कानपुर दंगे के बाद दंगाइयों के अवैध कब्जों पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे बुलडोजर (Buldozer) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार (16 जून 2022) को अहम फैसला सुनाया। इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन जमीयत-ए-उलेमा हिन्द (Jamiat-Ulema-E-Hind) की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने यूपी सरकार को जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द की याचिका पर अपनी आपत्ति दर्ज करने के लिए तीन दिन का समय दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस AS बोपन्ना और जस्टिस बिक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वो राज्य सरकार से बुलडोजर एक्शन को रोकने के लिए नहीं कह सकता, लेकिन कोर्ट सरकार को नियम के तहत ऐसा करने को कह सकता है।
ऐसे में कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया, लेकिन अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को जरूर कहा है कि मंगलवार (21 जून) को मामले की अगली सुनवाई होने तक कुछ भी न करें। कोर्ट ने कहा कि वे भी समाज का हिस्सा हैं।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे पैरवी कर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार की ओर से जो भी विध्वंस किए गए हैं, उनमें सभी तरह की उचित प्रक्रियाओं का पालन किया गया था। इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मामले में एफिडेविट फाइल करने का भी समय माँगा था।
क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि भाजपा से निलंबित चल रहीं नूपुर शर्मा के पैगंबर मुहम्मद पर कथित बयान के बाद 3 जून को कानपुर में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बड़े पैमाने पर हिंसा की। इसके बाद 10 जून को कई जगहों पर कट्टरपंथियों ने जमकर उत्पात मचाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगा करने वालों के अवैध ठिकानों को ढहाने का नोटिस जारी किया और बाद में उसे ढहा दिया था।
इन्हीं दंगाइयों के बचाव में उतरते हुए जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने कानपुर दंगे के मुख्य साजिशकर्ता जफर हयात हाशमी का समर्थन किया था। इस्लामिक संगठन ने ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।