राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। जहाँ तक सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों की बहस की बात है, जिन लोगों ने क़रीब से देखा-सुना है, इतिहास और साक्ष्य हिंदुओं के पक्ष में दिखता है। इसी साल अगस्त की शुरुआत में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया। एनआरसी को लेकर बहस चल रही है। ऐसे में कमलेश तिवारी की हत्या किसी बड़ी साज़िश का हिसस तो नहीं है? सुब्रह्मण्यन स्वामी के एक ट्वीट से भी इस आशंका को बल मिलता है।
वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने अपनी ट्वीट में माँग की है कि कमलेश तिवारी हत्याकांड की जाँच एनआईए से कराई जानी चाहिए। स्वामी का अर्थ ये है कि भले ही पुलिस ने इस हत्याकांड में किसी आतंकी संगठन का हाथ होने से इनकार किया हो, लेकिन इसे अंजाम देने वाले ज़रूर आतंकी विचारधारा से प्रेरित हैं। स्वामी आगे लिखते हैं कि कट्टरपंथी मुस्लिम अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद से ही कोई बड़ा दंगा कराने की फ़िराक़ में थे लेकिन वो बुरी तरह विफल रहे। इसीलिए, कमलेश तिवारी की हत्या ऐसे नाजुक समय में किसी बड़ी साज़िश की तरफ इशारा करती है।
स्वामी के इस ट्वीट का विश्लेषण करें तो कई एंगल निकल कर आते हैं। सोशल मीडिया पर शेयर हो रहे पोस्ट्स का जब हमने अध्ययन किया तो पाया कि कई लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराज़गी जता रहे थे और भाजपा की आलोचना कर रहे थे, क्योंकि उनके मुताबिक़ भाजपा सरकार कमलेश तिवारी की सुरक्षा में विफल रही और उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रयास नहीं किए गए। क्या इसे एक साज़िश का हिस्सा नहीं मान सकते? कट्टरपंथी इस्लामी ताक़तें ज़रूर चाहती होंगी कि भाजपा के कोर वोटर यानी हिन्दुओं का अपने ही सरकार से मोहभंग हो। और ऐसा करने के लिए किसी हिंदूवादी नेता की हत्या कर दी गई।
Kamlesh Tiwari requires a NIA probe judging by prima facie evidence. The idea of mad mullahs is to provoke a communal riot since they have failed in Kashmir after Art 370 castration
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 19, 2019
कट्टरपंथी इस्लामिक शक्तियों का इरादा यह हो सकता है कि भाजपा के अपने ही वोटर सरकार से भड़क जाएँ क्योंकि कमलेश तिवारी मामले में सरकार जो भी कार्रवाई करेगी, भावनात्मक रूप से इस संवेदनशील मामले से ख़ुद को जुड़ा महसूस कर रहे हिन्दुओं को कम ही लगेगा और वे सरकार की आलोचना करेंगे ही। वोटर पार्टी से नाराज़ होंगे तो भाजपा दबाव महसूस करेगी और कमज़ोर होगी। ऐसे मौक़ों पर छोटी-मोटी घटनाओं को भी बड़ा बना कर पेश किए जाने की मीडिया व जनता के एक वर्ग की परंपरा रही है, जिससे नाराज़गी और बढ़ेगी। राम मंदिर के हक़ में फ़ैसला आने के बाद राम मंदिर निर्माण को लेकर भी अड़ंगा डालने की यह एक कोशिश हो सकती है।
इलाहबाद हाईकोर्ट में राम मंदिर की सुनवाई के दौरान कमलेश तिवारी भी पक्षकार थे। ऐसे में इस हत्याकांड से राम मंदिर को जोड़ना की अतिशयोक्ति नहीं है। पुलिस यह साफ़ कर चुकी है कि इस हत्याकांड को इसीलिए अंजाम दिया गया, क्योंकि हत्यारे 4 साल पहले उनके पैगम्बर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी से नाराज़ थे। यह भी गौर करने वाली बात है कि कमलेश तिवारी ने ऐसे ही बयान नहीं दिया था। असल में सपा नेता आज़म ख़ान ने आरएसएस के सभी कार्यकर्ताओं को समलैंगिक बता दिया था, जिसके जवाब में कमलेश तिवारी ने टिप्पणी की थी। कई लोगों का तो यह भी पूछना है कि उसी मामले में अगर कमलेश तिवारी जेल जा सकते हैं तो आज़म ख़ान पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
हर एक्शन का एक रिएक्शन होता है। इस्लामिक कट्टरपंथियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होगी अगर दंगे होते हैं और मुस्लिम भी मारे जाते हैं। चूँकि इस हत्याकांड की साज़िश क़रीब 2 महीने से रची जा रही थी, इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कमलेश तिवारी की हत्या के साथ-साथ इसके और भी दूरगामी खतरनाक उद्देश्य हो सकते हैं। यूपी पुलिस के डीजीपी ने कहा है कि अभी और राज़ खुलने बाकी हैं। जाहिर है, पूछताछ में जैसे-जैसे चीजें निकलती जाएँगी, सार्वजनिक रूप से भी लोगों को इस बारे में पता चलता जाएगा। ये भले ही बड़ी साज़िश हो या छोटी, कमलेश तिवारी इसकी बलि चढ़ा चुके हैं।
Result: Kamlesh Tiwari’s throat slit…. stabbed to death. No outrage, no intolerance. Because…. it’s a peaceful section functioning peacefully.
— Kamya Chaturvedi (@tok2kamya) October 18, 2019
गोधरा दंगे की तर्ज कर दंगे भड़काने की कोशिश की जा सकती है क्योंकि राम मंदिर मामले में फ़ैसला हिन्दुओं के पक्ष में आता दिख रहा है। अनुच्छेद 370 और एनआरसी से बौखलाए इस्लामिक कट्टरपंथी अभी तक शांत थे या फिर शांत रहने को मजबूर थे, क्योंकि सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी। पाकिस्तान से घुसपैठ को लगातार नाकाम किया जा रहा था और यूपी में तो अपराधियों के लगातार एनकाउंटर हो रहे थे। हाल ही में ख़बर आई थी कि पाकिस्तान ने हिज़्बुल, लश्कर और जमात को अलग-अलग टास्क सौंपे हैं। आपको याद है कि इसमें से एक टास्क कुछ ख़ास नेताओं को निशाना बनाना भी था?
चूँकि पुलिस इस मामले में किसी आतंकी संगठन का हाथ होने से इनकार कर चुकी है, लेकिन इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता कि ये किसी आतंकी विचारधारा से प्रेरित न रहे हों। केरल से आईएसआईएस में शामिल होने वालों में सभी मुस्लिम हैं। एनआईए ने एक आतंकी साजिश रच रहे युवक को दबोचा, जिसके पास से ज़ाकिर नाइक की सीडी मिली। पैगम्बर मुहम्मद पर टिप्पणी के बाद उन इस्लामिक फेसबुक ग्रुप्स में कमलेश तिवारी के ख़िलाफ़ भड़काऊ चीजें ज़रूर शेयर हुई होंगी, जिन ग्रुप्स में अभी जश्न मनाया जा रहा। व्हाट्सप्प पर मैसेज जानबूझकर सर्कुलेट किए गए होंगे। मुस्लिमों को गुस्सा दिलाया गया होगा, उन्हें भड़काया गया होगा।
सुब्रह्मण्यन स्वामी की बातें सच हो या नहीं लेकिन उनकी आशंका ज़रूर वाजिब है। क्योंकि जिन ताकतों ने, जिस विचारधारा ने कमलेश तिवारी की हत्या की है वे घात लगाए बैठे हैं। राम मंदिर पर हिंदुओं के हक में फैसला आने पर वे फिर से शिकार पर निकल सकते हैं।