कॉन्ग्रेस का RSS प्रेम आजकल फिर उफान पर आने लगा है। जैसे-जैसे आम चुनावों की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे गाँधी परिवार से लेकर कॉन्ग्रेस के परिवार-परस्त बड़े नेता भी RSS को केंद्र बनाकर अपनी स्वामीभक्ति साबित करने में जुट चुकी है। जमीन घोटालों में हर दूसरे दिन ED ऑफिस का चक्कर काट रहे रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की फंडिंग के बारे में अपने विचार दिए हैं, जिसका वीडियो उनको हटाना भी पड़ा है।
वैसे तो किसी भी विषय पर राहुल गाँधी के ज्ञान का नमूना वो स्वयं ही समय-समय पर देते रहते हैं, लेकिन आज आरएसएस के बारे में उनका ज्ञान इस बात से शुरू हुआ है, “किसी ने कहा है कि उनके हजारों संस्थान हैं।” हवा में तीर चलाने में राहुल गाँधी अब पारंगत हो चुके हैं। आज के समय में कॉन्ग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि उनके सबसे वरिष्ठ और ‘कद्दावर पार्टी अध्यक्ष’ का NDA सरकार को घेरने के लिए सबसे बड़े सबूत फोटोशॉप्ड तस्वीरें और ”किसी ने कहा है” होते हैं।
पहली बात यह है कि राफेल की तरह ही यह बात भी उन्हें ‘किसी से’ पता चली है, उसको खुद इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसके बाद भी ये चिरयुवा पार्टी अध्यक्ष अपना अमूल्य, गुप्त ज्ञान देने से रुकता नहीं है। पहला सवाल तो राहुल गाँधी से यही है कि उनकी RSS के बारे में जानकारी कितनी है? क्या उनकी जानकारी बस यहीं तक सीमित है कि आरएसएस में महिलाओं को कोई स्थान नही दिया जाता है, या फिर ये कि उन्होंने किसी लड़की को संघ की शाखा मे शॉर्ट्स पहने नहीं देखा? क्या ये जानकारी भी उनके जैसे ही किसी बुद्धिजीवी ने उन्हें दी है?
अनुभव के सामने आँकड़ों पर बात करना अतार्किक रहता है। मैं अपने अनुभव से कह सकती हूँ, जो मुझे कुछ समय आरएसएस की शाखा में जाने और शिशु मन्दिर, विद्या मन्दिर में अपने अध्ययन के समय प्राप्त हुआ। आरएसएस में मैंने कभी धर्म, जाति जैसे शब्द नहीं सुने, जैसा कि कॉन्ग्रेस नेता और कुछ प्रायोजित बुद्धिजीवी अक्सर कहते सुने जा सकते हैं। मैं और मेरे जैसी कई लड़कियाँ शाखा में समान रूप से गई हैं और हमें उन शाखाओं में कभी भी कुछ ऐसा सुनने या देखने को नहीं मिला जो साम्प्रदायिक सौहार्द से अलग हो।
राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस के पास जो सूचनाएँ आती हैं वो शायद किसी दूसरी आकाशगंगा में बैठे फैक्ट चेक रिपोर्टर्स हैं, जो उन्हें बेहतर महसूस करवाने के लिए उन्हीं की भाषा में 2 शब्द एक्स्ट्रा जोड़कर उन्हें पेश करते हैं।अक्सर इन प्रायोजित सुचना के स्रोतों और मीडिया गिरोहों द्वारा आरएसएस पर धार्मिक प्रचार का आरोप लगाया जाता है, लेकिन इसके क्या आधार हैं ये उन्हें खुद मालुम नहीं है।
क्या आरएसएस को हर दिन निशाना बनाना और उसे साम्प्रदायिक संगठन सिर्फ इसलिए माना जाना चाहिए क्योंकि वह ‘नमस्ते सदावत्सले मातृभूमि’ के उद्घोष करता है? हैरानी की बात है कि आज ही उत्तर प्रदेश में एक सरकारी स्कूल को मदरसे में परिवर्तित किए जाने की सूचना आई है, कभी खबर आती है कि कोई शांतिदूत अध्यापक, जिसके नाम और करतबों में उसका मजहब नहीं ढूँढा जाना चाहिए, बच्चों को अपने धर्मविशेष के अनुसार व्यहार करने के लिए मजबूर करता है।
क्या कभी संघ द्वारा संचालित किसी स्कूल से जबरन धार्मिक आचरण व्यवहार में लाने या साम्प्रदायिक शिक्षा के बढ़ावे जैसी कोई शिकायत मिली हैं? संघ कभी भी, किसी को भी बाध्य नहीं करता है, और यह मैं इसलिए कह सकती हूँ क्योंकि मैंने अपने साथ ही मुस्लिम, सिख लोगों को देखा है, जो संघ के कार्यकर्ताओं के रूप मे अपनी धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करते हैं। मैंने कभी किसी मुस्लिम बच्चे को संघ द्वारा संचालित विद्यालयों में वन्देमातरम गाने के लिए बाध्य करते नहीं देखा है।
कॉन्ग्रेस पार्टी संघ की शिक्षा प्रणाली पर सवाल करती रही है कि वहाँ पर इतिहास को बदल कर पढ़ाया जाता है और BJP की सरकार बनने के बाद उसी शिक्षा को देश में फैलाया जा रहा है। मैं इस बात पर सहमत भी हूँ, इसलिए कि आरएसएस के विद्यालय इतिहास के योद्धाओं यानि शिवाजी, महाराणा प्रताप, विक्रमादित्य, छत्रसाल जैसे शूरवीरों को नायक मानकर इतिहास पड़ते हैं ना कि बर्बर आक्रांता, आतताई मुगलों की स्तुति करते इतिहास को, और कॉन्ग्रेस की आपत्ति शायद सिर्फ इसी एक बात से रही है।
संघ ने देशभक्ति, अपने गौरवपूर्ण इतिहास को जानने की दिशा दी है और यह दिशा निरन्तर बनी रहे, इससे किसको आपत्ति हो सकती है। भारत का सत्य भारत ही है, इसके स्मारक, इसकी धरोहरें और बाहर से आए लुटेरे और उनका महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे वीरों द्वारा दमन ही इसकी वास्तविकता हैं। लेकिन प्रश्न ये है कि कॉन्ग्रेस इस धरोहर पर गौरवान्वित क्यों नहीं महसूस करती है। कॉन्ग्रेस और इसके प्रायोजित बुद्दिजीवी क्यों नहीं सहयोग करते हैं आरएसएस के साथ मिलकर भारत को सामाजिक रूप से जाति, धर्म से रहित बनाने का?
लेकिन कॉन्ग्रेस ऐसा कभी नहीं करेगी। कारण हमेशा की ही तरह स्पष्ट है, कॉन्ग्रेस भारतीय लोकतंत्र के पंथनिरपेक्ष, समाजवादी समाज की समुदाय विशेष की पार्टी है जो इस समुदाय विशेष को वर्षों से अशिक्षित और साधनविहीन रखकर उसके वोट के बल पर सत्ता में बनी रही और अभी भी ऐसा ही चाहती है।
चुनाव का समय आते ही सभी पार्टियाँ अपनी अच्छाइयाँ और दूसरी पार्टी की बुराईयाँ, दोनों का हल्ल्ला काटने लगती हैं। हर पार्टी किसी भी तरह से सत्ता पाना चाहती है और उसके लिए कोशिश करती है। इस अभियान में हम वोटर के रूप में अपना फर्ज निभाते हुए ‘ये अच्छा, ये ज्यादा अच्छा’ के निर्णय में न चाहते हुए भी जुड़ जाते हैं।
बात जब प्रधानमंत्री पद की आती है तो वर्तमान परिदृश्य में दो मुख्य पार्टियों, कॉन्ग्रेस और भाजपा, के उम्मीदवारों पर आकर रुकती है। भाजपा के बारे में बात समझी जा सकती है लेकिन सबसे पुरानी पार्टी कॉन्ग्रेस के पास राहुल गाँधी के अतिरिक्त कोई चेहरा क्यों नही है क्या इस बात का जवाब भी उसे आरएसएस से पूछना चाहिए? ये सवाल इसलिए है कि वह भारत देश के बारे में पूछे जाने पर कहते हैं, “अभी समझने की कोशिश कर रहा हूँ।”
राहुल गाँधी जनसभाओं में कहते हैं, “15 मिनट बोलने दो।” और जब कहने की बारी होती है, तब वो अपनी सरकार की योजनाओं का नाम तक ठीक से नहीं ले पाते हैं। जिस राफेल डील का जिक्र वो बार-बार करते हैं , उसकी कीमत को वह हर जनसभा में लगभग ‘पिछत्तिस’ बार अलग-अलग बताते हैं। NRC पर वह रोहिंग्याओं का पक्ष लेते हैं, तो उनके अनुसार नक्सली ‘बुद्धिजीवी’ हो जाते हैं। डोकलाम पर सरकार को कोसते तो खूब हैं, पर जब पूछा जाता है कि चलिए आपकी इस पर क्या नीति रहेगी? तो जवाब होता है, “मुझे इस विषय की अधिक जानकारी नहीं है।”
पार्टी के युवराज राहुल गाँधी कुछ कह देते हैं, और पूरी पार्टी का नेतृत्व दिग्विजय सिंह से लेकर कपिल सिब्बल तक उनके बचाव में अपना सब समय और पूरी ऊर्जा झोंक देते हैं। आरएसएस पर कॉन्सपिरेसी गढ़ने और नरेंद्र मोदी को फ़ासिस्ट घोषित करने के बजाए कॉन्ग्रेस पार्टी क्यों नहीं इस बात के लिए समय निकालती है कि किसी ऐसे योग्य व्यक्ति को आगे किया जाए, जो सही मायनों में सबसे पुरानी पार्टी को आगे बढ़ाए? यदि परिवार की यह पार्टी और इसके भक्त लोग ‘गाँधी’ मोह को छोड़ सकें, तो अधिक उम्मीद है कि कॉन्ग्रेस वाकई कुछ बेहतर कर पाए। वरना कॉन्ग्रेस का मुद्दा सिर्फ बयानों पर बचाव तक ही सीमित हो जाएगा और संसद में बोलने का समय और कम होता जाएगा।