बरसाने में राधा रानी के मंदिर में पूजा को लेकर उठे विवाद ने सोशल मीडिया पर तमाम सवालों को पैदा कर दिया था। कहीं कहा जा रहा था कि राधाष्टमी के मौके पर महिला पुजारी के पूजा करने से मंदिर की 5000 साल पुरानी परंपरा टूट जाएगी, तो कहीं पूछा जा रहा था कि क्या ये सब मोदी सरकार का किया धरा है?
इन सब सवालों के जवाब आइए सरल भाषा में आपको देते हैं और जानते हैं कि क्या सच में इस विवाद में सरकार से जुड़ा कोई एंगल है और क्या सच में हजारों वर्ष पुरानी परंपर टूट गई?
कैसे शुरू हुआ राधा रानी मंदिर में सेवादार बनने का विवाद
बरसाने में स्थित राधा-रानी मंदिर में पूजा-अर्चना का काम गोस्वामी समुदाय के तीन ब्राह्मण परिवारों के पास है। हर साल इन्हें बारी-बारी से सेवादार बनने का मौका मिलता है। लेकिन इस बार परेशानी तब शुरू हुई जब नियम के मुताबिक हरबंस लाल गोस्वामी का नाम सेवादार बनने के लिए आया।
हरबंस लाल गोस्वामी का निधन 1999 में हो गया था। ऐसे में उनके भाई के पौत्र रास बिहारी गोस्वामी ने इस पद को संभाला और 20 अप्रैल से 20 अक्टूबर के लिए सेवादार नियुक्त हुए। लेकिन इसी बीच एक मायादेवी नाम की एक महिला ने खुद को दिवंगत हरबंस लाल गोस्वामी की विधवा बताकर दावा कर दिया कि सेवादार बनने का अधिकार उनका है।
कोर्ट में पहुँचा राधा रानी मंदिर का ‘सेवादार’ विवाद
केस पहले निचली कोर्ट में गया जहाँ अदालत ने पक्ष सुने और मायादेवी को हरबंस लाल की विधवा मानते हुए उन्हें तय अवधि के लिए सेवादार बनाने का आदेश दे दिया। लेकिन, बाद में अन्य पहलुओं को देखते हुए जिला अदालत ने इस आदेश को रद्द किया और आगे मंदिर प्रशासन का नियंत्रण लेने के लिए याचिकाएँ हाईकोर्ट में डाली गईं।
कायदे से ये सब कार्य राधाष्टमी से पहले पूर्ण होने थे लेकिन देरी के कारण ऐसा नहीं हुआ। 2 सितंबर को आदेश पारित होने की बजाय कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 8 सितंबर दे दी।
अब समस्या ये आई कि इसी बीच 4 अप्रैल को राधाष्टमी पड़ गई जिसे हर साल बरसाने में धूम-धाम से मनाया जाता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। ऐसे में रास बिहारी दोबारा कोर्ट गए और तत्काल सुनवाई की माँग की। कोर्ट ने इस बार मायादेवी को नोटिस भेज मामले को 12 सितंबर तक टाल दिया।
5000 साल पुरानी परंपरा टूटने की खबरें मीडिया में
अब राधाष्टमी और कोर्ट की सुनवाई में देरी के चलते जगह-जगह ये बातें फैल गईं कि अब राधा-रानी मंदिर में 5000 साल पुरानी परंपरा टूट जाएगी और ऐसा पहली बार होगा कि कोई महिला पूजा करेगी। देख सकते हैं कि न्यूज 18 जैसे संस्थानों ने इस खबर को खूब विस्तार से लिखकर चलाया।
यही सब देख सामान्य जन ने इस मुद्दे पर बोला शुरू कर दिया। धीरे-धीरे देखा गया कि लोग इस विवाद में राजनीति का एंगल घुसाकर सरकार की आलोचना करने लगे। पूरे मामले में मोदी सरकार, योगी सरकार, बीजेपी को दोषी बताया जाने लगा। हालाँकि, समझें तो पता चलेगा कि वास्तविकता में यह पूरा विवाद पारिवारिक है।
रास बिहारी गोस्वामी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने अधिकार के लिए दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने सुनवाई की और मायादेवी को नोटिस भेज दिया। इस बीच राधाष्टमी भी आई लेकिन 5000 साल पुरानी परंपरा नहीं टूटी। मंदिर में मौजूद गोस्वामी समाज के पुजारियों ने ही राधा अष्टमी के मौके पर मंदिर में पूजा संपन्न करवाई है।
फर्जी दस्तावेजों पर मायादेवी बनीं सेवादार: वकील आशुतोष शर्मा
मामले के वकील आशुतोष शर्मा ने बताया कि मायादेवी गोस्वामी समुदाय की नहीं हैं। उनका सेवादार बनना गलत था। ये बात कोर्ट ने मानी और निचली अदालत का फैसला खारिज हुआ। हालाँकि कानून प्रक्रिया के चलते रास बिहारी अपनी जगह नहीं ले पाए। आशुतोष ने दावा किया कि मायादेवी हरबंस लाल की पत्नी भी नहीं है। पूरा मामला फर्जी दस्तावेजों का है। उन्होंने जानकारी दी कि मीडिया में चलाई जा रही खबरें पूरी तरह झूठी हैं। मायादेवी को पूजा-अर्चना का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने माना है कि रास बिहारी की याचिका सही है।
साधु-संतों के बीच बैठकर लिया जाए फैसला: पाताल पुरी मठ के महंत
पाताल पुरी मठ के महंत बालक दास जी ने इस मुद्दे पर बात करते हुए ऑपइंडिया से कहा कि महिलाओं के पूजा करने से कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन परंपरा को नहीं बदला जाना चाहिए। ऐसे मामले कोर्ट में न जाकर साधु-संतों के बीच ही सुलझ जाने चाहिए। जब आप कोर्ट जाएँगे तो फिर तो अदालत अपने हिसाब से फैसला देगी और उसके बाद आपको वो फैसला मानना ही होगा।