कंगना और कुंभ पर सवाल खड़े करने वाले आमिर और यूनिलीवर की करतूतों पर चुप बैठ जाते हैं

हिंदुस्तान यूनिलीवर ने बनाया कुंभ पर आपत्तिजनक वीडियो

फ़िल्मों के बारे में सभी जानते हैं कि वहाँ सेट, हुलिया, किरदार सभी नकली होते हैं। इसके बावजूद जब अभी हाल में कंगना की मणिकर्णिका अच्छी चल निकली तो गिरोहों ने विवाद उठाया कि कंगना का घोड़ा तो नकली है! ऐसा इसलिए था क्योंकि गिरोह के मर्दवादियों को एक अकेली कंगना आसान शिकार लगी होगी। इन्हीं लोगों ने आमिर ख़ान की फ़िल्म में शाकाहारी पहलवानों को जबरन मुर्गा खिलाना दिखाने पर ग़लत तथ्यों के बारे में कुछ नहीं कहा था। वो पुरुष हैं, फिल्म इंडस्ट्री पर मजबूत पकड़ रखते हैं, शायद उनकी फेंकी बोटियों से पेट भी भरा हुआ होगा। उन्हें निशाना एक ही तरफ़ साधना होता है।

अभी हाल में जब अर्धकुम्भ का वृहत आयोजन हुआ तो उनके पालतू कहने लगे कि इतना सरकारी ख़र्च क्यों? किसी ने पूछ लिया कि मंदिरों से धन और ज़मीनें लेना बंद कर दो तो आयोजन भी बंद कर देना। उसके बाद फिर हमले का दूसरा कोण ढूँढा जाने लगा। कुम्भ के आयोजन में 200 वर्षों बाद ऐसा हुआ है कि कोई बड़ी भगदड़ नहीं मची। किसी के भीड़ में कुचल कर मारे जाने की ख़बर चलाने का गिद्धों को मौक़ा ही नहीं मिला। भला आयातित विचारधारा और उपनिवेशवादी मानसिकता के लोग ऐसी कामयाबी कैसे सहन कर पाते?

लिहाजा उन्होंने प्रचारों के जरिये हिन्दुओं को फिर से नीचा दिखाने की कोशिश की। भारत को बरसों उपनिवेश बनाए रखने वाली जगहों की एक कंपनी के प्रचार का बहाना बनाया गया। ब्रिटिश-डच कंपनी जो भारत में हिंदुस्तान-यूनीलीवर के नाम से चलती है, अपने कई उत्पादों का प्रचार भी करती है। उसने अपनी चाय “रेड-लेबल” के लिए एक प्रचार बनाया जिसमें दर्शाया गया है कि भारतीय लोग कुम्भ की भीड़ का फायदा अपने बुजुर्ग अभिभावकों को वहाँ छोड़ आने के लिए उठाते हैं। प्रचार की कहानी में एक व्यक्ति अपने पिता को ऐसे भीड़ में छोड़ आता है, जैसे भारतीय समाज में ये आम बात हो!

ब्रिटिश-डच कंपनी हिंदुस्तान-यूनीलीवर के पिछले सीईओ को काफी हद तक “प्रगतिशील” माना जाता था और कई लोगों ने तो उनके अगला जॉर्ज सोरोस होने की संभावना भी जताई थी। इस ब्रिटिश-डच कंपनी के मौजूदा सीईओ के बारे में ऐसा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उनके अलग-अलग ब्रांड के हाल में आये प्रचारों पर सवाल जरूर उठ रहे हैं। थोड़े दिन पहले भारतीय लोगों का एक बड़ा वर्ग क्लोज-अप के प्रचारों से नाराज चल रहा था। भारत में इस ब्रिटिश-डच कंपनी को पहले ही स्वदेशी उद्यमों से कड़ा मुक़ाबला झेलना पड़ रहा है। उनका व्यापार बढ़ नहीं पा रहा।

हालाँकि ऐसी बड़ी कंपनियों में मीडिया को “मैनेज” करने की अपार क्षमता होती है, लेकिन अब के दौर में जब सोशल मीडिया, परम्परागत ख़रीदी जाने वाली मीडिया जितना ही प्रभावशाली हो चला है तो ब्रिटिश-डच कम्पनी यूनीलीवर को बायकाट के गाँधीवादी तरीके का असर शायद महसूस हो ही जायेगा। अच्छा भी है, क्योंकि सनातनी समाज अब अन्यायों के प्रति असहिष्णु हो चला है, ये बात उपनिवेशवादियों को पता भी होना चाहिए।

Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!