किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए नए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं। इस बीच भाजपा नेता और आर्थिक मामलों के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने बताया कि इस आंदोलन को कमीशन एजेंटों (आढ़तियों) ने उकसाया है, जिन्हें सालाना 6000 करोड़ रुपए का कमीशन छिनने का डर है।
रिपोर्टों के अनुसार, भाजपा ने कॉन्ग्रेस और कमीशन एजेंटों पर अपने फायदे के उद्देश्य से किसानों को भड़काने का आरोप लगाया है। गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि यह लंबे समय से चली आ रही माँग है कि सरकार किसानों के लिए विकल्प बाजार बनाए और कृषि क्षेत्र में क्रांति लाए। उन्होंने दोहराया कि नए कृषि बिलों की शुरूआत उस दिशा में एक कदम है। भाजपा नेता ने कहा कि सरकार के प्रयासों को विपक्षी दलों और कमीशन एजेंटों के एक प्रेरित अभियान द्वारा बिगाड़ने की कोशिश हो रही है।
उन्होंने कहा कि पंजाब में लगभग 25,000 कमीशन एजेंट हैं, जो 8.5% की कटौती करके 6000 करोड़ कमाएँगे। अग्रवाल ने कहा कि नए कृषि कानूनों ने बाजारों पर कमीशन एजेंटों के नियंत्रण को खतरे में डाल दिया है। इसलिए वे कॉन्ग्रेस पार्टी के समर्थन से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और मंडी प्रणाली के ‘उन्मूलन’ के बारे में अफवाहें फैला रहे हैं।
कृषि कानूनों को लाने का उद्देश्य कमीशन एजेंटों के एकाधिकार को समाप्त करना था
यह पूछे जाने पर कि सरकार एमएसपी के बारे में किसानों को लिखित में आश्वासन क्यों नहीं देती, उन्होंने स्पष्ट किया कि नए कृषि कानूनों का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है। गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि मंडी प्रणाली और एमएसपी वैसी ही रहेगी, जैसा कि अभी तक था। इस बात को केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार स्पष्ट किया है।
उन्होंने कहा कि कृषि कानून विशेष रूप से APMC (कृषि उपज बाजार समिति) में कमीशन एजेंटों के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए है। उन्होंने आगे कहा कि एजेंट किसानों को स्थानीय बाजार में अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें 8.5% का कमीशन मिलता है। जबकि नए कानून से जहाँ लाभ मिलेगा, किसान वहीं फसल बेच सकेंगे।
गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने MSP के बारे में भ्रम को दूर किया
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि इस सरकार ने पिछली सरकारों द्वारा 6% की तुलना में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कुल कृषि उपज का 15% खरीदने का फैसला किया है। उन्होंने टिप्पणी की, “एमएसपी के बारे में अफवाह फैलाने वालों को यह समझना चाहिए कि केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है, लेकिन राज्य सरकारों को उस कीमत पर फसलों की खरीद करनी होती है। राज्य सरकारें आर्थिक रूप से इतनी मजबूत नहीं हैं कि 100% खरीद वो कर पाएँ और न ही उनके पास भंडारण की उचित क्षमता है।”
भाजपा नेता ने प्रदर्शन के समय पर उठाया सवाल, निजी निवेश पर दिया जोर
उन्होंने नए सिरे से विरोध-प्रदर्शन के समय पर भी सवाल उठाया। अग्रवाल ने कहा कि कई रिपोर्ट की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए और किसान संगठनों से बातचीत के बाद कृषि कानूनों से जुड़े ऑर्डिनेंस जून में आए थे। किसी को समस्या थी तो जून में भी बात उठा सकते थे। अब नवंबर के अंत में आंदोलन हो रहा है। इससे पता चलता है कि किसानों को भड़काया गया और गुमराह किया जा रहा है। भाजपा प्रवक्ता ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में वेयरहाउसिंग और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ कम हैं, लेकिन विशेष क्षेत्र में निजी निवेश से किसानों को लाभ होगा क्योंकि देश में अनाज सरप्लस है।