उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के 104 साल के लखन सरोज को 48 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार न्याय मिल गया। साल 1977 में गौराए गाँव में हुए झगड़े में लखन पर हत्या का आरोप लगा था। मृतक प्रभु सरोज के परिवार ने उन पर लाठी से हमला करने का इल्ज़ाम लगाया था, जिससे प्रभु की मौत हो गई थी। पुलिस ने लखन को गिरफ्तार कर चार्जशीट दाखिल की और 1982 में सेशन कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, लखन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की, जो सालों तक लंबित रही। दिसंबर 2024 में हाईकोर्ट के वारंट पर उन्हें मंझनपुर जेल भेजा गया। बरी होने के बावजूद रिहाई के आदेश में देरी के कारण लखन को 20 दिन अतिरिक्त जेल में रहना पड़ा।
हालाँकि आखिरकार, सबूतों की कमी और तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष मानकर बरी कर दिया। लखन ने कहा, “मैंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी, आज मेरी मेहनत रंग लाई। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा दिन है।”