Friday, November 29, 2024
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मस्जिद पर निचली अदालतें चुप रहे, कुरान पर हाई कोर्ट… वरना दंगे होंगे, गिरेंगी लाशें: ‘कलकत्ता कुरान’ मामले में एक CM ने हजारों की मुस्लिम भीड़ से कहा था – जज पर लो एक्शन

इतिहासकार सीताराम गोयल ने अपनी किताब 'कलकत्ता कुरान पिटीशन' की पृष्ठ संख्या 26 और 27 में लिखा है कि याचिका के बारे में जानने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से लेकर बांग्लादेश तक के मुस्लिमों दंगे किए। बांग्लादेश में दंगों में कई लोग कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी से जुड़े थे। इन चरमपंथियों ने सरकारी संपत्ति को आग लगा दी और मिसाइलें भी फेंकी।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने गुरुवार (28 नवंबर) को सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भेजा। इसमें मुस्लिम बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि देश की निचली अदालतों को मस्जिदों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करने का निर्देश दे। पत्र ऐसे समय लिखा गया है, जब ट्रायल कोर्ट के आदेश पर संभल के जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान इस्लामी भीड़ द्वारा हिंसा की गई।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने पत्र में साल 1991 के उपासना स्थल अधिनियम (प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991) का हवाला दिया है। इसमें वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा का शाही ईदगाह, धार के भोजशाला मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, संभल की शाही जामा मस्जिद और अजमेर के मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह जैसी याचिकाओं पर विचार नहीं करने का अनुरोध किया गया है।

इस इस्लामी संस्था ने अपने पत्र में आगे लिखा है, “डॉक्टर SQR इलियास (AIMPLB के राष्ट्रीय प्रवक्ता) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में तत्काल स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने और निचली अदालतों को किसी भी अन्य विवाद के लिए दरवाजे खोलने से परहेज करने का निर्देश देने की अपील की है।”

पत्र में चेतावनी देते हुए कहा गया है, “संसद द्वारा पारित इस कानून (उपासना स्थल या धार्मिक स्थल अधिनियम 1991) को सख्ती से लागू करना केंद्र और राज्य सरकारों, दोनों की जिम्मेदारी है। ऐसा न करने पर पूरे देश में विस्फोटक स्थिति पैदा हो सकती है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार जिम्मेदार होंगे।”

एक तरह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि अगर निचली अदालतों द्वारा मस्जिदों के सर्वे को मंजूरी दी जाती है तो संभल में हुई हिंसा की तरह दूसरी जगह भी हिंसा भड़क सकती है। हालाँकि, मुस्लिम भीड़ ने तब भी दंगे किए हैं, जब हाई कोर्ट ने इस्लामी मजहबी किताबों से संबंधित याचिकाओं पर विचार किया। साल 1985 का कलकत्ता कुरान याचिका इसका ज्वलंत उदाहरण है।

साल 1985 की कलकत्ता कुरान याचिका

अधिवक्ता चांदमल चोपड़ा और सीतल सिंह ने 29 मार्च 1985 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक आवेदन दायर किया था। इसमें कलकत्ता हाई कोर्ट से सरकार को इस्लाम की मजहबी किताब ‘कुरान’ की हर प्रति को ‘जब्त’ करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि कुरान की आयतों में काफिर (गैर-मुस्लिमों) के खिलाफ हिंसा का आह्वान किया गया है।

याचिका में तर्क दिया गया था कि कुरान की प्रत्येक प्रति दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 95 (कुछ प्रकाशनों को जब्त घोषित करने की शक्ति) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A (धार्मिक आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) के तहत ‘जब्त करने योग्य’ है।

याचिका में तर्क दिया गया कि मुस्लिम अब तक कानून का दुरुपयोग करके इस्लाम की आलोचना करने वाली किताबों पर प्रतिबंध लगाते रहे हैं। बता दें कि यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी ने भी कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए रिजवी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया था।

खैर, चाँदमल चोपड़ा और सीतल सिंह द्वारा दायर याचिका सुनवाई के लिए शुरू में कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति खस्तगीर जे के समक्ष आया था। हालाँकि, आज की तरह उम्मीद से उलट उस विद्वान न्यायाधीश ने आवेदन को खारिज करने के बजाय उस पर विचार किया। उन्होंने प्रतिवादी पक्षों को नोटिस भी जारी किया। इसके बाद जो हुआ, वह बेहद भयानक है।

इस याचिका के विरोध में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), जमात-ए-इस्लामी और कलकत्ता के केरल मुस्लिम एसोसिएशन ने हथियार उठा लिए। आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक ‘कुरान रक्षा समिति’ की स्थापना की गई। CPIM के नेतृत्व वाली बंगाल सरकार ने दावा किया कि यह याचिका दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर की गई है।

कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भी वामपंथियों का साथ दिया और याचिका का विरोध किया। बढ़ते राजनीतिक दबाव के चलते जस्टिस खस्तगीर ने इसे अपनी सूची से हटाकर जस्टिस सतीश चंद्रा की अदालत में भेज दिया। राज्य के महाधिवक्ता एसके आचार्य की सलाह पर मामला जस्टिस बिमल चंद्र बसाक की पीठ को सौंप दिया गया और उन्होंने 17 मई 1985 को इसे याचिका खारिज कर दी।

कलकत्ता (अब कोलकाता) में कुरान याचिका को लेकर दंगे

इतिहासकार सीताराम गोयल ने अपनी किताब ‘द कलकत्ता कुरान पिटीशन‘ की पृष्ठ संख्या 26 और 27 में लिखा है कि याचिका के बारे में जानने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से लेकर बांग्लादेश तक के मुस्लिमों दंगे किए। बांग्लादेश में दंगों में कई लोग कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी से जुड़े थे। इन चरमपंथियों ने सरकारी संपत्ति को आग लगा दी और मिसाइलें भी फेंकी।

चेपल नवाबगंज शहर में झड़प के दौरान पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। इस गोली-बारी में 12 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए। इसके एक दिन बाद जमात-ए-इस्लामी की 20,000 की भीड़ ने राजधानी ढाका में हिंसक विरोध प्रदर्शन किया। यहाँ तक ​​कि भारतीय उच्चायोग के कार्यालय पर घात लगाकर हमला करने की भी कोशिश की गई।

The Calcutta Quran Petition
कोर्ट केस हुआ कोलकाता में, मुस्लिमों ने दंगा-फसाद किया बांग्लादेश से लेकर राँची-श्रीनगर में (साभार: सीता राम गोयल की किताब, The Calcutta Quran Petition, page 26-27)

भारत के राज्य झारखंड की राजधानी राँची (उस समय बिहार का एक बड़ा शहर था) में मुस्लिमों ने काले झंडे और बैनर लेकर ‘विरोध मार्च’ निकाला। इस दौरान दंगाई भीड़ ने सरकार विरोधी नारे लगाए और दुकानों पर पत्थर फेंके और छोटे व्यापारियों के कारोबार को जबरन बंद करवाया। डरे हुए कारोबारियों ने विरोध प्रदर्शन के अगले दिन भी अपना कारोबार बंद रखा।

जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में भी मुस्लिमों की भीड़ ने CPI मुख्यालय में तोड़फोड़ की। एक पुल को आग लगाने का प्रयास किया गया। स्कूल-कॉलेजों, सिनेमाघरों और दुकानों को जबरन बंद करवा दिया गया। आखिरकार, पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और इसमें एक शख्स की मौत हो गई थी। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीएम शाह ने तो याचिका पर सुनवाई करने वाले जज के खिलाफ ऐक्शन लेने की माँग कर डाली थी।

The Calcutta Quran Petition
कुरान पर कोर्ट में केस कैसे? जम्मू-कश्मीर के CM जज पर ही एक्शन लेने की माँग कर बैठे (साभार: सीता राम गोयल की किताब, The Calcutta Quran Petition, page 29)

सीताराम गोयल ने अपनी किताब में लिखा है, “इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), जो इस्लामी मुद्दों की हिमायती रही है, को मुस्लिम भीड़ ने ‘हिंदू सांप्रदायिकों’ के साथ जोड़ दिया है। भीड़ तो भीड़ ही होती है और जो कुछ भी वह करती है, उसकी जिम्मेदारी उन लोगों पर होती है जो उन्हें अक्सर संगठित करते हैं।”

अब, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) भी अपनी चिट्ठी में इसी तरह का संकेत देने की कोशिश की है कि यदि अदालतें हिंदू मंदिरों के ऊपर बनी मस्जिदों के वास्तविक चरित्र के बारे में सर्वे से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखती हैं तो मुस्लिम भीड़ फिर से दंगे कर सकती है। संभल में इसकी बानगी पूरा देश ही नहीं, दुनिया भी देख चुकी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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