उत्तराखंड पुलिस ने कथित तौर पर कम से कम 300 लोगों की पहचान करने का दावा किया है, जो 26 जनवरी को लाल किले पर हिंसक विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे। राज्य की पुलिस ने कहा है कि ये लोग उस भीड़ का हिस्सा थे जो लाल किले में ‘सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गए थे।’
ये लोग जिले के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उधम सिंह नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) दलीप सिंह कुंवर ने कहा, “हमने जिले के खटीमा, सितारगंज, किच्छा, रुद्रपुर, गदरपुर, बाजपुर, काशीपुर और जसपुर शहरों के किसानों की पहचान की है जिन्होंने लाल किले में हंगामा किया था। हम दिल्ली पुलिस के साथ विवरण साझा कर रहे हैं।”
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि तराई किसान महासभा के अध्यक्ष तेजेंदर सिंह विर्क का नाम दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में शामिल है। वहीं विर्क ने कहा कि गाजीपुर सीमा पर विरोध कर रहे किसानों की ‘राष्ट्रीय राजधानी में सामने आई घटनाओं’ में कोई भूमिका नहीं थी।
उन्होंने कहा कि रैली असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा की गई थी और वह लाल किले पर हंगामा करने वालों और उनके ‘काम को खराब करने’ की कोशिश करने वालों के खिलाफ उच्च स्तरीय जाँच की माँग करते हैं। उन्होंने कहा है कि किसान दिल्ली पुलिस द्वारा भेजे गए नोटिस का जवाब देंगे।
गौरतलब है कि लाल किला में पुलिसकर्मियों को खदेड़ा गया। उन्हें दीवार फाँद-फाँद कर अपनी जान बचानी पड़ी। कई पुलिसकर्मी ICU में हैं। 300 से अधिक घायल हुए हैं। कइयों का सिर फट गया। अधिकतर के हाथ-पाँव और सिर में ही चोटें आई हैं। तलवारें लहराते हुए उन्हें खदेड़ा गया। जम्मू कश्मीर के आतंकियों जैसी हरकतें करके ये सरकार और सुप्रीम कोर्ट के लिए किसान कैसे बन जाते हैं, ये समझ से परे है।
पुलिस की पिटाई कर के उलटा पुलिस को ही दोष दिया जा रहा है। कोरोना के दिशानिर्देशों का उल्लंघन तो शाहीन बाग़ वालों ने भी किया था, 3 महीने से ये ‘किसान’ भी कर रहे। इनके खिलाफ ‘महामारी एक्ट’ के तहत कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? बस एक, अगर सरकार एक ऐसा उदाहरण सेट कर दे जहाँ ऐसे करतूतों की उचित सजा मिले तो ये दोबारा निकलने से पहले सोचेंगे। इसके लिए यूपी मॉडल अपनाया जा सकता है।