प्रिय शेखर गुप्ता! 21वीं सदी के मनमोहन सिंह पता नहीं, लेकिन भारतीय मीडिया के जवाहर तुम ही हो

शेखर गुप्ता के कल के राजनीतिक विश्लेष्ण आज से मेल नहीं खाते

पंजाब में महाराष्ट्र के नांदेड़ से लाए गए सिख श्रद्धालुओं में कोरोना वायरस का संक्रमण मिलते ही शेखर गुप्ता से लेकर तमाम लिबरल गिरोह सक्रीय हो गया और तबलीगी जमात की कारस्तानी की भरपाई के लिए सिखों को निशाना बनाना शुरू कर दिया गया। सदियों से कॉन्ग्रेस की छत्र-छाया में पले-बढ़े नेहरुघाटी सभ्यता के पत्रकार शेखर गुप्ता जैसे कॉन्ग्रेसी बौद्धिक गुलाम कोरोना वायरस की महामारी के दौरान भी अपनी स्वामिभक्ति से पीछे नहीं हट रहे हैं।

नांदेड़ साहिब के सिखों की तबलीगी जमात से तुलना

महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब से पंजाब लाए गए सिख श्रद्धालुओं के कोरोना से संक्रमित पाए जाने के तुरंत बाद शेखर गुप्ता यह ट्वीट करते हुए देखे गए कि मजहब और कोरना के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है। शेखर गुप्ता का निशाना वो तबलीगी जमात और मुस्लिम हैं, जिन्होंने डेढ़ महीने से ज्यादा समय से देशभर में उपद्रव कर शासन-प्रशासन और व्यवस्थाओं की नाक में दम कर रखा है।

शेखर गुप्ता ने तबलीगी जमातियों की भरपाई के लिए सिखों को निशाना बनाते हुए अपने एक ट्वीट को सबसे ऊपर ‘पिन’ कर लिया है ताकि अन्य लोगों तक भी यह नैरेटिव आसानी से पहुँच सके। सिखों को निशाना बनाने के साथ ही शेखर गुप्ता आजकल एक दूसरी स्वामीभक्ति में भी लगे हुए हैं। वह आजकल बता रहे हैं कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन किस तरह से अगले मनमोहन सिंह हो सकते हैं।

हालाँकि, शेखर गुप्ता इस प्रकार की तुलना करने से पहले एक बात यह ध्यान नहीं रखना चाहते हैं कि महज एक घंटे पहले के समाचार और महाराष्ट्र सरकार एवं पंजाब सरकार की गलती के कारण सिखों को तबलीगी जमात के सामान ही कोरोना वायरस का केंद्र साबित करना कितना सही है? क्या यह महाराष्ट्र और पंजाब सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि सिर्फ मीडिया की वाहवाही बटोरने के लिए जब वो श्रद्धालुओं को लाने का प्रबंध कर रहे थे, उससे पहले पूरी जाँच कर ली जाती और उन्हें आवश्यक संरक्षण दिया जाता?

सिखों श्रद्धालुओं की तुलना मुस्लिम तबलीगी जमातियों से करना इसलिए भी बेवकूफाना है क्योंकि –
1 – सिखों ने पुलिस पर थूका नहीं
2 – मोबाइल बंद कर के मस्जिदों में नहीं छुपे
3 – क्वारंटाइन में नर्सों के साथ अश्लील हरकतें नहीं की
4 – उन्होंने कोरोना को अल्लाह का अजाब नहीं बताया
5 – अस्पताल में बिरियानी की माँग नहीं की

दूसरा सवाल शेखर गुप्ता से व्यक्तिगत तौर से यह किया जा सकता है कि सिखों में से कितने ऐसे सिख हैं, जिन्होंने मुस्लिमों की ही तरह हर जगह पुलिस और डॉक्टर्स की टीम पर पथराव किए या इन पर थूका और मरकज से निकलकर देश-विदेश की मस्जिदों में छुप गए?

शेखर गुप्ता जैसे लोग सिर्फ एक ऐसे मौके के इन्तजार में रहते हैं कि कैसे वो मुस्लिमों के आतंक को ढकने के लिए इसके समानांतर हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों को भी इस्लामिक आतंकवाद जितना ही मजबूती से स्थापित कर सकें।

‘Congress के लिए रघुराम राजन हैं 21वीं सदी के मनमोहन सिंह’

अगर देखा जाए तो शेखर गुप्ता जिस तेजी से रंग बदलते हैं। या यूँ कहें कि गिरगिट तो बेवजह बदनाम है। जिस तेजी से वो रंग बदलते हैं, गिरगिट को उनसे कुछ प्रेरणा लेनी चाहिए। कारण यह है कि जो पद्म भूषण शेखर गुप्ता आज रघुराम राजन में कॉन्ग्रेस का 21वीं सदी के मनमोहन सिंह को देख रहे हैं, वही रघुराम राजन कुछ साल पहले मनमोहन सिंह की असफलता पर ‘साहित्य’ लिख रहे थे।

‘इवन डेज़’ में The Print –

पद्म भूषण शेखर गुप्ता कुछ साल पहले बता रहे थे कि मनमोहन सिंह एक अच्छी चॉइस क्यों नहीं हो सकते हैं। जून 2019 को ही शेखर गुप्ता के ‘दी प्रिंट’ में प्रकाशित कुछ लेखों में कहा गया था कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर गौरवान्वित महसूस नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही ‘दी प्रिंट’ ने मनमोहन सिंह को भारत रत्न ना दिए जाने की भी वकालत की थी।

‘ऑड डेज़’ में The Print –

अब सवाल यह उठता है, कि जो ‘दी प्रिंट’ और उनके ‘राजनीतिक विश्लेषक स्तम्भकार’ भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और 21वीं सदी में प्रधानमंत्री पद पर सबसे लम्बे समय तक कायम रहने वाले मनमोहन सिंह को ही किसी लायक नहीं समझता, वो अब रघुराम राजन को कॉन्ग्रेस का नया मनमोहन सिंह आखिर किसलिए साबित करना चाहता है और कॉन्ग्रेस के लिए वह इसमें कौनसी उम्मीद की किरण की तलाश करता है?

वास्तव में शाहीन बाग़ में चल रहे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी रैलियों में ‘दी वायर’ की प्रोपेगैंडा पत्रकार आरफा खानम शेरवानी मुस्लिमों के लिए कुछ गाइडलाइंस शेयर करते हुए देखी गईं थीं। वह उन्हें मुस्लिम होकर भी मुस्लिम ना नजर आने के दिशा निर्देश देते हुए देखी जा रही थीं। ठीक इसी तरह से शेखर गुप्ता अब कॉन्ग्रेस के लिए इसी प्रकार के दिशानिर्देश जारी करने का प्रयास कर रहे हैं। हालाँकि, ऐसा करते वक्त वो कॉन्ग्रेस को यह नहीं बताते कि वो मनमोहन सिंह को ही किसी लायक नहीं देखते।

लेकिन पद्म भूषण शेखर गुप्ता और उनके स्तम्भकारों की बातों को कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जिनके खोजी ‘आसमानी’ विश्लेषण चुनाव के एक दिन पहले नरेंद्र मोदी की हार का दावा करते हैं और नतीजा आते ही कहते हैं कि 30 साल तक नरेन्द्र मोदी को कोई नहीं हरा सकता है?

घर से निकलते ही –

कुछ दूर चलते ही –

दुर्भाग्य यह है कि ‘ऑड-इवन डेज़’ वाली पत्रकारिता करने वाले पद्म भूषण शेखर गुप्ता को गम्भीरता से लेना तब जरुरी हो जाता है, जब यह स्मरण होता है कि वह एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष होने के साथ-साथ सदियों से भारतीय पत्रकारिता के सबसे ऊँचे पदों पर आसीन रह चुके हों। शेखर गुप्ता की प्राथमिकताएँ तय हैं, जो आदेश उन्हें अपनी निजी सरकारों से मिलते हैं, उन्हें उन पर काम करना होता है। ऐसे ट्वीट ही पिन किए जाते हैं, जिन्हें देखकर उनके अन्नदाता उनकी पीठ थपथपाएँ और कहें कि 21वीं सदी के मनमोहन सिंह तो पता नहीं, लेकिन भारतीय मीडिया के जवाहर तुम ही हो।

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