Saturday, November 23, 2024
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चर्च जाने या क्रॉस लटकाने से अनुसूचित जाति वाला प्रमाण पत्र खत्म नहीं हो सकता: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति एम दुरईस्वामी की प्रथम पीठ के अनुसार ईसाई युवक से विवाह करने और अपने बच्चों को अपने पति के धर्म में मान्यता देने वाली महिला का अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्रशासनिक अधिकारियों के दिए कमजोर तथ्य और तर्क के आधार पर निरस्त नहीं हो सकता।

मद्रास उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि किसी दलित का अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र चर्च जाने और ईसाई मत प्रतीक चिन्ह क्रॉस लटकाने से निरस्त नहीं किया जा सकता। संविधान का हवाला देते हुए ऐसा आदेश देने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को अदालत ने टिप्पणी स्वरूप “छोटी सोच” वाला कहा है। यह याचिका पी मुनीस्वरी ने दाखिल की थी जो पेशे से डॉक्टर हैं।

वर्ष 2013 में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के जिलाधिकारी ने महिला डॉक्टर के SC प्रमाणपत्र को रद्द करते हुए बताया था कि वह ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गई थी जिस आधार पर वह हिन्दू समुदाय के अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र योग्य नहीं है। अपने फैसले का आधार प्रशासनिक अधिकारियों ने महिला डॉक्टर की क्लिनिक में किए गए दौरे और उसके बाद हुए जाँच निष्कर्ष को बनाया था जिसमें उनके अनुसार क्लिनिक की दीवार पर एक ‘क्रॉस’ लटका हुआ पाया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के इस फैसले को वर्ष 2016 में पी मुनीस्वरी ने अदालत में याचिका के माध्यम से चुनौती दी जिस पर निर्णय देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति एम दुरईस्वामी की प्रथम पीठ के अनुसार ईसाई युवक से विवाह करने और अपने बच्चों को अपने पति के धर्म में मान्यता देने वाली महिला का अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्रशासनिक अधिकारियों के दिए कमजोर तथ्य और तर्क के आधार पर निरस्त नहीं हो सकता।

प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दाखिल हलफनामे पर सवाल उठाते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि अधिकारी ये साबित नहीं कर पाए हैं कि महिला डॉक्टर ने हिन्दू धर्म में अपनी आस्था को खत्म कर दिया है या उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। न्यायालय के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश चर्च जाता है तो इसका मतलब ये भी नहीं है कि उसने अपने मूल धर्म में अपनी आस्था को खत्म कर दिया है।

इस मामले में न्यायाधीशों ने आगे अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि आदेश देने वाले अधिकारियों के कार्य और आचरण संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं जो संविधान सम्मत नहीं है। न्यायालय ने मामले से जुड़े जाँचकर्ताओ पर इस प्रकरण में मनमानी करने वाला बताते हुए इसे बड़े स्तर की सोच से देखने के लिए कहा। न्यायालय ने याचिका दाखिल करने वाली मुनीस्वरी को प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश देते हुए उनके विरुद्ध हुई कार्रवाई को अनुमानों के आधार पर बिना किसी ठोस सबूत के होना बताया है।

पी मुनीस्वरी ने इस याचिका में तमिलनाडु सरकार के ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट के सचिव, जिलाधिकारी रामनाथपुरम, जिला रामनाथपुरम के रेवेन्यू ऑफिसर के साथ कामुदी (Kamudhi) तालुका के तहसीलदार को भी पक्षकार बनाया था। याचिकाकर्ता की तरफ से वकील राजेंद्रन और प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से पी थिलक कुमार ने अपने-अपने पक्ष रखे।

यहाँ उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत ईसाई धर्मांतरित अनुसूचित जाति से हैं और भूमि / घर के आवंटन, मुफ्त बिजली और ऋण के शासकीय लाभ उठा रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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