उत्तर प्रदेश का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकड़ा गया। उससे पहले मीडिया गैंग ने सूत्रों के हवाले से कॉन्स्पिरेसी थ्योरी की लाइन लगा दी।
मसलन, राजदीप सरदेसाई का दावा था कि विकास दुबे पकड़ा गया नहीं जाएगा। सीधे ठोक दिया जाएगा। उनकी गैंग की मेंबर स्वाति चतुर्वेदी ने खुलासा किया कि विकास दुबे नेपाल पहुॅंच चुका है। एक अन्य सम्मानित सदस्य रोहिणी सिंह का दावा था कि बड़े लोगों की कहानी बाहर नहीं आए, इसलिए उसका एनकाउंटर कर दिया जाएगा।
राजदीप और उनके गैंग के तमाम सदस्यों को गुप्त सूत्रों ने सब कुछ बता दिया। लेकिन जो नहीं बताया और जो इन्होंने पत्रकारिता के कथित व्यापक अनुभव से नहीं सीखा, वह यह है कि यूपी-बिहार के सारे भगोड़े न तो एनकाउंटर में मार गिराए जाते हैं और न ही नेपाल पहुँचने के बाद कानून से बचने की गारंटी होती है।
अब पप्पू को ही ले लीजिए। पप्पू यानी पप्पू देव। कभी बिहार के कोसी के इलाकों में वह खौफ का नाम था। कई चर्चित अपहरण कांडों का सरगना। उसके गॉंव के एक लड़के ने सालों पहले बताया था कि जिस पप्पू देव से सब डरते थे, वह पुलिस से उस समय भी बड़ा खौफ खाता था, जब उसकी तूती बोलती थी। वह हर दिन ठिकाने बदलता रहता था। अपराधियों को लेकर ऐसी कहानियॉं चर्चा में होती हैं, पप्पू देव के बारे में भी थी।
वैसे तो बिहार में अपराधियों के खिलाफ शिंकजा तब कसना शुरू हुआ जब जंगलराज के सफाए के बाद पहली बार जदयू-बीजेपी की सुशासन की सरकार आई। फास्ट ट्रैक कोर्ट में उनके मामले चलाए गए ताकि उन्हें जल्द से जल्द सजा सुनिश्चित हो। लेकिन, पप्पू देव इससे पहले ही नेपाल में पकड़ा जा चुका था।
कौन है पप्पू देव?
पप्पू देव बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल में हत्या, लूट, अपहरण, रंगदारी और डकैती जैसे दर्जनों संगीन मामले के नामजद रहा है। 2002 में नेपाल के एक व्यापारी को अगवा कर 5 करोड़ रुपए फिरौती वसूलने के बाद वह चर्चा में आया था। कुछ रिपोर्टों में यह रकम 11 करोड़ भी बताई जाती है। उस व्यापारी का नाम था तुलसी अग्रवाल।
कथित तौर पर इसके बाद पप्पू देव बिहार में अपहरण उद्योग का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन गया था। छोटे-मोटे गैंग लोगों को उठाते, एक रकम लेकर उसे पप्पू देव को सौंप देते थे। आगे का सारा जिम्मा पप्पू देव का होता था। कुछ-कुछ वैसा ही जैसे प्रकाश झा की फिल्म अपहरण में दिखाया गया है।
लेकिन अगले ही साल पप्पू देव 50 लाख से अधिक के जाली नोट और हेरोइन के साथ नेपाल में गिरफ्तार हो गया। उसे वहाँ सजा भी हुई। सजा पूरी होने के बाद वह रिहा कर दिया गया। जनवरी 2014 में यूपी एसटीएफ की मदद से बिहार पुलिस ने नेपाल बॉर्डर से उसे गिरफ्तार किया। बीते साल वह जमानत पर बाहर आया। पप्पू देव ने इसके बाद विरोधियों पर साजिश कर झूठे मुकदमे में फँसाने का आरोप लगाया था।
जिनको यह लगता हो कि पप्पू तो जाली नोट का धंधा करता था। लोगों को अगवा करता था। उसका विकास दुबे की तरह कभी पुलिस से सामना नहीं हुआ, उनको बता दूँ कि नेपाल में पकड़े जाने से पहले एक दिन नवगछिया के मुकंदपुर चौक के पास रात में उसकी पुलिस से भिड़ंत हो गई। पुलिस को देखते ही पप्पू ने गोलियाँ झोंक दी। पुलिस वालों की किस्मत कहिए कि कानपुर जैसी घटना नहीं हुई और पप्पू देव भाग निकला। इसी तरह एक बार खगड़िया में एसटीएफ के हाथ से भी वह बच निकला था।
अब बात पप्पू देव के पॉलिटिकल कनेक्शन की। उससे राजद का सांसद रहा हिस्ट्रीशीटर शहाबुद्दीन जेल में मीटिंग करता था। उसकी पत्नी पूनम देव ने 2005 और 2010 का विधानसभा चुनाव लोजपा के टिकट पर बिहपुर से लड़ा था। वैसे ही जैसे आपने विकास दुबे की पत्नी के सपा के टिकट पर पंचायत चुनाव लड़ने के पोस्टर देखे होंगे। पूनम ने 2015 में बतौर निर्दलीय महिषी विधानसभा से भी चुनाव लड़ा। अब बताया जाता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में खुद पप्पू देव की नजर बिहपुर सीट पर गड़ी है।