पहले उठाए भारतीय वैक्सीन पर सवाल, अब वैक्सीन फॉर ऑल: राहुल गाँधी और उनके नेताओं के प्रोपेगेंडा का सच

राहुल गाँधी (फोटो : इंडिया टुडे)

महीनों तक कॉन्ग्रेस के नेताओं के द्वारा भारत बायोटेक की कोविड-19 की वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ के खिलाफ कैम्पेन चलाने के बाद वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता और पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा और वैक्सीन को जरूरतमंदों को उपलब्ध कराने एवं वैक्सीन का निर्यात रोकने की माँग की। अपने पत्र में गाँधी ने वैक्सीन खरीद और वितरण में बिना किसी भेदभाव के राज्यों की भूमिका को बढ़ाने और कोरोनावायरस संक्रमण से प्रभावित लोगों को आय सहायता उपलब्ध कराने की बात कही। 

गाँधी ने अपने पत्र में यह भी कहा कि केंद्र सरकार वैक्सीन निर्माताओं को वित्तीय सहायता मुहैया कराए और वैक्सीन खरीद के लिए दुगुना भुगतान करे। गाँधी ने वैक्सीन निर्यात किए जाने पर केंद्र सरकार को घेरा और कहा कि जब हमारे देश में वैक्सीन की कमी हो रही है तब 6 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन के डोज निर्यात कर दिए गए। गाँधी ने वैक्सीन सर्टिफिकेट पर एक व्यक्ति की फोटो लगाने के स्थान पर सार्वभौमिक वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू करने पर जोर दिया।

https://twitter.com/RahulGandhi/status/1380383596230283267?ref_src=twsrc%5Etfw

राहुल गाँधी का मेड इन इंडिया वैक्सीन विरोधी कैम्पेन :

भले ही राहुल गाँधी पत्र लिखकर ‘वैक्सीन फॉर ऑल’ की वकालत कर रहे हों और कथित रूप से वैक्सीन की कमी को लेकर केंद्र सरकार को घेर रहे हों लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि जनवरी 2021 में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) द्वारा भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के आपात उपयोग को अनुमति दिए जाने पर यही राहुल गाँधी और उनके समर्थक वैक्सीन विरोधी प्रोपगंडा चला रहे थे। महीनों तक गाँधी और उनकी पार्टी के सदस्य वैक्सीन पर प्रश्न उठाते रहे।

कॉन्ग्रेस के बुद्धिजीवी सदस्य शशि थरूर ने भी कोवैक्सीन को लेकर लोगों में यह भ्रम फैलाया था कि वैक्सीन का तीसरे फेज का ट्रायल नहीं हुआ है। ऐसा करके उन्होंने न केवल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की मेहनत पर सवाल उठाए थे बल्कि लोगों में कोरोनावायरस की स्वदेशी वैक्सीन को लेकर डर भी पैदा किया।

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ सदस्य राशिद अल्वी थोड़ा और आगे निकले और कहा कि जैसे भाजपा और नरेंद्र मोदी विपक्षी नेताओं के खिलाफ विभिन्न संस्थाओं का उपयोग करते हैं वैसे ही वैक्सीन का उपयोग भी कर सकते हैं। अल्वी ने वैक्सीनेशन कार्यक्रम का बहिष्कार करने की माँग की और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की इस बात का समर्थन किया कि यह भाजपा की वैक्सीन है।  

वरिष्ठ कॉन्ग्रेस सदस्य आनंद शर्मा ने भी स्वदेशी कोवैक्सीन की क्षमता पर प्रश्न उठाया था और आरोप लगाया था कि वैक्सीन के फेज तीन के ट्रायल को नजरअंदाज किया गया है और डीसीजीआई ने कोवैक्सीन को अप्रूवल देने में आवश्यक प्रोटोकॉल्स के साथ समझौता किया है। कॉन्ग्रेस के निष्ठावान सदस्य साकेत गोखले ने भी डीसीजीआई पर प्रश्न उठाए और वैक्सीन के बारे में गलत और भ्रामक खबरें फैलाई।

राहुल गाँधी की वैक्सीन फॉर ऑल की माँग :

राहुल गाँधी भले ही केंद्र सरकार पर हमला करने के लिए वैक्सीन का सहारा ले रहे हों और वैक्सीन फॉर ऑल की माँग कर रहे हों लेकिन इससे यह साबित होता है कि उन्हें वैक्सीन और उसके वितरण संबंधी प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं है।

वैक्सीन बनाने वाले लगभग सभी देश एक ‘प्राथमिकता रणनीति’ पर काम करते हैं जिसका उद्देश्य होता है वैक्सीनेशन कार्यक्रम में प्राथमिकता का एक क्रम तय करना। भारत भी इसी रणनीति पर काम कर रहा है। वैक्सीन फॉर ऑल तब तक संभव नहीं है जब तक कि जनसंख्या के हिसाब से वैक्सीन निर्माण क्षमता को संतुलित न कर दिया जाए। भारत जैसी विशाल जनसंख्या वाले देश में वैक्सीन फॉर ऑल जैसी रणनीति पर काम करने से ऊहापोह की स्थिति निर्मित हो सकती है और जिन्हें सबसे पहले वैक्सीन की आवश्यकता है वो छूट सकते हैं।

शायद राहुल गाँधी को यह भी पता नहीं होगा कि 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 से संबंधित एक रणनीति जारी की थी जिसमें वैक्सीनेशन की प्राथमिकता के विषय में पूरी जानकारी दी गई थी। इस रणनीति में यह कहा गया था कि वैक्सीनेशन कार्यक्रम में दो समूहों को प्राथमिकता दी जाएगी। पहला समूह वह होगा जो कोरोना वायरस के संक्रमण के सबसे ज्यादा खतरे में होगा और उस आयु समूह से होगा जिसकी मृत्युदर सर्वाधिक है और दूसरा वह समूह होगा जो वैक्सीनेशन के बाद वायरस के प्रसार को न्यूनतम करेंगे।

इस रणनीति के तहत सरकार ने सबसे पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स और वृद्ध लोगों को वैक्सीन देने की योजना बनाई। इसके साथ उन लोगों को भी वैक्सीनेट किया गया जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। वैक्सीनेशन की अगली रणनीति में 45 वर्ष से ऊपर की आयु के सभी व्यक्तियों के लिए वैक्सीनेशन को शुरू किया गया।

वैक्सीनेशन की यह रणनीति न केवल भारत बल्कि यूके, जर्मनी, यूएस और कई अन्य देश भी अपना रहे हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया