16 दिसंबर 2012: दिल्ली में एक चलती बस में निर्भया के साथ गैंगरेप हुआ।
21 दिसंबर 2012: एसडीएम उषा चतुर्वेदी सफदरजंग हॉस्पिटल जाकर निर्भया का बयान लेती हैं। बकौल चतुर्वेदी- मैंने उससे पूछा कि तुम क्या चाहती हो? उसका पहला जवाब था फॉंसी। फिर थोड़ी देर रुककर बोली, नहीं… फॉंसी नहीं… सभी को जिंदा जला देना चाहिए।
20 मार्च 2020: तड़के दोषी मुकेश, अक्षय, विनय और पवन को तिहाड़ जेल में फॉंसी पर लटका दिया गया।
फॉंसी पर लटकाए गए इन दरिंदों के अलावा पूरे देश को झकझोर देने वाले इस मामले में दो और भी गुनहगार थे। मुख्य आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। एक नाबालिग था जिसे दिसंबर 2015 में बाल सुधार गृह से रिहा किया गया था। मुकेश, अक्षय, विनय और पवन को इस मामले के लिए विशेष तौर पर गठित त्वरित अदालत ने 14 सितंबर 2013 को फॉंसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद यह मामला शीर्ष अदालत तक गया। गुनहगारों को बचाने के लिए उनके वकीलों हर दॉंव आजमाया। यहॉं तक कि 19 मार्च की रात भी फॉंसी टालने की हरसंभव कोशिशें हुई।
इस मामले में तीन डेथ वारंट पर किसी न किसी वजह से फाँसी पर रोक लगी लेकिन कोर्ट के चौथे डेथ वारंट पर चारों दोषियों को फाँसी की सजा दी गई। दोषियों के फाँसी के फंदे पर लटकाए जाने के बाद निर्भया की माँ आशा देवी ने कहा कि आज उन्हें इंसाफ मिला है, लेकिन उनकी लड़ाई जारी रहेगी। आशा देवी ने कहा, “हमारा सात साल का जो संघर्ष है, वो आज काम आया है। हमें देर से ही सही लेकिन इंसाफ जरूर मिला है। इसके लिए देश की सरकार, राष्ट्रपति और अदालतों को धन्यवाद। हमारी बेटी के साथ जो हुआ उससे पूरा देश शर्मसार हुआ था, लेकिन अब जब इन दोषियों को फाँसी दी गई है, तो दूसरी बेटियों को भी इंसाफ मिलने की उम्मीद जागी।”
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 20 मार्च को वो निर्भया दिवस के रूप में मनाएँगीं। इंसाफ मिलने के बाद आशा देवी ने निर्भया की तस्वीर को प्रणाम किया, गले लगाया और कहा, “बेटी अब आपको न्याय मिल गया है।” उन्होंने कहा, “आज हमें न्याय मिला, यह दिन देश की बेटियों को समर्पित है। मैं न्यायपालिका और सरकार को धन्यवाद देना चाहूँगी। हमारी बेटी अब जिंदा नहीं है और लौटेगी भी नहीं। हमने यह लड़ाई शुरू की थी, जब वो हमें छोड़कर चली गई। यह संघर्ष उसके लिए था, लेकिन हम भविष्य में अपनी बेटियों के लिए इस लड़ाई को जारी रखेंगे।”
इसके साथ ही निर्भया के पिता बद्रीनाथ ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए कहा, “आज हमारी जीत हुई है और यह सब मीडिया, सोसायटी और दिल्ली पुलिस की वजह से संभव हो सका। आप हमारी मुस्कुराहट देखकर समझ सकते हैं कि हमारे दिल में क्या चल रहा है।”
हालाँकि निर्भया के दोषियों के वकील ने अंत तक अपनी कोशिशें जारी की। इस कोशिश में पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में इस फाँसी को टालने की कोशिश की लेकिन वो काम नहीं आई। फाँसी का इंतजार कर रहे चारों दोषियों की फाँसी पर रोक लगाने के लिए उनके वकील एपी सिंह देर रात सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे। सुनवाई से पहले एपी सिंह ने कोर्ट के बाहर धरना भी दिया। फिर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पवन गुप्ता के नाबालिग होने की दलील को खारिज करते हुए उसके वकील एपी सिंह से कहा कि आप बार-बार स्कूल सर्टिफिकेट की दलील देकर दोषी के नाबालिग होने का दावा क्यों करते हैं। कोर्ट ने एपी सिंह से पूछा कि किस आधार पर वो राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दे रहे हैं। इसके अलावा वो जो दलीलें दे रहें हैं वे सब पुरानी दलीलें हैं, जिन्हें वो पहले रख चुके हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले 1993 के मुंबई सीरियल धमाके के दोषी याकूब मेमन की याचिका को जब राष्ट्रपति की ओर से खारिज कर दिया गया था, तब 30 जुलाई 2015 की आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला था। उस वक्त वकील प्रशांत भूषण सहित कई अन्य वकीलों ने देर रात को इस फाँसी को टालने के लिए अपील की थी।
इससे पहले 25 अक्टूबर 1983 को पुणे की यरवदा जेल में चार लोगों को एक साथ फॉंसी दी गई थी। इनलोगों ने जनवरी 1976 से मार्च 1977 के बीच 10 लोगों की सिलसिलेवार तरीके से हत्या की थी। दुष्कर्म के मामले में आखिरी फॉंसी 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को अलीपुर सेंट्रल जेल में दी गई थी। वह कोलकाता में 14 साल की छात्रा से दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने का दोषी था। इसके बाद 3 आतंकियों अफजल गुरु, अजमल कसाब और याकूब मेनन को सूली पर लटकाया गया था।