फ़िल्म सिटी ने हड़प रखी है नेशनल पार्क की 51 एकड़ ज़मीन, Aarey पर विरोध करने वाला बॉलिवुड भी चुप

1969 में ज़मीन का ट्रांसफर हुआ और 1984 में भूल-सुधार का नोटिफिकेशन आया

आरे को हाईकोर्ट ने आधिकारिक रूप से जंगल मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद इसे लेकर महाराष्ट्र सरकार का विरोध कर रहे लोगों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस विरोध प्रदर्शन में बॉलीवुड बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा है। मनोज वाजपेयी और वरुण धवन जैसे अभिनेताओं से लेकर दिया मिर्जा और ऋचा चड्ढा जैसी अभिनेत्रियों तक ने आरे क्षेत्र में मेट्रो के लिए पेड़ों को काटे जाने का विरोध किया। एकाध कथित पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने तो उस पेड़ को गले लगाया, जिन्हें काटा ही नहीं जाना है। हालाँकि, अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े अभिनेताओं ने मेट्रो की महत्ता बताते हुए सरकार का समर्थन भी किया है।

इसी क्रम में एक दो वर्ष पुरानी ख़बर है, जो बॉलीवुड को अपने भीतर झाँकने पर मजबूर कर देगी। लक्ज़री गाड़ियों से घूमने वाले जिस बॉलीवुड के लोग मेट्रो प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं, उसी बॉलीवुड के गढ़ को लेकर ऐसी सूचना आई थी, जिसे लेकर आज तक एक भी सेलेब्रिटी ने आवाज़ नहीं उठाई। मुंबई के गोरेगाँव में फिल्म सिटी और संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान स्थित हैं। जहाँ फ़िल्म सिटी के नाम से जाना जाने वाला ‘दादासाहब फाल्के नगर’ 1977 में बनाया गया था। यहीं ‘बोरीवली नेशनल पार्क’ भी है, जिसका नाम 1996 में ‘संजय गाँधी नेशनल पार्क’ कर दिया गया था।

संजय गाँधी नेशनल पार्क (जो तब बोरीवली नेशनल पार्क हुआ करता था) की अथॉरिटी का कहना है कि 1966 में ग़लती से उसके हिस्से की 51 एकड़ ज़मीन फिल्म सिटी को ट्रांसफर हो गई थी, जिसे अब तक नहीं लौटाया गया है। ‘वनशक्ति’ एनजीओ ने सूचना के अधिकार के तहत कुछ डॉक्युमेंट्स हासिल किए थे, जिससे पता चला कि 51 एकड़ की यह ज़मीन विवादित है क्योंकि फिल्म सिटी और नेशनल पार्क के बीच कोई बाउंड्री नहीं है। नेशनल पार्क के अधिकारियों का कहना है कि वे 1970 से लगातार फ़िल्म सिटी से मिन्नतें कर रहे हैं कि नेशनल पार्क की ज़मीन लौटा दी जाए।

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अगस्त 2017 में भी इस सम्बन्ध में फिल्म सिटी से निवेदन करते हुए एक पत्र लिखा गया था। पार्क के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि फिल्म सिटी के लोगों की सुरक्षा के लिए भी यह ज़रूरी है क्योंकि जंगली जानवर उस क्षेत्र में स्वच्छंद घुमते हैं। बता दें कि फ़िल्म सिटी में आर्टिफिसियल झरने और जेल से लेकर वो सभी चीजें हैं, जिनकी बॉलीवुड फ़िल्मों की शूटिंग में आवश्यकता होती है। लगभग सभी बॉलीवुड फ़िल्मों का अधिकतर हिस्सा यहीं शूट किया जाता है। तब फ़िल्म सिटी ने ये ज़मीन लौटाने से मना कर दिया था और उन्होंने कहा था कि वे अपने निर्णय पर अडिग रहेंगे।

अगस्त 2017 में फ़िल्म सिटी में शूटिंग के दौरान कई लोगों पर जंगली जानवरों ने हमले किए थे। उसके बाद एक सप्ताह से भी अधिक समय तक इसे बंद रखा गया था। बावजूद इसके फ़िल्म सिटी ने नेशनल पार्क को ज़मीन लौटाने से इनकार कर दिया। ‘वनशक्ति’ के डायरेक्टर स्टालिन का कहना है कि संजय गाँधी नेशनल पार्क की ज़मीन के बड़े हिस्से को धोखाधड़ी के माध्यम से फ़िल्म सिटी को बेच डाला गया था। उन्होंने बताया कि इससे वन्य जनजीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। स्टालिन ने इसे लैंड स्कैम करार दिया।

पार्क के अधिकारी मानते हैं कि सर्वे नंबर में गड़बड़ी होने के कारण फ़िल्म सिटी को अतिरिक्त ज़मीन मिल गई। महाराष्ट्र सरकार ने 1969 में मुंबई इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MIDC) को 215 एकड़ ज़मीन दी थी। 1970 में आए एक सरकारी नोटिफिकेशन ने इसकी पुष्टि की। इसके बाद 1977 में MIDC ने 245 एकड़ ज़मीन फ़िल्म सिटी को ट्रांसफर किया। बाद में फ़ैसला लिया गया कि फ़िल्म सिटी को 245 एकड़ की जगह 194 एकड़ ही ट्रांसफर किया जाएगा। इस तरह से बाकी के बचे 51 एकड़ ज़मीन को वन विभाग को वापस लौटाया जाना था।

अब आपको बताते हैं कि ग़लती कहाँ हुई थी। 1970 के सरकारी नोटिफिकेशन में ग़लत सूचना दी गई थी। 1984 में एक दूसरा नोटिफिकेशन आया, जिसमें भूल-सुधार किया गया। दरअसल, 1970 के नोटिफिकेशन में ग़लती यह हुई थी कि 194 एकड़ को 215 एकड़ माप लिया गया था। एक गाँव का क्षेत्रफल ग़लत आँके जाने के कारण ऐसा हुआ। इस तरह से 245 एकड़ में से 194 एकड़ फ़िल्म सिटी को दिया जाना था और बाकी का 51 एकड़ वापस फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को लौटाया जाना था। फ़िल्म सिटी ने ये ज़मीन लौटाने से इनकार कर दिया और इसी कारण पिछले कई दशकों से नेशनल पार्क के साथ उसकी बाउंड्री अंतिम रूप नहीं ले सकी।

अगस्त 2017 में बाढ़ आने के कारण संजय गाँधी नेशनल पार्क के कई अहम दस्तावेज नष्ट हो गए। इस कारण इस मुद्दे को सुलझाने में और देरी हुई। दूसरी ओर, फ़िल्म सिटी के डिप्टी इंजीनियर चंद्रकांत ने कहा कि नेशनल पार्क की किसी भी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा नहीं किया गया है और कोई भी ज़मीन वापस नहीं लौटाई जाएगी। बॉलीवुड के लोगों ने भी पिछले 35 सालों से (जब नोटिफिकेशन में भूल-सुधार हुआ) इसे लेकर कोई आवाज़ नहीं उठाई। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्यों न आरे जंगल बचाने के लिए पर्यावरण की चिंता करने वाले बॉलीवुड सेलेब्स अपने घर से ही शुरुआत करें?

(नोट- फ़िल्म सिटी का निर्माण भले ही 1977 में हुआ लेकिन यहाँ दादासाहब फाल्के द्वारा निर्मित स्टूडियो पहले से ही था। यह 1911 से ही वहाँ स्थापित है। इसे 1977 में एक नया रूप-रंग दिया गया था।)

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.