पाकिस्तान ने भारत पर हमले के कई तरीके अपनाये हैं- सीधा युद्ध, अवैध घुसपैठ, आतंकी हमले, आत्मघाती हमले इत्यादि। जब राज्य की ताकत भारत के सामने कमजोर पड़ी तब राज्य द्वारा पोषित आतंकियों की सहायता ली जाने लगी। 2001 के संसद हमले से लेकर 2008 के मुंबई हमले हों या फिर 2016 का पठानकोट हमला- पकिस्तान ने हमेशा अपने जमीन पर कुकुरमुत्ते की तरह पाल रखे आतंकी संगठनों का इस्तेमाल कर भारत में तबाही मचाने की कोशिश की है। आज 2001 में भारत के संसद भवन पर हुए आत्मघाती हमलों की बरसी है। आज जब पूरा देश उस दिल दहला देने वाले हमले में जान गंवाने वाले जवानों की शहादत को याद कर रहा है, आइये जानते हैं उस दिन आखिर हुआ क्या था।
वो तेरह दिसम्बर 2001 का दिन था। संसद की कार्यवाही को स्थगित हुए लगभग चालीस मिनट हो चुके थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेत्री सोनिया गाँधी जा चुकी थी लेकिन तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवानी सहित कम से कम सौ लोग अभी भी संसद भवन के प्रांगन में ही रुके हुए थे और इनमे कई दिग्गज नेता भी शामिल थे। तभी सफ़ेद रंग की एंबसेडर कार से आये पांच आतंकियों ने संसद भवन के परिसर में घुसकर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी। रिपोर्ट्स की मानें तो उन्होंने संसद भवन के आसपास कड़ी सुरक्षा घेड़े को चकमा देने के लिए जाली पहचान पत्रों का इस्तेमाल किया था। सुरक्षाकर्मियों की वर्दी पहने आतंकियों ने ठीक दोपहर में संसद भवन के परिसर में प्रवेश किया था।
चश्मदीदों के अनुसार एक आतंकी हमलावर ने अपने शरीर बार बांधे गये बम की मदद से खुद को उड़ा लिया था. बांकी बचे चार आतंकियों को लगभग एक घंटे तक चली गोलीबारी में सुरक्षाबलों द्वारा मार गिराया गया था। उस समय इस पूरी गोलीबारी का टीवी पर लाइव प्रसारण हुआ था। इस हमले में भारतीय सुरक्षाबलों के छः जवान शहीद हुए. इनमे से पेंच पुलिसकर्मी थे जबकि एक संसद का सिक्यूरिटी गार्ड। वहीं संसद भवन में स्थित बगीचे के बागवान को भी अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस हमले के पीछे कुख्यात पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मुहमम्द और लश्कर-ए-तैयबा का हाँथ सामने आया था।
इस हमले के तुरंत बाद इसके पीछे शामिल आतंकियों की धर-पकड़ के लिए भारतीय सुरक्षाबलों और जांच एजेंसियों द्वारा एक बृहद अभियान चलाया गया जिसमे अफजल गुरु, शौकत हुसैन, नवजोत संधू और एसएआर गिलानी सहित कईयों को गिरफ्तार किया गया। नवजोत संधू को छोड़ कर बांकी तीन आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई गई। वहीं बाद में एसएआर गिलानी को बरी कर दिया गया और शौकत हुसैन की सजा को कम कर के आजीवन कारावास में बदल दिया गया। शौकत हुसैन को उसके जेल में “अच्छे आचरण” का हवाला देकर उसकी सजा पूरी होने के नौ महीने पहले पहले ही आजाद कर दिया गया था। वहीं अफजल गुरु की दया याचिका को शीर्ष अदालत ने जनवरी 2007 में ख़ारिज कर दिया था. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी द्वारा भी उसकी दया याचिका ख़ारिज करने के बाद अफजल को फरवरी 2013 में अंततः फांसी दे दी गई थी।
अफजल की फंसी का विरोध भी हुआ था और तब ह्युमन राइट्स वाच की एशिया डायरेक्टर रही मीनाक्षी गांगुली ने इस पर बयान देते हुए कहा था–
भारत दोषियों को फांसी देकर सही काम नहीं कर रहा है. केवल लोगों की भावनाओं को शांत करने के लिए फांसी देना गलत है। भारत को फांसी देना बंद करना चाहिए।
वैसे भारत में आतंकियों को बचाने के लिए अक्सर मुहीम छेड़ी जाती रही है। 1993 के मुंबई धमाके के दोषी याकूब मेनन की फंसी रुकवाने के लिए भी कई कथित बुद्धिजीवियों ने अभियान चलाया था। इनमे अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा, वकील राम जेठमलानी सही कई कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व-न्यायाधीश शामिल थे। अफजल के मामले में भी फारुख अब्दुल्ला, मुफ़्ती मोहम्मद सईद और अरुंधती रॉय ने उसकी सजा के खिलाफ विरोध दर्ज कराया था।
वहीं संसद हमले के मास्टरमाइंड औए जैश-ए-मुहमम्द के कमांडर शाह नवाज खान उर्फ़ गाजी बाबा को बीएसएफ द्वारा अगस्त 2003 में कश्मीर के नूर बाग़ में हुए मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
हमले के बाद संसद की सुरक्षा व्यवस्था में अमूल-चूल बदलाव किया गया। संसद भवन के अंदर सीआरपीएफ, दिल्ली पुलिस और क्यूआरटी(क्यूक रिस्पॉन्स टीम) को तैनात किया गया है। मुख्य जगहों पर अतिरिक्त स्नाइपर भी पहरा देते रहते हैं। साथ ही सुरक्षा के ऐसे इंतजाम भी किये गए हैं जो गुप्त होते हैं यानी दिखते नहीं। किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिए आतंक निरोधी दस्ते लगातार औचक निरीक्षण करते रहते हैं। उच्च तकनीक वाले उपकरण जैसे बुम बैरियर्स और टायर बस्टर्स लगाने में करीब 100 करोड़ रुपये खर्च किये गये।