पिछले डेढ़ दशक में जम्मू में रोहिंग्याओं की संख्या 200 से बढ़कर 11,000 हो गई है। इन्हें योजनाबद्ध तरीके से जम्मू में बसाया गया, जिसका मकसद यहाँ की जनसांख्यिकी को बदलना था। पुलिस ने जम्मू में रोहिंग्याओं को बसाने में मदद करने वाले चार कश्मीरी एनजीओ की पहचान की है।
पूर्व ब्रिगेडियर विजय सागर के मुताबिक, कश्मीर के राजनीतिक दलों ने रोहिंग्याओं को जम्मू में बसाकर अपना सियासी फायदा तलाशा। शुरुआत में ध्यान नहीं दिया गया, जिससे अब इनकी बढ़ती संख्या के साथ अपराध, नशा तस्करी और देह व्यापार जैसी घटनाएँ भी बढ़ गई हैं।
जानकारी के अनुसार, 2009 में सईद हुसैन नाम का पहला रोहिंग्या जम्मू के बठिंडी में आकर बसा। इसके बाद इन्हें सरकारी मदद मिली और आधार कार्ड, राशन कार्ड तक बन गए। अब शहर के गाँधी नगर जैसे पाश इलाकों में अपराध बढ़ने लगे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने रोहिंग्याओं पर जिहादी नेटवर्क चलाने और आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है। पूर्व डीजीपी एसपी वैद का कहना है कि भारत को रोहिंग्याओं को अमेरिका जैसी सख्त नीति अपनाकर वापस भेजना चाहिए। पिछले पाँच साल में इन पर 65 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं।