रामलला के तुलसी: 92 की उम्र में लड़ा अयोध्या का धर्मयुद्ध, दलीलों से मुस्लिम पक्ष को किया चित

के पराशरण को भारतीय बार का भीष्म पितामह कहा जाता है

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में वकालत की दुनिया के पितामह कहे जाने वाले के पराशरण की अंतिम इच्छा पूरी हो गई। वे अपनी मृत्यु से पहले यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि रामलला अपनी जमीन पर​ कानूनी तौर से विराजमान हो जाएँ। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनकी यह मुराद पूरी हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट में रामलला विराजमान की तरफ से उन्होंने ही दलीलें पेश की थी। सुनवाई के दौरान ऐसी-ऐसी दलीलें रखी कि मुस्लिम पक्ष उसकी काट नहीं तलाश पाए। शीर्ष अदालत पूरी सुनवाई उनकी दलीलों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही। उन्होंने पूरे राम जन्मभूमि को न्यायिक व्यक्ति अथवा ज्यूरिस्टिक पर्सन साबित करने की कोशिश की। हालाँकि, अंत में उनकी यह दलील कोर्ट ने स्वीकार नहीं की, लेकिन पूरी सुनवाई इसी के आसपास घूमती रही।

जब सुनवाई चालू होनी थी, उससे पहले सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा था कि के. पराशरण के लिए ये प्रक्रिया काफ़ी थकाऊ होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पराशरण ने घंटों खड़े होकर बहस की। अदालत में जजों ने उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें बैठ कर बहस करने की सहूलियत दी, लेकिन पराशरण ने कहा कि इंडियन बार की जो परंपरा है, वह उसी हिसाब से चलेंगे। उनका जन्म अक्टूबर 9, 1927 को हुआ था। वह 1983 से 1989 तक भारत के अटॉर्नी जनरल रह चुके हैं।

के पराशरण तमिलनाडु से लेकर केंद्र तक, प्रत्येक सरकारों के फेवरिट रहे हैं। उनके पिता केशव अय्यंगर भी एक वकील थे। उनके दोनों बेटे मोहन पराशरण और सतीश पराशरण भी वकील हैं। भारत के अटॉर्नी जनरल रहने से पहले वह 1976-77 में तमिलनाडु के सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं। इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के शासनकाल में भी वह इस पद पर रहे। कॉन्ग्रेस सरकारों के दौरान वो महत्वपूर्ण पदों पर रहे, लेकिन उनकी विद्वता का लोहा भी राजनीतिक दलों, नेताओं और सरकारों ने माना। तभी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब संविधान की वर्किंग के लिए ड्राफ्टिंग एंड एडिटोरियल कमिटी बनाई तो पराशरण को भी उसमें शामिल किया गया।

पराशरण छात्र जीवन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं। उन्हें बीए के कोर्स के दौरान सीवी कुमारस्वामी शास्त्री संस्कृत मेडल और हिन्दू लॉ में जस्टिस वी भाष्यम अयंगर गोल्ड मेडल मिला। तब वो बीएल कर रहे थे, जिसे अब बीए एलएलबी के नाम से जाना जाता है। फिर बार कॉउन्सिल की परीक्षा में उन्हें जस्टिस श्री केएएस कृष्णास्वामी अयंगर गोल्ड मेडल मिला। आप इसी से समझ सकते हैं कि उन्होंने छात्र जीवन के दौरान ही क़दम-क़दम पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। भगवान राम के लिए, रामकाज के लिए- भला उनसे बेहतर वकील कहाँ मिलता?

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राम मंदिर का मामला उन्होंने यूँ ही नहीं लड़ा। उन्हें भारतीय इतिहास, वेद-पुराण और धर्म का वृहद ज्ञान है। यही कारण है कि सुनवाई के दौरान भी वह अदालत में स्कन्द पुराण के श्लोकों का जिक्र कर राम मंदिर का अस्तित्व साबित करते रहे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जिरह की शुरुआत ही ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ श्लोक के साथ की थी। वाल्मीकि रामायण में ये बात श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण से कही थी। जहाँ भी आस्था का मामला हो, जहाँ भी धार्मिक विश्वास का मामला हो, वहाँ धर्म की ओर से, श्रद्धा की ओर से, पराशरण ही वकील होते हैं। उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ जाकर रामसेतु बचाने के लिए केस लड़ा।

सबरीमाला मामले में भी श्रद्धालुओं की तरफ़ से पराशरण ही वकील थे। पराशरण मजाक-मजाक में वकालत को अपनी दूसरी पत्नी बताते हैं। 24 घंटे में 18 घंटे वकालत सम्बन्धी कामकाज और अध्ययन में बिताने वाले पराशरण ने बताया था कि वो अपनी पत्नी से भी ज्यादा समय वकालत को देते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कॉल ने अपनी पुस्तक में उनके लिए ‘पितामह ऑफ इंडियन बार’ शब्द प्रयोग किया। वकालत के कुछ छात्रों ने मिल कर के पराशरण पर ‘Law and Dharma: A tribute to the Pitamaha of the Indian Bar’ नामक पुस्तक भी लिखी है, जिसमें उनके बारे में लिखा गया है

इस मौके पर जस्टिस संजय किशन कौल कहा कि पराशरण न सिर्फ़ बार बल्कि बेंच के युवा सदस्यों का मार्गदर्शन करने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। ‘सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ छत्तीसगढ़’ के कुलपति एनआर माधव मेनन ने पराशरण को तीन गुणों का मिश्रण बताया। उनका मानना है कि पराशरण अध्यात्म के साथ-साथ मानवता और सादगी के प्रोफेशनल प्रतीक हैं। पराशरण कहते हैं कि जीवन में कोई भी फ़ैसला लेने से पहले धर्म के प्रति हमें सचेत रहना चाहिए।

बहुत कम लोगों को पता है कि पराशरण को 2012 में राज्यसभा के लिए नामित किया गया था। वह राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। उन्हें 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें 2011 में पद्म विभूषण मिला। शनिवार (नवंबर 9, 2019) को जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में फ़ैसला सुना कर वहाँ मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया, पराशरण को ख़ुशी तो हुई लेकिन उन्हें बोरियत भी महसूस हुई। वह पिछले 8 महीनों से इस काम में इतने लीन हो गए थे कि अब उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि उनका समय कैसे व्यतीत होगा? पराशरण की टीम में जितने भी वकील थे, उनकी ऊर्जा देख कर वो सभी अचम्भे में थे और पिछले कुछ महीने उनके लिए यादगार बन गए। उन्हें काफ़ी कुछ सीखने को मिला।

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आपको 16 अक्टूबर की एक बात याद दिलानी ज़रूरी है। जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ख़त्म हुई, तब पराशरण कोर्ट के बाहर 15 मिनट तक किसी का इन्तजार करते रहे। वो राजीव धवन का इन्तजार कर रहे थे। वही धवन, जिन्होंने 40 दिन की सुनवाई के दौरान कई बार आपा खोया जबकि पराशरण एकदम शांत और गंभीर बने रहे। पराशरण ने धवन के साथ फोटो खिंचवा कर देश-दुनिया को यह सन्देश दिया कि प्रोफेशनल रूप से भले ही आप एक-दूसरे से लड़ें, लेकिन अंत में शांति और समरसता की ही जीत होनी चाहिए।

इतिहास में जब भी ऐतिहासिक राम मंदिर फ़ैसले की बात होगी, पराशरण के जिक्र ज़रूर आएगा क्योंकि पूरा मामले उनके इर्द-गिर्द घूमा और हिन्दुओं की इस विजय में श्रीराम के इस सेनानी का महान योगदान रहा। हिन्दुओं की भी यही इच्छा है कि पराशरण अपने जीवनकाल में भव्य राम मंदिर निर्माण का गवाह बनें। हम भी उनकी लम्बी उम्र और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.