लेख के शीर्षक से ही ये साफ है कि मैं अरविंद केजरीवाल का या आम आदमी पार्टी का कोई प्रशंसक नहीं हूँ। जो लोग मेरे मत को फॉलो करते हैं, खासकर ट्विटर पर, उन्हें ये पता ही होगा। साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में AAP की जीत के बाद ऐसा लगता है मेरे पास सिर्फ चिंतित होने और कयामत के दिन की कल्पना करने का विकल्प बचा है। हालाँकि, जनादेश का विरोध और कयामत के दिन की कल्पना करना ‘लिबरल’ होने का आदर्श उदाहरण है इसलिए मैं ऐसा करने से बचूँगा।
लेकिन, इससे ये हकीकत नहीं बदलेगी कि बहुत से लोग AAP के चलते पंजाब के भविष्य को लेकर आशंकित हैं। AAP ने 2017 में ही अलगाववादी तत्वों से छेड़खानी की थी, लेकिन तब कॉन्ग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीत लिए थे। भले ही उस समय एनडीए गठबंधन के हाथों से सत्ता चली गई थी लेकिन भाजपा समर्थकों ने इस बात का स्वागत किया था कि सरहदी राज्य पर का नेतृत्व कैप्टेन अमरिंदर सिंह करेंगे, जो पूर्व में आर्मी में थे और AAP नेताओं की तरह गैर जिम्मेदार नहीं है। लेकिन अब क्या होगा जब 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में आप को प्रचंड बहुमत के साथ जीत मिली है?
इससे भी बदतर बात यह है कि इस साल के चुनाव में, अलगाववादी और खालिस्तानी भावनाएँ पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले में कहीं अधिक और मजबूत दिखाई दीं। लंदन और कनाडा में बैठे हैंडलरों को भी तीन कृषि कानून के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे किसान आंदोलन के बहाने भावनाएँ भड़काने का सबसे अच्छा मौका मिला, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा वापस ले लिया गया था।
ऐसे विरोध प्रदर्शनों के दौरान खालिस्तानी झंडे, नारे और बयानबाजी नियमित रूप से सुनाई देती थी जो ईशनिंदा के आरोप में व्यक्ति की हत्या और रेप करने वाले आपराधिक तत्वों का भी बचाव करते थे। और हाँ! इन्हीं प्रदर्शकारियों ने 2021 में गणतंत्र दिवस पर लाल किले को अपवित्र करके, देश के संवैधानिक अधिकारों को खुली चुनौती दी थी। इसके बाद भी अधिकांश राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे तत्वों की केवल सांकेतिक रूप से आलोचना की गई थी। हकीकत में तो शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियों ने गणतंत्र दिवस के इन उपद्रवियों को आर्थिक और कानूनी समर्थन भी दिया था। AAP ने भी दिल्ली की सीमाओं पर बैठे प्रदर्शनकारियों को कई तरह से सहायता पहुँचाई थी।
हम इस समय उन हालातों में हैं जहाँ कोई मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टी खुलेआम जरनैल सिंह भिंडरावाले को आतंकी नहीं कह सकती। वही भिंडरावाले जिसने पंजाब के इतिहास में काले अध्यायों को जोड़ा जहाँ हजारों हिंदू मारे गए और कई सिखों ने भी न जाने किसी प्रकार के ‘न्याय’ और क्षेत्रीय आकांक्षाओं की नासमझी में अपनी गँवाई। पिछले महीने यही खालिस्तान के समर्थन में नारे दीप सिद्धू के अंतिम संस्कार के समय सुने गए थे, जो कि एक पंजाबी एक्टर था लेकिन किसान प्रदर्शन के चलते राष्ट्रीय स्तर पर नाम पा चुका था।
सामने होती घटनाओं से आँख मूंदरकर उन्हें ‘अलग’ बताने के लिए किसी को भी शतुरमुर्ग ही होना पड़ेगा। हालाँकि यह सच है कि पंजाब में हर कोई खालिस्तान की चाह नहीं रखता। लेकिन सच तो ये भी है कि पड़ोसी पाकिस्तान में बैठे कुछ लोगों सहित हैंडलर इसे हाल के दिनों में अपने अलगाववादी विचारों और माँगों को आगे बढ़ाने के लिए सबसे बढ़िया अवसर मान रहे हैं। इन सभी पिछले कहानियों के साथ पंजाब अब आम आदमी पार्टी के हाथ में चला गया है और चलिए ये कहा जाए कि अरविंद केजरीवाल के हाथ में चला गया है। ये आदमी क्या करेगा?
केजरीवाल के पूर्व साथी कुमार विश्वास की मानें तो केजरीवाल खुद पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं, क्योंकि वह दिल्ली जैसे आधे राज्य का सीएम होने से कहीं बड़ा पद है। विश्वास ने सच में ये दावा किया है कि केजरीवाल ने एक बार कहा था कि वे स्वतंत्र पंजाब के प्रधानमंत्री बनने का दावा करते थे। केजरीवाल ने कहा था कि वह एक ‘स्वतंत्र पंजाब’ के ‘प्रधानमंत्री’ बनने की हद तक भी जा सकते हैं, जो कि खालिस्तान होगा। अजीब बात तो ये है कि आम आदमी पार्टी ने कुमार विश्वास के इस दावे को चलाने वाले हर मीडिया संस्थान को मुकदमे की धमकी दी थी, लेकिन उन्होंने विश्वास के ख़िलाफ़ मुकदमे की बात नहीं कही। यानी केजरीवाल ने खुद को परोक्ष रूप से खुद को ‘स्वीट टेररिस्ट’ कहकर जवाब दिया। जो कि और भी अजीब है।
इस तरह के गंभीर आरोप के प्रति इस तरह के आकस्मिक दृष्टिकोण किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकते हैं कि क्या अरविंद केजरीवाल दोबारा से चीजों में इतना गड़बड़झाला कर सकते हैं कि पंजाब दोबारा अंधकारों के दिनों में लौट जाए। इसका सीधा जवाब यह हो सकता है, वाकई ‘सड़जी’ इसे खराब करने वाले हैं क्योंकि उन्होंने इससे पहले भी गैर-जिम्मेदाराना बयान दिए हैं।
हालाँकि, मुझे विश्वास है कि शायद चीजें इतनी विनाशकारी नहीं होंगी। हैरानी की बात है, लेकिन हाँ, मुझे अरविंद केजरीवाल से उम्मीद है कि वह हकीकत में चीजों को बदतर नहीं करेंगे।
साल 2019 के लोकसभा परिणामों के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिखाया है कि वह एक व्यवहारिक नेता भी हो सकते हैं न कि किसी अप्रत्याशित आवारा की तरह जो आग लगाने वाले बयान दें जो कि वह पहले करते थे- जैसे सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाना, ईवीएम पर सवाल उठाना, यह दावा करना कि मोदी अगर दोबारा जीते तो किसी कोई चुनाव नहीं होंने देंगे, अर्बन नक्सलियों के साथ मिलनसार व्यवहार रखना और इसी तरह बहुत कुछ।
2019 के ‘धक्के’ के बाद केजरीवाल जिस तरह से राजनीति कर रहे हैं, उनमें स्पष्ट रूप से बदलाव आया है। वह अब हड़बड़ी में रहने वाले पागल आदमी नहीं लगते। उन्होंने राम मंदिर के फैसले या अनुच्छेद 370 को हटाने के बारे में और सीएए को लेकर (हालाँकि उनके विधायक अमानतुल्ला खान ने जो किया वह लोगों के लिए अज्ञात नहीं है) भड़काऊ बयान नहीं दिया। उन्होंने ऐसे बयानों या घटनाओं से पूरी तरह खुद को बचाया, जिन्हें खुले तौर पर हिंदू विरोधी देखा जा सकता है। दूसरी ओर, वह सार्वजनिक पूजा और कीर्तन का आयोजन करते दिखे, जिसके कारण उनके ‘सेकुलर’ फैन अक्सर उन पर ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ मानकर हमला करने लगे।
इसके अलावा जो केजरीवाल मोदी ‘कायर और मनोरोगी’ बोल देते थे उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी अनाप-शनाप बोलना बंद कर दिया। कुल मिलाकर वो चुप हो गए हैं और एक लंबी पारी के लिए तैयार हो रहे हैं जहाँ वह पहले की तरह किसी प्रकार का हमला करके नहीं बल्कि ईंट से ईंट जोड़कर, रणनीतिक कदम उठाकर अपने को मजबूत करना चाहते हैं।
और यही से आशा बनती है कि हो सकता है कि केजरीवाल नए देश के प्रधानमंत्री न बनना चाहते हों और अपने ही देश में प्रधानमंत्री बनने पर उनकी नजर हो। हड़बड़ी वाला पागल आदमी नहीं बल्कि एक चतुर आदमी जो थोड़ा इंतजार करने को तैयार है।
पंजाब में आप की जीत की भविष्यवाणी करने वाले एग्जिट पोल के आधार पर, पार्टी नेताओं ने पहले ही बयान जारी करना शुरू कर दिया था कि यह राष्ट्रीय स्तर पर कॉन्ग्रेस को हटाकर AAP के आने की शुरुआत थी। हमेशा निंदक होने और ‘राष्ट्र-विरोधी’ तत्वों के साथ छेड़खानी करते हुए आप ‘राष्ट्रीय’ महत्वाकांक्षाएँ नहीं रख सकते हैं, और उम्मीद है कि यह अरविंद केजरीवाल को पंजाब में विनाशकारी कदम उठाने से रोकेगा।
यह चुनौतीपूर्ण होने वाला है। केजरीवाल निश्चित रूप से ‘हमें काम नहीं करने दे रहे जी’ की रणनीति छोड़ने वाले नहीं हैं। पंजाब में उनकी पार्टी जो भी चुनावी वादे पूरे करने में नाकाम रही, निश्चित तौर पर वह केंद्र को ही दोषी ठहराएँगे। अब यह सबसे बड़ी चिंता की बात है – जहाँ केजरीवाल इसे केंद्र की भाजपा को बदनाम करने के लिए एक चालकी भरे राजनीतिक कदम के तौर पर देखेंगे, वहीं खालिस्तानी तत्व इसे ऐसे दिखाएँगे कि भारत के हिंदू पंजाब सिखों के साथ अन्याय कर रहे हैं।
मैं उम्मीद करता हूँ कि अपनी भलाई के लिए देश की खातिर केजरीवाल इस जोखिम को समझेंगे और खालिस्तानी तत्वों को पंजाब में अपने राजनीतिक विकास का फायदा नहीं लेने देंगे। किसान प्रदर्शन के दौरान केजरीवाल एक बैठक से उठ कर चले गए थे क्योंकि कुछ किसान उनका आर्टिकल 370 पर कुछ न बोलने के लिए मजाक उड़ा रहे थे। केजरीवाल ने तब साफ कहा था कि इन सबका किसानी से कोई लेना-देना नहीं है। वहाँ किसान सिर्फ वामपंथी वाला वो रोना रो रहे थे जहाँ अगर कोई कृषि कानून के खिलाफ़ है, तो उसे सीएए के विरोध में भी बोलना पड़ेगा और कश्मीर में संघर्ष पर भी कुछ कहना होगा- आप जानते ही है ये उत्पीड़ितों का महागठबंधन है । लेकिन यहाँ केजरीवाल ने बोलने से मना कर दिया। इसलिए मुझे आशा है कि ये आदमी पूरी तरह से चीजें नहीं खराब करेगा।
वह निश्चित ही हर चीज से ऊपर अपने हितों को रखने जा रहा है लेकिन उम्मीद है कि वो अपने वह अपने हित को एक बेहतर प्रोफाइल बनाने की दिशा में देखेंगे जिससे उन्हें परिवक्व राष्ट्र नेता और ‘पीएम मटेलियल’ के तौर पर देखा जाए। उम्मीद है कि ये सारी चीजें उन्हें खालिस्तानी तत्वों द्वारा गुमराह नहीं होने देंगी।
साथ ही, जैसा कि मैंने पहले कहा, हमारे पास अभी पंजाब में शायद ही कोई मुख्यधारा में राजनीतिक पार्टी है जो भिंडरावाले के खिलाफ खुलकर बात करेगी। राहुल गाँधी की कॉन्ग्रेस बेशर्मों की तरह ‘आप तमिलों पर शासन नहीं कर सकते’ जैसी बकवास के साथ भारत को बाँटने की कोशिशों में हैं। शिरोमणि अकाली दल भी चरमपंथी भावनाओं को तब भड़काना शुरू कर देता है जब उनकी राजनीति में किस्मत नहीं चलती (जैसे कि गणतंत्र दिवस के उपद्रवियों को उनका समर्थन)। बीजेपी को तो यहाँ शुरुआत करने का कभी मौका नहीं मिला। इसलिए पंजाब में आम आदमी पार्टी वर्तमान में सबसे खराब नहीं हो सकती है। हाँ, मुझे खुद पर विश्वास नहीं हो रहा है कि मैं इसे टाइप कर रहा हूँ।
नोट: राहुल रौशन द्वारा मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए आर्टिकल का अनुवाद जयन्ती मिश्रा ने किया है।