पश्चिम बंगाल के हावड़ा और हुगली में रामनवमी के अवसर पर हुई हिंसा के लिए मानवाधिकार आयोग की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने ममता सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश नरसिम्हा रेड्डी के नेतृत्व में छह सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि दंगे पूर्व नियोजित थे जिन्हें सुनियोजित तरीके से भड़काया गया था। अपने रिपोर्ट में आयोग ने राज्य पुलिस की तटस्थता को लेकर भी सवाल खड़े किए थे।
फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के अलावा कलकत्ता हाई कोर्ट भी हिंसा को पूर्व नियोजित करार दे चुकी है। कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम ने कहा कि यदि छतों से पत्थर फेंके गए। तो जाहिर है पत्थरों को 10-15 मिनट में छत पर नहीं ले जाया जा सकता था। कलकत्ता उच्च न्यायालय और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट ने बंगाल हिंसा पर पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए। साथ ही हिंसा के लिए हिंदुओं को जिम्मेदार ठहराने वाले ममता बनर्जी और पूरे इको सिस्टम का भी भंडाफोड़ कर दिया।
ऑपइंडिया के पास मानवाधिकार आयोग की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की पूरी रिपोर्ट उपलब्ध है। कमेटी द्वारा दिए गए विवरण और माँगो को हम संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार-
1.बंगाल में हुई हिंसा का मुख्य कारण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा रामनवमी से पहले दिया गया घोर भड़काऊ भाषण था। रिपोर्ट के अनुसार सीएम ममता केंद्र सरकार के खिलाफ एक दिन के धरने पर बैठी थीं। इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि मुस्लिम इलाकों से गुजरने वाले जुलूस पर कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद शांतिपूर्वक शोभा यात्रा पर भीड़ हमला कर देती है। राज्य की पुलिस दंगाइयों को नियंत्रित करने में न सिर्फ विफल रही बल्कि मौके से गायब रही।
2.ममता बनर्जी हिंसा के बाद राम भक्तों को दोषी ठहराने के लिए आरोप लगा रही हैं कि अंतिम समय में शोभा यात्रा का मार्ग बदल दिया गया। जबकि कमेटी की रिपोर्ट में इस दावे को खारिज किया गया है। पीड़ितों और शोभा यात्रा में शामिल लोगों के अनुसार किसी मार्ग को अंतिम समय में नहीं बदला गया। राज्य पुलिस को इस मार्ग के बारे में पहले ही सूचित कर दिया गया था। पुलिस द्वारा इसकी स्वीकृति भी दी गई थी।
3.रिपोर्ट से पता चलता है कि हिंदुओं ने शोभा यात्रा पर संभावित खतरे को देखते हुए अतिरिक्त सुरक्षा माँगी थी। शोभा यात्रा आयोजकों के अनुसार पिछले साल भी उनकी यात्रा को निशाना बनाया गया था इसलिए पुलिस से अतिरिक्त सुरक्षा माँगी गई जिसे देने में राज्य की पुलिस विफल रही। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार की विफलता के कारण ही शोभा यात्रा निकालने वालों पर भारी पथराव किया गया। पथराव के कई वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं।
- रिपोर्ट में पुलिस पर जानबूझकर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने का आरोप लगाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार शोभा यात्रा को पर्याप्त सुरक्षा न दिया जाना और दंगाईयों के खिलाफ कार्रवाई न करना इसी तरफ इशारा करता है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि रामनवमी के बाद भी सीए ममता बनर्जी बिना किसी जाँच के हिंसा के लिए हिदुओं को दोष देती रहीं। ममता बनर्जी ने कहा कि रमजान के महीने में मुस्लिम गलत हरकत नहीं कर सकते। उनके एक तरफा बयान दंगाईयों का हौसला बढ़ा रहे थे और रामनवमी के कई दिनों बाद तक बंगाल के कई इलाके हिंसा की आग में जलते रहे।
- रिपोर्ट में हिंसा के लिए ममता बनर्जी के एक और बयान को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस वीडियो में ममता बनर्जी अल्पसंख्यकों को कानून हाथ में लेकर दंगाईयों ( बंगाल के सीएम के अनुसार हिंदुओं) को सबक सिखाने की बात कर रही हैं। अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए ममता लगातार ऐसे बयान दे रही हैं। जिससे समाज के बड़े वर्ग में असंतोष फैले और असमाजिक तत्वों का मनोबल बढ़े।
- कमेटी के अनुसार ममता बनर्जी न सिर्फ जाँच को प्रभावित कर रही थीं बल्कि अपने नफरती भाषणों से धार्मिक आधार पर भीड़ को उकसा रही थीं। रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के कई वीडियो वायरल हैं जो धार्मिक आधार पर हिंसा और हत्या को प्रोत्साहित करने वाले हैं।
- रिपोर्ट में ममता बनर्जी के उस भाषण की बात प्रमुखता से की गई है जिसमें वे अल्लाह’ का जिक्र करते हुए शोभा यात्रा निकालने वालों के खिलाफ मुस्लिमों को भड़का रही हैं। सीएम ममता उन्हें जुलूस निकालने वालों को दंगाबाज (दंगाई) कहते हुए खत्म करने की बात कह रही हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि CISF सुरक्षा होने के बावजूद विधायक बिमन घोष भी हिंसा में घायल हो गए थे इससे राज्य पुलिस की मंशा जाहिर होती है। इस आधार पर पुलिस पर सांप्रदायिक तत्वों के समर्थन का आरोप लगाया गया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार और राज्य पुलिस के पक्षपात पूर्ण रवैया के कारण पीड़ित पक्ष पुलिस की मदद के लिए आगे नहीं आया। डर के मारे कई मामलों की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं कराई गई। रिपोर्ट के अनुसार पुलिस पीड़ितों की मदद करने की जगह उन्हें झूठे केस में फँसाने की धमकी देती है। बंगाल के लोग राज्य मशीनरी के गुंडों को भय में रहने को मजबूर हैं।
- रिपोर्ट में कही गई अहम बातों में से एक यह भी है कि पश्चिम बंगाल पुलिस झूठी गिरफ्तारियाँ कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस अपनी नाकामियाँ छिपाने के लिए धारा 144, सीआरपीसी और विचाराधिन मामलों की आड़ ले रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस के आला ऑफिसर भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि चंदननगर पुलिस आयुक्त (Commissioner of Police) अमित पी जवालगी और हावड़ा पुलिस आयुक्त प्रवीण कुमार त्रिपाठी दंगा नियंत्रण में अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा सके। जिन क्षेत्रों में हिंसा की सूचना मिली थी वहाँ पुलिस द्वारा बहुत देरी से कार्रवाई की गई। कमेटी के लोगों को दंगा प्रभावित इलाके का दौरा न करने देना भी दर्शाता है कि पुलिस के वरिष्ठ ऑफिसर राज्य सरकार को खुश करने के लिए काम कर रहे हैं।
- दावा है कि जब कमेटी को लोगों को चंदननगर पुलिस आयुक्त अमित जवालगी और हावड़ा पुलिस आयुक्त प्रवीण त्रिपाठी ने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा करने की इजाजत नहीं दी। पुलिस की तरफ से उन्हें उन स्थानों पर न जाने के लिए लेटर जारी कर दिया गया। इसे बाद कमेटी की तरफ से खतों का जवाब दिया गया। जब पुलिस की तरफ से पत्राचार नहीं हुआ तो लोग प्रभावित इलाकों का दौरा करने पहुँचे। पुलिस ने उन्हें रोक दिया। इसके बाद टीम के मेंबर एक अस्पताल पहुँचे जहाँ एक हिंदू युवक गंभीर रूप से घायल था। अस्पताल में बताया गया कि गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी पुलिस ने उस युवक की शिकायत दर्ज नहीं की थी।
- ऑपइंडिया को प्राप्त कमेटी की रिपोर्ट में विस्तार से उस घटना की जानकारी दी गई है कि कैसे 8 और 9 अप्रैल को बंगाल पुलिस ने टीम के मेंबरों को प्रभावित इलाकों में जाने से रोक दिया था। कमेटी द्वारा बंगाल पुलिस को यह प्रस्ताव दिया गया था कि पुलिस की टीम चाहे तो उनके साथ दंगा प्रभावित इलाकों में चल सकती है। इस अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया गया। जिससे पुलिस की भूमिका संदेहास्पद हो जाती है।
रिपोर्ट के अनुसार, चूँकि समिति को हिंसा वाले इलाकों में जाने नहीं दिया गया इसलिए पीड़ितों को खुली पेशकश की गई कि वे अपनी सुविधानुसार समिति के मेंबरों से मिल सकते हैं। इसके बाद सांप्रदायिक दंगों के 24 पीड़ितों ने एक निजी और सौहार्दपूर्ण बातचीत में समिति से मिलने की इच्छा जाहिर की। पीड़ितों में से कुछ लोग ऐसे थे जो हावड़ा के शिवपुर शोभा यात्रा में शांतिपूर्ण रूप से शामिल हो रहे थे और कुछ लोग वो थे जो यात्रा में शामिल लोगों को पानी और फल उपल्बध कराने जैसी सेवा दे रहे थे। पीड़ितों ने बताया कि उनके पास हथियार होने का प्रश्न ही नहीं था। यात्रा हर साल निकाली जाती है। रास्ते भी वही होते हैं। विगत कुछ सालों से यात्रा को निशाना बनाया जाने लगा है। रामनवमी वाले दिन भी अचानक छतों से पत्थरों की बौछार होने लगी।
बताया गया कि हमला करने के लिए छतों पर पहले से ठिकाने बनाए गए थे। एक तरफ से पत्थर चलाने और दूसरी तरफ छिपने की जगह बनाई गई थी। पुलिस इन हमलों को रोकने में नाकाम रही। बच्चे-बुढ़े सब चोटिल हो गए। इसके बाद हिंदुओं की संपत्तियों को भी नुकसान पहुँचाया जाने लगा।
- रिपोर्ट से सामने आई चौंकाने वाली बातों में से एक यह भी था कि पुलिस ने दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की उल्टे पीड़ित पक्ष पर ही लाठी चार्ज किया। पीड़ितों ने समिति को जानकारी दी कि पुलिस के इलाके से निकलते ही मुस्लिम तबके के लोग हिंसा शुरू कर देते थे। मुस्लिम भीड़ नुकसान पहुँचाने के मकसद से हिंदू इलाकों में दाखिल हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ित पक्ष अपने दावों को सही साबित करने के लिए घटना के वीडियो भी जारी करेगा। पीड़ितों के अनुसार दंगा भड़कने के बाद पुलिस ने फोन कॉल स्वीकार करने बंद कर दिए। थाना से सटे इलाकों में भी दंगाई हिंसा कर रहे थे।
16.कमेटी के मेंबरों से बात करने वाले पीड़ितों को झूठे मामलों में फँसाए जाने का डर सता रहा था। लगभग सभी पीड़ितों ने अनुरोध किया कि उनकी पहचान गोपनीय रखी जाए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कई स्थानों पर पुलिस ने दंगाईयों को हिंसा फैलाने के लिए खुला मैदान दे दिया।
अंत में समिति कुछ अहम निष्कर्ष पर पहुँचती है जो इस प्रकार हैं-
दंगाइयों और उनके समर्थकों को राज्य सरकार का समर्थन प्राप्त था। राज्य सरकार के समर्थन के बिना इतना व्यापक नुकसान असंभव है। सबूत हिंसा में पुलिस की सक्रिय भूमिका की ओर इशारा करते हैं। पुलिस को शोभा यात्रा के रूट की जानकारी थी। कुछ इलाके ऐसे थे जहाँ पिछले साल भी हिंसा हुई थी। अनुरोध के बावजूद पुलिस ने उन्होंने सुरक्षा नहीं दी। राज्य पुलिस की कार्रवाई राजनीतिक लाभ से प्रेरित लग रही हैं।
कमेटी की तरफ से की गई माँग
1.दंगा करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई की जाए।
2.दंगों की निष्पक्ष जाँच के लिए जाँच की जिम्मेदारी एनआईए को सौंपी जाए।
3.खौफ में रह रहे पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान की जाए।
4.निर्दोष पीड़ितों के खिलाफ दर्ज किए गए झूठे मामलों को वापस लिया जाए।
5.चूँकि लोगों का पुलिस पर भरोसा कम हो चुका है अतः प्रभावित क्षेत्रों में विश्वास बहाली तक केंद्रीय बलों की तैनाती की जाए।
बता दें कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्मोत्सव रामनवमी के अवसर पर पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में हिंसक झड़पें हुई थीं। इस हिंसा में दर्जनों लोग घायल हुए थे। वहीं, कुछ लोगों के मारे जाने की भी खबर सामने आई थी। इसी तरह हुगली जिले के रिसड़ा में हिंसा की शुरुआत 2 अप्रैल की शाम भाजपा रामनवमी शोभायात्रा में हुए पथराव के साथ हुई थी। इसके बाद सड़कों पर खड़ी गाड़ियाँ भी आग के हवाले कर दी गईं थीं। इस हिंसा में महिलाएँ और बच्चे घायल हुए थे।
(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में नुपूर जे शर्मा ने लिखी है। विस्तार से इसे इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।)