पिछले साढ़े छ: सालों में यानी भाजपा के सत्ता संभालने के बाद से ही मुख्यधारा मीडिया में ‘धर्म और जाति’ की खबरें प्रमुखता से दिखाई जाने लगी। केवल हमारे देश में ही नहीं, विदेशों तक में सबको ऐसे केसों के बारे में पता चलने लगा, जहाँ अल्पसंख्यकों पर हमला हुआ।
अब चाहे बुद्धिजीवियों के कारण कहें या राजनेताओं की वजह से, दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों तक को मुस्लिमों के ख़िलाफ साजिश बता दिया गया। इसके अलावा जब-जब कोई अल्पसंख्यक या कोई दलित समुदाय के लोगों पर हमला हुआ, तो उसे फौरन आग की तरह फैलाया गया। वहीं किसी सवर्ण पर हमले की घटना पर हर जगह बस मौन पसरा दिखा। नतीजतन सवर्णों पर हुए हमलों की घटनाओं के बारे में विदेशों में तो छोड़िए, भारत तक में भी अधिकांश लोगों ने आवाज नहीं उठाई।
पुराने मामले छोड़ कर यदि सिर्फ़ साल 2020 की बात करें तो इस वर्ष कई साधुओं व संतों पर हमला हुआ। मगर, केवल पालघर जैसे मामलों को ही मीडिया ने प्रमुखता से दिखाया, वो भी बड़े सामंजस्य के साथ। कई हमलों को तो मीडिया ने हजारों अनरगल खबरों के बीच में ही दबा दिया या यदि उन्हें कवर भी किया तो किसी छोटे से कॉलम के लिए, वो भी बिना किसी फॉलो अप आदि के। आज हम आपको ऐसे ही कुछ हमलों की जानकारी देने जा रहे हैं जो केवल साल 2020 में ही घटे हैं।
16 जनवरी 2020 को चित्रकूट के बालाजी मंदिर के महंथ अर्जुन दास को कुछ उपद्रवियों ने मार डाला। पुलिस ने इस केस में अलोक पांडे, मंगलदास, राजू मिश्रा व दो अन्य लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया। रिपोर्ट्स में इस घटना को जमीनी विवाद का अंजाम बताया गया और साथ ही कहा गया कि आरोपितों ने हमले के तीन दिन पहले घटनास्थल की रेकी की थी। इसके बाद आकर महंथ को गोली मारी। गोली लगने से जहाँ महंथ की मृत्यु हो गई वहीं उनके साथी घायल हो गए।
16 अप्रैल 2020, जूना अखाड़ा के दो संतों को हिंसक भीड़ ने अपना निशाना बनाया और पालघर में उनकी लिंचिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मृतकों की पहचान 70 साल के कल्पवृक्ष गिरि महाराज और 35 साल के सुशील गिरी महाराज के रूप में हुई। उनके साथ हिंसक भीड़ ने उनके ड्राइवर को भी मौत के घाट उतारा।
मामले के तूल पकड़ने पर उनके ऊपर तरह तरह के इल्जाम लगाए गए। हालाँकि बाद में जब वीडियो आई तब इस हकीकत का खुलासा कि आखिर कैसे पुलिस की मौजूदगी में हिंसक भीड़ ने बेरहमी ने संतों को मारा। इस पूरे मामले की जाँच में यह भी खुलासा हुआ था कि यह हत्या जानबूझकर की गई और इससे कई राजनैतिक कोण भी जुड़े हुए थे। यह भी अंदाजा लगाया गया कि एनसीपी की शह पर ईसाई मिशनरियों ने इस घटना को अंजाम दिलवाया।
28 अप्रैल को बुलंदशहर में दो पुजारियों पर हमला हुआ। उनका शव मंदिर के परिसर में क्षत-विक्षत मिला। पुजारियों की पहचान जगदीश उर्फ रंगी दास और शेर सिंह उर्फ सेवा दास के रूप में हुई। रिपोर्ट्स में बताया गया कि उन्होंने मुरारी नाम के व्यक्ति को चोरी करते पकड़ा था। इसी बाद मुरारी ने गुस्से में उन दोनों को धारधार हथियार से मारा और बाद में कई ग्रामीणों ने उसे तलवार के साथ गाँव के बाहर जाते देखा। पुलिस की छानबीन में आरोपित को गाँव से दो किलोमीटर दूर से पकड़ा गया था।
23 मई को महाराष्ट्र के नांदेड़ में दो साधुओं की हत्या हुई। पीड़ितों की पहचान बाल ब्रह्मचारी शिवाचार्य महाराज गुरु और भगवान शिंदे के रूप में हुई। साधुओं को शव घर के बाथरूम से बरामद हुआ। पुलिस रिपोर्ट ने बताया कि कम से कम दो आरोपित चोरी करने के लिए घर में घुसे और जब साधुओं से उनका आमना-सामना हुआ तो चार्जिंग केबल से उनका गला घोंट दिया। इसके बाद आरोपितों ने 69,000 रुपए लूटे, लैपटॉप चोरी किया और बाकी वस्तुएँ भी नहीं छोड़ीं। कुल मिलाकर साधु के कमरे से 1,50,000 रुपए गायब थे। पुलिस ने इस संबंध में साईनाथ सिंघाड़े को गिरफ्तार किया था।
13 जुलाई को मेरठ के अब्दुल्लापुर में एक शिव मंदिर के केयरटेकर कांति प्रसाद से मारपीट का मामला सामने आया। कांति प्रसाद की गलती बस यह थी कि वह भगवा धारण करते थे और इसी को देखकर एक ग्रामीण अनस कुरैशी उन पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करता था। 13 जुलाई को जब कांति प्रसाद बिजली का बिल जमा कराकर लौट रहे थे, तब भी अनस ने यही किया और उन्हें बीच सड़क पर मारना शुरू कर दिया।
इस बीच किसी तरह कांति प्रसाद उससे बच कर अनस के घर पहुँचे, लेकिन वहाँ भी अनस ने पीछे से आकर उन पर हमला कर दिया। जब कांति प्रसाद के घरवालों को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई और पिता को अस्पताल में भर्ती करवाया। हालाँकि हालत गंभीर होने के कारण कांति प्रसाद बच न सके और अगले दिन उन्होंने दम तोड़ दिया।
23 जुलाई को यूपी के एक मंदिर में 22 वर्षीय साधु का शव पेड़ से लटका पाया। रिपोर्ट्स में उनकी पहचान बालयोगी सत्येंद्र आनंद सरस्वती बताई गई, जो हिमाचल प्रदेश से सुल्तानुपर आए थे। वह छतौना गाँव के वीर बाबा मंदिर में लंबे समय से रह रहे थे। जब पुलिस को उनकी अप्राकृतिक मृत्यु का मालूम चला तो शव को हिरासत में ले लिया गया। हालाँकि कुछ ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि यह आत्महत्या नहीं, हत्या है।
23 अगस्त को बिहार के लखीसराय में नक्सलियों ने नीरज झा को किडनैप किया और 1 करोड़ की फिरौती माँगी। जब परिवार वालों को पुजारी का शव मिला तो वो इतनी बुरी तरह से क्षत विक्षत था कि परिवार वाले उन्हें पहचान ही नहीं पाए। बाद में उनके भाई पंकज झा ने जनेऊ के कारण उन्हें पहचाना।
11 सिंतबर को मंड्या शहर के बाहरी इलाके में आरकेश्वर मंदिर में 3 पुजारियों की हत्या की गई। पुलिस ने इनकी पहचान गणेश, प्रकाश, आनंद के रूप में की। तीनों का शव पुलिस को खून से लथपथ बरामद हुआ। रिपोर्ट्स से पता चला कि पुजारियों का सिर पत्थर से कुचला गया था। हमलावरों ने वारदात को अंजाम देने के बाद मंदिर में लूटपाट भी की और दानपेटी में बस कुछ सिक्के छोड़े। 15 सितंबर को पाँचों हमलावरों को पकड़ा गया। इनकी पहचान अभिजीत, रघु, विजि, मंजा और गाँधी के रूप में हुई।
8 अक्टूबर को राजस्थान के करौली जिले के बोकना गाँव में 6 लोगों ने एक मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण की कोशिश करते हुए 50 वर्षीय पुजारी बाबूलाल वैष्णव को पेट्रोल डालकर जलाके मार डाला । उन्हें जयपुर के एसएमएस अस्पताल में गंभीर हालात में भर्ती करवाया गया और 9 अक्टूबर को उनकी मौत हो गई।
10 अक्टूबर को राम जानकी मंदिर के तिर्रे मनोरमा गाँव में इटियाथोक थाने में पुजारी को गोली मारी गई। यह वारदात भी जमीन विवाद पर हुई। अभी उनका इलाज लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में चल रहा है। रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि पुजारी सम्राट दास जिस राम जानकी मंदिर के पुजारी थे, उसकी जमीन पर भू माफियों की नजर थी। उन पर इस बाबत पिछले साल भी हमला हुआ ता। पुलिस ने अब इस संबंध में एफआईआर रजिस्टर कर ली है और अपनी पड़ताल भी शुरू कर दी है।