जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को सोमवार को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में लिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शेख अब्दुल्ला को उनके आवास पर ही हिरासत में रखा गया है और उसे ही अस्थायी जेल बना दिया गया है। पीएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।
दिलचस्प यह है कि पीएसए फारूक के पिता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने ही लागू किया था। लागू होने के बाद से ही यह कानून विवादों में रहा है। बताया जाता है कि यह कानून 1978 में शेख अब्दुल्ला ने लकड़ी तस्करों पर नकेल कसने के लिए बनाया था। आतंकवाद के दौर में कश्मीर में इस कानून का जमकर इस्तेमाल किया गया।
शेख अब्दुल्ला राजनीतिक पार्टी ‘ऑल जम्मू एन्ड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस’ के संस्थापक थे। इस पार्टी को अब ‘जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC)’ के नाम से जाना जाता है। शेख अब्दुल्ला के बेटे फ़ारूक़ अब्दुल्ला और पोते उमर अब्दुल्ला भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
वैसे, श्रीनगर से लोकसभा सांसद फारूक अब्दुल्ला 5 अगस्त से घर में नजरबंद हैं। उनके बेटे उमर भी उसी समय से हिरासत में हैं। इसी दिन कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले संविधान का अनुच्छेद 370 निरस्त किया गया था। हाल में, नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसदों को फारूक और उमर अब्दुल्ला से मिलने की अनुमति दी गई थी, लेकिन इस प्रतिबंध के साथ कि वे मुलाकात के बाद मीडिया के साथ बातचीत नहीं कर सकते।
अब फारूक अब्दुल्ला को जिस पीएसए एक्ट तहत हिरासत में लिया गया है उसमें किसी व्यक्ति को बिना मुक़दमा चलाए 2 वर्षों तक हिरासत में रखा जा सकता है। अप्रैल 8, 1978 को जम्मू कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट को राज्यपाल की मंजूरी मिली थी। इन क़ानून को मुख्यतः जम्मू-कश्मीर में लकड़ी तस्करी रोकने के लिए लाया गया था। उस दौरान शेख अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री थे। इसके तहत 2 साल तक के लिए 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को बिना ट्रायल गिरफ़्तार किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा कई बार अलगाववादियों के ख़िलाफ़ पीएसए का इस्तेमाल किया गया। जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कई लोगों ने घाटी में हिंसा भड़काने की कोशिश की थी। उस दौरान ऐसे लोगों को पीएसए एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था। अगस्त 2018 में इस एक्ट में संशोधन कर के राज्य के बाहर के नागरिकों को भी इसके दायरे में लाया गया। इसके तहत ऐसे लोगों को गिरफ़्तार किया जाता है जो राज्य की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कार्य कर रहे हैं या फिर सार्वजनिक शांति को भंग करते हैं।
While PSA allows a person to be detained for a maximum period of two years, certain time limits must be adhered to. The initial validity of the detention is between 12 days and three months, followed by subsequent extensions as and when required. https://t.co/rlPAYBhAdZ
— Bharti Jain (@bhartijainTOI) September 16, 2019
पीएसए के तहत हिरासत में लेने का आदेश डिविजनल कमिश्नर या डीएम दे सकते हैं। उन्हें इसके लिए सार्वजनिक रूप से कारण बताने की भी ज़रूरत नहीं है। शेख अब्दुल्ला सरकार द्वारा बनाए गए इस क़ानून की जद में आज उनके बेटे ही आ गए हैं।
मई 1946 में शेख अब्दुल्ला कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह के ख़िलाफ़ ‘क्विट कश्मीर’ आंदोलन भी चला चुके हैं। उन पर ‘संविधान सभा’ के चुनाव में धाँधली करने का भी आरोप है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भी कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के लिए नेताओं को गिरफ़्तार पहले भी किया जाता रहा है। उन्होंने शेख अब्दुल्ला का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें भी 1953 में कई सालों के लिए गिरफ़्तार किया गया था।