सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की कॉन्ग्रेस सरकार की वह याचिका खारिज कर दी है, जिसमें टूलकिट से जुड़े एक मामले में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा पर दर्ज प्राथमिकी (FIR) को राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित बताते हुए जाँच पर रोक लगा दी थी। कॉन्ग्रेस की छात्र ईकाई NSUI के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा की शिकायत पर रायपुर सिविल लाइन पुलिस ने 19 मई 2021 को दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने बुधवार (22 सितंबर 2021) को राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। हाई कोर्ट को इस मामले में अपना काम करने दिया जाए। इससे पहले छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ के सामने हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर विचार करते हुए सुनवाई का आग्रह किया। लेकिन पीठ ने उनकी दलीलें यह कहते हुए खारिज कर दी, “अपनी ऊर्जा बर्बाद मत करिए। हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। हाई कोर्ट को फैसला करने दें। हम उस अवलोकन को लेंगे।”
Supreme Court declines to consider a plea of Chhattisgarh Govt against the High Court orders staying investigation in an FIR registered against BJP leader & former CM Raman Singh and the party leader Sambit Patra for their tweets in alleged fake toolkit case pic.twitter.com/rqWA1vcUq8
— ANI (@ANI) September 22, 2021
एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष की शिकायत के आधार पर छत्तीसगढ़ पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 505 (सार्वजनिक शरारत), 469 (जालसाजी) और 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा) के तहत मामला दर्ज किया था। शर्मा ने आरोप लगाया था कि संबित पात्रा कॉन्ग्रेस के लेटरहेड के माध्यम से फर्जी दस्तावेज शेयर कर रहे हैं और टूलकिट के बहाने कॉन्ग्रेस पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। वहीं रमन सिंह पर समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न करने का आरोप लगाया गया था। सिंह और पात्रा को पूछताछ का नोटिस भी भेजा गया था।
हाई कोर्ट के जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने जून में सुनवाई करते हुए दोनों के खिलाफ एफआईआर को दुर्भावना और राजनीतिक द्वेष से प्रेरित माना था। उन्होंने कहा था, “तथ्यों और प्राथमिकी के अवलोकन के बाद प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता के खिलाफ दुर्भावना या राजनीतिक द्वेष के कारण कार्यवाही की गई है।” इस आधार पर अदालत ने दर्ज एफआईआर के आधार पर जाँच जारी रखने पर रोक लगा दी थी। अदालत ने माना था कि जाँच जारी रखना कानून का दुरुपयोग होगा।
हाई कोर्ट ने कहा था कि धारा 504 और 505 के तहत अपराध नहीं बनता क्योंकि ट्वीट से सार्वजनिक शांति प्रभावित नहीं हुई। धारा 469 के तहत जालसाजी के आरोप को लेकर कहा कि जो दस्तावेज इन्होंने ट्वीट किए थे वे पहले से ही पब्लिक डोमेन में थे। अब मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
गौरतलब है कि संबित पात्रा ने ट्वीट कर कहा था कि कॉन्ग्रेस ने विदेशी मीडिया में देश की छवि खराब करने के लिए टूलकिट तैयार किया है। कथित टूलकिट में कोरोना वायरस से पैदा हालात का फायदा उठाकर केंद्र की मोदी सरकार और उसके मंत्रियों को बदनाम करने के दिशा-निर्देश दिए गए थे। साथ ही विदेशी मीडिया से साँठ-गाँठ की बातें भी कही गई थी। इसमें कुंभ को भी बदनाम करने की साजिश रची गई थी। कॉन्ग्रेस का दावा था कि ये दस्तावेज जाली हैं। उसने दिल्ली पुलिस से भी शिकायत की थी जो बाद में यह कहते हुए वापस ले ली गई कि वह छत्तीसगढ़ में मामले को आगे बढ़ाएगी।