सेक्स करने की उम्र लड़कियों के लिए क्या होनी चाहिए… ये बहस कोई नई नहीं है। केवल बुद्धिजीवी ही नहीं बल्कि अदालत भी इस पर विचार-विमर्श करता रहता है। 3 साल पहले मद्रास हाईकोर्ट में लड़कियों के लिए सेक्स की सही उम्र तय करने का मुद्दा उठा था और अब 2022 में इस विषय पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने लॉ कमीशन से कहा है कि वो जरा इस मामले को देखें कि क्या लड़कियों की सेक्स की उम्र 16 नहीं हो सकती।
कोर्ट का तमाम मामलों को मद्देनजर रखते हुए कहना है कि 16 साल की उम्र में लड़कियाँ प्रेम में पड़कर घर से भाग जाती हैं और फिर लड़के के साथ उनके शारीरिक संबंध बनते हैं। ये उनकी इच्छा से होता है लेकिन जब बात सुनवाई की आती है तो ये तय करना पड़ता है कि आईपीसी की धारा और पॉक्सो की धारा के तहत अपराध है या नहीं।
अदालतों की यह दुविधा सही है… शायद कोर्ट में ऐसे तमाम मामले आते हों जब न्यायधीशों को नाबालिग लड़कियों की नादानी के कारण और कानून के दायरे में रहते हुए सख्त फैसले देने पड़ते हों, आपसी सहमति से बने संबंधों को भी अपराध कहना पड़ता हो… मगर क्या इस दुविधा को सुलझाने का उपाय केवल यह है कि लॉ कमीशन से लड़कियों की सेक्स की उम्र कम करने पर विचार करने को कहा जाए?
क्या ये समाज के लिए दो विरोधाभासी बातें नहीं कि एक ओर देश की सरकार लड़कियों को शिक्षित करने के लिए, उनकी भलाई के लिए शादी की उम्र 18 से 21 करने पर लगातार विचार कर रही है, ताकि उनका सामाजिक, मानसिक विकास हो सके। वहीं दूसरी ओर हम केस की जटिलताओं को देखते हुए लड़कियों की सेक्स करने की उम्र ही कम करने की बात कर रहे हैं।
मैं जानती हूँ कि सेक्स और शादी का आपस में संबंध नहीं होता, न ही लोकतंत्र में कोई इसके लिए बाध्य है कि शादी के बाद ही सेक्स होना चाहिए… पर यहाँ बात उम्र की है। 16 की उम्र में अधिकांश लड़कियाँ 10वीं या 12वीं में पढ़ाई कर रही होती हैं। ये समय उनके शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास के लिए अहम होता है। समाज में चल रही सभी चीजें, सिनेमा में दिखाए जा रहे सभी दृश्य उन्हें भीतर तक प्रभावित करते हैं। ऐसे में उनके सामने सेक्स को एक अधिकार के तौर पर रखना कितना उचित होगा ये एक बड़ा सवाल होना चाहिए।
संभव है लड़कियाँ इस उम्र में आकर्षण और प्रेम के बीच उलझकर अपनी शिक्षा और भविष्य को ताक पर रखने के लिए तैयार हो जाएँ। पर, क्या ये फर्ज समाज का, अदालत का नहीं है कि वो सामने आ रही जटिलताओं से ऊपर उठकर लड़कियों की मनोवस्था को केंद्रित करने पर विचार करें। ऐसा करने से संभवत: उन मामलों में अपने आप कमी आ जाए जहाँ नाबालिग की सहमति से बनाए रिश्ते के बाद लड़कों पर सवाल उठते हैं।
कोर्ट ने खुद कहा कि लड़कियाँ कम उम्र में घरों को छोड़कर अपने प्रेमी के साथ रहने चली जाती हैं। आप सोचिए क्या उन लड़कियों से ये अपेक्षा करना ठीक है कि वो अपने सही-गलत का निर्णय इतनी कम उम्र में ले पाएँगी और इन सबका प्रभाव उनके मानसिक विकास पर नहीं पड़ेगा।
सरकार हो, समाज हो या सामान्य जन हों…एक लड़की की 16 की उम्र आते-आते सबका ध्यान इस बात पर ज्यादा होना चाहिए कि वो उसके सामाजिक विकास में कैसे उसका साथ दे सकते हैं। न कि इस बात में अगर उसका मन किसी गलत दिशा की तरफ भाग रहा है तो या उसके लिए उसे आजाद कहकर खुली छूट दे दी जाए। वरना समाज की उलाहना देकर उसके सारे अधिकार छीन कर घरों में बैठा दिया जाए।
आज का दौर इंटरनेट का दौर है। इस समय में तमाम तरह के कंटेंट को सोशल मीडिया पर देखते-देखते रिलेशनशिप का ज्ञान बड़ों से ज्यादा छोटे बच्चों के पास आ गया है। इसका मतलब ये नहीं कि वो उसे संभालने के भी योग्य हो गए हों। समय चाहे पहले का हो या फिर अब का शिक्षा ग्रहण करने में जितना समय तब लगता था उतना ही अब भी लगता है। 16 तो फिर वो उम्र होती है जिसमें ठान लिया जाना चाहिए कि क्या जीवन को कौन सी दिशा में लेकर जाना है। फिर चाहे वो अकादमिक क्षेत्र में हो या खेल-कूद में।
प्रेम के नाम पर किसी की ओर आकर्षित होना और फिर अपने आपको पूरी तरह उसे समर्पित कर देना केवल एक 16 वर्ष की लड़की को मनोवस्था को कमजोर बनाता है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं।
आज सोशल मीडिया पर किसी का पसंद आना और फिर घरवालों को बिन बताए उससे मिलने के लिए निकल जाना…बहुत सामान्य खबरें लगने लगीं हैं, लेकिन इसके बाद लड़की के साथ क्या होता ये कोई नहीं जानता। वो या तो किसी बुरे कारण से खबरों का हिस्सा बन जाती हैं और नहीं तो अपने जीवन को जीवनसाथी के साथ चलाने के लिए संघर्ष करती रहती हैं।
समय चाहे कितना बदल जाएगा… आधुनिकता के नाम पर कितने बदलाव हो जाएँगे, मगर लड़की के विकास के लिए कम उम्र में सेक्स करने का अधिकार मिलना कभी भी शिक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं जा सकता। 16 की उम्र शिक्षित होने, खुद को तन-मन दोनों से मजबूत बनाने, भविष्य सुरक्षित करने की होती है। इस गुमान में जीने की नहीं कि पास में सेक्स का अधिकार है…।
कोर्ट के सामने तमाम केस हैं जिसके कारण ऐसे मुद्दों पर विचार करने को कहना उनकी जरूरत है। लेकिन आप अपनी संस्कृति और आसपास की लड़कियों को देखकर सोचिएगा कि क्या 16 साल की उम्र में अगर सहमति से सेक्स करने का अधिकार दे दिया जाता है तो इससे उन लड़कियों का कितना भला होगा जो जीवन में बहुत कुछ करने की चाह रखती हैं, लेकिन कुछ डिस्ट्रैक्शन के कारण वो सब खोती जा रही हैं और ऐसे कदम उठा रही है जिससे न उनका भविष्य बल्कि उनकी जिंदगी भी खतरे में पड़ रही है।