूज़र भारतीय है। यह पिछले दो सालों में बढ़ा ही होगा। इस एकता को बना कर रखना होगा और आशा है कि सरकार इस एकता को सकारात्मक नज़र से देखेगी।

लेकिन इसके अलावा शायद समय आ गया है कि भारत अपना खुद का सोशल मीडिया/माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफार्म लेकर आए, जैसे चीन का Sina Weibo है। यह इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर का मिश्रण है। इससे अपने देश के लोगों का डाटा भी सुरक्षित रहेगा और प्रतिस्पर्धी के आ जाने से वैश्विक प्लेटफार्म भी अपने-आप सीधे हो जाएँगे।

लेफ़्ट-लिबरलों का इकोसिस्टम अपनी चाल चल चुका है। जवाब में आप क्या कर रहे हैं?

(वरिष्ठ पत्रकार आशीष शुक्ला के मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित लेख का अनुवाद मृणाल प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव ने किया है।)

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Ashish Shukla
Ashish Shuklahttp://ashishshukla.net/
Author of "How United States Shot Humanity", Senior Journalist, TV Presenter

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

10 नए शहर, ₹10000 करोड़ के नए प्रोजेक्ट… जानें PM मोदी तीसरे कार्यकाल में किस ओर देंगे ध्यान, तैयार हो रहा 100 दिन का...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी अधिकारियों से चुनाव के बाद का 100 दिन का रोडमैप बनाने को कहा था, जो अब तैयार हो रहा है। इस पर एक रिपोर्ट आई है।

BJP कार्यकर्ता की हत्या में कॉन्ग्रेस MLA विनय कुलकर्णी की संलिप्तता के सबूत: कर्नाटक हाई कोर्ट ने 3 महीने के भीतर सुनवाई का दिया...

भाजपा कार्यकर्ता योगेश गौदर की हत्या के मामले में कॉन्ग्रेस विधायक विनय कुलकर्णी के खिलाफ मामला रद्द करने से हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe