विगत दिनों होली के दौरान पाकिस्तान में दो हिंदू लड़कियों के अपहरण और फिर उनकी जबरन अधेड़ मुस्लिम से शादी करवाने की खबर पर सोशल मीडिया पर खूब विरोध देखने को मिला था।
ट्विटर पर एक बड़े वर्ग ने पाकिस्तान से इस मामले पर कार्रवाई कर वहाँ पर रहने वाले हिन्दू अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाई थी। यूँ तो पाकिस्तान जैसे देश से धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव की उम्मीद करना एक दिवास्वप्न देखने जैसा है, लेकिन बात जब महिला उत्पीड़न की आती है तो ऐसे में उन लोगों का समर्थन विशेष मायने रखता है, जिन्होंने अपने हौंसले से समाज में एक अलग पहचान बनाई है। स्वाभाविक सी बात थी कि इतने संवेदनशील विषय पर आम लोग ऐसे चेहरे से भी समर्थन और मदद की उम्मीद करते हैं।
ऐसे में नोबेल प्राइज विजेता मलाला यूसफ़जई को जब लोगों ने इस विषय पर आवाज उठाने की बात कही तो उन्होंने ख़ामोशी धारण कर ली और सवाल पूछने वालों को जवाब देने के बजाए ब्लॉक कर दिया।
असल कहानी इसके बाद शुरू हुई, जब मलाला से सवाल पूछने वाले लोगों के ट्विटर और फेसबुक इनबॉक्स में उन्हें अश्लील तस्वीरें भेजी जाने लगीं। मलाला से महिलाओं के अधिकार पर आवाज उठाने की माँग करने वाली लड़कियों के ट्विटर एकाउंट्स में अपने जननांगों की तस्वीरें भेजने वाले ये लोग पाकिस्तान और कश्मीर के युवा थे। भारतीय मीडिया गिरोह इन्हें भटके हुए युवाओं के नाम से जानता है, जो या तो किसी हेडमास्टर के बेटे निकल जाते हैं या फिर भारतीय सेना द्वारा सताए गए मजबूर युवा।
पुलवामा आतंकी हमले के दौरान भारतीय मीडिया गिरोह की प्रमुख अभियुक्त बरखा दत्त को भी कुछ लोगों ने परेशान करने और प्रताड़ित करने के उद्देश्य से अपने जननांग की तस्वीरें भेज डाले थे। बरखा दत्त ने इसके बाद कुछ लोगों के मोबाइल नम्बर सार्वजानिक कर दिए थे। हालाँकि, कुछ दिन बाद ही पुलिस उन्हें पकड़ने में कामयाब रही और कसाई शब्बीर गुरफान के साथ 3 लोग गिरफ़्तार कर लिए गए थे।
लेकिन ट्विटर पर मलाला से हिन्दू लड़कियों को इंसाफ दिलाने की बात करने वाली लड़की को मलाला ने ब्लॉक कर दिया और इसके बाद पाकिस्तान और शायद सम्प्रदाय विशेष के लोगों ने, एक साथ लड़की के इनबॉक्स में अपने जननांगों की फोटो भेजनी शुरू कर दी। फेसबुक और ट्विटर का हिन्दू और दक्षिणपंथियों के प्रति पूर्वग्रह और पक्षपात भी अब जगजाहिर है। इस युवती ने जब अपनी बात फेसबुक पर रखी तो उसके अकाउंट को सस्पेंड कर दिया गया और कम्युनिटी स्टैंडर्ड्स का हवाला दिया गया।
ये अश्लील तस्वीरें भेजने वाले लोगों में अधिकांश लोग पाकिस्तान के थे लेकिन हैरानी की बात ये है कि इनके साथ जम्मू कश्मीर के भी निवासी, जिनके नाम इसलिए नहीं लिए जाने चाहिए ताकि उनका मजहब का भेद न खुल जाए, इस ट्विटर यूज़र को अश्लील तस्वीरें भेजते जा रहे थे। वास्तव में किसी के नाम में उसका मजहब ढूँढ निकालना तार्किक है भी नहीं, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि पुलवामा आतंकी हमले में बलिदानी सैनिकों पर हँसने वाले और महिला अधिकारों की बात करने पर लड़की को प्रताड़ित करने वाले लोगों के नाम एक जैसे ही नजर आते हैं, उनकी भौगोलिक सीमाएँ उनमें भेद करने में अक्षम हैं।
मामला सिर्फ अश्लील तस्वीरें भेजकर उसकी आवाज चुप करवाने तक सीमित नहीं है, जब इस लड़की ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से इस बारे में राय रखी और फेसबुक पर मिलने वाली अश्लील तस्वीरें और भद्दे सन्देश शेयर किए तो लड़की के साथ वालों ने इसे घृणा और उपहास की नजर से भी देखना शुरू कर दिया। इनमें अधिकतर उसके साथ के वो युवा और ऑफिस के लोग हैं जिन्हें उसकी मदद करनी चाहिए।
इस लड़की ने अपने फेसबुक अकाउंट के जरिए अपनी बात रखने की कोशिश की है, जिसमें उसने कहा है कि वो अपनी बात करेगी और उन्हें जरूर जवाब देगी। ये हौसला सराहनीय है, इसका उपहास नहीं होना चाहिए, इस हौंसले को आवाज मिलनी चाहिए ताकि अश्लील तस्वीरें भेजने वालों को ये एहसास हो कि वो सिर्फ अपनी मानसिक विकृति का उदाहरण दे पा रहे हैं और इन तस्वीरों से ज्यादा उनके पास अभिव्यक्ति के लिए कुछ है भी नहीं, ये जननांग ही उनकी पहचान और उनका वास्तविक चेहरा है।
हिन्दू महिलाओं के अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन की ये बात सार्वजानिक तब हुई थी, जब लड़कियों के पिता का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जाने लगा। इस वीडियो में वो बेबस होकर दहाड़े मारकर रो रहे हैं और पुलिस के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराने और दोषियों पर कार्रवाई करने की अपील करते हुए देखे गए, उनका कहना था कि उनकी दोनों बेटियों का अपहरण कर लिया गया और उनका धर्मांतरण कर निकाह करा दिया गया।
इसके बाद, केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जब लड़कियों के अपहरण पर विवरण मँगाया और पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त से घटना पर रिपोर्ट भेजने को कहा है तो पाकिस्तान के अधिकारीयों ने ट्विटर पर भारत को इस विषय पर उल्टा ज्ञान देते हुए देखा गया था कि भारत को उन्हें समझाने की जरुरत नहीं है।
पाकिस्तान जैसे देश मियाँ मिठ्ठू जैसे ठेके पर धर्म परिवर्तन कराने वाले लोगों को राजकीय सुरक्षा और सुविधाएँ देता है, उससे हिन्दुओं के अधिकारों पर चर्चा तो छोड़िए लेकिन महिलाओं के अधिकारों तक पर सवाल पूछना अतार्किक हो चुका है। फिर भी, हम कम से कम भारत में बैठे मीडिया से और नारीवादियों से ये उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि इस विषय पर बात की जाए, ताकि महिलाओं के अधिकारों पर मुखर किसी लड़की को अपना एकाउंट डिएक्टिवेट कर के चुप ना बैठाया जा सके, ताकि महिलाओं के अधिकारों पर बात करने वालों को अपने कार्यस्थल और ऑफिस में लोगों की नजरों में शर्मिंदगी से न देखा जाए, बल्कि उसकी सराहना हो और अभिव्यक्ति की आजादी का नारा हमेशा बुलंद रहे।