आदिवासी राजा और उनके बेटे, जिन्हें अंग्रेजों ने तोप से बाँध उड़ा दिया था: गद्दार के कारण पकड़े गए, मोदी सरकार ने दिया सम्मान

जानिए कौन थे राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह (फोटो साभार: Dindori)

मध्य प्रदेश का गोंडवाना, जिसे वर्तमान में जबलपुर के नाम से जाना जाता है, वहाँ के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुँवर रघुनाथ शाह का शनिवार (18 सितंबर, 2021) को बलिदान दिवस है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज जबलपुर में गोंडवाना के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुँवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर दोनों वीरों की प्रतिमाओं को नमन कर पुष्पांजलि अर्पित की। इस दौरान अमित शाह के साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद थे।

आजादी के अमृत महोत्सव पर जबलपुर में स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अतुलनीय योगदान देने वाले जनजातीय नायकों के सम्मान में ‘जनजातीय गौरव समारोह’ का आयोजन भी किया गया।

https://twitter.com/AmitShah/status/1439165291628359681?ref_src=twsrc%5Etfw

इस दौरान गृह मंत्री ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “मातृभूमि के लिए राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथ शाह जी का बलिदान हमें सदैव प्रेरणा देता रहेगा। पहले की सरकारों ने ऐसे कई महान वीरों विशेषकर जनजातीय नायकों की निरंतर उपेक्षा की, लेकिन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकारें उनके सम्मान को पुनर्स्थापित करने के लिए कटिबद्ध हैं।

दरअसल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह ने अपने साहस से जन-जन में स्वाधीनता की अलख जगाने का काम किया था। इसके लिए अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों को तोपों से बाँधकर उनकी निर्मम हत्या कर दी थी। आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए आज भी राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह बेहद सम्मानीय हैं। ये दोनों पिता-पुत्र महान कवि भी थे, जो अपनी कविताओं के जरिए प्रजा में देश भक्ति का जज्बा जगाते थे, लेकिन अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह को अपने प्राण न्योछावर करने पड़े।

अंग्रेजों की क्रूरता का शिकार होने के बावजूद वो उनके आगे नहीं झुके, जिसकी वह से अंग्रेजों ने उन्हें तोप से बाँधकर उड़ा दिया था। आज भी शहरवासियों और यहाँ आने वाले लोगों की बीच उनकी यादें जिंदा हैं, जो उन्हें देश भक्ति के लिए प्रेरित करती हैं।

अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क – कहानी राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ की

बात 1857 की है। उस दौरान गोंडवाना में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बेहद ही क्रूर था। वह इलाके के छोटे राजाओं, जमीदारों और जनता को परेशान किया करता था और उनसे मनमाना कर वसूलता था। इस पर तत्कालीन गोंडवाना राज्य के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुँवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेज कमांडर क्लार्क के सामने झुकने से इनकार करते हुए उनसे लोहा लेनी की ठानी।

दोनों ने अपने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करना शुरू दिया। उनकी कविताओं ने शहरवासियों में विद्रोह की अग्नि सुलगा दी। हालाँकि, इन सबके बीच एक गद्दार और भ्रष्ट कर्मचारी गिरधारी लाल भी था, जो अंग्रेजों की मदद करता था। राजा ने उसे निष्काषित कर दिया था, क्योंकि गिरधारी लाल अंग्रेजों के लिए राजा की कविताओं का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करता था। इससे क्लार्क ने चारों ओर अपने गुप्तचर तैनात कर दिए थे।

इनमें से कुछ ऐसे भी गुप्तचर थे, जो साधु के भेष में महल में गए और सारा भेद लाकर क्लार्क को बता दिया कि दो दिन बाद छावनी पर हमला होने वाला है। इसकी वजह से हमले से पहले ही (14 सितंबर) राजा शंकर शाह और उनके 32 वर्षीय बेटे को क्लार्क ने बंदी बना लिया। इन दोनों को अंग्रेजों ने जहाँ बंदी बनाकर रखा था वर्तमान में वह जबलपुर डीएफओ कार्यालय है। इसके चार दिन बाद 18 सितंबर 1857 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुँह पर बाँधकर उड़ा दिया गया था। दोनों ने हँसते-हँसते मौत को गले लगा लिया था, लेकिन तब तक जनता में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा उबल चुका था, जो आजादी मिलने तक जारी रहा।