डियर शेहला सबूत तो जरूरी है, वरना चर्चे तो आपके बैग में कंडोम मिलने के भी थे

शेहला रशीद शोरा

डियर शेहला रशीद शोरा,

आशा है आप सानंद होंगी। अब ये मत कहिएगा कि सेना की फटकार, सोशल मीडिया पर दुत्कार और कानून के कसते शिकंजे के बीच आनंद कैसा! पार्ट टाइम पढ़ाई और फुल टाइम पॉलिटिक्स की आपकी मेहनत को जानता हूॅं। दुख इस बात का है कि सोशल मीडिया ने लाइमलाइट में आने के आपके ट्रिक में गली के लौंडों को भी उस्ताद बना दिया है। फेक और फैक्ट का फर्क मिटा दिया है।

दुख इस बात का भी है कि आईएएस से नेता बने जिस शाह फैसल के साथ आप जम्मू-कश्मीर में दुकानदारी जमाने की ख्वाहिश पाल बैठीं थी, मोदी-शाह ने उस पर डाका डाल दिया। आपको अब्दुल्ला, मुफ्ती की तरह मलाई खाने का मौका नहीं मिला। अफसोस!

जानता हूॅं आप सदमे में हैं। इसलिए तो सबूत के नाम पर बहाने बना रही हैं। देती तो आप हैं नहीं और पूछ रहीं, दूॅंगी तो क्या सेना कार्रवाई करेगी। आप ही बताइए हवा-हवाई दावों से तो व्यवस्था नहीं चलेगी न। सबूत तो चाहिए ही। तब तो यकीनन चाहिए जब मामला देश से जुड़ा हो। लाखों लोगों की जिंदगी से जुड़ा हो। या फिर हम मान लें कि दो जून की रोटी में बस ये पाकिस्तानी प्रोपगेंडा का रोना भर है।

वरना चर्चे तो बेगूसराय में पुलिस जॉंच के दौरान आपके बैग से भारी मात्रा में कंडोम बरामद होने के भी थे। हवा इतने जोर से फैली थी कि जिस सखा कन्हैया को जिताने आप बेगूसराय पहुॅंची थी वह ही चर्चे से हवा-हवाई हो गए थे।

लेकिन, किसी ने इस हवा पर भरोसा नहीं किया। मूढ़ मतियों की हवा में दम भी नहीं होता। अब इस मामले में कानून अपना काम कर रही है। उसे करना भी चाहिए, क्योंकि ऐसी बातें आपकी गरिमा, आपकी निजता पर आघात हैं।

पर हमने कभी इस अफवाह को लिबरलों की करतूत बता न हवा दी और न इस मामले में शिकायत दर्ज कराने वाली के चरित्र को खारिज किया। न उसकी निष्पक्षता पर शक किया। हमें तो आपके प्रति उसकी सद्भावना ही दिखी। लेकिन, आपने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले, पुलिस से शिकायत करने वाले वकील को भक्त बता दिया। एक ही झटके में उसकी निष्ठा और देश के प्रति उसके भाव को खारिज कर दिया।

आपके समर्थकों के ट्वीट को हमने गिरोह विशेष का कैंपेन नहीं कहा। और आपने ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड को पार्टी विशेष की करतूत बता दिया।

संवाद का आपका तरीका भी एकतरफा है। बस अपनी ही अपनी रटती हैं। मुश्किल में फँसती हैं तो अपने जैसों की ही रटती हैं। जब से लाइमलाइट में आईं हैं पक्ष में खड़े लोगों को ही रिट्वीट कर रही हैं। आजादी तो आपका पसंदीदा तराना है। हमारा भी है। इसलिए आपकी अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करते हैं। पर हमारी उन अपेक्षाओं का क्या जो आजादी को लेकर आपसे है?

आप भी न अच्छा खेलती हैं। पर खुदा कसम पकड़ी जाती हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि एक बार सबूत मारिए सरकार और सेना के मुॅंह पर। आपको यह करना भी चाहिए। क्योंकि आप व्यक्तिगत आरोप नहीं लगा रहीं। कंडोम जैसी टुच्ची बात नहीं कर रहीं। आपका दावा है सेना कश्मीर में घरों में घुस कर लड़कों को उठा रही है। राशन जमीन पर बिखेर रही है। लोगों को आतंकित करने के लिए सार्वजनिक रूप से युवाओं को प्रताड़ित कर रही है। और ये सारे तथ्य आपने दिल्ली में बैठे-बैठे बड़ी मिहनत से जुटाए हैं। ट्वीट करने में अंगुलियों को हुआ दर्द अलग। आपकी इस मिहनत और दर्द का सम्मान होगा वह सबूत।

इससे उस पवित्र किताब पर हमारा भरोसा भी डोलेगा जिसे हम संविधान कहते हैं। जो हमें अपनी सेना और सरकार की बातों पर यकीन करने का भरोसा देती है। आप जैसी सुघड़ महिला भी इस किताब पर यकीन करती ही होंगी। यकीनन आप उस जमात में नहीं होंगी जो खुद को उड़ाकर, बेगुनाहों का खून बहाकर हूर पाने का रास्ता दिखाने वाली पवित्र किताब पर भरोसा करती है।

लाइमलाइट में आने और फिर खुद को पीड़ित बताने का स्टाइल पुराना हो गया। तो कुछ नया क्यूॅं नहीं करती। वैसे हम आपकी आजादी का सम्मान करते हैं। करना न करना आपकी मर्जी। लेकिन, नहीं चाहते कि य​ह आजादी उन टुच्चों को भी मिले जो आपके कंडोम प्रेम की अफवाहें फैलाते रहते हैं। बस यही हमारे और आपके बीच का फर्क है। यही भक्त और लिबरल होने का भी फर्क है।

आपके राजनीतिक भविष्य की उज्ज्वल कामनाओं के साथ!

आपका

(भक्त वगैरह जो आपकी मर्जी हो खुद डाल लीजिएगा)

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया