‘मुस्लिम जज’ ने दिया था सरेआम गाय काटने का आदेश, अंग्रेजी तोप के सामने उड़ा दिए गए थे 66 नामधारी: गोहत्या विरोधी कूका आंदोलन

कूका आंदोलन को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया (फाइल फोटो)

क्या आपको ‘कूका आंदोलन’ के बारे में जानते हैं? जब अंग्रेजों ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को विफल कर के पूरे भारत को गुलाम बना लिया था और कॉन्ग्रेस पार्टी का गठन भी नहीं हुआ था, तभी सद्गुरु राम सिंह के नेतृत्व में हुए ‘कूका आंदोलन’ में 66 सिखों ने बलिदान दिया था। अंग्रेजों की शह पर मुस्लिम सरेआम गोहत्या कर रहे थे, तब इन्हीं लोगों ने इस कुकृत्य का विरोध करते हुए उन्हें सबक सिखाया था।

भारत एक ऐसा देश है, जिसकी आत्मा हजारों वर्षों से गाँवों में बसती रही है और गाँव की अर्थव्यवस्था के लिए कृषि और जानवरों का अच्छा-खासा महत्व रहा है। उसमें भी गायों का किरदार सबसे ज्यादा रहा है, क्योंकि उनसे दूध मिलता है। साथ ही तकनीक का प्रभाव बढ़ने से पहले कृषि कार्य में भी बैलों का रोल क्या था, ये किसी से छिपा नहीं है। अंग्रेजों के समय में भी गायों का ऐसा ही महत्व था और हिन्दुओं की उनमें इतनी ही श्रद्धा थी।

अंग्रेज अक्सर हिन्दुओं और मुस्लिमों को लड़ाने के लिए तरह-तरह के तिकड़म भिड़ाते रहते थे। चूँकि वो खुद बीफ खाते थे, इसीलिए उन्होंने गोहत्या को भी भारत में मंजूरी दे दी थी। न सिर्फ हिन्दुओं, बल्कि सिखों के लिए भी गाय उतनी ही पवित्र थी। गुरु नानक ने कहा था कि ब्राह्मणों और गायों की रक्षा करनी चाहिए। गुरु गोविंद सिंह ने तुर्क को ख़त्म कर के इस पृथ्वी पर गोहत्या को निषेध करने का प्रण लिया था।

सिख सम्राट रणजीत सिंह जब तक जीवित थे, तब तक उनके साम्राज्य में गोहत्या पर प्रतिबंध रहा। लेकिन, हिन्दुओं और सिखों के लिए दुर्भाग्य ये रहा कि महाराजा का 1839 में निधन हो गया। अंग्रेजों ने लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया। अप्रैल 1, 1846 को एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, जब अंग्रेजों के हथियारों के केयरटेकर ने गायों के एक झुण्ड पर हमला कर के कई गायों को घायल कर दिया। स्थानीय लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने विरोध प्रदर्शन किया।

अंग्रेज अधिकारी जॉन हेनरी लॉरेंस उन्हें मनाने के लिए आया, जिस पर ईंट-पत्थरों से हमला किया गया। उसने इस हमले का क्रूर बदला लिया और कई पंडितों को फाँसी की सज़ा दे दी। कुछ अन्य को देश निकाला दे दिया गया। अंग्रेजों ने उनके हाथ में हाथखड़ी लगा कर चेहरे पर कालिख पोत कर पूरे शहर में घुमाया। लोग इतना डर गए कि अंग्रेजों ने गोहत्या को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। हरमंदिर साहिब में एक कॉपर प्लेट पर शहर में गोहत्या पर प्रतिबंध की बात लिखी थी, लेकिन पूरे पंजाब के बारे में कुछ नहीं लिखा था।

फिर क्या था, अंग्रेजों ने इसी बात का फायदा उठाया। 1846 के बाद से ही अंग्रेजों ने ये रणनीति बना ली थी कि गोहत्या को बढ़ावा देकर हिन्दुओं और मुस्लिमों को लड़ाया जाए। पूरे पंजाब में गोहत्या को लागू कर दिया गया और साथ ही दुकानों में खुलेआम माँस की बिक्री की अनुमति भी दे दी गई। 1849 में लॉर्ड डलहौजी ने कह दिया कि किसी को भी दूसरे की आस्था को चोट पहुँचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

डिप्टी कमिश्नर एमसी सौंडर्स ने लाहौरी गेट के पास ही बूचड़खाना खोलवा दिया। अमृतसर को अंग्रेजों ने चमड़ी के व्यापार का हब बना डाला। वहाँ सिखों की जनसंख्या वैसे ही कम हो गई थी, लेकिन हिन्दू अभी भी बहुत थे। गोहत्या से दुःखी हिन्दुओं ने आपत्ति जताई, लेकिन मुस्लिमों ने कट्टरवादी रुख अपनाया और फिर दंगे हुए। मामले कोर्ट में पहुँचे। अदालत ने मुस्लिमों के हक़ में फैसला दिया। गलियों में भी माँस बिकने लगे।

नामधारी सिखों ने आंदोलन किया और इस्लामी कट्टरवादियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद मुस्लिमों की प्रतिक्रिया से दंगे भड़के। मलेरकोटा के मुस्लिम जज ने आदेश दे दिया कि प्रदर्शनकारियों के सामने ही एक बैल को काटा जाए। प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व गुरुमुख सिंह कर रहे थे। कोटला की तरफ 200 नामधारी इस कुकृत्य को रोकने के लिए निकल पड़े। मलेरकोटा के अधिकारियों के साथ संघर्ष में 7 सिख मारे गए।

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कइयों को पटियाला में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें तोप के सामने बाँध कर उड़ा देने का आदेश दिया गया। फिर क्या था। उन सभी पर ‘बंगाल रेवोल्यूशन एक्ट 1818’ लगाया गया और 66 सिख ‘सत श्री अकाल’ का नारा लगाते हुए अंग्रेजों की तोप का निशाना बन गए। अगले 50 वर्षों तक उनके बलिदान को याद करने वाले काफी कम लोग ही रहे, 1928 में भगत सिंह के एक लेख में उनके बलिदान को याद किया गया।

ये घटना जून 1871 की है, जब सिखों ने बूचड़खाने पर हमले का निर्णय लिया था। ये हमला 14 जून को किया गया रात को ही क्लॉक टॉवर के पास स्थित बूचड़खाने पर हमला किया गया। इससे पहले उनका हमला विफल हो गया था, क्योंकि कुत्ते भौंकने लगे थे। इस बार उन्होंने कुत्तों के लिए भोजन लाया था। बूचड़खाने के कसाइयों ने उन्हीं हथियारों से हमला बोला, जिनसे वो गोहत्या किया करते थे।

सिखों ने उनमें से कइयों को मौत के घाट उतार दिया। कई घायल हुए और कई अपनी जान बचाने के लिए भाग निकले। बूचड़खाने में 100 से भी अधिक गायें थीं। अगले दिन 15 जून को ये खबर आग की तरह फैली और बूचड़खानों को बंद कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार हरकत में आई और जाँच बिठाई गई। हत्याओं के बारे में सूचना देने के लिए 1000 रुपए का इनाम रखा गया। सद्गुरु राम सिंह का नाम भी इसमें सामने आया।

सद्गुरु ने सिखों से कहा कि अब बलिदान के अलावा कोई चारा नहीं है। तारा सिंह रंजन और रतन सल्दी की पुस्तक ‘SATGURU RAM SINGH AND KUKA MOVEMENT‘ के अनुसार, इनमें से संत राम सिंह को कुछ लोगों को तो छोड़ दिया गया, लेकिन उनके कई साथी फाँसी चढ़ा दिए गए। शिमला के बनगांवाला में अंग्रेजों ने गोहत्या चालू रखी थी और वहाँ इसे फन के रूप में लेते थे, इसीलिए सिखों ने वहाँ के लिए प्रस्थान किया। वहाँ भी यही घटना दोहराई गई थी।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.