मदरसों में बच्चों का केवल यौन शोषण ही नहीं होता। ज्यादतियों की लिस्ट बेहद खौफनाक है। बर्बरता ऐसी कि इंसानियत शर्मा जाए।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रविवार यानी 15 सितंबर को पुलिस ने दो बच्चों को प्रताड़ना से मुक्त कराते हुए एक मदरसे के संचालक और उसके सहायक को गिरफ्तार किया। एक बच्चे की उम्र 10 साल और दूसरे की 7 साल है। 10 साल का बच्चा चेन से बॅंधा था और उसे आजाद कराने के लिए गैस कटर का इस्तेमाल करना पड़ा।
मामले का खुलासा तब हुआ जब दोनों बच्चे रोते हुए बेंच से बॅंधे हुए घसीटते हुए मदरसे से निकले। सड़क पर दोनों को देख लोगों ने पुलिस को खबर की। राज्य मदरसा बोर्ड के साथ तो यह मदरसा पंजीकृत नहीं है, लेकिन एक पंजीकृत शैक्षणिक सोसायटी इसका संचालन करती है। इस मदरसे में करीब 200 बच्चे पढ़ते हैं, जिनमें से 22 वहीं रहते थे।
भोपाल का मामला तो सामने आ गया और बच्चों की जान बच गई। लेकिन, ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं होता। दीनी तालीम के नाम पर चल रहे मदरसे बच्चों को भिखारी तक बना रहे हैं। उन्हें जंजीरों में बॉंध कर रखा जाता है। उनकी पिटाई की जाती है। गुलामों सरीखा सलूक उनके साथ होता है।
ऐसा केवल भारत में ही नहीं होता है। अफ्रीकी देश सेनेगल जहॉं की डेढ़ करोड़ की आबादी में से 90 फीसदी लोग मजहब विशेष से हैं, वहॉं के मदरसों के अमानवीय बर्ताव सुन देह में सिहरन पैदा हो जाती है।
सेनेगल में मदरसों को डारा, उनमें पढ़ने वाले बच्चों को तालिब और पढ़ाने वाले मौलवी को माराबू कहते हैं। डारा में कुरान के अलावा शराफत भी सिखाई जाती है। यूॅं तो शराफत का मतलब विनम्रता होता है, लेकिन डारा शराफत के नाम पर बच्चों को भीख मॉंगने के लिए मजबूर करते हैं।
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक सेनेगल में करीब 1 लाख तालिब भीख मॉंग रहे हैं। ऐसे ज्यादातर तालिब की उम्र 12 साल से कम है। कुछ तो 4 साल के ही हैं। इसी संस्था ने 2010 के अपने अध्ययन में अनुमान लगाया था कि सेनेगल के मदरसों में पढ़ने वाले करीब 50 हजार बच्चे भीख मॉंग रहे हैं। यानी 10 से भी कम साल में इनकी संख्या दोगुनी हो चुकी है।
वैसे, इसके खिलाफ कानून सेनेगल करीब 15 साल पहले ही बना चुका है। ह्यूमन राइट्स वॉच और सेनेगल के मानवाधिकार समूहों के संगठन पीपीडीएच की अपील के बाद हाल में राष्ट्रपति मैकी साल ने बच्चों को सड़कों से वापस लाने और उनसे भीख मॅंगवाने वाले मौलवियों की गिरफ्तारी के आदेश भी दिए हैं। लेकिन, इससे हालात बदलने की बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा रही।
इसका कारण समुदाय विशेष बहुल समाज में मुल्लों का दबदबा है। बताया जाता है कि मदरसों में बच्चों को खाना-पीना मिल जाता है। कुछ मदरसे बीमार होने पर इलाज भी करा देते हैं। इसलिए सब कुछ जान कर भी गरीब परिवार के लोग बच्चों को डारा भेज देते हैं।
असल में, मदरसों में आने वाले ज्यादातर बच्चों की आर्थिक पृष्ठभूमि कमजोर होती है और इसी का फायदा उठाया जाता है। भोपाल के मामले में भी यह नजर आता है। पुलिस के मुताबिक मुक्त कराए गए 10 साल के बच्चा का पिता मजदूर है। वहीं, 7 साल की उम्र का जो बच्चा है उसकी मॉं को पिता तलाक दे चुके हैं। उसकी मॉं घरों में काम कर किसी तरह गुजारा करती है। बच्चों को खाने-पिलाने की चिंता से मुक्ति के लिए लोग मदरसे में भेज देते हैं। साथ ही यह भी उम्मीद रहती है कि मदरसे में पढ़कर उनका बच्चा देर-सबेर इमाम बन जाएगा।
मदरसे रेप के अड्डे और मुल्लों का डर
मदरसे में अमानवीय बर्ताव की इंतहा
इसलिए, अक्सर बच्चों के साथ होने वाली ज्यादतियों का पता चलने पर भी अम्मी-अब्बू खामोश रह जाते हैं। इसके अलावा धर्म और मौलवियों का खौफ भी चुप्पी का बड़ा कारण है।
मौलवियों के खौफ के बारे में बताते हुए सेनेगल के एक वकील ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया- एक पीड़ित तालिब को माराबू ने भरी अदालत के सामने मारने की धमकी दी। बाद में पीड़ित पलट गया और मामला खत्म हो गया।
डारा में बच्चे किस हालात में रहते हैं इसके सबूत फोटोग्राफर मारियो क्रूज की फोटो बुक ‘Talibes: Modern Day Slaves‘ में मौजूद हैं। तस्वीरें देख आपकी रूह कॉंप जाएगी। इन तस्वीरों के लिए क्रूज को अपने जान जोखिम में डालने पड़े थे।
हृयूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि बच्चों से भीख मॅंगवाकर कुछ मौलवी साल भर में करीब एक लाख डॉलर कमा लेते हैं। आठ साल के डेम्बा के अनुसार- एक मौलवी ने मुझ से रात भर सड़कों पर भीख मॅंगवाई। सुबह एक नशेड़ी ने सारा पैसा छीन लिया।
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार बच्चे भीख में पर्याप्त पैसा नहीं लाते तो उनकी मौलवी बुरी तरह से पिटाई करते हैं। 10 साल के सुलेमान का कहना है- जब तक मैं कुरान सीख नहीं लेता अपने मॉं-बाप से नहीं मिल सकता। मुझे माराबू को 200 फ्रांक लाकर देने होते हैं, नहीं तो मेरी पिटाई होती है। एक अन्य तालिब मूसा ने बताया- मेरे माता पिता को पता है कि मैं माराबू को पैसा देने के लिए भीख मॉंगता हूॅं। वे इसके खिलाफ कुछ नहीं करते। मुझे भीख मॉंगना पसंद नहीं। लेकिन कोई चारा नहीं है।
प्रताड़ना से तंग आकर बहुत सारे बच्चे डारा से भाग भी जाते हैं। लेकिन, इससे उनकी परेशानियों का अंत नहीं होता, क्योंकि मदरसे भीख मॉंगने के अलावा उन्हें कुछ और सिखाते नहीं। हृयूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में डकार के एक डारा से 2018 में भागे तालिब के हवाले से कहा गया है- मुझे डारा पसंद नहीं। वहॉं हमेशा पिटाई होती है। कुरान याद न हो तो भी पिटाई। पैसे लेकर नहीं आएँ तब भी पिटाई। मौलवी तब तक मारते हैं जब तक मौत का एहसास न हो।
डॉयचे वेले के अनुसार राहत संगठन मेसन ड दे ला गार के संस्थापक ईसा कूयाते एक बच्चे की कहानी सुनाते हुए रोने लगते हैं। 8 साल के एक बच्चे ने उन्हें अपनी आपबीती बताई। मदरसे से भागे इस बच्चे का सड़क पर रात में बलात्कार किया गया। कूयाते ने संयोग से उसे बचा लिया। 13 साल का न्गोरसेक डारा से भागने के बाद सेंट लुई शहर में कचरे के डब्बे में खाना खोजता राहत संगठनों को मिला था। उसने कहा- मैं डारा से भाग गया, क्योंकि अब बर्दाश्त नहीं होता।
हृयूमन राइट्स वॉच की ताजा रिपोर्ट में 2017-2018 के बीच डारा में पिटाई, यौन शोषण और भीख मॉंगने से हुई 16 बच्चों की मौत का भी जिक्र है। इसके मुताबिक सजा के तौर पर तालिब को जेल की कोठरी जैसे कमरों में हफ्तों या महीनों तक बंद रखा जाता है। बच्चे भागे नहीं इसलिए उन्हें जंजीर से बॉंध दिया जाता है। भोपाल में गिरफ्तार किए गए मदरसे के संचालक ने भी पुलिस को बताया कि 10 साल की उम्र का बच्चा एक बार बगैर बताए मदरसे से निकल गया था। इसके बाद से उसे जंजीर से बॉंधकर रखा जाता है।
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार सेनेगल में जब-जब हल्ला होता है पुलिस बच्चों को सड़क से उठाकर ले जाती है। लेकिन, उनको भीख मॉंगने के लिए मजबूर करने वाले मौलवियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। कभी-कभार कार्रवाई होती भी है तो प्रभावशाली मौलवी उसके विरोध में उठ खड़े होते हैं।
ऐसे में मदरसों के बच्चों की त्रासदी का अंत होता नहीं दिख रहा। जैसा कि ह्यूमन राइट्स वॉच की एसोसिएट डायरेक्टर (अफ्रीका) कोर्नी डुफका कहती हैं- तालिब गलियों में भटक रहे हैं। भयंकर यातना झेल रहे हैं। शोषण से मर रहे हैं।